Afia Sidiqi ka zihad - 16 books and stories free download online pdf in Hindi

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 16

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद

हरमहिंदर चहल

अनुवाद : सुभाष नीरव

(16)

बचपन से लेकर आज तक आफिया ने बड़ी लड़ाइयाँ लड़ी थीं। क्या पढ़ाई का क्षेत्र, क्या मज़हब या फिर समाज सेवा का क्षेत्र। आफिया ने हर तरफ अपना लोहा मनवाया था। सबको पता था कि आफिया एक बहुत ही बुद्धिमान शख़्सियत है। मगर इस सबके बावजूद आज वह इकतीस वर्ष की उम्र में अकेली रह गई थी। गुमनामी की ज़िन्दगी उसके सामने खड़ी थी। उस पर तलाकशुदा का धब्बा लग चुका था जिसको पाकिस्तान समाज में कोई पूछता नहीं। तलाक के बाद कई सप्ताह तक वह बड़े ही मानसिक तनाव में गुज़री। फिर धीरे-धीरे वह संभलने लगी। एक सुबह वह पंछियों को दाना डाल रही थी कि उसकी माँ ने दूर से आवाज़ लगाई, “आफिया, तेरा फोन है।”

“कौन है फोन पर अम्मी जान ?“

“वकील है।“

“क्या कहता है ?“

“तू खुद ही बात करके पूछ ले।”

“जी अम्मी।“ आफिया ने दानों वाला छिक्कू एक तरफ रख दिया और फोन उठा लिया। दूसरी तरफ से आवाज़ आई, “जी मुझे मोहतरमा आफिया जी से बात करनी है।”

“मैं आफिया ही बोल रही हूँ। आप कौन साहब ?“

“जी मैं जनाब अमजद का वकील बोल रहा हूँ।”

“बताओ, कैसे याद फरमाया ?“ आफिया ज़रा व्यंग्य में बोली।

“जी अमजद साहब पूछ रहे थे कि जो चैक उन्होंने बच्चों के लिए भेजा था, क्या वह कैश हो चुका है।”

“हाँ हो चुका है कैश। और कुछ ?“

“जी वे बच्चों से मिलने की इजाज़त मांग रहे थे।” वकील झिझकता हुआ-सा बोला। वह आफिया के तीखे स्वभाव से परिचित था।

“हूँ...।” आफिया उसकी बात का हुंकारा भरते हुए मन ही मन बोलने लगी, क्या इस तड़प को सहने का ठेका अकेली आफिया ने ही उठा रखा है। अमजद साहिब को भी इसमें शरीक होना चाहिए। ज़रा उसको भी पता लगे कि तड़प क्या होती है और यह कलेजे को कैसे चीरती है।’

तभी उधर से वकील की आवाज़ ने आफिया को ख़यालों में से बाहर निकाला। उसने डरते हुए पूछा था, “जी, मैं फिर अमजद साहिब को क्या संदेश दूँ ?“

“तुम अपने अमजद साहब को कह दो कि आफिया और उसके बच्चे इस पते पर नहीं रहते।” आफिया ने तंज़ कसा।

“मोहतरमा, बच्चों को मिलने का अधिकार मेरे साइल को कोर्ट देती है। आप प्लीज़ ऐसा न करो। मेरी बात…”

“जो कुछ मेरे साथ हो चुका है, तुम्हारी कोर्ट मेरा इससे बुरा क्या कर देगी। जाओ, मैं नहीं किसी को अपने बच्चों के करीब लगने देती।” खरा और तीख़ा जवाब देकर आफिया ने फोन सोफे पर पटक दिया। उसकी माँ करीब खड़ी सब सुन रही थी। वह गुस्से में आकर बोली, “कुछ न रहे इस नईम खां के बेटे का। मेरी बेटी का बेड़ा डुबा दिया उसने। अल्लाह करे उसके कीड़े...।“ इस्मत की बात बीच में ही थी कि आफिया ज़ोर से चिल्लाई, “अम्मी ! तुम्हें कितनी बार कहा है कि तू उसको लेकर जलेभुने शब्द न बोला कर।”

