ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’
ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश”
बच्चों की जिज्ञासाओं को बढ़ाने, उन का मनोरंजन करने के साथ ज्ञानवर्धन के लिए लिखी गई
इन कहामियों में बच्चों के लिए
बहुत कुछ शिक्षाप्रद है.
बच्चों के लिए समर्पित
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------ प्रकाशक --------
ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
पोस्ट ऑफिस के पास
रतनगढ़ जिला-नीमच
पिन -458 226 (मप्र)
फोन- 9424079675
मेल- opkshatriya@gmail.com
संस्करण – प्रथम 2018
प्रकाशन अधिकार-
ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
अपनी बात
शिक्षक हूं. पूरा जीवन शिक्षा देते हुए बीत रहा है. बच्चों के बीच रहा हूं. रह रहा हूं. उन से सीखना-सीखाना चलता रहता है. कुछ अच्छी बातें उन की ग्रहण करता हूं. कुछ अच्छी बातें बताता हूं. ताकि वे जीवन में उतार लें.
मगर, इस से बहुत कुछ जाना है. बच्चे अनुसरण जल्दी करते हैं. वे कहने की अपेक्षा करनी को तवज्जो देते हैं. आप जैसा करते हो, पहनते हो, बोलते हो, वैसा अनुसरण करने लगते हें. शिक्षक से यह बातें वे जल्दी सीखते हैं.
हम बड़े लोग उन का मन नहीं जान पाते हैं. यह बात मैं ने एक कहानी प्रतियोगिता में भाग लेने के दौरान जानी थी. दो कहानी बच्चों को सुनाई. कक्षा के बच्चों को एक कहानी अच्छी लगी. उन का कहना था कि आप इस कहानी को प्रतियोगिता में सुनाना, अच्छी लगेगी.
वह कहानी बच्चों को बहुत भाई मगर, आयोजकों को नहीं. मेरा प्रतियोगिता में तीसरा नंबर रह गया. बड़ों को उस कहानी में बड़ी बातें नहीं मिली. इसलिए वह प्रथम स्थान ग्रहण नहीं कर पाई. बच्चों की बातें बच्चों को अच्छी लगती है. मगर, हमें क्या अच्छी लगती है, यह मैं बच्चों के बीच रह कर अच्छी तरह सीख पाया हूं.
हम उन्हें उपदेश दे कर सिखाना चाहते हैं. वे उपदेश से नहीं कार्यव्यवहार देख कर सीखते हैं. इस बात को हम भूल जाते हैं. आप सिगरेट पीते हो और बच्चों को इस से बचने की सलाह दो तो वह कोरा उपदेश रहेगा. खुद झूठ बोलो और बच्चों से सच बोलने की अपेक्षा करों, यह उन के साथ नाइंसाफी है.
ऐसी बहुत सी बातें बच्चों के साथ रह कर जान पाया हूं. उन्हें भी कहानी में गूंथ कर बच्चों को दी. कई कहानी बच्चों को बहुत अच्छी लगी. मगर, बड़ेबड़े संपादक उसे पचा नहीं पाए. वह अच्छी पत्रिका में छप नहीं पाई. उस में कोई उपदेश नहीं था, केवल कहानी थी. बच्चों को अच्छी लगती थी इसलिए सुनाई.
ऐसी कई कहानियां है जो मैं ने बच्चों को लिए लिखी. वे बच्चों को रूचिकर लगी. मेरे लिए यह सब से संतुष्ठि की बात थी. वे बच्चों की पत्रिका में छपी थी. उन में कुछ कहानियां मराठी सहित अन्य भाषाओं में अनुदित हुई है.
इस संग्रह में सम्माहित कहानियां भी कई पत्रपत्रिका में छपी है. बच्चों के बीच सराही गर्इ् हैं. इन में से कुछ कहानियां इस में सम्मिलित है. बच्चों से जानना चाहूंगा कि ये उन्हें कैसी लगी. कृपया मुझे फोन कर के बताए. चाहे तो मेल भेज सकते हैं.
मातापिता से आग्रह है कि वे अपने नजरिए से इस की तुलना करें. मुझे अपनी कमियों से अवगत करवाएं कि मेरी कहानियों में कहां गलती है. यह सब फोन पर या मेल पर जान कर मुझे प्रसन्नता होगी.
यह कहानी संग्रह तमाम बच्चों को समर्पित है. यदि उन्हें यह अच्छा लगागा तो मेरी मेहनत सार्थक हो जाएगी.
सादर
आभार आप का
ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’
पोस्ट आफिस के पास,
रतनगढ़ जिला-नीमच मप्र
पिनकोड़ -458226 भारत
9424079675
opkshatriya@gmail.com
अनुक्रमणिका
वजन गायब हो गया 8
इंद्रधनुष बिखर गया 13
लड़ाई फूल, तने और पत्ती कीं 19
बंदर बांट 25
नया साबुन कहां गया ? 28
राफेल फिर जीत गया 33
हवा का हवाई सफर 38
कुंए को बुखार 44
बादल मर गया 50
श्रेष्ठ कौन 54
भूत का रहस्य 59
कुछ मीठा हो जाए 63
इंसेक्टा से मुलाकात 69
मेरी आत्मकथा- हौमेटो 75
मोनिस्टा से मुलाकात 82
कांवकांव का भूत 88
अजीब अंत्याक्षरी 95
वजन गायब हो गया
बेक्टो ने देखा कि वह एक हवाईजहाज में बंद हो गया. उस ने दरवाजा खोलने की कोशिश की. मगर, खोल नहीं पाया. तभी वह जोर से चिल्लाया, ‘‘कोई है ? मैं कहां हूं ? कोई बता सकता है.”
तभी हवाईजहाज के अंदर से आवाज आई, “ बेक्टो ! घबराओं नहीं. आप एक अंतरिक्षयान में हो !”
उस ने आवाज की दिशा में देखा. वहां एक मानीटर से आवाज आ रही थी. बोलने वाला एक खरगोश था.
“ आप मुझे जानते हो ?” बेक्टो ने उस से पूछा.
“ हां. ” उस खरगोश ने कहा, ” इस यान में चेहरे को स्कैन कर के पूरी जानकारी जुटाने की तकनीक लगी है. इस से हमें आप के बारे में जानकारी मिली चुकी हैं. आप हवाईजहाज से दिल्ली जाना चाहते थे. मगर, पहली बार हवाईजहाज में सफर करने के कारण गलती से इस यान में बैठ गए.”
“ ओह ! मैं यान में हूं. यानी अंतरिक्षयान में.” बेक्टो ने कहा, ‘‘लेकिन मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि मेरा वजन कम होता जा रहा है.”
इस पर मानीटर पर दिखने वाला खरगोश बोला, ‘‘आप सही कह रहे हो. आप का वजन निरंतर कम होता जा रहा है. चाहो तो उस कुर्सी पर बैठ कर अपना वजन देख सकते हो ?”
बेक्टो को अपना वजन देखना था. वह कुर्सी पर बैठ गया. उस का वजन पहले 20 किलोग्राम था. वह घट कर 17 किलोग्राम रह गया था. उस का वजन हर सैकण्ड कम होता जा रहा था.”
यह देख कर बेक्टो चकित रह गया, ‘‘मेरा वजन तो निरंतर कम होता जा रहा है.” उस ने कहा, ‘‘ऐसा क्यों हो रहा है ?” वह इस का कारण जाना चाहता था.
“ इस की जानकारी मेरे साथी वैज्ञानिक मिलो देंगे.” कहते हए उस खरगोश ने अपना माइक अपने साथ खड़े दूसरे साथी को दे दिया.
तब मिलो ने बताना शुरू किया, ‘‘मेरे दोस्त बेक्टो ! आप का स्वागत है. इस वक्त आप एक अंतरिक्षयान में हो जो पृथ्वी से दूर जा रहा है. चुंकि पृथ्वी में एक आकर्षण शक्ति होती है.”
“ हांहां. उसे हम गुरूत्वाकर्षण शक्ति कहते हैं,” बेक्टो को यह जानकारी थी. वह बोला, ‘‘जब भी हम कोई चीज आसमान की ओर फेंकते हैं वह धरती की ओर चली आती है. क्यों कि धरती उसे एक चुम्बकीय बल से अपनी ओर खिचती है.”
