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कविता संग्रह २...

अक्सर...

"यूँ अक्सर जिंदगी सताती है.... 
कभी हसाती है, कभी रुलाती है...
यूँ अक्सर जिंदगी सताती है...
ये कुछ सिखाती... कुछ यह कहना चाहती है...
कभी बनाती है, कभी बिगाड़ती है...
यूँ अक्सर जिंदगी सताती है...
ये कही कहा ले जाती है, ये क्यों उलझाती है...
कभी रास्ते बिछड़ते है, कभी मंजिले रुस्वा होजाती है....
ये जिंदगी.... यूँ अक्सर सताती है
कभी हारती है, कभी जीताती है...
बेवजह सी बातों में अक्सर खो जाती है...
हस्ते हुए आँखों में आंसू दे जाती है...
जिंदगी... यू अक्सर सताती है...
रोते रोते, कभी आंसू सुख जाते है....
रोते हुए कभी खुदको भूल जाते है....
कभी किसीके प्यार मैं कभी किसीकी याद में बेतहाशा रुलाती है.....
ये जिंदगी अक्सर सताती है....
कभी याद बनजाती है, कभी नासूर बनजाती है...
कभी पलों में सौबातें कह जाती है, कभी अरसों तंहां रह जाती है....
कभी खिलखाले के हसाती है, कभी जोरोसे मुस्कुराती है....
ये जिंदगी अक्सर सताती है...
कभी मासूम तो कभी हैवान बन जाती है...
हर पहलूँ में कुछ अलग दिखाती है....
गम में कुछ और खुशियों में कुछ और जताती है...
जिंदगी अक्सर सताती है....
जिंदा है वो लोग जो जिंदगी को समझ पाते है...
हर पल जिंदगी को जी भर के जी जाते है....
यूँ तो जिंदगी सताती है, मगर पल है ये जब जिंदगी ही एक नई जिंदगी की राह दिखाती है....
ये जिंदगी.... जी भर के जियो हर पल... ये अक्सर जीना सिखाती है"....


रंग...

"रंगों का भी क्या मिजाज है....
हर पल यह बदल जाता है....
कुछ पल सुनहरा दर्शाता है...
तो कुछ पल फीका कर जाता है....
कुछ गाड़े रंग है, जिंदगी जिससे खोना नही चाहती...
कुछ ऐसी ही फीकी उमंग है जो जिंदगी मैं चाहकर भी होना नही चाहती...
कुछ अनदेखे रंग है, जो आंखों से ओझल रहते है....
कुछ जाने पचाने रंग है ,जो हरपल आँखों में खोए रहते है....
कुछ सतरंगी रंग है, जो जिंदगी को रंग बिरंगी बनाता है....
तो कही काले रंग है, जो जिंदगी को बेरंग कर जाता है....
कुछ अतरंगी रंग है, जो शब्दो में मिठास घोल जाता है...
कुछ अटपटे रंग है, जो यादें में खोया रहता है.....
हर रंग, हर लम्हा अजीब है...
कभी रंगीन तो कभी गमगीन है...
कभी हरा तो कभी लाल है...
जिंदगी इन रंगों की तरह ही...  खुशाल है"....


बाबा तेरी चिरैया...

"बाबा तेरी चिरैया मै....
मैं तो ना जाऊ परदेश रे....
बाबा तेरी चिरैया मै....
मैं तो ना जाऊ परदेश रे....
तेरा हाथ छोड़कर, तेरा हाथ छोड़कर ना थामु मैं दूजा हाथ रे....
बाबा ओ... बाबा....
काहे भेजे मुझे दूर तू... मै चिरैया तेरे आंगण की...
न बना मुझे तुलसी किसके आंगण की...
मै तेरी बिटियां , तेरे आंगन की चिरैया...
बाबा तेरी चिरैया मै....
मैं तो ना जाऊ परदेश रे"....
"ना जान मुझको पराया मै, धन हु तेरी लाज का...
ना जान मुझको बोझ तू , मै सहारा हु तेरे सायें का....
क्यों छोड़े मुझको तू ऐसे भवर मैं...
घबराए मन , काँपे मेरे हाथ रे...
क्यों जाने मैं बनु तुझपे बोझ रे...
क्यों जाने मैं बनु तुझपे बोझ रे...
बाबा तेरी चिरैया मै....
मैं तो ना जाऊ परदेश रे"....
'बिटियां में तेरी मां... न समझ मुझको पराया तू...
मुझसे ये धरती, ये अम्बर का सितारा...
क्यों जाने फिर मुझको नकारे ये जमाना...
क्यों ये समझे है, श्राप मुझको मां...
यहां लडकी होना गुनाह है क्या मां...
मां तेरी चिरैया मै....
मैं तो ना जाऊ परदेश रे"....
"मां कहलाऊँ कभी... कभी भैया की राखी...
बिटियां मै लाडली... तो कभी बहुरानी...
फिर भी क्यों समझे बोझ है बिटियां...
बाबा तेरी चिरैया मै....
मैं तो ना जाऊ परदेश रे"....
"ना मार मुझको ताना, लागे है मुझको चोट...
क्यों देखे ये जमाना, जैसे मैं कोई चोर....
है गर इतनी ही लाज, बेटी है जो बजजात....
तो क्यों मैं फिर जनमु, क्यों मै ना ये समझू...
ये जग है पराया, यहां कोई ना सहारा".... 


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