“तुझे उसने किसी तरफ नहीं छोड़ा और तू अभी भी उसका पक्ष लेती है ?“

“वह हमारा आपस का मामला है। पर किसी को कोई अधिकार नहीं कि अमजद के बारे में बुरे लफ्ज़ बोले।”

आफिया पैर पटकती अंदर चली गई तो इस्मत मन ही मन बोली, ‘अजीब है ये लड़की भी।’

इसके घंटाभर बाद फिर फोन बजा तो आुफिया ने गुस्से में ‘हैलो’ कहा। पर शीघ्र ही ठंडी पड़ गई। पहले वह समझी थी कि फोन अमजद के वकील का होगा, मगर यह कोई उसको जानने वाला था। फोन बंद करते हुए वह अपना मिज़ाज ठीक करने लगी। कुछ देर बाद उसने तल्ख़ी दूर करते हुए माँ को बाज़ार जाने के लिए मना लिया। माँ बेटी तैयार होकर बाज़ार की ओर चल पड़ीं। बाज़ार में खरीद-फरोख़्त करते आफिया माँ से अलग हो गई। पंद्रह-बीस मिनट के बाद वह फिर माँ के पास आ गई। इस बीच वह एक रेस्टोरेंट में बैठे सुलेमान अहमर के पास गई थी। बस दो-चार बातें करने के बाद ही वह लौट आई। घर आकर उसने इस्मत को इस बात के लिए सहमत कर लिया कि घर का आधा हिस्सा किराये पर दे दिया जाए। इस्मत ने भी सोचा कि इससे आमदनी में मदद मिलेगी। अगले दिन ही आफिया ने इश्तहार दे दिया। फिर घर किराये पर लेने वालों के फोन आने लगे। मगर आफिया ने सबको टाल दिया। उसने उसी परिवार को घर किराये पर देने के लिए ‘हाँ’ कही जिसके लिए सुलेमान अहमर ने बताया था। यह था - अल बलोची परिवार।

घर किराये पर लेने के उपरांत पहले बलोची परिवार की स्त्रियों ने यहाँ आकर रहना आरंभ किया। इस्मत से उन्होंने बड़े अच्छे संबंध रखे। आफिया के साथ भी उनकी निकटता हो गई। यह निकटता शीघ्र ही दोस्ती में बदल गई। उस परिवार में दो जवान लड़कियाँ थीं जिनके साथ आफिया के गहरे संबंध बन गए। वह उनके साथ बाहर-अंदर भी जाने-आने लगी। इस बीच वह उनके असली घर भी गई। वहीं उन लड़कियों ने आफिया को अपने भाई अली अब्दुल अजीज अली से मिलवाया। उसको सभी सिर्फ़ अली कहकर ही बुलाते थे जो कि करीब पच्चीस साल की आयु का युवक था। फिर इस परिवार की औरतों का आफिया के घर आना-जाना कम होता गया। परंतु वहाँ हर रोज़ ही नए लोग आने लगे। कोई आता और कोई जाता। इस्मत हर रोज़ नए चेहरे देखती। पर उसको इससे मतलब नहीं था। वैसे वह सोचती थी कि बड़ा परिवार है, इसलिए पारिवारिक सदस्य भी अधिक हैं। उसको बताया भी गया था कि यह एक व्यापारी परिवार है जिसके लोग आते-जाते रहते हैं। पर असल में सुलेमान अहमर ने अल-कायदा के रूपोश मेंबरों को छिपाने के लिए घर किराये पर देने वाला यह प्रबंध करवाया था। यहीं पहली बार आफिया, अल बलोची परिवार के सम्पर्क में आई। उसके इस परिवार में घुलमिल जाने का इंतज़ाम अल बलोची परिवार के अग्रज के.एस.एम. की रज़ामंदी के बाद ही किया गया था। उसको अच्छी प्रकार देखने-परखने के बाद ही एक दिन सुलेमान अहमर ने के.एस.एम. के साथ बात की, “कैसी लगी तुम्हें यह लड़की ?“

“यह पता तो तभी चलेगा जब यह किसी काम को अंजाम देगी।”

“यह बात तुम्हारी ठीक है। पर इसके अंदर जिहाद के लिए बड़ी आग भरी हुई है। वैसे भी बहुत बुद्धिमान है। साइंसटिस्ट है, दिमाग की बहुत तेज़ है।”

