नियति - 10 Seema Jain द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नियति - 10

नियति

सीमा जैन

अध्याय - 10

इधर रोहन और शालिनी गाड़ी में बैठकर भोपाल के लिए रवाना हो गए थे । रास्ते में इधर-उधर की बातें करते रहे शालीनी ने अपने मन की बात कहीं, " शिखा बहुत खुश है, सारा दिन सुषमा जी और तुम्हारे बारे में बात करती रहती है। तुम दोनों को पुरानी बातों को भूल कर जिंदगी में आगे बढ़ना चाहिए। "

रोहन का मन हुआ शालिनी से पूछे शिखा उसके बारे में क्या बात करती है। लेकिन शालिनी की चुप्पी के आगे वह कुछ नहीं बोल सका। शालिनी का घर आ गया था, रोहन उसको छोड़कर बाहर से विदा लेना चाहता था। लेकिन शालिनी नहीं मानी बहुत आग्रह करके उसे अंदर ले गई। शादी के बाद पहली बार दामाद आया था । कुछ तो आवभगत करने का उसका भी अरमान था । अगर शिखा की तबीयत ठीक होती तो उन दोनों को कितनी बार अपने घर बुलाती। पड़ोसन के यहां घर की चाबी रख कर गई थी । आने से एक दिन पूर्व फोन कर दिया था, उसने साफ सफाई करवा दी थी और खाने-पीने की आवश्यक सामग्री भी रख दी थी । रोहन के लिए चाय और बेसन की पकौड़ी बनाकर तुरंत ले आई। मन तो उसे खाना खिला कर भेजने का था लेकिन रोहन शीघ्रता से अपने कार्य समाप्त करना चाहता था।

रोहन सारा दिन काम में बहुत व्यस्त रहा, रात को लेटा तब बहुत देर हो गई थी। एक बार को मन में आया शिखा को फोन कर ले लेकिन समय देखकर अपने आप पर नियंत्रण कर लिया। अगले दिन पहुंचते ही वह शिखा के सामने अपना दिल खोल कर रख देगा। क्या क्या कहेगा सोचते-सोचते उसे नींद आ गई। अगले दिन उसे काम शीघ्रता से निपटा कर घर शाम तक पहुंचने का मन था । मौसम का मिजाज भी कुछ ठीक नहीं लग रहा था। तेज हवाएं चल रही थी, आसमान में हल्के बादल छाए हुए थे । कार्य समाप्त करके वह भोजन कर रहा था मौसम और खराब हो गया था। तूफान की आशंका लग रही थी, ऐसे में जाना ठीक होगा कि नहीं वह सोच ही रहा था कि उसका ड्राइवर बोला, " साहब इस मौसम में जाना ठीक नहीं होगा। इतनी तेज हवा से कोई पेड़ उखड़ कर गाड़ी पर गिर गया तो क्या करेंगे, या रास्ते में गिरा पड़ा होगा तो आगे कैसे जाएंगे, रास्ते में फंसकर रह जाएंगे । आज यहां ठहरते हैं कल सुबह जल्दी निकल जाएंगे। "

रोहन को ड्राइवर की बात सही लगी, वह उसे रात को वहीं रुकने का निर्देश देने की वाला था कि उसके फोन की घंटी बज गई । दीपा बोल रही थी, उसकी आवाज ठीक से सुनाई नहीं दे रही थी। बहुत कोशिश करने पर वह यही समझ पाया कि पारुल घर आई थी, उसकी बातों से शिखा बहुत परेशान हो गई । रोहन ने शिखा को फोन मिलाया तो उसका फोन बंद पड़ा था। घर के और फोन मिलाएं लेकिन मौसम खराब होने के कारण कोई नहीं मिला। रोहन को चिंता हो रही थी पता नहीं पारुल ने क्या कहा होगा और शिखा क्या करने वाली है । उसने अपने ड्राइवर को निर्देश दिया अभी गाड़ी निकालो हम तुरंत जाएंगे।

