नियति - 4 Seema Jain द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नियति - 4

नियति

सीमा जैन

अध्याय - 4

शिखा के घर के दरवाजे के आगे तीन चार सीढ़ियां थी । दीपा उन्हीं पर बैठकर सुबकने लगी, रोहन सकते में था। कुछ पल खड़ा रहा है फिर तेज कदमों से चलता हुआ निकट के रखे गमले को ठोकर मारता हुआ गाड़ी में जाकर बैठ गया। दीपा भी चुपचाप गाड़ी में जाकर बैठ गई । लौटते हुए लग रहा था मानो यात्रा खत्म ही नहीं हो रही हो, जैसे गाड़ी आगे बढ़ ही नहीं रही थी। घर पहुंचे तो थक कर बुरा हाल था, ना सुबह से कुछ खाया था न पिया था । जिस काम से गए थे उसका कुछ परिणाम नहीं निकला, आने जाने में आठ दस घंटे लग गए । थकान दोनों के चेहरे पर झलक रही थी। उनका उतरा हुआ चेहरा देखकर सुषमा समझ गई दोनों निराश होकर लौटे हैं।

मेहमान सब प्रस्थान कर गए थे, बस गुप्ता परिवार ही रह गया था। रीमा का पग फेरा होना था, पुष्पा उसमें व्यस्त थी । दामाद और उनके परिवार के लिए एक से एक व्यंजन बनवा रही थी, उनको देने के लिए उपहारों की व्यवस्था कर रही थी। सुषमा ने रोहन और दीपा को खाना खिलाया और आराम करने को कहा । रिया अपने परिवार के साथ प्रवेश कर रही थी। पुष्पा बेटी को देखकर अत्यंत प्रसन्न थी बस उसे निहारे जा रही थी। सुषमा ने विचार किया यह रस्म भी अच्छे से निपट जाए फिर अगले दिन सोचेंगे आगे क्या करना है।

अगले दिन गुप्ता परिवार भी जाने की तैयारी करने लगा। पति पत्नी को बहुत दुख हो रहा था, शिखा के साथ हुए हादसे को लेकर । रोहन को भी क्या कहते, गलती तो उससे हुई थी लेकिन अनजाने में और वह अपनी गलती सिर झुका कर स्वीकार भी कर रहा था। कितने विश्वास, कितने आश्वासन देकर लाए थे शिखा को। कितने बड़े बड़े वादे किए थे शालिनी से सब व्यर्थ गये । सब मुंह लटकाए बैठे थे, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था आगे क्या करें। सुषमा ही बोली, "यह बात हम पांचों ही जानते हैं, इससे आगे यह बात नहीं फैलनी चाहिए । हर हाल में यह बात हम तक ही सीमित रहनी चाहिए। "

पुष्पा दुखी स्वर में बोली, "हम बार-बार शालिनी के घर जाएंगे, जब तक माफ नहीं कर देती । उसके बाद वह जैसा कहेंगी वैसा ही करेंगे । "

सुषमा बोली, "यह ठीक रहेगा, हमें उन्हें कुछ समय देना चाहिए संभलने का । शांत चित्त से जब विचार करेंगी, जो निर्णय लेगीं हमें स्वीकार्य होगा। "

आगे क्या करना है सर्वसम्मति से यह निर्णय तो ले लिया लेकिन इसका क्या परिणाम होगा इसके बारे में कोई नहीं जानता था।

बेटी की शादी की जितनी खुशी थी इस हादसे का उतना ही दुख था। अनमने मन से गुप्ता परिवार ने सुषमा से विदा ली । रास्ते में कोई कुछ नहीं बोला, तीनों अपने अपने विचारो में व्यस्त थे। जाते समय जितना शोर शराबा मस्ती थी, लौटते वक्त उतना ही सन्नाटा था।

