झुकी हुई फूलों भरी डाल - 5 Neelam Kulshreshtha द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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झुकी हुई फूलों भरी डाल - 5

झुकी हुई फूलों भरी डाल

[कहानी संग्रह ]

नीलम कुलश्रेष्ठ

5 - नाकाबन्दी

ऊँचाई पर बिचरती अपने पंख फैलाये उड़ती उन्मुक्त चिड़िया जब थक जाती है तो पेड़ों की फुनगियों पर, आँगन के छज्जो पर, छत के मुंडेर पर सुस्ताने लगती है. कभी कभी चिरैया को देखकर चिड़ा उस पर आँखें गढ़ा देता है, तो उत्तेजना में उसके सारे पर फूल उठते हैं. चिड़िया बेसुध होकर उन पंखों के झुरमुट में खोकर उनकी छुअन से सिहरती रह्ती है.

कभी कभी चिरैया बावरी हो जाती है. वह् क्यो बावरी होती है कोई समझ नहीं पाता. यों तो वह घरों के बरामदे या कमरों में लगे आइने के सामने से अनेक बार उड़ती हुई गुज़रती रह्ती है लेकिन गज़ब तो जब होता है जब चिड़े की आँखों में अपना अक्स देखने की आदी चिरैया आइने में अपने को भरपूर देखती है, जी भर के देखती है, नख से शिख तक देखती है. वह अपने को देख बौरा जाती है. वह उन्माद से बावरी हो जाती है. इतना सौंदर्य ! इतना आकर्षण !अब तक वह अपने को देख क्यों नहीं पाई ?बस चिड़े के बच्चे और तिनके से घोंसला बनाना ---एक एक दाना बच्चों के लिए चुनकर लाना, इसमे ही अब तक का जीवन निकाल गया. वह अपनी चोंच से अपने अक्स को एक बार चूमकर देखना चाहती है क्या इतना सौन्दर्य सच है ? वह् अपनी परछायी की चोंच को स्पर्श क्या करती है, वह बावरी हो जाती है.

बिचारी बावरी चिरैया !अपने अक्स को देखने, उसे महसूस करने, उसे स्पर्श करने के लिये वह बार बार उन्मत हो आइने के पास आती है. वह अपने नन्हे व्यक्तितव पर बार बार चोंच मारकर अपने सौंदर्य का उत्सव मनाती है. आस पास के लोग अभ्यस्त नहीं होते कि कोई मादा अपनी छवि का उत्सव मनाये, वे उसे भगाते हैं, आइने को ढककर रखने लगते हैं. लेकिन अब क्या हो सकता है ?चिरैया ने अपनी मोहक छवि देख ली तो देख ली. वह् उस छवि को देखने के लिये उतावली होने लगती है. जब भी मौका मिलता है तो चुपचाप तौलिया खिसकाकर अपनी छवि को देखने की कोशिश में लगी रह्ती है. जब भी वह खिसक जाता है तो अपनी नन्ही चोंच से आइने पर `खट`, `खट `करके जताती है ---रोककर देख लो मुझे. बिचारी बावरी चिरैया !

यामिनी की नज़र कई दिन से अपने घर में बावरी हुई इस चिरैया पर है. इसे जितना भी आइने से दूर भगाओ वह वापिस वहीं पहुँच जाती है. बस एक ही रास्ता है कि कमरे को बंद करके रखो लेकिन वह भी कब तक ? यामिनी को लगता है उसे दौड़ते, भागते उसकी बेचैन रूह तड़पती, छतपटाती चिरैया की रूह में समा गई है. उसे अपने हर प्रश्न का हल प्रज्ञा दीदी में ही नजर आता है. वह् उनके घर का नबर डायल करती ह तो देर तक घंटी बजती रह्ती है, उत्तर नहीं मिलता.

ऑफ़िस में अपने दोस्त जतिन से पूछती है,"ये बताओ दुनिया में पहले विवाह की योजना किसने बनाईं थी ?"

वह अपनी गर्दन पर दो उँगली रखकर कहता है,"माँ कसम मैंने तो नहीं बनाई थी."

आसपास खड़े लोग हंस पड़े थे.

