मन कस्तूरी रे
(13)
आज तेज धूप खिली है! लग रहा है जैसे ये धूप अपने साथ अवसाद के अँधेरे कोनों की कालिमा को कहीं दूर ले जाएगी! कॉलेज की छुट्टी है। स्वस्ति और माँ दोनों आज घर पर हैं! स्वस्ति ने तय किया आज कुछ समय वह केवल माँ के साथ बिताएगी। आज उसने खुद माँ की पसंद का नाश्ता बनाया। माँ को पोहे बहुत पसंद है न। उसने पोहे और अदरक वाली चाय बनाई और माँ को बहुत प्यार से नाश्ता खिलाया।
उसकी हर एक हरकत का आभास है माँ को! वे माँ हैं न, माँ सब जानती हैं। वे सब समझती हैं स्वस्ति के मन को। उसके अंतर्मन में चल रही उथल पुथल से वे कहाँ अनभिज्ञ हैं। उन्हें खूब पता है कि जिस भावनात्मक टूटन से स्वस्ति गुजर रही है उसमें खुश दिखने का दिखावा भी उसे करना होता है! किन्तु वे जानती है कब स्वस्ति खुश है और कब दिखावा कर रही है! अपनी सन्तति के चेहरे ही नहीं मन को भी पढ़ पाने का हुनर एक माँ बखूबी जानती है! शायद इसलिए कि सन्तान कुछ और नहीं माँ के ही तन और मन का एक हिस्सा है, अदृश्य डोर से बंधा दूसरा हिस्सा!
अपनी कॉफ़ी लेकर स्वस्ति बालकनी में आ गई। ये अकेलापन बहुत बुरी शय है। सचमुच बहुत ही बुरी! व्यक्ति अकेला हुआ नहीं कि चल पड़ता है ख्यालों का मिक्सर ग्राइंडर! अब, तब जब के साथ खींचे चले आते हैं क्यों, कब कैसे और कहाँ! क्योंकि अकेलेपन में मन के सवाल खूब सिर उठाते हैं। इन पिछले कुछ दिनों में अपने बर्ताव में हुई तब्दीली स्वस्ति को सोचने पर मजबूर कर रही है। सोचना तो लाजमी है! वह खुद जानने की इच्छुक है कि आखिर क्या हुआ है उसे। वह तो शेखर से प्यार करती है न। तो उसका मन यूँ यायावर क्यों हो चला है? कभी मन चाहता है, कार्तिक उसके साथ लाइब्रेरी वक़्त बिताये या वे दोनों बालकनी में बैठकर खामोश मोजार्ट की सिम्फनी सुनें और सुनते हुए शाम बिता दें। और.…… और कभी वह शेखर में कार्तिक को तलाशती है। वह चाहती है शेखर अपनी सारी गंभीरता भूलकर किसी युवा प्रेमी जैसा बर्ताव करें। उसका दिल चाहता है कभी किसी रोज ऐसा हो कि शेखर पीछे से आकर अचानक उसे बाँहों में भींचते हुए 'जानेमन' कहें और उसका गाल चूम लें।
कार्तिक में शेखर और शेखर में कार्तिक को तलाशना उसका नया शगल है और उसकी यह जद्दोजहद खुद उसकी भी समझ से परे है। अपनी इस कशमकश को नहीं समझ पाती है स्वस्ति! उसकी इस कशमकश का कोई हल है भी या वह अपने ख्यालों की उस समयरेखा पर यूँ ही शेखर और कार्तिक के बीच उदास, परेशान और हैरान खड़ी रहेगी।
ऐसे दुविधापूर्ण क्षणों में उसे रोशेल बहुत याद आती है! रोशेल के पाले में गेंदनुमा सवालों को भेजकर कितना हल्का महसूस करती है स्वस्ति! आज , इस समय रोशेल को बहुत मिस रही है स्वस्ति। वह तो गोवा में शादी की तैयारियों में उलझी है! उसे उसके जीवन के इस महत्वपूर्ण समय की तैयारी में स्वस्ति का साथ मिलना चाहिए, उसकी उलझनों की साझेदारी का दबाव नहीं! तो उसके तमाम सवाल अनुत्तरित से उसके इर्द गिर्द घूमते हुए जैसे एक भंवर बना रहे हैं और इस भंवर में वह अकेले खो जाने को अभिशप्त है।
