नियति
सीमा जैन
अध्याय - 1
शिखा की सबसे प्रिय सखी दीपा उसे बार-बार अपनी बहन रिया की शादी के लिए इंदौर चलने का आग्रह कर रही थी । शिखा जानती थी अगर विवाह समारोह भोपाल में होता तो उसकी मां कभी इनकार नहीं करती लेकिन दूसरे शहर जाने की आज्ञा वे नहीं देंगी । वह दीपा को समझाने की निरंतर कोशिश कर रही थी पर दीपा मान नहीं रही थी। मन तो शिखा का भी बहुत था पर मां को समझाना नामुमकिन था । मां के अलावा उसकाऔर कोई नहीं था, इसलिए मां की इच्छा का मान रखना आवश्यक समझती थी । लेकिन दीपा भी हार मानने वाली नहीं थी अपने माता पिता को लेकर शिखा के घर आ धमकी।
गुप्ता जी और उनकी पत्नी पुष्पा ने निमंत्रण पत्र देते हुए शालिनी से भी अपनी बेटी के साथ चलने का आग्रह किया। लेकिन शालिनी कॉलेज में प्रोफेसर थी, उसको छुट्टियां नहीं मिल सकती थी। जवान लड़की को दूसरे शहर भेजने का उसका मन बिल्कुल नहीं था । लेकिन पुष्पा ने आग्रह करते हुए शालिनी से कहा, "शालिनी जी मैं समझ सकती हूं मां को बेटी की कितनी चिंता रहती है। मेरी भी दो बेटियां हैं मैं भी उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहती हूं। इसलिए आश्वासन देती हूं कि शिखा की सुरक्षा की जिम्मेदारी मेरी है। मैं स्वयं उसका ध्यान रखूंगी । "
शालिनी को बार-बार मना करते हुए शर्मिंदगी तो महसूस हो रही थी लेकिन उसका मन नहीं मान रहा था ।
वह बोली, " नहीं बहन जी आप गलत समझ रही हैं। मैं शिखा के बिना एक दिन नहीं रह सकती चार पांच दिन का तो प्रश्न ही नहीं उठता। वह भी मेरे बिना नहीं रह पाएगी। "
पुष्पा शिखा को अपनी दोनों पुत्रियों की तरह ही प्यार करती थी । उसने एक बार और कोशिश की, वह बोली, " आजकल लड़कियां पढ़ने विदेश और दूसरे शहर जाती हैं। आप भी शिखा को थोड़ी आज़ादी दो, नहीं तो कल पराये घर जाकर कैसे रहेगी आपके बिना और आप भी कैसे रहोगी उसके बिना। "
शालिनी बोली, " मैं सब जानती हूं लेकिन मन नहीं मानता शिखा को अपने से दूर भेजने का। "
पुष्पा ने एक आखरी प्रयास किया, " आप निश्चिंत रहे, वहां हम मेरी बहन के घर में ठहरेंगे। वहीं विवाह समारोह का सारा प्रबंध है। उनका घर इतना बड़ा है कि सब रिश्तेदार वहीं रुकेंगे। घर जैसा माहौल रहेगा, शिखा का दीपा के साथ ठहरने का इंतजाम रहेगा। आप बिल्कुल निश्चिंत रहें। "
शालिनी निरुत्तर हो गई, बेटी की आंखों में आशा और गुप्ता दंपति के अनुनय विनय ने उसको हामी भरने पर मजबूर कर दिया। कलेजें पर लगा मानो भारी पत्थर रख दिया हो किसी ने। दीपा और गुप्ता दंपति के जाने के बाद अपने को नियंत्रित करके थोड़ी देर बाद बोली, " एक हफ्ता है तुम्हारे जाने में, कपड़े वगैरह देख लो कुछ चाहिए हो तो खरीद लेंगे। "
शिखा खुशी से उछल पड़ी है, "सच में मां नए कपड़े खरीदेंगे। "
शालिनी बोली, " हां इतने लोगों के बीच में कपड़े तो सही होनी ही चाहिए ना। " शिखा बहुत प्रसन्न थी, जानती थी मां को उसका कहीं बाहर आना-जाना बिल्कुल पसंद नहीं । उसकी समझ में नहीं आता था मां उस को लेकर इतनी चिंतित क्यों रहती, हर वक्त उस पर निगाहें गड़ाए रहती । उसके कपड़ों को लेकर भी बहुत सतर्क रहती । स्कूल भी ऐसा चुना जो केवल लड़कियों का था । बारहवीं में अच्छे अंक आए थे, लेकिन जिस कॉलेज में पढ़ाती थी उसका दाखिला भी वही करवाया। उसका और अच्छे महाविद्यालय में दाखिला हो सकता था लेकिन मां की दलील थी आने जाने में कोई