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भय और आडम्बर का प्रचार - अन्धभक्ति का अन्त - 3

Part-3

कि अब माता जी ही कोई चमत्कार करें तो शायद भूख शांत हो । मुझे भी भरोसा था कि लोग कहते हैं कि हमको माता जी की कृपा से ब्रत में भूख नही लगती तो मुझे भी नही लगनी चाहिए । मैं एक भोले भाले बालक की तरह माता से विनती करने लगा कि मेरी भूख शांत हो जाये ताकि मैं अपना उपवास पूरा कर सकूं । बहन को तो पानी पिला कर सुला दिया था , जब मुझे ख्याल आया कि मेरे पेट में जो दर्द है , वह भूख के कारण है तो समझ गया कि बहन भी भूखी है । पानी के कारण कुछ राहत मिली तो वह सो गई । मैंने विनती की , कि हे ! माता मैं तो जैसे-तैसे रात काट लूँगा , लेकिन अगर मुझे भूख बर्दास्त नही हो रही तो मेरी बहन भी बहुत कष्ट में है वह कुछ कह नही पाएगी । जब तक मैं नही खाऊंगा वह भी नही खाएगी इसलिए मेरी और मेरी बहन की भूख शांत कर दें । मेरी भूख शांत होने पर मैं समझ जाऊंगा कि मेरी बहन की भूख भी शांत हो गई । उस दिन आधी रात तक मैं विनती करता रहा । लेकिन मेरी विनती सुनने वाला कोई नही था । भूख घटने के बजाय बढ़ती जा रही थी मेरा धैर्य और विश्वास दोनो डगमगा रहे थे । मन में प्रश्नों की कतार लगी हुई थी कि क्या वाकई कोई देवी है जो मेरी बात सुन रही है या मैं यूं ही विनती किये जा रहा हूँ । मैंने आखिरी प्रयास किया और कहा कि हे ! माता , अगर आप हैं , मेरी बात सुन रही हैं , तो मेरी विनती सुन ले , आपको तो सब पता है कि मेरे पास उपवास में खानेवाला कुछ नही है । अगर एक बजे तक भूख नही शांत हुई तो मैं समझूँगा की कोई देवी नही है और ब्रत तोड़ दूँगा । एक हठी बालक की तरह हठ करने लगा मुझे लगता था कि माँ अपने बच्चों को कभी भूखा नही रखती , तो फिर माता जी मेरी विनती क्यों नही सुनेंगी । जैसे एक बच्चे की जिद पर माँ आखिर में मान ही जाती है वैसे ही माताजी भी मेरी विनती जरूर सुनेंगीं । लेकिन वहाँ कोई होता तो सुनता । जब वहाँ कोई था ही नही तो सुने कौन ? मेरी भूख शांत होने का नाम ही नही ले रही थी । मुझे अपनी भूख से भी ज्यादा बहन की चिंता हो रही थी । भूख के मारे नींद भी नही आ रही थी । वक़्त बिताता गया और मेरा सब्र टूटता गया ।
तब अंधी भक्ति की जगह कई तरह के तर्क मस्तिष्क में जन्म लेने लगे । मेरे सभी तर्कों के सवाल और जवाब दोनो मैं ही दे रहा था । अंततः उन तर्कों के फलस्वरूप मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा की शरीर को जिंदा , स्वस्थ , और निरोग रखने के लिए भक्ति नही शक्ति की जरूरत है । हम प्रतिदिन भोजन करते हैं और ऊर्जा मिलती रहती है । आज भोजन त्याग कर सुबह से विनती किये जा रहा हूँ , लेकिन कमजोरी और भूख के अलावा कुछ भी नही मिला । जो लोग भक्ति की शक्ति की बड़ी-बड़ी डींगें हाँकते हैं वे पूरे दिन कुछ न कुछ कचर-पचर खाया ही तो करते हैं । फर्क इतना होता है कि उपवास का भोजन रोज के भोजन से कुछ हटकर होता है । मुझे समझ में