झुकी हुई फूलों भरी डाल - 6 Neelam Kulshreshtha द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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झुकी हुई फूलों भरी डाल - 6

झुकी हुई फूलों भरी डाल

[कहानी संग्रह ]

नीलम कुलश्रेष्ठ

6 - निचली अदालत

उसने कंघे से जोर से बालों को खींचा, कंघा सरकता हुआ नीचे नहीं आ पाया. उसकी हल्के से चीख निकल गयी. कंघा बीच के बालों के झुण्ड में फंस गया था. बालों में ऐसे ही कितने झुण्ड बन गए हैं, वह बाल काड़ ही नहीं पा रही थी. ओ माँ !उसे याद आया बालों का तेल ख़त्म हुए दस दिन हो गए हैं. तीसरे चौथे दिन वह बाज़ार जाती है लेकिन तेल लाना ही भूल जाती है. बचपन में ऐसे बालों को काढ़ते समय मम्मी हमेशा चिढ़तीं थीं" बाल, रोज़ क्यों नहीं ठीक से कादती, जब गुज्जटे बंध जातें हैं तो मेरे पास आ जाती है."

` गुज्जटे` ---वह अपने बाल काढ़ते हुए मुस्करा उठी, ऐसे कितने ठेठ शब्द होतें हैं जो जीवन की दौड़ में भूल जातें हैं. अचानक वे दिमाग़ में उगकर रास्ता रोक लेतें हैं. अब उसे और याद आया कि उसे दस दिन बिना तेल लगाये व सिर धोये हो गए हैं. चार दिन से नहा ही नहीं पा रही. उसे सोचकर ही बेचैनी होने लगी है कि वह क्या से क्या हो गयी है ? लखनऊ में सुबह तो नहाती ही थी रात को भी बिस्तर पर जाने से पहले नहा लेती थी लेकिन अब तो सुबह तड़के नींद खुल ही नहीं पाती कि छ ;से सात बजे के बीच वह नहा ले. इस नर्सिंग होम का कड़ा नियम है जनरल वॉर्ड के मरीज़ के साथ के तीमारदार सुबह सिर्फ छ; से सात बजे तक ही वॉर्ड के बाथरूम का नहाने के लिए उपयोग कर सकतें हैं. यदि कोई आँख बचाकर इस समय के अलावा बाथरूम में घुसने की कोशिश करता है तो नीली धोती ब्लाउज वाली मोटी ज़मादारिन अपनी कर्कश आवाज़ में दरवाज़ा पीटने लगती है. ,"तुमको स्नानघर का नियम नहीं पता ? जल्दी बाहर आओ."

जैसे ही कोई बिचारा बाहर आता है तो वह आँखे निकालती है,"यदि दोबारा तुमको नियम तोड़ते देखा तो मैं डाकटर को रपर्ट कर दूँगी."

रुचिता एक बार ये नियम तोड़ने की कोशिश कर चुकी है लेकिन उस पर नर्स व ज़मादारिन ऐसीं बरसीं थीं कि अब वह ऐसा करने की सोच भी नहीं सकती.

वह हर सुबह ज़मीन पर लगे बिस्तर पर आँख बंद किये जागने की जद्दोजेहद करती है लेकिन जल्दी नींद नहीं खुल पाती. हर रात पापा का वेंटिलेटर थोड़ी थोड़ी देर बाद हटाया जाता है, बस उसी समय उनकी बड़ बड़ चालू हो जाती है. तीन महीने से बिस्तर पर पड़े हुए उनका शरीर सूख गया है, शरीर की ताकत निचुड़ गयी है लेकिन बोलने के लिए जाने कहाँ से ताकत आ जाती है. ,"मैं तुझसे कहता था न कि पैसा ज़िन्दगी में सबसे बड़ी चीज़ होती है, यदि रिटायर्मेंट के बाद मैंने ट्यूशन करके पैसा नहीं जोड़ा होता तो तो रोज़ अस्पताल के खर्च के दस बारह हज़ार रूपये कौन निकालता ?"

रुचिता पहले झुंझला जाती थी,"पापा आप बोर मत करिए - - -हर दिन यही बात कहतें हैं."

"क्यों नहीं कहूं ?मैंने तुझसे कितनी बार ये बात कही है. सुधीर भी आम रईसों जैसा शौक़ीन था ---तू अपनी अकड़ में उसे छोड़कर आ गयी - --क्या मिला तुझे ?"

रुचिता अब चुप रहती है. वह क्यों बार बार कहे कि उसे सजल जैसा प्यारा साथी मिला - -- लखनऊ में इंजीनियरिंग कॉलेज की नौकरी मिली वर्ना वह तो सुधीर की फ़ेक्टरी में प्रोडक्शन का काम संभालना चाहती थी. और सुधीर चाहता था कि वह माँग भरी ग्रहणी बनकर मुस्कार बिखेरती रहे, उसकी बदमाशियां नजरांदाज़ करती रहे।

बक बक करते करते अक्सर उनकी सांस उखड़ने लगती है, वे कातर होकर कहतें हैं", तू सच बता मुझे इस अस्पताल से कब छुड़वाएगी?"

अचानक उसका हाथ कस करके पकड़ लेतें हैं,"तू भी तो रचना, रंजना की तरह मुझे छोड़कर तो नहीं चली जाएगी ? - --- सच कहना."

