सड़कछाप - 9 dilip kumar द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सड़कछाप - 9

सड़कछाप

(9)

अंधेरा हो गया तो तामशबीन छंट गये और तमाशाई थक गये थे। रामजस और अमरेश एक दूसरे को पकड़े बैठे रहे। जब हाथ को हाथ सूझना बंद हो गया तब मैना ने अपने घर से एक लालटेन जलाकर भेज दिया। बरामदे में हनुमन्त के बड़े बेटे अखिलेश्वर ने लालटेन लाकर टांग दिया। अखिलेश्वर को लोग अखिल के नाम से बुलाते थे वो अमरेश से सिर्फ दो महीने छोटा था और अपने छोटे भाई के साथ प्राइवेट शिशु मंदिर में पढ़ता था अपने छोटे भाई महेश्वर के साथ जिसे सब महेश बुलाते थे। सर्दी की रात बहुत बहुत जल्दी भयावाह लगने लगती है। अमरेश था तो बालक ही शीघ्र ही उसका क्रोध मिश्रित उत्साह उतर गया, उसकी आंखों से बेवजह रह-रह के आंसू बहने लगते थे। वो बैठे सुबकता रहा। रामजस को कोई मोह या संताप ना था जाने का अलबत्ता अब रोटी पकाकर खानी पड़ेगी। अखिल ने अमरेश का हाथ पकड़कर उठाया और मासूमियत से कहा”रोओ ना अमरेश, चाची लौट आयेंगी, महतारी लड़का के बिना नाहीं रह सकती। कल चलेंगे हमलोग उनके गाँव चलेंगे उनको बुला लाएंगे। अब चलो उनका सामान घर में रख दिया जाये नहीं तो कोई उठा ले जायेगा। चोर-डाकू बहुत हैं गाँव में”।

उसके उठाने से अमरेश उठ गया और फिर दोनों लड़कों ने डोलची और अटैची उठाकर ले जाकर अंदर रख दिया। कोठरी में ताला भरके दोनों फिर बरामदे में आ गये। दोनों वहीं बैठे रहे। रामजस ने कोठरी में जाकर नसवार सूंघी और फिर उन्होंने गांजे की चिलम सुलगा ली। थोड़ी देर बाद महेश एक थाली में खाना लेकर आया और उसने डरते-डरते खाना बरामदे के तख्त पर रख दिया।

उसने डरते-डरते रामजस से कहा”दादा, पापा खाना भेजे हैं खा लो”।

रामजस ने कुछ नहीं कहा। तब महेश, अमरेश की तरफ मुखातिब होते हुए बोला”अमरेश भैया, तुमको और अखिल को मम्मी बुलायी हैं, चलो खाना तैयार है, अब रोओ ना भैया, नाहीं तो तबियत खराब हो जाएगी। यहां ताला भर दो, मम्मी कही है कि खाकर वहीं सो जाना नहीं तो अकेले यहां डरोगे”।

महेश और अखिल के कहने पर अमरेश ना, ना, करते हुए भी उनके घर चला गया। वहां सबने साथ में खाया जहां मैना की बेटी विशाखा भी थी जो कि अपनी माँ की देखा-देखी बात बात पर सुबक रही थी। मैना सिसक-सिसक कर रोती रही और हनुमन्त भी खासे गमजदा थे। सभी लोग अमरेश के अकेला हो जाने पर कम अपने कुल की इस अप्रत्याशित घटना से हैरान थे। वो ऐसा सोच रहे थे मानो विधवा बहूने विवाह ना किया हो बल्कि उनके कुल की सयानी बेटीभाग गयी हो।

रात को अमरेश खा-पीकर अपने चचेरे भाइयों-बहन के साथ हनुमन्त के घर ही लेटा रहा। सुबह होते ही उसे अपनी गायों की याद आयी। वो भागा -भागा आया। गोबर हटाया, दूध निकाला। दूधवाला आकर दूध ले गया। रामजस ने चूल्हा सुलगा दिया था वो रात भर के भूखे थे। उन्होंने मैना का भेजा हुआ खाना नहीं खाया था। चाय बनाकर उन्होंने अमरेश को दिया और रोटी-सब्ज़ी बना डाली। दूध घर में पर्याप्त होता था, सो कड़ाही में दूध औट कर उन दोनों ने खा लिया।

