अच्छाईयां – १४ Dr Vishnu Prajapati द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अच्छाईयां – १४

भाग – १४

सूरज कल सुबह कितनी उम्मीदे लेकर आया था... मगर आज तो उनकी सारी उम्मीदे टूट चुकी थी | प्यार और अपनापन पाने की ख्वाहिश में वो कई साल के बाद वापस आया था मगर उन्हें कही से अपनापन नहीं मिला | दादाजीने और कोलेज के सभी लोगोने सूरज को अपनी जिन्दगी से दूर कर दिया था | सूरज सोचता था की सरगमने भी शादी करली तो फिर दूसरे का तो क्या भरोसा ? सुगम, सरगम की प्यारी बच्ची थी, सूरज और सरगम दो शब्द मिलके सुगम का नाम बनता था | सालो पहले एक दिन जब सरगम बच्चो के साथ खेल रही थी तब कहा था की हमारी पहली लड़की ही होगी और उसका नाम सुगम ही रखूंगी......!!

वैसे तो अब खुशीयों के सारे दरवाजे बंध ही हो गए थे मगर छोटू को जिन्दादिली के साथ जीते देखा तो लगा की हमें अपनी अच्छाईयाँ कभी नहीं छोड़नी चाहिए... हर हाल में वो बिना शिकायत किये अपने आप को खुश रखना अच्छी तरह से जानता था और उसी के जरिये ही गुलाबो से मुलाक़ात हुई थी | गुलाबो को मिलते ही लगा की गुलाबो एक पहेली सी थी, वो मुझे अच्छी तरह से पहचानती थी और वो ही मेरी जिंदगी के कई सारे राझ जानती भी थी | अब तो गुलाबो ही मेरी जिन्दगी की आगे की मंजिल होगी... ये सोचकर सूरजने कुछ तय कर लिया |

सूरज ने पूरा दिन में गुलाबो पर नजर रखना शुरू किया | सूरज को लगा की वे चाय की कोई छोटी मोटी दुकान नहीं थी मगर यहां कुछ व्यापार भी हो रहा था | कोलेज बदतमीजी करनेवाले सारे बदमाश यही पर भी आते जाते दीखे | गुलाबो अन्दर ही रहती थी, सूरज पानी पिने के बहाने नजदीक भी गया मगर ये लगा की उस दूकान के अन्दर ख़ुफ़िया दरवाजा था क्युकी वे बदमाश जो अभी अभी अन्दर गए थे वे अन्दर नहीं दिख रहे थे | शायद उस दूकान के अन्दर भी कई सारे राझ छीपे थे....!

आज शाम गुलाबो को मिलना ही पड़ेगा | गुलाबो जैसे यहाँ से निकली वैसे सूरज भी उसके पीछे पीछे उनके घर पहुँच गया | बहार दरवाजे पर से तो लगता नहीं था की किसीको बिना इजाजत अन्दर जाने दे... मगर सूरज पीछे खड़े पेड़ से लुपाते छुपाते अन्दर पहुँच ही गया |

सूरज की नजर चारो ओर घूम रही थी, उसने देखा की इस बड़े महलमें गुलाबो अकेली थी | उनकी महफ़िल शुरू होने में तो अभी काफी वक्त बाकी था | सूरज चुपके से उसके रूममें दाखिल हुआ | दरवाजा खुला था, सूरज दबाते पैर अन्दर गया... गुलाबो बाथरूममें थी.... पानी की आवाज से लग रहा था की गुलाबो न्हा रही है| बाथरूम का दरवाजा भी खुला था... शायद गुलाबो की ये आदत होगी... या उसके रूम में आने की किसीको हिंमत नहीं होती होगी |

सूरज उसके रूम को देख रहा था... वो काफी सजाया हुआ था | कमरे के अन्दर संगीत के सारे इंस्ट्रूमेंट रखे हुए थे | सूरज उस तरफ खींचने लगा | सामने पियानो को देखते ही सूरज की उंगलिया रुक नहीं पाई... सालो के बाद फिरसे वो संगीत को छूना चाहता था... उसने रूम के दरवाजे को अन्दर से बंध किया और फिर खुद को रोक नहीं पाया... ! जैसे ही पियानो के बजने की आवाज आई तो गुलाबोने बाथरूम से बहार देखा | गुलाबो का बदन खुला था मगर सूरज आज सालो बाद फिरसे अपने सूरो में खो गया था |

सूरज की उंगलिया से निकले हुए सूरो में जादू था... जैसे कान्हा की बंसी के सूरो से राधा दौड़ आती थी वैसे ही आज गुलाबो अपने बदन को केवल एक छोटा रूमाल लपेटे हुए सूरज के पास आ गई | गुलाबो के भीगे बालो से निकलता हुआ पानी पूरे बदन को फिर से गीला कर रहा था | गुलाबो की खूबसूरती आज निखर रही थी मगर सूरज के सूरो के आगे वे भी कुछ नहीं थी |