हर रात पापा की बड़ बड़ सुनने के बाद वह चाहकर भी सवेरे उठ नहीं पाती इसलिए समय से नहाना रह ही जाता है. आरम्भ में तो पापा की ये बातें सुनकर वह रो पड़ती थी लेकिन अब चुप रहकर खाली ख़ाली आँखों से प्रतिक्रिया विहीन उन्हें या शून्य को देखती रहती है. उसका भी कब इस अस्पताल से पीछा छूटेगा ? - --- कब? उसके ह्रदय में विचलन की एक भी लहर नहीं उठती. एक एक पल जैसे इंतज़ार कर रही है, इस हाथ की जकड़ से दूर भाग जाये - -बहुत दूर अपने लखनऊ के फ़्लेट में. ये बड़ बड़ तभी शांत होती है जब दोबारा वेंटिलेटर लग जाता है, किसी गोली के नशे में उनकी चेतना डूबने लगती है. वह कुछ देर तो ज़मीन पर लगे बिस्तर पर करवटें बदलती रहती है. उसका, स्वयं का शरीर अकड़ कर काठ हो गया है, पीठ में `बैड सोर` जैसा कुछ टीसता रहता है

आज तो उसे किसी तरह नहाना ही है. उसने अपने कपड़े कुर्ते के नीचे सलवार में छुपा लिए हैं. वह वॉर्ड के गलियारे में बने एक टॉयलेट में घुस जाती है. कुर्ते के नीचे से कपड़े निकाल कर दरवाजे के हेंडल पर टांग देती है. ओ!उसके पास शेम्पू तो है ही नहीं, तो क्या हुआ वह कमोड के पास जाकर उसमें अपने खुले बाल उलटे कर देती है, हेंगर पर लटके पाइप को उठाकर टोंटी के पास लगे पानी को चालू करने वाले बटन को दबा देती है. नहाने के साबुन से मल मल कर बाल धोने लगाती है. पानी की फुहार से थका हरा स्नायु तंत्र तारोताज़ा होने लगता है. कमोड के ढक्कन को बंद कर उस पर बैठ कर बदन पर साबुन मल मल कर स्नान करने लगती है, काहे बात की शर्म, काहे बात की घिन, काहे बात की गलीज भावना ?

उसका समय एक गलीज, बेरहम. क्रूर डगर से गुज़र रहा है. लखनऊ के अपने साफ़ सुन्दर फ़्लेट की खिड़की से दिखते उड़ते बादलों के मंज़र को देखने के लिए तरस गयी है. मोटी किताबों में मशीनों की बनावट को समझ कर उसे कॉलेज में पढ़ाने के लिए तरस गयी है. उसे लगता है यदि पापा दस पंद्रह दिन और अस्पताल में रहे तो वह पूरी पागल हो जाएगी क्योंकि उसके स्नायु तंत्र की सहनशीलता चरम पर पहुँच जैसी हो रही है. कमोड पर से उठकर उसने दरवाजे के हैंडल पर देखा -ओह !वह तौलिया लाना तो भूल आई थी. उसने अपने उतारे हुए कपड़ों से बदन पोंछा, बाल पोंछे, कपडे पहने. तब भी बालों से पानी टपक रहा था. उसे और कुछ नहीं सूझा तो उसने टॉइलेट पेपर को फाड़ फाड़ कर बालों में चिपकाना शुरू कर दिया. यदि पानी टपकाती अस्पताल के गलियारों में घूमेगी तो लोग चिल्लाने लगेंगे.

बरामदे में कार्टून बनी उसे देखकर कोई भी देखता मुड़ मुड़ कर देखता ही जाता था. वह जैसे दुनियां की परवाह को ठोकर पर रख बालों में टॉइलेट पेपर चिपकाये चली जा रही थी. चलते चलते वह एक ट्रॉली से टकराते टकराते बची. ट्रॉली धकेलने वाला वॉर्ड ब्वॉय फुसफुसाया,"मैडम! संभल कर, यदि तुमने हमारी बात नहीं मानी तो पूरी पागल हो जाओगी."

वह उस अनजान आदमी की बात से सिहर कर लॉन की तरफ लगभग भागने लगी वॉर्ड में तो डॉक्टर राउण्ड पर आ गए होंगे. बेंच पर बैठकर कुछ देर तक हांफती रही, रुआंसी भी हो आई --- क्या कर रहा होगा रचना दीदी व रंजना दीदी का परिवार ?उनके यहाँ हर घर जैसी सुबह की चिल्ल पौं मची होगी. बड़े जीजाजी बाथरूम का दरवाज़ा पीटकर विहान को डांट रहे होंगे,"क्या सारा दिन ही नहाते रहोगे, जल्दी निकालो. मुझे ऑफ़िस के लिए देर हो रही है."

चीनू शोर मचा रही होगी,"मॉम!मेरा टिफ़िन अभी तक नहीं बनाया ?"

रंजना दीदी की तीन वर्षीय बिटिया रसोई में जाकर कह रही होगी,"मुझे पॉटी आई है."

उसकी दोनों बहिनें अपनी गृहस्थी की गर्माहट में सराबोर दौड़ दौड़ कर सबकी फ़रमाइशें पूरी कर रहीं होंगी, वह भी इस अस्पताल से कुछ किलोमीटर की दूरी पर, इसी दिल्ली में. और वह है कि छुट्टी के लिए एप्लीकेशन लखनऊ भेजती रहती है --- कैसे लौट सकती है अपने पिता को इस हालत में छोड़कर जो न जीवितों में शुमार हैं न मृतकों में. वेंटिलेटर और दवाएं अधर में लटकते उनके प्राणों के जाने के रास्ते खड़े हैं. उस टिमटिमाती लौ को इंसानी हाथ भरसक हवा के थपेड़ों से बचाए हुए हैं. पापा की आत्मा चीत्कार करती रहती है,"मैं कब तक बिस्तर पड़ा रहूँगा ?. मुझे यहाँ से ले चलो."

पहले वह घबरा कर उनका सिर मलने लगती थी,"पापा !जल्दी ले चलेंगे आप ठीक तो हो जाइये."

"मेरा यहाँ जी घबराता रहता है, मुझे ले चल."

वह कह नहीं पाती थी कि दिल तो उसका घबराता रहता है, आप को तो कभी कभी होश आता है. लेकिन वह पापा को ही संभालती रहती थी. तब वह फटी फटी आँखों से कुछ तलाशते थे,"रचना व रंजना, उनका परिवार बिलकुल भी नहीं दिखाई देता. अब वे क्यों आँयेंगे इस खूसट बुढ्ढे को देखने ? "फिर वे उसका हाथ पकड़ कर चीखने लगते हैं."तू तो मुझे नहीं छोड़ जाएगी - - सच बता."