“ हांहां, उसी आकर्षण शक्ति की वजह से कोई भी व्यक्ति अपना वजन महसूस करता है.”
यह बात बेक्टो को समझ में नहीं आई थी. उस ने पूछा, ‘‘आप क्या कह रहे हैं ? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है. आप विस्तार से समझाइए .”
तब मिलो ने कहा, ‘‘मान लेते हैं कि आप का वजन 20 किलोग्राम है. पृथ्वी की आकर्षण शक्ति का गुरूत्वाकर्षण बल 1 है.”
“ ठीक है.” बेक्टो बोला और उस ने कुर्सी पर लगी स्क्रीन को निहारा. इस वक्त तक उस का वजन 5 किलोग्राम रह गया था.
“ अब मान लीजिए कि आप पृथ्वी से इतना दूर चले जाते हैं कि उस का शक्ति आधी रह जाती है. तब आप के वजन को आधे से गुणा किया जाए तो क्या होगा. जैसे एक किलोग्राम का आधा रह जाए तो क्या होगा ?”
बेक्टो इस बात का जानता था. एक रूपए का आधा पचास पैसा यानी आधा रूपए होता है. इसलिए उस ने कहा, ‘‘मेरा वजन आधा यानी 10 किलो रह जाएगा.”
“ इसी तरह हम पृथ्वी से जैसेजैसे दूर होते जाते है हमारे ऊपर पृथ्वी का लगने वाला आकर्षण बल कम होता जाता है.” मिलो ने कहा तब तक बेक्टो का वजन शून्य हो चुका था. वह हवा में तैरने लगा था.
बेक्टो ने घबरा कर कुर्सी का हत्था पकड़ लिया, ‘‘अरे ! मैं तो हवा में तैरने लगा हूं.” उस ने घबरा कर कहा, ‘‘ऐसा क्यों हो रहा है ?”
इस का जवाब मिलो ने दिया, ‘‘अब पृथ्वी का आकर्षण बल शून्य हो गया है. यदि आप का वजन 20 किलो है. उसे शून्य से गुणा किया जाए तो गणित में क्या आता है ?”
बेक्टो गुणा जानता था. उस ने कहा, ‘‘किसी भी संख्या का शून्य से गुणा किया जाए तो उत्तर शून्य ही आता है.”
यह उत्तर सुन कर मिलो बोला, ‘‘ठीक उसी तरह जब आप का वजन को पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल शून्य से गुणा किया जाए तो आप का वजन शून्य हो जाता है. यही वजह है कि यहां अंतरिक्ष में कोई बल नहीं होने से आप का वजन शून्य हो गया है. इसी कारण आप यहां हवा में तैरने लगे हो.”
“ ओह ! मेरा वजन गणित के शून्य की वजह से शून्य हुआ है,” बेक्टो बोला. फिर जोर से चिल्ला पड़ा, ‘‘मेरा वजन शून्य हो गया. मैं भारहीन हो गया.”
उस की चिल्लाहट सुन कर मम्मी चौंकी. उस ने बेक्टो को जगाया.
“ अरे बेटा ! क्यों चिल्ला रहे हो ? क्या कोई सपना देखा है.” मम्मी ने बेक्टो को जगा कर पूछा.
“ हां मम्मी ! वाकई मैं ने सपना देख रहा था,” कह कर बेक्टो ने अपना पूरा सपना मम्मी को सुना दिया. जिसे सुन कर मम्मी खुश हो कर बोली, ‘‘वाह बेक्टो ! आज तो तुम ने सपने में एक हकीकत को देख लिया है.”
“ हां मम्मी ! सपना बहुत मजेदार था. मैं बड़ा हो कर अंतरिक्षयान में जा कर अपना सपना पूरा करूंगा.”
“ इस के लिए तुम्हें खूब पढ़ना और मेहनत करना पड़ेगी.” मम्मी ने कहा और खाना बनाने चली गई.
बेक्टो स्कूल का गृहकार्य करने लगा, ‘‘हां मम्मी ! मैं खूब मेहनत कर के पढूंगा फिर एक दिन अंतरिक्ष में जा कर अपना सपना पूरा करूंगा.”
मम्मी खुश हो गई. उस के पुत्र बेक्टो को आज एक बहुत बढ़िया बात समझ में आ गई थी. गणित की वजह से भी वजन शून्य हो जाता है.
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इंद्रधनुष बिखर गया
‘’सुंदर इंद्रधनुष.” नीला आसमान चहका. तभी नीला रंग मुस्कराया, ” ठीक कहा भैया ! सब ओर नीला ही नीला रंग है. इसलिए यह खूबसूरत लग रहा है.”
आसमान को भी अपनी ऊंचाई पर घमंड हो गया.
“ सही कह रहे हो छूटकू. यदि नीला रंग न हो तो दुनिया का काम ही न चले. यानी हमारी वजह से ही सब का काम चलता है.”
हरे रंग को नीले रंग का इस तरह बोलना अच्छा नहीं लगा.
“ अरे भाई, क्यों अपने मुंह मिया मिटठू बन रहे हो. माना कि तुम अच्छे हो. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि दुनिया में सब से श्रेष्ठ तुम ही हो ?”
“ ये तो हैं ही. यदि मैं श्रेष्ठ हूं और अपने को मानता हूं तो इस में क्या बुराई है,” नीले रंग को अपने ऊपर अभिमान हो गया था, ” जिधर देखो, मैं ही मैं नजर आता हूं.” उस ने अपनी तारिफ के पुल बांधना शुरू किए,” समुद्र को देखो. उस का सारा पानी नीला ही नीला है. आसमान देखो, जिधर नजर जाती है वहां तक नीला ही नीला नजर आता है.”
उस की बातें सुन कर हरा रंग चुप नहीं रह सका, ” अरे भाई, दुनिया में तुम ही श्रेष्ठ नहीं हो. कभी हमारी ओर भी देख लिया करो.” हरा रंग नीले रंग की बातें सुन कर चहक उठा, ” घरती पर जिधर भी देखो. उधर मेरा ही साम्राज्य है. हरे पेड़पौधे न हो तो किसी का काम न चले.”
“ अच्छा !” नीला रंग बोला, ‘‘समुद्र का नीला पानी देख रहे हो. वह धरती का सब से अधिक भाग है. जानते हो. 70 प्रतिशत भाग पर पानी ही पानी है. तब तुम बताओ कि मेरा अस्तित्व ज्यादा है या तुम्हारा ?”
हरा रंग कब तक चुप रहने वाला था, ‘‘पहली बात तो यह है कि पानी का रंग नीला नहीं होता. दूसरी बात यह है कि पानी में भी कई वनस्पतियां होती है, जिन का रंग हरा होता है. काई का रंग भी हरा होता है. यह बात तुम्हें पता नहीं है. अन्यथा तुम अपने को श्रेष्ठ नहीं कहते हैं. यदि देखा जाए तो वनस्पति के बिना किसी का काम नहीं चल सकता है. इसलिए मैं हरा रंग ही सब से श्रेष्ठ हूं.”
लाल रंग कब का लालपीला हो रहा था. उसे पीले रंग ने चुप कर रखा था, ” भाई ! ज्यादा लालपीले न हो. इन की बातें सुनते रहे. मगर जब हरे रंग ने अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करना शुरू किया तो लाल रंग अपने को रोक नहीं पाया.
“ अरे भाई ! किस दुनिया में रहते हो. जरा, मुझे भी देख लो,” लाल रंग चहका,” उगते हुए सूरत को देखो. वह कैसे लाललाल हो रहा है. यदि उसे गुस्सा आ गया तो न हरा रंग रहेगा और न नीला.”
“ वाह भाई ! तुम कहां से आ गए.”
“ मैं भी इसी इंद्रधनुष का हिस्सा हूं,” लाल रंग चहका, ” लाल टमाटर से ले कर लाल सेवफल तक मेरा ही राज चलता है. यदि मैं न हूं तो दुनिया भूखें मर जाए. क्यों कि लाल लौ के बिना किसी का खाना नहीं बन सकता है.”
इस पर हरा रंग भी लालपीला हो गया, ” तू अपने आप को क्या समझता है. यदि मेरे हरे रंग की पत्तियों में उपस्थित क्लोरोफिल यदि भोजन बनाने की क्रिया न करें तो आॅक्सीजन ही पैदा न हो. फिर बिना आॅक्सीजन के तू जल कैसे सकता है ?”