“तेरा क्या ख़याल है कि यह केमिकल हथियार वगै़रह बनाने में मदद कर सकती है ?“

“बिल्कुल! ऐसे कामों की तो यह माहिर है। ज़रा काम लेकर देखो।”

“यह भी देख लेते हैं। पर इसमें एक और बहुत बड़ा गुण है।”

“वह क्या ?“

“यह अमेरिकन रेज़ीडेंट है। वहाँ जाने-आने में इसको मुश्किल नहीं आएगी।”

“यह बात भी तुम्हारी ठीक है।”

“चल, एक बार इसको मुफ्ती साहिब से मिला दे। वही इसको इसका आगे का काम बताएँगे।”

मुफ्ती अबू लुबाबा शाह मन्सूर, मुकामी मस्जिद का इमाम था, जो अल रशीद ट्रस्ट का डिप्टी डायरेक्टर भी था। इस ट्रस्ट का डायरेक्टर, खुद रशीद मुहम्मद था। कराची के दहशतगर्दों में सबको पता था कि इन दोनों के ओसामा बिन लादेन से सीधे संबंध हैं और ये तालिबानों के लिए पैसे का प्रबंध बड़े स्तर पर करते हैं। मुफ्ती ने सुलेमान की सारी बात सुनते ही आफिया को फतवा जारी करके जर्म वारफेयर और अन्य बॉयोलोजिकल हथियारों पर काम करने का आदेश दे दिया। जिसको आफिया ने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। इस बीच उसका अल बलोची परिवार में आना-जाना और अधिक बढ़ गया।

अली अपने मामा के.एस.एम. का ख़ास भरोसेमंद आदमी था जो पूरी तौर पर उसके सभी मिशनों के विषय में जानता था। इतना ही नहीं, वह हर मिशन में अपना योगदान भी देता था। यद्यपि नाइन एलेवन का मास्टर माइंडिड के.एस.एम. था, पर उस मिशन को सफल बनाने के लिए अली ने भी ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया था। वह अंग्रेजी स्कूलों से पढ़ा हुआ था और पश्चिमी ढंग से रहता था। उसने ही न्यूयॉर्क के ट्विन टॉवर्ज़ तबाह करने वाले हाई जैकरों को पश्चिमी ढंग के रहन-सहन और पहनने-ओढ़ने के तरीके सिखाये थे। इसके अलावा उसने इनमें से कम से कम हाई जैकरों को उनके मिशन के बारे में प्रशिक्षण दिया था जिनमें मारवां अल शेही भी एक था जिसने कि युनाइटिड फ्लाइट नंबर 175 वल्र्ड ट्रेड सेंटर के साउथ टॉवर से हिट की थी। अली ने तकरीबन सवा लाख डॉलर मालवा अल शेही और मुहम्मद अत्ता को अमेरिका में भेजा था। वह खुद भी हाई जैकरों के साथ अमेरिका जाकर मिशन में हिस्सा लेने वाला था। इसके लिए उसने दुबई की अमेरिकन एम्बेसी में वीज़ा के लिए एप्लाई भी किया था, पर वीज़ा न मिलने के कारण वह वापस पाकिस्तान लौट आया था। नाइन एलेवन के बाद उसने के.एस.एम. के साथ पूरे ज़ोर-शोर से दूसरे बड़े हमले के लिए काम करना प्रारंभ कर दिया। उसका मुख्य काम अगले लक्ष्य के लिए जिहादियों को प्रशिक्षण देना था। इस मिशन में वह उन जिहादियों को इस्तेमाल करना चाहते थे जिन्हें अमेरिका जाने-आने में कठिनाई न आए। तात्पर्य यह है कि जो पहले ही वहाँ के बाशिंदे हों। पहले तैयार किए गए ग्रुप के होजे़ पदीला और रिचर्ड रीड जैसे व्यक्ति पकड़े जा चुके थे, इसलिए यह अगले मिशन के लोगों को बहुत ही सोच विचार के साथ अमेरिका में दाखि़ल करवाना चाहते थे। इनके नए जिहादियों में एक लड़का आया था - मजीद खान। यह कंप्यूटर प्रोगैमर था। इसका परिवार अमेरिका की स्टेट मैरीलैंड के शहर बाल्टीमोर में रहता था। मजीद खान का परिवार जब अमेरिका आया तो उस समय वह पंद्रह वर्ष का था। यहाँ आकर उसके परिवार ने राजनीतिक शरण ली थी। इसके छह वर्ष बाद मजीद खान पहली बार पाकिस्तान गया था। मगर अभी उसको ग्रीन कार्ड नहीं मिला था। इसी वजह से उसको अमेरिका से बाहर जाने के लिए इमीग्रेशन विभाग से अनुमति लेनी पड़ती थी, जो कि वह गलती से लेनी भूल गया था। इस बात का पता उसको बाद में जाकर लगा कि बिना इजाज़त के आने के कारण वह वापस अमेरिका में प्रवेश नहीं कर सकेगा।

