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पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग (पी0 टी0 एम0)

पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग (पी0 टी0 एम0)

आर 0 के 0 लाल


"देखिए! मेरी बेटी के कितने नंबर आए हैं। आपने जो भी उत्तर क्लास में लिखवाया था, वही तो इसने लिखा था। अन्य सभी विषयों में अच्छे नंबर आए हैं। केवल आप ही के द्वारा पढ़ाए गए विषय में कम नंबर आए हैं।" क्लास में सुमित्रा अपनी बेटी के साथ अध्यापक के पास पहुंचकर शिकायत कर रही थी। उन्होंने बहुत अनुरोध किया कि टीचर उसकी बेटी की कापी को पुनः जांच दें। आज पैरेंट टीचर मीटिंग है और सभी बच्चों के माता पिता स्कूल आएं हैं। सभी स्कूलों में पी टी एम कराने का प्रचलन है। महीने के किसी एक शनिवार को पढ़ाई नहीं होती और पेरेंट्स को उनके बच्चों के साथ बुलाया जाता है। एक एक करके कक्षा अध्यापक उनके साथ बच्चों की प्रगति पर चर्चा करते हैं।


सुमित्रा के पति ने भी टूटी-फूटी अंग्रेजी में अपना आक्रोश प्रकट किया। अब तो क्लास टीचर की भौहें तन गई। बोलीं - "इट इज नॉट माई फॉल्ट। यू डू नॉट नो हाउ टू स्पीक इंग्लिश। यूएर डॉटर इज नॉट फ्लुएंट।" सुमित्रा के पति ने उसकी बात को काटते हुए अपना पक्ष रखा -"बट शी इज ओनली थ्री। यू फेल्ड हर एंड शी इज इन टेंशन। इट इज वेरी हुमीलियेटिंग। आप बिना बच्चे की कॉपी देखे ही सब कुछ सही बता रहीं हैं और हमारी बात पर कोई महत्व नहीं दे रहीं हैं। फिर क्या फायदा इस मीटिंग का"। हिंदी अंग्रेजी मिलाकर वे बोले। इसके बावजूद भी टीचर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की और दूसरे अभिभावक को अपने पास बुला लिया।


वहीं नितिन जी अपने बेटे के साथ अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। उन्हें यह सब सुनकर बहुत खराब लग रहा था। वे बोले- "मां बाप तो अपने बच्चों के विषय में प्रश्न पूछेंगे ही। टीचर को उसका नम्रता पूर्वक जवाब देना चाहिए मगर ऐसा नहीं होता। अक्सर पेरेंट्स अपने बच्चे की प्रगति के लिए उत्सुक रहते हैं इसीलिए महंगे से महंगे स्कूल में पढ़ाते हैं। वेे जानना चाहते हैं कि बच्चे की कमी को कैसे सुधारा जाए मगर कुछ टीचर इस नजरिए से उनसे मिलते हैं जैसे उन्होंने कोई अपराध कर दिया हो। क्लास टीचर अक्सर उन्हें प्रश्नों के कटघरे में खड़ा कर देते हैं और बच्चों और पेरेंट्स की गलती निकालते हैं वह भी बच्चों के सामने। किसी डिस्कसन पर उनकी कोशिश रहती है कि अभिभावकों को चारों खाने चित कर दिया जाय।"

एक दूसरे सज्जन ने भी अपनी भड़ास निकाली कि प्रायः ऐसी मीटिंग का कोई एजेंडा नहीं होता और मीटिंग में कहीं गई बातें कहीं रिकॉर्ड नहीं की जाती। सब कुछ मौखिक होता है। मीटिंग के बाद टीचर और पेरेंट्स दोनों भूल जाते हैं। पेरेंट्स की बातें और शिकायत आदि प्रधानाचार्य या स्कूल के मैनेजमेंट तक पहुंचता ही नहीं जिस पर कोई कार्रवाई की जा सके। ज्यादातर लोग केवल पी टी एम करके समझते हैं कि उनकी जिम्मेदारी पूरी हो गई। अगर कुछ सुधारात्मक कार्रवाई की भी जाती है तो उस विषय में पेरेंट्स को बताने की कोई व्यवस्था भी नहीं है।