उधर रोहन को कुछ समझ नहीं आ रहा था वह क्या करें। ऑफिस जाने का बिल्कुल मन नहीं था। शिखा जिसके बारे में वह कुछ नहीं जानता था, जिसका नाम तक नहीं सुना था अब तक, उसके कारण उसकी जिंदगी कितनी उलझ गई थी। शादी की वीडियो निकाल कर देखने लगा आखिर शिखा कौन है, कैसी दिखती है। रीया और दीपा के साथ जो दुबली पतली सी से लड़की दिख रही थी वही शिखा होगी । पुष्पा मौसी के अधिकतर रिश्तेदारों को वह पहचानता था, शिखा ही उसे एक नया चेहरा दिख रहा था । बनी ठनीप्रत्येक समारोह में बढ़-चढ़कर भाग ले रही थी, ऐसे सबसे घुल मिलकर बोल रही थी मानो रिश्तेदार ही हो । अधिकतर कैमरे के सामने वही नजर आ रही थी, लग रहा था केमरे वाले को पट्टी पढ़ा रखी थी। रोहन को शालिनी के व्यवहार के कारण अत्यधिक क्रोध आ रहा था । वह तो अपनी गलती मानते हुए माफी मांगने गया था और शालिनी ने बिना बात सुने दरवाजा मुंह पर बंद कर दिया । वह भी तो कह सकता है यह सब जानबूझकर किया गया होगा। घर में इतना वैभव देखकर कोई भी हैसियत का अंदाजा लगा सकता है। इतना बड़ा घर, नौकर चाकर, गाड़ियां किसी के भी दिमाग में तरकीबें पनप सकती हैं। हो सकता है शिखा के दिमाग में भी लालच आ गया हो। शालिनी का घर उसने देखा था जिससे उसकी माली हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है। यहां की शानो-शौकत देखकर शिखा ने उसको फसाने की योजना बनाई हो। रात को जब वह कमरे में आई होगी तो उसे सोता देख तुरंत योजना बना ली होगी। रोहन को बिल्कुल याद नहीं जब वह आया था कमरे में कोई लेटा हुआ था या नहीं । कमरे में हल्का प्रकाश था जूते उतारकर पलंग पर ढेर हो गया था । लेकिन शिखा होश में थी, उसे पलंग पर निद्रा करते देख सोचा होगा बहुत अच्छा मौका है। क्यों ना रजाई में घुस जाऊं और सुबह सबके सामने शोर मचा दूंगी। फिर रोहन को शादी करने पर मजबूर कर दूंगी। लेकिन उसकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि शिखा अकेली सुबह चुपचाप चली क्यों गई।

रोहन अभी भी सीडी देख रहा था। शिखा हर जगह छाई हुई थी, सब के साथ हंसी मजाक कर रही थी। सब उसकी प्रशंसा कर रहे थे, लगता है सबको के मन को वश में करने का कोई मंत्र जानती है। मां भी उसकी प्रशंसा करती हैं । वह अपने ही घर में गुनहगार बन गया था, भले ही कोई खुलेआम कुछ ना कह रहा हो, लेकिन गलती तो उसकी ही मान रहे थे। जिस प्रकार शालिनी ने उसे देखा और चिल्लाई, उनका बस चलता तो उसको या तो पुलिस के हवाले कर देती या उसका खून कर देती । बेटी की बदनामी के डर से कुछ नहीं किया, इतनी घृणा थी उनकी आंखों में। शिखा जैसी लड़की को समझ पाना बहुत मुश्किल है।

पारुल जैसी लड़की को समझना सरल है, वह जैसी होती हैं वैसा व्यवहार करती हैं। बचपन से उनके घर आना जाना था, उसके पिताजी श्रीमान खन्ना रोहन के पिता के अच्छे दोस्त थे। पैसे की कोई कमी नहीं थी, शुरू से ही पैसों में पली बढ़ी थी । इसलिए पैसे को सबसे अधिक अहमियत देती थी। कीमती सामान की शौकीन पारुल के जीवन का मकसद ही महंगे कपड़े प्रसाधन और साज सामान की वस्तु खरीदते रहना था । उसके लिए जीवन घूमना फिरना और मौज मस्ती था। भावनाएं और रिश्तें दूसरे पायदान पर थी। रोहन जानता था पारूल से रिश्ता जोड़कर वह भावनात्मक रिश्ता नहीं अपितु एक सामाजिक बंधन में बंधने जा रहा था। दोनों एक साथ रहकर भी अपने अपने स्तर पर जीवन बिताएंगे, नदी के दो समांतर तट की तरह। उसके लिए जितने भी रिश्ते आ रहे थे वो सब इसी तरह के थे, सब उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और आर्थिक स्थिति के कारण अपनी कन्या का हाथ उसके हाथ में देना चाहते थे । सब रिश्ते उसे एक जैसे लग रहे थे, ऐसे में जान पहचान वाले घर में विवाह करना उचित लगा। मां का दबाव और बढ़ती उम्र के कारण उसने फैसला ले लिया था। दो-तीन साल से किसी ना किसी बहाने विवाह को टाल रहा था लेकिन अब मां ने जिद पकड़ ली थी । अमेरिका जाने से पहले उसकी शादी अवश्य होनी चाहिए। फिर सब अमेरिका साथ जाएंगे, मां रुक जाएगी अमेरिका में भाई भाभी के पास । रोहन अपनी पत्नी के साथ वापस आ जाएगा कुछ दिन घूम कर।

