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पानी का धर्म

पानी का धर्म

तब भारत का बंटवारा नहीं हुआ था, अंग्रेजों का शासन था, आजादी की लड़ाई में सभी अपनी अपनी तरह से योगदान कर रहे थे, कुछ दिन पहले ही शहीदे आज़म भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर जेल में फांसी दी गयी थी।

मैं कुछ दिन पूर्व लाहौर से विस्थापित एक 97 वर्षोय वृद्ध की बात सुन रहा था, वह अपने बचपन की एक ऐसी घटना का बारे में बता रह थे जिसके परिणाम भारत और भारत के हिंदुओं को आज भी भुगतने पड़ रहे हैं।

यह कहानी नहीं एक सच्चाई है, भयंकर भूल है जिसकी भरपाई करना शायद नामुमकिन हो।

लाहौर के आस पास के ज़्यादातर गाँव हिन्दू बहुल थे, बड़ी जाति के लोग जमींदार थे और छोटी जाति के लोग उनकी ज़मीनों में खेती करते थे, खेती भी क्या बस बेगार करते थे, दिन रात की मेहनत के बाद भी उनको भोजन नसीब नहीं था, ना ही तो पेट में रोटी और ना ही तन पर लंगोटी, ऐसे हालात में जीवन यापन करते थे गरीब लोग।

चौदहवीं शताब्दी तक पूरे यूरोप का अंधकार युग माना जाता है, वहाँ पर गरीब खेतिहर मजदूरों की ठीक ऐसी ही दुर्दशा थी जैसी कि भारत में उन्नीसवी और बीसवी शताब्दी में। अंग्रेजों के भारत में आने से पहले भी गरीबो की दशा कोई ज्यादा अच्छी नहीं थी, उस समय मुस्लिम राज में जबर्दस्ती सत्ता के ज़ोर पर लोगों को मुसलमान बनाया जा रहा था।

अंग्रेजी राज में भी जो मुस्लिम बहुल क्षेत्र थे वहाँ पर हिंदुओं को दोहरे अत्याचार सहने पड़ रहे थे, एक तो अंग्रेजी शासन व्यवस्था से हो रहे अत्याचार और दूसरे बहुसंख्यक मुस्लिमों द्वारा किया जाने वाला उत्पीड़न।

अंग्रेजों ने भारत को पूर्णतया अंधकार युग में धकेलने के लिए यहाँ पर सामंतवादी प्रथा शुरू कर दी, बड़े लोगों को गरीबों पर अत्याचार करने के सारे अधिकार दे दिये, और इस व्यवस्था से भारत जो पहले ही मुस्लिम राजाओं के कारण अपनी पहचान खो चुका था उसको अंग्रेजों ने पूर्णतया अंधकार में धकेल दिया।

सन 1935 की बात है, लाहौर के पास जगवाली गाँव में कुछ ब्राह्मण परिवार थे, जिनके पास उस गाँव का जमींदारा था और कुछ गरीब किसान छोटी जाति वाले रहते थे जो उन ब्राह्मणों की जमीन में खेती करते थे और ब्राह्मणों को लगान देते थे, लगान के नाम पर उनकी पूरी फसल छीन ली जाती थी।

रोशन का छोटा सा परिवार, पत्नी और तीन बच्चे, एक लड़की दो लड़के, सब मिलकर पंडित रवि दत्त के खेतों में काम करते थे। रवि दत्त के खेत गाँव से दूर थे और उन दिनों साधन भी कम थे, पीने को पानी भी नहीं मिलता था, गाँव से जब निकलते तो खाना पानी साथ लेकर ही जाते थे।

मई का महीना था, तेज धूप और गर्मी के कारण रोशन और उसके परिवार का बुरा हाल था फिर भी पूरा परिवार खेत की जुताई करने में लगा था, बैल भी गर्मी के कारण हाँफने लगे, रोशन ने थोड़ा सुस्ताने के लिए बैलों को रोक दिया और स्वयं भी जो रूखा सूखा खाने को लाये थे पूरे परिवार ने मिल बैठ कर खाया।

