मन कस्तूरी रे - 14 Anju Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मन कस्तूरी रे - 14

मन कस्तूरी रे

(14)

अँधेरे की काली चादर को हौले से सरकाकर सूरज ने पहली किरण को एक इशारा किया और उसने आहिस्ता से धरती की सतह की ओर बढ़ना शुरू किया! इधर उषा ने आँखें खोली और उधर पक्षियों ने अपने पंख संवारने शुरू किये! उनकी चहचहाहट से गुलजार होने लगी पूरी कायनात! गिलहरियाँ पेड़ों की जड़ों में दौड़ रही हैं, हवा से पत्ता लहराकर सुबह का स्वागत कर रहे हैं! सूर्य का साथ घोड़ों वाला स्वर्णिम रथ अब धरती तक पहुँच चुका है! पत्ता पत्ता बूटा बूटा सुबह की अगवानी को तैयार खड़ा है! हर ओर उल्लास और ताजगी का वातावरण है!

दुनिया की सुबह हो चुकी है पर स्वस्ति के मस्तिष्क पटल पर अभी भी अंधकार की छाया है! उसे याद ही नहीं कि कल रात कब उसकी आँख लग गई थी। देर रात तक वह बालकनी में थी! अपनी सोच में डूबी वह रात ढलने से बेखबर जब कमरे में आई थी तो ठंड से उसके बेअसर मन के ठीक विपरीत उसके जिस्म ने शायद ठंड के प्रभाव को ग्रहण कर लिया था! वह नींद थी या अर्धबेहोशी नहीं जानती स्वस्ति क्योंकि उसे अब कुछ याद नहीं कि उसके बाद क्या हुआ था!

अब बीती पिछली आधी रात के बाद की कोई याद उसके जेहन में बाकी न थी! अपने माथे पर गीले से, ठंडे से स्पर्श से उसकी आँख खुली तो उसने पाया कि सुबह हो चुकी है। ये क्या...उसका सिर तो शायद बुखार से तप रहा है। कनपटियाँ जैसे आग उगल रही हैं पर माथे पर ठंडक है! उसे बुखार बहुत ज्यादा तेज है शायद! उसने आँखें खोलने का यत्न किया तो सब धुंधला गया! उसने घबराकर आँखें बंद कर ली! कुछ सेकंड बाद उसने फिर से कोशिश की! नींद के अँधेरे की अभ्यस्त उसकी आँखें अब रोशनी को अपना रही थीं! धुंधली आँखों के सामने का चेहरा धीरे-धीरे अब स्पष्ट हो रहा है। यह कार्तिक है जो उसके माथे पर गीली पट्टी रख रहा है। पास में डॉक्टर साहब बैठे हैं। डॉ घोष जो उनके फॅमिली फिजिशियन हैं! उसे क्या हुआ है कुछ समझ नहीं आ रहा! ये सब यहाँ किसलिए हैं और माँ कहाँ हैं? नजर घुमाने पर उसने माँ को सिरहाने खड़ा पाया! उसने कुछ कहना चाहा, शायद वह कुछ पूछना भी चाहती है पर कार्तिक ने इशारे से मना कर दिया। डॉक्टर ने एक बार उसका चेकअप किया! अब वे बोल रहे हैं! माँ डॉक्टर की सलाहें बड़े गौर से सुन रही हैं।

कुछ ख़ास नहीं मिसेज कुमार .......मौसमी बुखार है। ठण्ड लग जाने की वजह से हुआ। दवा दीजिये, उतर जाएगा। चिंता की कोई बात नहीं। तबियत ठीक नहीं हुई तो शाम को क्लिनिक ले आइयेगा। ये सब कहते हुए डॉक्टर घोष और उनके उत्तर पर आश्वस्ति और सहमति के मिले-जुले भाव से सिर हिलाती हुई माँ, वे दोनों कमरे से बाहर चले गए।

कार्तिक होले से फुसफुसाया, “डियर, क्यों परेशान करती हो आंटी को! मुझे बुलाना था तो एक कॉल कर देतीं! पर नहीं.... मैडम को तो पूरी अटेंशन चाहिए! वह फिर से कुछ बोलना चाह रही थी पर इस बार फिर चुप हो गई क्योंकि कुछ क्षणों बाद माँ नाश्ते की ट्रे और दवा लिए सामने खड़ी हैं।