सुषमा कमरे में आई, रोहन को सोच में डूबा देख कर बोली, " तुम बोलो तो मैं जाकर शालिनी से बात करूं। मेरे समझाने से शायद वह कुछ बोले, तुम्हें क्षमा कर दे । "

ऐसा लगा मानो घायल सांप पर पांव पड़ गया हो। रोहन बिफर का बोला, " आप क्या बात करोगी, जब वह सुनने को ही तैयार नहीं है । अकेले मेरी गलती नहीं थी, वह लड़की चाहती तो शोर मचाकर सब को बुला सकती थी। जोर लगा कर धक्का देकर भाग सकती थी । मैं होश में नहीं था, जानबूझकर जबरदस्ती नहीं कर रहा था। "

सुषमा को लगा रोहन पूर्णतया गलत नहीं है, लेकिन शिखा को जितना उसने समझा था वह भोली भाली लड़की लगी थी। इस तरह की योजना बनाना उसके स्वभाव का अंग नहीं हो सकता था। इस उम्र में आकर लोग कहते हैं अनुभव अधिक होने कारण इंसान की समझ अधिक परिपक्व हो जाती है। लेकिन सुषमा को लगता इतना कुछ देखने और सुनने के बाद इंसान और अधिक असंजस में पड़ जाता है क्या सही है और क्या गलत है।

सुषमा ने फिर कोशिश की, और बोली, "मुझे लगता है एक बार जाकर उनके हालचाल जान लेना चाहिए । क्षमा भी मांग लेनी चाहिए फिर से। "

रोहन गुस्से से बोला, " माफी मांगने का कोई लाभ नहीं है, दोनों बात सुनने को तैयार नहीं है। आप खन्ना अंकल से बात कर लो तीन-चार दिन में रोका की रस्म करके तीन महीने में शादी का मुहूर्त निकलवा लेंगे। आपके जाने से पहले यह काम भी हो जाएगा। "

सुषमा कहना तो बहुत कुछ चाह रही थी, लेकिन रोहन का गुस्सा देखकर खामोश रही। एक-दो दिन बाद पुष्पा का फोन आया । पुष्पा कह रही थी, " दीदी मैं शालिनी के घर गई थी बहुत मुश्किल से बात करने को तैयार हुई ‌। बहुत दुखी और टूटी हुई सी लग रही थी। बार-बार एक ही बात कह रही थी। भगवान ने एक जिम्मेदारी दी थी वह भी ठीक से नहीं निभा पाईं। शिखा भी बहुत मायूस हो गई है मेरे बार-बार क्षमा मांगने पर बोली, इसमें आप का क्या कसूर है । नियति के आगे सब बेबस है, भाग्य में यही लिखा था आप तो बानक बन गई । उम्र भर जिस बात से डरती थी वही सच हो गई। "

सुषमा फोन पर बोली, " रोहन तो शिखा को भी बराबर का दोषी मान रहा है । उस से तो कोई बात करना बेकार है, समझ नहीं आ रहा क्या करूं। "

पुष्पा बोली, " मैंने बात बात में कहा था शालिनी जी से कि अगर वह चाहे तो शिखा का विवाह रोहन से कर दे । उन्होंने इंकार कर दिया, कहने लगी शिखा रोहन से घृणा करने लगी है । वह इस विवाह के लिए कभी हां नहीं करेगी। थोड़ा संभल जाए फिर वह आगे और पढ़ लिख कर नौकरी करेगी। अपने पैरों पर खड़ी होगी, उसके बाद अपनी पसंद के लड़के से शादी करेगी । हम दोनों मां बेटी इस घटना को हादसा मानकर भुलाने की कोशिश करेंगे। "

सुषमा कुछ पल खामोश रही फिर बोली, "रोहन पारूल से शादी करने को कह रहा है । अगर शालिनी जी ने मन बना लिया है तो फिर मैं खन्ना जी से बात करके रिश्ता पक्का कर देती हूं। " उधर दीपा नियम से शिखा के घर जाने लगी। कुछ दिनों तक तो शिखा मायूस सी चुपचाप बैठी रहती थी कुछ बोलती नहीं थी। दीपा अपनी तरफ से थोड़ी बहुत इधर उधर की बातें करके लौट जाती। शालिनी कॉलेज गई होती थी इसलिए दीपा उसकी अनुपस्थिति में वहीं बैठी रहती, उसे लगता शिखा को अकेले छोड़ना ठीक नहीं। शालिनी को पहले तो दीपा का आना-जाना अच्छा नहीं लगता था, लेकिन फिर उसको एहसास हुआ शायद शिखा दीपा के सहयोग से शीघ्र सामान्य हो जाए। धीरे धीरे शिखा खुलने लगी, पहले छुप छुप कर रोती थी अब दीपा के सामने भी रो देती थी‌। दीपा चुपचाप बैठी रहती और उसे रोने देती।