जतिन ने उसे और चिढ़ाया था,"मैंने कब से तुम्हे प्रपोज कर रक्खा है. हम एक ही ऑफ़िस में काम करतें हैं. हमारी शादी हो गई तो हम एक साथ खाना बनाकर ऑफ़िस आ सकते हैं. एक वेहिकल का खर्च बचेगा और तो और हम यहा एक दूसरे पर नजर भी रख सकते हैं."

आसपास के अलग फिर हंस पड़े थे. उनमें से एक बोला था,"शादी तो एक लड्डू है ----."

जतिन तेज़े से बोल उठा था,"हाँ, हाँ, मुझे पता है जो खाए सो पछ्ताये, ना खाए सो पछताये. जब पछ्ताना ही है तो खाकर ही क्यों ना पछ्ताया जाए. ?अब इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि पहली शादी किसने की थी या ये आईडिया किसका था ?"

उसकी नाटकीयता पर फिर सब खिलखिला उठे थे. यामिनी खीज गई थी, जतिन के साथ कुछ भी गंभीर होकर सोचा नहीं जा सकता. ऎसे ही हर बात को मज़ाक मे उड़ा देता है.

निकिता भी उसका मज़ाक उड़ाने लगी,"उस दिन भी तू मुझसे यही सवाल कर रही थी. तू तो ऎसे खोजबीन कर फिर रही है जैसे किसी ने विवाह की योजना बनाकर कोई साज़िश कर दी हो."

"दरअसल मुझे ये बात एक चिड़िया को ----."वह अपने को सनकी समझे जाने के डर से एकदम चुप हो गई.

"क्या चिड़िया ?"

"कुछ नहीं."वह् वौशरूम की तरफ चल दी, नहीं तो सब उसकी बात का मज़ाक उड़ायेंगे यदि वह कहे कि अधिकतर स्त्रियां कटे पंख की चिड़िया या उड़ान, घायल चिड़िया टायप कविताएं क्यों लिखती हैं. ?

अब वह अपने उत्तर के लिए प्रज्ञा दीदी को ढूंढ़ना शुरू करती है. वह उन्हें उनके विश्व्विध्यालय के संस्कृत विभाग में जाकर पकड़ लेती है,"ये बताइये कि दुनिया का सबसे पहला विवाह किसने आयोजित किया था ?"

प्रज्ञा दीदी देर तक हँसती रही थी,"महीनों बाद सूरत दिखाई है और पूछ् क्या रही है ?"

" ये प्रश्न मुझे बहुत दिनों से बेचैन किए हुए है. मै आइने पर चोंच मारती चिड़िया को देखकर ये जनना चाहती हूँ कि प्रथम विवाह की योजना किसने बनाईं थी ?"

"क्या ?चिड़िया और विवाह का क्या संबंध है ?"

"विवाह ही ऎसा कारण है कि जिसमे बँधकर हर स्त्री अपना अक्स भूल जाती है. यदि अपना अक्स देख ले तो बावरी हो जाती है कुछ कम, कुछ ज्यादा. दूसरे भी उसके इस तरह अपने अक्स को देखने से जलते हैं."

"मै ये तो नहीं बता सकती कि प्रथम विवाह की योजना क्सिने बनाई थी लेकिन ये बता सकती हूँ कि प्रथम विवाह का उल्लेख अथर्व वेद में मिलता है जो कि शिव जी व पर्वती का हुआ था. `

वह् फिर खीज उठती है,"हर बात का अंत धर्म पर ही क्यों होता है ?"

विवाह का प्रश्न क्या सिर्फ़ बावरी चिरैया को देखकर ही उसके मन में आया था ----ओ !नहीं --नहीं, उससे पहले भी इस प्रश्न ने उसे जबसे बेचैन करना आरंभ किया था जब उसने गलती से अहमदाबाद से लौटते समय ट्रेन के महिला डिब्बे में यात्रा की भूल कर दी थी. वह वहा इंस्पेक्शन करके लौट रही थी. तब वह भी चिरैया की तरह बावरी हो गई थी लेकिन उसका बावरा होना कुछ दूसरी तरह का था. उसे बेहद हैरानी हो रही थी कि अशुभ दिनों के समाप्त होते ही कैसे हर दिन लाखों शादियाँ होती है. माँ बाप पेट काट काट कर लड़की की शादी के लिये रुपये इकठ्ठे करते हैं. लॉटरी तो कुछ लड़कियों की किस्मत में निकलती है, बाकी तो शादी होते ही एक चक्रव्यूह में फँसकर`हाय `, हाय `करने लगती हैं.

