सड़कछाप - 1 dilip kumar द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सड़कछाप - 1

सड़कछाप

(१)

सर्दियों की सुबह, शीतलहर से समूचा उत्तर भारत कांप रहा था। चरिंद-परिन्द सब हल्कान थे कुदरत के इस कहर से। कई दिनों से सूर्य देवता ने दर्शन नहीं दिये थे । गांव कोहरे और धुँध की चादर में लिपटा हुआ था। बहुत दूर तक भी नजर गड़ाने पर पूरा सिवान मानों उतनी दूर तक ही सीमित था जितनी दूर तक आंखे कोहरे हो भेद सकती थीं। लल्लन शुक्ला की की मृत्यु के समाचार छन-छन के आ रहे थे। हाज़िर गवाह लोगों ने उनको अपने सामने ही दम तोड़ते देखा था, लेकिन फिर भी उनको हस्पताल ले गये थे लोग, थाना -पुलिस की भी कवायद होनी थी। रात हस्पताल में ही गुजरी और फिर वहां से पोस्टमार्टम के लिये रायबरेली ले जाया गया जो कि गांव के पास के हस्पताल से सात किलोमीटर दूर था। लाश तो थी, डॉक्टर भी था मगर मेहतर ने इतनी शराब पी ली थी कि वो बेसुध पड़ा था, दिन में भी इतनी धुंध और बदली छाई थी कि पचास फुट की आगे की चीजें दिखायी नहीं पड़ती थीं। मोर्चरी में बिजली नहीं थी, जनरेटर खराब पड़ा था, डॉक्टर ने बताया कि बिजली रात की पाली में आती है, रात के ग्यारह बजे से सुबह सात बजे तक । डॉक्टर ने कहा वो सुबह पांच या छह बजे तक पोस्टमार्टम कर देगा। ये सुनकर बाकी लोग घर लौट आये लाश के पास सिर्फ रामजस और हनुमंत ही रुके। बाकी लोगों को ताकीद कर दी गयी कि वो घर चले जायें और इस मामले में चुप्पी साधे रखें, , लोगों ने सामूहिक रूप से पूछा कि क्यों, मगर उन्हें सिर्फ ये बताया गया कि कत्ल का मामला है वो भी राजनीतिक पता नहीं कल क्या समीकरण हो।

  • * अगली सुबह तड़के ही पोस्टमार्टम हो गया और लाश मिल गयीरामजस को लाश के पास छोड़कर हनुमंत कफन आदि का प्रबंध करने में जुट गयेबाज़ार नौ बजे से पहले नहीं खुलते थे परंतु कर्माही के दुकानदार थोड़ा पहले दुकान खोल देते थे हनुमंत ने सारा सामान खरीदा और एक इक्के को गांव तक जाने के लिये तय किया इक्के वाला बोहनी के वक्त लाश नहीं ले जाना चाहता था तो हनुमंत ने उसे अपना परिचय देते हुए कहाजानते हो पूरे शुक्ल के शुक्ला हैं हम लल्लन शुक्ल का ड्रामा देखे हो नाउन्ही की लाश ले जानी है। ”
  • * इक्केवाला लल्लन शुक्ल को भी जानता था और कल हुये कत्ल के बारे में भी जानता था वो जाना तो नहीं चाहता था मगर ये जानता था कि जिस दिन बामन लोग उसको पा गये तो उसके आज के इनकार का भयंकर बदला लेंगे हारकर उसने हामी भर लीतीनों भाइयों को लेकर इक्का गांव की तरफ बढ़चलाजिसमें लल्लन मुर्दा थे, और बाकी दो भाई मुर्दे की तरह बैठे थेगांव में लाश पहुंची तो सर्दी की शीतलहर से सन्नाटा थाधूप का एक टुकड़ा तक नही दिख रहा था लोग घरों में दुबके थे किसी-किसी घर से धुआं उठ रहा था वो या तो