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दहलीज़ के पार - 22

दहलीज़ के पार

डॉ. कविता त्यागी

(22)

अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ‘महिला जागरूकता अभियान की टीम ने जिस क्षेत्र मे ‘महिला स्वाभिमान केद्र' आरम्भ किया था, उस क्षेत्र मे टीम की आशानुरूप महिलाएँ अपनी भागीदारी दर्ज कराने लगी थी। दो वर्ष तक निरन्तर कठोर परिश्रम करने के बाद गरिमा की टीम ने अपने लक्ष्य तक पहुँचने मे अशतः सफलता प्राप्त कर ली। उस क्षेत्र की स्त्रियाँ अपनी शक्तियो का सदुपयोग करती हुई समाज के रूढ़ प्रतिबन्धो को तोड़कर अब उन्नति के पथ पर अग्रसर होने लगी थी। अपने जीवन मे आगे बढ़ती हुई स्त्रियाँ यद्यपि अपने परिवार के प्रति पूर्णरूपेण कर्तव्य—निर्वाह कर रही थी और समाज की प्रासगिक मान्यताओ का यथोचित सश्रद्धा पालन करती थी, फिर भी समाज मे टीम के प्रति विरोधी स्वर उठने लगे थे। ज्यो—ज्याे ‘महिला स्वाभिमान केद्र' मे समाज की महिलाओ की प्रविष्टि सख्या बढ़ती जा रही थी, त्यो—त्यो समाज की ओर से टीम के प्रति विरोधी स्वर भी तेज होते जा रहे थे।

‘महिला स्वाभिमान केद्र' को चलाने वाली टीम के विरोध मे अपना स्वर बुलन्द करने वाले अधिकाशतः पुरुष और बुजुर्ग स्त्रियाँ ही थी। उनका आरोप था कि टीम ने उनके परिवार की स्त्रियो को गुमराह करके उनके पारिवारिक व्यवस्था का सन्तुलन बिगाड़ दिया है। सत्य तो यह था कि जो स्त्रियाँ ‘महिला स्वाभिमान केद्र' के साथ जुड़ रही थी, वे धीरे—धीरे आर्थिक रूप से स्वावलम्बन प्राप्त करके मानसिक रूप से भी स्वय को सशक्त अनुभव करने लगी थी। अब वे अपनी शक्तियो को पहचानने लगी थी, इसलिए घर—परिवार के प्रत्येक महत्वपूर्ण विषय पर रुचि लेने लगी थी। स्त्रियो का यह मानसिक परिवर्तन न तो परिवार के पुरुषो को रास आ रहा था, न ही घरेलू कामकाजी महिलाओ को, क्योकि जिन स्त्रियो मे जागरूकता आ रही थी, उन स्त्रियो पर इस रूढ़िवादी धड़े की अनैतिक पकड़ कमजोर पड़ने लगी थी। अत्याचार की सीमा को छूने वाले प्रतिबन्धो की बेड़िया टूटने लगी थी, जिससे यह रूढ़िवादी धड़ा विचलित हो उठता था और अपने विरोध को प्रबल करने मे जुट जाता था।

अपने पक्ष को दृढ़ करने के लिए विरोधियो ने साम—दाम—दड—भेद की नीति आरभ कर दी। विरोधियो की इस कार्यशैली से महिला टीम आश्चर्यचकित थी। टीम मे जो सदस्य शहर से आये थे, उन्होने गाँव के लोगो का यह रूप पहली बार देखा था। अभी तक ये शहरी लोग ग्रामीणो को जाहिल गँवार समझते थे, रूढ़िवादी ग्रामीणो कर नेतृत्व करने वाले चालाक ग्रामीणो का लोहा मानने के अतिरिक्त टीम के मस्तिष्क मे कोई विचार आना कठिन था। नेतृत्व करने वाले लोगो का तर्क था कि घर से निकलकर उनकी स्त्रियाँ अपने परिवार की देखभाल करने की रुचि खो रही है। इतना ही नही, उनका आरोप था कि जो स्त्रियाँ ‘महिला स्वाभिमान केद्र मे जाती है, वे परिवार के सभी महत्वपूर्ण विषयो मे अड़चन डालती है।

