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ठाकुर की थाली

मलकु सवेरे-सवेरे ही आकर रघु काका के दरवाजे की सांकल बजाते हुए चिल्लाया - " उठो काका, आज ठाकुर ने उमा को शहर से बुलवाया है। "

रघु काका का बेटा उमा शहर में सरकारी विभाग में अफसर था और वहीँ परिवार के साथ अपने सरकारी आवास में रहता था। उमा रघु काका को भी शहर चलने को बोलता । पर काका को तो अपने गांव की ही सूखी रोटी भली लगती । गांव के मुखिया ठाकुर बाबु का कोई सरकारी काम  होता तो वो उमा को अक्सर गांव बुलवाते। और रहने का इन्तजाम भी वहीँ कर देते थे। " वो ठाकुर की कोठी पर रुकेगा या आएगा भी " - रघु काका ने मलकू से पूछा, " अरे काका भौजाई और बचवन भी साथे आएंगे, पांच दिनों के लिए आ रहा है अपना उमा। अपने घर तो आएगा ही। "- मलकु का जबाब  देते हुए उत्साह कम पड़ गया। क्योंकि पिछली बार जब ठाकुर के बुलाने पर उमा गांव तो आया था पर वो ठाकुर की कोठी पर ही रुका । बच्चे और बीवी को ये जगह पसन्द ही नहीं आई । जितनी देर रहे उखड़े-उखड़े से लग रहे थे और बार -बार वापस कोठी जाने का बोल रहे थे ।

 अगले दिन उमा अपने परिवार के साथ ठाकुर की कोठी पर आ गया । रात को मलकु के साथ ही बस्ती भी पहुँच गया । रघु काका ने पूछा - मलकु बता रहा था कि बच्चे और बहुरिया भी साथ आने वाले थे । वो नहीं आये ?

 " बाबा बच्चे आना नहीं चाह रहे थे । आप भी चलो न शहर बाबा । क्या है यहाँ ? - उमा ने पिता से मनुहार करते हुए कहा। तभी मलकु ने आकर खाना लगाने की बात कही । रघु काका बिना कुछ बोले  कमरे से बाहर बरामदे में  आ गये और उमा भी उनके पीछे पीछे बाहर आ गया । मलकु की बहुरिया खाना परोसने लगी । तभी उमा की नजर वहाँ रखी थाली पर पड़ी...  वो मलकु से पूछा - वाह मलकु, ऐसी थाली तो मैंने पिछली बार ठाकुर बाबु के यहाँ देखी थी । तू कहां से लाया ? " हां भाई , तू पिछली बार जब ठाकुर के यहाँ से गया तो ठकुराइन ने मुझे बुला कर देते हुए बोला की अफसर बनने से क्या होता है, है तो वो बस्ती का ही छोकरा ना । हम लोग तेरी बिरादरी का उपयोग किया हुआ सामान क्यूँ उपयोग करेंगे ? भगवान का दिया सबकुछ तो है हमारे पास । तू ले जा । " माथा खुजलाते हुए मलकु ने जबाब दिया । .....

 

उमा के हाथ से निवाला छूट कर वापस थाली में जा गिरा , बिल्कुल वैसे ही जैसे किसी ने ऊँचे पेड़ से जमीन पर धड़ाम से पटक दिया हो । रघु काका की अनुभवी नजर से ये बात छुप न सकी । वो उमा का कंधा थपथपा कर बाहर निकल गए ।

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धन्यवाद ।

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