फिर शिखा ने अपने मन की भड़ास निकालनी शुरू कर दी, "मैंने रोहन की क्या छवि मन में बिठाई थी और वह नशा करने वाला गिरा हुआ इंसान निकला। कितना प्यार करने लगी थी उसे बिना देखे ही, तेरी बातें सुन सुन कर। ऐसी ओछी हरकत वह कर सकता है मैं ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकती थी । मां सही कहती है पुरुषों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। मैं उससे घृणा करने लगी हूं। भगवान करे वह कभी खुश नहीं रहे। " एक दिन दीपा ने धीरे से पूछ लिया, " तू जब कमरे में गई थी तब क्या कमरा खाली था। "

शिखा बोली, "और नहीं तो क्या ? कोई कमरे में होता तो मैं उस कमरे में क्यों ठहरती। मैं थकी हुई अवश्य थी लेकिन नशें में नहीं थी। कपड़े बदल कर हल्के रोशनी का बल्ब जलाकर सो गई। थोड़ी देर बाद मुझे एहसास हुआ मेरा दम घुट रहा है, कोई भारी बोझ मुझ पर रख दिया हो। आंख खुली तो समझ आया कोई पुरुष मेरे ऊपर लेटा है। "

उसके बाद का विवरण शिखा देने की स्थिति में नहीं थी, वह सहम कर चुप हो गई। दीपा समझ गई रोहन कुछ नशे में था कुछ थका हुआ था, अंधेरे में अपने कमरे में पहुंचकर पलंग पर ढेर हो गया। वैसे रोहन पीता नहीं था कभी दोस्तों के साथ ले लेता हो तो उसे पता नहीं था। अब इस प्रकरण में कितना किसका दोष है कहना बहुत मुश्किल था। लेकिन एक बात पक्की थी इस घटना ने शिखा के मन में रोहन के लिए इतनी घृणा भर दी थी कि वह शायद रोहन को कभी क्षमा नहीं कर सकेगी। कहां तो पहले उसके सपने देखने लगी थी उसके साथ जीवन बिताने के बारे में सोचने लगी थी।

एक दिन शिखा बहुत गुस्से में बोली, " कितना बददिमाग और घमंडी इंसान है रोहन। मैं समझती थी वह जिम्मेदार और सलीकेदार इंसान होगा । एक बार भी माफी मांगने नहीं आया। लगता है उसे अपनी गलती का एहसास ही नहीं है। "

दीपा का मन हुआ शिखा को बता दें कि रोहन आया था, लेकिन लगा इतने गुस्से में है शिखा शायद उसकी बात को झूठा मान लेगी। शालिनी ने नहीं बताया इसका अर्थ है वह नहीं चाहती कि शिखा के समक्ष रोहन की कोई बात कि जाए । दीपा की इच्छा थी कि रोहन को फोन करके कहे कि वह एक बार और आकर शिखा से बात कर माफी मांगे। परंतु वह रोहन को जानती थी कितना जिद्दी और अड़ियल किस्म का इंसान था । उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी शिखा को बताने की कि रोहन की शादी होने वाली है।

सुषमा विगत दिनों के इस घटनाक्रम से बहुत दुखी थी । बेटे की शादी की बात खन्ना जी से करने भी बेमन से गई। रोका का दिन निश्चित कर लिया गया, तैयारियां चल रही थी लेकिन उत्साह नहीं था । पहले कितनी योजनाएं बनाती रहती थी रोहन की शादी में यह करेगी वह करेगी । लेकिन अब सब काम एक यंत्र चलित मशीन की तरह कर रही थी, ऐसा लग रहा था बेटे की खुशी का महल किसी के आंसूओं पर खड़ा कर रही थी।

सादे समारोह में रोका का कार्यक्रम संपन्न हुआ । सुषमा की तरफ से गुप्ता परिवार और लड़की वालों की ओर से दो चार खास रिश्तेदार ही सम्मिलित हुए। लड़के वालों की ओर से तो ऐसा गंभीर माहौल था मानो सब ने मौन व्रत लेकर समारोह में भाग लेने का निश्चय किया हुआ हो। लड़की वाले अवश्य बहुत उत्साहित थे, इतने खुश थे कि उनका ध्यान ही नहीं गया लड़के वाले कुछ अनमने से हो रहे हैं । शादी की तारीख भी तीन महीने बाद की पक्की हो गई।