पारुल के जाने के बाद शिखा ने स्वयं को बहुत नियंत्रित करने का प्रयास किया । लेकिन दीपा के जाने के बाद वह कमरा बंद करके बहुत देर तक रोती रही। उसकी प्रेम कहानी शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई थी। सबसे बुरी बात यह लग रही थी कि सब ने पारुल और रोहन की शादी की बात उसे नहीं बताई । रोहन बचपन से पारुल को जानता है पसंद करता है और उससे शादी करना चाहता था। उसे लगा मां की जीवन कथा उसके माध्यम से पुन दोहराई जा रही है। पिता को मजबूर किया गया मां से शादी करने के लिए और उन्होंने इस कारण मां से हमेशा घृणा की। खुलेआम उन्होने इस रिश्ते को बोझ समझा और उनसे दुर्व्यवहार करके इसका प्रदर्शन भी किया। रोहन ने भी शादी बड़ों की जिद के कारण की, बस वो उसे अपनी जिम्मेदारी समझ रहा है। हो सकता है उस पर तरस खा रहा हो इसलिए दुर्व्यवहार ना कर रहा हो। लेकिन उसके दिल में तो अवश्य उसके लिए नफरत होगीऔर अगर आज नहीं तो मजबूरी में बनाए रिश्ते धीरे धीरे सड़ जाते हैं‌। वह हमेशा अपनी जिंदगी बर्बाद करने के लिए उसे ही दोषी मानता रहेगा।

शिखा को लगा अगर वह रोहन को सच्चा प्यार करती है तो उसे उसके जीवन से चले जाना चाहिए। उसे स्वतंत्र कर देना चाहिए, जिससे वह अपनी जिंदगी अपने तरीके से जी सकें। पारुल जैसी अत्याधुनिक युवती से वह कैसे मुकाबला कर सकती है। पारुल का पहनावा रहन सहन सब रोहन के स्तर का था। शिखा उसे तो ठीक से मेकअप करना भी नहीं आता था, पारूल से कैसे टक्कर ले सकती है। टक्कर की बात तो तब होती है जब रोहन असमंजस में होता कि वह किसका चयन करें । रोहन ने तो पारुल का ही चुनाव किया था। शिखा तो एक अनचाहा बोझ बन कर उसकी जिंदगी में आ गई थी । शिखा ने निश्चय किया कि वह रोहन को छोड़ देगी। उसके आने से पहले ही वो चली जाएगी अपनी बेटी को लेकर।

शांति की तबीयत ठीक नहीं थी वह खाना बनाकर अपने कमरे में आराम करने चली गई‌। सेवक राम नीचे हॉल में बैठा ऊंघ रहा था। शिखा रोती जा रही थी और अपना सामान सूटकेस में लगाती जा रही थी । उसको अकेले जाना होता तो दो चार कपड़े सूटकेस में डालती, पर्स उठाती और कब की निकल गई होती । लेकिन छोटी बच्ची के साथ ऐसा संभव नहीं था। उसकी आवश्यकता का सामान ध्यान से रखना बहुत जरूरी था। शाम हो गई थी उसके रोते-रोते आंसू सूख गए थे। सामान लगा लिया था भूख लगी थी, नन्ही नियति भी कुलबुला रही थी‌ रसोई में अपने लिए खाना गर्म किया, नियति को भी दूध पिलाया और हाल में आकर बैठ गई ‌। मन नहीं कर रहा था घर को छोड़कर जाने का, इतने महीनों में अपना लगने लगा था। बाहर देखा मौसम बहुत खराब था, ऐसे में सामान और बच्ची के साथ जाना ठीक नहीं होगा। वैसे भी ऐसे मौसम में रोहन भी नहीं आने वाला, वह शायद रात को रुककर सुबह चलेगा। शिखा ने सोचा वह प्रातः निकल जाएगी‌। यही ठीक रहेगा, अपने आपको संयत कर वह आराम से सोफे पर बैठ गई। दिन भर की उठापटक से थक गई थी, झपकी लग गई । फोन की घंटी बजी तो देखा रोहन का फोन था। स्वर ठीक से नहीं सुनाई दे रहा था, बस इतना समझ में आया, " तुम ठीक हो ना, मैं एक घंटे में पहुंच जाऊंगा। " फोन कट गया, शिखा हेलो हेलो करती रह गई ‌उसके बाद कई बार संपर्क करने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली। नौ बजे थे तेज आंधी तूफान आ रहा था, बादल गरजने की आवाज से घबरा गई। वह सोच रही थी, ' हे !भगवान रोहन को ऐसे मौसम में आने की क्या आवश्यकता थी। '