लाल रंग कुछ बोलता उस के पहले ही सूर्य ने अपना तेज बिखेरना शुरू कर दिया. तेज गरमी से बादल छट गए. हवा में वाष्प की बूंदे गायब होने लगी. इंद्रधुनष मिटने लगा. तब हरे, लाल, पीले आदि रंगों को लगा कि उन का अस्तित्व ही मिट जाएगा. तब उस ने सूर्य की किरण से पूछा, ‘‘दीदी ! आप के आते ही हमारे रंगों का क्या हो रहा है ? क्या हमारा कोई अस्तित्व नहीं है ?”
यह सुन कर सूर्य किरण मुस्कराई, ” शायद आप लोगों को अपने बारें में पता नहीं है. अन्यथा आप लोग आपस में लड़ नहीं रहे होते ?”
अब की बार पीला रंग चौका, ” आप कहना क्या चाहती हो. कृपया हमें विस्तार से समझाइए.”
“ तुम मुझे देख रहे हो. मैं तुम सातों रंग से मिल कर बनी हूं.”
“ क्या !” सभी चौक पड़े.
“ हां, यह सही है, ‘‘किरण ने कहा, ” अब ऐसा करो. तुम सब इस गोल चक्री पर एकएक कर चिपक जाओ. सूर्यकिरण ने कागज की सफेद चक्री की ओर इशारा किया. इंद्रधनुष के रंग जल्दीजल्दी आसमान से निकल कर चक्री में चिपक गए.
“ अब मैं इस चक्री को जोरजोर से घुमाती हूं.” कहते हुए सूर्यकिरण ने चक्री को जोरजोर से घुमाना शुरू कर दिया.
सभी ने देखा कि सातों रंगों से पुती हुई चक्री को जब जोरजोर से घुमाया गया तो चक्री पूरी सफेद दिखाई देने लगी.
“ अरे ! हम तो सफेद हो गए, ” एक साथ सभी रंग बोल उठे.
“ यानी मेरा रंग सफेद है. मतलब सीधा है मैं सातों रगों से मिल कर बनी हूं. जब मैं किसी चीज पर पड़ती हूं तो वह चीज अपने स्वभाव के मुताबिक सभी रंगों को सोख कर किसी एक रंग को वापस लौटा देती है.
“ जो चीज जिस रंग को वापस लौटा देती है वह चीज उसी रंग की दिखाई देती है.”
“ ओह ! इस का मतलब किसी चीज का कोई रंग नहीं होता है. इसी कारण से रात सभी चीजें काली होती है. कारण, उस वक्त प्रकाश की किरण नहीं होती है. इसलिए कोई भी प्रकाश नहीं होने से वह चीज किसी भी रंग को लौटाती नहीं है, इसलिए काली दिखाई देती है.”
यह कहते ही इंद्रधनुष बिखर गया. सब रंग भी शांत हो गए. उन्हें मालूम हो गया था कि उन का अस्तित्व मिलजूल कर रहने में है.
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लड़ाई फूल, तने और पत्ती कीं
जोर की हवा चली. फूल हिला. कांटों से टकराया. उस की पंखुडि़यां चीर गई.
फूल चींख पड़ा, ‘‘अरे बदसूरत ! क्या करता है ? दूर हट.”
कांटा चौंक उठा. उस ने फूल की ओर देख कर पूछा, ‘‘क्या हुआ भाई !”
“ अरे ओ ! भाई किस को बोलता है ? कभी अपनी शक्ल आइने में देखी है ? ” फूल अपनी खूबसूरती के घमण्ड में बोला, ‘‘पहले अपने को देख. कहां तू कालाकलूटा कांटा. कहां मैं खुबसूरत और सुगंधित फूल.”
कांटे को अपनी गलती का अहसास हो गया था. उसे फूल को बचा लेना चाहिए था. मगर, अचानक हवा चलने से उस का ध्यान भटक गया. वह फूल से टकरा गया.
यह याद आते ही उस ने कहा, ‘‘माफ करना भाई. हवा अचानक चली. मुझे ध्यान ही नहीं रहा. वैसे तो मैं तुम्हारी रक्षा कर रहा था. मगर, गलती से....” कांटा कुछ बोलता उस के पहले ही फूल बोल उठा, ‘‘रहने दे. रहने दे. रक्षा कर रहा था. यह रक्षा करना होता है. तू तो रक्षक से भक्षक बन गया हैं,” कहते हुए फूल कांटे से लड़ने लगा.
यह बात पत्ती को अच्छी नहीं लगी. वह बोली, ‘‘अरे भाई ! आपस में क्यों लड़ते हो. हम एक ही परिवार के सदस्य है. हमें लड़ना शोभा नहीं देता है. हमें तो हिलमिल कर रहना चाहिए.”
फूल को पत्ती की नसीहत अच्छी नहीं लगी, ‘‘रहने दे, तू आई पटेलन बन के हमें नसीयत देने. कभी अपनी शक्ल आइने में देखी है ? “ फूल ने उसे टोका. यह सुन कर कांटा चुप हो गया. वह समझ गया कि फूल को अपनी सुंदरता पर घमण्ड हो गया है. इसलिए वह अपने घमण्ड के आगे किसी की सुनने वाला नहीं है.
पत्ती ने फूल को समझाने की गरज से कहा, ‘‘देखो फूलभाई, तुम खुबसूरत हो. सुगंधित हो, मगर, इस तरह का व्यवहार ...” अभी पत्ती की बात पूरी नहीं हुई थी कि फूल ने बीच में मुंह चिढ़ाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा व्यवहार अच्छा नहीं लगता है. यही कहना चाहती हो ?”
“ हां. यही कहना चाहती हूं. और यह बात सही भी है,” पत्ती ने उसे दोबारा समझाना चाहा, ‘‘खुबसूरत होना एक बात है और अच्छी सीरत होना दूसरी बात है.”
फूल को पत्ती की सीरत वाली बात अच्छी नहीं लगी.
“ यह सीरत क्या होती है ?” फूल ने मुंह बनाया.
तने को लगा कि बात ज्यादा बढ़ जाएगी. इसे रोक देना चाहिए. इसलिए तना बीच में बोल पड़ा, ‘‘सीरत यानी व्यवहार यानी बातचीत का तरीका होता है.”
“ ओह ! तो यह तुम हो, ‘‘फूल ने तने की ओर देख कर कहा, ‘‘तभी मैं कहूं कि वह मूर्ख कौन है जो दो लोगों की बातचीत के बीच बोल रहा है.” यह कहते हुए पत्ती ने कहा, ‘‘जानते हो दो लोगों के बीच बोलने वाले व्यक्ति को यही कहते हैं.”
तने को बहुत बुरा लगा. वह समझ गया कि यह घमण्डी फूल है. इसे अभी मजा चखना पड़ेगा. तने ने सोचा. मैं अपने शरीर को टेढ़ा कर दूं. पूरा पौधा जमीन पर गिर जाएगा. यह घमण्डी फूल धूल में मिल कर नष्ट हो जाएगा. यह बात जड़ को मालुम हो गई.
वह बोली, ‘‘तने भाई ! ऐसा मत करना. वरना, पूरे पौधे को नुकसान हो जाएगा.”
तना मान गया. मगर, पत्ती का गुस्सा शांत नहीं हुआ था. वह फूल से बोली, ‘‘भाई ! तुम अपने को क्या समझते हो ? आखिर तुम्हारी उपयोगिता क्या है ? बस थोड़ी दिनों को लिए खिलते हो. फिर तुम नष्ट...”
पत्ती की बात पूरी नहीं हुई कि फूल बोल पड़ा, ‘‘हूं, बड़ी आई, मुझे सिखाने और समझाने वाली. कभी अपनी उपयोगिता देखी है,” फूल ने पत्ती को ललकारा, ‘‘आखिर तुम्हारी उपयोगिता क्या है ? केवल जानवर तुम्हें खा कर पेट भर सकते हैं ? बस और क्या !”