समय सब घाव धीरे धीरे भर देता है, यही शिखा के साथ हो रहा था। वह सामान्य होने की भरसक कोशिश कर रही थी। दीपा और शिखा ने जीवन में आगे क्या करना है इस बात पर विचार करना प्रारंभ कर दिया था । शिखा का पहले से ही मन था पांच-छह महीने कहीं नौकरी करके फिर आगे एमबीए की तैयारी करें । दीपा का आगे पढ़ने का मन नहीं था, वह अनुभव के लिए कुछ महीने नौकरी करना चाहती थी। वैसे भी उसके घर वाले उसकी शादी करवाने की सोच रहे थे । गुप्ता जी ने स्पष्ट कह दिया था एक बार शादी हो जाए फिर ससुराल वालों की इच्छा पर निर्भर करेगा वे दीपा से नौकरी करवाते हैं या घर पर बिठाते हैं । दीपा ने एक दो बार दबी जबान में विरोध भी किया लेकिन फिर खामोश हो गई । पिता को अच्छी तरह जानती थी वह पुराने विचारों वाले इंसान थे और अपने सिद्धांतों के पक्के थे। वैसे भी दीपा मस्त मौला किस्म की लड़की थी पढ़ने में सामान्य इसलिए अपने भविष्य को लेकर ऊंचे सपने नहीं देखती थी। एक दो साल में जब तक मां बाप कोई रिश्ता ढूंढते वह नौकरी करके समय काटना चाहती थी।

सुषमा शादी की खरीददारी करने में लगी थी । कपड़े खरीदने के लिए उसने पारुल को साथ ले जाना ही उचित समझा। खरीददारी करते हुए पारुल का उत्साह देखते बनता था, वह बहुत प्रसन्न थी और बढ़-चढ़कर एक से एक वस्तु ढूंढ कर बड़े मन से खरीद रही थी। सुषमा को उसके इस उत्साह से कोई आपत्ति नहीं थी लेकिन वह स्वयं इस सबमें दिल से नहीं जुड़ पा रही थी। कहीं ना कहीं पारुल की इन वस्तुओं के प्रति इतनी दीवानगी उसे सही नहीं लगती थी लेकिन वह पहले से जानती थी पारुल कितनी शौकीन है, उसकी दुनिया भौतिक वस्तुओं तक ही सीमित थी।

समय अपनी गति से आगे बढ़ रहा था, सब अपने अपने कार्य में व्यस्त हो गए थे । रोहन भी अपने ऑफिस में रात दिन काम करने में लगा हुआ था। शादी की तैयारी सुषमा कर रही थी । इधर शिखा और दीपा नौकरी की तलाश में लगे थे, अनेक स्थान पर मौखिक और लिखित परीक्षा दे चुके थे। लेकिन कहीं बात बनती नजर नहीं आ रही थी। शिखा को लगता वह इन दिनों कुछ अधिक ही मेहनत कर रही थी, बड़ी थकान सी रहती थी। कुछ खाने का भी मन नहीं करता था, बहुत चेष्टा करने पर एक परांठा किसी तरह नींबू के अचार से गले के नीचे उतारकर निकली थी फिर भी चक्कर आ रहे थे। आने के बाद ऐसी निढाल होकर पलंग पर गिरी जैसे कितने दिनों की बीमार है। दीपा को उसकी ऐसी हालत देखकर चिंता हुई । शालिनी के आते ही उसने उसे बताया कहा, "पहले भी कई बार चक्कर आए, और बहुत थकी रहती है । लेकिन आज कुछ ही अधिक परेशान लग रही है । "

शालिनी ने आश्चर्य से कहा, "तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया ?"

दीपा ने कहा, " शिखा ने मना किया था, कह रही थी ऐसे ही कमजोरी लग रही है, सब ठीक हो जाएगा । "

शालिनी शिखा को डॉक्टर के पास ले गई, दीपा भी साथ थी । डॉक्टर ने निरीक्षण किया और बोली, " चिंता की कोई बात नहीं है ऐसे समय में चक्कर आना और कमजोरी महसूस होना आम बात है । मैं दवा लिख देती हूं और खाने-पीने का ध्यान रखना। शिखा तुम्हें आराम की सख्त आवश्यकता है मां बनने जा रही हो अपना ध्यान रखना। "

***