आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 1 Subhash Neerav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 1

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद

हरमहिंदर चहल

अनुवाद : सुभाष नीरव

(1)

यह अफ़गानिस्तान का गज़नी शहर था। उस दिन वर्ष 2008 के जुलाई महीने की 17 तारीख़ थी। दिन भर बेइंतहा गरमी पड़ती रही थी। दिन ढलने लगा तो गरमी की तपिश भी कम होने लगी। आखि़र लंबा दिन गुज़र गया और थाने की दीवारों के साये अहाते के दूसरे सिरे पर जा पहुँचे। सूरज छिपने ही वाला था जब थानेदार गनी खां शहर का चक्कर लगाने के लिए उठा। आज उसका सारा दिन बाहर ही गुज़र गया था। सुबह से ही वह अमेरिकन फ़ौज़ की उस टुकड़ी के साथ घूम रहा था जो कि गाँवों की तरफ़ चक्कर लगाने गई थी। आजकल इस इलाके में तालिबानों का ज़ोर था। अमेरिकी फ़ौज़, इलाके की पुलिस को संग लेकर गाँवों की छानबीन के काम में लगी हुई थी। अमेरिकी फ़ौज़ों ने इस इलाके को तालिबानों से मुक्त करवाने का बीड़ा उठा रखा था। वे अपने मिशन में सफल भी हो रहे थे। हर रोज़ सवेरे ही फ़ौज़ का काफ़िला चल पड़ता था। जिस इलाके में उन्हें जाना होता, वहाँ के थाने का अमला-फेला साथ जाता था। इसी तरह आज गनी खां के थाने के गाँवों की बारी थी। इसीलिए आज उसका पूरा दिन बाहर घूमते हुए ही गुज़र गया था। गनी खां की एक आदत थी कि वह कितना भी व्यस्त होता, पर शाम के वक़्त शहर का चक्कर अवश्य लगाता था। आज भी घर जाने से पहले उसने शहर का एक चक्कर लगाने का मन बनाया। उसके कहने पर हवलदार कुछ सिपाहियों को ले आया और ड्राइवर ने पिकअप ट्रक को थाने के गेट के आगे ला खड़ा किया। गनी खां आगे ड्राइवर के साथ बैठ गया और शेष अमला ट्रक के पीछे खड़ा हो गया। थोड़ा घूमकर ड्राइवर ने ट्रक को बाज़ार की ओर मोड़ लिया। बाज़ार में से गुज़रते हुए ट्रक गली का मोड़ मुड़ने लगा तो गनी खां ने सामने बंद पड़ी एक दुकान के आगे बुर्के से ढकी एक औरत की ओर देखा। वह औरत नीचे ज़मीन पर बैठी थी और उसके साथ करीब बारह वर्ष का एक लड़का था। गनी खां ने मन ही मन सोचा कि शहर में मंगतों की गिनती बहुत बढ़ गई है। मोड़ मुड़ते ही पिकअप ट्रक जब करीब से गुज़रा तो उसने बड़े ध्यानपूर्वक उस औरत की तरफ़ झांका। औरत ने पास रखे काले रंग के बड़े-से बैग को कसकर हाथों में पकड़ रखा था। तभी गनी खां का पुलिसिया दिमाग हरकत में आ गया। यह इतना बड़ा बैग क्यों उठाये घूमती है - उसने सोचा। उसको शक हुआ तो उसने ट्रक रुकवा लिया और नीचे उतरकर औरत के पास चला गया। एक पैर चबूतरे पर रख और हाथ वाला डंडा औरत की तरफ करके उसने पूछा, “ऐ बीबी, कौन है तू ?“

“मैं तो एक गरीब औरत हूँ। अपने पति को खोजती फिरती हूँ जो लड़ाई में कहीं गुम हो गया है।“ इतना कहते हुए वह खड़ी हो गई। उसने पास में रखा बैग उठा लिया।

“तेरे साथ यह लड़का कौन है ?“

“यह तो कोई अनाथ है। भूचाल में इसके माँ-बाप मारे गए थे। मैं इसको संग ले आई थी।“ इतना कहकर वह उठी, बैग को कंधे से लटकाया और लड़के की उंगली पकड़कर चल पड़ी।