शिखा की बेचैनी और घबराहट बढ़ती जा रही थी । गाड़ी खराब हो गई तो, कोई हादसा हो गया तो, सोच सोच कर उसका बुरा हाल हो रहा था। कभी भगवान की मूर्ति के आगे हाथ जोड़ कर बैठ जाती तो कभी फोन मिलाने की कोशिश करती । बस रोहन सुरक्षित रहना चाहिए, उसे कुछ नहीं होना चाहिए । सेवकराम इन बातों से बेखबर बहुत पहले ही अपने कमरे में सोने चला गया था । इतने बड़े घर में बिल्कुल अकेली । बादलों के गरजने की आवाज और रोहन की सुरक्षा की चिंता, शिखा के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी । क्या करें, क्या ना करें। हॉल में वह बैचेनी से इधर उधर घूम रही थी, एक एक पल भारी लग रहा था। सोच सोच कर सिर में दर्द हो गया था कि रोहन को कुछ हो गया तो वह क्या करेगी। उसके दिल से एक आवाज आई, वह तो रोहन को छोड़कर जाने वाली थी। उसे क्या अंतर पड़ता है । नहीं वह रोहन को इसलिए छोड़ रही थी कि रोहन उसके बिना अधिक प्रसन्न रहेगा। उसको परेशान तो देख ही नहीं सकती थी । बस एक बार रोहन को सही सलामत देख ले फिर उससे सब रिश्ते तोड़ देगी। उसकी याद में ही अपना सारा जीवन बता देगी । इसी परेशानी में उसने एक डेढ़ घंटा बिता दिया, लग रहा था सारा शरीर बेदम हो गया है इतनी कमजोरी सी लग रही थी, उस दिन समझ में आया चिंता से बड़ी बीमारी संसार में कोई नहीं है।

रोहन रास्ते भर परेशान रहा, कहीं शिखा घर छोड़कर ना चली गई हो। पारुल के विषय में वह क्या सोच रही होगी। आंधी के कारण गाड़ी आहिस्ता चल रही थी और उसका मन विचारों का तेजी से जाल बुन रहा था। शिखा के साथ बिताए पल एक-एक कर चलचित्र की भांति उसकी आंखों के सामने से गुजर रहे थे। शिखा की सरलता और सौंदर्य ने आकर्षित कर लिया था उसको। अब उसके साथ वह अपना जीवन बिताना चाहता था। नियति में तो उसकी जान बसती थी। शिखा जिस तरह से नियति की देखभाल करती थी, उसको प्यार करती थी उसे बहुत अच्छा लगता था। उसे शाम को घर लौट जाने की अब शिघ्रता रहती थी। कई बार उसे लगता जैसे शिखा उसका इंतजार कर रही है। अब इससे वह स्थिति बर्दाश्त नहीं हो रही थी, शिखा से वह अब दूर नहीं रहना चाहता था। उसके साथ एक कमरे में ही रहना चाहता था। सुबह आंख खुले तो शिखा का खिलखिलाता चेहरा उसके सामने हो । रात को जब नियति कितनी बार भी उठाएं, उसे संभालने में वह शिखा का सहयोग दें। नियति सो जाएं तो शिखा को अपनी बाहों में भर ले । यह सोच कर उसका मन मुस्कुरा देता, लेकिन अगले पल चिंता होती अगर शिखा ने उसका प्रेम नहीं स्वीकारा तो क्या होगा।