परेशानी नहीं होगी और शुल्क भी कम लगेगा। मां के साथ कॉलेज आती और जाती। किसी सहेली के घर जाना होता तो मां को उसके परिवार की पृष्ठभूमि से अवगत कराना पड़ता, कोई बड़ा भाई है तो ऐसे घर में जाना वर्जित था । सहेलियां उसका मजाक बनाती, मां को उसका बॉडीगार्ड कहकर बुलाती। उसने इन बातों का बुरा मानना बंद कर दिया था। शायद पिता का कम उम्र में देहांत होना या और कोई रिश्तेदार का न हो ना कारण हो सकता था, मां का उसको लेकर इतना सुरक्षात्मक रवैया। जब कभी वह मां से रिश्तेदारों के बारे में पूछती तो शालिनी का एक ही उत्तर होता, "मैं और तुम्हारे पिता अपने अपने मां-बाप की इकलौती संतान थे। हम दोनों के मां पिताजी के देहांत के बाद अब हमारा कोई रिश्तेदार नहीं है । "
शिखा को पिता की शक्ल भी याद नहीं, जब दो साल की थी उनका सड़क दुर्घटना दुर्घटना में देहांत हो गया था । दो तीन तस्वीरें थी उनकी जिससे एक छवि उसने अपने पिता की दिल में उतार रखी थी । अलमारी में कपड़े तो कम नहीं थे लेकिन अधिकतर जींस टॉप ही थे । दीपा को वहां पांच दिन रहना था, इतने रिश्तेदार होंगे । सारा दिन कुछ ना कुछ कार्यक्रम चलता रहेगा, ऐसे में कुछ पारंपरिक पोशाकें होनी आवश्यक थी। पहली बार किसी विवाह समारोह में इस तरह सम्मिलित होने जा रही थी इसलिए बहुत उत्साहित थी। मां पर अधिक बोझ नहीं डालेगी लेकिन तीन पोशाकें, संगीत समारोह, सगाई और शादी के समारोह के लिए तो चाहिए ही थी । चप्पले भी लेनी पड़ेगी वह तो अक्सर जींस पर जूते ही पहन कर घूमती रहती थी। खरीददारी को लेकर भी वह बहुत उत्साहित थी। अपनी खुशी किसी से बांटना चाहती थी लेकिन मां बहुत कम बोलती थी। कॉलेज में पढ़ा कर थक जाती थी और पूजा पाठ में लगी रहती थी। दीपा से बात करने के लिए फोन मिलाया तो उसने उठाया नहीं, सो गई होगी देर भी बहुत हो गई थी।
अगले दिन खरीददारी करने मां बेटी बाजार गई। संगीत समारोह के लिए शिखा ने एक लहंगा पसंद किया, गुलाबी जॉर्जेट का लहंगा था । शिखा ने जब पहन कर देखा तो शालिनी का दिल धक रह गया। शिखा सुंदर थी इस बात में कोई शक नहीं था । लेकिन अधिकतर सादे लिबास में रहती बनने ठनने पर ध्यान नहीं देती थी इसलिए उसकी खूबसूरती उभरकर नहीं आती थी । पढ़ाई लिखाई और बैडमिंटन बस इन दो काम के अलावा कुछ नहीं अच्छा लगता था उसे। अच्छा खेलती थी कई ट्रॉफी मिली थी। पारंपरिक पोशाक में उसका रूप निखर कर आ रहा था। सगाई के लिए अनारकली कुर्ता पजामा, शादी समारोह के लिए साड़ी खरीदी। पतले से बार्डर और मोतियों की कढ़ाई के छोटे-छोटे बूटे वाली हल्के पीच रंग की साड़ी उस पर बहुत फब रही थी। तीनों पोशाकों से मेल खाती चूड़ियां और झुमके भी खरीदें। गोरे गोरे हाथों में चूड़ियां खिल रही थी और झुमके चेहरे को चार चांद लगा रहे थे । शालिनी को लग रहा था उसके मन में जो अपने अतीत को लेकर डर था वह कहीं ना कहीं उसकी परवरिश पर हावी हो गया था। उसने शिखा के व्यक्तित्व को निखरने ही नहीं दिया, उसके अंदर की नारी को दबा दिया जो अपने नैसर्गिक गुण बनाव श्रृंगार को लालायित रहती है।
अगले हफ्ते शिखा जाने की तैयारी में व्यस्त रही। कभी चेहरे पर मेकअप करके देखती तो कभी तरह-तरह के केश विन्यास बनाती। कभी यह कार्यक्रम दीपा के घर चलता तो कभी दीपा शिखा के घर आ जाती। बेटी को खुश देखकर शालिनी को अच्छा तो लगता लेकिन कहीं ना कहीं दिल व्याकुल हो जाता। बेटी बड़ी हो रही है कब तक उसे बांध के रखेगी।