पहले वह कोई न कोई बहाना बना देती थी कि वे शहर से बाहर गए हैं या बच्चों की परीक्षा है. लेकिन तीन महीनों से इस बड़ बड़ को सुनकर अब वह भी पथरायी सी चुप रहती है. पापा बक झक करते रहेंगे और फिर से उनके वेंटिलेटर लगाने का समय हो जायेगा. वह यंत्रचालित सी उनकी देखभाल कर रही है.

कैसी चालाक !कैसी बेमुरव्वत! हैं उसकी बहिनें माँ की म्रत्यु के बाद पापा सेना से पंद्रह वर्ष पहले रिटायर्मेंट लेकर आ गए थे जिससे दिल्ली में अपनी लड़कियों की परवरिश ठीक से कर सकें. रुचिता की भी शादी व्यवसायी घराने में हुयी - --- व पति की अय्याशियों के कारण टूटी भी. रुचिता जब लखनऊ जा बसी तो चतुराई से बहिनों ने पापा के पी. ऍफ़. के पैसे पर अपना कब्ज़ा जमा लिया. उन्हें उस पैसे की भनक नहीं लगी थी जो पापा ट्यूशन करके जमा कर रहे थे.

पापा की ये बदहाल हालत पहले वह देख भी नहीं पाती थी लेकिन वक्त सब सिखा देता है. जीवन जीने के लिए जीवनहीन तड़पते पापा को देखकर लगता है कि कैसे होतें हैं उन देशों के कानून, शायद उनमें से एक अमेरिका भी है, यदि शरीर बेकार हो जाता है, जीवन से परे तो उसको दवाइयों की सहायता बंद कर भगवन को सौंप दिया जाता है. उपरवाला चाहे तो उसे जीवनदान दे या म्रत्यु.

कैसे होतें हैं उन देशों के भाग्यवान लोग रुचिता की तरह जीवन म्रत्यु की इस सीमारेखा के बीच तो नहीं झूल रहे होते. आश्चर्य है पापा अभी भी कौन से मोह में जकड़े हुए हैं, डॉक्टर के सामने गिड़गिड़ाते रहतें हैं,"डॉक्टर मुझे बचा लो --- मुझे बचा लो -- -मैं मरना नहीं चाहता."

उसे फ़ोन मिला था,"पापा को पेरालिटिक अटेक हो गया है जल्दी आ जा."

उसके दिल्ली पहुँचाने पर रंजना दीदी ने बताया था किस तरह पापा अजब सी तन्द्रा में बैठे रहते थे इसलिए वे उन्हें अपने घर ले आयीं थीं. उस दिन वे कुर्सी से गिर गए थे, उनका शरीर अकड़ गया था. शाम को जब जीजा जी घर आये तब उन्होंने इन्हें अस्पताल में दिखाया था.

रुचिता व्यग्रता से चिल्ला उठी थी."आप उन्हें एम्बुलेंस मंगाकर तुरंत ही क्यों नहीं अस्पताल ले गयीं थीं ?"

"मैं ये सोच रही थी कि सर्दी के कारण उनकी देह अकड़ गयी है. बाद में सी टी स्केन से पता लगा पापा के दिमाग का रंग ग्रे से सफ़ेद हो गया है, उनका सारा शरीर बेकार हो गया है."

रुचिता लखनऊ से चार सलवार कुर्ते ले आई थी. ये तो अच्छा हुआ कि ए टी एम कार्ड उसके पर्स में था. दस पंद्रह दिन बाद उसकी दीदी के परिवार ने शकल दिखानी बंद कर दी व बहाना भी बनाया,"अच्छा है तुझ पर परिवार की ज़िम्मेदारी नहीं है."

उसे भी तब उनकी बात ठीक लगी कि कुछ दिनों की बात है. जब पापा ठीक हो जायेंगे तो वह किसी भी दीदी के यहाँ शिफ़्ट करवा कर लौट जाएगी. उसे क्या पता था की उसकी दीदियाँ उससे फ़ो न पर भी बात करना पसंद नहीं करेंगी.

आरम्भ में वह कितनी उत्साह से भरी थी कि पापा के बिल्कुल ठीक हो जाने पर वह जाएगी. पापा ने सारे परिवार के लिए पसीना बहाया है, वह उनकी देखभाल में कमी नहीं होने देगी. वह नाटा सांवला वॉर्ड ब्वाय पापा की सुबह स्पंज कर देता था, बिस्तर बदल देता था, उनके कपड़े बदल देता था. जब भी वेंटिलेटर हटता वह उनके बालों में तेल डालकर उन्हें संवार देती थी. पापा आँखों से आशीष बरसाते रहते थे. डॉक्टर आशवासन देते थे,"पंद्रह दिन में आप इन्हें घर ले जा सकतीं हैं."

वह अपना समय काटने के लिए मरीज़ों को देखने आये लोगों से गपशप करती रहती. एक शाम वह लॉन की बेंच पर बैठी थी कि उसे एक लड़की अरेबियन नर्तकी जैसी काली सलवार व रेड टॉप पहने आती दिखाई दी. वह आकर पास में बैठ गयी. उसके ब्यूटी पार्लर में स्ट्रेट किये बाल झालर की तरह उसके कंधे पर झूल रहे थे. ज़रूर तीन चार हज़ार देकर इन्हें सीधा करवाया होगा, रुचिता ने सोचा, किसी खास महंगे शेम्पू से इन्हें धोती होगी. यदि अगले बरस ये फेशन रहा तो फिर वह इतना रुपया खर्च करेगी. रुचिता पूछ ही बैठी,"आपका कोई रिलेटिव यहाँ एडमिट है ?""