अब तक उलझन में थी स्वस्ति पर अब बिना किसी के कुछ बताये ही तस्वीर साफ़ हो रही थी। वह समझ गई थी बाहर बालकनी में देर तक बैठने पर ठण्ड लग गई होगी और बुखार आ गया होगा। यूँ भी उसे जब भी बुखार आता है तो कम नहीं आता! एकदम 103-104 डिग्री तक पहुँच जाता है। माँ इन दिनों व्यस्त हैं! उनके स्कूल में एक सेमिनार का आयोजन है! माँ ने ही कार्तिक को कॉल किया होगा और वह कुछ मिनटों में ही ऑफिस की बजाय डॉक्टर के साथ यहाँ हाज़िर हुआ होगा।

कार्तिक के साथ सुनंदा आंटी भी आई थीं! नाश्ता बनाकर माँ को स्कूल जाने का बोलकर अभी अपने घर गई हैं अंकल को नाश्ता कराने के लिए! कार्तिक तब से वहीँ है, स्वस्ति के पास! वह पूरी गंभीरता से माँ के हाथ से स्वस्ति की दवाएं संभाल रहा है! माँ बता रही हैं, कब कौन सी दवा देनी है! अब माँ वाकई आश्वस्त हैं। उन्हें देर हो रही है स्कूल के लिए। कार्तिक उसके माथे पर पट्टियाँ रख रहा है! माँ तैयार होकर उसके बेड के पास खड़ी असमंजस में उसे निहार रही हैं! स्वस्ति को छोड़कर जाने का उनका मन नहीं है पर उसके मुंह से थर्मामीटर निकालकर चैक करते कार्तिक ने उन्हें फिर से आश्वस्त किया,

आंटी, आप जाइये! मैं आज पूरा दिन स्वस्ति के पास हूँ! दवा मुझे मालूम है! मम्मा दलिया बना देंगी! आप बिल्कुल चिंता मत कीजिये!

कार्तिक की इस बात ने माँ की उलझन के रंग को थोड़ा हल्का कर दिया! कार्तिक के लगातार पट्टियाँ रखने से बुखार कुछ कम हो चुका है! माँ ने स्वस्ति के माथे को चूमा! कार्तिक ने फिर माँ को इशारे से जाने को कहा! उसके इशारे में एक तसल्ली भरा अपनत्व था! हाथ के इशारे पर स्वस्ति को उसकी देखरेख में छोड़कर अब माँ स्कूल जा रही हैं। कार्तिक अब पट्टी टेबल पर रखी ट्रे में रखकर छोटे से तौलिए से स्वस्ति का चेहरा पौंछ रहा है!

एक और खास बात हुई, स्वस्ति ने महूसस किया, माँ अकेले नहीं जा रही हैं! उनके साथ ही कार्तिक के भीतर के उस बच्चे को भी जाता देख रही है स्वस्ति जो उसकी अपरिपक्वता की याद दिलाता रहा है स्वस्ति को। कार्तिक के कई नए रूप देखे उसने पिछले दिनों! उसने महसूस किया कार्तिक को लेकर एक अजीब तरह के पूर्वाग्रह से ग्रस्त रही है उसकी सोच! कार्तिक खुशमिजाज़ है, मज़ाकिया है पर गैरजिम्मेदार तो बिल्कुल भी नहीं है! स्वस्ति को याद है पिछले दिनों अंकल की बीमारी और आंटी की टेंशन को पूरी परिक्वता से हैंडल करते हुए वह बिल्कुल अलग तरह से पेश आता रहा है! उसका व्यवहार इतना भी बचकाना नहीं है जितना स्वस्ति माँ बैठी है। यही तो शिकायत रही है उसे। हैरान है स्वस्ति, कितनी समझदारी से उसने सारी सिचुएशन को संभाल लिया न।