रामजस ने कहा “मैं बाबू गजराज सिंह के यहां जा रहा हूँ, उनसे कहकर जुग्गीलाल को जेल करवाता हूँ । तुम घबराना मत। साँझ तक तुम्हारी महतारी आ जायेगी। और उस हनुमंतवा के घर खाने-पीने मत जाना। हम कौनो कोढ़ी-अपाहिज नाहीं हैं कि बना-खा ना सकें। उसकी थाली रात से पड़ी है, उसको लौटा देना और हाँ घर में ताला भर के ही गाय खोलना। अपना रुपया-जेवर कहीं छुपा दो नहीं तो हनुमंतवा के लड़के उठा ले जाएंगे”।

रामजस ये कहकर सायकिल से रॉयबरेली चले गये। गायें दरवाजे पर ही रहती थीं। वहीं बंधी रहती थीं। उनको खोल कर शायद ही कभी चराया जाता हो। अमरेश ने पहले स्कूल जाने को सोचा लेकिन वो जानता था कि स्कूल में सब उसकी माँ के बारे में बात करेंगे और मजाक उड़ाएंगे इसलिये स्कूल जाने का विचार उसने त्याग दिया। फिर क्या करे वो?

घर में बैठे तो मम्मी की यादें नहीं बैठने देती हैं वो अनायास ही रोने-सुबकने लगता है इसलिये उसने कहीं जाने का विचार किया। कोठरी में माँ के जेवर हैं, रुपये हैं कल सब ने अटैची देख ली है कहीं कोई घर में कूद पड़ा तो।

उसने तुरंत घर के सब खिड़की-दरवाजे बंद किये और घर के जिस कमरे में रसोई थी उस जगह मिट्टी की दीवार को खोद कर उसने रुपये और जेवर का बटुवा दीवाल में रखकर उसे लीप दिया और वहां दीवार में मटर का एक दाना लगा दिया ताकि मिट्टी की दीवार में पता लग सके कि किस जगह खोदना है और पूरी दीवार खोदने बचा जा सके। ये सब करने के बाद वो आश्वस्त हो गया कि उसका धन सुरक्षित है और अगर मम्मी आ गयीं तो वो उनको सौंप देगा ये सब। अच्छा हुआ उसके दोस्त चिर्री ने उसे ये सब बता दिया था, चिर्री ने ये सब अपने घर में होते देखा था और बताया था उसको । चिर्री याद आया तो उसकी आँखे सजल हो गई फिर उसे बेतरह उसकी माँ याद आयी और उसकी पलकें भीग गयीं।

उस जगह से उकता कर उसने गायें खोल दी और सिवान में बहुत दूर उनको लेकर चला गया। गायों को छोड़कर बहुत देर तक वो शून्य में देखता रहा और अपने बारे में तमाम बेसिर-पैर की कल्पनाएं करता रहा। एक बात पर तो उसका मन पक्का था कि कल उसने जो अपनी माँ के साथ किया वो ठीक नही किया, उसने गलत किया। लेकिन उसकी माँ ने भी ग़लत किया । इसी सब सोच-विचार में कई घंटे बीत गये। गायें भी चरकर आकर उसी के पास बैठकर सुस्ताने लगीं। मानो किसी को कहीं जाने की जल्दी ना हो। अमरेश ने अचानक देखा कि अखिल बड़ी तेजी से उसकी तरफ चला आ रहा है । अमरेश की आंखों में चमक आ गयी। उसे लगा कि हो ना हो मम्मी आ गयी हैं इसिलये अमरेश उसे बुलाने आया है।

अखिल ने पास आते ही कहा “अमरेश घर चलो, लोकपाल नाना आये हैं”।

हाँ मेरा घर तो बन्द है, क्या तुम्हारे घर बैठे हैं”?

अखिल ने सहमति में सिर हिलाया। अमरेश ने पूछा”मम्मी अकेली हैं या वो काला तिवारी भी आया है साथ मे?