अहमदाबाद में सारे दिन की भागदौड़ से उसका पोर पोर दुःख रहा था. वह् स्टेशन जल्दी पहंच गई थी इसलिए` क्वीन `के महिला डिब्बे में जगह देखकर जा बैठी थी. खिड़की के पास की जगह मिल गई थी वर्ना छ; बजते ही क्वीन में साँस लेना भी मुश्किल हो जाता है. थोड़ी देर में एक गुजराती स्त्री अपनी ऐनक के साथ दो बच्चियाँ संभालती आ बैठी. उसकी बगल में मध्य वयस की लम्बी, कुछ सूखी औरत अपने मोबाइल पर बात करती आ बैठी, साथ की एक लम्बी, गॊरी जींस पहने चिकनी लड़की ने हाथ में लिया एयरबैग उसकी सीट के नीचे खिसका दिया," मॉम! घर पहुँचते ही ख़बर करिये."

"ओ श्योर जी. `

थोड़ी देर में एक मध्य वयस की औरत बेटी सी लगती औरत के साथ यामिनी के पास आकर बैठ गई. उसके बाद तो डिब्बे में भीड़ बढ़ती गई. वह् गॊरी लड़की डिब्बे के पास वाली खिड़की के पास आकर माँ से बातें करने लगी. तभी एक काला कलूटा लड़का भागता हुआ आया, उस गॊरी लड़की से बोला,"ओय पम्मी !तू यहाँ है ?"

"ओय !तू आ गया, कबसे तेरा मैं वेट कर रही हूँ. मीट माई मॉम"."कहकर उस लड़की ने अपनी माँ से उसका परिचय करवाया. उसने हाथ जोड़कर उनसे नमस्ते की, फिर दोनों मॉम व दुनिया से बेख़बर आमने सामने खड़े बातों में मशगूल हो गए. बीच बीच में वह लड़की माँ को देख लेती थी. माँ के ऐंठे हुए चेहरे से लग रहा था कि उनका बस चले तो अपनी गॊरी चिट्टी लड़की के सामने खड़े काले लड़के को अपनी आँखों से भस्म कर दे

तभी दूसरी खिड़की के पास बैठीं गुजराती युवती का बेहद भला सा दिखाई देता पति अपने हाथो में दो चाय के गिलास लेकर आ गया. बहुत तह्ज़ीब से उसने खिड़की के पास खड़ी उस गॊरी लड़की से कहा, `प्लीज़ !ह हटेंगी."

वह् लड़की अपने दोस्त से बात करते हुए हट गई. उस आदमी ने अपनी पत्‍‌नी को गिलास पकड़ाया और दूसरे से स्वयम चाय की चुस्कियाँ लेने लगा. उसकी बड़ी बेटी बोली,"पप्पा मने चाय जुइये."

"बैग में दो ऑरेंज फ़्रूटी हैं. तुम दोनो पी लो."

"सारू."कहकर बड़ी ने सीट के नीचे बैग को बाहर खिसका कर फ़्रूटी निकाल ली और एक बहिन को दे दी. दूसरी में स्ट्रॉ डालकर मज़े लेकर पीने लगी.

वह आदमी पत्नी से पूछ्ने लगा,"पेपर्स कैसे थे ?कठिन के सरल ?

"सरस हता [अच्छे थे]लेकिन सिलेक्शन का क्या ठिकाना ?

"वो तो तू नौकरी की ज़िद करती है मिल जाए तो ठीक है ---वर्ना चालसे."

तभी इंजन ने सीटी दी, वह व्यक्ति गिलास डिब्बे के नीचे फेंकता हुआ बोला,"मै बाजू वाले डिब्बे में हूँ. बराबर खयाल राखजो."

गाड़ी ने रेंगना आरंभ कर दिया था. उस लड़की व उसके ब्याय फ्रेंड ने विदा में `बाय `कहते हुए हाथ हिलाया.