उसने महसूस किया कुछ भी तो स्थायी नहीं होता। बस स्थायी होता है तो हमारा पूर्वाग्रह! भिन्न-भिन्न व्यक्तियों को लेकर हम अपनी सोच के अनुसार उनकी छवियाँ गढ़ लेते हैं और उनके ही अनुसार जीवन जीने, व्यवहार करते रहने की, अपेक्षाएं रखने की जिद पाल लेते हैं जबकि सत्य यही है कि कुछ भी स्थायी नहीं होता। जैसे वह बदली है इन महीनों में, शेखर बदले हैं, वैसे ही कार्तिक का व्यवहार भी बहुत बदल गया है। एक खिलंदड अपरिपक्व युवक से इतनी अपेक्षायें तो नहीं थी स्वस्ति को पर कार्तिक का व्यवहार उसे शर्मिंदा करने की हद तक, उसकी सारी धारणाओं को पीछे छोड़ रहा है। ये सुबह उसके जीवन में नया उजाला लेकर उगी है! उसकी सोच को मिल रही नयी दिशा के तय होने का प्रस्थान बिंदु है यह सुबह! उसके मन के गुंजलकों को अब सुलझना ही होगा! बेहद जरूरी है स्वस्ति का उन बनी बनाई छवियों के चक्रव्यूह से बाहर निकलने की कोशिश करना! स्वस्ति ने कोशिश शुरू तो कर दी है! कोशिशें ही कामयाब होती हैं, माँ कहती हैं! इस कोशिश को भी कामयाब होना होगा! अपने मन को अवसाद के गहरे अँधेरे में भटकने के लिए नहीं छोड़ सकती स्वस्ति! वह कसकर सुबह का दामन थाम रही है, उसकी झोली अब उजाले की किरणों से भरने लगी है!

अब कैसी हो बेटा?”

सुनंदा आंटी की आवाज़ से उसका ध्यान भंग हुआ तो वह अपनी सोच के दायरे से बाहर आकर धीमे से मुस्कुराई! सुनंदा आंटी ने उसका गाल थपथपाया और माथे को छूकर उसके बुखार का अहसास करना चाहा! बुखार के उतरने के अहसास ने उनके चेहरे से तनाव को दूर कर दिया! वे स्वस्ति के लिए दलिया बनाने के लिए किचन में चली गईं!

बीच माँ का फोन आया था! सेमिनार के बीच में ब्रेक में भी वे स्वस्ति की चिंता में थीं तो उसका हाल लेने के लिए उन्होंने कार्तिक को फोन किया! बुखार उतर गया जानकर उनकी चिंता थोड़ी तो कम हुई होगी, स्वस्ति सोच रही थी!

कार्तिक उसे अपने हाथ से दलिया खिलाने रहा है। स्वस्ति का बिल्कुल मन नहीं था पर कार्तिक को उसका इंकार स्वीकार नहीं! मन न होने पर भी उसकी मनुहार के आगे नत है स्वस्ति। उसके हाथ से दलिया खाते हुए स्वस्ति एक बार भी उसके चेहरे से नज़रें नहीं हटा पा रही है। वह चम्मच से उसे दलिया खिला रहा है और स्वस्ति की निगाहें एकटक उसके ही चेहरे पर लगी! इस बीच वह हौले से मुस्कुराया! नाश्ते के बाद उसने उसका बुखार चैक किया, फिर थर्मामीटर ट्रे में रखकर कार्तिक ने उसे दवा दी, नैप्किन से मुंह साफ किया और हाथ के सहारे से बिस्तर पर लिटा दिया!

पूरी दोपहर वह उसके साथ रहा है! दोपहर बीत रही है और स्वस्ति ने आँखे मूंद ली हैं! कार्तिक धीमे से उसके बालों में उँगलियाँ फिराने लगा। दवा अपना काम कर रही है और ये दवा का ही असर है कि स्वस्ति की पलकें बोझिल हो रही हैं। वह नींद की दुनिया में लौट रही है। कार्तिक ने हौले से उसे कंबल ओढा दिया और प्लेट उठाकर किचन में चला गया।

कोई दो घंटे सोती रही स्वस्ति। शाम को आंख खुली तो सुनंदा आंटी सामने ही थीं। स्वस्ति की दूसरी माँ जो पारम्परिक माँ होने के सारे लक्षणों के साथ मौजूद थीं। दवा से पसीना आने पर उसने कंबल हटा दिया था! कंबल हो हटा देखकर आंटी ने फिर से उसे कंबल ओढा दिया और उसे ठंड में लापरवाही करने के लिए मीठी डांट खिलाने के बाद आंटी किचन में उसके लिए खिचड़ी बनाने लगीं ताकि वह कड़वी दवा खाने के लिए फिर से तैयार हो सके। डॉक्टर ने हल्का फुल्का खाने को कहा है! उसे दलिया बिल्कुल पसंद नहीं पर सुनंदा आंटी के हाथ ही खिचड़ी तो उसकी फेवरेट है!

