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निश्छल प्रेम

निश्छल प्रेम

“बेटा तू खुश तो है ना अपनी नौकरी से?” माँ मेरठ के एक छोटे से गाँव से पुणे में बात कर रही थी, कुछ ही दिन पूर्व बेटी ने आइ आर एस की परीक्षा प्रथम स्थान पाकर सफल की थी, तभी उसको दक्षिण रेलवे में नियुक्ति मिली, दक्षिण रेलवे का पुणे जंक्शन ही सबसे निकट था अतः पुणे का स्टेशन मिल गया। सरकारी बंगला रहने के लिए, बड़ा सा कार्यालय, कार्यालय के विभिन्न कार्यों हेतु अलग अलग कर्मचारी और सभी सुख सुविधाएं, फिर भी........

“माँ मुझे यहाँ पर सब कुछ मिला लेकिन पता नहीं क्यों मेरा मन उदास सा रहता है, मैं समझ नहीं पा रही कि मैं वास्तव में क्या चाहती हूँ?” जया ने बड़े ही उदास मन से यह बात माँ को बताई........

जया समझ नहीं पा रही थी कि वह अपने कार्य से असंतुष्ट है या कुछ और पीछे छोड़ आई है जो उसकी धुंधली यादों में है, बचपन की कुछ धुंधली यादें बड़े होकर परेशान करने लगती हैं।

राघवेंद्र गाँव का ही एक गरीब लड़का था जो सुंदर भी था और पढ़ाई में होशियार भी, जया और राघवेंद्र कक्षा में सदैव साथ साथ बैठते थे........

एक दिन जया ने राघवेंद्र से कहा, “तुम बहुत अच्छे हो, सुंदर भी और होशियार भी।”

राघवेंद्र बड़े ही ध्यान से जया की बातें सुन रहा था जया का एक एक शब्द उसके कानों में शहद घोल रहा था........

राघवेंद्र जया की बातों में इतना खो गया कि उसको यह भी आभास नहीं रहा कि उसने जया को अपनी बाहों में भर लिया है और लगातार कहे जा रहा है, "हाँ जया! मुझे भी तुम बहुत अच्छी लगती हो, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ........"

जब वे दोनों बच्चे अपने निश्चल भाव से एक दूसरे के निश्चल प्रेम में आलिंगनबद्ध थे तभी जया के एक चचेरे भाई अमरीश ने उनको देख लिया।

"राघवेंद्र! तेरी इतनी हिम्मत कि हमारी बहन को हाथ लगाए?" और अमरीश उसको पीटते घसीटते हुए अपने घर तक ले गया, जया रोती रही चिल्लाती रही लेकिन अमरीश ने राघवेंद्र को नहीं छोड़ा, घर पर ले जाकर राघवेंद्र को रस्सियों से बांध दिया और जया को एक कमरे में बंद कर दिया।

इस बात से जगमेर को भयंकर क्रोध आ गया और जगमेर के परिवार ने प्रलयंकारी निर्णय लेते हुए तय किया कि इस उद्दंड लड़के को मार कर जंगल में गाड़ दिया जाए और इस किस्से को यहीं खत्म कर दिया जाए।

सुमति से जब यह सब सहन नहीं हुआ, वह छिपते छिपाते राघवेंद्र के पिता प॰ भोला दत्त शास्त्री के घर पहुँच गयी। भोला दत्त शास्त्री एक गरीब ब्राह्मण, गाँव में झुग्गी डाल कर रहता था, परिवार में पत्नी व एकमात्र संतान राघवेंद्र ही थे, अतः सुमति नहीं चाहती थी कि राघवेंद्र को किसी तरह का नुकसान हो अतः वह प॰ भोला दत्त शास्त्री को जल्दी से अपने साथ लेकर घर पहुँच गयी जहां पूरे परिवार ने रस्सियों से बंधे राघवेंद्र को मारने की पूरी तैयारियां कर ली थी।

प॰ भोला दत्त एक शास्त्री और पंडित होने पर भी जगमेर के पैरों पर गिरकर गिड्गिड़ाने लगा, "मालिक! मेरे बेटे को माफ कर दो, मैं रात में ही यह गाँव छोड़ कर चला जाऊंगा और फिर कभी भी आपको नजर नहीं आऊँगा।" सुमति ने भी अपने ससुर से हाथ जोड़ कर राघवेंद्र को माफ कर देने की प्रार्थना की।

ठाकुर जगमेर ने कुछ शर्तों के साथ प॰ भोला दत्त शास्त्री पर दया करते हुए तुरंत गाँव छोडने की धमकी देकर राघवेंद्र को छोड़ दिया।

सुमति ने कुछ रुपए जोड़ रखे थे जो उसने चुपचाप प॰ भोला दत्त शास्त्री को दे दिये, हालांकि पंडितजी लेने से मना कर रहे थे लेकिन सुमति के आग्रह पर उन्हे स्वीकार करना ही पड़ा।

उसके बाद प॰ भोला दत्त अपने परिवार को लेकर कहाँ गए किसी को भी पता नहीं था ........