कौंरा था या रसोई का धुंआइक्का दरवाजे पर पहुंच गया तब तक लोगों को मालूम ना चलादोनों भाइयों ने तीसरे भाई की लाश को उतारा उनके आँसू रो -रो के सूख चुके थे, अब उन्हें आगे अंत्येष्टि की व्यवस्था की चिंता थीघर के सारे बच्चे लाश के आगे आकर खड़े हो गये मानों वो कोई अजूबा चीज़ हो जो अभी सफ़ेद कपड़ों से बाहर निकलेगी अमरेश ने हाथ का सहारा देकर अपने पिता को उठाना चाहा तो उसकी इस अबोध निश्छलता पर रामजस रो पड़ेधीरे-धीरे घर की औरतें भी बाहर आ गयींमृतक लल्लन की पत्नी सरोजा और और उसकी देवरानी मैना दहाड़ें मार कर रोने लगीउन दोनों ने एक दूसरे को अंक में ले लिया और जार-जार रोने लगींअड़ोस-पड़ोस की महिलायें भी आ गयीं वो सब भी बुक्का फाड़ कर रोने लगीं महिलाओं का पूरा समूह रोने लगा तो बच्चों ने समझा कि सभी औरतें रो रही हैं तो उन्हें भी रोने में शामिल होना चाहियेवैसे भी बच्चे अपनी माताओं या अपने घर की औरतों का अनुसरण करते ही हैं, सो बच्चों ने चीखना भी शुरू कर दिया, वे सब चीख़ते-चिल्लाते हुए रोने लगेचीख -पुकार से पूरे गांव में गोहार हो गया बूढ़े-जवान भी आ गयेकुछ लोग रो रहे थे, कुछ छाती पीट रहे थे और अधिकांश लोग अपने को दुखी दिखाने का प्रयत्न कर रहे थे इनमें बहुत से ऐसे लोग भी थे जो मान रहे थे कि हाल ही में हुई प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश जिस तरह से अनाथ और दिशाहीन हो गया है वैसे ही ये घर भी अनाथ और दिशाहीन हो गया है इंदिरा गांधी का जिक्र उनके जीवन का ज़रूरी हिस्सा था जैसे सुबह -शाम की चायरायबरेली से ही इंदिरा गांधी चुनाव लड़ा करती थीं और प्रधानमंत्री का निर्वाचन क्षेत्र होने के नाते सभी में एक किस्म का विशिष्टता का भाव था और गर्व भी फिर पूरे शुकुल गांव गजराज सिंह की लम्मारदारी में था और गजराज सिंह की कांग्रेस आफिस में तूती बोलती थीगजराज सिंह की लम्मारदारी के सबब लल्लन शुक्ला उनसे जुड़े थे और हालात के भंवर में उलझकर अपने प्राण गंवा बैठे थेलल्लन शुक्ला ने ड्रामा कंपनी खोल रखी थीपूरे साल दूर दूर तक नाटक खेलने जाते थेलल्लन शुकुल ने कभी अपनी ड्रामा कंपनी को नौटंकी कंपनी नहीं कहा और गांव-जंवार ने हमेशा उनकी मंडली को नौटंकी कंपनी ही कहा कभी भी ड्रामा कंपनी नहीं कहाचुनाव के मौसम में लल्लन की कंपनी की डिमांड बढ़ जातीवे अपने मंडली के साथ घूम-घूमकर गांव-गांव, शहर-शहर अपनी सरकार की उपलब्धियों का गुणगान करते थे और पार्टी के पक्ष में माहौल बनातेपिछले चुनाव में उनके दल की मेहनत देखकर गजराज सिंह बहुत खुश हुए थे और उनको इंदिरागांधी से मिलवाने का वादा भी किये थे तभी से लल्लन शुक्ला को पंख लग गये थेगाना-बजाना और नौटंकी के पाठ का अभ्यास उनके जीवन का हिस्सा थे वो बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे थे थाना-पुलिस हर जगह उनकी पहुंच थी और हर जगह उनकी पकड़आदमी को अगर ये लगे कि उसकी पहुंच देश के सर्वोच्च पद तक हो सकती है तो उसका दिमाग खराब होना लाजिमी थालल्लन शुक्ला का भी दिमाग ऐसे ही टशन में पड़कर खराब हो गयागांव-गांव नौटंकी करते थे, गांव-गांव की खबर रखते थेपुलिस की मुखबिरी भी शुरू कर दी थी भूर्रे डकैत के आतंक से इलाका थर्रा रहा थावैसे तो वो गंगापार का डकैत था मगर उसके कलेरास घोड़े के लिये कहीं भी पहुंच जाना असंभव थाप्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में ढकती होना बड़ी बदनामी का सबब थाभुर्रे शायद रायबरेली में ढकती ना भी ड़ालने आता, मगर उसकी नूर-ए-नजर जीनत पतुरिया इसी जिले में रहती थी वो जब -तब उससे मिलने आता थावो डाका, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़ और फैज़ाबाद में डालता था अमूमनमगर जब वो रायबरेली आता था तो कई रोज भेष बदलकर जीनत के पास पड़ा रहता थाजैसे राक्षस की जान तोते में थी वैसे ही भुर्रे डाकू की जान जीनत पतुरिया में बसती थीजीनत दुनिया कोH दिखाने के लिये थोड़ा-बहुत नाच गा लेती थी, बाकी उसका पूरा खर्चा भूर्रे ही उठाता था जीनत भले ही नाचनेवाली औरत थी मगर पतुरिया होने के बावजूद किसी की हिमाकत नहीं थी कि वो जीनत को छू सके वरना उसे दस हजार के इनामी बदमाश भुर्रे के कहर का सामना करना पड़ सकता है भुर्रे नेताओं की गोद में बैठा हुआ एक ऐसा डाकू था जिससे पुलिस भी डरती थीजीनत के साथ का एक डफली बजाने वाला कभी -कभी लल्लन शुक्ला के साथ भी नौटंकी के पाठ में शामिल हो जाया करता थाएक बार डाकू सुल्ताना के पाठ का अभ्यास कर रहे थे लल्लन शुक्लारिहर्सल में बार -बार लल्लन शुक्ला डायलॉग भूल जा रहे थे, जब कई बार ऐसा हुआ तो डफली वाले कानपुरी ने गांजे की चिलम सुलगा ली और पूरी मंडली को दम मारने को कहागांजे की पिनक में कानपुरी ने लल्लन शुक्ला को असली डाकू भुर्रे के बारे में बताया और इनाम के बारे में बतायाबात मुंह से निकल गयी, बाद में कानपुरी का नशा उतरा तो वो लल्लन शुक्ला के पैरों पर लोट गया कि उसने जो कुछ कहा है वो पंडितजी भूल जायें, किसी अहमकाना तजुर्बे के बारे में ना सोचें वरना भुर्रे और उसके लोग जान ले लेंगेलेकिन लल्लन शुक्ला को अपने राजनैतिक संबंधों पर बड़ा अभिमान थाउन्होंने सोचा कि अगर भूर्रे को वो पकड़वा दें तो वो उसके इनाम की रकम उनको मिल सकती है दस हजार की रकम बहुत बड़ी होती है वो दो-तीन सौ रुपये में रात भर अपने दल के साथ नाचते-गाते हैं दस हजार मिल जाये तो वो अपनी बहुत बड़ी ड्रामा कंपनी खोल लेंगे, यहां खतरा हुआ तो वो अपनी पत्नी सरोजा और बेटे अमरेश को लेकर दिल्ली में बस जाएंगेबाबू गजराज सिंह दिल्ली में उन्हें कहीं ना कहीं फिट करा देंगेउन्होंने अपने मंसूबे कानपुरी