शिखा ने सामान बांध लिया था। वह इतनी उत्साहित थी कि मां की उदासी की तरफ उसका ध्यान नहीं गया। इंदौर जाने के लिए गुप्ता जी ने एक बस कर ली थी । शिखा का दीपा के घर आना जाना बहुत था इसलिए गुप्ता जी के अधिकतर रिश्तेदारों को वह जानती थी। दीपा के पिताजी सबसे बड़े थे और उनके तीन छोटे भाई और दो बहने अपने परिवार के साथ अक्सर दीपा के यहां आते जाते रहते थे। सब भोपाल में या आसपास ही रहते थे। उनके छोटे-छोटे बच्चे दीपा और शिखा को घेरे रहते, चाचियां और बुआएं भी शिखा को पसंद करतीं थीं। बस में गाते बजाते खाते पीते कैसे समय निकल गया पता ही नहीं चला। एक दो बार उसे मां का उदास चेहरा ध्यान आया लेकिन उसने जानबूझकर अपना ध्यान वहां से हटा लिया। इस यात्रा का संपूर्ण आनंद उठाना चाहती थी । उसे वैसे भी घूमने फिरने के मौके मिलते ही नहीं थे। रिश्तेदारी कोई थी नहीं और दूसरे शहर जाने के नाम से मां घबराती थी। कॉलेज की ओर से जो यात्रा के कार्यक्रम बनते थे उसमें वह मां के साथ जाती थी, पहले जब छोटी थी तब बिल्कुल नहीं मज़ा आता था। बड़ी-बड़ी लड़कियों अपनी मौज मस्ती में लगी रहती और मां इंतजाम करने में। इन यात्राओं का इंतजाम देखना मां की नौकरी का हिस्सा था । शिखा के रहने का कोई और बंदोबस्त नहीं था इसलिए उसे जाना पड़ता था । कॉलेज का विद्यार्थी होने के बाद से उसे घूमने में मजा आने लगा । सहेलियों के साथ घूमना फिरना गप्पे लड़ाने में उसे बहुत आनंद मिलता। मौज मस्ती करते करते कब इंदौर पहुंच गए पता ही नहीं चला।
बस एक आलीशान कोठी के सामने जाकर रुक गई । कोठी बहुत विशाल और खूबसूरत बनी हुई थी। उसके सामने बेहतरीन पौधों से सुसज्जित बगीचा था जिसकी देखभाल में कोई कमी नहीं छोड़ी गयी थी। किसी कोने में कोई अनचाहा फूल या पत्ता नहीं था। केवल शिखा ही अवाक नहीं थी उस कोठी को देख कर, दीपा के रिश्तेदार भी एक बार को दंग रह गए। शोर मचाते बच्चे और बड़े सब चुप हो गए।
दीपा की मौसी सुमन सब का स्वागत करने के लिए बाहर आईं। सुमन पुष्पा से आठ दस साल बड़ी थी और ठहरी हुई सौम्य औरत थी। पहली दृष्टि में शिखा के मन में उनके लिए आदर भाव उत्पन्न हो गया। सुमन सबसे आगे बढ़ बढ़ कर बोल रही थी, सबको प्रेमपूर्वक अंदर ले गईं। चाय नाश्ते का इंतजाम कर रखा था, नौकर चाकर घूम घूम कर सबको पानी और नाश्ते के लिए पूछ रहे थे । यात्रियों का सामान सुनिश्चित कमरों में पहुंचा दिया गया था। अंदर घर में फूलों की भव्य सजावट देख लग रहा था शादी की तैयारी चल रही है। भूख तो किसी को अधिक नहीं थी रास्ते पर खाते आए थे लेकिन गरम गरम चाय पीने की इच्छा अवश्य थी। बड़े चाय पीने बैठ गए और बच्चें ठंडा पी रहे थे। बैठक हाल जैसा बड़ा था जिसमें एक से एक कीमती साजों सामान था। बच्चों को उछल-कूद की जगह मिल गई थी। लेकिन उनकी मम्मी उनके पीछे चिल्लाते हुए उन्हें पकड़ने के लिए भाग रहीं थीं, कहीं कुछ टूट न जाए। सुमन हंसते हुए बोली, " बच्चों को खेलने दो रोको मत, इतने दिनों बाद इस घर में बच्चों की किलकारियां सुनकर बहुत अच्छा लग रहा है । समान के टूटने की चिंता मत करो आराम से रहो, घर है कोई अजायबघर नहीं। "