यह सुन कर पत्ती को गुस्सा आ गया, ‘‘अरे मूर्ख ! तू मेरे बारे में क्या जानता है ? मेरी उपयोगिता क्या है ? तूझे तो यह भी नहीं पता है कि मैं अपनी पत्ती के नीचे स्थित रोमछिद्रों से सांस लेती हूं. मेरी अंदर हरित लवक नामक पदार्थ होता है जिस की सहायता से सूर्य व पानी की उपस्थित में, मैं सभी के लिए भोजन बनाती हूं.
“ इसी भोजन की वजह से तुम सभी फलफूल रहे हो,” पत्ती ने कहा, ‘‘यदि मैं यह सब करना बंद कर दूं तो तुम सभी नष्ट हो जाओगे.”
यह सुन कर फूल बोला, ‘‘अरे जा. बंद कर दें. किस ने कहा है तूझे भोजन बनाने के लिए ? ” फूल ने पत्ती को ललकारा.
पत्ती को गुस्सा आ गया. उस ने अपने सभी काम करना बंद कर दिए.
परिणाम यह हुआ कि पौधे के तने को भोजन मिलना बंद हो गया. वह नरम पड़ गया. जड़ें कमजोर हो गई. उन्हों ने भोजन के अभाव में पौषक तत्व व पानी को जमीन से ग्रहण करना बंद कर दिया. पत्तियां, तने से ज्यादा फूल सब से कोमल था. उसे पौषक तत्व मिलना बंद हो गया. वह घबरा उठा.
“ अरे ! मेरा जी घबरा रहा है. मैं मर जाऊंगा. कोई मुझे पौषक तत्व पहुंचाओ. मैं प्यासा मर रहा हूं,” कहते हुए वह लटक गया. मगर, पत्ती ने उस की एक बात नहीं सुनी. फूल बहुत देर तक चिल्लाता रहा. वह समझ गया कि पत्ती, तना आदि सभी उस से नाराज है.
इसी लिए कोई उस की बात नहीं सुन रहा है. पत्ती भी मौन है. वह सब से ज्यादा नाराज थी. तब फूल को लगा कि यही हाल रहा तो वह भूखप्यास से मर जाएगा. तब उस ने घबराते हुए पत्ती से कहा, ‘‘बहन ! मुझे माफ कर दो. मैं नहीं जानता था कि पौधे के सब अंग एकदूसरे से जुड़े हुए. सभी एकदूसरे के लिए जरूरी होते हैं. यदि एक अंग भी काम करना बंद कर दे तो दूसरे का काम रूक जाता है.
“ तुम ने भोजन बनाना और सांस लेना बंद कर दिया है. इस का परिणाम देखो. कांटा, तना और मैं भी सूख रहा हूँ . वाकई सूरत से सीरत अच्छी होती है. “ कहते हुए फूल मुरझा कर टूट गया.
यह देख कर पत्ती को अपनी गलती का अहसास हो गया. उस ने अपना काम करना शुरू कर दिया. इस से पौधे को पोषक तत्व मिलना शुरू हो गए. तना वापस सीधा व कठोर हो गया. जड़ों ने पानी व पोषक तत्व ले कर पौधे को पहुंचाना शुरू कर दिया.
इस से पौधा स्वस्थ हो गया. उसे पुनः अपनी खाई हुई ताकत प्राप्त हो गई थी. वह फिर से मजबूत हो गया.
कहते हैं तब से इन सभी को सबक मिल गया. फिर ये फूल, पत्तियां, तना और जड़े कभी आपस में नहीं लड़े. वे सब जान गए थे कि आपस में लड़े तो नुकसान उन्हीं का होगा.
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बंदर बांट
बंटू बंदर को उस की मां ने समझाया था, ‘‘जो भी चीज मिलें उसे बांट कर खाना चाहिए. इस से हमें बड़ी खुशी मिलती है.”
“ नहीं मां, बांटने से चीजें कम पड़ जाती है. फिर जितनी चीजें मुझे चाहिए वह मुझे नहीं मिलती है. इसलिए मैं तो बांटचूट कर नहीं खाऊंगा.” उस ने मां को कहा और इसे ही अपनी आदत बना लिया.
बंटू बंदर को कोई भी चीज मिलती उसे अकेला खा जाता था. वह दूसरों को अपनी चीजें कभी नहीं देता था.
एक बार की बात है. उसे एक घर से एक बड़ासा पराठा मिल गया. वह उसे ले कर भागा. सामने उसे मंकी बंदर मिला. वह हमेशा अपनी चीजों में से बंटू को चीजें दे देता था.
उस ने कहा, ‘‘बंटू ! आधा परांठा मुझे भी दे दे.” मगर, बंटू ने गरदन हिला कर मना कर दिया. ‘ नहीं.’
मंकी बंदर का मन ललचा गया. उसे भी पराठा खाना था. उस ने लपक कर बंटू से आधा परांठा छीन लिया.
यह देख कर बंटू बंदर शेष आधा पराठा ले कर भागा. वह दूसरे पेड़ पर उछल कर चला गया. वहां पहले से कुश बंदर बैठा था. उस ने बंटू के हाथ में परांठा देख कर आधा परांठा मांगा. मगर, बंटू ने मना कर दिया.
कुश बंदर अपनी चीजों में से उसे चीजें दिया करता था. उसे बहुत बुरा लगा. उस का दोस्त उस के साथ ऐसा नहीं कर सकता है. इसलिए सबक सिखाने की गरज से कुश ने बंटू के हाथ से आधा परांठा छिन लिया.
अब बंटू के पास एक चौथाई परांठा बचा था. पहले मंकी बंदर एक बटा दो परांठा खा गया था. अब एक चौथाई पराठा ले कर बंटू भागा. वह तीसरे पेड़ पर कूद पड़ा. ताकि वहां बैठ कर यह पराठा खा सकें.
उस पेड़ पर उस की बहन रिया बंदरिया बैठी थी. बंटू उसे बहुत प्यार करता था. उस ने पराठा देख कर बंटू से कहा, ‘‘भैया ! परांठा लाए हो ?”
“ हां रिया !” कहा और उसे अपनी मां की बात याद आ गई थी, ‘‘कोई चीज बांटने से बहुत आनंद मिलता है. कभी एक बार चीजें बांट कर देखना, ‘‘यह याद आते ही बंटू ने रिया से पूछा, ‘‘तुम परांठा खाना चाहती हो ?”
रिया ने बंटू के हाथ में पराठा देख लिया था. वह एक चौथाई ही बचा था. रिया ने कहा, ‘‘भैया आप के पास एक चौथाई पराठा बचा है. यदि आप मुझे दे दोगे तो आप के पास रहेगा- फिर आप क्या खाओगे ?”
“ हम इस के दो भाग कर के खा लेते हैं, ‘‘कहते हुए बंटू ने एक चौथाई पराठे के दो टुकड़े कर लिए. एक रिया को दिया और एक टुकड़ा स्वयं ले कर खा गया. यह देख कर उस की मां प्रसन्न हो गई.
मंकी बंदर दूर बैठा हुआ यह देख रहा था. वह कूद कर बंटू के पेड़ के पास आया. बंटू से बोला, ‘‘ले बंटू, मेरा आधा परांठा भी तुम आप से में बांट कर खा लो.”
“ नहीं दोस्त ! तुम ने मुझे बहुतसी चीजें खिलाई है. यह तुम ही खा लो, ‘‘यह कहते हुए बंटू ने महसूस किया कि बांट कर खाने से बड़ी ख़ुशी मिलती है.
यह देख कर मंकी बंदर ने अपने परांठे के फिर से चार टुकड़े किए और बांट कर खा लिए.
अब बता सकते हों कि एक बंदर को कितनाकितना भाग पराठे का मिला होगा ? यदि नहीं ना तो अपने मातापिता या शिक्षक से पूछ कर बताओ.
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नया साबुन कहां गया ?
बहुत दिनों बाद नए साबुन को देख कर पुराना साबुन चहका, ‘‘आओ भाई ! तुम्हारा स्वागत है. शायद, तुम हमारी बस्ती में नएनए आए हो ? पहले तो तुम्हें कभी नहीं देखा ?”
“ तुम मुझे देखते कहां से ?” उस नए साबुन ने कहा, ‘‘मैं पहले अनुसंधान केंद्र में था. वहां मैं कम मेहनत कर के साफ कपड़े धोने की तरकीब सीख रहा था .”
“ मतलब कि तुम नए रंगढंग सीख कर आए हो ?” पुराने साबुन ने पूछा.
