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भय और आडम्बर का प्रचार - मर गया पत्थरदिल इन्शान - 1

मर गया पत्थर-दिल इन्शान

( यह लेख लेखक के जीवन में घटित विभिन्न घटनाओं , लेखक के भीतर व्याप्त भय और भ्रम के विभिन्न दृश्यों को  चित्रत करता है । लेखक का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति या सम्प्रदाय को ठेस पहुंचाना नही है , यहाँ पर लेखक मात्र अपने विचार और स्वयं के जीवन में आने वाले बदलाव का चित्रण करना चाहता है । )
रोज की तरह उस दिन भी मैं अपने स्कूल की आखरी घण्टी के बाद क्लास से निकला फिर साइकिल स्टैंड से साइकिल निकाली और घर के लिए चल पड़ा । विद्द्यालय के गेट से कुछ दूर पर लगभग 35 से 40 वर्ष का एक व्यक्ति कुछ पर्चे बाँट रहा था । पर्चे पढ़ने के बाद कुछ लड़के उसे बैग में रख ले रहे थे और कुछ वहीं सड़क पर फेंक दे रहे थे या कुछ दूर जाकर फेंक देते । जैसे ही मैं उस व्यक्ति के पास से गुज़रा उसने मुझे भी एक पर्चा पकड़ा दिया । मैंने पर्चे को बिना पढ़े ही जेब में रख लिया , सोंचा कि घर जाके आराम से पढूंगा । घर पहुंचा और हाथ मुँह धोकर खाना खाया फिर जब आराम करने के लिए लेटा तब याद आया वह पर्चा , जो रास्ते में उस आदमी ने दिया था । मैंने जेब से पर्चा निकाला और लग गया ज्ञान की खोज में , हमेशा की आदत जो थी । 
पर्चे में लिखा था ……………
एक दिन सुबह-सुबह एक पुजारी नहा धोकर मन्दिर में पूजा कर रहा था , तभी अचानक वहाँ पर एक सर्प आ गया । पुजारी भय से काँपने लगा , उसके शरीर से पसीना ऐसे बहने लगा कि जैसे कड़ी धूप में हल चलाकर आया हो । पुजारी के देखते ही देखते सर्प ने एक सुंदर कन्या का रूप धारण कर लिया । जिससे पुजारी और भयभीत हो गया । तब उस कन्या ने पुजारी से कहा , डरो नही , मैं दुर्गा हूँ । संसार में पाप बढ़ रहे हैं लोग मुझे भूल रहे हैं इसलिए परेशान और दुःखी हैं । मेरी बात ध्यान से सुनो मेरे नाम का एक हजार बार जाप करो तुम्हारे सब दुःख दूर हो जाएंगे । एक बात और इस संसार में मेरा जो कोई भक्त मेरी इस महिमा के गुणगान में इस कहानी के एक हजार पर्चे छपवाकर बाँटेगा उसकी मनोकामना दश दिनों के भीतर पूरी हो जाएगी । फिर उस कन्या ने देवी का रूप धारण किया और पुजारी को आशीर्वाद देकर गायब हो गई । पुजारी ने यह कहानी एक नई को सुनाई उसने इस पर्चे की एक हजार प्रतियां छपवाकर बाँटी । उसकी शादी को 15 साल हो चुके थे परन्तु कोई संतान नही थी । दश दिन बाद ही उसे पता चला कि उसकी पत्नी गर्भवती है । लगभग एक वर्ष के भीतर ही उसे सुंदर हष्ट-पुष्ट पुत्र की प्राप्ति हुई । इसी तरह एक व्यक्ति का व्यापार पूरी तरह चौपट हो चुका था वह बहुत प्रयास कर रहा था लेकिन कुछ सुधार नही हो रहा था । उसे यह पर्चा मिला उसने भी एक हजार प्रतियां छपवाकर बाँटी , उसका व्यापार दश दिन में ही फलने-फूलने लगा । एक बेरोजगार युवक को यह पर्चा मिला , जो कई वर्षों से नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था । उसने भी पर्चे छपवाकर बांटे उसकी सरकारी नौकरी लग गई । एक व्यक्ति को यह पर्चा मिला और उसने इसे पढ़कर फाड़ दिया उसकी नौकरी चली गई । एक खिलाड़ी ने इसे झूठ समझकर फेंक दिया तो एक्सीडेंट में उसकी टांग टूट गई । एक किसान ने इसे झूठ समझा और आलोचना की तो उसकी भैंस मर गई । 
अतः आप सभी से यह अनुरोध है कि जिस किसी को भी यह पर्चा मिले इसकी एक हजार प्रतियां छपवाकर लोगों में बाँट दें । जो यह पर्चे बँटेगा उसकी मनोकामना जरूर पूरी होगी परन्तु जो इसे झूठ समझेगा उसका अहित होगा । माता रानी आप सभी भक्तों पर कृपा बनाए रखें ! जय माता दी!
