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बेटे का सुख

सरिता जी और अनुपम जी का बेटा कानपुर शहर  में किसी सरकारी बैंक में कार्यरत था।और  वे दोनों वही पास के गांव में रहते थे । लेकिन बूढ़े होते शरीर में अब बीमारियों ने दस्तक देनी शुरू कर दी थी। इसलिए उनका बेटा रंजीत छुट्टियों में घर आया तो उन लोगों को  जिद कर अपने साथ लेता गया । इस वादे के साथ की वो उन्हें शहर के किसी अच्छे डाक्टर से दिखाकर तुरन्त पंहुचा देगा ।
रंजीत के अलावा  सरिता जी और अनुपम जी  की एक बेटी भी थी ।जिसकी शादी वो दो वर्ष पहले कर दी थी ।सो बिटिया अपनी नई गृहस्थी में उलझी हुई थी । बेटे की शादी को भी आठ साल हो गए थे ।दो प्यारे प्यारे बच्चे भी थे ।बच्चो की पढ़ाई के कारण  सरिता जी की बहू  उनके साथ गांव में नही रह पाती और गांव में अपना मकान और जमीदारी छोड़ अनुपम जी शहर नही रह पाते थे। बेटे बहु ही छुट्टियों या त्योहारों पर घर आ जाया करते थे ।
पर इस बार बेटे की जिद के आगे दोनों पति-पत्नी को कानपुर आना पड़ा । सरिता जी ने देखा की  बेटे -बहु अपनी गृहस्थी काफी समझदारी से चला रहे थे । बहु और बच्चो से मिलकर अनुपम जी और सरिता जी काफी खुश हुए। फ्रेश होकर नास्ता करने के बाद सरिता जी और अनुपम जी अपने कमरे में आराम करने के लिए चले गए। बेटे और बच्चो की आज छुट्टीयां थी। 
इसलिए थोड़ी देर आराम करने के बाद अनुपम जी बच्चो को लेकर  बाहर घूमने चले गए। सरिता जी भी सोची चलो बेटे बहु के पास ही चलती हूँ , बैठ कर उनसे कुछ बाते करुँगी । ये सोच सरिता जी कमरे से निकली ।और बहू के कमरे में जाने लगी ।तो देखा की बेटा बाथरूम में कपड़े मशीन में डाल रहा है। ये देख सरिता जी बोली -  "बेटा,बहु कहाँ है, लाओ मैं कपडे मशीन में लगा देती हूँ। तू ये सब क्यों कर रहा है?"
"कोई बात नही माँ, वो भी तो कोई काम ही कर रही होगी।थोड़ी मै मदद कर देता हूँ।उसे अच्छा भी लगेगा ।" - रंजीत का जबाब सुन सरिता जी चुप हो गयी ।  थोड़ी देर में देखा की रंजीत किचन में भी बहु की मदद कर रहा है । पुरिया तलने में, तो कभी सब्जी काटने में । बच्चो को तैयार करने में भी रंजीत बहु की मदद करते दिखा । बेटे को काम करता देख उन्हें अच्छा नही लग रहा था।
सरिता जी कभी बेटे से घर के कोई काम नही करवाई ,  भले ही बेटी को उन्होंने घर से सारे काम सिखाए थे पर बेटे को नही । लेकिन आज बेटे को बहु की मदद के लिए  काम  तो करना ही पड़ रहा था।  
बहु भी अपने हिसाब से घर को और सास-ससुर की सुविधाओ का पूरा ख्याल रख रही थी । अनुपम जी भी बेटे बहु के आपसी तालमेल को देख काफी खुश हुए । पति और बेटे को खुश देखकर सरिता जी भी ठंडे दिमाग से सोची  - "बात तो सही ही कह रहा बेटा कि अकेले बहु कितना कुछ करेगी ,गलत तो वो खुद थी की  उन्होंने अपने बेटे को काम नही करवाया ।बहु तो अपनी सुविधा के लिए बेटे को भी काम करना सीखा दी ।आखिर में बेटे को शादी के बाद ये सब करना  और सीखना ही पड़ा। कितना अच्छा होता की वो भी पहले से ही सिखाई होती तो बेटा उनकी कितनी मदद कर सकता था। जिससे उन्हें  सिर्फ बेटी का ही नही बेटे के काम  का भी सुख मिल जाता ।
अभी यही सब सोच ही रही थी की उन्होने देखा की उनका पोता अपनी बहन के साथ कुछ करने की कोशिश कर रहा था । और बहू उसे करने से मना कर रही थी-  दीदी को करने दो, तुम नही करो।
ये देख कर सरिता जी कमरे से बाहर आई और बहू को समझते हुई बोली - "बहु ,बेटे को भी सिखने दो ,जो गलती मैंने की है उसे तुम मत दोहराओ ।आज मैं अपने बेटे को तेरे साथ सारे काम करता देख यही सोच रही हूँ की काश ,मैने इससे पहले ही ये  सब कुछ करवाया होता तो थोड़ा सुख मैं भी उठा लेती।"
सासु माँ की ये बात सुन बहु थोड़ी ठिठक सी गई ।पर तभी अनुपम जी कमरे से निकल कर बोले - "तू बुरा मत मानना बहु, पर तुम दोनों के आपसी तालमेल को देख कर हमें काफी खुशी  हुई ।रंजीत को तेरी मदद करते देख अब मैं भी सोच रहा हूं,तेरी सासु माँ से कुछ काम मै भी सीख लूं ।ताकि इन्हें बाद में ये अफसोस न रहे की पति का सुख नहीं उठाया मैंने ।"
कहते हुए अनुपम जी ठहाका लगा के हँसने लगे और फिर बोले-
"इसी बात पर आज की चाय मै तेरी सासु माँ के निर्देशानुसार बनाउंगा ।" पति की बात सुनकर मुस्कुराते हुए सरिता जी किचन के तरफ जाने लगी ।और साथ में अनुपम जी भी । दरवाजे के पास ही खड़ा हुआ रंजीत ये देख मुस्कुरा उठा और बच्चे हुर्रे के नारे लगाते हुए  दादा-दादी के साथ किचन में पहुँच गए ।
दोस्तों, ये जरुरी नहीं की जो काम घर का है ,वो सिर्फ बहु या माँ ही करे ।आज के समय में सारे काम सभी को आने बहुत जरुरी है ।तेजी से फैलते एकल परिवार में इस बात की काफी जरूरत भी महसूस होने लगी है ।इसलिए किसी भी काम को पुरुष और स्त्री के बंधन की सीमा में न बांधकर सभी को करने और सीखने की प्रवृति रहनी चाहिए । 

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