थोड़ी देर बाद एक दूसरे सज्जन अपनी पत्नी एवं बेटे के साथ पहुंचे। उनके बैठते ही क्लास टीचर बोली - 'आपका लड़का तो एकदम बिगड़ गया है, इसका ध्यान पढ़ाई पर नहीं रहता बल्कि अभी से लड़कियों पर ही रहता है, दूसरे लड़कों से लड़ता है और गाली गलौज करता है। " वह सज्जन टीचर से कह रहे थे नहीं ऐसा नहीं हो सकता। फिर उन्होंने वहीं अपने बेटे को दो तीन हाथ जमा दिए। लड़का तेज तेज रोने लगा। उसकी मम्मी से बोले सब तुम्हारी वजह से हो रहा है, लड़का एकदम बिगड़ गया है। उसकी मम्मी भी कम नहीं थी। उन्होंने भी उन्हें खरी-खोटी सुनाई। फिर दोनों क्लास में ही तू तू मैं मैं करने लगे । सब लोग मजा ले रहे थे।अनेकों ऐसे उदाहरण हैं जब ऐसी मीटिंग बस एक मजाक बन कर रह जाती है।

उस दिन गतिक के पापा डेयरी पर दूध लेते समय मनुज के पापा से पूंछ रहे थे कि क्या आज पी टी एम में चलना है? पिछले दो बार से आप या भाबी जी नहीं जा रहें हैं। उन्होंने उत्तर दिया -" यार अपना बच्चा तो इस स्कूल में बहुत अच्छा कर रहा है। जबरदस्ती का क्यों नाटक करते हैं ये स्कूल वाले कि पीटीएम में जाओ। एक शनिवार को आराम करने के लिए मिलता है उसमें भी टीचर की बातें सुनने दौड़े जाओ। मुझे तो बहुत दिक्कत होती है। मैं फीस देता हूं तो फिर ठीक से पढ़ाते क्यों नहीं?

उसके मित्र ने समझाया कि देखो सुनील आपके बच्चे के विकास से जुड़ी अनेक बातें केवल स्कूल जाने से ही पता चलती है इसलिए तुम्हें पैरंट टीचर मीटिंग में जाना चाहिए। स्कूल के एक क्लास में साठ से सत्तर बच्चे रहते हैं, सभी का ख्याल तो टीचर नहीं दे सकते। यह बात सही है कि आप फीस देते हैं तो उन्हें देखना चाहिए फिर भी आपको अपने बच्चे की हर प्रोग्रेस, उसके व्यक्तित्व की जुड़ी बातों को और कमियों को जानना चाहिए। हर बच्चे में कुछ न कुछ कमी होती है इसके लिए माता पिता और शिक्षक दोनों को प्रयास करना चाहिए। पैरंट टीचर मीटिंग को हमें मात्र औपचारिकता भर नहीं मानना चाहिए।

आप की बात तो ठीक है परंतु क्या हमारी बात सुनी जाती है? टीचर में कमियों के बारे में कोई सुनने वाला है? उन्होंने पूछा कि पी टी एम में केवल टेस्ट में मिले अंकों की ही बात क्यों की जाती है। बच्चों के एक्स्ट्रा करिकुला की बात क्यों नहीं की जाती?

एक रिटायर्ड टीचर भी वहीं दूध ले रहे थे। उन्होंने इन लोगों की बात सुनी और बोल पड़े कि बच्चों की कमियों पर आलोचना माता पिता को मीटिंग में जाने से रोकती है। शिक्षकों को इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि किसी माता पिता को अपने बच्चों की कमी सहन नहीं होती है। साथ ही टीचर कोई कमी बताएं तो पेरेंट्स को अन्यथा नहीं लेना चाहिए बल्कि उस पर विचार करना चाहिए और समस्या का हल खोजना चाहिए। इसी प्रकार शिक्षकों को भी चाहिए कि बच्चों की कमी सुधारने के लिए संयुक्त कार्यवाही के लिए सही सलाह दें। फिर बोले कि मात्र दो तीन घंटों में शिक्षक लोग पचास साठ बच्चों के अभिभावक को जल्दी जल्दी निपटाने का प्रयास करते हैं जो उचित नहीं है। उन्हें छोटे-छोटे समूह में बुलाना चाहिए और हो सके तो कई दिन यह कार्यक्रम करना चाहिए। बच्चों के प्रदर्शन और उनके द्वारा किए गए अच्छे कार्यों को भी बताना चाहिए।