आ गया कि वास्तविक ईश्वर तो भोजन है , वही असल जीवन दाता , शक्ति प्रदान करने वाला है । हमारी गलती इतनी है कि हम इसे ग्रहण करने के लिए उचित नियमो को या तो जानते नही या पालन नही करते । हम वास्तविक ईश्वर को त्याग कर किसी काल्पनिक देवी देवता के होने के भरम में डर-डर के जी रहे हैं । तब मैंने कहा अगर तुम हो भी , तो भी मुझसे तुम्हारा मतलब नही , तुम मेरे लिए कुछ नहीं कर सकती तो आज से मैं यह ढोंग ढकोसला सब त्याग कर रहा हूँ । मैंने आंटा निकाला , गूँथा , और रोटियाँ सेक कर तैयार की फिर नमक मिर्च की चटनी पीस कर बहन को जगाने गया । मैंने बहन को जैसे ही आवाज लगाई वह उठकर बैठ गयी । शायद वह भी सो नही रही थी , भूख के कारण भला नींद कैसे आ सकती थी ।
मैंने उससे कहा- बिटिया खाना बनाया है खा लो ।
उसने कहा - नही भइया ब्रत टूट जाएगा ।
बहुत समझाने के बाद वह तैयार हो गई । हम दोनों ने रोटी और चटनी खाई । उस दिन वह चटनी और रोटी बहुत ही लाजवाब लगी । जैसे कि स्वयं माँ ने बनाया हो क्योंकि मुझे तो इतनी अच्छी रोटी बनाना आता नही था । कुछ देर बाद ऐसा लग रहा था कि डीएनएस और डेक्सट्रोज की दो बोतलें चढ़वा ली हों । कुछ समय बाद धीरे-धीरे नींद आने लगी , फिर हम दोनों भाई-बहन निश्चिन्त होकर सो गए । उस दिन से हमने उपवास रहना छोड़ दिया ।
उपवास रहना कोई खराब आदत नही है , खराब है व्यर्थ में शरीर को कष्ट देने । शरीर को कष्ट तो हम अनजाने में देते हैं असल में हम अपने अच्छे के लिए ही उपवास करते हैं । गलती यह होती है कि हम अपने भले के लिए स्वयं कुछ न करके काल्पनिक देवी देवताओं के आगे अपने भले के लिए गिड़गिड़ाते हैं । उस समय मुझे जीव शरीर का ज्ञान नही था बस तर्कों के आधार पर जो निष्कर्ष निकाला उसी को मानकर मैंने उपवास न रहने का निर्णय लिया । बाद में जब मैंने जीव विज्ञान से स्नातक किया तब मुझे जीव शरीर और उस पर विभिन्न कारकों के प्रभावों की जानकारी हुई । मैं पाचन तंत्र और उस की किर्याविधि को समझ पाया । फिर भी उपवास और पाचन के मध्य का सम्बंध पूरी तरह नही समझा था । जब और अधिक अध्ययन किया तब जाकर उपवास और पाचन के बीच का सम्बंध समझ में आया । दरअसल उपवास के दौरान हम कम और सन्तुलित भोजन ही लेते हैं , जिस कारण हमें आवश्यक ऊर्जा तो मिलती ही है साथ में फल व सूखे मेवे लेने से पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन , वसा व रफेज भी मिल जाता । भोजन में रफेज हमारे पाचन को मजबूत बनाता है । इस प्रकार स्वास्थ्य में सुधार होता है मन मस्तिष्क भी ठीक से कार्य करता है। क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क होता है । जब मस्तिष्क स्वस्थ रहता है तो मनुष्य सभी फैसले चाहे समाजिक हों या व्यापारिक , सोंच समझकर लेता है । तब वह प्रत्येक क्षेत्र में अपने आप को सफल कर पाता है । यह कोई दैवीय चमत्कार नही जीवन कौशल का कमाल है । अक्सर कुछ लोग बहुत पूजा - पाठ हवन यज्ञ करते हैं , तमाम मन्दिरों-मस्जिदों