क्या इतना बुरा हूँ मैं माँ ? Pammy Rajan द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

क्या इतना बुरा हूँ मैं माँ ?

" हा तो ,मिस्टर विशाल ,आप अपनी वाइफ की डिलवरी अपने नेटिव प्लेस में करवाना चाहते है।ये तो अच्छी बात है,घर पर उनकी अच्छे से केयर हो जायेगी । पर उनकी प्रेग्नेंसी हाई रिस्क है। ऐसे में उन्हें डिलवरी तक डॉक्टर की देख रेख में रहना ज्यादा अच्छा रहेगा।" डाक्टर में विशाल को समझते हुए कहा। 
ओके डॉक्टर ,मैं इस चीज का ख्याल रखूंगा।- खुश होते हुए विशाल ने सोचा। और ये बात अपनी पत्नी पूजा को बताई।
पूजा भी खुश हो गई, क्योंकि छठा महीना शुरू हो गया था ।और पूजा की दिक्कतें भी बढ़ गयी थी। कमर दर्द भी स्टार्ट हो गया था। पहली प्रेगनेंसी थी सो दिल में एक अजीब सी घबराहट भी  थी।विशाल भी अपने ऑफिस के वजह से ज्यादा समय पूजा को नही दे पाता था।एक बार अपनी माँ को आने को भी बोला तो वो डिलवरी के टाइम ही आने का बोल कर बात को टाल दी। ऐसे में पूजा को घर ही जाना ज्यादा बेहतर विकल्प लग रहा था। काम से कम वहाँ साथ में कोई न कोई तो हरवक्त रहेगा ना।और मायका और ससुराल दोनों पास ही होने की वजह से थोड़ा निश्चिन्त भी थी। 
विशाल ने डॉक्टर की क्लिनिक से घर आकर अपनी माँ को फोन किया और  सारी बात बताई ।पर माँ ने कहा- देखो विशाल , अच्छा होता की तू पूजा को डिलवरी के लिए उसके मायके भेज दो।क्योंकि यहाँ कौन उसे डाक्टर से दिखने ले जायेगा।तेरे भैया और पापा को तो अपने बिजनेस से ही फुर्सत नही है।तू भी ज्यादा आ नही पाएगा।
माँ का जबाब सुनकर विशाल को काफी बुरा लगा।पर फिर लगा शायद माँ ठीक ही कह रही है।और पूजा को उसके मायके भेज दिया।
बच्चे होने के समय मायके वालों के खबर करने पर सास-ससुर हॉस्पिटल में आए।लेकिन विशाल नही पहुच पाया।डाक्टर पूजा की स्थिति को देखकर ऑपरेशन के लिए बोल दी और फ़ीस जमा करने को भी बोल दी। ससुर जी जब ये देखे तो सासु माँ को हॉस्पिटल में ही छोड़ कर वापस आ गए।पूजा के मायके वालों ने ही हॉस्पिटल का बिल भरा।बच्चा होने के बाद विशाल भी पहुँचा।उसे भी जब अपने घर वालो की ये बात मालूम हुई तो बुरा लगा।
हॉस्पिटल की बाकि की फॉर्मिलटी को चुपचाप वो पूरा कर रहा था।अगले  दिन पूजा को डिस्चार्ज होना था।उस रात सासुमां ने विशाल से कहा- विशाल ऐसा करते है पूजा को यहाँ से अपने  घर ले चलो।तुम्हारी बहने भी आ जाएंगी।वहाँ ही बच्चे का छट्टी पूजा करके बहनो को नेग दे देना।फिर पूजा को दूसरे दिन उसके मायके भेज देना।जहाँ इसकी और बच्चे की अच्छे से देख-भाल हो जायेगी। 
ये बाते सुनकर जहाँ विशाल अपनी माँ के सोच पर हैरान रह गया ।वही पूजा को गुस्सा आ गया।पर खुद सम्हालते हुए वो बोली- मम्मी जी ,अभी तो मेरा घाव भी नही सूखा। और अभी हम  ज्यादा कुछ नही कर सकते। और बच्चे के होने में भी काफी पैसे खर्च हुए है,सो अभी नेग भी नही नही दे पाएंगे।और जब बच्चा मेरे मायके से हुआ तो छट्टी पूजा भी वही से करने दीजिये।
ये सुन सासु माँ विशाल को गुस्से में बोली- देख विशाल तू न कहता था कि इसे तू घर ले आएगा। इसे तो अपने मायके की ही पड़ी रहती है।इसने आज तक घर के लिए ही किया ही क्या है।तू तो हमेशा इसकी बातों में ही रहता है।ये जो कहेगी वही न तू करेगा। अगर ये रस्म के लिए घर नही आएगी तो आज से तू भी उस घर में न आना।
माँ की ऐसी बातों को सुनकर पूजा और विशाल काफी दुखी हो गए।विशाल से अब चुप न रहा गया और वो बोल पड़ा- माँ अपने ही पहले अपनी जिम्मेदारी लेने से मना किया,और जब सबकुछ दूसरे ही कर दिए तो आप रस्म- रिवाज के नाम पर अपना हक़ दिखा रही है। मैं तो आपका सबसे प्यारा बेटा हूँ माँ, फिर मुझसे ये दोहरा व्यवहार क्यूँ?क्या सिर्फ इसलिए की मैं कुछ अलग करने की चाहत में आप सब से दुर रहता हूँ।पर माँ रिश्ता तो दूरियां नही देखती।आप हर उस समय जब हमें आपकी जरूरत थी आप घर की जिम्मेदारियों का हवाला देकर मुझे टाल देती। आपको तो खुश होना चाहिए माँ की मुझे पूजा जैसी पत्नी मिली जो हर सुख दुख में मेरे साथ खड़ी रही है।आप मुझे अपना बेटा तो तब समझती जब मेरी बीबी को अपनी बहू समझियेगा।मै तो औरत के हर चरित्र की इज्जत करता हूँ , चाहे आप हो या भाभी या मेरी बहने।और अगर मैं पूजा की कद्र करता हूँ तो क्या बुरा है,वो मेरी पत्नी है।क्या पत्नी की कद्र करना बुरा है...क्या मैं बुरा हूँ माँ..जबाब दो माँ..क्या मैं इतना बुरा हूँ।क्या घर से बाहर रहने वाले बच्चों के लिए सारे रिश्ते इतने खोखले हो जाते है।आज मुझे आप सब की सबसे ज्यादा जरूरत है तो आप हमसे रिश्ता तोड़ हमें ठुकरा रही है।
बोलते बोलते विशाल की आँखे भर आई। पूजा भी भरी आँखों से अपने पति को टूटते हुए देख रही थी ।और सोच रही थी..कुछ रिश्ता क्या अपना होकर भी सिर्फ अपना होने का भरम(दिखावा) ही होता है।

आपको मेरी ये कहानी कैसी लगी। क्या माँ ऐसी भी हो सकती है?क्या माँ की ममता अपने बच्चों में ही बंट जाती है...क्या बेटा पत्नी का सम्मान करता है तो बुरा हो जाता है...क्या एक माँ ऐसा सोच सकती है। क्या एक समय के बाद माँ और बेटे का प्यार ख़त्म हो जाता है। अपने जबाब जरूर साझा करें।