"हाँ, मेरे भाई को फ़ूड पोइजनिंग हो गया है, `

"ओ - --. आपकी ड्रेस बहुत प्यारी लग रही है. इसे क्या कहतें हैं ?"

"हेरम`स पेंट."

"वॉट? हेरम`स पेंट हा - -हा -- हा --. ये सलवार अरेबियन है. मुग़ल अंत;पुर को हरम कहतें थे. इसलिए यहाँ इसका नाम हेरम`स पेंट कर दिया है."

"वॉट इज़ अंत;पुर ?"

हे राम !आज की पीड़ी को ये शब्द भी नहीं पता, रुचिता ने सोचा फिर बोली,"राजा अपनी रानियों को जिस महल में रखता था उसे अंत;पुर कहते थे. हरम की सलवार को हेरम`स पेंट नाम दे दिया है हा - - हा - -हा-."

साथ में वह लड़की भी ज़ोर से हंस पड़ी थी. रुचिता कभी किसी मरीज़ की बोतल में पानी भर लाती, कभी किसी के लिए डॉक्टर बुला लाती, कोई अड़ियल मरीज़ इंजेक्शन नहीं लगाना चाहता तो नर्स उसे उसका हाथ पकड़ने बुला लेती थी व कहती,"मेहता साब कितने लकी हैं जो तुम्हारे जैसी इंजीनियर लड़की उनकी सेवा कर रही है."

वह बिगड़ जाती,"सेवा ? - - - सेवा तो दूसरों की की जाती है. इन्होंने हमेशा हम लोगों की देखभाल की है. यदि मैं पापा की देखभाल नहीं करुँगी तो कौन करेगा."

सारा प्यार, सारे आदर्श, सारे रिश्ते, सारे जुडाव, स्नायुतंत्र का उत्साह फीका पड़ता जाता है जब किसी परिवार के व्यक्ति की अस्पताल में रहने की अवधि बढ़ती जाती है, पापा की हालत और बिगड़ती गयी. वेंटिलेटर लगाने की ज़रूरत पड़ने लगी. अब तीन महीने बाद वेंटिलेटर कभी कभी हटाया जाता है. रुचिता बहिनों को रिंग कर करके थक चुकी है. सजल का पहले कनाडा से फ़ोन आता था,"तुम हिम्मत मत हारना, मैं तुम्हारे साथ हूँ."

अब तो वह भी मोबाईल पर चिल्लाता है,"ये तुम्हारी समस्या है - - तुम जानो. शादी के बाद मुझे यहाँ आना पड़ा. मैं सोचता था कि मोबाईल पर ही तुमसे बात करके दिल बहला लिया करूँगा लेकिन तुम तो पापा की बीमारी का ही रोना रोती रहती हो. तुम्हारे लिए यहाँ आने का टिकट भेजना चाहता था लेकिन तुम तो - --."

"हाउ केन आई लीव हिम ?"वह रो पड़ती.

"तो भाड़ में जाओ -- --."`वह स्विच ऑफ़ कर देता

उसने पापा को प्राइवेट वोर्ड में शिफ़्ट करने की कोशिश भी की लेकिन वहाँ का प्रतिदिन खर्च सुनकर उसके पैरों तले की ज़मीन खिसक गयी थी. पापा पर कभी तरस आता है, कभी उनकी बड़ बड़ सुनकर बेहद गुस्सा आता है. उनकी सवेंदन शीलता कोसों दूर मृत पड़ी है कि उनकी बेटी अपना घर छोड़कर ज़मीन पर बिस्तर लगाकर सोती है, अस्पताल में उबाऊ दिन काट रही है. उसे आश्चर्य भी होता है इस हारे हुए शरीर में बिस्तर पर पड़े पड़े कोई भी अपनी म्रत्यु कि कामना करने लगे लेकिन उन्हें जब भी होश आता है वे यही कहतें हैं,"तू मेरे बाल ठीक से नहीं काढ़ती - - -कबसे कह रहा हूँ कि मेरे आसमानी कुर्ते में बटन लगाकर ले आ लेकिन तू तो सुनती ही नहीं है - -- तू खाना इतना बुरा क्यों खिलाती है कि पेट भरता ही नहीं है -- तू बहुत दुष्ट - -राक्षसी हो गयी है - -- तुझे हर समय भूख लगती रहती है."

रुचिता का मन होता कि उनकी पलंग की पाटी से अपना सिर फ़ोड़ ले. वह क्या कहे पापा से कि घर की दो राक्षसियां पहले ही उनका सब कुछ निचोड़ चुकीं हैं नहीं तो वह उन्हें प्राइवेट वोर्ड में रखती.

` गुज़ारिश `फिल्म का वह दादी वाला, घुंघराले बालों वाला खूबसूरत जादूगर तो कैसे इच्छा म्रत्यु के लिए तरसता था, शायद इसलिए कि वह हर समय होश में रहता था. इच्छा म्रत्यु - - --यानि मर्सी किलिंग - - - -यानि यूथनेशिया - -- ये शब्द कितने ख़ूबसूरत उच्चारण से भरा है और इसका अर्थ कितना विकृत है. दुनियां की सबसे बड़ी नियामत जीवन ! -- --अपने जीवन को आदमी सबसे अधिक प्यार करता है - --- यदि उसे ही समाप्त करने की इच्छा उत्पन्न हो जाये तो ? - ----तो वह आदमी कितने कष्ट का जीवन जी रहा होगा - -- पापा अर्ध बेहोशी में अपना कष्ट महसूस ही नहीं कर पा रहे - -=कष्ट में तो वह जी रही है. वह पापा के लिए यूथनेशिया मांग रही है ----- या अस्पताल के भरे पुरे माहौल में अकेली घूमती वह अपने लिए ?

यह शब्द जैसे अपने जबड़ों में उसके दिमाग को कैद कर बैठा है. वह जितना इसे भूलने की कोशिश करती है उतना ही इस शब्द की प्रतिध्वनि उसके मस्तिष्क में बजती है -----यूथनेशिया - ----यूथनेशिया - -- -- यूथनेशिया - - --.