“ हां. ताकि मैं अपना जीवन आसानी से जी सकूं.” वह दार्शनिक अंदाज में बोला, ‘‘यदि हमें जीवन में आगे बढ़ना हैं तो नए रंगढंग सीखते रहना पड़ेंगे. ये दुनिया बड़ी तेजी से बदल रही है. यदि हम इस के साथ नहीं बदलेंगे तो बहुत जल्दी दुनिया से बेकार हो जाएंगे .”
मगर, पुराने साबुन को नए साबुन की बात समझ में नहीं आई. वह चुप हो गया. उसे नींद आने लगी थी . उस ने कहा, ‘‘भाई ! तुम नए रंगढंग सीखों. मुझे नींद आ रही है, मैं तो सोने चला.” कहते हुए लाल साबुन चुपचाप सो गया.
वह बहुत देर सोता रहा. जब उस की नींद खुली तब उसे नया चमकदार साबुन कहीं नजर नहीं आ रहा था, ‘‘अरे भाई, नए चमकदार साबुन ! तुम कहां गए ? नजर नहीं आ रहे हो, ‘‘यह कहते हुए उस ने अपनी नजर इधरउधर घुमाई. मगर, उसे नया चमकदार साबुन कहीं दिखाई नहीं दिया.
पास की साबुनदानी में एक घीसापीटा चमकदार साबुन पड़ा था. वह बोला, “ अरे भाई ! किसे ढूंढ रहे हो ?” उस ने पुराने साबुन से पूछा.
“ अभीअभी यहां एक नया व चमकदार साबुन आया था. वह बहुत ज्यादा उपदेश व भाषण दे रहा था. कहां गया समझ में नहीं आ रहा है ?” पुराने साबुन ने यह कहा . तभी वहां बबलू आ गया. वह शौचालय गया था. उस ने पुराने साबुन को देखा. वह कड़क हो गया था. कई जगहजगह से फट भी गया था.
पुराना साबुन आलसी था. वह मेहनत कम कर रहा था. इस कारण, उस का शरीर बेकार हो गया था. उस के शरीर के आवष्यकत तत्व खत्म हो चुके थे.
यह देख कर बबलू बोला, ‘‘यह साबुन नहाने के लायक नहीं है. खराब और बेकार हो गया. इसे शौच के बाद हाथ धोने के लिए रख देना चाहिए”, यह कहते हुए बबलू ने उसे एक साबुन दानी में रख दिया.
यह देख कर पुराना साबुन दुखी हो गया. उस के शरीर पर शौच के कई सारे कण लग गए थे. उन से बदबू आ रही थी. अपनी यह दुर्दशा देख कर पुराना साबुन घीसे हुए साबुन से बोला, ‘‘बाबा ! मैं ने आप को पहचाना नहीं. आप कौन हो ?”
“ मैं वहीं चमकदार नया साबुन हूं. जिस का स्वागत तुम थोड़ी देर पहले कर रहे थे. मैं ने नई तकनीकी से बहुत सारे कपड़े धोए. इस कारण मैं धीसपीट गया हूं. बस कल मैं अपना काम खत्म कर के चला जाऊंगा.” वह साबुन खुश होते हुए बोला, ‘‘तुम ने मेरा कमाल देखा होगा ? जो काम 2 साबुन मिल करते हैं ? वह काम मैं ने अकेले ने कर दिए हैं.”
यह देख कर पुराना साबुन चकित रह गया, “ क्या ! तुम वहीं नए साबुन हो ?”
“ हां !”
“ इतने घीसनेपीटने के बाद भी तुम्हारी चमक नहीं गई है ?” पुराना साबुन चकित था.
“ हां. जो जितना ज्यादा काम करता है वह उतना ज्यादा चमकदार, दुबलापतला और मजबूत होता है, ‘‘नए साबुन ने कहा, ‘‘मुझे देख लो. मैं ने बहुत सारा काम किया. बहुत कपड़ों से मेल निकाला. अब नहाधो कर चमक रहा हूं.”
“ हां बाबा ! यदि मैं मेरी मम्मी की बात मान कर रोज समय पर अपना काम करता. बिना कोई दिन गंवाए रोज नहाताधोता तो आज मैं जर्रजर्र और बेकार नहीं होता.” यह कह कर पुराना साबुन रोने लगा.
उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था. तभी नए साबुन के लिए ओर कपड़े आ गए . वह उन कपड़ों को धोने के लिए चल दिया, ‘‘दोस्त मैं चलता हूँ. मुझे तुम से मिल कर अच्छा लगा. मगर, तुम आज से नहानाधोना और जम कर काम करना शुरू कर दो. ताकि तुम वापस अपनी पुरानी वाली चमक प्राप्त कर सको.”
“ ठीक है बाबा !” पुराने साबुन ने कहा और फिर मन ही मन दृढ़ निश्चय कर लिया. आज के बाद रोज अपना कार्य मन लगा कर और पूरी मेहनत से रोजरोज करूंगा.
पुराना साबुन समझ गया था कि उस को यह जीवन काम करने के लिए मिला है. उसे अपना काम समयसमय पर कर लेना चाहिए.
वह नए साबुन को बायबाय करना चाहता था. उस ने इधरउधर देखा. मगर, उसे नया साबुन कहीं दिखाई नहीं दिया. पास में बहुत सारे कपड़े पड़े थे. नया साबुन उन में से मेल निकाल कर जा चुका था.
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राफेल फिर जीत गया
चोखव को शर्त लगाने का शौक था. पहले वह राफेल से दो बार हार चुका था. मगर, इस बार उसे शर्त जीतने की पूरी उम्मीद थी. उस ने राफेल से कहा, ‘‘ लगी शर्त ? कौन सब से पहले लास वेगास के रेगिस्तानी मैग्लेव स्टेशन पहुंचाता है ?”
राफेल कुछ नहीं बोला. उस के जेब में हवाई जहाज की उड़ान से कम पैसे थे. वह हवाई यात्रा द्वारा ही सब से पहले वहां नहीं पहुंच सकता था. रेगिस्तानी स्कूटर इतना तेज नहीं दौड़ता है कि वह सब से पहले वहां पहुंच सकें. वह क्या करें कि शर्त जीत जाए ? वही यही सोच रहा था.
तभी चोखव ने दोबारा कहा, ‘‘ डर गया. शर्त हार जाएगा इसलिए चुप है ? या फिर इस बार शर्त हार गया तो कालेज की फीस नहीं भर पाएगा ?”
इस पर राफेल बोला, ‘‘ मुझे इस की चिंता नहीं है. कालेज की फीस तू ही भरेगा. आखिर तूझे मेरा जैसा दोस्त कक्षा में चाहिए.”
‘‘ फिर क्यों डर रहा है ?”
‘‘ चल लगी शर्त.” कहते हुए राफेल ने चोखव के हाथ पर हाथ मार कर शर्त मंजूर कर ली, ‘‘ अब हम पांच घंटे बाद मैग्लेव स्टेशन पर मिलेंगे,” कहने के साथ दोनों दोस्त अपनेअपने रास्ते पर चल दिए.
राफेल पहले भी एक शर्त जीत चुका था. चोखव ने उस से साइकलिंग रेस की थी. इस के पहले उस ने साइकल रेस में भाग नहीं लिया था. मगर, उसे विश्वास था कि वह साइकल रेस जीत सकता है.
इस कारण उस ने पूरी ताकत से साइकल चलाई और लक्ष्य हासिल कर लिया था. इस बार भी वह रेस जीतना चाहता था. उस ने तेजी से अपना दिमाग दौड़ाना शुरू कर दिया.
इधर चोखव ने मोबाइल निकाला. हवाई यात्रा की बुकिंग की. सीधे हवाई अड्डे पहुंच गया. उसे मालुम था कि राफेल के पास हवाई बुकिंग के पैसे नहीं है. यह पहली और सब से तेज हवाई यात्रा है जो लास वेगास के मैग्लेव स्टेशन पहुंचती है.
इस से पहले राफेल का वहां पहुंचना असंभव था. यह सोच कर वह हवाई अड्डे पर निश्चिन्त बैठा था. डर था तो इस बात का कि राफेल कहीं से उधार पैसे ले कर इसी हवाई यात्रा से लक्ष्य पर न पहुंच जाए. इसलिए उस की निगाहें राफेल को ढूंढ रही थी.
