मन कस्तूरी रे - 9 Anju Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मन कस्तूरी रे - 9

मन कस्तूरी रे

(9)

उस रात फिर से स्वस्ति के सपने में वह समय रेखा थी! मतलब समयरेखा पर अलग-अलग अंकों पर खड़े वे और शेखर! दोनों के बीच के फासले में छाए थे वे अंक जो उन दोनों के बीच के उम्र के फासले को दर्शाते थे! ये समयरेखा का सपना उसके मन की इच्छाओं का प्रतीक था या उसकी कामनाओं का ये जानना था स्वस्ति को! सुबह से मन इस सपने में उलझा था! उस दिन भीनी भीनी धूप खिली थी! स्वस्ति का मन हुआ रोशेल से मिलने और मिलकर अपना स्वप्न बतियाने का!

हे रोश...लेट्स मीट टुडे...मिसिंग यू अ लॉट! स्वस्ति ने व्हाट्स एप किया!

ओके डियर...कम टू माय प्लेस इन द इवनिंग.... एक चमकती आँखों वाले स्माइली के साथ रोशेल का जवाब आया!

उस शाम वे दोनों एक रेस्टोरेंट में बैठी अपनी मनपसंद डिश ऑर्डर कर रही थीं! ये उनका फेवरेट रेस्टोरेंट था जो दोनों को ही बराबर की दूरी पर होने के कारण तो पसंद ही था साथ ही वहां का चायनीज़ कुजीन भी इसकी एक वजह था जो रोशेल का फेवरेट था!

ह्म्म्म... स्वप्न...तो तुम्हे स्वप्न का अर्थ जानना है जानेमन पर पहले ये तो पता चले कि क्या देखा है तुमने सपने में?”

कुछ खास नहीं फिर से वही समय रेखा....उस पर मैं और शेखर....मुझे जानना है रोशेल इस स्वप्न का अर्थ....क्यों आता है बार बार ये स्वप्न?”

रोशेल के पास तो हर सवाल की चाबी है। उसके भीतर के कोट- गुरुने अंगड़ाई ली और सक्रिय हो गया। स्वस्ति को बिल्कुल हैरानी नहीं हुई कि रोशेल के पास इससे सम्बंधित कोट भी हैं। हाँ वह उत्सुक है सुनने के लिए। बेताब है जानने को कि उसके सपनों के बारे में रोशेल क्या बताती है।

तो चलो रोशेल गुरु, हो जाओ शुरू ... स्वस्ति मुस्कुराकर कहती है।

रोशेल गंभीर मुद्रा में दीवार ताकते हुए कहती है "फ्रायड के अनुसार स्वप्न हमारी उन इच्छाओं को सामान्य रूप से अथवा प्रतीक रूप से व्यक्त करता है जिसकी तृप्ति जाग्रत अवस्था में नहीं होती।"

आगे वह कहती है, "ये स्वप्न हमारी इच्छा का ही सृजन होते हैं और हमारी ही गहन इच्छाओं का परिणाम। देखो न मन एक और संसार गढ़ता है। हमारे ही संसार के समानांतर एक और संसार। हमारा स्वप्न संसार। हम ही इस स्वप्न संसार के पात्र होते हैं। स्वप्न संसार मजेदार है स्वस्ति, कभी खूबसूरत वन, उपवन, तो कभी सूखे पेड़। कभी मीलों तक फैलीं खामोशियां तो कभी कोलाहल से भरे कहकहे। स्वप्नों की सीमा कोई नहीं और स्वप्न संसार का विस्तार निस्सीम है।"

रोशेल की बात ने स्वस्ति को सोच में डाल दिया। स्वस्ति सोच का एक सिरा थाम रही है, यदि स्वप्न हमारी इच्छा का परिणाम होते हैं तो वे कौन सी इच्छाएं रही होंगी, जिन्होंने उसके और शेखर के बीच पसरे तमाम सालों के सफर पर जाना तय किया होगा। उसकी विदुषी सहेली के पास इसका उत्तर भी है। इसके पीछे के कारण ढूंढते हुए रोशेल कहती है,

