आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 17 Subhash Neerav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 17

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद

हरमहिंदर चहल

अनुवाद : सुभाष नीरव

(17)

“जी मुझे इजाज़त दो।“ इतना कहते हुए वह बाहर निकल गया और फराखान मार्किट पहुँच गया। वहाँ पहुँचकर वह एक भीड़ वाली जगह पर खड़ा हो गया ताकि अधिक से अधिक लोगों को शिकार बना सके। एक बज गया, पर उसके पेट से बंधा बम न फटा। कोई आधा घंटा वह वहाँ खड़ा रहा, पर उसको बताये गए समय के अनुसार बम नहीं फटा और न कोई धमाका हुआ। आखि़र वह वापस लौट आया तो वहाँ कोई नहीं था। वहाँ से वह घर चला गया। अगले दिन वह उसी मज़हबी हस्ती के पास गया तो उसने कहा, “बधाई हो।“

“जी !“ मजीद खां हैरान हुआ।

“तू खालिद शेख मुहम्मद साहिब के इम्तिहान में पास हो गया। असल में, कल तुझे तो बैल्ट दी गई थी, वह नकली थी। सिर्फ़ तुझे परखने के लिए। पर तू वाकिया ही पक्का जिहादी है। के.एस.एम. तुझे बड़ा काम सौंपने वाले हैं।“

फिर अगले सप्ताह उसको पैसे देकर इंडोनेशिया भेजा गया। उसने वहाँ पहुँचकर किसी हंबाली नाम के व्यक्ति से सम्पर्क किया और पैसे पहुँचाए। इन पैसों की मदद से हंबाली ने अगले हफ़्ते बाली के किसी क्लब में बम धमाका किया जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए। इसके पश्चात, मजीद खां और छोटे-मोटे काम करके के.एस.एम. के पास वापस लौट आया तो उसको अली के हवाले कर दिया गया। मजीद खां को अमेरिका भेजकर आगे का काम करने की ट्रेनिंग देने का काम अली का था। के.एस.एम. ने अली से मिलकर दूसरे बड़े हमले की जो साजिश तैयार की थी, उसमें वह मजीद खां को इस्तेमाल करना चाहता था। उसके माध्यम से वह अमेरिका के तेल भंडारों को आग लगाने या वहाँ पीने वाले जल में ज़हर मिलाने का काम करना चाहते थे। लेकिन मजीद खां ने बताया कि वह अब अमेरिका में दाखि़ल नहीं हो सकता। अली ने कारण पूछा तो मजीद खां ने बताया कि वह अमेरिका से चलते समय ट्रैवल परमिट लेना भूल गया था। और इस परमिट के बग़ैर वह अमेरिका में प्रवेश नहीं कर सकेगा। कुछ सोचता हुआ अली बोला, “मजीद जो हो गया, सो हो गया। अब उस वक़्त को वापस तो नहीं लाया जा सकता। पर तू यह बता कि इस मुश्किल का कोई हल है ?“

“हल तो इसका है, पर वह काफ़ी कठिन है।“

“हल क्या है तू बता। कठिन को आसान बनाना तेरा नहीं, मेरा काम है।“

“वह यह है कि रिफ्यूजी सिस्टम वाले व्यक्ति को अमेरिका से बाहर जाने के लिए ट्रैवल परमिट लेना पड़ता है। उस परमिट के बिना वह दुबारा अमेरिका में दाखि़ल नहीं हो सकता। ट्रैवल परमिट लेने वाले व्यक्ति को अमेरिका से चलने से पहले ही यह परमिट लेना होता है। या यूँ कह लो कि परमिट लेने वाला व्यक्ति अमेरिका में होना चाहिए। वहाँ पहले वह अर्ज़ी भरकर इमिग्रेशन विभाग को मेल करता है। फिर बाद में उन्हें फोन करना पड़ता है। इसके बाद ही वे ट्रैवल परमिट भेजते हैं।“

“हम अब क्या कर सकते हैं, वह बता ?“

“वहाँ से कोई व्यक्ति मेरी अर्ज़ी इमिग्रेशन वालों को मेल करें फिर मजीद खान बनकर उन्हें फोन करे। पर इसमें एक अड़चन और है।“