उसने शेखर को फोन किया था इस बीच। पर वे इतने व्यस्त थे कि हाँ..हूँ...करके फोन रख दिया। उनके लेक्चर का टाइम हो गया होगा, स्वस्ति ने खुद को समझाया। पर मन को कैसे समझाये क्या कभी शेखर के पास वक़्त नहीं होता। वे खुद भी तो उसे कॉल कर सकते हैं। एक बार भी नहीं पूछा कैसी हो स्वस्ति? क्या मुझे मिस करती हो? क्या मुझसे दूरी तुम्हे भी उतना ही तड़पाती है? ये भी तो कह सकते थे, आई मिस यू स्वस्ति। तुम्हारे बिना बहुत अकेला हूँ मैं। तुम्हारी याद में न कटता है न रात। पर ये सब तो बचकानी बातें हैं। खुद स्वस्ति भी तो कहा करती है। फिर इतनी बचकानी बातें शेखर क्यों कहेंगे। आखिर वह कुछ ज्यादा ही उम्मीद नहीं कर रही है शेखर से?
उस रात इन्स्टाग्राम पर कुछ तस्वीरें पोस्ट की थीं शेखर ने! कितना रिलैक्स और खुश नजर आ रहे थे वे! उनके साथ भारत से गये उनके दल के कुछ साथी थे और कुछ अप्रवासी भारतीय भी! पोस्ट्स में टैग किये गए नामों को पढ़ते हुए कुछ चौंक गई थी स्वस्ति! उसने ये टैग जानबूझकर नहीं बस यूँ ही अनायास ही पढ़ लिए जो कि देर तक उन तस्वीरों को देखते हुए सामने आ गये!
‘सुपर्णा शिवराज’ ये नाम देर तक कौंधता रहा उसकी स्मृतियों में! शेखर से कोई दो बार ये नाम सुना है स्वस्ति है! इस नाम को कैसे भूल सकती है स्वस्ति और ये भी कि सुपर्णा इन दिनों लंदन में ही है! इसका मतलब शेखर मिले हैं सुपर्णा से! उन्होंने कभी नहीं बताया कि वे दोनों सम्पर्क में हैं! एक पल को स्वस्ति को लगा उसके इर्द गिर्द कुछ भी नहीं! एक बड़े शून्य में दिशाहीन भटक रही है स्वस्ति! दिशाहीन, उद्देश्यहीन, निरुपाय! शेखर के बदले व्यवहार के मूल में क्या इस बात का भी कोई सिरा है कि वे अपनी पूर्व-प्रेमिका के सम्पर्क में हैं और लंदन में उसके साथ हैं!
कुछ तय नहीं कर पा रही स्वस्ति! कभी लगता है ये दोनों ही बातें एक दूसरे की पूरक हैं और कभी लगता है कि वह व्यर्थ ही शक के जंजाल में फंसी अपने जीवन को जटिल बना रही है! इतनी परिपक्वता की उम्मीद तो उससे शेखर को भी होगी कि वह सुपर्णा से उनके सम्बन्धों और सम्पर्क को सहजता से ले!
उससे नहीं रहा गया तो शेखर को मेल कर हालचाल पूछ बैठी पर कोई उत्तर नहीं आया! कई मेल करने के बाद जवाब में आख़िरकार कल शेखर की मेल आई । कुछ खास नहीं... यही सब लिखा कि वे बहुत व्यस्त हैं और ये कि रोज उनके सेमिनार और कार्यक्रम हो रहे हैं। दो दिन पहले तक वे जर्मनी में थे पर वे अब जर्मनी से लंदन चले गए हैं। यह एक प्रोफेसर अपनी जूनियर को लिख सकता है। एक वरिष्ठ मित्र अपनी कनिष्ठ मित्र को भी लिख सकता है पर क्या कोई प्रेमी भी अपनी प्रेमिका को ऐसे ही लिखता है?