अखिल ने धीरे से कहा “चाची नहीं आयी हैं, नाना हैं और गाँव के प्रधान रामबहादुर मिसिर भी आये हैं । चलो जल्दी बुलाया है तुमको। “

अमरेश असमंजस में पड़ गया। मम्मी नहीं आयी हैं तो नाना क्यों आये हैं। क्या वो उसे बुलाने आये हैं । मैं काले तिवारी के घर नहीं जाऊंगा, तब क्यों आये हैं नाना। अमरेश कयास, अनुमान लगाते हुए वो गायें लेकर घर पहुंचा। गायें बांधकर, हाथ मुँह धुलकर वो अखिल के साथ उसके घर पहुंचा। वहां बरामदे में बैठे उसके नाना और गाँव के प्रधान बैठे जलपान कर रहे थे।

अमरेश ने वहाँ पहुँचकर ग्राम प्रधान को पैलगी की “पाँय लागी मिसिर”। लेकिन अपने नाना का अभिवादन नहीं किया। प्रधान ने आशीर्वाद दिया, लेकिन अमरेश ने अपने नाना को अभिवादन नहीं किया। खिसियाते हुए उन्होंने बिना अपनी झेंप मिटाने के लिये खुद ही आशीर्वाद देते हुये कहा”जीते रहो पूत”।

प्रधान ने कहा”अब जो हुआ सो हुआ, लड़ाई -झगड़ा और ना बढ़ाओ, ये तुमको लेने आये हैं। तुम्हारा मन हो तो चले जाओ, । मैं नहीं कह रहा हूँ जाने को, लेक़िन तुम्हारा भला तो इसी में दिखता है। “

अमरेश हत्थे से उखड़ गया वो आवेश में बोला”ई हमारे घर का मामिला है प्रधान, तुम्हारी प्रधानी की नहीं । तुम बीच में ना बोलो । तुमसे पूछ के नहीं आएंगे-जाएंगे। का कह रहे हो तुम कि झगड़ा ना करो, अरे लाश गिर जाई लाश”।

बित्ते भर के छोकरे से ऐसी अहमकाना बातें सुनकर प्रधान के तन-बदन में आग लग गयी लेकिन उसी के जाति का मामला था और प्रधान उन्ही लोगों के सामने बैठा था और फिर एक बाहरी व्यक्ति के सामने तमाशा हो सकता था इसलिये प्रधान भी संयत स्वर में मगर सख्ती से बोला”बित्ते भर का छोकरा, गज भर की जुबान। इतना ना उड़ो अमरेश, खून -कत्ल हो जायेगा तो जिंदगी जेल में कटेगी। ये तुम्हारे नाना मेरे साथ मेरी गारंटी पर आये हैं। इनसे तमीज से पेश आना। कुछ गड़बड़ हुई तो थाना पुलिस मैं खुद कर दूंगा। फिर प्रधान लोकपाल तिवारी की तरफ मुखातिब होते हुए बोला”तिवारी जी, आप चले जाओ इसके साथ इसके घर, तनिक भी चिंता ना करो। रामजस काका शहर गये हैं । जो कुछ बोलना-समझाना है कर लो। मैं यहीं बैठा हूँ । अकेले नाना -नाती बतिया लो। ये कुछ करेगा तो आप इसके भर के हो ही। बाकी कोई बोलेगा तो मैं तो हूँ ही। आपको गांव से बाहर सुरक्षित भेज कर ही मैं कहीं जाऊंगा। आप जाओ इसके साथ”।

लोकपाल तिवारी वहाँ से उठे और अमरेश के घर की तरफ चल दिये। अमरेश भी उनके पीछे-पीछे चल दिया। अखिल ने भी अमरेश के पीछे जाने की कोशिश की तो प्रधान ने उसे रोक लिया और उससे कहा”तुम नाना -नाती के बीच में ना जाओ। आज इन दोनों को अकेले में निपटा लेने दो मामला। किसी बाहरी का वहां होना ठीक नहीं उनकी अपनी प्राइवेट बातें होंगी, उन्हें कर लेने दो। तुम जाओ घर में मत जाना और ना उनके पास जाना । हाँ कोई हल्ला-झगड़ा हो तो दौड़ के तुरंत मुझे बताना बेटा”।

