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कुलदीपक

कुलदीपक

रामसिंह शहर के एक उद्योगपति है। जिनका छः वर्षीय बेटा रमेश है। रामसिंह प्रायः प्रतिदिन अपने बेटे को प्रेरणादायक कहानियाँ व संस्मरण सुनाते रहते है ताकि वह बचपन से ही भारतीय सभ्यता संस्कृति और संस्कारों को समझते हुये ईमानदारी, नैतिकता, सच्चाई, गुरूजनों और बडों के प्रति आदरभाव, प्रभु के प्रति श्रद्धा आदि गुण विकसित कर सके। एक दिन जब वे अपने बेटे को पंचतंत्र की प्रेरणादायक कहानियाँ सुनाकर रात्रि में विश्राम के लिये प्रयासरत थे तभी उन्हें अचानक ही अपने बचपन की याद आ गई। जब उनके पिताजी भी उनकों ऐसी ही शिक्षाप्रद कहानियाँ और संस्मरण सुनाया करते थे।

उनके पिताजी एक शिक्षक थे परंतु रामसिंह की रूचि प्रारंभ से ही व्यापार की ओर थी और उन्होंने अपने पिताजी के सहयोग से छोटी सी पूंजी के साथ व्यापार प्रारंभ किया था जो कि शनैः शनैः बढकर आज एक उद्योग के रूप में विकसित हो चुका था। वे अपने व्यवसाय को पहले ईमानदारी नैतिकता एवं सच्चाई से चलाना चाहते थे परंतु समय एवं परिस्थितवश उन्हें अपने इन सिद्धांतों से समझौता करना पडा।

एक अवसर पर तो उनके पिता को प्राचार्य पद पर पदोन्नति का अवसर प्राप्त हुआ तब इसके लिये भी उन्हें उच्चाधिकारियों को घूस देनी पडी जिसकी जानकारी उन्होंने आजीवन अपने पिता को नही होने दी क्योंकि वे एक सिद्धांतवादी व्यक्तितव के धनी थे और इससे बिल्कुल सहमत नही होते। रामसिंह मन में यह विचार कर रहे थे कि जो शिक्षा अपने बेटे को देना चाहते है वास्तव में दुनिया व्यवहारिक दृष्टि से इससे बिल्कुल विपरीत है। इस विरोधाभास के कारण उनका बेटा बडा होकर दिग्भ्रमित होकर व्यापार से विमुख ना हो जाये इसकी चिंता उनको अभी से सताने लगी थी। रामसिंह अपने प्रिय मित्र हरिसिंह के पास जाकर अपनी इस परेशानी को सुलझाने हेतु उनकी सलाह माँगते है।

हरिसिंह कहते है कि जीवन में सफलता, किताबी ज्ञान, व्यवहारिक ज्ञान एवं वैचारिक ज्ञान इन तीनों के समन्वय से मिलती है। तुम्हारा बेटा बडा होकर पढाई के लिये किस विषय का चयन करेगा और किस क्षेत्र में आगे बढने की अभिलाषा रखेगा यह हम अभी नही निर्धारित कर सकते है। वह उचित समय इसका चयन करने की क्षमता रखें ऐसा मानसिक विकास उसका होना चाहियें। उसे जिस क्षेत्र में आगे बढने की अभिलाषा हो वही विषय उसे चुनने देना और तुम अपने विचारों को उस पर जबरदस्ती थोपने को प्रयास नही करना। यह भी हो सकता है उसे व्यापार में रूचि ना हो और उसके दिमाग में कोई दूसरी योजना या विचार हों। यह जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय होता है जब छात्र अपने भविष्य की दिशा निर्धारित करता है। इस बात पर तुम अपनी मनमानी नही करना।

तुमने जो आज के दैनिक जीवन में भ्रष्टाचार के संबंध में चर्चा की है उसके संबंध में मेरा कहना है कि आज हम आवश्यकताओं, उनकी प्राप्ति की कीमत और उनसे प्राप्त होने वाले लाभ इन तीनों में समन्वय नही कर पाते है। आज दैनिक आवश्यकताएँ इतनी अधिक हो गयी है कि व्यक्ति को मजबूर एवं विवश होकर चाहे वह किसी भी पद पर हो भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये समझौता करके अवैधानिक तरीके से धन को प्राप्त करना ही पडता है और यही वैकल्पिक साधन हमारी नैतिकता, ईमानदारी और सभ्यता के सिद्धांतों पर प्रहार करके हमारी सभ्यता, संस्कृति और संस्कारो का पतन कर रही है। पुराने समय में ऐसे समझौते करने वालों की संख्या बहुत कम रहती थी इसलिये समाज में भ्रष्टाचार बहुत कम था। आज ऐसे लोगों का प्रतिशत बहुत बढ गया है इसलिये यह हमें नजर आने लगा है और यह चिंता का विषय है कि समाज ने भी इसे स्वीकार कर लिया है।

हमारे देश में यदि बचपन से नैतिकता और अच्छे आदर्शो की शिक्षा, पंचतंत्र की कहानियाँ, बच्चों के लिये प्रेरक लघुकथाएँ, ज्ञानवर्धक कहानियाँ एवं नैतिक चरित्र के उत्थान से संबंधित शिक्षाएँ हितोपदेश और ऋषि मुनियों की कथाएँ यदि नही बताई जायेंगी तो आगे आने वाले समय मे उनके चरित्र का पतन कई गुना बढ जाएगा और हमारी सामाजिक व्यवस्था छिन्न भिन्न हो जाएगी। मेरा सुझाव है कि रमेश जब हाई स्कूल की शिक्षा पूर्ण कर ले तब तुम उसे कालेज में पढाई के साथ साथ कुछ समय अपने उद्योग, व्यापार में देने एवं कुछ सेवाभावी संस्थाओं की गतिविधियों में भाग दिलाने का प्रयास करना। इससे उसका बौद्धिक एवं नैतिक विकास होकर तुम्हारे व्यापार के प्रति रूचि जाग्रत होती जायेगी और तुम्हारी चिंता का निदान भी स्वमेव ही हो जायेगा।

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