यामिनी पीछॆ की तरफ सिर टिका कर सोने का प्रयास करने लगी थी. आजू बाज़ू की स्त्रियां आपस में घुलमिल गई. गाड़ी की आवाज़ के साथ शब्द भी यामिनी के कानों में पड़ रहे थे. परीक्षा देकर आई औरत व मोबाइल वाली औरत तहे दिल से अपनी ससुराल वालों की बुराई में लगी हुई थी. वैसे भी ये स्त्रियों का सर्वाधिक प्रिय विषय है. वह मन हे मन खुश हो उठी कि अब तक शादी से बची हुई है तो इस बुराई पुराण से भी दूर है. उसके पास बैठीं वृद्धा ने अपने कन्धे पर सिर रखकर बैठीं बेटी का सिर हिलाया व इशारा किया कि सामने वालियों की बातें सुने.

यामिनी भी चौकन्नी होकर उनकी बात सुनने लगी. भोले चे चेहरे वाली गुजरातिन अपनी आवाज़ में तमाम ज़हर भरकर बोल रही थी,"आप मेरे मिस्टर को सीधा समझती हैं ?सभा सोसायटी में ये बैठेंगे तो ऎसा भोला चेहरा बनाकर, सिर नीचा करके जैसे कुछ जानते ही नहीं हैं. इनसे भलामानस दुनिया में कोई है ही नहीं. घर में देखो तो छोटी छोटे बातों कै लिये चिल्लाने लगेंगे. मैंने बी. ए. किया है, मुझे देखकर कोई कहेगा ?सारा दिन घर के काम में लगी रह्ती हूँ."

"ओय!मेरा हज़बेंद भी ऎसा ही है. चेहरे से महात्मा नज़र आता है. पूरी सोसायटी में यही कहते हैं कि मल्होत्रा साहब बहुत` जेंटल `हैं. जब ये `जेंटल ` अपनी बीवी पर चिल्लाते हैं तब इन्हें देखो न."

गुजरातिन बोली,"कभी अचानक रसोई में आकर बेवजह चिल्लायेंगे कि ये पतीला यहाँ क्यों रखा है ?अब बोलो पतीला प्लेटफॉर्म पर रक्खे या अपने सिर पर इन्हें क्या ?".

"यही मल्होत्रा साहब करते हैं, घर में काम तो कुछ नहीं करना बस बहाने निकालकर चिल्लाना है."

उनकी कटखनी आवाज़ सुनकर यामिनी उनसे पूछती है,"मल्होत्रा साहब करते क्या हैं ?"

"भरूच की कम्पनी में डिप्टी डाइरेक्टर हैं. लुधियाना में मै अच्छी भली कॉलेज में लेक्चरार थी. मुझे क्या पता था कि नौकरी छोड़कर सारी ज़िन्दगी मल्होत्रा साहब और उनके बच्चों की आया बनकर रह जाऊँगी."

" और मै भी तो इनकी आयागिरी ही तो कर रही हूँ. और खाली इनकी ?आते जाते मेहमानों की भी आया गिरी करनी पड़ती है. कोई मेहमान आयेगा तो बड़े प्यार से कहेंगे कि तुम खाना बनाओ, हम इन्हें घुमा लाते है."गुजरातिन बोली.

"तुम तो हज़बेंद की बात कर रही हो, बड़े बच्चों को भी कुछ बोल नहीं सकते. देखा नहीं, मेंरी बेटी कितनी सोनी है और एक काले लंगूर को पकड़ रक्खा है."

यामिनी धीरे से बोली,"इस लड़के में कुछ तो होगा जो -----."

"कुछ भी नहीं है, बहुत मामूली घर का लड़का है इसके साथ ही एम बी ए कर रहा है. इतने बड़े शहर में इसे ये ही मिला था."

गुजरातिन तो जैसे कुछ सुन ही नहीं रही, वह कह रही है,"मै तो अपनी लड़कियों को ज्यूडो कराटे सिखा रही हूँ."

यामिनी आशचर्य कर उठी थी `, `ये तो अभी छोटी हैं."