गाड़ी के हाॅर्न की आवाज सुनी तो शिखा ने बाहर देखा। रोहन आ गया था । उसको देखकर शिखा को इतनी राहत मिली कि दीवानी सी उसकी तरफ भागी और उसके गले लग गई। दो पल ऐसे ही खड़ी रही, फिर थोड़ा पीछे होकर उसके चेहरे को हाथ से सहलाते हुए बोली, "आप ठीक हो ना?"

जब शिखा ने रोहन को आश्चर्य से अपनी और देखते हुए देखा तो उसे याद आया कि उसने क्या निर्णय लिया था और रोहन की चिंता में उसका क्या हाल हुआ था। वह झटके से उससे अलग होते हुए गुस्से से बोली, "आप के कारण तीन घंटे से मेरा दिमाग चिंता के कारण खराब हो गया था। ऐसी क्या जल्दी थी घर आने की, एक रात वहीं रुक जाते। आंधी तूफान में आए हो, कुछ हो जाता तो क्या होता ? अपने आप को समझते क्या हो? हर स्थिति में बहादुरी दिखाना आवश्यकता नहीं होता। कुछ हो जाता तो मम्मी जी को क्या जवाब देती?"

शिखा की इतना तेज चल्लाने के कारण नियति की आंख खुल गई और वो रोने लगी । रोहन उसको उठाने के लिए बढा तो शिखा ने उसका हाथ झटकते हुए नियति को अपनी गोद में ले लिया। रोहन बोझिल कदमों से अपने कमरे में चला गया । उसे लगा शिखा को समझना नामुमकिन है। जब शिखा भागते हुए उसके निकट आई थी और उसे गले लगाया था, उसे लगा था उसकी आंखों में उसके लिए प्रेम ही प्रेम था लेकिन अगले ही पल ऐसी क्रोधित हो गई मानो शिखा को उसका घर आना अच्छा नहीं लगा हो।

शिखा रोहन को सिर झुकाए, बिना कुछ बोले अपने कमरे की ओर जाते देखती रही । उसका मन रो रहा था, कैसे वह इतनी तेज आवाज में बोली और कैसे उसको छोड़ कर जिंदा रहेगी। नियति को थपथपा कर सुला दिया और उसे अपने पर बहुत गुस्सा आ रहा था। समझ नहीं आ रहा था कैसे इतनी कठोर हो सकती है । रोहन थका हुआ इतने खराब मौसम में आया और वह उस पर इतनी जोर से झल्लाई । वह चुपचाप सुनता रहा, पता नहीं कुछ खाया पिया भी की नहीं । हो क्या गया है उसको, इतनी व्याकुलता क्यों हो रही है, उसकी समझ नहीं आ रहा था । रोहन के बिना नहीं रह सकती थी, उससे दूर होने की कल्पना से इतनी परेशान हो रही थी, बिना बात के गुस्सा आ रहा था तो उससे अलग होकर कैसी रहेगी । यह बात समझ में आ गई थी कि अब वह रोहन के बिना नहीं रह सकती और क्यों रहे अलग वह उसकी पत्नी है। ठीक है भाग्य ने जोड़ा हो उसको रोहन के साथ, लेकिन अब वह उसकी जितनी चिंता और प्रेम करती है कोई नहीं कर सकता । शिखा ने फिर एक बार निश्चय किया कि वह अपने दिल की बात एक बार अवश्य कहेगी । रोहन क्या महसूस करता है उसके मुंह से सुनकर ही कोई निर्णय लेगी। अगर रोहन ने स्वयं कहा उसके साथ नहीं रह सकता तो बिना झगड़ा किए अलग हो जाएगी।

