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मां बाप की सेवा - अपने कर्मों का फल

देहरादून नामक एक शहर की बस्ती में एक चंदा नामक व्यक्ति रहते थे  फुल्के दो लड़के थे एक का नाम उज्ज्वल था और दूसरे का नाम छविराम था कुछ दिनों बाद  चंदा के दोनों लड़के पढ़ने लिखने जाते थे कुछ समय बाद उन दोनों उज्जवला और छविराम की नौकरी लग गई लेकिन उज्जवल आदत का एक अच्छा लड़का था और मां बाप की सेवा करता था और छविराम थोड़ा शरारती लड़का था और मां बाप की सेवा पर कोई ध्यान नहीं देता  चंदा जो उज्जवल संग्राम के पिता थे  कुछ दिनों बाद धीरे धीरे उनके मां-बाप बूढ़े हो गए और उज्जवल रोज अपने ऑफिस पर जाता था मां बाप के पैर छूकर जाता था और जब आता था तो अपने मां बाप ही अच्छी तरह से सेवा करता था लेकिन छविराम अपने आप उठ जाता था मां बाप के पैर छूकर नहीं जाता छविराम अपने मां बाप की किसी भी प्रकार की कोई सेवा नहीं करता था और उनसे अपशब्द बोलता था थोड़े दिन बाद उज्जवला और छविराम शादी हो गई थी कुछ दिन बाद छविराम उज्जवल और अपने माता पिता से अलग रहने लगा छविराम और उनकी पत्नी दोनों अपना अलग खाना बनाते थे उज्जवल और उनकी पत्नी अपने मां बाप के लिए खाना एक साथ बनाती थी एक बार छविराम और उसकी पत्नी उज्जवल और उज्जवल की पत्नी और उनके मां-बाप एक साथ मेला देखने गए मेले में सत्संग लगा हुआ था सत्संग में छविराम भी बैठा हुआ था और उज्जवल और जल के माता पिता भी बैठे हुए थे सत्संग में जब गुरु जी ने मां बाप की सेवा के लिए शब्द बोलना शुरू किए थोड़ी देर बाद छविराम और पत्नी सत्संग में से बाहर निकल गए शाम को जब घर वापस पहुंचे रोज की तरह अपने मां बाप से झगड़ा कर कर देता था कुछ दिन बाद समय बीतता गया और फिर छविराम की एक लड़का पैदा हुआ और उज्जवल के ही एक लड़का पैदा हुआ और एक लड़की भी पैदा हुई है उज्जवल की लड़की और लड़का बड़े होशियार लड़के थे छविराम का लड़का भी होशियार था और वह छविराम का लड़का अलग स्कूल में पढ़ने जाता था और उज्जवल के लड़की लड़का एक साथ दूसरे स्कूल में पढ़ने जाते थे छविराम अपने बच्चों को उज्जवल के बच्चों के साथ नहीं रहने देता था और शाम को चंदा उज्जवल के बच्चों को रोज  कहानी सुनाया करते थे और कुछ दिन बादचुपके से छविराम का लड़का भी अपने बाबा के पास कहानी सुनने जाता था एक बार चंदा ने छविराम के बच्चे को धीरे से अपनी कहानी भी अपने उसी पोते को बताई फिर धीरे-धीरे जब झगड़ा थोड़ा बुरा हुआ तो छविराम के लड़के ने भी उनकी सेवा करना बंद कर दिया और छविराम के लड़के की भी नौकरी लग गई थी छविराम का लड़का अपने पिता की कोई सेवा नहीं करता था एक दिन छविराम को अपने पर पछतावा हुआ और अपने पिता से माफी मांगी काश मैं आपकी सेवा करता है तो आज मेरी भी सेवा होती भारत माता की जय जय हिंद जय श्री राम

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