स्वस्ति, तुम्हारे जीवन में एक बड़ा वैक्यूम है, तुम्हारे पिता का अभाव। सच तो ये है कि तुम शेखर में अपने पिता को ढूंढती हो, जिन्हे तुमने अपने जन्म से पहले ही खो दिया था।

क्या यही सच है वो रोशेल ने कहा। फिर सोचने लगी स्वस्ति। उसका मन अपने बचपन की गलियों में टहल रहा है। ये सच है उसकी माँ ने अकेले माँ से पिता बनते हुए पिता की गंभीरता, उनकी कठोरता को ओढ़ लेना चाहा जिसकी कोशिश में उनके हाथों से कब वात्सल्य की कोमलता फिसलती गई ये वे भी न जान सकीं। वे न पूरी माँ बन पाई और न ही पिता। उनके भीतर सदा एक द्वंद्व चलता रहता, उनके भीतर की माँ कभी पिता पर हावी हो जाती और कभी पिता माँ पर। इन दोनों में संतुलन बिठाने की कोशिश में निढाल हुई माँ को किताबों में निजात मिलती। पर पिता का अभाव तो स्वस्ति के जीवन का शास्वत अभाव बनकर रह गया। पर मन था कि रोशेल की बात को जैसे स्वीकार ही नहीं कर पा रहा था। वह शेखर में अपने पिता को ढूंढती है? शेखर उसका प्रेमी, उसका पुरुष है वह उसमें पिता को कैसे ढूंढ सकती है?

यथार्थ में उसके मन का एक हिस्सा इस व्याख्या में उलझा था पर जाहिर तौर पर उसने इस बेतुकी सी बात पर अपना प्रतिरोध जताया।

"रबिश, तुम कुछ भी बोलती हो रोशेल।"

"नहीं स्वस्ति, यह सच है, शेखर सर का साथ और स्नेह तुम्हारे अधूरेपन को पूरा करता है। तुम्हारे अवचेतन में कहीं न कहीं पिता की कमी रही जो तुम्हे उनके साथ में निहित दिखती है। इस 'मे-डेसेंबर' रोमांस में यही सबसे बड़ी रीज़निंग है स्वस्ति।" रोशेल अपनी बात के समर्थन में तर्क दे रही थी।

"और कार्तिक?" स्वस्ति पूछ बैठी।

"-----"

"कहो न रोशेल, तब कार्तिक का मेरे जीवन में क्या स्थान है?" रोशेल की चुप्पी पर अधीर हो उठी स्वस्ति।

"वह तुम्हारे भीतर की स्त्री को संतुष्ट करता है, जिसे स्नेह नहीं प्रेम चाहिए। देह की अपनी भाषाएँ हैं स्वस्ति और अपनी इच्छाएं। देह की यह भाषा प्रेमी जानते हैं। राग, रंग, स्पर्श, छुअन, चुम्बन, मनुहार और भी बहुत कुछ मन से एक कदम आगे है देह। जैसे तुम्हारे मन की जरूरतें हैं वैसे ही देह की भी अपनी जरूरतें हैं। क्या तुम नहीं चाहती तुम्हारा प्रेमी तुम्हे बाँहों में भरकर तुम्हे......" रोशेल की बात बीच में ही रह गई।

"उफ्फ, बस भी करो रोशेल। तुम और तुम्हारा फ्रायड।।।। सुनो ये तुम्हारा फ्रायड मुझे ज़रा भी नहीं भाता।" रोशेल के इस खुलेपन पर अचकचा उठी स्वस्ति। हालाँकि यह सच तो था जैसे शेखर ने उसके मन के रीतेपन को भरा वैसे ही जीवन के एक खालीपन को आज तक कार्तिक भरता आया था। कार्तिक के बिना भी तो वह अधूरेपन से भर उठती थी! उसके जीवन में कार्तिक का भी एक विशिष्ट स्थान था और इस बात से स्वस्ति को कभी कोई ऐतराज या इनकार नहीं था! वह मन की गहराइयों से ये बात जानती थी, ये और बात है कि आज रोशेल ने भी ऐसा ही कहा!

जब से रोशेल अहमदाबाद से वापिस लौट आया वह नियमित तौर से उससे मिलती तो है! एक दोस्त के तौर पर दोनों एक दूसरे से ज्यादा दिन दूर नहीं रह पाते हैं!