गाँव से जो पानी लेकर चले थे वह दोपहर तक ही खतम हो गया लेकिन शाम तक तो खेत में ही रुकना था, खेत में मेहनत करते करते दिन ढलने को था, बस थोड़ा काम और बाकी था और रवि दत्त का आदेश था कि पूरा खेत जोत कर ही वापस आना है, बैल भी थक गए थे अतः उनको भी ज्यादा तेज नहीं चला सकते थे। थकने के बाद भी बैल रोशन का साथ दे रहे थे, रोशन ने तो थोड़ा पानी पी लिया था, थोड़ा रूखा सूखा खा लिया था, बैल तो भूखे प्यासे ही थे।

रोशन की पत्नी और बच्चे तो गाँव चले गए, अकेला रोशन दो बैलों के साथ उस गर्मी में प्यासा ही जूझ रहा था रविदत के आने का समय भी हो रहा था यह चिंता भी रोशन को सताये जा रही थी, क्योंकि वह रवि दत्त के आने से पहले काम खतम करना चाह रहा था।

प्यास से बेहाल होकर रोशन सोच रहा था, ‘बस अब और नहीं चल सकूँगा, कहीं से थोड़ा सा पानी मिलता तो मेरी प्यास बुझ जाती और मैं इस खेत का काम पूरा करके गाँव में चला जाता, ’रोशन सोच ही रहा था कि तभी वहाँ से एक घुड़सवार गुजरता हुआ दिखाई दिया।

रोशन ने उसको आवाज लगा कर पूछा, “घुड़सवार भईया! क्या तुम्हारे पास थोड़ा सा पानी मिलेगा? मुझे बहुत प्यास लगी है।”

घुड़सवार बोला, “हाँ भाई! पानी से तो मेरा पूरा मशक भरा हुआ है, लेकिन क्या तुम मेरा पानी पियोगे? तुम तो हिन्दू हो और मैं मुसलमान हूँ।”

रोशन बोला, “भाई प्यास लगी है, पानी तो पानी ही है पानी का क्या हिन्दू और क्या मुसलमान, प्यास बुझाने के लिए तो पानी ही चाहिए ना]?”

जब रोशन ने इतनी बात कही तो घुड़सवार अपना घोडा लेकर रोशन के पास आ गया और अपनी मशक से पानी पिलाकर उसकी प्यास बुझाने लगा, रोशन को भी पानी पीकर नवजीवन सा मिल गया।

जिस समय घुड़सवार रोशन को पानी पिला रहा था उसी समय रविदत्त भी खेत पर पहुँच गया और उसने रोशन को एक मुसलमान का पानी पीते हुए देख लिया।

रविदत्त ने जैसे ही रोशन को मुसलमान का पानी पीते देखा तो आग बबूला हो गया और रोशन को डांटने लगा, “तूने मुसलमान का पानी पी लिया है अगर थोड़ी देर और प्यासा रह जाता तो मर तो नहीं जाता, तूने तो धर्म ही भ्रष्ट कर लिया, अब तू हिन्दू नहीं रहा, अपना धर्म भ्रष्ट करने की बजाय प्यास से मर जाता तो तुझे सद्गति मिलती, अब न तो तुझे हिन्दू धर्म में जीते जी जगह मिलेगी और न ही मरने के बाद।”

रोशन रविदत्त के पैरों में गिर कर काफी रोया गिड्गिड़ाया, माफी मांगी लेकिन कठोर हृदय रविदत्त टस से मस नहीं हुआ और उसने रोशन को गाँव में ले जाकर पंचायत के सामने रोशन के धर्म भ्रष्ट होने का और धर्म से निकालने का प्रस्ताव रख दिया।

सभी ब्राह्मण पंचों को जब पता चला कि रोशन ने मुसलमान का पानी पिया है तो पंचायत ने निर्णय करके रोशन और उसके परिवार को हिन्दू धर्म से तो निकाल दिया लेकिन गाँव से नहीं निकाला और उसको खेतों में वैसे ही काम करते रहने का निर्णय सुना दिया।

रोशन और उसकी पत्नी पंचो के सामने भी रोयी, गिड्गिड़ाई, माफी भी मांगी लेकिन पंचायत ने अपना फैसला नहीं बदला और वहाँ से उठकर चले गए।