सत्य यह था कि परिवार मे चल रही किसी भी महत्वपूर्ण विषय की चर्चा मे वे अपनी प्रविष्टि चाहती थी और उस विषय पर निर्णय देना अपना अधिकार समझती थी। न केवल निर्णय देना, बल्कि परिवार द्वारा लिये गए अनुचित निर्णयो को पलटने के लिए वह एड़ी—चोटी का जोर लगा देती थी। स्त्रियो मे यही परिवर्तन उनके परिवार और समाज को असह्‌य था। ‘महिला स्वाभिमान केद्र' मे आने वाली अनेक स्त्रियाँ बताती थी कि परिवार मे चलने वाले किसी भी महत्वपूर्ण विषय की चर्चा मे उनकी प्रविष्टि वर्जित मानी जाती है। अधिकाश परिवारो मे स्त्रियो द्वारा इस वर्जना का उल्लघन करते ही क्लेश की स्थिति बन जाती थी। जब भी किसी महत्वपूर्ण विषय मे भाग लेने की इच्छुक बहू या बेटी अपना मत प्रस्तुत करने का प्रयास करती थी, तब अधिकाश परिवारो मे प्रायः पिता, भाई या पति आदि द्वारा प्रायः इन शब्दो मे प्रतिक्रिया होती थी —

चल जा, अपना काम कर ! ये बाते तेरे मतलब की ना है ! चूँकि ‘महिला जागरूकता अभियान' के सम्पर्क मे आने के पश्चात्‌ और विशेषतः ‘महिला स्वाभिमान केद्र' के सदस्य बनने के पश्चात्‌ इन महिलाओ म आत्मविश्वास की वृद्धि हुई थी, इसलिए वे भी अपनी ओर से प्रतिक्रिया देने मे विलम्ब नही करती थी अैर प्रगल्भ

शैली मे कहती थी—

अपना काम ही कर रही हूँ ! यह घर मेरा भी है और इस घर के विषय मे लिये गये सभी निर्णय मुझे प्रभावित करते है, ये सब बाते मेरे मतलब की भी है !

घर की बहू—बेटी द्वारा अपने आदेश का उल्लघन अधिनायकवादी पुरुषो को भला कैसे सहन हो सकता था। उनका क्रोध सातवे आसमान को छूने लगता था और तब कठोर शब्दो मे गर्जना होती थी—

एक बेर का कह्‌या समझ मे नी आत्ता तुझे ? बेर—बेर समझाणा पड़ेगा, बड़ो की बात्तो मे टाँग अड़ाणे ना आय कर तू यहाँ! पुरुष—विभाग की ओर से गर्जना सुनकर स्त्री—विभाग भी सक्रिय हो जाता था। घर की बुजुर्ग—मुखिया महिला अब अपना हथियार उठा लेती थी, जिसमे प्रायः बहू को उसके मायके से मिले सस्कारो पर प्रश्न लगाया जाता था, मायके वालो के लिए अपशब्दो की वर्षा की जाती थी और बेटी को कटु शब्दो मे डाँटने—फटकारने के बाद उसको समझाया जाता था कि एक सुशील स्त्री के गुण क्या होते है ?

गाँव के अधिकाश परिवाराे मे यही स्थिति थी। धीरे—धीरे ऐसे परिवारो की सख्या मे वृद्धि होती जा रही थी। स्त्रियो की पुरानी दशा मे बदलाव की बयार जिन लोगो को रास नही आ रही थी, उनका सामूहिक विरोध भी उत्कर्ष पर था। ऐसे रूढ़िवादी धड़े के लोगो ने अब यह ठान लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, ‘महिला स्वाभिमान केद्र' को बद कराना है और इसको सचालित करने वाली टीम को गाँव मे टिकने नही देगे। अपनी इस दुर्भावना को कार्य—रूप देने के लिए एक दिन रूढ़िवादी धड़े के कुछ लोग लाठी—डडे लेकर ‘महिला स्वाभिमान केद्र' पर आ धमके। उन्होने आते ही तोड़—फोड़ आरभ करते हुए तुगलकी फरमान जारी करते हुए कहा कि आज के बाद गाँव मे न तो ‘महिला स्वाभिमान केद्र' चलने दिया जाएगा और न ही ‘महिला जागरूकता अभियान' की टीम को प्रवेश करने दिया जाएगा।

रूढ़िवादी धडे़ के उद्‌दडी लोगो के आसामाजिक व्यवहार से ‘महिला जागरूकता अभियान की टीम और ‘महिला स्वाभिमान केद्र' की सचालक टीम के पैर उखड़ने लगे। समझ मे नही आ रहा था कि इस विकट स्थिति पर नियत्रण कैसे किया जाए ? कैसे इस उपद्रव को रोका जाए ?