को बताये कि वो पहले से पुलिस के मुखबिर हैं वो अपना मुंह बंद रखे तो वो सब व्यवस्था कर लेंगे और दस हजार में एक हजार रुपये उसको हिस्सा भी देंगेकानपुरी ने लल्लन शुक्ला के बहुत हाथ -पांव जोड़े मगर लल्लन नहीं मानेउनकी आंखे दस हजार देख रही थीं और कानपुरी की आंखे मौत देख रही थीं अंत में कानपुरी डर के मारे कानपुर भाग गयालल्लन शुक्ला ने अपनी योजना को मूर्त रूप दिया उनकी मुखबिरी पर छापा भी पड़ा लेकिन भुर्रे फंदे में आकर भी निकल गयापुलिस ने खीझ मिटाने के लिये जीनत को गिरफ्तार कर लिया उसके साथ भुर्रे के खौफ से किसी ने जिनां करने की हिमाकत तो नहीं की मगर उसे थाने में रखकर दो-चार दिन नचाया और फिर देह-व्यापार की धाराओं में उसका चालान करके उसे जेल भेज दियालल्लन शुक्ला ने जब सुना कि भुर्रे पकड़े जाने के बावजूद फरार हो गया तो वो भी आतंकित हो गयेलिहाजा वो गजराज सिंह के बंग्ले और पार्टी आफिस में ही घूम-फिर कर महीनों दिन काटते रहे और टोह लेते रहे कि भुर्रे या उसके गुर्गे उनकी ताड़ में तो नहीं हैंकई महीनों तक उन्होंने अंदाज़ा लगाया मगर कोई सुराग या ख़तरा नजर ना आयाउन्होंने कानपुरी की भी खोज-खबर ली और इस चक्कर में कानपुर भी हो आये कि शायद भुर्रे कानपुरी तक पहुंचा हो या ना पहुंचा हो कानपुरी वहां भी नहीं मिला पता लगा कि दिल्ली में कहीं गा-बजा रहा है बस यहीं गलती कर दी लल्लन शुक्ला ने जो कानपुरी के घरवालों को आश्वासन दे दिया कि कानपुरी लौटे तो उसे बता देना कि रायबरेली वाले लल्लन शुक्ला आये थे और उसे अपनी ड्रामा कंपनी में काम करने के लिए बुला गए हैं उससे बता देना कि अब रायबरेली में कोई खतरा नहीं है और किसी बदमाश को कुछ पता नहीं चला था और कानपुरी को कोई भी खोज नहीं रहा है अपना पैगाम देकर लल्लन शुक्ला लौट आयेलेकिन कोई और भी था जो हर हफ्ते उस घर में लौट -लौट कर आता था और जो पूरे परिवार को मार डालने की धमकियां दिया करता था वो था खुद भर्रेउसने कानपुरी को पीट-पीट कर अधमरा कर दिया था कि क्या उसने या उसके किसी साथी ने इनाम के लालच में पुलिस की मुखबिरी तो नहीं की थीबहुत मार खाने के बावजूद कानपुरी ने जुबान नहीं खोली थी, अल्लाह की झूठी कसम भी खा ली थी कि उसे इस बाबत कुछ नहीं पताकानपुरी की अल्लाह की कसम पर थोड़ा सा यकीन करके भुर्रे ने उसे ज़िंदा छोड़ दिया लेकिन ये चेतावनी भी दी कि वो नजर रख रहा है और कुछ ही दिनों में अगर उसे कुछ भी उसका रोल पता चला तो वो खत्म कर देगा उसेकानपुरी घर लौटा तो उसे लगा कि अगर भुर्रे ने किसी तरह लल्लन शुक्ला का पता लगा लिया और लल्लन ने जुबान खोल दी तो उसका मरना तय हैजान है तो जहान है ये सोचकर उसी रात उसने अपना घर नीम अंधेरे में छोड़ दिया उसने घर वालों को बताया कि वो दिल्ली जा रहा है, कब लौटेगा पता नहीं?