धीरे-धीरे सब अपने कमरों में चले गए आराम करने । दीपा शिखा और रिया तीनों को एक बड़ा कमरा मिला था ठहरने के लिए, अपना सामान यथास्थान रखकर तीनों आराम से बैठ गई। शिखा को दीपा की मौसी के बारे में जानने की उत्सुकता हो रही थी। कमरे में किसी नौजवान का बहुत बड़ा पोस्टर नुमा फोटो लगा था और कसरत का सामान रखा हुआ था। यह किस का कमरा है शिखा की समझ में नहीं आ रहा था। रिया का फोन आ गया वह शरमाते हुए बाहर बालकनी में चली गई ।
दीपा हंसते हुए बोली, " अभी इतनी बेचैनी, दोनों फोन पर चिपके रहते हैं और कुछ दिनों बाद देखना कैसे एक दूसरे से बचते फिरेंगे। "
शिखा दीपा से बोली, " मैं तेरे पापा की तरफ के अधिकतर रिश्तेदारों को जानती हूं, लेकिन तेरी मम्मी के रिश्तेदारों को नहीं जानती। "
दीपा लेटते हुए बोली, "मेरी मम्मी दो बहने ही हैं, नाना नानी की मृत्यु हो गई है। मासी जी बड़ी होने के कारण हमारे घर कम आती हैं। हम जब तब छुट्टियों में यहां आ जाते हैं। "
शिखा उत्सुकता से बोली, " मौसा जी नहीं दिखाई दे रहे । "
दीपा ने ठंडी सांस भरकर कहा, " उनकी लंबी बीमारी के बाद 4 साल पहले मृत्यु हो गई थी । मासी के दो बेटे हैं, बड़े विकास भाई अमेरिका में अपनी पत्नी के साथ रहते हैं। एमबीए करके वही सेटल हो गए हैं। उनके यहां बेबी होने वाला है इसलिए मासी चार महीने बाद अमेरिका जा रही हैं, एक साल के लिए। दूसरा बेटा रोहन यहां रहता है, रोहन भाई पारिवारिक व्यापार संभाल रहा है मौसा जी की बीमारी से व्यापार ठप हो गया था, जमा पूंजी भी खर्च हो गई थी। रोहन भाई ने व्यापार संभाल लिया और कहां से कहां पहुंचा दिया। इतना आलीशान मकान बनवा लिया। आज उनके पास सब कुछ है और सबसे बड़ी बात है सब कुछ अपने दम पर किया है। "
शिखा बहुत ध्यान से सब कुछ सुन रही थी। रोहन की एक छवि उसके मन में उतरती जा रही थी।
शिखा ने उत्सुकता वश पूछा, "तो रोहन और उनकी पत्नी कहां हैं?"
दीपा हंसते हुए बोली, " रोहन भाई ने अभी तक शादी नहीं की है, लेकिन कुछ उल्टा सीधा मत सोचना उनके बारे में । वे हमसे आठ साल बड़े हैं, बहुत गंभीर और परिपक्व है। वे किसी हम उम्र और मैच्योर लड़की से ही शादी करेंगे । बहुत बड़े बड़े घरों से रिश्ते आ रहें हैं, पर भाई को अभी तक कोई पसंद नहीं आई है। एक खन्ना परिवार है उनके यहां रिश्ते की बात चल रही है, बहुत पैसे वाले हैं कारखाने हैं दुकानें हैं । पारुल नाम है उसका भाई के साथ बचपन से एक ही स्कूल में पढ़ी है। "
शिखा रोहन के बारे में और जानना चाहती थी उसने पूछा, "तो क्या दोनों एक दूसरे को चाहते हैं?"
दीपा बोली, " यह मुझे नहीं मालूम, भाई का अभी शादी करने का कोई इरादा नहीं था। लेकिन दोनों परिवार की तरफ से दबाव अधिक होने के कारण सगाई के लिए तैयार हो गए हैं। अभी व्यापार के काम से चाइना गए हुए हैं । शादी में भी सम्मिलित नहीं हो रहे उनका कार्यक्रम बहुत पहले से निश्चित था । दो दिन का अंतर पड़ रहा है, शादी होने के दो दिन बाद आएगे। फिर एक-दो हफ्ते में उसकी रोका की रस्म हो जाएगी। हो सकता है मासी जाने से पहले ही उनकी शादी करवा दे। हनीमून के लिए दोनों अमेरिका चले जाएं, बड़े भाई से भी मिलेंगे घूमना भी हो जाएगा। "
शिखा को सुनकर कुछ अच्छा नहीं लग रहा था । उसको मायूस देख दीपा बोली, "वैसे भाई एक नेक इंसान है, लेकिन जिद्दी और गुस्से वाला है । उनके बारे में अधिक मत सोच, वहां दुख के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा। "
शिखा को लगा चेतावनी मिलने में कुछ देर हो गई थी।
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