अभियान की टीम के पैर उखड़ते देखकर गरिमा का मन विचलित होने लगा। यह कल्पना करते ही उसको कष्ट का अनुभव होने लगता था कि समाज के रूढ़िवादी और उपद्रवी लोगो की दुर्भावना के कारण ‘महिला स्वाभिमान केद्र' बन्द हो सकता है। गरिमा का पति आशुतोष भी अब तक अप्रत्यक्षतः ‘महिला जागरूता अभियान' के साथ जुड़ाव का गहन अनुभव करने लगा था। वैसे तो, महिलाओ के हित मे तार्किक और उदात्त विचारो को धारण करने वाले लोग उस समाज मे आशुतोष के अतिरिक्त भी बहुत थे, जो चाहते थे कि ‘महिला स्वाभिमान केद्र' न केवल उस गाँव मे चलता रहे, बल्कि ऐसे केद्र नित्य नयी ऊँचाईयो को छूते हुए सभी पिछड़े—क्षेत्रो मे विस्तार पाते रहे, परन्तु रूढ़िवादी धड़े के साथ टकराने की दृढ़ इच्छा—शक्ति का इन लोगो मे अभाव था। आशुतोष ने ऐसे दो—चार लोगो से इस विषय मे आगे बढ़कर बोलने और इस समस्यो का समाधान करने की दिशा मे प्रयत्न करने का आग्रह किया था, परन्तु उसको अपने मनोनुरूप प्रतिक्रिया नही मिली।

अन्त मे आशुतोष तथा गरिमा को एक उपाय सूझा। उन्होने निश्चय किया कि किसी प्रभावशाली व्यक्ति से भेट करके उसे अपनी समस्या बतायेगे और इस विषय मे यथासभव उसकी सहायता लेकर गाँव के असामाजिक—अतार्किक उपद्रवो को रोकने का प्रयास करेगे। आशुतोष को स्मरण हुआ कि भूतपूर्व ब्लॉक—प्रमुख का गाँव के सभी प्रभावशाली लोगो पर अच्छा प्रभाव है। भूतपूर्व ब्लॉक—प्रमुख के साथ आशुतोष का भी पर्याप्त परिचय था। अब समस्या यह थी कि ‘महिला जागरूता अभियान' टीम की सहायता करने के लिए ब्लॉक—प्रमुख तैयार होगा भी या नही, जब समाज के अधिकाश लोग एकजुट होकर इसका विरोध दर्ज कर रहे है !

समस्या की विकटता का आभास होने के बावजूद गरिमा और आशुतोष अपने निश्चय पर दृढ़ थे। ‘महिला जागरूता अभियान' की टीम को साथ लेकर उन्होने ब्लॉक—प्रमुख से भेट की और अपने गाँव मे उत्पन्न नवीन परिस्थितियो सहित अपनी समस्या का यथातथ्य वर्णन उनके समक्ष कर दिया। सभी बाते सुनकर प्रमुख साहब कुछ क्षणो तक चुप रहे। कुछ क्षणो तक चिन्तन—मनन करने के पश्चात्‌ उन्हेने अपनी ओर से प्रत्यक्षतः ‘महिला जागरूकता अभियान' की टीम की कुछ भी सहायता करने मे असमर्थता प्रकट करते हुए खेद व्यक्त कर दिया। लेकिन गरिमा और आशुतोष अभी निराश नही हुए थे। उन्होने ब्लॉक—प्रमुख से आग्रह किया कि यदि वे प्रत्यक्षतः सहायता नही कर सकते है, तो भी ग्राम—प्रधान से इस विषय पर सकारात्मक बातचीत करके समाज मे सकारात्मक परिवर्तन लाने मे तो अपना योगदान दे ही सकते है। सौभाग्य से ब्लॉक—प्रमुख ने उनके इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और अविलम्ब उनके साथ ग्राम—प्रधान से भेट करने के लिए चल पड़े।

जिस समय वे ग्राम—प्रधान से भेट करने के लिए पहुँचे, उस समय ग्राम—प्रधान प्रसन्नचित्तावस्था मे दिखाई दे रहे थे। उनकी मुखमुद्रा देखकर ‘महिला जागरूता अभियान' की पूरी टीम की आँखो मे नयी चमक आ गयी कि उनकी भेट का परिणाम सकारात्मक दिशा ग्रहण कर सकता है। प्रमुख साहब के मन की भी दशा कुछ—कुछ ऐसी ही थी। आशा और उल्लास के वातावरण मे बाते आरभ हो गयी। परिणाम अभी अधकार मे छिपा हुआ था।