  • ज़िन्दगी रही तो लौटेगा, भुर्रे के मरने के बाद क्योंकि यहां भुर्रे उसको जीने नहीं देगा। इधर भुर्रे आग का गोला बना हुआ था। उसे अपने मुखबिरी और पुलिस के घेराव से कोई उज्र ना था। डाकू की पुलिस से आंख-मिचौली आम बात थी मगर जीनत इस बार गिरफ्त में थी और दुख भोग रही थी उसी के कारण। वो जीनत की गिरफ्तारी से बहुत आहत था और उसके जेल में होने के अपराध-बोध से बहुत कुपित था। इसीलिए वो उस शख्श को दंड देने के लिये खोज रहा था जो इस सब की वजह था। जीनत के साजिंदों के अलावा कोई उस गांव में उसे नहीं पहचानता था अलबत्ता लोग उसके नाम से लोग जरूर सिहरते थे। जब कानपुरी अचानक गायब हुआ तो उसका शक पक्का हो गया। लेकिन इतनी पिटाई के बाद भी जब कानपूरी नहीं टूटा तो उसे अपने अनुमान पर शक होने लगा । मगर उसने कानपुरी पर से अपनी नजर नहीं फेरी। कानपुरी जब फरार हो गया तब भी वो उसके घर के चक्कर काटता रहा। उसके खौफ कानपुरी के घरवालों पर इतना था कि वो डरे-डरे रहते थे कि किस दिन इस दुर्दांत डाकू का आपा खो जाये और वो कानपुरी के पूरे खानदान को नेस्तानाबूद कर दे।

  • * इसलिए जैसे ही लल्लन शुक्ला ने अपना पैगाम दिया और अगली बार भुर्रे आया तो कानपुरी के घरवालों ने उसे पूरी बात बता दीकानपुरी के घरवाले भुर्रे के पैरों पर नाक रगड़ कर गिड़गिड़ाए और ये माना कि सारी कुछ किया -धरा लल्लन शुक्ला का ही है गांजे की पिनक में डाकू सुल्ताना के रोल को धार देने के लिए गलती से कानपुरी ने ये राज खोल दिया था और बाद में कानपुरी ने बहुत इल्तजा की मगर लल्लन शुक्ला ना माने, क्योंकि वो पहले से मुखबिर थेइसीलिए ही कानपुरी तुरंत रायबरेली से भाग आया थाबहुत चिरौरी-मिनती करने और कुछ धन देने के बाद कानपुरी के घरवालों की जान भूर्रे ने बख्श दीउसे उसका अभीष्ट मिल चुका था और कानपुरी अब पता नहीं कहां था सो भुर्रे ने वहां से लौटकर अपने अभीष्ट की तलाश शुरू कर दीगजराज सिंह के बंगले और पार्टी ऑफिस में हमला करके लल्लन शुक्ला को मारना आसान नहीं थाचार दिन नजर रखने के बाद ही ये मौका मिल गयालल्लन शुक्ला भले ही खतरे से आश्वस्त थे मगर फिर भी रात-बिरात या अकेले हर्गिज़ सफर नहीं करते थेपास में रामपुरी चाकू भी रखते थे उस पर शान चढ़ाया करते थे
  • * गांव में एक विवाह तय हुआ था उनका बुलावा था एक तो शुभ अवसर में शामिल होना था और दूसरे उनकी नौटंकी पार्टी भी बुक होनी थीन्योते में तो शायद वे ना जाते मगर रोजगार की जरूरतें भी थीं सो उन्होंने गांव जाने का निश्चय कियाठोंक-बजाकर दिन के एक बजे वो गांव जाने वाले बस में बैठेवैसे तो गांव तक इक्का, साईकल, मोटरसाकिल या टेम्पो, जीप सभी से पहुंचा जा सकता था मगर बस की सत्तर-अस्सी सवारियों में वो खुद को ज्यादा महफूज मानते थेउधर भर्रे ऐसा डकैत था जिसे अपना आतंक कायम करना था ताकि दुबारा कोई ऐसी हिमाकत ना करे उसकी मुखबिरी काबस ने शहर की सरहद छोड़ी वैसे ही भुर्रे ने बस को रुकवा लिया बस रोकी गयी तब, लल्लन शुक्ला का दिल धड़कने लगा, क्योंकि वो बस की भीड़ में ज़मीन पर छुपे बैठे थेसबसे आखिर में बस में मूंगफली के कई बोरे रखे थेवे उसी के बीच छुपे बैठे थेउनका दिल बैठने