कैसा अजीब इतेफ़ाक था कि उन्ही दिनों लॉन की बेंच पर बैठे हुए उसने अख़बार खोला था तो सुर्ख़ियों में छाई एक खबर की तरफ उसकी नज़र गयी कि मुम्बई कि किसी पिंकी वीरानी ने किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल में सेंतीस वर्ष से कोमा में पड़ी नर्स अरुणा रामचंद्र शानबाग के लिए सुप्रीम कोर्ट में यूथनेशिया के लिए याचिका दाखिल की है. रुचिता साँस रोके सारी खबर पड़ गयी. अरुणा इसी अस्पताल में नौकरी करती थी. किसी सफ़ाई कर्मचारी ने उसे अस्पताल के बेसमेंट में कुत्ते को बाँधने वाली चेन से बाँधकर एकांत कोने में धर दबोचा - -----अरुणा उस इन्सान के भेड़ियेनुमा हमले से इतनी क्षत विक्षत हुयी कि तुरंत ही कोमा में चली गयी. अब तक वह सिर्फ सब्जियों के सूप पर जिंदा है.

- -- ---उस सूखी ठठरी नुमा अरुणा की तस्वीर देखकर रुचिता सिहर उठी - -- ---उसे क्या किसी ही औरत को भी अस्पताल के लम्बे सूने गलियारों में रात को क्या दिन में भी डर लगता है, एक चौकन्नापन आ जाता है कि कहीं किसी कोने से कोई भेड़िया निकल कर न आ जाये - ----अब तो ऐसा लगने लगा है कि कहीं पापा भी इतने बरस ---?-- -नहीं -= --नहीं ------सिर्फ एक बरस भी वे ज़िंदा रहे तो रुचिता पूरी पागल हो जाएगी. - ---.

अरुणा की फ़ोटो से वह नज़र नहीं उठा पा रही थी. क्या अर्थ है ऐसे संज्ञा शून्य जीवन का ?वह दुनियां में रहे या जाये. जबकि अरुणा की बड़ी बहिन भी इतनी वृद्ध हो चुकी है कि देखने भी नहीं आ पाती --- -लेकिन इन्सान को क्या हक़ है जीवन की अमृत बूँद समेटने का जो वह दे नहीं सकता --- कौन सा पक्ष सही है ? ---- अरुणा को लगा उसके दिमाग की नसें बहुत खिंच रहीं हैं --वह अख़बार बंद करके उठ गयी लेकिन मन पर बिछी अरुणा की तस्वीर को पोंछ नहीं पाई थी. सारे देश में यूथनेशिया पर बहस हो रही थी लोग अपने तर्क दे रहे थे. अस्पताल में चार लोग इक्कठे होते तो यही बहस शुरू हो जाती.

चार दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने पिंकी वीरानी की अर्जी को ख़ारिज कर दिया कि यदि अरुणा की मर्सी किलिंग की गयी तो एक परंपरा कायम हो जाएगी, लोग जायदाद, पैसे के लिए अपने रिश्तेदारों की हालत बदतर बनाकर उनके लिए मर्सी किलिंग की मांग करेंगे. मुम्बई नगर पालिका ने इस अस्पताल के इस वोर्ड के अरुणा के बेड को खाली करवाने के लिए आदेश दे दिए थे लेकिन वहाँ की नर्सें बगावत कर विरोध में एकजुट हो गयीं की अरुणा को इसी अस्पताल में आजीवन रहने का हक है.

रुचिता अस्पताल की केन्टीन की तरफ इन सब बातों में उलझी चली बड़ी जा रही थी - -- म्रतप्राय लोगों के लिए भी लोग लोहे की दीवार बन जाते हैं. वह अपनी पसंद की कोने की मेज़ पर बैठ जाती है. वह ऐसे हांफ रही है जैसे मीलों चलकर आ रही हो. . उसके बैठते ही एक बेयरा ट्रे में पानी का गिलास लेकर आ जाता है,"आपके पापा अब कैसे हैं ?"

"पहले जैसे ही - -- -."उसे लग रहा है कि उसकी आवाज़ किसी कुंए से निकल रही है.

"खाने में क्या लेंगी थाली या डोसा ?"

"आज ये सब नहीं, बस एक चाय और सेंडविच."

" एक कप चाय मलाई मारकर."पास की मेज़ से आती तीखी आवाज़ को सुनकर वह बिना देखे रह नहीं सकी थी, पास की मेज़ पर बैठा था वह नाटा, काला वॉर्ड ब्वाय, वह उसकी तरफ देखकर कुटिलता से मुस्कराया. रुचिता को उसकी मुस्कराहट से काँप गयी, वह बेतक्लुफ़ होकर बोला," मैडम! आपके पापा ठीक नहीं होने वाले."

"ये तो तुम पहले भी कह चुके हो."वह तिलमिलाई.

"आप गुस्सा क्यों हो रहीं हैं ?मैं ऐसे ही थोड़े कह रहा हूँ. मैं इस अस्पताल में बीस वर्ष से नौकरी कर रहा हूँ."वह मस्ती से हाथ पर तम्बाकू घिसता बात कर रहा था.

उसे लगा वह चीखे कि वह क्यों बार बार याद दिलाता रहता है कि उसके पापा यानि यशवंत मेहरा ठीक होने वालें नहीं हैं.

"मैं देख रहा था कि आप अख़बार में बड़े ध्यान से मुम्बई कि अरुणा मैडम का समाचार पड़ रहीं थीं. पिंकी वीरानी को इतना पैसा खर्च करके, इतना समय बर्बाद करके इतनी ऊँची अदालत में फ़रियाद करके क्या हासिल हुआ ?पिंकी मैडम हम जैसे से कहतीं तो चुटकियों में ये काम हो जाता."उसने तम्बाकू अपने मुंह में भर ली.