लगभग एक घटा तक औपचारिक—अनौपचारिक बातचीत करने के उपरात प्रधान जी ने यह कहकर उनकी समस्या से पल्ला झाड़ लिया कि इस समस्या के समाधानस्वरूप ग्राम—प्रधान कुछ भी करने मे असमर्थ है, क्योकि इसके मूल मे गाँव के लोगो की पारिवारिक मान्यताओ और मूल्यो का प्रश्न भी जुड़ो हुआ है और अधिकाश परिवार अपने पुराने मूल्यो—मान्यताओ मे अपेक्षाकृत अधिक सहजता का अनुभव कर रहे है। प्रधान जी का तर्क सुनकर सभी चुप हो गये और नकारात्मक उत्तर पाकर वहाँ से लौट आये।

वहाँ से लौटकर समस्या के समाधान के लिए पूरी टीम किसी अन्य उपाय पर विचार—मथन करने लगी, परतु सभी का मन—मस्तिष्क जैसे जड़ हो गया था। वे जिस बिन्दु से सोचना आरभ करते थे, बार—बार लौटकर मस्तिष्क उसी बिन्दु पर ठहर जाता था। सयोगवश उन्ही दिनाे एक अप्रत्याशित घटना घटी—

दोपहर के लगभग दो बजे थे। गाँव के बाहर एक कार आकर रुकी। उस समय आस—पास उपस्थित सभी लोगो की दृष्टि उस कार के दरवाजे पर टिक गयी और सभी के मस्तिष्क मे यही प्रश्न उठ रहे थे कि— गाड़ी किसके घर जाएगी ? गाड़ी मे कौन है ? गाड़ी यही पर गाँव के बाहर क्यो रुक गयी ? कुछ ही क्षणो मे उन सब लोगो को उनके सभी प्रश्नो के उत्तर मिल गये, जब गाड़ी से निकलकर एक चिर—परिचित युवती बहर आयी। यह युवती ग्राम—प्रधान की बेटी थी।

प्रधान जी ने दो वर्ष पूर्व एक कुलीन और धनाढ्‌य परिवार मे बहुत—सा दान—दहेज देकर बेटी का विवाह किया था। इन दो वषोर् मे वह अपने पिता के घर बहुत ही कम आयी थी। जब भी एक—दो बार आती, तब एक—दो घटे की भेट के पश्चात्‌ तुरन्त लौटकर चली जाती थी, जबकि गाँव की अन्य लड़कियाँ जब भी ससुराल से आती थी, तब पिता के घर कुछ दिन सुख से समय व्यतीत करने के बाद ही वापिस ससुराल लौटती थी। प्रधान की बेटी को देखकर वहाँ पर उपस्थित ग्रामीणो को कुछ प्रश्नो का उत्तर तो मिल चुका था, किन्तु अब कुछ नये प्रश्नाे ने जन्म ले लिया था, जैसे— गाड़ी प्रधान जी के घर तक क्यो नही गयी, जबकि उसमे स्वय प्रधान की बेटी आयी है

? वे अपने प्रश्नो का उत्तर ढूँढने के लिए अटकलो की दुनिया मे सैर कर रहे थे, तभी उन्होने देखा, प्रधान जी की बेटी को उतारकर गाड़ी वापिस लौट गयी। इस दृश्य ने ग्रामीणो के मस्तिष्क मे हलचल उत्पन्न कर दी। सभी की जुबान पर एक ही बात आ रही थी— दाल मे कुछ काला है।

हाथ मे सूटकेस थामे प्रधान जी की बेटी ने जब अपने पिता के घर मे अकेले प्रवेश किया, तो घर मे कोहराम मच गया। दरअसल, विवाह होने से अब तक उन्हे एक बार भी ऐसी सूचना नही मिली थी, जिससे वे आश्वस्त हो सकते कि उनकी बेटी के दाम्पत्य—जीवन मे सुख और समरसता एक क्षण के लिए भी आयी है। बेटी के ससुराल से अकेले लौटने की सूचना मिलते ही प्रधान जी क्रोध से आग—बबूला हो गये। उन्होने उसी समसय दामाद और उसके परिवार वालो को सबक सिखाने की योजना बनानी आरभ कर दी।