में माथा पटकते हैं फिर भी न तो उनके शरीर में सुधार होता है और न ही उनके जीवन में । उपवास कभी भी निराहार नही होना चाहिए न ही काल्पनिक देवी देवताओं के भरम में । क्योंकि उपवास के समय जब पेट खाली हो जाता तो छोटी आंत्र में पाई जाने वाली जठरग्रन्थियों से स्रावित होने वाले पाचक मिश्रण में हैड्रॉक्लोरिक अम्ल आंत को नुकसान भी कर सकता है । लम्बे समय तक उपवास रहने से पेट में अल्सर व एसिडिटी की समस्या भी उत्तपन्न हो सकती है । इससे एक लाभ यह है कि कुछ समय तक खाली पेट रहने से अम्ल के प्रभाव को कम करने के लिए पित्त ग्रन्थियाँ अधिक सक्रिय हो जाती हैं । अतः समय समय पर अल्प उपवास रखकर पित्तग्रन्थि की सक्रियता का ठीक रखा जा सकता है । लम्बे समय तक उपवास के बहुत सारे नुकसान हैं जैसे कि शरीर में प्रोटीन और वसा की कमी हो जाती है । निराहार उपवास तो रोगों को दावत देने वाली बात है । विटामिन्स की कमी के कारण खून की कमी , थकावट , सरदर्द और कुछ अन्य अल्पता रोग हो सकते हैं । फिर भी माह में एक - दो दिन निराहार ब्रत रहना कोई नुकसानदेय नही है । क्योंकि शरीर में जमा वसा व प्रोटीन उसकी पूर्ति करने के बाद भी पर्याप्त मात्रा में बची रहती है । मोटापा भी नही होने पाता है , शरीर हल्का रहता है । ध्यान देने वाली बात यह है कि उपवास अधिक दिन न हो और कुछ न कुछ जैसे फल व दूध कुछ मात्रा में , कम से कम एक पहर जरूर लिया जाय । यह भी ध्यान रहे कि कोई देवी देवता नही जो लाभ होगा वह सही तरीके से रखे गए उपवास के कारण होगा । हमने ढोंग ढकोसलों में पड़कर वास्तविकता से मुँह मोड़ लिया है । हवन कुण्ड में घी व अन्य सामग्रियों को डालने से जो वाष्पशील पदार्थ बनते हैं वे वायु को शुद्ध करते हैं । परन्तु जब हर चीज में मिलावट हो रही है तो हम सिंथेटिक पदार्थों को जलाकर वायु को और भी अशुद्ध करते हैं । आज का समय काल्पनिक देवी देवताओं से मिन्नतें करने का नही , जरूरत है अपने पर्यावरण को स्वच्छ रखने और वायु को शुद्ध रखने की । रोज मन्दिरों में घण्टियाँ हिलाने वाले , स्वयं को बुद्धिजीवी समझने वाले लोग ही बड़े-बड़े कारखाने लगाकर जीवनदायी वायु को विशुद्ध कर रहे हैं । वे स्वयं तो पैसों की ताकत से खुद को स्वस्थ रखते हैं अपना आवास स्वच्छ रखते हैं । लेकिन देश के आम लोगों के लिए जहर छोड़ रहे हैं , और हम बेवकूफ उनकी शान-ओ-शौकत देखकर कहते हैं । सेठ जी रोज सुबह पूजा करते हैं कुछ भी भूल जाएं लेकिन पूजा करना नही भूलते । बस इसी भरम के मारे कुछ लोग देखादेखी जुट जाते हैं , पत्थर पूजने में , अपने असल ईश्वर की तरफ उनका ध्यान ही नही जाता । वह पेड़ जो हमें जीवनदायक ऑक्सीजन देता है , जो हमें आश्रय व भोजन देती है , वह प्रकृति , जो हमें दूध व अन्य विभिन्न वस्तुएं देते हैं वे पशु हमारी अनदेखी का शिकार हो रहे हैं ।
तब मेरे मन में एक प्रश्न यह भी जन्म लेता है कि क्या यह औधोगिकीकरण गलत है ?

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