लगा उन्होंने चाकू निकाल लिया मगर वो थर-थर कांप रहे थेबस के सामने मवेशियों का इतना बड़ा झुंड ले आया था भुर्रे कि बस रोकनी पड़ीभैंसवारे की तमाम गायों-भैंसों को हंकवा कर लाया था भुर्रेउसका मुखबिर बस के आगे तेजी से पहुंचा था और उसके इशारे पर ही भुर्रे ने तुरंत मवेशी सड़क पर फैलवा दी थीवो जगह ऐसी थी कि सड़क के दोनों तरफ लंबे-लंबे मूंज लगे थेना सड़क से सिवान दिखता था और ना ही सिवान से सड़क यानी सड़क का आदमी या तो आगे देख सकता है या पीछेमूंजों की क़तारें दोनो तरफ प्रेत की तरह खड़ी रहती थीं और तीन किलोमीटर ये लंबा फासला था जिसके बराबर तमसा नदी बहती थीउसी तमसा में नाव लगाये भूर्रे बस की प्रतीक्षा कर रहा थाजैसे ही बस रुकी बंदूकधारियों ने बस को घेर लिया और ड्राइवर को भी उतार लिया, उससे बस की चाबियां छीन ली मगर इस सबसे पहले बस साइड से लगवा ली गयी थी ताकि आवागमन चलता रहेतीन डाकू बस में चढ़ गए और बोरों के पीछे छिपे लल्लन शुक्ला को तुरंत घसीटते हुए उतार लायेलल्लन ने बहुत प्रतिवाद किया, हाथ-पैर जोड़ें लेकिन डाकुओं ने उन्हें अपनी गिरफ्त से नहीं छोड़ाउन्हें भुर्रे के सामने हाज़िर किया गयालल्लन कटे हुऐ बकरे की मानिंद भुर्रे के सामने खड़े थेभुर्रे दरम्यानी कद काठी का एक पट्ठा व्यक्ति था उसके सर के बाल घुटे थेकमीज-पायजामा पहने था और पैरों में पंप के जूते थेलोगों ने पहली बार डाकू देखा वो ऐसे नहीं थे जैसे फिल्मों में दिखते है हट्टे-कट्टे खूँखार ये तो कोई मूँगफली का आढ़ती लग रहा थाउसकी कद-काठी देखकर लालन शुक्ला का डर कुछ कम हुआ, मगर वे हाथ जोड़े ही खड़े रहे
  • भुर्रे ने कहा””का हो पंडित जी, नाचे-गाये से पेट नहीं भरा जो ई मुखबिरी शुरू कर दियेऔर डायन भी सात घर छोड़ देती है तुमको तनिक भी अक्ल नहीं है कि काल की मुखबिरी कर दियेकुछ नाहीं सोचे आगा-पीछातुम तो पहले से मुखबिर रहे तुमका पुलिस वाले नाहिं बताये कि बड़े-बड़े पुलिस अफसर भी हम पर हाथ नहीं डालते तुम्हारी इतनी हिम्मतएक बार गजराज सिंह से पूछ लेते तो तुमको हमारी औकात पता लग जातीसनीमा में जितना डर गब्बर डाकू का है उतना ही खौफ हमारा भी है
  • लल्लन शुक्ला धीरे से बोले “हमने कुछ नहीं किया है भुर्रे भाई, आपको गलतफहमी है कानपुरी झूठ बोल रहा है हमको बख्श दो हमारी बीबी है, बच्चा है”
  • भुर्रे चीखा”ई तब नहीं सोचे थे पंडित आज तुम्हारी वजह से वो जीनत जेल में पाखाना साफ कर रही है जिसकी पीठ भी मलने के लिये हम एक नौकरानी रख छोड़े हैंखाली रुपए के लिये तुमने ये कियाहमसे मांग लेते पंडिततुम ब्राम्हण हो तुमको हम दान दे देते ई लो दस हजार और जीनत हमको ला दो”ये कहते हुए भुर्रे ने नोटों की एक गड्डी शुक्ला की तरफ फेंकीलल्लन शुक्ला ने नोटों को उठाने का उपक्रम ना किया वो हाथ जोड़े हुये विनीत स्वर में बोले”हमको पैसा नहीं चाहिएबस हमारी जान बख्श दो, हमारा एक अबोध बच्चा है, पत्नी है सब बर्बाद हो जाएंगेहम ही एक कमाने वाले हैं खेती-बाड़ी कुछ नहीं है ब्राम्हण होकर नाचने-गाने का काम करते हैं पेट पालने के लिए ही तोहम पर नहीं तो हमारे बीबी -बच्चे पर दया करके हमको जीवन दान दे दोहम भगवान कसम खाकर कहते हैं कि गजराज बाबू से कहकर जीनत की जमानत करवा लेंगेमै खुद उसकी जमानतदार बन जाऊंगाछोड़ दो हमको”