शायद उस दिन जया को अपने बचपन का वह निश्चल प्यार राघवेंद्र भी याद आ रहा था, "पता नहीं राघवेंद्र कहाँ होगा, कैसा होगा, क्या कर रहा होगा?"

माँ थोड़ी सोच में पड़ गयी फिर अचानक कहने लगी, "बेटा जया! तुझे याद है जब तूने दसवीं बोर्ड की परीक्षा में पूरे राज्य में प्रथम स्थान प्राप्त करके सबको चौंका दिया था, उस समय हमारे घर सभी तरह के पत्रकार आए हुए थे जो हमसे तरह तरह के सवाल पूछ रहे थे, उन पत्रकारों में से ही एक ने तेरे से एक सवाल पूछा था कि तुम बड़ी होकर क्या बनना चाहोगी तब तुमने क्या जवाब दिया था?"

“हाँ माँ, मैं उस बात को तो भुला ही चुकी थी, अब आपने याद दिलाया तो मुझे याद आ गया, मैंने उस समय कहा था कि मैं क्लेक्टर बनना चाहुंगी, शायद इसीलिए मेरे मन में खालीपन सा है, मायूसी सी है और एक अतृप्त इच्छा सी है, ठीक है माँ, अब मैं अपनी असली मंजिल पाकर ही रहूँगी।”

माँ से इतनी बात करके जया ने फोन काट दिया और उसी दिन से भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा की तैयारी में लग गयी।

कोई भी परीक्षा, किसी भी तरह की पढ़ाई जया के लिए मुश्किल नहीं थी, बचपन से हर कक्षा में प्रथम आना उसका उद्देश्य था, दिमाग तो तेज था ही साथ में मेहनत में भी कोई कमी नहीं रहने देती थी।

उत्तर प्रदेश जिला मेरठ के गाँव पूंठ की एक रुड़ीवादी राजपूत परिवार में जन्मी जया इस भरे पूरे परिवार की सबसे छोटी बेटी होने के कारण सबकी दुलारी थी........

घर के मुखिया जगमेर सिंह, जया के दादाजी के चार पुत्र थे उनकी कोई बेटी नहीं थी न ही जगमेर सिंह के कोई बहन थी अतः वह हमेशा से एक पुत्री या एक पोती की कामना मन में रखते थे........

बड़े बेटे के यहाँ तीन पुत्रों ने जन्म लिया, दूसरे नंबर वाले बेटे के यहाँ तो एक पुत्री की चाह में चार पुत्र हो गए, तीसरे बेटे ने दो बेटों के जन्म के बाद परिवार नियोजन अपना लिया था और चौथे बेटे के यहाँ पहली संतान के रूप में पुत्री ने ही जन्म लिया।

इतनी सुंदर कन्या को पाकर धर्म सिंह और उसकी पत्नी सुमति बहुत ही प्रसन्न थे, दादा जगमेर की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था........

कन्या का नामकरण जया के रूप में हुआ और सबका लाड़ प्यार जया को मिलने लगा.......

नौ भाइयों की अकेली बहन, तीन ताऊ, तीन ताई और दादा दादी वाला परिवार, थोड़ी थोड़ी देर भी जया को गोद में लेकर खिलाते तो दिन पूरा हो जाता........

जया बड़ी हुई, सभी भाइयों के साथ स्कूल जाने लगी, प्रारम्भ से शिक्षक जान गए थे कि यह लड़की मेधावी है, अवश्य ही बड़ी होकर उच्च पद पर जाएगी अतः एक दिन शिक्षक ने धर्म सिंह और उसकी पत्नी सुमति को स्कूल में बुलाकर कहा, “ठाकुर साहब, इस बेटी की पढ़ाई मत रोकना, यह बेटी एक दिन तुम्हारा नाम रोशन करेगी।”

दसवीं तक का स्कूल गाँव में ही था, बोर्ड की परीक्षा थी लेकिन जया को जरा भी महसूस नहीं हुआ कि वह बोर्ड की परीक्षा दे रही है।

सभी लोगों को आश्चर्य तो तब हुआ जब दसवीं का परीक्षा परिणाम घोषित होते ही जगमेर सिंह के घर पर अखबार वालों, न्यूज़ चैनल वालों और दूसरे पत्रकारों की भीड़ जमा हो गयी........