सयोगवश उसी दिन शाम को प्रधानजी का छोटा बेटा घर लौटकर आ गया। वह शहर मे रह रहा था और एक प्रतिष्ठित कम्पनी मे मैनेजर के पद पर कार्यरत था। अभी तक उसका विवाह नही हुआ था। आज जब वह शहर से लौटा था, तब उसके साथ एक सुन्दर सुशिक्षित नवयुवती भी उसके साथ थी। उसने बताया कि उस नवयुवती का नाम विनीता है और वह उससे विवाह करना चाहता है। बेटे के इस दुस्साहसपूर्ण मत ने प्रधानजी की क्रोधाग्नि मे घी का काम किया, क्योकि सारा गाँव जानता था कि विनीता पड़ोसी गाँव के नाई बल्लू की पोती है और प्रधान जी के बेटे के साथ उसी की कम्पनी मे कार्यरत है। पिता—पुत्र के जीवन—दर्शन मे और मूल्यो मे भिन्नता के चलते दोनो मे विवाद छिड़ गया। दोनो ही अपने—अपने जीवन—दर्शन पर दृढ़ थे। बेटे ने स्पष्ट शब्दो मे घोषणा कर दी कि यदि घरवाले उसके विवाह मे बाधक बनेगे, तो वह बिन्नी को लेकर सदा के लिए शहर मे बस जायेगा। कभी गाँव वापिस नही लौटेगा।

बेटे की धमकी का सीधा और गम्भीर प्रभाव उसकी माँ पर पड़ा। माँ ने अपने बेटे का पक्ष लेते हुए कहा कि वे अपने बेटे का पूर्ण समर्थन करती है और आगे भी करती रहेगी। माँ—बेटे की बातो को महत्वहीन समझकर उन्हे दरकिनार करते हुए प्रधान जी ने बेटे को आदेश दिया कि शीघ्र ही बहन की ससुराल चलने के लिए तैयार हो जाए। आज वहाँ पर जाकर उनके लिए इस विषय मे आर—पार की लड़ाई लड़ना जरूरी हो गया था कि कब तक उनकी बेटी दाम्पत्य—सुख से वचित रहेगी ? आखिर अत्यधिक दान—दहेज देने के बावजूद उनकी बेटी अपने अधिकारो से वचित क्यो है? प्रधान जी का बेटा इस विषय मे भी अपने पिता से सहमत नही था। उसने पिता से कहा—

मै भी जानता हूँ और आप भी भली—भाँति जानते है कि आपने जिस लड़के के साथ अपनी बेटी विवाह किया था, वह इस विवाह के लिए तब भी तैयार नही था। जो आज हो रहा है, यह तो होना ही था। पर अफसोस, आप आज भी यह समझने के लिए तैयार नही है कि विवाह तभी पूर्ण होता है, घर वालो के साथ—साथ वर—वधू भी उस विवाह के लिए तैयार होते है। यदि ऐसा नही होता है, तो वही सब होता है, जो आज हो रहा है।

उस ब्याह मे करोड़ो रूपये खर्च करे है हमणे ! जब उसका बाप करोड़ो के दहेज से अपणा घर भर्रा हा, उस टेम उसकी आँख फूटगी ही ?

पिता ने आवेशपूर्ण मुद्रा मे कहा तो बेटा भी खरी—खरी कहने मे पीछे नही रहा। उसने कहा—

यही तो आपकी सबसे बड़ी गलती थी। आपकी बेटी ससुराल मे जाकर यह भूल गयी थी कि उस घर मे भी इसान रहते है, जो प्रेम और सम्मान की आकाक्षा रखते है। आपकी बेटी वहाँ पर हर समय तानाशाही दिखाती थी, आखिर उसके बाप ने करोड़ो का दहेज जो दिया था।

बेमतलब की बात छोड़के मतलब की बात कर ! पिता ने झुँझलाकर कहा।

मतलब कि बात यह है कि दहेज के बल पर आपने एक अनपढ़ लड़की का विवाह उच्च शिक्षा प्राप्त लड़के के साथ करके उचित नही किया। वह भी तब, जबकि लड़का उस विवाह के लिए तैयार नही था। वह निरन्तर मना करता रहा और वर—वधू दोनो के परिवारो ने उसकी इच्छा के विपरीत विवाह सम्पन्न करा दिया।।

चिट्‌ठी—पत्तर बाँचणे लायक पढ़ी तो है, इससे जादे पढ़के इसे कौण—सी नौकरी पै जाणा है! पिता ने बेटी का पक्ष लेते हुए अपना पक्ष प्रबल किया।