गुलाबोने देखा की सूरज की आँखे बंध थी... सूरज सूरो से कितना प्यार करता है वो आज गुलाबो महसूस कर रही थी | गुलाबो भी उस सूर के साथ अपने पैरो को दबाके नाचने लगी | सूरज के सूर और गुलाबो का ताल मानो घुलमिल गए थे | गुलाबो के बदन से तौलिया भी अब गीर पड़ा = मगर उसकी असर न तो गुलाबो को थी या न तो सूरज को.... ये सूर और ताल का सही मेल था.... यहाँ दोनों मे से किसीको अपने तन की कोई परवा नहीं थी, दोनों मन से अपने अपने सूर तालमें लीन हो गए थे | सूरज आँखे बंध करके अपने सूरोमे लीन था और गुलाबो अपने तालमें....

गुलाबोने धीरे धीरे उस सूरो के साथ अपने आपको शृंगार से सजना शुरू किया | जैसे जैसे सूर निकलते गए वैसे वैसे गुलाबो अपनी जवानी के शृंगार सजाने लगी | आज सूरज के सूर गुलाबो के खूबसूरत बदन को ओर नशीला कर रहे थे | खिलते फूल जैसे हवा की लहरों से नाचने लगे वैसे ही आज गुलाबो खुल के नाच रही थी | गुलाबो को लगा की आज वो पैसे के लिए नहीं मगर केवल प्यार के लिए ही नाच रही थी | गुलाबो आज खुश थी क्यूंकि उसको लगा की मेरे बदन के प्यासे कितने लोग थे मगर आज उसका तन और मन सूरज के सूर के लिए प्यासे थे |

जब गुलाबो अपना पूरा बदन ढँक लिया और आखिर में अपनी चूडिया पहनकर खनकाई तो सूरज की आँखे खुली.... ‘ ओह... गुलाबो.... तुम कब बहार आई...?’ उसने अपनी उंगलियो को रोक लिया |

‘जब तुम अपने आप में खोये थे......!!’

‘दुल्हन सी सज गई हो... आज...!’ सूरज गुलाबो को देखता रहा |

‘बस तो ले जाओ इस दुल्हन को... किसने मना किया है...?’ गुलाबो के ऐसे कहा तो सूरजने अपनी नजर झुका ली |

गुलाबो सूरज को ऐसे शरमाते देखके हँसने लगी | उसकी हंसी और उसकी चूडियो की खनकार भी मानो संगीत का एक सूर ही था | थोड़ीदेर बाद अपनी हंसी रोककर बोली, ‘ मैं तो मजाक करती हूँ.... मुझे पता है की लोगो को इस जगह पर राते ही हसीन लगती है...!!!’

‘तुम निकल क्यों नहीं जाती ऐसी जिन्दगी से, यदी ये जिन्दगी तुम्हे अच्छी नहीं लगती है तो.....!’ सूरजने गुलाबो के नजदीक जाके कहा |

सूरज जब नजदीक आया तो गुलाबो को साँसे रुक गई और अपनी आँखे बंध करके बोली, ‘ क्या मुझसे शादी करके यहाँ से दूर ले जाओगे ?’ गुलाबो दिल से कह रही थी | ये सुनकर सूरज चुप हो गया |

गुलाबो फिर हंसने लगी और बोली, ‘ तूम टेंशन मत लो... मैं तो मजाक कर रही थी | रात को प्यार होना और जिंदगीभर का प्यार होना दोनोमे फर्क होता है | हम तो मर्दों को अच्छी तरह से जानते है | बिस्तर पे आते है तो लगता है की हमारी जिन्दगी की सारी परेशानिया ख़त्म कर देंगे | मगर सुबह होते ही फिर वो शरीफ इंसान बन जाते है और अपनी बस्तीमें जा के हमें समाज को गंदा करने के लिए कोशते है | हमारी मजबूरी का फायदा उठाते है फिर भी हमें गलत नहीं लगता क्यूंकि हम तो बाजारू औरत है... हमारा काम ही मर्दों को खुश रखना है...!’गुलाबो की आवाज और आँखों दोनों में से अंगारे बरस रहे थे |

तभी हसीनाखाने की बहार की गली से कुछ आवाज आने लगी | गुलाबो खिड़की से उस ओर देखने लगी | सूरज भी उस हल्ले को देख रहा था | उसने इशारे से गुलाबो से पूछा की क्या हो रहा है ?

गुलाबोने कुछ देर के बाद जवाब दिया, ‘ ये बच्चू है... इस हसीनाखाने का मालिक ही समजो | कोई नई लड़की लेके आया होगा या किसी से पैसो का झगडा होगा...!’

सूरजने अपनी बात बदलकर कहा, ‘ गुलाबो, मुझे ये बताओ की छोटू कहाँ रहता है ?’

‘ये तो तूम छोटू से भी पूछ शकते हो...!’

