एक सुबह मलकु ने रघु काका को बताया कि उनका बेटा उमा, जो शहर में सरकारी अफसर है, गांव आ रहा है। उमा अक्सर अपने पिता को शहर चलने के लिए कहता है, लेकिन रघु काका गांव की साधारण जिंदगी को पसंद करते हैं। उमा के पिछले दौरे में, वह ठाकुर की कोठी पर रुका था, और उसकी पत्नी और बच्चे वहां सहज नहीं थे। जब उमा अपने परिवार के साथ गांव आया, तो रघु काका ने मलकु से पूछा कि क्या बच्चे और बहू भी आएंगे। मलकु ने बताया कि बच्चे नहीं आना चाहते थे। उमा ने अपने पिता से शहर चलने की बात की, लेकिन फिर मलकु ने खाना लगाने का कहा। जब उमा ने मलकु की थाली देखी, तो उसे याद आया कि वह थाली पिछली बार ठाकुर के घर पर भी देखी थी। मलकु ने बताया कि ठाकुराइन ने उसे यह थाली दी थी, यह कहते हुए कि अफसर बनने से कुछ नहीं होता, वह अभी भी गाँव का ही है। उमा का निवाला हाथ से गिर गया, और रघु काका ने उसकी यह स्थिति देख ली। कहानी अंत में उमा की असहजता और रघु काका की अनुभवी प्रतिक्रिया पर खत्म होती है।
ठाकुर की थाली
Pammy Rajan द्वारा हिंदी लघुकथा
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विवरण
मलकुसवेरे-सवेरे ही आकर रघु काका के दरवाजे की सांकल बजाते हुए चिल्लाया - " उठो काका, आज ठाकुर ने उमा को शहर से बुलवाया है। "रघु काका का बेटा उमा शहर में सरकारी विभाग में अफसर था और वहीँ परिवार के साथ अपने सरकारी आवास में रहता था। उमा रघु काका को भी शहर चलने को बोलता । पर काका को तो अपने गांव की ही सूखी रोटी भली लगती । गांव के मुखिया ठाकुर बाबु का कोई सरकारी काम होता तो वो उमा को अक्सर गांव बुलवाते। और रहने का इन्तजाम भी वहीँ कर देते थे। " वो ठाकुर
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