“वह क्या है ?“

“कोई व्यक्ति वहाँ से अर्ज़ी भी भेज सकता है। मजीद खान बनकर फोन भी कर सकता है, पर मेरे पास वहाँ का कोई एड्रेस नहीं है जिस पर सारी कार्रवाई पूरी होने के बाद इमिग्रेशन वाले ट्रैवल डाक्युमेंट भेजेंगे। यह एड्रेस कोई ऐसा होना चाहिए जो कि बाद में पकड़ा न जा सके। फ़र्ज़ करो कि मैं वहाँ अपने घर का एड्रेस ही दे देता हूँ तो पता लग जाने पर एफ.बी.आई. तुरंत मेरे परिवार को पकड़ लेगी। साथ ही, तभी मेरा नाम भी सामने आ जाएगा।“

“फिर इसका हल क्या है ?“

“कोई भरोसेमंद आदमी वहाँ के किसी पोस्ट आफिस में मेरे नाम का पोस्ट बॉक्स किराये पर ले ले। वही पता मैं अपनी अर्ज़ी में भेजूँगा। जब एकबार परमिट आ गया तो पोस्ट बॉक्स में से परमिट उठाकर पोस्ट बॉक्स बंद कर दिया जाएगा। इस प्रकार सारे सबूत खत्म हो जाएँगे।“

“हूँ... अब समझा मैं तेरी बात, पर...।“ आगे अली सोचने लगा कि ऐसा भरोसेमंद आदमी कौन हो सकता है जो इतना बड़ा खतरा मोल ले ले। उसकी यह भी सोच थी कि यह काम किसी आम व्यक्ति से नहीं करवाया जा सकता। इस प्रकार सारी पोल खुल जाएगी। इसके लिए कोई सच्चा जिहादी ही हो सकता है। सोचते सोचते एकदम उसके मन में आफिया का ख़याल आ गया। उसने यह बात आफिया से करने का मन बना लिया। उसने अपनी बहन को भेजकर आफिया को घर में बुला लिया और अवसर मिलते ही मजीद खां की सारी कहानी सुना दी। आफिया ने पूछा, “मैं इसमें क्या कर सकती हूँ ?“

“तू अमेरिकन रैजीडेंट है। तू वहाँ बड़ी आसानी से जा सकती है। ग्रीन कार्ड होल्डर होने के कारण तेरे पर कोई शक भी नहीं करेगा।“

“मगर मैंने तुम्हें पहले ही बता रखा है कि मैं और अमजद एफ.बी.आई की इंटरव्यू बीच में ही छोड़कर भाग आए थे। इस कारण एफ.बी.आई. हमें ज़रूर ढूँढ़ रही होगी। मुझे डर लगता है कि कहीं उनके हत्थे ही न चढ़ जाऊँ।“

“वैसे तो बड़ी शेखियाँ मारती फिरती है कि मैं जिहाद के लिए कुछ भी कर सकती हूँ।“

“बात वो नहीं है। बात यह है कि मुझे अभी बहुत कुछ करना है। अगर शुरुआत में ही पकड़ी गई तो जिहाद के लिए जो कुछ करने के बारे में सोचा हुआ है, वे सारे सपने अधूरे ही रह जाएँगे।“

“आफिया कल किसने देखा है। और फिर, यह न भूल कि हम जिहादी हैं। और जिहादी आने वाले ख़तरों से नहीं डरा करते।“

“ठीक है। बता फिर मुझे क्या हुक्म है।“ अली के शब्दों ने आफिया के मान-सम्मान पर चोट मारी तो वह हर ख़तरा उठाकर अमेरिका जाने के लिए तैयार हो गई। आगे का सारा प्रबंध कर दिया गया। लेकिन आफिया की सलाह पर यह काम दो हिस्सों में करने के बारे में सोचा गया। पहले हिस्से में आफिया ने सिर्फ़ अमेरिका जाना था और वहाँ मजीद खां के नाम पर किसी पोस्ट ऑफिस में पोस्ट बॉक्स किराये पर लेकर वापस लौट आना था।