उसे याद आने लगे ऋत्विक के रोशेल को लिखे प्रेम में पगे मेसेजेस। ढेरों किस वाले इमोजिस से भरे मेसेजेज जैसे युवा लोग एक दूसरे को लिखते हैं, जैसे वह और रोशेल एक दूसरे को लिखते हैं या फिर जैसे कार्तिक उसे लिखता है पर ये क्या....ये इन दिनों शेखर की बात पर उसे कार्तिक क्यों याद आने लगता है। वह वाकई बदल रही है! वह शेखर से अपने रिश्ते को लेकर कशमकश में जरूर रहती आई है और शेखर और कार्तिक के चयन को लेकर तो उसके मन में कभी कोई कशमकश, कोई सवाल, कोई उलझन कभी थी ही नहीं! पर आजकल ऐसा नहीं होता! वह जब भी शेखर के विषय में सोचती है जाने क्यों अनायास ही, अनामंत्रित ही कार्तिक का ख्याल अपने आप उसके जेहन में जगह बनाने लगता है!
और शेखर का व्यवहार अब अनबूझा नहीं रहा है स्वस्ति के लिये! या फिर वह समझ गई है अपने चुनाव को लेकर शेखर का गिल्ट और दूर चले जाने का उनका फैसला। आखिर कुछ भी तो अकस्मात नहीं। सब कुछ आइने की तरह स्पष्ट है। शेखर जानते हैं उनकी प्राथमिकतायें क्या हैं और ये भी कि उनके भविष्य के रास्ते में स्वस्ति नाम की कोई मज़िल नहीं। वह न तो उनकी प्रेरणा है और न ही उनका प्रेम। मेल की अंतिम पंक्ति अब तक उसके जेहन में अंकित है, “आई डोंट नो व्हाई बट इट सीम्स माय फ्यूचर इज इन लंडन .....मेरा भविष्य यहीं है स्वस्ति।”
और स्वस्ति... क्या करे स्वस्ति....भूल जाए शेखर को या अपने प्रेम को लौटा लाने के लिए प्रयासों में जुट जाए! शेखर के बिना जीवन की कल्पना से डरती रही है स्वस्ति पर आज वह उनके बिना ही तो जी रही है! शेखर का प्रेम उसके जीवन में से ऐसे ओझल हो रहा है जैसे रात के आने पर साए रोशनी के अभाव में ओझिल होते चले जाते हैं!
सचमुच आकाश में सूरज डूब चुका है! वह अपने पीछे कोई निशान नहीं छोड़ना चाहता! उसके बाद अँधेरे के साम्राज्य ने पूरी दुनिया को अपने कब्जे में ले लिया है! चारों और कृत्रिम रोशनियाँ जूझ रही हैं उस अँधेरे से काबू पाने को! इस लड़ाई में जीत अँधेरे की होगी जानती है स्वस्ति! कम से कम अँधेरे से लड़ने के लिए एक सूरज का होना बेहद जरूरी है! उसके अभाव में कभी अँधेरे से नहीं जीता जा सकता! ये अँधेरा एक जानलेवा शय है! स्वस्ति और रात दोनों को अब सूरज का इंतज़ार है!