"वॉट - - -"उसकी आँखे फटी की फटी रह गयीं थीं.

आप सही समझीं. उसने एक आँख मारी, कुछ बोलने से पहले ही वह चुप हो गया क्योंकि बेयरा ऑर्डर का सामान ले आया था. बेयरे के जाने के बाद वह बोला,"आपके पापा का केस तो और भी आसान है - -- -- रात में जब सब सो रहें हों तो चुपचाप वेंटिलेटर हटा दो तो काम बन जायेगा - -- --- और बस !"वह तम्बाकू कि काली परतों से रंगी अपनी बत्तीसी दिखा उठा था.

रुचिता का खून जम गया था, उसे लग रहा था उसके पैर भी ज़मीन पर जम गए हैं.

वह तम्बाकू चबाता हुआ बोला था," वेंटिलेटर हटाने से भी काम न बने तो तकिये से नाक और मुंह को दबा दो ---हाँ ---इस काम के लिए मोटी रकम देनी पड़ती है."

" तुम क्या बक रहे हो ?"वह इतनी ज़ोर से चीख उठी थी कि वही बेयरा दौड़कर आ गया,"क्या हुआ मैडम ?"

वह बुत बनी वहां से उठ ली थी,"मेरे हिसाब में लिख लेना,"

वह पैर घसीटती हुयी पापा वाले वॉर्ड में आई और पलंग कि पाटी पर सिर रखकर रोने लगी -जंगल में कितने जानवरों कि श्रेड़ियाँ हैं उन्हें पहचानकर नाम दे दिए गए हैं लेकिन मनुष्यों के जंगल में कितने खौफ़नाक दरिंदें है, ये अब तक कोई तय नहीं कर पा रहा.

एक नर्स ने आकर उसका माथा सहलाया,"रुचिता क्या हुआ ?माँ की याद आ रही है."

रुचिता ने टालने को"हाँ `कर दी. उस बेयरे की शिकायत भी करे तो कैसे, पता नहीं कितने दिन अस्पताल और रहना है. अच्छा है माँ इतने बुरे दिन देखने से पहले ही चल बसीं. बस उसी दिन से वह वॉर्ड ब्वाय यही फुसफुसाता रहता है,"कुछ सोचा क्या ?"

पापा का बुत बना शरीर इस समय प्रतिक्रियाहीन पलंग पर पड़ा है. वह क्या करे, चलो पास के बाज़ार में चक्कर ही मार आती है. एक दुकान पर सोचती ही रह जाती हैक्या ख़रीदे ? दो बिस्कुट पेकेट व दो नमकीन पैकेट्स लेकर लौट आती है.

सिर से पैर तक नहाने से उसके सिर की भन्नाहट कुछ कम तो हुयी है. वह देखती है वॉर्ड से डॉक्टर सेन व उनके सहयोगी डॉक्टर्स व दो नर्सें राउंड लेकर बाहर आ गए हैं. वह तेज़ कदमों से चलती उनके सामने आ खड़ी हुयी है,"डॉक्टर!एनी होप ?"

"वी आर ट्राइंग आवर बेस्ट."

"ये तो आप कबसे कह रहें हैं. उन्हें डिस्चार्ज क्यों नहीं कर देते ?"

"एक मरीज़ को मरने के लिए कैसे छोड़ दें ?"वह छोटा सा काफ़िला तेज़ मेडिकल चाल से आगे बढ़ जाता है.

"ये लोग आपके पापा को कैसे डिस्चार्ज कर सकते हैं, रोज़ इन्हें एक पेशेंट से मोटी रकम मिलती है."

रुचिता घूमकर देखती है, एक युवती उससे ही कह रही है. वह उससे कहती है", ये बात मैं भी समझती हूँ, एक एक डॉक्टर के हाथ जोड़कर थक गयीं हूँ कि मुझ पर रहम करें, मैं अपने पापा को अपने पास लखनऊ ले जाऊं."

उस युवती के साथ खड़ा युवक कहता है,"आप इन्हें चुपचाप निकाल कर ले जाइये."

"मैं तो ऐसा पहले भी कर सकती थी किन्तु अस्पताल वाले केस कर देंगे."

वह युवती परिचय देती है,"मैं तन्वी और ये मेरे भाई तनय हैं. मेरे बेटे का हार्ट का ओपरेशन हुआ है."

"वह तो बहुत छोटा होगा ?"

"हाँ, सिर्फ़ पांच साल का है. मैंने आपको अनेक बार अस्पताल में बदहवास घूमते देखा है. ऐसा लगता है परेशानियों ने आपको बौखला दिया है, नींद में खोयी खोयी सी चलतीं हैं."

रुचिता की आँखें सजल हो आयीं,", मुझे जब उनकी बीमारी की खबर मिली थी तो मैं जल्दी में चली आई थी. अब तो वह ठीक ही नहीं हो पा रहे."

"प्लीज़ !रोइए नहीं मेरे कमरे में बैठकर बात करतें हैं."

उस विशाल प्राइवेट वोर्ड के गुदगुदे सौफ़े मैं धंसकर रुचिता को बहुत अच्छा लगा. पलंग पर लेते हुए बच्चे ने चहक कर कहा,"गुड मॉर्निंग आंटी !"

रुचिता खुलकर मुस्करा उठी,"गुड मोर्निंग!"

तन्वी उसके पास आ बैठी, उसका भाई सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया. तन्वी ने उससे कहा,"मेरा बेटा दो महीने पहले भी एडमिट हुआ था, मैं आपको देखकर आश्चर्य करती थी क्योंकि आप मर्दाना स्वेटर पहन कर घूमतीं थीं."

"मेरा स्वेटर गन्दा हो गया था, एक ही लेकर आई थी इसलिए पापा का स्वेटर पहन कर घूमती थी. भगवान मेरे पापा को ठीक नहीं कर रहा और मैं बिलकुल अब किसी की परवाह नहीं करती, कोई हँसता है तो हँसता रहे"

" मेरा मतलब आपको चोट पहुँचाना नहीं था."