इसके तीसरे दिन ही आफिया कराची से अमेरिका के लिए रवाना हो गई। पूरे रास्ते उसको एकपल भी चैन न आया। उसको बार बार एफ.बी.आई. का डर सताता रहा कि कहीं ऐसा न हो कि उसे उतरते ही पकड़ लिया जाए। लेकिन ऐसा कुछ भी न हुआ। वह मौज से बाल्टीमोर एअरपोर्ट पर उतरी और सामान उठाकर बाहर निकल आई। सामने ही टैक्सी खड़ी थी। वह अपना बैग उठा टैक्सी में जा बैठी। संयोग से टैक्सी ड्राइवर पाकिस्तानी ही था। होटल तक जाते हुए वह उसके साथ बातें करती रही। आफिया ने बातों बातों में बताया कि वह पाकिस्तान सरकार की अधिकारी है और यहाँ किसी सेमिनार में भाग लेने आई है। इस कारण किसी होटल में ठहर रही है। वह होटल पहुँची और डैस्क पर जाकर कमरा बुक करवा लिया। अगले दिन वह दोपहर के बाद टैक्सी लेकर करीबी शहर गैदर्सबर्ग के पोस्ट आफिस में गई और पोस्ट बॉक्स किराये पर लेने के लिए अर्ज़ी भरी। अर्ज़ी में उसने अपने पति का नाम मजीद खां लिखा। थोड़ी-बहुत काग़ज़ी कार्रवाई के बाद आफिया सद्दीकी और मजीद खां के नाम पर पोस्ट बॉक्स मिल गया। आफिया ने पोस्ट बॉक्स की चाबी लेकर पर्स में डाली और बाहर आकर टैक्सी से फिर होटल चली गई। अगले दिन वह फ्लाइट लेकर वापस पाकिस्तान लौट आई। वहाँ पहुँचकर उसने नए खोले पोस्ट बॉक्स का पता और चाबी, दोनों अली के हवाले कर दिए।

अब अली ने काम के दूसरे भाग को अंजाम देने के लिए योजना बनानी प्रारंभ कर दी। मजीद खां ने नए पते के अनुसार अपनी अर्ज़ी भरकर तैयार कर ली थी। अली किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश करने लगा जो उनके काम के अलग हिस्से को पूरा करने में मदद कर सके। इसके लिए भी भरोसेमंद व्यक्ति की ज़रूरत थी। बहुत सोच विचार के बाद अली ने यह बात अपने मामा के.एस.एम. को बताई। उसने अली से कहा कि वह एक आध दिन में उसके लिए कोई प्रबंध करेगा। दूसरे ही दिन के.एस.एम. ने अली से कहा कि शाम के समय वह सुपर स्पाइसी रेस्टोरेंट में चला जाए। वहाँ उसको उज़ेर पराचा नाम का लड़का मिलेगा जो कुछ दिन बाद ही अमेरिका जा रहा है। उसके साथ बात कैसे करनी है, के.एस.एम. ने यह सबकुछ अली को समझा दिया। उधर उज़ेर को उसके पिता सैफउल्ला पराचा ने कह दिया कि उसके कोई जान-पहचान वाले हैं, वह उनकी मदद कर दे। उज़ेर को पता था कि उसका पिता बड़ा बिजनेसमैन है और उसके कई अल-कायदा मेंबरों से भी संबंध हैं। लेकिन स्वयं वह ऐसे कामों से दूर ही रहता था। उसका पिता भी उसको यही कहता रहता था कि उसके जितने भी संबंध अलकायदा के साथ हैं, वे सिर्फ़ बिजनेस नज़रिये से हैं। वैसे वह कहता था कि उसका उनके साथ कोई लेना-देना नहीं है। खै़र, शाम के समय उज़ेर पराचा रेस्टोरेंट में अली और मजीद खां से जाकर मिला। बातचीत अली ने शुरु की, “उज़ेर भाई, अपना यह दोस्त मजीद, एक काम करने वाला मिडल क्लास आदमी है और यह आते समय अपना ट्रैवल परमिट लेना भूल गया है। बस, इसका इतना काम करना है कि इसकी अर्ज़ी वहाँ लेकर जानी है और अमेरिका पहुँचकर इमिग्रेशन को मेल कर देनी है। फिर हफ़्ते बाद उन्हें मजीद खां बनकर फोन करना है। इसके बाद इमिग्रेशन वाले इसका ट्रैवल परमिट मेल कर देंगे और तू जाकर उस मेल बॉक्स में से वह मेल उठा लेना। परमिट मिल जाने के बाद पोस्ट बॉक्स बंद करने की अर्ज़ी दे देना। और वापस पाकिस्तान आते समय इसका वो परमिट साथ ले आना ताकि इसको दुबारा अमेरिका में प्रवेश करने की अनुमति मिल जाए।“