डेयरी का मालिक भी अपने बच्चे को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाता है। उसने कहा- "पहले के जमाने में जितना ध्यान पढ़ाई- लिखाई पर दिया जाता था उससे कहीं ज्यादा ध्यान इस पर देते थे कि पढ़ने वाले बच्चों का संस्कार कैसे बने? आज भी इसकी आवश्कता है इसलिए बच्चों के दिमाग में क्या खुराफात चल रही है, उसको समझ लिया जाय। उसके मुताबिक़ सलाह- मशविरा दिया जाय। सफाई, अनुशासन के लिए अध्यापक चाहे तो बहुत आसानी से उन्हें प्रेरित कर सकते है। मगर समाज की किसकी चिंता है। टीचर लोग सिर्फ पैसा लेना जानते हैं। उन्होंने भी सलाह दी किअभिभावक का काम है कि वे बच्चों के विकास के लिए सही वातावरण उत्पन्न करें, और अध्यापक, अपना स्कूली पाठ्यक्रम पूरा करने के साथ- साथ उनके व्यक्तित्व को परिष्कृत करने में समर्थ बनाने वाली बातें भी सिखाएं। पीटीएम में बच्चे के दोस्तों के पैरेंट्स से भी मुलाकात करने का मौका मिलता है। उनसे आप दोस्ती कर सकते हैं। यह देख करके आपका बच्चा भी दोस्ती करना सीखेगा। बच्चों के दोस्त एवं शिक्षकों से यह पता करने की कोशिश करें कि आपका बच्चा कितना अनुशासित है।"

दूध दुह रहे यादव जी ने अपना अनुभव शेयर किया - "अगर आपने सही ढंग से कार्रवाई नहीं की तो पीटीएम के नतीजे खराब भी हो सकते हैं। अभी हाल में दिल्ली के स्कूल की 12 साल की छात्रा करिश्मा ने पैरंट टीचर मीटिंग के लौटने के बाद फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। पढ़ाई में कमजोर होने की टीचर ने शिकायत की थी और उसकी मां ने उसको फटकार लगाई थी। इसी बात से दुखी होकर उसने आत्महत्या कर ली। पढ़ाई में आजकल प्रतिस्पर्धा अधिक होने के कारण उनमें तनाव न हो इसका प्रयास होना चाहिए। समझदारी इस बात में है कि मीटिंग में जाने से पहले आप अपना एक प्रोग्राम बना ले और मीटिंग का एजेंडा निर्धारित करें। इसके विषय में बच्चे को भी अवगत करा दें और हो सके तो उससे भी बात करके सारी चीजों को समझ लें। अपने बच्चे की रिपोर्ट कार्ड का मूल्यांकन आप स्वयं करें और देखें कि किस बात पर चर्चा की जानी है ताकि आपको और आपके बच्चे को इसका फायदा मिल सके।"

बच्चे के विकास के लिए पीटीएम बहुत ही महत्वपूर्ण है इसलिए पैरंट को उसमें जरूर जाना चाहिए। टीचर अगर आप से नम्रता पूर्वक न बात करें और धैर्य से हर प्रश्न का उत्तर न दे तो उसकी शिकायत कीजिए। मगर शिकायत झूठी नहीं होनी चाहिए। टीचर को चाहिए कि बच्चों की अच्छाई बुराई दोनों से पेरेंट्स को अवगत कराएं और हर समस्या पर चर्चा करें। हर समस्या का समाधान टीचर और पेरेंट्स दोनों मिलकर करेंगे तभी शिक्षा उपयोगी होगी।

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