इसे नौकरी नही करनी है, पर नौकरी करने वाले एक प्रथम श्रेणी के अधिकारी के साथ विवाह किया है इसका ! यह उसकी मथली इनकम को ठीक से गिन नही सकती ; उसके दोस्तो के साथ ठीक प्रकार से बाते नही कर सकती, फिर भी आप कहते है कि कुछ गलती नही की है आपने ! आप चाहते थे कि आपकी बेटी का पति धन—सम्पन्न, उच्च शिक्षा प्राप्त और कुलीन हो, इसलिए आपने करोड़ो रूपये दहेज के नाम पर खर्च किये थे। पर आपने एक बार भी यह नही सोचा कि कोई भी पढ़ा—लिखा लड़का अपनी पत्नी के रूप मे सुशिक्षित लड़की की आकाक्षा रखता है। दहेज उसकी दूसरी आकाक्षा होती है, पहली नही ! ये सब बाते जो मै कह रहा हूँ, आपके दामाद ने मुझसे कही थी। उसने मुझे एक सप्ताह पहले बुलाया था और ब्लैक चैक देकर मुझसे कहा था कि हम अपनी इच्छानुरूप यथोचित धनराशि लेकर उसे मुक्त कर दे, ताकि वह अपने जीवन को सुगम बना सके।

बेटे की बात सुनकर प्रधान जी सिर पकड़कर बैठ गये। आज तक समाज मे उन्होने दहेज न देने या कम देने के दुष्परिणाम तो देखे थे ; दहेज के लोभी वर पक्ष को कानून कितना कठोर दड देता है, यह भी देखा था, किन्तु अधिक दहेज देने के दुष्परिणाम आज वे पहली बार देख रहे थे। आज उन्हे अपनी बेटी का भविष्य अधकारमय दिखाई दे रहा था। उनकी पीड़ा ने उन्हे एक नया मार्ग दिखा दिया था। प्रधान जी ने निश्चय किया कि वे अब न केवल ‘महिला जागरूकता अभियान' की टीम का सहयोग करेगे, बल्कि गाँव के सम्पन्न व्यक्तियो की सहायता से लड़कियो के लिए एक विद्यालय भी चलायेगे, ताकि गाँव की प्रत्येक बेटी के लिए शिक्षा सुलभ हो सके। दूसरी ओर, महिला जागरूकता अभियान' की टीम मे चर्चा चल रही था कि गाँवो मे केवल ‘महिला जागरूकता अभियान' की ही नही, बल्कि ‘ग्रामीण जागरूकता अभियान की भी आवश्यकता है।यह चर्चा चल रही थी, तभी उन्हे सूचना मिली कि प्रधान जी ने बैठक करने के लिए बुलावा भेजा है। कुछ ही समय मे गरिमा और आशुतोष के साथ ‘महिला जागरूकता अभियान' की पूरी टीम और ‘महिला स्वाभिमान केद्र' की सचालक टीम बैठक—स्थल पर पहुँच गयी। जिस समय टीम बैठक—स्थल पर पहुँची, उस समय वहाँ पर गाँव के सभी प्रभावशाली व्यक्ति उपस्थित थे। उन सभी के बीच गभीर चर्चा—परिचर्चा चल रही थी।

‘महिला जागरूकता अभियान' की टीम के वहाँ पर पहुँचते ही प्रधान जी ने खड़े होकर उनका स्वागत किया और उनसे आसन ग्रहण करने का आग्रह किया। पूरी टीम प्रधान जी के व्यवहार से आश्चर्यचकित हो रही थी। आशुतोष के साथ—साथ महिला टीम के आश्चर्य के सारे बाँध तो उस समय टूटे, जब प्रधान जी ने ये घोषणा की, कि वे अपने गाँव को विकास के पथ पर अग्रसर करने के लिए सभी रूढ़ियो को और मान्यताओ को तोड़ने के लिए तैयार है। प्रधान जी ने टीम के सदस्यो से निवेदन करते हुए उन्हे वचन दिया कि वे गाँव मे रहकर अपना अभियान चलाते रहे, उन्हे यहाँ पर यथावश्यक सहयोग मिलता रहेगा। इतना ही नही, उन्होने यह भी कहा कि यदि गाँव की स्त्रियाँ चाहे, तो वे महिला पचायत का सगठन करे और गाँव की राजनीति मे अपनी भागीदारी दर्ज कराएँ, उन्हे ग्राम—प्रधान का पूर्ण सहयोग और समर्थन मिलेगा।

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समाप्त

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