अखिल वहाँ से चला गया वो अमरेश के घर पहुंचा तो वहाँ उसने देखा कि दरवाजा बाहर से बंद था। उसने कान लगाए पर अंदर कोई विशेष स्वर सुनायी ना पड़ा। दरवाजे के सुराख से देखा तो आँगन की चारपाई पर लोकपाल तिवारी बैठे थे और उनसे छिटककर थोड़ी देर पर अमरेश खड़ा था अनमना सा।

लोकपाल तिवारी ने कहा “बेटा, चलो मैं तुमको लेने आया हूँ । जहाँ गाय वहीं बछवा। जैसे गाय, बछवा के बिना तरसती है वैसे ही रात भर तुम्हारी मम्मी तुम्हारे बिना रोती -कलपती रही। मर जाएगी वो तुम्हारे बिना । अन्न-जल त्यागे बैठी है तुम्हारे बिना”।

अमरेश ने हाथ नचाते हुए कहा “ई सब हमको ना सुनाओ, उसको हमारी फिकर होती तो अपने यार के साथ ना जाती। उसको लड़का नहीं मरद चाहिये। उसका नाम ना लो हमारे सामने”।

लोकपाल ने फिर पुचकारते हुए कहा”बेटा, जुग्गीलाल तिवारी तुमको बिल्कुल अपने लड़के की तरह मानते हैं। चलो उनके पास वो तुमको तुम्हारी माँ के साथ कलकत्ता ले जाएंगे। तुमको वहाँ पढ़ा-लिखाकर आदमी बना देंगे। यहां गाय-गोरु, खेती-किसानी में कुछ नहीं रखा। चलो बेटा उनके कहने पर ही मैं तुम्हे लेने आया हूँ। “

जुग्गीलाल का नाम सुनते ही अमरेश अंगारों पर लोट गया। वो दहाड़ते हुए बोला”उस हरामी का नाम ना लो हमारे सामने। वही बहकाया है मम्मी को। उसके घर जाने से अच्छा है कुंआ-ताल ले लें, भीख माँगकर खाएं चाहे टूक-टूक उड़ जायें। वहां नहीं जाएंगे। और वो काला तिवारी हमको मिल गया तो उसको चिर्री की छुरी से काट देंगे, रुको दिखाता हूँ, ये कहकर अमरेश कमरे के अंदर चला गया और वहाँ से एक चमचमाती हुई छुरी लेकर निकला और बोला”ई देखो, उसी को काटने के लिये ये रखे हैं जिस दिन मिलेगा उसकी लाश गिरा देंगे। और अब हमारे सामने हमारे घर में उस काले तिवारी की बात ना करना, बताये देते हैं”।

लोकपाल तिवारी हैरान रह गये एक दिन में इतनी घृणा। क्या घुट्टी पिला दी इसे रामजस ने। उन्हें अमरेश को किसी तरह ले ही जाना था । वो चाशनी भरे स्वर में बोले”अच्छा ठीक है, तुम वहाँ नहीं जाना चाहते तो मत जाओ । तुम इमलिया चलो, मेरे घर। वो भी तो तुम्हारा ही घर है । तुम मेरे नाती नहीं बेटे हो अब, अपने नाना-नानी के बुढ़ापे का सहारा हो। चलो बेटा चलो”।

अमरेश ने तुरंत प्रतिवाद किया “क्यों चलें, तुम्हारे घर गाय-भैंस चराने। तुम्हारा नादा-सानी करने। गोबर फेंकने। यही सब करना है तो यहां भी करें । दूसरे के घर करने से बेइज्जती होती है”।

लोकपाल तिवारी ने बात को संभाला”अरे बेटा, अपना ही घर है। अपने घर के काम में क्या शर्म?अच्छा चलो अब तुम कुछ ना करना। खाली पढ़ने जाना”।