ख़ैर, अब तक वह काफ़ी धार्मिक बन चुका था और किसी अच्छी लड़की से शादी करना चाहता था। उसकी शादी किसी मज़हबी हस्ती ने रबिया जाकूब की बेटी से करवा दी। इसी मज़हबी हस्ती ने उसके अंदर जिहाद के लिए आकर्षण को पहचाना और उसको के.एस.एम. के साथ मिलवाने का फ़ैसला किया। निश्चित किए गए समय पर वह उसको लेकर के.एस.एम. के पास गया और कहा कि इस लड़के को खालिद साहिब से मिलवाया जाए। के.एस.एम. ग़ौर से मजीद खान की ओर देखते हुए बोला, “बात सुन काके। यह जिहाद बातों से नहीं लड़ा जाता। इसके लिए अंदर जिहाद की आग होने ज़रूरी है।”

“जी, मैं हर तरफ से इसके लिए तैयार हूँ।”

“यह कोई भांडों का खेल नहीं है। हर वक़्त मौत साथ-साथ चलती है।”

“जी, मैं सब समझता हूँ।”

वे अभी बातें कर ही रहे थे कि एक व्यक्ति अंदर आया और के.एस.एम. से बोला, “उस लड़के ने आत्मघाती मिशन को बड़े अच्छे तरीके से अंजाम दे दिया है। वहाँ दस लोग मारे जा चुके हैं।”

“अल्लाह उसे बहिश्त बख़्शे। आगे का क्या प्रोग्राम है ?“

“पेट से बांधी जाने वाली बैल्ट तैयार है। धमाकाखेज सामग्री भी उसके अंदर फिट कर दी गई है। बस, अब तो किसी ऐसे लड़के की ज़रूरत है जो कि आत्मघाती मिशन के लिए तैयार हो।”

उसकी बात सुनकर के.एस.एम. ने पल भर सामने बैठे मजीद खां की ओर देखा और फिर बोला, “लड़का अपने पास पहुँच चुका है। तू बैल्ट लेकर आ।”

वह अंदर से बैल्ट ले आया तो के.एस.एम. ने उसको मजीद खां के पेट से बांध दिया। अच्छी तरह देख-परख कर वह बोला, “ले भई जवान, तू जिहाद के लिए मर मिटने के लिए तैयार है तो जिहाद भी तेरा ही इंतज़ार कर रहा था। तू किस्मत वाला है जो तुझे आते ही आत्मघाती मिशन का काम मिल गया। अब तू यहाँ से जा और डाउन टाउन की फराहखान मार्किट में जाकर इस काम को अंजाम दे। यह बम पूरे एक बजे चलेगा। बस, काम ध्यान से करना।”

“जी, बहुत बेहतर जनाब।” मजीद खां उठने लगा तो के.एस.एम. उसे रोकता हुआ बोला, “तुझे मालूम है कि यह क्या चीज़ है ?“

“जी, बिल्कुल पता है।”

“यह बम चलेगा तो वहाँ तेरे आसपास के सभी लोग मारे जाएँगे, पर तू भी उनके साथ ही मरेगा। तू नया है इसलिए मैं तुझे यह बात स्पष्ट बता रहा हूँ।”

(जारी…)

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