कुछ देर इधर उधर की बातचीत हुई, दोनों ने साथ खाना खाया और उसके बाद दोनों अपने अपने घर लौट चलीं!

शेखर हफ्ते भर को मुम्बई गये हैं एक साहित्यिक यात्रा पर! बड़ा बिज़ी शेड्यूल है उनका! दिन भर व्यस्त रहते हैं! आज का दिन स्वस्ति का भी बहुत व्यस्त बीता था! इस कॉलेज में उसकी नयी जोइनिंग है तो पूरा दिन लगभग एक अलग ही उधेड़बुन में बीता!

शाम बीत चुकी है और रात के आंचल में हल्की सी ठंडक है! स्वस्ति की ऑंखें बंद है! रोशेल के शब्द उसके मन में गूंज रहे हैं! वह पहुँच चुकी है इस बार राग, रंग, स्पर्श, छुअन, चुम्बन, मनुहार की दुनिया में। बालकनी में ठंडी हवा के झोंके में सिमटते हुए याद आया दो दिन से न तो कार्तिक नहीं आया था न ही उसका फ़ोन। इधर रोशेल भी तो वोकेशन पर ऋत्विक के साथ गोवा जा रही है। वो भी इतनी मस्त है कि न कोई कोई फोन न व्हाट्स एप। बस इन्स्टाग्राम पर कभी-कभार तस्वीरें अपलोड करती रहती है। चलो ठीक है न उसकी व्यस्तता बता रही है कम से कम वह तो अपने जीवन को पूर्णता में जी रही है।

इधर जब से कार्तिक वापिस इस शहर में लौटा है उनके बीच फिर से वही मुलाकातों का सिलसिला चल निकला है। ये और बात है कि पहल अब भी वही करता है। वह उसके और शेखर के रिश्ते के बारे में सब जानता है पर वह इस दोस्ती को खोना नहीं चाहता इसलिए वे लोग एक मूक समझौते पर हैं कि अमूमन उनके बीच कभी शेखर को लेकर कोई खास बातचीत नहीं होती। अभी कल शाम ही दोनों की लड़ाई हुई किसी बात पर और नाराज़ हो गया कार्तिक! गलती तो स्वस्ति की है न खामख्वाह झगड़ बैठी कार्तिक से! ऐसी तो कोई बड़ी बात भी नहीं थी लेकिन ये गलत है अगर उसे बेवजह नाराज़ किया है तो उसे मनाना भी तो स्वस्ति को ही पड़ेगा।

उसके अकेलेपन को कार्तिक की दोस्ती की बहुत जरूरत है। स्वस्ति को खुद पर अनायास ही गुस्सा आने लगा। कितनी सेल्फिश है न वह। अभी भी बस अपने एकांत अपने अकेलेपन के विषय में सोच रही है। कार्तिक का दिल दुखाया इसका कोई दुःख नहीं। इतनी हृदयहीन वह कैसे हो सकती है जबकि यह उसके सबसे प्यारे दोस्त, प्रिय साथी की बात है।

ट्रिंग ट्रिंग.....

घंटी को ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी।

अब तक नाराज़ हो, कार्तिक? अच्छा चलो न फिल्म देखने चलते हैं। ओके जो तुम कहो। तुम्हारी पसंद की फिल्म और फिर डिनर और कुजीन भी तुम्हारी पसंद का। ओके डन?” अँधा क्या चाहे दो आँखे। स्वस्ति के मीठे स्वरों ने सारी बर्फ पिघला दी और थोड़ी देर में ही कार्तिक उसके सामने था। आखिर वह स्वस्ति से अलग कैसे रह सकता है, नाराज़ कैसे रह सकता है? ये और बात है कि उसे मनाने के लिए स्वस्ति को उस शाम को डिनर के बाद नाईट शो में, कार्तिक की पसंद की, एक फालतू की बचकानी मूवी देखनी पड़ी।