“ऐ रुक जा।“ गनी खां ने आगे बढ़कर उसका रास्ता रोक लिया। औरत के हावभाव और बोलने के ढंग ने उसके सन्देह को और भी बढ़ा दिया था। उसको पिछले दिनों किसी मुखबिर से मिली ख़बर याद हो आई कि कोई औरत यहाँ गवर्नर पर आत्मघाती हमला करने की ताक में है। इतने में सिपाहियों ने औरत को चारों ओर से घेर लिया। एक ने आगे बढ़कर उससे बैग छीना और उसको खंगालने लगा। कुछ काग़ज़ बाहर निकाले। गनी खां ने काग़ज़ों को ध्यान से देखा तो वह बहुत हैरान हुआ। ये नक्शे वगैरह थे। उसके कहने पर पुलिस वालों ने उस औरत को बच्चे सहित ट्रक में बिठा लिया और थाने की तरफ़ चल पड़े। थाने पहुँचकर उसके बैग की अच्छी तरह से तलाशी ली गई। और भी हैरान करने वाली वस्तुएँ बैग में से मिलीं। दो बोतलों में कोई ख़तरनाक कैमिकल थे जो कि बम बनाने का मसाला प्रतीत होते थे। इसके अलावा दो किलो के करीब सोडियम सायनाइड मिला। बाकी हाथ से लिखे हज़ारों काग़ज़ मिले जो कि अधिकतर अंग्रेजी में थे। बैग में काफ़ी संख्या में नक्शे थे जिनमें एक यहाँ के गवर्नर के घर का भी था। उस औरत ने अपना नाम सलीहा बताया। गनी खां को पूरा यकीन हो चुका था कि यह औरत किसी आतंकवादी संगठन की ख़तरनाक मेंबर है और हो सकता है कि यहाँ के गवर्नर को आत्मघाती हमले में मारने निकली हो। उसने तुरन्त गवर्नर दफ़्तर को ख़बर की। उन्होंने आगे अमेरिका के बैगराम एअरपोर्ट बेस को सूचना भेजी। इस बीच रात में औरत की पिटाई भी हुई, पर उसने मुँह नहीं खोला। उसके साथ पकड़े गए लड़के को अलग कर दिया गया था। अगले दिन सवेरे ही अमेरिकन फ़ौज़ का कैप्टन राबर्ट सिंडर अपनी टुकड़ी लेकर गज़नी थाने की ओर चल पड़ा। तब तक उस औरत को थाने में से निकालकर नज़दीक की एक इमारत के बड़े कमरे में बिठाया हुआ था। काबुल से अफ़गान सरकार के कुछ बड़े अधिकारी भी उससे बात करने के लिए पहुँचे हुए थे। जब कैप्टन सिंडर अपने अमले-फेले के साथ वहाँ पहुँचा तो इमारत को स्थानीय अफ़गानियों ने घेर रखा था। वे हथियारबंद थे क्योंकि वहाँ बात फैल चुकी थी कि थाने वाले किसी बेकसूर औरत को अमेरिकियों के हवाले करने जा रहे हैं। कैप्टन मन ही मन बोला, “जिस बात का डर था, वही हो गई।“ उसने देखा था कि यहाँ अफवाहों का बहुत ज़ोर रहता था। ज़रा-सी बात हुई नहीं कि अफवाह उड़ी नहीं। यही नहीं बल्कि अफगानी लोग हथियारबंद होकर पहुँच जाते थे। आज भी ऐसा ही हुआ था। लोगों के हुजूम ने हथियार उठाये हुए थे। आसपास नज़र घुमाते हुए उसने मन ही मन सोचा, “आज यहाँ ज़रूर कुछ न कुछ होकर रहेगा। एक तो औरत का मामला है और ऊपर से उसे कल रात से पकड़ा हुआ है। लोग भी धड़ाधड़ इकट्ठे हुए जा रहे हैं। पता नहीं हालात कैसे बन जाएँ।“ यही सब सोचकर उसने सबको पूरी मुस्तैदी के साथ रहने का हुक्म दिया और लोगों में से राह बनाता हुआ अपने खास दस्ते के साथ बड़ी इमारत के अन्दर चला गया। आगे करीब तीन सीढ़ियाँ चढ़कर वे इमारत के दरवाजे़ तक पहुँच गए। दो व्यक्ति बाहर पहरे पर खड़े हो गए। कैप्टन और वारंट अफ़सर अंदर चले गए। दुभाषिया भी उनके साथ था। कैप्टन ने अंदर बैठे अफगानी लोगों और अफ़सरों की ओर देखते हुए झुककर सलाम किया। उसने इधर-उधर नज़रें दौड़ाईं। पिछली ओर पर्दा तना हुआ था। वह समझ गया कि गिरफ्तार की गई औरत इस पर्दे की ओट में होगी। कैप्टन और वारंट अफ़सर अन्य सभी के साथ नीचे फर्श पर ही बैठ गए। उन्होंने अभी बातचीत आरंभ ही की थी कि वहाँ गोली चलने की आवाज़ सुनाई दी। आवाज़ सुनते ही वारंट अफ़सर ने अपना पिस्तौल निकालकर गोली चला दी जो कि पर्दे के पीछे बैठी औरत के पेट में लगी। जब पता चला कि औरत ज़ख़्मी हो चुकी है तो कैप्टन ने अपने लोगों को आवाज़ दी। सभी ने तुरंत औरत को स्ट्रेचर पर डाला और पिछले दरवाजे़ से अपने ट्रक तक पहुँचे। वहाँ से ज़ख़्मी औरत को संग लेकर वे बैगराम एअरफोर्स बेस की ओर चल दिए। वहाँ उसे अस्पताल में भर्ती करवाया गया। साथ ही उसकी असली पहचान मालूम करने के लिए उसके फिंगर-प्रिंट लिए गए। दो घंटों के बाद एफ.बी.आई के दफ़्तर से उसकी सही पहचान की रिपोर्ट आ गई। जब सभी विभागों को उसके असली नाम का पता चला तो हर तरफ़ तहलका मच गया। वह कोई साधारण औरत नहीं थी। वह अमेरिकी एफ.बी.आई. द्वारा घोषित की गई विश्व की सबसे ख़तरनाक आतंकवादी औरत थी और उसका नाम था - आफ़िया सिद्दीकी।

(जारी…)