सभी पत्रकार जया का साक्षात्कार करना चाहते थे, अखबार वाले जया का फोटो अपने अपने अखबार में छापना चाहते थे........

सभी घर वाले घर की बैठक में जमा हो गए, पत्रकार एक एक करके जया से प्रश्न करने लगे, कोई कोई तो ठाकुर जगमेर सिंह को बधाई देकर उनसे ही प्रश्न करने लगे........

एक पत्रकार ने जया से पूछा, “जया! पढ़ लिख कर आप क्या बनना चाहेंगी?”

तब जया ने अनायास ही बोल दिया, “मैं बड़ी होकर क्लेक्टर बनना चाहूंगी।” तब सब लोग यह सुनकर चौंक गए और जया के मुंह की तरफ देखने लगे।

धीरे धीर भीड़ छंट गयी और घर वाले घर में खुशी मनाने लगे लेकिन धर्म सिंह और सुमति को आगे पढ़ने के बारे में सोचना था जबकि जगमेर जया को आगे की पढ़ाई के लिए मेरठ भेजने के पक्ष में नहीं था। सुमति के काफी समझाने पर जया को मेरठ भेजकर पढ़ाने के लिए तैयार हुए लेकिन सुमति को भी साथ रहने का आदेश दिया।

सुमति बेटी की आगे की शिक्षा जारी रखने के लिए गाँव छोड़ कर मेरठ में बेटी के साथ रहने लगी।

माँ बेटी की मेहनत रंग लायी और आइ आइ टी पुणे में जया का चयन हो गया........

अब जया पुणे चली गयी और आइ आइ टी हॉस्टल में रहने लगी.......

इंजीनियरिंग का कोर्स पूरा होने पर आइ आर एस की तैयारी की और पहली बार में ही चुन ली गयी लेकिन इससे जया के मन को संतुष्टि नहीं मिली, तब उसने भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा दी और उसमे भी प्रथम स्थान पाकर सफल रही, जया अपने प्रशिक्षण हेतु मसूरी पहुँच गयी।

आज लाल बहादुर शास्त्री अकादमी में जया का पहला दिन था........

सभी चयनित उम्मीदवारों को एक हाल में एकत्रित होने को कहा गया, कुछ देर में सभी उम्मीदवार उस हाल में पहुँच गए........ बारी बारी से सभी उम्मीदवारों का परिचय कराया जाने लगा........ परिचय के समय जब एक उम्मीदवार ने अपना नाम राघवेंद्र दत्त शास्त्री बताया तो जया चौंक गयी....... परिचय की बारी आने पर जया ने अपना पूरा नाम जया जगमेर सिंह गाँव पूंठ मेरठ बताया तो अब चौंकने की बारी राघवेंद्र की थी।

दोनों ही बड़े हो गए थे, शक्ल सूरत में काफी बदलाव आ गया था, और भी आकर्षक लगने लगे थे। अकादमी के हाल से निकल कर शाम को जब वे दोनों मिले तो देखते ही रह गए, राघवेंद्र ने चुप्पी तोडी और कहा, “जया मेरा प्यार सच्चा है, मैं हमेशा तुम्हारा नाम जपता रहता था और भगवान से प्रार्थना करता था कि हमे मिला दे, भगवान ने मेरी प्रार्थना सुन ली और देखो आज उसने हमे फिर से मिला दिया।”

“हाँ राघवेंद्र! भगवान ने हमें फिर से मिला दिया अब हमें कोई भी अलग नहीं कर सकता। और हाँ ..... राघवेंद्र! आज मैं समझी कि मैं इतनी अच्छी नौकरी पाकर भी परेशान क्यों थी क्योंकि तुम्हारा जप तप तो मुझे चैन से रहने नहीं दे रहा था, अपनी ओर खींच रहा था इसीलिए मैं अतृप्त सी भी थी।”

“आज मैं अपनी नौकरी और जीवन दोनों से पूर्णतया संतुष्ट हूँ यह हमारा बचपन का निश्छल भाव से किया गया निश्छल प्यार ही है जिसने हमें फिर से मिलाया है।”

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