इस बीच माँ भी स्कूल से लौट आयीं! बेहद थकी होंगी माँ! आंटी ने उन्हें खाना खिलाकर आराम करने उनके कमरे में भेज दिया! स्वस्ति की निगाहें कमरे का एक चक्कर लगा कर दरवाजे पर आकर स्थिर हो गईं हैं। कुछ ढूंढ रही हैं वह। क्या ढूंढ रही है स्वस्ति? उसकी तलाश पूरी हुई। सामने कार्तिक आ रहा है। उसके हाथ में दूध के पैकेट, फल और दूसरी कई चीजें हैं जिन्हें वह करीने से फ्रिज़ में जमाकर उसने फिर से थर्मामीटर निकालकर उसे पानी से धोने लगा। इससे पहले कि स्वस्ति कुछ कहे उसने थर्मामीटर उसके मुंह में लगा दिया और हंसते हुए प्लेट में रखकर एक सेब काटने लगा। तापमान नार्मल था इससे कार्तिक के चेहरे पर जो संतोष दिखाई दिया उसने गहराई से छू लिया था स्वस्ति के मन को। वह चुपचाप कार्तिक को देखते हुए बेमन से सेब कुतरने लगी।

रात होते-होते स्वस्ति को फिर बुखार चढ़ गया! इस बार कार्तिक उसे और माँ को लेकर डॉक्टर के क्लिनिक चला गया! डॉक्टर ने कहा भी था कि शाम को बुखार आये तो क्लिनिक ले आना! बुखार के उन क्षणों में चलती गाडी में स्वस्ति को जाने कैसे-कैसे विचार आ रहे थे! बीता समय जैसे किसी फिल्म की रील की भांति उसके मस्तिष्क पटल पर चल रहा था! उसके जीवन में शेखर का आना एक एपिसोड की तरह रहा जिसे वह पूरा जीवन मान बैठी थी! जीवन की सार्थकता को लेकर कई तरह के ख्याल उसके मन में कौंधने लगते तो मन गहन उदासी से भर जाता!

पर ये कार्तिक का साथ ही था जो हमेशा उसके अकेलेपन के कवच में सेंध लगाकर उसे वहां खो देने से बचा लेता! जैसे स्वस्ति का मन एक खुली किताब की तरह था जिसे पढने का हुनर जानता था कार्तिक! इन इन दिनों वह उसके और करीब आता जा रहा था! इतना करीब कि उसे लेकर स्वस्ति के मन की उलझनें अब सुलझने लगी थीं! उसके जीवन के भावनात्मक पक्ष के खालीपन को भरते हुए महसूस कर रही थीं माँ भी! अब तो उन्हें भी सुनंदा के इस भरोसे पर आश्वस्ति होने लगी थीं कि वक्त के पास ही उनकी हर समस्या का हल है और ये भी कि कार्तिक और स्वस्ति के बीच आई इस दूरी को केवल वे दोनों ही भर सकते कोई तीसरा नहीं!

नियति के पास उसकी अपनी योजनायें होती हैं, वृंदा! मानव की सब सोच, सब योजनायें कभी--कभी धरी रह जाती हैं! कुछ नहीं कर पाते हैं हम! ऐसे में सब कुछ समय पर छोड़ देना ही उचित है जब कुछ भी हमारे अपने वश में न रह जाये! जिस नियति ने इन्हें एक दूसरे के लिए गढ़ा है वही इन दोनों के बीच हर दूरी को भरेगी! समय पर भरोसा करो, सब ठीक हो जाएगा! उस दिन सुनंदा आंटी को कहते सुना था स्वस्ति ने, जब उन्हें लगा वह सो रही है! पर सोयी नहीं थी स्वस्ति! शायद वह अब जाग रही थी कई बरस लम्बी नींद से! और अब जागे ही रहना चाहती है स्वस्ति!

क्रमशः