उफ़, ये भी कोई फिल्म है। बड़े से मैदान में पचास बैकग्राउंड डांसर्स के साथ पीटी करते कार्तिक के नायक-नायिका जाने किस दुनिया के वाशिंदे थे। उसके पास झीनी शिफोन की सफेद, नाभिदर्शना साड़ी में बारिश में भीगती कामुक नृत्यरत नायिका थी, बीस गुंडों से एक साथ ढिशुम-ढिशुम करता नायक के रूप में महानायक था, बर्दाश्त से बाहर फूहड़ कॉमेडी वाले सीन थे और स्वस्ति के पास यदि कुछ था कार्तिक का स्पर्श।

सामने एक प्रणय दृश्य चल रहा था और उसका हाथ कार्तिक के हाथों में था। उसका हाथ थामकर, उसके कंधे पर सिर टिकाकर बैठना कितनी सुरक्षा से भर देता है स्वस्ति को। उसके करीब रहना कितने सुखद अहसास की अनुभूति है। कार्तिक भी तो अक्सर उसके मन को पढ़ लेता है।

उस रोमांटिक से गाने पर कार्तिक के हाथ पर उसका दबाव बढ़ गया था या नहीं स्वस्ति को इसका कोई अहसास नहीं! उसके कंधे पर एक हाथ रखते हुए वह उसकी ओर झुका और धीमे से उसके गाल को चूम लिया था कार्तिक ने। वह उसे चिढाते हुए या स्नेह से ऐसा अक्सर करता था पर आज का यह चुंबन कुछ अलग था। ठहराव से भरा गहरा, दीर्घ चुंबन था यह। इसमें कोई जल्दबाजी नहीं थी, कोई अतिरेक भी नहीं था। गहरे प्रेम से लबरेज था यह छोटा सा स्नेहिल चुंबन। बहुत दिनों बाद दोनों इतना करीब थे। न जाने क्यों अच्छा लग रहा था स्वस्ति को। उसका स्पर्श, उसका प्यार से उसका हाथ सहलाते रहना और धीमे से उसे चूम लेना, क्यों अच्छा लगा स्वस्ति को? उसने विरोध क्यों नहीं किया? वह तो मानती है न कि उसके प्रेम पर केवल शेखर का अधिकार है।

उसने कभी इस दृष्टि से सोचा ही नहीं था! एक मित्र के रूप में कार्तिक का स्पर्श उसके लिए कोई विचित्र अनुभूति नहीं थी! यह स्पर्श तो उसे हमेशा से स्वीकार्य रहा है पर आज कुछ तो अलग था। यह स्पर्श वर्जित हो न हो उससे जुड़ा यह सुखद अहसास, यह अनुभूति बेशक वर्जित है। स्वस्ति बार-बार यही सोच रही है कि उसे क्यों अच्छा लगा जब उसके हाथ को थामे हुए वह उसके करीब था, बेहद करीब। तो क्या रोशेल की व्याख्या परफेक्ट है? उसकी देह भी प्रेम में डूब जाने को आतुर है? क्या वह शेखर को बेतरहा मिस कर रही है? सिर्फ शेखर को ही या उसके स्पर्श को भी, या उसके सामीप्य को। ये प्रेम भी न...प्रिय की अनुपस्थिति में भी सदा उसकी उपस्थिति से लबरेज़ रखता है मन को और कभी-कभी तन को भी!

कैसे अजीब से खालीपन से भर गया है स्वस्ति का मन! इस कदर बेचैन कि उसे समझ नहीं आ रहा कि उसे हुआ क्या है! ऐसे जैसे कोई सदियों से प्यासा हो...उसका तन-मन उस प्यास से अधीर है जो उसे शेखर की याद दिला रही है! बिस्तर पर यही सब सोचते हुए स्वस्ति ने खुद को अपनी ही बाँहों में भर लिया। उसकी देह कसमसा रही थी, उसका मन विचित्र सी सुगन्धित अनुभूति से महक रहा था। उसे आज शेखर की बहुत जरूरत महसूस हो रही थी। शेखर की और उसकी बाँहों की जरूरत। मिस यू शेखर....कहते हुए उसने साइड लैंप की लाइट बंद कर दी। उसे रोशेल के शब्द याद आ रहे थे.. प्रेम... स्वप्न...फ्रायड और उसका अजीबोगरीब दर्शन! कल लाइब्रेरी जाकर वह भी रोशेल के फ्रायड को एक बार पढ़ने का सोच रही थी, पर बिना रोशेल को कुछ बताये।

क्रमशः