अमरेश भरा बैठा था वो फिर फट पड़ा”तुमको बुढ़ापे में झूठ बोलते शरम नहीं आती। तुम्हारा घर, तुम्हारी कुछ चलती भी है वहाँ, सब मौसा-मौसी के हवाले। तुम्हारे सामने मौसा हमसे कहते थे जाकर गाय खोल दो। तब कहाँ थे तुम। घर तुम्हारा, हुकुम वो दें। खून खौलता था हमारा। मूतने भी नहीं जाएंगे तुम्हारे घर, और तुम भी चले जाओ यहां से। तुम्ही हमारा घर खराब किये, मम्मी को तुम्ही ये सब गंदा काम करने को बताये। जाओ यहां से, नहीं तो बवाल हो जायेगा। तुमको देखते ही हमारा खून गरम और दिमाग आउट हो जाता है। महतारी -पूत अलग कर दिये तुम पापी कहीं के”।

लोकपाल तिवारी सोच में पड़ गये। उन्हें नहीं पता था कि ये लड़का उनसे भी इतनी ही नफरत करता है । उन्होने सोचा कि वो अमरेश को ये बता दें कि उसकी माँ अपनी मर्ज़ी से नहीं, रामजस की करनी से यहाँ से गयी है। डाकुओं से रामजस का मेलजोल और अमरेश को इन् बलाओं से बचाने के लिये इस माहौल से निकालने के लिये उसने ये कदम उठाया है । और उस बेचारी की क्या-क्या दुर्गति हुई है अमरेश की खातिर। मगर ये लड़का उल्टा उसकी बेटी और उनको ही गलत समझ रहा है। उस गंजेड़ी ने इस लड़के की बुद्धि भ्रष्ट कर दी। चाकू लिये घूम रहा है। बिना किसी गलती के ये लड़का अगर अपने नाना और माँ के इतना खिलाफ है तो अगर रामजस की वजह से सरोजा के बलात्कार की बात मैंने बता दी तो ये रामजस की हत्या कर सकता है, क्या पता डाकुओं की तलाश में ही निकल जाये। फिर या तो ये मारा जाएगा या फिर जेल जाएगा। इस तरह तो इसके मां का इतना उठायी हुई दुख-तकलीफ सब बेकार हो जाएगी। ठीक है, इसे रामजस पर बड़ा घमंड है जब वो सब बेच खा जायेगा और इसको भूखों मारेगा तब इसकी अक्ल ठिकाने आ जायेगी। अभी इसका दिमाग गरम है । इसे कुछ दिन इसके हाल पर छोड़ देना ही बेहतर । ज़िन्दगी कष्ट देगी तब इसे या तो मैं मिलूंगा या इसकी माँ।

लोकपाल तिवारी ने ठंडी सांस लेते हुए कहा”ठीक है, मैं जाता हूँ बेटा। जब तुम्हारा मन करे तब इमलिया चले आना तुम्हारा ही घर है। चाहे अपनी माँ के पास चले जाना, वहाँ भी सब तुम्हारे अपने ही हैं। चाकू-छुरी से दूर रहो बेटा इसका नतीजा या तो मौत है या जेल,, मैं जाता हूँ बेटा”, ये कहते हुए रामजस निकलने लगे”।

रुको पाँच मिनट”अमरेश ने कहा। लोकपाल तिवारी आशान्वित हो उठे कि शायद लड़के का मन बदल जाये। अमरेश ने खुरपी उठाई और वो रसोईघर में घुस गया। थोड़ी देर बाद बाहर निकला तो उसके हाथ में मिट्टी सना हुआ जेवर का डिब्बा और पैसे वाला बटुआ था। वो रसोई से निकलकर कमरे में घुस गया और खींचकर एक अटैची बाहर लाया।

वो हांफते हुये बोला”ये मम्मी के कपड़े, रुपये और जेवर हैं । इसे लिये जाओ उनको दे देना। जब उनका हमसे ही रिश्ता खत्म हो गया तो मेरे मेहरारु के लिये कुछ बचा कर ना रखें। मेरे लिये जैसे मेरी मम्मी वैसे उनका धन और सामान सब गौरक्त बराबर हैं। ले जाओ ये सब”।