रुचिता उन्हें धीरे धीरे बताने लगी कि किस तरह पापा बीमार हुए, किस तरह वो नाटा. काला वॉर्ड ब्वाय उसे तंग करता है.

तनय कुछ सोचते हुए बोला,"मैं आपको एक डिटेक्टिव पेन लाकर दूंगा. आप डॉक्टर को बातों में उलझा कर ये निकलवा लीजिये कि अब मेडिकल साइंस का कोई इलाज आपके पापा को ठीक नहीं कर सकता और आप अपने पापा को यहाँ से ले जाइये. यदि ये केस करतें हैं तो आप उस रिकोर्डिंग से इन्हें कोर्ट में हरा सकतीं हैं."

तन्वी गर्व से बोली,"मेरा भाई सक्सेसफुल बिज़नेसमेन है, सही राय देगा. अब आप हमारे साथ खाना खाकर जाइये."

हाथ की प्लेट से एक निवाला तोड़कर खाकर रुचिता फूट फूट कर रो पड़ी,"ढाई महीने बाद घर का खाना खा रहीं हूँ."

तन्वी ने उसकी पीठ सहलाई,"वैसे तो आपके पिता जल्दी ही ठीक हो जायेंगे लेकिन एक सप्ताह मैं यहाँ और हूँ. तब तक तनय आपके लिए भी खाना ले आयेंगे."

रुचिता व तन्वी तनय का लाया पेन हाथ में लेकर बहुत रोमांच से भर उठें हैं. वह रुचिता को उसके उपयोग करने की विधि बता रहा है. रुचिता थोड़ी नर्वस हो रही है,"यदि मैं पकड़ी गयी तो कहीं धोखाधड़ी के केस में ये लोग न फंसा दें."

तन्वी ने दूसरे दिन रुचिता को अपना एक कुर्ता पहना दिया जिसमें ऊपर की तरफ जेब थी. उसने उस जेब में वह पेन लगा दिया व उसे हौसला दिया," नाउ, यु आर रेडी फ़ॉर योर मिशन."

प्रमुख डॉक्टर रात के राउंड के बाद अपने कमरे में बैठ चुके थे. रुचिता ने उनकी अनुमति लेकर कमरे में प्रवेश किया. उनका सफ़ेद एप्रिन उनकी रिवॉल्विंग चेयर पर टंगा था. वे किसी फ़ाइल को पढ़ रहे थे. उन्होंने सिर उठाकर पूछा,"एनी प्रॉब्लम रुचिता ?"

"मेरा तो जीवन ही प्रॉब्लम बन गया है. तीन महीने सात दिन से हम यहाँ है. डॉक्टर !मेरे पापा को आप ठीक क्यों नहीं करते?"

"आप देख तो रही हैं कि हम हर हफ़्ते उनकी दवाई बदल कर इलाज कर रहे हैं. `.

"कैसी दवाई बदलते है, उन पर कुछ असर नहीं होता. अब तो बोलने में भी उनकी जीभ लड़खड़ाती है."

"देखिये ये `सीवियर पेरालिसिस `है और आपने उन्हें हॉस्पिटल लाने में देर कर दी. ऊपर से उन्हें `ब्रेन इंफ़ेक्शन` हो गया है."

"मेरे पापा के इलाज में लापरवाही हो रही है."

"वॉट डु यू मीन बाय दिस?"डॉक्टर तिलमिला उठे,"आप देखती नहीं है, मै चार बार उन्हें देखने जाता हूँ जबकि मेरी ड्यूटी सिर्फ़ दो बार वॉर्ड में राउंड लेने की है."

"तो आप लोग नकली दवाइयाँ खरीदते होंगे ?"

"देखिये आप इतने रेपुटेड नर्सिंग होम पर इल्ज़ाम लगा रही है. हम क्या इतने बेवकूफ़ कि अपने मरीज़ो को नकली दवाईयाँ देंगे ?ये एक मशहूर अमेरिकन हॉस्पिटल की फ़्रेचाइज़ है."

"तो आप लोगो में नॉलेज नहीं होगी."रुचिता उन्हें भड़काये जा रही थी

"यू शट अप रुचिता ! आप जो मन में आ रहा है बोले जा रही है. सच तो ये है कि इन्हे दुनिया का कोई इलाज ठीक नहीं कर सकता. उनका दिमाग धीरे धीरे डैड हो रहा है. वह् कुछ समय बाद बोलना भी बंद कर देंगे समझी."

"उनका इलाज नहीं हो सकता तो उन्हें डिस्चार्ज क्यों नहीं कर देते ?"

"उनकी लाइफ़ सपोर्ट हटा दी गई तो वे मर जाँयेंगे."

रुचिता कुछ देर वही बैठी सिसकती रही. उसने पर्स में से रूमाल निकाला और बोली,"आई वांट टू लीव."

वह् भरे गले से बाहर आ गई -पापा के केस में डॉक्टर मौन है, इलाज मौन है. तन्वी का वॉर्ड दिखाई देते ही उसकी चाल में तेज़ी आ गई. रुचिता वह् पेन तनय के हाथ में देते हुए बोली,"तनय भइया !आख़िर डॉक्टर से उगलवा ही लिया कि पापा का इलाज नहीं हो सकता."

तनय ने भी उत्साह से पेन हाथ में लिया व बोला,"आप अपना समान पैक करना शुरू कर दीजिये. मै आपको व आपके पापा को अपनी गाड़ी में आपके घर छोड़ दूँगा." तनय ने पेन का स्पीकर ऑन किया, उसमें से डॉक्टर की आवाज़ आई","एनी प्रॉब्लम रुचिता ?"