‘वो शायद बताना नहीं चाहता था...!’

गुलाबो की नजर अभी भी बच्चू की तरफ ही थी, वो फिर बोली, ‘ ये तो कल्लूने उसको शिखाया है... वे उसके साथ गोबर बस्तीमे रहता है | मगर तुम उससे दूर रहना... ये तुम दोनों के लिए अच्छा है |

‘ऐसा क्यों ?’

‘कल्लू बच्चो के पास कई सारे काम करवाता है... वे सारे बच्चे कल्लू की आमदनी है इसलिए कल्लू उसके किसी बच्चों के साथ कोई रिश्ता बनाए वे पसंद नहीं करता... फिर भी यदी...’ गुलाबोने देखा की बहार ज्यादा हल्ला हो रहा है तो उसके शब्द रुक गए और बहार देखने लगी |

बच्चू कोई लड़की को घसीट के ले जा रहा था | वो उसे बेरहमी से मार भी रहा था और गन्दी गालिया भी दे रहा था, ‘ तुझे इतने पैसे दिए है इसलिए जो हम कहे वो करना है... एक तो पैसे भी लेती है और नखरे भी करती है...!’ बच्चू की आवाज सख्त और मोटी थी |

वो लड़की शायद सोलह साल की होगी | वो बच्चू के साथ नहीं जाना चाहती थी मगर बच्चू उसे घसीट रहा था | हसीनाखाने में शायद ऐसा होता रहता होगा इसलिए दूसरी औरतो के लिए तो ये एक छोटा सा तमाशा ही था | सब देख रहे थे मगर किसी की हिंमत नहीं थी के बच्चू को कुछ कहे...! कई सारे शरीफ लोग भी उस रास्ते पर खड़े थे और उस लड़की के खुले बदन को देख रहे थे उसके आंसू को नहीं..!!

‘ये बच्चू नई लड़की को लाया है.... वो धंधा करने से मना करती होगी मगर बच्चू उसे छोड़ेगा नहीं... शायद पैसे से ख़रीदा होगा कही से...!!’ गुलाबो सूरज को हसीनाखाने की हैवानियत सूना रही थी |

‘उसकी मरजी नहीं है तो उसे जाने देना चाहिए....!’ सूरज उस लड़की को देखके बोला |

गुलाबो हँसने लगी और बोली, ‘तो यहाँ क्या सब अपनी मरजी से आते है....? ये सब लड़कीयो की मरजी से नहीं मरदों की हैवानियत से होता है | ये नहीं मानेगी तो उसकी ब्ल्यू फिल्म बनायेंगे ओर उसकी जिंदगी के सारे रास्ते बंद कर देंगे |’

उसी वक्त पुलिस की जीप आई, बच्चू के सामने ही वो खडी रही और अन्दर से एक स्फूर्तिला इन्स्पेक्टर बहार निकला | सूरज को आज पहलीबार पुलिस की ऐसी एंट्री से अच्छा लगा | आज पुलिस सही वक्त पे आई थी | इन्स्पेक्टर को देखके वो लड़की दौड़ के जीप में चली गई और कहने लगी, ‘ मुझे बचाओ... ये सारे हैवान है, मैं ऐसी लड़की नहीं हूँ...’ वो डर से थरथरा रही थी |

पुलिस को देखकर बच्चू पीछे हट गया |

‘साले लड़किओ से धंधा करवाता है...?’ वो इन्स्पेक्टर चिल्लाया तो दूसरे गुंडे तो भाग निकले..... बच्चू फिर भी खड़ा था इसलिए इन्स्पेक्टरने अपना डंडा उसके सिने पर लगाया और कहा, ‘ क्या तुम्हे अलग से कहना पड़ेगा बच्चू.... देख... तेरा धंधा भी शराफत से कर वरना मुझसे बुरा कोई न होगा |’

बच्चू के लिए भी अब कोई रास्ता नहीं बचा था इसलिए वो भी वहा से निकल गया और पुलिस भी उस लड़की को ले के निकल गए |

सूरज ये देख के खुश हुआ और बोला, ‘देखा ये है इमानदार पुलिस की ताकत... बच्चू को भी भागना पड़ा |’

गुलाबो सूरज की ये बात सुनकर हंसने लगी.... उसकी हंसी रुक नही रही थी | सूरज भी नहीं समज रहा था की गुलाबो की हंसी रुकती क्यू नहीं ?

‘तुम सचमुच बुध्धू हो.... ये अंडरवर्ल्ड की दुनिया तुम्हारे समझ के बहार है....!!’ गुलाबो फिर हंस रही थी |

‘क्या...?’

गुलाबोने अपनी हंसी रोक दी और ऐसी सच्चाई को कहने लगी की जो कोई सोच भी नहीं शकता.... और ये सच्चाई सुनते ही सूरज के रोंगटे खड़े हो गए.....

क्रमश: .........