"एक पाँच वर्ष की है एक आठ वर्ष की, इतनी छोटी भी नहीं हैं. मै शाम को सोसायटी में दोनों को सायकल चलवाने ले जाती हूँ. मैदान के चक्कर लगवाती हूँ जिससे ये मज़बूत बने."

"सच में ?"

` ` मै मज़बूत नहीं थी तो मेरी इतनी `हेल्थ` ख़राब हो गई. मेरी सास मेरी डिलीवरी के समय मुझे छूत का बहाना करके ज़मीन पर सुलाती थी व खाने को अच्छा नहीं देती थी और सुनाती थी कि कम खाना चाहिये. ननद डिलीवरी के लिए हमारे यहाँ आई तो उसे पथारी [चारपाई ]`पर सुलाती थी, बढ़िया बढ़िया खाने को देती."

"आपने अपने पति से शिकायतनहीं की ?`

" उसे मेरे लिए टाइम कहाँ था, चालाक बनकर कह देता कि तुम जानो और माँ जाने. अगर कोई गलती हो जाए तो चिल्ला चिल्ला कर आस्माँ उठा लेता है."

पंजाबिन हंस पड़ी,"आप अपनी कहानी सुना रही हैं या मेरी. ?"

पास में मराठी महिला बोलने लगी,"या मेरी ?"

एम पी के माँ बेटी में से माँ बोलने लगी,"या हम सबकी ? घटनायें अलग हो लेकिन हम सब पर बीतती यही है."

"इसीलिये तो मै अपनी बेटियों को मज़बूत बना रही हूँ व सिखा रही हूँ कि पहले वे ससुराल में अपनी ड्यूटी पूरी करे लेकिन फिर भी सास कुछ कहे तो एक दे -----यदि मिस्टर कुछ कहे तो एक दे ----."वह सच ही नफ़रत से मारने का हाथ का इशारा कर रही थी.

यामिनी उसके गुस्से पर मुग्ध हो गई थी ---क्या खालिस फ़ेमिनिज़्म` है यानि ओरिजनल नारीवाद यानि स्त्री विमर्श यानि खालिस स्वदेशी, जो नितांत निजी अनुभवों से उदय हुआ है. इसने कहाँ सिमोन द बुवा या वर्जीनिया वुल्फ़ की पुस्तकें तो क्या देशी लेखिकाओ की पुस्तकें भी नहीं पढ़ी होंगी. वह कहे बिना नहीं रह पाती,"आपके पति तो बहुत सीधे लगते हैं. `

"लगता है आपकी शादी नहीं हुई आपको सीधे शकल वालेपति से पाला नहीं पड़ा."

"हा ----हा ---हा,"सब हंस पड़ीं थी, वह् उजबक सी सबकी शकल देखने लगी थी.

नडियाड आते ही मल्होत्रा अपने मोबाइल पर अपने पति से बात करने लगी थी,"जी !वर्षा बोल रही हूँ जी."अपनी ट्रेन में सलामती की ख़बर वह दूसरी बार उन्हें दे रही थी. उनकी डोर तो उधर बंधी हुई है लेकिन फिर भी उसने घोषणा की थी,"जो जितने उन्ची पोस्ट वाले होते हैं, सब आउट ऑफ़ ट्रैक होते हैं. वे औरतों के पीछॆ भागते हैं, औरते नौकरी व पैसे के लिये उनके पीछॆ भागती हैं."

वृद्धा की हंसी निकाल गई थी, वह अपनी बेटी की तरफ़ इशारा करके बोली थी,"इसका आदमी कौन सा कलेक्टर है फिर भी इसकी शादी के बाईस साल बाद इन दोनों के झगड़े सुलझाने आना पड़ा है."

"बाईस वर्ष बाद ?"अस पास की सभी स्त्रियों के मुख से निकल गया था, सबके कान एक और स्त्री की कथा व्यथा सुनने को `अलर्ट `के मुद्रा मे आ गए थे. तब उसे पता नहीं था कि पुरुश सत्ता में सभी स्त्रियां एक दूसरे को देखकर अपनी आपबीती सुनाकर या सुनकर, अपनी हालत पर सब्र करती रह्ती है --अरे--- उसकी हालत --अरे -अरे उसकी हालत ---अरे-- अरे--- अरे उसकी भी हालत अपन जैसी ही है. आदमी तो सब ऎसे ही होते हैं.