निर्धारित समय पर हवाई जहाज रनवे पर आया. उस में सभी सवारियां चढ़ गई. चोखव सब से अंत में चढ़ा. इस दौरान वह सभी यात्री को देखता रहा. मगर, राफेल नहीं आया. इसलिए चोखव सब से पहले मैग्लेव स्टेशन पहुंच गया.
यह स्टेशन अभी निर्माणाधीन था. इस पर हाइपरलूप चलने वाली थी. हाइपरलूप यानी मैग्लेव ट्रेन जो वैक्यूम ट्यूब में चलती है. यह परिक्षण के अंतिम दौर पर थी. वह इसी स्टेशन पर अपने निर्धारित स्थान पर पहुंचा तो चौंक उठा. वहां पहले से ही राफेल और उस का दोस्त वेनसे खड़ा था.
‘‘ लो ! मैं फिर जीत गया ,” राफेल ने चोखव को देख कर कहा तो चोखव चौंक पड़ा, ‘‘ यह असंभव ! तुम कैसे जीत सकते हो. मैं चकित हूं. मैं जिस साधन से आया हूं उस से तेज कोई साधन आज की तारिख में उपलब्ध नहीं है जो तुम्हें यहां ला सकता था. फिर तुम यहां कैसे पहुंचे ?”
चोखव ने खुशी से चहकते हुए राफेल को गले से लगा लिया.
तब राफेल ने कहा, ‘‘ यह मेरे मित्र वेनसे का कमाल है.”
‘‘ क्या ?”
‘‘ हां मित्र,” राफेल बोला, ‘‘ यह हाइपरलूप का परिक्षण इंजिनियर है. इसे इस वैक्यूब ट्यूब में चलने वाली ट्रेन जिस की गति 1100 किलोमीटर प्रति घंटा है, का अंतिम परीक्षण करना था. इस के लिए इस ने मुझे आमंत्रित किया था.
‘‘ जब तुम ने मुझ से शर्त लगाई थी, तभी इस का फोन आया था. मुझे यह अपने पास इस ट्रेन से बुलाना चाहता था. “
‘‘ वाकई ! हवाई जहाज से तेज गति से चलने वाली हाइपरलूप ट्रेन हो सकती है. यह मुझे पता नहीं था. यह जरूर जानता था कि यह बहुत तेज चलती है.”
‘‘ हां दोस्त ! मुझे इस ट्रेन का प्रथम यात्री बनने का श्रेय लेना था इसलिए मैं ने हां कर दी. इस तरह मैं इस का पहला यात्री बन कर सब से पहले इस स्टेशन पर पहुंच गया.”
‘‘ और हर बार की तरह इस बार भी शर्त जीत गए.” चोखव ने कहा तो राफेल बोला, ‘‘ आखिर दोस्त किस का हूं. जो कभी हिम्मत हारना नहीं जानता है उस का.”
यह कहते ही दोनों खिलखिला कर हंस दिए.
इस तरह राफेल दूसरी शर्त भी जीत गया.
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हवा का हवाई सफर
जंबो हवाई जहाज को तेज झटका लगा. वह चींख पड़ा, ‘‘ अरे ! यह क्या करती है ? मुझे गिराएगी क्या ?” जंबो हवाई जहाज तेजी से संहल कर उड़ा.
हवा को गलती का अहसास हुआ, ‘‘ क्या करूं जंबो भाई ? मेरा शैतान भाई- तुफान बीच में आ गया था. वरना मैं तेजी से तूझ से नहीं टकराती.” हवा ने अपनी उलझन बताई.
‘‘ कोई बात नहीं,” जंबो हवाई जहाज बोला, ‘‘ चलो ! आज हम दोनों साथ में उड़ते हैं. चाहे तो तुम मुझे में बैठ सकती हो ?”
हवाई जहाज की बातें सुनने में हवा को मजा आ रहा था. वह उस में बैठ कर उड़ने लगी. तभी हवाई जहाज ने हवा से पूछा, ‘‘ हवा बहन ! यह बताओं की तुम्हारी गति मुझे से कम होती होगी ? तभी मैं उड़ पाता हूं.”
हवा मंदमंद मुस्कराई, ‘‘ नहीं हवाई जहाज भाई. मेरी गति तुम से अधिक होती है. मैं ने देखा है कि तुम 800 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ते हो. मैं ने ठीक कहा ना ?”
‘‘ हां.” जंबो हवाई जहाज ने कहा.
‘‘ और मेरी गति 1670 किलोमीटर प्रतिघंटा होती है.”
यह सुन कर हवाई जहाज चौंका, ‘‘ कितनी ? 1670 किलोमीटर प्रति घंटा. यानी तुम मुझ से दुगुनी रफ्तार से चलती हो .”
‘‘ हां. यह मेरी सामान्य रफ्तार है.” हवा बोली, ‘‘ इस का कारण यह है कि पृथ्वी अपनी अपनी परिधि पर इसी रफ्तार से घुमती है. जब मैं उस के साथ इसी रफतार से चलती हूं तो लोगों को लगता है कि मैं ने चलना बंद कर दिया है.”
‘‘ क्या ?” हवाई जहाज को यह बात पता नहीं थी. ‘‘ यानी जब तुम इस गति से चलती हो तो लोगों को लगता है कि हवा रूकी हुई है .”
‘‘ हां.” हवा बोली, ‘‘ जब मैं इस रफ्तार से तेज चलती हूं. तब लोग कहते हैं कि अब हवा चल रही है.”
हवाई जहाज को आज यह नई बात पता चली थी. वह चकित रह गया. वह विचारमग्न था कि तभी एक तेज रफ्तार से धूल भरा आंधी का झोंका आया. हवाई जहाज का संतुलन बिगड़ने लगा. वह इधरउधर डोलने लगा. फिर तेजी से अपने को संभालता हुआ नीचे हुआ. एकाएक सीधा उड़ने लगा.
‘‘ इसे आंधी क्यों कहते हैं ?” हवाई जहाज ने पूछा तो हवा ने जवाब दिया, ‘‘ यह धूल भरी हवाएं तेजी से गरम स्थान से ठन्डे स्थान की ओर चलती है. इसलिए इस में धूल, धुआं आदि भरा होता है इसलिए इसे अंधड़ या आंधी कहते है.”
हवाई जहाज तेजी से उड़ा जा रहा था. हवा उस की सहायता कर रही थी. क्यों कि हवाई जहाज को तेजी से उड़ने में सहायता के लिए हवा ने अपने साथियों को कहा. वे तेजी से हवाई जहाज को उड़ने में मदद करने लगे.
कुछ ही देर में जंबों हवाई जहाज समुद्र के ऊपर पहुंच चुका था. जहां पर हवा समान रूप से चल रही थी. जिसे देख कर हवा ने कहा, ‘‘ यहां वर्ष भर समान रूप से हवाएं एक ही दिशा में चलती रहती है, इसलिए इसे व्यापारिक हवाएं कहते हैं. यह हवाएं व्यापारी लोगों को नौका द्वारा व्यापार करने में सहायता करती थी. इसलिए इस का यह नाम व्यापारिक हवाएं पड़ गया है.”
‘‘ वाकई ! यह साल भर एक ही दिशा में चलती है?” हवाई जहाज ने प्रश्न किया.
‘‘ नहींनहीं. कभीकभी हवाएं विपरीत दिशाओं में भी चलने लगती है इसलिए इसे विरूद्ध व्यापारिक हवाएं कहते हैं इसे हम पछुआ हवाओं के नाम से भी जानते हैं.”
तभी हवा की निगाहें पानी के बवंडर पर पड़ी. उस ने तत्काल हवाई जहाज से कहा, ‘‘ जंबो भाई ! थोड़े ऊपर हो जाना. वह देखों पानी का तूफान आ रहा है. यह तूफान समुद्री हवाओं के तेजी के साथ चलने के कारण आता है.”
जंबो हवाई जहाज तेजी से ऊपर हो गया. वह इस वक्त दक्षिणी गोलादर्ध से गुजर रहा था. उस ने अपने मीटर में देखा तो मालुम हुआ कि वह अभी 40 डिग्री दक्षिणी गोलाद्र्ध के ऊपर उड़ रहा था. तभी एक तेजी से गरजती हुई हवा चली. उसे देख कर जंबों हवाई जहाज सहम गया.