गरीब रोशन के पास अब कोई चारा ना था, उसने इस्लाम धर्म अपना लिया। गाँव में पहला परिवार जो एक ब्राह्मण की मूर्खता के कारण मुसलमान बना, मुसलमान बन कर अब उसने सभी गरीबो को पानी पिला पिला कर मुसलमान बना लिया और गाँव में हिन्दू और मुसलमानो की संख्या बराबर बराबर हो गयी, जिस गाँव में एक भी मुसलमान नहीं था वहाँ पर पचास प्रतिशत मुसलमान हो गए।

ब्राह्मण तो अपने घमंड में चूर थे, वे तो इस बात से भी बेफिक्र थे कि जो बीज उन्होने आज बोया है कल जब इसका वृक्ष बड़ा होकर कडवे फल देगा तब क्या होगा।

1947 में देश आज़ाद हुआ, साथ ही भारत का बंटवारा हो गया, हिन्दू हिंदुस्तान में चले जाए, मुसलमान पाकिस्तान में रह जाएँ, इस तरह की बातें पाकिस्तान में ज़ोर पकड़ने लगीं। गाँव के मुसलमानों ने पंचायत कर विचार विमर्श किया, “अगर अपने गाँव के सभी ब्राह्मण यहाँ से चले जाएँ तो उनकी सारी जमीन जायदाद घर मकान हमारे होंगे, अतः हमारे लिए यही अच्छा रहेगा कि ब्राह्मण इस गाँव को छोड़ कर चले जाएँ,” यही बात गाँव के मुसलमानों ने ब्राह्मणों को बता दी।

कुछ ब्राह्मण खतरे की आशंका को भांपते हुए पहले ही सब कुछ छोड़ कर भारत में आ गए लेकिन रविदत्त जैसे घमंडी ब्राह्मण वहीं टिके रहे, वे अभी भी अपने घर, जमीन को छोडना नहीं चाहते थे।

गाँव मे ब्राह्मणों के ज्यादा घर नहीं बचे थे, लेकिन जो बचे थे वो जमीन जायदाद घर मकान छोड़ कर भागना भी नहीं चाहते थे तब गाँव के मुसलमानों ने उनसे कहा कि आप लोगों को हमारे से तो कोई खतरा नहीं फिर भी कोई बाहरी मुसलमान आकार आपको नुकसान पहुंचाने लगे तो हम बचा नहीं पाएंगे।

फिर एक दिन कुछ बाहरी मुसलमान उस गाँव में आए और उन्होने उस गाँव के हिंदुओं के बारे में जानकारी ली, वो मुसलमान तो वहाँ से चले गए लेकिन गाँव के मुसलमानो को हथियार देकर समझा गए कि किसी भी काफिर को जिंदा नहीं छोडना, काफिर को मारने से जन्नत नसीब होगी। अगर ये सभी काफिर इस्लाम धर्म अपनाने को तैयार हो जाएँ तो ठीक है अन्यथा मौत के घाट उतार देना।

उसी रात गाँव के मुसलमानों ने मिलकर सभी ब्राह्मण परिवारों को बंधक बना लिया और इस्लाम अपनाने की चेतावनी दी लेकिन ब्राह्मण तैयार नहीं हुए तो सभी को मौत के घाट उतार दिया।

ब्राह्मणों की जमीन, जायदाद, घर, द्वार पर मुसलमान कब्जा कर के जमींदार बन गए, एक घमंडी ब्राह्मण की मूर्खता का यह नतीजा था जो पूरे गाँव को भुगतना पड़ा।

ऐसी बहुत भूलें हमने हिन्दू धर्म को लेकर की हैं जैसी कि पंडित रविदत्त ने की थी। ये बात भी ठीक है कि ताकत के बल पर, लालच के बल पर बड़ी संख्या में धर्म परिवर्तन हुए हैं लेकिन हमारी अपनी भूल के कारण जिन लोगों को अपना धर्म बदलना पड़ा क्या उसके लिए हमें पछतावा नहीं होना चाहिए?, इतिहास में की गयी ऐसी भूलों को हमें सुधारने की बड़ी आवश्यकता है तभी हम इसे बचे खुचे हिन्दू धर्म और हिंदुस्तान को बचा सकेंगे।

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