"हाँ, इसका आदमी शादी से पहले किसी गुज्रातिन से इश्क फर्मा रहे थे. हमारे घर का पैसा देखा तो उसे धोखा देकर इससे शादी कर ली. बीस बाईस वर्ष तक थोड़े शरीफ बने रहे, क्योंकि ये हमारी इकलौती लड़की थी. दामाद जी के सब बहिन भाइयो की शादी हो गई तो लगे इसे तंग करने क्योकि इसके पापा भी रिटायर हो गए थे, हमसे पैसे खींचने का अब कोई रास्ता नहीं था. बात बात पर इसे यही कहते तेरी पिटाई कर दूँगा तब इसकी समझ में ये बात कि वह् उस औरत से गुपचुप संबन्ध बनाए हुए थे."

"ओ ---तो अब ?"

तभी गाड़ी आनंद पहुँच गई थी. मल्होत्रा ने अपने मोबाइल पर फिर पति का नंबर डायल किया,"हुण आनंद पहुँच गई सी, कुछ तकलीफ नहीं है जी."

यामिनी उसकी कमेंट्री पर मुसकरा उठी थी. आउट ऑफ़ ट्रैक पति को किस तरह यात्रा का ब्योरा दिया जा रहा है. , फिर वह् मौका मिलते ही पति की बुराई आरंभ कर देगी. .

प्लेटफॉर्म पर अमूल डेरी के सेल्स ब्याय दूध की बोतलें, आइस्क्रीम लेकर घूम रहे थे. गुजरातिन की बड़ी बेटी मचली,"ममी आइसक्रीम दिलवा दो."

वह आइसक्रीम वाले को रोक कर पूछ्ती है,"ऑरेंज कैंडी कैसे दी है ?"

"ये नहीं चोको बार चाहिए."

"इस अंकल के पास चोको बार नहीं है."

आइसक्रीम वाले ने भी उसका आशय समझ कर कहा था,"आज चोको बार खत्म हो गई."दोनों बच्चियाँ ऑरेंज कैंडी पर सब्र कर लेती हैं.

मल्होत्रा व उसने पिस्ता मिल्क लिया था व सबसे पूछा था," आप लोगो को लेना है ?"

सब `न `में सिर हिला दिया था,"

यामिनी बेचैन है, गाड़ी चले तो वृद्धा की कहानी आगे बढ़कर क्लाइमेक्स पर पहुँचे. उसने पिस्ता मिल्क ख़त्म करके उसकी बेटी से व्यग्रता से पूछा था,"फिर तो आपने अपने पति को छोड़ दिया होगा ?"

वह् आहे भरतीं बोली थी,"बाईस वर्ष की शादी का अर्थ समझती हैं?बच्चों के कैरियर के ख़तरनाक मोड़ होते है. यदि परिवार का संतुलन बिगड़े तो वे तबाह हो जाए. फिर हमारे यहां अधिकतर शादियाँ परिवार की प्रतिष्ठा से होती है. तो मै कैसे उनसे अलग हो सकती थी ?"

मल्होत्रा बीच में बोल उठी,"ये सभी शादियाँ इसीलिये घिसटती है क्योकि बीस बाईस वर्ष तक औरतों को अपने बच्चों में सिर खपाते पता ही नहीं चलता कि वह अपने पति के कितने छल का शिकार हो रही है. जब समझ में आता है तो उससे अलग होने का मौका निकल चुका होता है. मै तो दावे के साथ कहती हूँ कि लगभग हर शादी बच्चों की शादी आते आते अंदर से टूट चुकी होती है."

वृद्धा ने कहा था,"फिर भी तुम लोग हमारी माओं से, हमसे अच्छे हो. हमारी मान्ये तो पचास बरस तक बच्चे जनती रह्ती थी. मै ही जानती हूँ कि इसके पापा के साथ मैंने कैसे दिन काटे हैं. वो इतने कड़क है कि उनके मुँह से निकली बात पत्थर की लकीर होती है. तुम क्या जानो मेरे दिल में कैसे कैसे घाव हैं."