बालकनी में तेज हवा चल रही है। मनीप्लांट अब काँप रहे हैं। स्वस्ति रोशेल से पूछना चाहती है, पूछो अपने फ्रायड से स्वप्न नहीं सपनों की दुनिया के मुहाने पर खड़े इंसान के लिए कौन सा रास्ता बचा है। तुम्हारे फ्रायड का 'लिविडो' अधूरा है रोशेल। उन सपनों का क्या जो पूरे होने के लिए बने हैं। यही मन आज आकांक्षा, इच्छा की सीमा के पार जाकर भविष्य के भी दृश्य देखना चाहता है। उनमें अपनी इच्छाओं की स्थापना देखना चाहता है। स्वप्नों की परिणति चाहता है। तुमने ही तो कहा था, मन तो काल के भीतर है न। वह काल के तीनों आयामों में आवाजाही करता है- भूत में जाता है तो स्मृति और भविष्य में जाता है तो आकांक्षा।
स्वस्ति स्मृतियों को जीते हुए ऊबने लगी है। वह अब स्मृतियों को नहीं, सपनों को नहीं, अपनी आकांक्षाओं को जीना चाहती है, भरपूर जीना चाहती है। पर उसके पास तो स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ हैं और आकांक्षाओं के सिरे छूटने लगे हैं। अपने आज के इस आधे-अधूरे सच को लेकर वह किसके पास जाये। जीवन में यथार्थ के पथरीले धरातल पर प्रेम के काल्पनिक, सात्विक, नैतिक रूप से कहीं अधिक भौतिक उपस्थिति का महत्व है! एक सीमा के बाद हर प्रेमी प्रेम में रेस्पोंस चाहता है! प्रतिक्रियारहित एकतरफा प्रेम व्यक्ति के भीतरी सत्व को स्याहीचूस के मानिंद सुखा देता है! प्रेम में प्रतिक्रिया भी जरूरी है और प्रतिउत्तर भी! पर यहाँ तो दोनों नदारद हैं!
जब नहीं रहा गया तो उसने रोशेल को एक व्हाट्स एप कर ही दिया पर रोशेल के भेजे कुछ रोते हुए, उदास स्माइली उसके मोबाइल की स्क्रीन पर चमक कर उसे मुंह चिढ़ा रहे हैं। उसकी दुविधा का उत्तर शायद उनके पास भी नहीं। ये उसका संघर्ष-रण है, उसे अकेले ही इसे पार करना है! यहाँ से, इस दोराहे से बिल्कुल अकेले! न माँ साथ होगी, न कार्तिक और न रोशल!
इन्ही सवालों से जूझते हुए महसूस ही नहीं हुआ कि कब अँधेरे ने उसके पूरे घर को अपनी चपेट में ले लिया! बहती हुई तेज़ हवा जाने कब से बर्फीली हो चली थी। उसके जिस्म को हल्की कंपकपी ने घेर लिया पर सवालों का झंझावत था कि थमने को तैयार ही नहीं था। वहीँ बालकनी में कुर्सी पफर बैठे-बैठे वह ऊँघने लगी तो अपने कमरे में आ गई। शाल लपेटकर वह बिस्तर में घुस गई। उसने एक किताब लेकर मन लगाने की कोशिश की पर उसकी ये कोशिश कामयाब नहीं हुई। डायरी खोली तो रेंडमली जो पेज खुला उस पर लिखा था,
“कभी-कभी दोस्त होने का मतलब टाइमिंग की आर्ट को मास्टर करना होता है। एक खामोशी का समय होता है। एक समय होता है लोगों को अपनी किस्मत आजमाने देने का। और एक समय होता है सब ख़तम हो जाने पर बिखरे हुए टुकड़ों को जोड़ने का।
---ग्लोरिया नेलौर”
उसकी आदत है वह पसंद आने पर पंक्तियों को डायरी में नोट कर लेती है! ये पंक्तियाँ भी कभी ऐसे ही नोट की होंगी! उस समय उसकी मनोदशा क्या थी, कैसी थी स्वस्ति को कुछ याद नहीं पर इन पंक्तियों की सार्थकता मानो आज सिद्ध हो रही है! क्या ये पंक्तियाँ उसके लिए कोई इशारा है। क्या वह टुकड़ों में बिखर जाएगी या फिर बिखरे हुए टुकड़ों जोड़ने का समय आ गया है। यह कौन सा समय है यह स्वस्ति को ही तय करना है। कोई और इसे तय नहीं कर सकता। कोई और इसका फैसला नहीं ले सकता। आखिरकार उसने लाइट बंद की और बिस्तर पर लेट गई। भविष्य की कोख में क्या है यह तस्वीर बेशक़ धुंधली है पर जाने क्यों उसे लग रहा को विराम देना चाहा किन्तु सफल नहीं हुई और करवटें बदलती रही।
क्रमशः