बाईस-तेईस वर्षीय शर्मीले-से उज़ेर को बात कुछ अटपटी-सी लगी। परंतु वह उनके प्रभाव के कारण कुछ बोल न सका। और उसने मजीद खां के सारे काग़ज़-पत्र, उसका लायसेंस, सोशल सिक्युरिटी कार्ड, मेल बॉक्स की चाबी और अर्ज़ी वगैरह ले लिए। घर आकर उसने अपने पिता से कहा कि उसको यह काम कुछ जंचता नहीं है। पर सैफउल्ला पराचा ने बातचीत में उसका भय दूर कर दिया और आधे मन से उज़ेर पराचा अमेरिका जाते समय मजीद खां के सभी काग़ज़-पत्र अपने संग ले गया। वहाँ जाकर उसने अपना सारा सामान अपने पिता के दफ़्तर में रख दिया और अपने कामों में व्यस्त हो गया।उज़ेर का पिता सैफउल्ला पराचा बहुत वर्ष पहले अमेरिका में पढ़ता रहा था। कुछ समय उसने वहाँ ट्रैवल एजेंसी भी चलाई। फिर पाकिस्तान वापस आकर उसने कपड़े का बिजनेस आरंभ कर लिया। जब उसका बिजनेस भलीभाँति जम गया तो उसने इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का लायसेंस लेकर पाकिस्तान से अमेरिका को रेडीमेड कपड़े भेजने प्रारंभ कर दिए। उसने एक दफ़्तर न्यूयॉर्क में खोल लिया। पाकिस्तान में उसने घर बनाकर बेचने का काम भी बड़े स्तर पर चला लिया। न्यूयॉर्क में सैफउल्ला का पुराना अमेरिकी दोस्त चाल्र्स उसका बिजनेस पार्टनर बन गया। इस दौरान एकबार वह पाकिस्तान की राइस एक्सपोर्ट एसोसिएशन के साथ अफगानिस्तान गया। टीम के एक सदस्य ने उसको ओसामा बिन लादेन के साथ मिलवाने का विचार बताया तो वह खुशी खुशी मान गया। लादेन से मिलते समय उसको अपना कार्ड देते हुए सैफउल्ला ने कहा कि वह एक यूनिवर्सल ब्राडकास्टिंग नाम का टी.वी. कार्यक्रम चलाता है। उसने लादेन को अपने इस प्रोग्राम में इंटरव्यू देने के लिए कहा। लादेन ने मुस्तकराते हुए सैफउल्ला का कार्ड जेब में डाल लिया। तब तक सैफउल्ला सोच रहा था कि उसको अलकायदा से बहुत बिजनेस मिल सकता है। वह उसके नए बन रहे घरों के खरीददार हो सकते हैं। इस बीच काफी समय बीत गया कि उसके दफ़्तर में एक व्यकित आया जिसने अपना नाम मीर बताया। वास्तव में मीर, के.एस.एम. ही था। उसने वो कार्ड निकालकर दिखलाया जो कभी सैफउल्ला ने ओसामा बिन लादेन को दिया था। मीर बने के.एस.एम. ने कहा कि उन्हें कुछ घर किराये पर चाहिएँ और कुछ खरीदने भी हैं। सैफउल्ला यह काम करने के लिए खुशी से तैयार हो गया। अगले एक साल तक उसने अलकायदा को बेचे घरों में से लगभग तीन करोड़ रुपये कमाये। पिछले दिनों ही के.एस.एम. ने एक दिन उसको मुस्तफा नाम के किसी बड़े जमींदार से मिलवाया। पर मुस्तफा असल में के.एस.एम. का भान्जा अली ही था। मीर ने सैफउल्ला पराचा से कहा, “सैफउल्ला साहिब, मुस्तफा बलोचिस्तान का बहुत बड़ा बिजनेसमैन है। यह भी अमेरिका में इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का बिजनेस करना चाहता है। तुम इसकी मदद करो।“