रोहन की यादें और नियति के सहारे जिंदगी काट देगी । हो सकता है इतने दिन में रोहन के दिल में उसके लिए स्थान बन गया हो । इन्हीं विचारों के मंथन से जूझती वह रोहन के कमरे में चली गई।

रोहन को रास्ते में एक जगह गाड़ी से उतर कर सड़क पर पड़े पेड़ को हटाने में ड्राइवर की सहायता करनी पड़ी थी। इस कारण वह थोड़ा गीला हो गया था। जब शिखा कमरे में पहुंची तो रोहन अपने बाल तौलिए से सुखा रहा था । गीले कपड़े उतारे नहीं थे । शिखा को देखकर रोहन सकपका गया। शिखा ने उसके हाथ से तौलिया लेकर उसके सर को सुखाते हुए बोली, "माफ करना मैं कुछ ज्यादा जोर से बोल गई। आपके फोन आने के बाद से मेरा चिंता के कारण बुरा हाल हो गया था । "

रोहन बोला, " कोई बात नहीं मुझे लगा तुम और नियति अकेले होंगे दीपा भी चली गई होगी, इसलिए यहां आने की जल्दी हो रही थी। "

शिखा बोली, "आपके कपड़े भी गीले हो गए हैं, बदलकर आ जाइए । मैं खाना लगाती हूं । "

खाना खाते हुए शिखा रोहन को निहारे जा रही थी। भविष्य में पता नहीं क्या होने वाला है। इस तरह साथ बैठ कर खाने का मौका मिलता है कि नहीं। खाना खाने के बाद रोहन नियति से मिलने शिखा के कमरे में गया। सूटकेस देखा तो उसने शिखा की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा । शिखा झेप गई और उससे कुछ जवाब देते नहीं बना। रोहन ने फिर पूछा, "कहीं जा रही थी ?"

शिखा सकुचाते हुए बोली, " हां सोच तो रही थी, आपको और इस घर को छोड़कर जाने की । लेकिन आपके बिना अब जीना नहीं चाहती। "

रोहन ने शिखा का हाथ पकड़ते हुए कहा, " किसने कहा तुमसे जाने के लिए? मैं चाहता हूं तुम और नियति हमेशा यहीं रहो मेरे साथ। "

शिखा बोली, "लेकिन मुझे लगता है मैं जबर्दस्ती आप पर थोपी गई हूं। आप तो पारूल से शादी करने वाले थे, उस से प्रेम करते थे। "

रोहित शिखा की तरफ स्नेह से देखते हुए बोला, "पारुल से जब मैं शादी करने वाला था तब मैं प्रेम का अर्थ समझता ही नहीं था । उससे शादी एक सामाजिक रिश्ता था और जब तुमसे शादी की तो वह अपनी गलती सुधारने के लिए जबरदस्ती करनी पड़ी थी। तुम्हारे साथ रहते-रहते प्रेम का अर्थ समझ आया । अपने से अधिक तुम्हारी चिंता रहती है, तुम्हें खुश देखकर खुशी होती है, हर पल तुम्हारे साथ बिताने का मन करता है । मुझे तुम अच्छी लगने लगी हो, जिंदगी भर तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं । "

शिखा के मुख पर हर्ष और लज्जा के मिश्रित भाव थे । वह शरमाते हुए बोली, "मैंने भी यह शादी मजबूरी में की थी। लेकिन अब आपका साथ अच्छा लगता है । जब आप चिंता करते हो, नियति को इतनी सावधानी और प्रेम से गोद में लेकर बैठते हो तो मुझे बहुत सुकून मिलता है। मेरे दिल में आपके लिए बहुत प्रेम है, लेकिन आपको मजबूर नहीं करूंगी इस रिश्ते को निभाने के लिए। "

रोहन ने शिखा को करीब खींचते हुए कहा, " अब तुम्हारे साथ जिंदगी बिताना मजबूरी नहीं है। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं। " और कहते कहते उसने अपने होंठ शिखा के कांपते होठों पर रख दिए।

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