उसने उसी बेटी से पूछा था,"तो आप अभी भी उसी धोखेबाज़ के साथ रह रही है. ?"

"और चारा ही क्या है ?एक दिन मै उस औरत को धमका आई कि मै पुलिस में रिपोर्ट कर दूँगी. पति को जब पुलिस व वकील की धमकी दी तो माँ को भोले बनकर तार दे दिया कि चली आइए मेरा घर टूट रहा है."

"आपके पिताजी --."

"वह गुज़र गए हैं होते भी तो इस उम्र में क्या कर लेते ?"

यामिनी ने वृद्धा से पूछा था,"तो आप तार पाकर घबरा गई होंगी ?"

" ना रे !ये बाल कोई धूप में सफ़ेद नहीं हुए हैं. शादी तो ऐसी नाल है बच्चों की खातिर या समाज के डर से बिरले ही तोड़ पाते हैं. हर पति पत्‍‌नी में एक समय आता है कि वो जानी दुश्मन बनकर लड़ते है. वो तूफ़ान गुजर जाता है और वे साथ रहते हैं. मेरे भाई भाभी में भी से ही लड़ाई हुई थी. भाभी चीख रही थी कि मै इस आदमी की सूरत नहीं देख सकती थी. भाई चीख रहा था --इस औरत के साथ मै नहीं रह सकता."

यामिनी ने धड़कते हुए दिल से पूछा था,"अब वे दोनों कहाँ है ?"

"किसी पति पत्नी में कुछ समय के लिए दुश्मनों जैसा रिश्ता हो जाए फिर भी ये साथ नहीं छूटता. वे भी साथ ही रह रहे हैं."

उपर सामान रखने की बर्थ पर दो युवतियां अपने डेढ़ दो वर्ष के बच्चों को गोद में लेकर पैर लटकाये बैठीं थी. उनमें से एक ने नीचे झांक कर कहा था,"मुझे दुश्मन के नाम पर एक बात याद आ गई."

"क्या ?"सबकी उत्सुकता थी

"इस बारिश में तीन चार बार ऎसा हुआ कि मै जब भी घर से बाहर निकलूं तभी बारिश आ जाए. मेरे पति ने मेरा मज़ाक उड़ाया कि बारिश तो तेरी दुशमन है, तेरी कैसे कटेगी ?तो मैंने उससे कहा कि एक दुश्मन के साथ मै ज़िंदगी काट रही हूँ, मुझे दुश्मन की आदत है."

"हा--- हा--- हा--- हा."

मल्होत्रा अपने दुश्मन को मोबाइल से रिपोर्ट दे रही है, "हाँ जी. मै पंद्रह बीस मिनट में बड़ौदा पहुँच जाऊँगी."

सबकी हंसी रुकती है, यामिनी ऊपर वाली बर्थ पर बैठीं उन युवतियों को देखती है,"लगता है आप सबकी बातें सुन रही है लेकिन आप तो यंग हैं, ज़माना इतना बदल गया है लेकिन आप लोगों के हाल भी ससुराल में यही है ?"

छोटे शिशुओं को गोद मे उठाये उन दोनों मूक गाय सी एक साथ सिर हिला दिया था. इन्हें देखकर उसके दिमाग में लेखिका सरोज वशिष्ठ की कहानी की ये पंक्तियां कौंध गई थी -`हर औरत एक उम्र के बाद पति की बेरूखी, कड़वाहट जानती है लेकिन उसे दिल पर नहीं लगाना चाहिये. हर औरत घर बचाने के लिए सब कुछ सहती है ---हर माँ एक कैदी है. `--यामिनी सोचकर घबरा जाती है तभी सब चिरैया के आइना देखते ही बौखला जाते है कि कहीं घर ना टूट जाए ---चिरैया आइने व घर को सम्भाले रक्खे तो उसके आत्मविश्वास से बौखला जाते है क्योकि उन्हें मूक गायों की आदत पड़ चुकी है.