लोकपाल तिवारी ने कहा”ये सब तुम रख लो, तुम्हारा ही है, तुम्हारे लिये ही उसने तन-पेट काट कर बचाया था”।

अमरेश ने कहा”मेरे लिये गौ रक्त जैसा है ये । ले जाओ, वैसे भी यहाँ ये बचेगा नहीं या तो कोई चुरा लेगा या रामजस दादा बेच डालेंगे। मैं उसे कभी हाथ नहीं लगाऊंगा। ये सब ले जाओ, फिर कभी मत आना यहाँ, मैं मर जाऊं तो भी तुम और तुम्हारी बेटी यहाँ ना आना। अब से ना महतारी और ना नाना। “

रामजस को उसकी बात से दुख तो बहुत हुआ मगर उसे अमरेश की ये बात ठीक लगी कि ये रुपये और जेवर या तो यहाँ चोरी हो जाएंगे या रामजस बेच डालेंगे। उन्होंने सोचा कि देर-सबेर जब रिश्ते सामान्य होंगे तब अमरेश की अमानत उसे लौटा देंगे। रामजस को विश्वास था कि लाठी मारने से पानी नहीं फटता इसलिए अमरेश मान जायेगा। उन्होंने अटैची उठा ली और दरवाजे से निकल गये। उनके जाने के बाद अमरेश सुबकने लगा कि उसने अपनी माँ को पूरी तरह विदा करके हमेशा के लिये खो दिया

अमरेश ने धीरे-धीरे अपने मन पर काबू पा लिया इन नये हालातों में। उसने ना तो अपने माँ और नाना के बारे में कुछ जानने की कोशिश की और ना ही किसी ने कुछ बताने की कोशिश की।

उनके गाँव भले ही दो थे मगर जंवार एक ही था। ना जानने का प्रयास करने के बावजूद सबको सभी की खबर थी जाने में, अंजाने में भी। उन गाँवों के नाई, धोबी एक ही घराने की थी। पंडिताई की जजमानी भी तमाम घरों की साझा थी। अमरेश दिन-दिन भर खेती-किसानी और गाय-गोरु में व्यस्त रहता। सुबह शाम दो प्राणियों का खाना बना लेना कोई बड़ा काम ना था। गाँव का एक गंजेड़ी हरिलाल अक्सर उनके घर मंडराता रहता और वो बर्तन मांज देता साफ-सफाई कर देता मगर खाना अपने घर खाता था बस गांजा ही इनके घर पीता था। इसीलिए मंडराता भी रहता था, सुबह की आखिरी चिलम से अंतिम चिलम तक। इसी बीच वैशाख का गल्ला सब खलिहान से ही बिक गया था रामजस ने बताया कि उन्होंने जुग्गीलाल तिवारी पर मुकदमा कायम कर दिया है और उन्हें जेल भिजवा कर ही दम लेंगे इसलिए उन्हें गल्ला बेचकर वकील को फीस देनी है। अमरेश ने प्रतिवाद ना किया अलबत्ता उसके भी मन में टीस थी कि जुग्गीलाल दंडित हों। गाय का दूध, फसल, पेड़ बेच बेचकर जो पैसा आता रामजस उसे ले लेते और कहते कि वकील को फीस देनी है। अमरेश को कोई बंधन नहीं था लेकिन वो काफी हद तक मुक्त भी था। ना कोई नियंत्रण ना कोई निर्देश देने वाला। ना भविष्य के लिये कुछ सोचना और ना ही भविष्य के लिये कुछ जोड़ना। उसके लिये भविष्य का मतलब अगले टाइम खाने में क्या बनाना है, खाना मैं बनाऊंगा या दादा?अब उसे अपनी माँ की चिंता नहीं थी अलबत्ता उसे इस बात का बेसब्री से इन्जार था कि रामजस दादा कब उस काले तिवारी को जेल भिजवाएंगे।

उसे इस बात की खबर थी कि जुग्गीलाल कलकत्ता चले गये हैं। लेकिन लौटेंगे तब पुलिस पकड़ेगी। इसी चक्कर में दूसरी छमाही की फसल भी खलिहान से आढ़ती को उठा दी गयी। अमरेश मन मसोस कर रह गया कि जब जुग्गीलाल कलकत्ता में हैं तब वकील साहब यहां कौन सा मुकदमा लड़ रहे हैं?उसने रामजस से पूछा तो वो उसको गरियाने लगे।