“हाँ जी, मीर साहिब फरमाओ, मैं इसके लिए क्या कर सकता हूँ ?“

“तुम इसके पार्टनर मजीद खां के लिए वहाँ कोई कंपनी खुलवा दो ताकि यह भी अपना सामान वहाँ भिजवा सके। शुरु में तुम इसको अपनी कंपनी के रास्ते ही सामान भेजने की इजाज़त दे दो तो बहुत अच्छा होगा। आगे चलकर यह शायद तुम्हारा पार्टनर ही बन जाए।“

“कोई बात नहीं मीर साहिब, ये अगर चाहें तो एक आध डिलीवरी मेरी कंपनी की मार्फ़त भी भेज सकते हैं। आगे की आगे देखी जाएगी।“ सैफउल्ला अंदर से खुश हो गया कि उसका बिजनेस और आगे बढ़ेगा। पर के.एस.एम. की स्कीम कुछ और थी। उसने सोचा था कि अली का सामान भेजने के बहाने वह सैफउल्ला की कंपनी को इस्तेमाल करेगा। जिन कंटेनरों में सैफउल्ला कपड़े डालकर भेजता था, उनमें वह सी-4 एक्सप्लोसिव और अन्य घातक केमिकल्स डालकर भेजेगा। जिन्हें वहाँ बाद में मजीद खां ने संभालना था। यही हथियार अमेरिका के तेल भंडारों को आग लगाने के लिए प्रयोग में लाए जाने थे। बातचीत समाप्त करके मीर और मुस्तफा मामा-भान्जा सैफउल्ला के दफ़्तर से चले गए।

उधर आफ़िया यह सोचकर खुश हो रही थी कि वह चुपचाप अमेरिका का फेरा लगा आई ओर किसी को इसकी भनक भी नहीं पड़ी। लेकिन यह उसकी भूल थी। क्योंकि उसका नाम पहले ही एफ.बी.आई. वालों के रिकार्ड में आ चुका था। वह और अमजद जब एफ.बी.आई. की दूसरी इंटरव्यू बीच में ही छोड़कर चले गए थे तो एफ.बी.आई. ने उनका नाम ट्रैवल लिस्ट में डाल दिया था। जिसका परिणाम यह हुआ कि जैसे ही वह अमेरिका जाने के लिए कराची से जहाज पर बैठी थी तो उसी समय पाकिस्तान की फैडरल ट्रैवल एजेंसी ने अमेरिकी एफ.बी.आई. को सूचित कर दिया था। एफ.बी.आई. वालों ने उसको एअरपोर्ट पर पकड़ने की बजाय उसका पीछा करना उचित समझा। क्योंकि वह उसको पकड़ने की अपेक्षा सारे रिंग को जोड़ना चाहते थे। आफ़िया ने अमेरिका पहुँचकर जब एअरपोर्ट के बाहर से टैक्सी ली तो जो पाकिस्तान टैक्सी ड्राइवर उसको एअरपोर्ट से लेकर होटल में छोड़कर आया था, वह एफ.बी.आई का ही आदमी था। अगले दो दिन भी उसका पीछा होता रहा। उसके पीछे-पीछे रहते हुए एफ.बी.आई. को पता लगा कि आफ़िया ने पोस्ट आफिस में पोस्ट बॉक्स किराये पर लेने के वक्त मजीद खां का नाम अपने पति के रूप में लिखा है तो वह समझ गए कि अब इस नाम का व्यकित अमेरिका में आएगा। परंतु मजीद खां या बाकी ग्रुप इस बात से अनभिज्ञ आगे की कार्रवाई करने में व्यस्त हो गए।

(जारी…)