  • * भुर्रे फंसे स्वर में बोला ” ब्राम्हण हो तुमको मारें तो ब्रम्हहत्या लगेगी, नरक में भी हमको पैठ नहीं मिलेगीजन्म भर का पाप- पुण्य एक तरफ और तुम्हारी हत्या के पाप का बोझ एक तरफतुम्हारा हम क्या करें पंडितमार भी नहीं सकते और छोड़ भी नहीं सकते
  • * लल्लन शुक्ला ने सोचा कि उनका तीर निशाने पर लग गयाझपट कर उन्होंने भुर्रे के पांव पकड़ लियेउनके पैरों से लिपटे-लिपटे बोले “हमको माफी दे दो, हमको छोड़ दो, जब तक जान नहीं बक्शोगे तब तक पैर ना छोडूंगा”भुर्रे ने अपने पैर छुड़ाने का भरसक प्रयत्न करते हुए कहाछोड़ो पंडित पैर छोड़ो हमारे पैर छूकर तुम हमको पाप का भागी मत बनाओवैसे बहुत पाप चढ़ा है हमपे और ना चढ़ाओअच्छा कुछ सोचते हैं “ लेकिन लल्लन ने भुर्रे के पैर ना छोड़ेभुर्रे ने अपने साथियों को इशारा किया उन्होंने जोर लगाकर खींचा तो लल्लन की जेब से रामपुरी चाकू गिर पड़ालेकिन लल्लन को ये बात पता नहीं चली भुर्रे और साथियों ने हथियार देखा तो उनका नजरिया बदल गया बस से सौ फुट की दूरी पर ये सब चल रहा था लोग देख तो सब कुछ रहे थेमगर ना कुछ सुन पा रहे थे और ना समझ पा रहे थेलल्लन शुक्ला को जब थोड़ी दूर खड़ा किया गया तब उन्होंने भुर्रे के असमंजस को भांपते हुए सोचा कि अब जान बच सकती है बस थोड़ा सा मस्का और लगा लेंवे गिड़गिड़ाते हुए बोले”ब्रम्हहत्या का पाप मत लो, ब्राम्हण आपके पाँव पड़ता है भुर्रे भाईएक बार जान बख्श दो जन्म भर तुम्हारे पाँव धो-धोकर पियेंगेभुर्रे ने फिर असमंजस से लल्लन शुक्ला को देखा उसका असमंजस देखकर फिर लल्लन शुक्ला को उन्माद हो गया वो उत्साह से बोलेकाहे एक रण्डी-पतुरिया के लिए हमारी जान ले रहे होरंडियों की कमी है क्या, हमको जाने दो एक से एक रण्डी तुमको लाकर देंगेवैसे भी कानपुरी कह रहा था कि जीनत किसी और से फंसी हैकानपुरी ने खुद जीनत को किसी और के साथ हमबिस्तर होते देखा थारण्डी तो रण्डी किसी एक के साथ कैसे टिककर रह सकती है छोड़ो उस रण्डी -आवारा का चक्करमैं दूसरी,, ’’’’, ठांय भुर्रे की राइफ़ल ने गोली ऊगली और एक नहीं चार बार ऊगली। । हाथ जोड़े -जोड़े ही लल्लन शुक्ला जमीन पर गिरेभुर्रे ने लल्लन शुक्ला को पाँच-छह लातें भी मारीबंदूक के बट से भी मारा और उसे गंदी -गंदी गालियां दीउसके साथियों ने रामपुरी वहीं फेंक दिया और वे लोग असलहा लहराते हुए नाव पर बैठे अपनी मोटरसायकिल भी रखी और भाग लियेलल्लन शुक्ला वहीं पड़े छटपटाते रहे और थोड़ी देर में उनके शरीर की गतियां समाप्त हो गयीबस भी खड़ी रही और उसके सवारियां भी खड़ी रहींकहा उनकी लाश सड़क पर पड़ी रही और जब गोहार हुई तब जिला प्रशासन पहुंचा तब तक भुर्रे फरार हो चुका था अपने दल-बल के साथलाश पहले अस्पताल ले जायी गयी फिर अगले दिन घर गांव की जुटान हुई तब तक लल्लन शुक्ला के ससुर लोकपाल तिवारी उनके दोनों साढू, सालियाँ और लम्मारदार गजराज सिंह भी आ गयेइस शोक-संतप्त माहौल में लल्लन शुक्ला को उनके अबोध पुत्र अमरेश ने मुखाग्नि दी
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