"मेरा तो जीवन ही ----किर्र---किर्र -----श -----सूं ----सूं."तनय ने तीन चार बार पेन का स्विच ऑन किया लेकिन वहाँ तो मरघटी सन्नाटा था. उसने व्यग्रता से पेन खोला और झुंझला पड़ा,"ओ शिट !इसका चार्जर कोने से टूट गया है. याद आया, टेस्ट करते समय ये मेरे ही हाथ से गिर गया था. `

वॉर्ड में दो हताशा भरी आवाजें सिसक उठीं.

रुचिता फिर बौराई सी बिना उनसे कुछ कहे अपने वॉर्ड की तरफ़ पैर घसीटती चल दी. तन्वी को भी उसे रोकने की हिम्मत नहीं पड़ी. वॉर्ड में लौटकर ज़मीन के अपने बिस्तर पर लेटकर वह् बिना आवाज़ सिसकती सो गई.

रात के दो बजे उसे एक नर्स उठाती है," मै मेहता साब का वेंटिलेटर हटा रही हूँ. इनका ध्यान रखिए

वह आँखें मलती, झोंका खाती हुई स्टूल पर आ बैठी है. पापा के लिये रात के दो बजे सवेरा हुआ है. उनके चेहरे पर चमक आ गई है,"मेरे लिए नई टी शर्ट नहीं लाई है ?---मैंने कहा था ना, जब तक अस्पताल में रहूँगा तब तक नई टी शर्ट पहनूँगा. ----तू बोल क्यों नहीं रही ?---तू सोच रही होगी कि बाप यही मर खप जाए -----और तू सामान व रुपया पैसा लेकर लखनऊ भाग जाए."

पहले का समय होता तो उसे लगता कि धरती फट जाए और वह उसमें समा जाए लेकिन वह ऊंघते हुए उनकी बात सुन रही है बिना किसी प्रतिक्रिया के.

"कल तू क्या कह रही थी कि डॉक्टर अस्पताल से जाने नहीं दे रहे ? ---जवाब क्यों नहीं दे रही."

वह चौंककर सीधी बैठ गई,"हाँ, यही कह रही थी."फिर उसे नींद का झोंका आया, वह स्टूल से गिरते गिरते बची.

"तू ऎसा कर ------"

"कैसा -----?" मन तो हो रहा था कि ज़ोर से चीख पड़े लेकिन और मरीजों के कारण उसे आवाज़ दबानी पड़ी

"ऎसा कर तू हनुमान बन जा -----मै तेरी पूँछ पकड़ कर तेरी पीठ पर चढ़ जाऊँगा ----तू मुझे अपनी पीठ पर बिठाकर आसमान में उड़ जाना -----ये साले अस्पताल वाले देखते रह जायेंगे. कर तो कुछ पाएँगे नहीं. ----अब मै बिलकुल यहाँ नहीं रहना चाहता. `

वे सच ही आँसुओं से रो पड़े,"तू मेरे लिए हनुमान भी नहीं बन सकती ? ----तू क्यों नहीं समझ पाती कि मेरा यहाँ कितना दम घुट रहा है. यहाँ से जाकर मै घर में चलने फिरने लगूंगा ---सच कह रहा हूँ. तू बस मेरे लिए हनुमान बन जा."

रुचिता ने सुबह होते ही मोबाइल पर पापा की नई फ़रमाइश बता दी व खीज उठी,"बोलिये मै क्या करूँ ?"

तन्वी के पास भी कहां उत्तर था.

दिन में तन्वी इंतज़ार कर रही थी कि रुचिता खाना खाने क्यों नहीं आई ?दो दिन तक वह् व तनय रुचिता के पापा के वॉर्ड केचक्कर लगाते रहे लेकिन वह् दिखाई नहीं दी. उसने अपना मोबाइल भी स्विच ऑफ़ करके रक्खा हुआ था. ड्यूटी नर्स से पूछा तो उसने कहा," अभी अभी तो वह यही थी,"

तन्वी को चैन नहीं पड़ा रहा था. तीसरे दिन तनय को अपने बेटे के पास बैठाकर वह रुचिता के पापा के वॉर्ड की तरफ गई. देखकर हैरान रह गई कि उनका पलंग खाली थी. पलंग के पास की आलमारी में उनका समान नहीं दिखाई दे रहा था. एक नर्स पास के पलंग पर लेते युवक की बाँह में ड्रिप लगाने के लिए नस खोज रहे थी.

उसने व्यग्रता से पूछा,"इस पलंग पर जो साहब थे वे कहां हैं ?"

"उनकी तो आज सुबह डेथ हो गई. जब मै आठ बजे ड्यूटी पर आई थी तो एंबुलेंस आ चुकी थी. मेरे सामने ही रुचिता ने पैक अप किया था।"

“वॉट ?"

इतनी बेमुरव्वती ?माना कि वह परेशान थी लेकिन उसने तन्वी को पापा की डेथ के बारे मे बताना भी उचित नहीं समझा. तन्वी को वही ज़ोर का धक्का लगा जो किसी को नि;स्वार्थ सहायता पहुँचाकर, उसी से चोट खाकर लगता है. तन्वी समझा नहीं पा रही कि उनकी मौत पर दुखी हो या खुश.

वह गलियारे में बड़ी चली जा रही है. तभी सामने से सफ़ेद कुर्ते व पायजमे में, सफ़ेद ही टोपी लगाए वही नाटा व काला वॉर्ड ब्याय आत्मविश्वास भरी चाल से आता दिखाई देता है. वह तन्वी व रुचिता की दोस्ती के विषय में जानता था. वह पास आकर बोलता है,"गुड मॉर्निंग मैडम !"कहकर कुटिलता से मुस्कराकर तंबाकू से रंगी कत्थई पड़ गई अपनी बेशर्म बत्तीसी दिखाई व बड़ी अदा से अपनी टोपी ठीक करते हुए सीटी बजाता आगे बढ़ गया.

तन्वी बमुश्किल घिसटती हुई लड़खड़ाते कदमों से अपने वॉर्ड की तरफ बढ़ने लगी.

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