‘‘ अरे भाई ! इस से डरे मत,” उस के अंदर सवार हवा ने कहा, ‘‘ यह इस क्षेत्र में चलने वाली ये गरजती हुई हवाएं है. ये हमेशा गरजते हुए चलती है इसलिए इसे हम गरजता हुआ चालिसा कहते हैं.”
‘‘ ओह ! गरजता हुआ चालिसा.” हवाई जहाज ने दोहराया.
तब तक हवाई जहाज 60 डिग्री अक्षांश के पास पहुंच चुका था. यहां की हवाएं अपने हिसाब से बह रही थी. इसलिए हवाई जहाज ने पूछा, ‘‘ इस हवा को क्या कहते हैं ?”
‘‘ चुंकि ये हवाएं ध्रुव के पास चलती है इसलिए इसे ध्रुवीय पवन कहते हैं.”
यह सुनते ही हवाई जहाज को कुछ याद आया. जब वह धरती के ऊपर दिन के समय उड़ रहा था तब वहां ठंडीठंडी हवाएं चल रही थी. तब उस ने हवा से पूछा, ‘‘ समुद्र के पास धरती पर दिन के समय जब ठंडीठंडी हवा चलती है तब उसे क्या कहते हैं ?”
‘‘ उसे समुद्री समीर कहते हैं. यह दिन के समय चलती है. जब रात के समय धरती से समुद्र की ओर हवाएं चलने लगती है उसे थल समीर कहते हैं.” हवा इतना ही बोली थी कि उसे हवाई जहाज के बाहर खिड़की में अपनी मां नजर आ गई.
वह उसे ढूंढते हुए यहां तक आ गई थी. वह चिल्ला कर बोली, ‘‘ बेटा ! चलो ! हमें मानसून लाना है. हम जल्दी चल कर अपना काम करते हैं.”
‘‘ आया मां,” कहते हुए हवा जंबो हवाई जहाज के बाहर आ गई.
‘‘ जंबो भाई, मैं चलती हूं. मुझे अपना काम करना है. तुम भी अपना काम करों.” हवा जोर से चिल्लाई.‘‘ और हां, अब मुझे मानसून लाने के कारण हमें मानसूनी हवा कहा जाएगा,” कहते हुए हवा पीछे रह गई और हवाई जहाज अपनी तेज रफ्तार से उड़ता हुआ आगे चला गया.
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कुंए को बुखार
अंकल ने नहाने के कपड़े बगल में दबाते हुए कहा, ‘‘ रोहन ! थर्मामीटर रख लेना.आज कुंए का बुखार नापना है ? देखते हैं कुंए को कितना बुखार चढ़ा है ?”
‘‘ जी अंकल ! थर्मामीटर रख लिया,” रोहन ने कहा .तभी शहर से आए हुए उस के दोस्त कमल ने पूछा, ‘‘ रोहन ! यह क्या है ? कभी कुंए को भी बुखार चढ़ता है ?” वह चकित था. यह क्या पहेली है.
‘‘ हां भाई, कुंए को बुखार चढ़ता है. इसी लिए कुंए का बुखार नापने के लिए थर्मामीटर लिया है ?” यह कहते हुए रोहन ने अपने कपड़े के साथ थर्मामीटर रख लिया, ‘‘ तुम भी अपने कपड़े रख लो. हम कुंए पर नहा कर वापस आएंगे.”
‘‘ नहीं भाई ! मुझे बहुत ठण्ड लग रही है. मैं ऐसी ठण्ड में कुंए पर नहीं नहाऊंगा,” कमल ने स्पष्ट मना कर दिया तो रोहन बोला, ‘‘ अरे भाई रोहन ! नहाना मत . मगर, कपड़े रख लेने में क्या हर्ज है ?”
कमल को रोहन की बात जंच गई. उस ने भी अपने कपड़े साथ ले लिए. तब तक अंकल आ गए थे.
‘‘ चलो !” अंकल ने बरमादे में आते ही कहा और सब कुंए की ओर चल दिए.
थोड़ी देर में वे खेत की मेड पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर कमल ने खेत के एक किनारे की ओर इशारा किया, ‘‘ अंकल ! वो हरे टमाटर का पौधा है ना ? ये क्या काम आते हैं. हमारे यहां तो ये नहीं मिलते है ?”
‘‘ हां बेटा ! यह हरे टमाटर का पौधा है. हरे टमाटर जब पक जाते है तब लाल हो जाते हैं . जिन को हम हर सब्जी में डालते हैं. यह तो तुम जानते ही हो.”
कमल ने हां में गरदन हिला दी. तभी कमल की निगाहें लाल टमाटर पर गई. कमल ने पौधे से एक लाल टमाटर को तोड़ कर अलग किया और खाने लगा. तभी अंकल ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘ तुम इसे, ऐसे नहीं खा सकते हो ?” अंकल ने उसे लाल टमाटर खाने से रोक दिया.
‘‘ क्यों अंकल ? मैं टमाटर क्यों नहीं खा सकता हूं ?”
‘‘ इस के ऊपर जहर लगा हुआ है. हम किसान लोग पौधे को कीड़े से बचाने के लिए इन के ऊपर कीटनाशक छिटकते हैं. वह जहर इस पर लगा हुआ है. इसलिए पहले तुम इसे धोलो. फिर खा लेना.”
कमल ने टमाटर धोया. खाने लगा. तभी रोहन ने कमल से पूछा, ‘‘ क्या तुम गाजर खाना पसंद करोगे ?”
यह सुन कर कमल ने इधरउधर देखा. उसे गाजर कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, ‘‘ मगर, यहां गाजर कहां है ?” कमल के पूछते ही रोहन एक पौधे के पास गया. उसे पौधे को उखाड़ कर बाहर खींच लिया. पौधे के साथ जमीन के अंदर से एक लंबी गाजर निकल आई.
‘‘ ओह ! गाजर जमीन के अंदर लगती है.” कहते हुए कमल ने पौधा हाथ में ले कर देखा. फिर उस ने टंकी के पानी से गाजर को धोया और खाने लगा, ‘‘ यहां के टमाटर व गाजर बहुत स्वादिष्ट है .ऐसा स्वाद शहर की सब्जियों में नहीं होता है.”
‘‘ जी हां. हम गांव के लोगों को सब चीजें ताजा और स्वादिष्ट ही मिलती है,” यह कहने के साथ रोहन बोला, ‘‘ चलो ! अब कुंए का बुखार नापते हैं.”
कमल अभी असमंजस्य में था. आखिर कुंए को बुखार क्यों हो गया ? रोहन क्या कह रहा है ? घर पर अंकल भी यही कह रहे थे. यह बात उस ने दोबारा कमल से पूछी.
तब कमल बोला, ‘‘ रोहन ! मैं गरमी में कुंए पर आया था. उस वक्त यह ठण्ड से कांप रहा था . उस के पानी में हाथ लगाया था, तब वह बहुत ठण्डा था. मैं यह देख कर दंग रह गया. गरमी में कुंए का पानी इतना ठण्डा क्यों होता है ? तब अंकल ने बताया था कि कुंए के पानी को बुखार चढ़ जाता है ?” रोहन ने कमल की जिज्ञासा का बढ़ा दिया.
‘‘ फिर ?”
‘‘ आज हम कुंए के बुखार को नाप कर पता लगाएंगे कि ऐसा क्यों होता है ? इसलिए अंकल यह थर्मामीटर ले कर आए है,” कहते हुए कमल ने अंकल को आवाज दी. फिर तीनों धीरेधीरे कुंए की सीढ़ी उतर कर पानी के पास चले गए.
कमल के हाथ में थर्मामीटर था, ‘‘ मैं कुंए के पानी का ताप नापता हूं,” कहते हुए कमल ने कुंए के पानी में कुछ देर तक थर्मामीटर डूबा कर रखा. थर्मामीटर का पारा धीरेधीरे ऊपर चढ़ने लगा. पहले पारा 18 डिग्री सेल्सियम पर था. वह धीरेधीरे बढ़ते हुए 27 डिग्री सेल्सियम पर पहुंच गया.