अब दो में से एक गाय बिसुक चुकी थी। रामजस उसे बेचने को कह रहे थे लेकिन वो तैयार ना था। एक सुबह वो उठा तो उसने देखा कि गाय खूंटे पर नहीं थी। रामजस से दरयाफ्त की तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की। उसने ज़्यादा कुरेदा तो रामजस मारने-पीटने पर उतारू हो गये। अमरेश मन मसोस कर रह गया। उसे अब अपने नाना की बातें रह-रह कर याद आती थीं कि रामजस उसके साथ कैसा बर्ताव करेंगे।

इसी बीच कुछ दिनों के अंतराल पर उसकी दूसरी गाय भी बिसुक गयी। दूध के लाले हुए तो दो नुकसान एक तो पेट भरना मुश्किल दूसरे आमदनी भी बंद। इसी बीच उसे खबर लगी कि जुग्गीलाल वापस आये हैं कलकत्ता से। उसने रामजस को बताया, रामजस ने हामी भरी कि वो जल्द से जल्द वकील से मिलकर जुग्गीलाल को जेल भिजवा देंगे।

इस बीच अमरेश ने ये जान लिया था कि धान और गेंहू की पूरी पूरी फसल दादा खेत से ही बेच देंगे। लेकिन अगर वो गन्ना बोये तो उसे जाकर खेत से उठा ना सकेगा कोई आढ़ती।

अगली सुबह रामजस ने उससे कहा “तैयार हो जाओ, आज मुर्तिहा के बरदही बाज़ार जाना है, ये बिसुकी गाय बेचकर एक लगेन गाय ले आया जाय। दूध के बिना खाने-पीने में बहुत तकलीफ होती है”।

अमरेश को ये बात जंच गयी। उसे यकीन था कि उसकी पहले वाली गाय दादा ने ही बेची है । बस कबूल नही रहे हैं क्योंकि गांव भर में जब एक से एक लगेन गाय चोरी नहीं हुई तो उसकी बिसुकी गाय कौन ले जाता चुराकर। ये किसी से पैसा लेकर खा गये होंगे। बाद में उसी को गाय खुलवा दी होगी। वो अगर मना करेंगे तो तो दादा फिर किसी से रूपये लेकर गाय खुलवा देंगे

और दूध के बिना तो उसका भी पेट नहीं भरता।

उसने कहा” ठीक है, चलो गाभिन मत लेना। लगेन ही लेना चाहे चार-पांच बेंत बियाई हो”

वो दोनों चाचा-भतीजा पशु बाज़ार पहुँच गये। बिसुकी गाय का रेट ज्यादा नहीं लगता क्योंकि उसे काफी दिन खिलाना पड़ता था। किसान वही गाय खरीदते थे जो गाभिन हो या लगेन। बिसुकी और बांझ-बहिला गायें कसाई ही खरीदते थे। कसाई गायों की कीमत दूध से नहीं बल्कि उनके वजन और स्वास्थ्य को देख कर देते थे।

दो हजार-बाईस सौ से ऊपर अमरेश की गाय का कोई दाम नहीं दे रहा था। अलबत्ता कसाई तीन हजार तक देने को तैयार थे। कसाई डरते थे कि गाय बैल के नाम पर कोई बवाल ना हो इसलिये दलालों के माध्यम से वे सौदा करते थे। अंततः ढाई हजार में उनकी गाय बिक गयी। गाय बिक तो गयी अब गाय खरीदने की चुनौती थी। दो लीटर दूध की लगेन गाय पैंतीस सौ से नीचे किसी दम भी नहीं मिल पा रही थी। अमरेश कहता रहा, रामजस आना कानी करते रहे अंत में रामजस ने रुपये कम होने का हवाला देते हुए गाय नहीं खरीदी और बाकी रुपयों का इन्तेजाम करके अगले सोमवार को गाय खरीदने की बात की।

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