यामिनी को फिर जतिन याद आ गया था --शादी का प्रस्ताव देता. यामिनी ने उससे शादी कर ली तो वह सिर हिलाती गाय तो बन नहीं सकती, इतनी सीधी तो वह नहीं है तो कितने दिन टिकेगी ये शादी ? जतिन उसे कितना विश्वास दिलाता रहता है कि उसे अपनी तरह ही जीने देगा फिर वो क्यो नहीं मान रही. उसकी नज़र फिर ऊपर उठीं थी. उसने एक बच्चा उस युवती की गोद में से ले लिया था और उसे अपनी बाहों के घेरे में लेकर भींच भींच कर प्यार करने लगी थी. उसके नर्म गाल पर अपना गाल सटा दिया था. बच्चा भी किलकने लगा था. . गोद में बैठे बच्चे का सुख उसे परिपूर्ण कर रहा है लेकिन इस सुख के लिये जतिन का साथ चाहिए. क्या जतिन को शादी के लिये `हाँ `कर दे. ?----तो कर दे इस` नाकाबंदी `के लिए `हाँ `?आश्चर्य तो ये है पुरुष भी शादी को नाकाबन्दी ही समझता है. तो किसकी नकाबन्दी अधिक है स्त्री के व्यक्तितव की या पुरुष की अंतहीन कामनाओं की उदानो की ?बच्चे के मुलायम से स्पर्श से बंधी वह् दुनिया की उलझी बातो को नहीं सोचना चाहती. उसे सच ही जतिन का साथ चाहिए.

गुजरातिन मल्होत्रा से पूछती है,"आपके बच्चों की शादी हो गई ?"

"अहो जी !खूब धूमधाम से हुई थी. मल्होत्रा साहब ने लाखो रुपये मेरे हाथ में रख दिए थे लेकिन छ; महीने से रिटायर होकर घर में पड़े है. मै तो भजन मंडली या किट्टी पार्टी में चली जाती हूँ तो मुँह लटकाये पड़े रहते हैं घर में."

बड़ौदा आ गया था. यामिनी ने कन्धे पर पर्स टाँगा और ट्रेन से उतर गई थी उसे आज अच्छा अनुभव मिला है वह् जतिन को शादी से पहले जता देगी,"मुझे घर में डाल देने वाली चीज़ मत समझना नहीं तो बुढ़ापे में तुम भी घर में डाली हुई चीज़ बन जाओगे."वह प्लेटफॉर्म पर उत्साहित सी चलते हुए सोचने लगी कि वह भी तो जतिन की नाकाबंदी करने जा रही है कि ये करो, वो नहीं. डिब्बे की अधिकत स्त्रियों के चेहरे सपाट हैं भावनाहीन जैसे वो सोच रही हो जहाँ से वो चली थी वहीं पहुँच गई है. अलबत्ता वो स्त्रियां तेज़ी से चल रहे है जो कड़ी मेहनत के बाद रोज़ बड़ौदा व अहमदाबाद के बीच अप डाउन करती हैं.

पंद्रह वर्ष बाद सुयोग होता है कि वह अहमदाबाद से वह एक महाराष्ट्रियन कलीग दिन की शादी में से लौट रही है. शाम छ; बजे क्वीन में बैठते ही वह् मोबाइल पर जतिन को कॉल करती है,"ओ जतिन थैंक यू, आज तुमने दोपहर बाद छुटी ले ली. जॉय व जौलिशा को एक गिलास दूध पिला देना. पूछ लेना कि उन्हें कॉर्न फ्लैक्स लेने हैं या बोर्नविटा. --- ओ !तुमने सब्ज़ी बना ली ?चपाती मै आकर बना लूँगी.".

वह अब इत्मीनान से महिला डिब्बे में नजर डालती है ---उसे पंद्रह वर्ष पहले वाली महिला डिब्बे की यात्रा याद आ जाती. तब तो सिर्फ़ मल्होत्रा के हाथ में मोबाइल था. आज तो हर युवा लड़की, मध्यवयस, वृद्धा महिलायें अपने मोबाइल में वॉट्स एप मेसेज चेक करते मुसकरा रहीं हैं या अपना लेप टौप खोल कर गभीरता से ऑफ़िस का काम कर रही है. बस कुछ मूक गायें भी नज़र आ रही है जिनके कन्धे झुके हुए हैं लेकिन इतना भर ज़रूर है वॉश रूम आती जाती लड़की बहुत आत्मविश्वास से अपने कन्धे चौड़े किए चल रही है.

***