पर्चा पढ़कर मैं डर गया , इस सोंच में पड़ गया कि अगर मैं पर्चे नही छपवा पाया तो मेरा क्या होगा ? चूँकि मैं हिन्दू समाज में पैदा हुआ , पला-बढा । घर-परिवार और पास-पड़ोस हर जगह पूजा-पाठ , ढोंग-आडम्बर , यही सब तो देखा था । सुबह उठते ही कभी कानों में घण्टों की आवाज तो कभी शंख और आजान की आवाज सुनाई पड़ती थी । बचपन से ही मैं भी बहुत ही पुजारी प्रवृति का था । पूजा -पाठ , ब्रत-उपवास सब करता था । मेरी कोशिश रहती थी कि पूजा करते वक़्त कोई देवी-देवता छूटने न पाए । मनुष्य का जन्म लेकर भी देवी-देवताओं को खुश करने के लिए कीड़ों की तरह रेंग-रेंग कर परिक्रमा करता था । अक्सर डर-डर कर पढ़ाई करने वाला एक भयभीत प्राणी था बस । पढ़ाई तो मैं करता था परन्तु परीक्षा में अच्छे अंको के लिए हमेशा देवी देवताओं के आगे गिड़गिड़ाता था । मैं जितना ही गिड़गिड़ाता उतना ही खराब प्रदर्शन होता था । मुझे लगता कि मेरी भक्ति में कुछ न कुछ कमी जरूर है इसलिए भगवान मेरी सुन नही रहे हैं । जिससे कि मेरा ध्यान पढ़ाई से हटकर भक्ति की ओर जाने लगा । एक तरफ गरीबी दूसरी तरफ पढ़ने के बाद भी अच्छा रिजल्ट न आना यह सब मुझे और भी भयभीत कर रहे थे । बाबा फ़कीरों से सलाह लेता तो कहते सब भाग्य की बात है बेटा , लेकिन अच्छा समय आएगा , उसकी भक्ति में कोई कमी मत रखना , जिस दिन उसकी नज़र पड़ी भाग्य बदल जायेगा ।  इसी तरह सब गुमराह करते रहे , किसी ने यह नही बताया कि कर्म पर भरोसा रखो , सब ने यही कहा कि भगवान पर भरोसा रखो । 
अब चूँकि यह पर्चा मिला जिसमें एक हजार प्रतियां छपवाने की बात लिखी थी । मैं और डर गया क्योंकि मेरे पास तो इतने पैसे भी नही थे कि पर्चे छपवा सकूँ । पिताजी की गरीबी से मैं नावाक़िफ़ नही था । अपनी पढ़ाई के लिए भी तो मुझे ट्यूशन पढ़ाकर अपनी किताबें कॉपियाँ खरीदनी पड़ती थीं । यह एक नई मुसीबत मेरे सिर आ गई थी । कई दिनों तक मैं डर-डर के जीता रहा । जब मैं उस भय से खुद को बाहर निकालने में नाकामयाब हो गया तो मैंने निश्चय किया कि पिता जी से कहकर उन्ही से पूंछता हूँ कि क्या करना चाहिए । पिताजी भी कम पुजारी नही थे फर्क इतना था कि मैं कोरे मन का अज्ञानी बालक था और उन्होंने दुनिया देखी थी । मेरे पिता जी गाँव में रहते थे और मैं अपने जीजा-दीदी के साथ शहर में रहकर पढ़ाई करता था । घर जाकर पिताजी को सारी कहानी सुनाई , वह पर्चा दिखाया । उस दिन पहली बार मैंने पिता जी के ज्ञान को समझा । शायद वह दिन मेरे लिए प्रकाश दिवस था । 
पिताजी पढ़े लिखे थे नही इसलिए मैंने ही पूरा पर्चा पढ़कर पिताजी को सुनाया । पर्चे में लिखी बातों को सुनकर पिताजी ने कहा यह सब झूठ है , ढकोसला है ।  मैंने कहा कि आप तो कहते थे भगवान पर शक नही करना चाहिए ।
पिता जी ने जवाब दिया  मैं नही जानता कि भगवान क्या है ? है कि नही है , बस सब मानते हैं तो मैं भी अपना फर्ज पूरा करने के लिए पूजा-पाठ कर लेता हूँ , इसका मतलब यह नही की ठगों पर भरोसा करके जो कुछ खाने को कमाया है , लुटा दूँ । बेटा मैनें बहुत गरीबी देखी है , बहुत परेशानियां भी उठाई हैं । रही बात भरोसे की तो जिसने जहाँ कहा , मैं उस स्थान पर  नङ्गे पाँव गया । यहाँ तक कि एक ब्राह्मण पुजारी ने सनी की साढ़े साती का डर दिखाकर कई सालों तक मुझे ठगा लेकिन परेशानियां कम नही हुईं । सही बात मुझे उस दिन समझ आई जब मैं एक दिन ........


शेष अगले भाग में

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