‘‘ अब थर्मामीटर को बाहर निकालों,” अंकल ने कहा, ‘‘ इसे कितने डिग्री बुखार है ?”
कमल को बुखार की परिभाषा याद नहीं थी. उस ने पूछ लिया, ‘‘ बुखार कितने डिग्री पर होता है ?”
इस पर अंकल ने जवाब दिया, ‘‘ जब वातावरण के ताप से शरीर का तापमान ज्यादा बढ़ जाए तो उसे हम बुखार कहते हैं. इस हिसाब से देखे तो इस वक्त वातावरण का तापमान 18 डिग्री है. जब कि कुंए का तापमान 27 डिग्री है. इस का मतलब यह है कि कुंए को बुखार है.”
‘‘ हां अंकल ! कुंए का पानी सचमुच गरम है .”
‘‘ तब तो हम गरम पानी में नहा सकते हैं,” कहते हुए रोहन कुंए में कुद गया. फिर आराम से उस पानी में तैरने लगा. कमल को तैरना नहीं आता था. वह कुंए के बाहर निकल गया. वहां पानी की मोटर चल रही थी. वह उस में बैठ कर नहाने लगा.
मगर, उस की जिज्ञासा खत्म नहीं हुई थी. जैसे ही रोहन और उस के अंकल नहा कर कुंए से बाहर आए. उस ने पूछ लिया, ‘‘ अंकल आप कह रहे थे कि गरमी में कुंआ ठण्ड से कांप रहा था . जरा इस का भी राज भी बता दीजिए.”
‘‘ हां, अंकल ! यह बात मुझे भी जानना है,” रोहन ने कहा तो अंकल बोले, ‘‘ गरमी के दिनों में वातावरण का तापमान 40 डिग्री के लगभग होता है. उस वक्त भी कुंए का तापमान 27 डिग्री पर स्थिर रहता है.”
‘‘ क्या ?” रोहन ने चौंक कर कहा, ‘‘ कुंए के पानी का तापमान सदा एकसा रहता है .”
‘‘ हां,” अंकल ने जवाब दिया, ‘‘ हमारे शरीर के अंगों का तापमान वातावरण के अनुकूल 40 डिग्री के लगभग होता है, इसलिए जब हम वातावरण के अनुरूप ढले अंगों से कुंए के पानी को छूते हैं तो वह हमें ठण्डा लगता है. यानी गरमी में कुंआ ठण्ड से कांपता रहता है.”
‘‘ हां अंकल ! सही कहा आप ने. ठण्ड में वातावरण का ताप 18 डिग्री सेल्सियस रहता है और कुंए के पानी का ताप 27 डिग्री होता है. जो हमें छूने पर गरम लगता है. इसलिए तथ्य को जानने के बाद आज हमें कुंए के बुखार का राज पता चल गया.” यह कहते हुए रोहन कमल के साथ अपने घर चल दिया. आज उस के एक रहस्य से परदा उठ गया था. इसलिए वह बहुत खुश था. यह बात वह शहर जा कर अपने मित्रों को बताना चाहता था.
वाकई गांव कई मायने में अच्छा होता है. यह सोच कर वह घर की ओर चल दिया.
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बादल मर गया
नाले के पानी ने उड़ते हुए बादल को देख कर कहा, ‘‘ मुझे भी सैर करना है. क्या मैं भी तुम्हारे साथ चल सकता हूं ?”
उड़ते हुए बादल ने ठहर कर बोला, ‘‘ क्यों नहीं ! आ जाओ. हम साथसाथ सैर करेंगे.”
गंदे नाले का पानी जलवाष्प में बदला. उड़ा. बादल के संग उड़ कर चलने लगा.
वह कुछ दूर उड़ा था. उसे नीचे एक खूबसूरत जगह दिखाई दी , ‘‘ वह क्या है?” नए बादल ने अपने साथ उड़ते हुए पुराने बादल से पूछा, ‘‘ बहुत सुंदर भवन है. सामने लंबाचौड़ा लान है.”
‘‘ यह दिल्ली का लालकिला है.” बादल ने कहा. तभी हवा ने अपना रूख बदला. हवा में ठंडक छा गई. वातावरण में जोरदार धुंध छाने लगी.
यह देख कर दूसरे बादल घबरा कर तेजी से उड़ने लगा. साथ उड़ते हुए दूसरे बादल ने नए बादल से कहा, ‘‘ भागो नए बादल ! यहां अब धुंध छाने वाली है. यह प्रदूषित धुंध हमारी जान ले लेगी.”
मगर, नए बादल को दिल्ली देखना अच्छा लग रहा था. वह तेजी से संसद भवन की ओर उड़ा. मगर, तब तक धुंध ज्यादा छा गई थी. बादल को नीचे के दृश्य दिखाई देना बंद हो गए थे.
‘‘ मुझे नीचे कुछ दिखाई नहीं दे रहा है ?” वह जोर से बोला.
साथ उड़ रहा दूसरा बादल ने कहा, ‘‘ नीचे बहुत धुंध छा गई है इसलिए तुम्हें नीचे कुछ दिखाई नहीं दे रहा है.”
नया बादल खुली हवा में सांस लेने का आदी थी. प्रदूषित वायु में सांस लेने पर उस का जी घबराने लगा. उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. वह सांस लेतेलेते हांफने लगा. यह देख कर दूसरा बादल बोला, ‘‘ लगता है तुम प्रदूषण सहन नहीं कर पा रहे हो. तुम जल्दी से दौड़ लगाओ. ताकि हम दिल्ली से दूर जा सकें.”
नए बादल ने तेजी से उड़ने की कोशिश की, मगर वह उड़ नहीं पाया. उस की सांस फूलने लगी थी. आक्सीजन की कमी से जी घबराने लगा. वह कुछ संहलता तभी उस के पेट में भरा पानी मुंह से बाहर निकला पड़ा. यानी उसे उल्टी हो गई.
दूसरा बादल बोला, ‘‘ क्या हुआ नए बादल ! उल्टी हो रही है?”
‘‘ हां भाई ! तुम जाओ. लगता है मेरा समय निकट आ गया है,” कहते हुए नए बादल ने टाटा किया. तभी प्रदूषित वायु का एक झोंका आया. उस के अंदर समाएं हुए कार्बन गैस, धूल, धूंए और जहरील कण उस की नाक में समा गए. नया बादल उन्हें सहन नहीं कर पाया. तुरंत बेहोश हो गया.
नए बादल के बेहोश होते ही उस में भरा पानी बरसने लगा. तेज वर्षा हुए. उस के साथ हवा में घुली गंदगी उस के साथ जमीन पर आ गिरी. वह बहती हुई नाले में गई . उस के साथ नया बादल भी बह गया. वह बेहोश हुआ बादल उसी नाले में पहुंच गया जहां से वह चला था.
उस के साथ बहती हुई गंदगी को देख कर नाले का पानी चिल्ला उठा, ‘‘ अरे ! यह कौन है जो गंदगी लिए हुए नाले में चला आ रहा है. उसे मालुम नहीं है कि नाले का पानी वैसे भी बहुत गंदा है. इस में रोजरोज गंदगी बढ़ाने का क्या मतलब है ?”
तभी नाले के गंदे पानी ने उस बादल वाले पानी को पहचान लिया.
‘‘ अरे ! यह तो वही पानी है जो नया बादल बन कर उड़ा था. मगर, तुम उड़तेउड़ते बेहोश कैसे हो गए थे?”
नाले का पानी बड़बड़ाया, ‘‘ लगता है दिल्ली की प्रदूषित होती हवा को मैं बर्दाश्त नहीं कर पाया और बेहोश हो गया था.”
तभी पास में खड़ा हुआ नीम का वृक्ष बोल पड़ा, ‘‘ तुम इस पानी को मेरे पास भेज दो. मैं इसे अपनी जड़ों से सोख लूंगा. फिर पुनः वाष्पित कर के बादल बना दूंगा. तब यह पुनः जीवित हो जाएगा.”
‘‘ वाकई ! ऐसा हो सकता है ?”
‘‘ हां ! क्यों नहीं ! यदि सभी लोग चाहे तो खूब सारे पेड़पौधे लगा कर मरते हुए और प्रदूषित होते हुए हवापानी को पुनर्जीवित कर सकते है.” यह कह कर नीम खामोश हो गया. उसे हवा, पानी और प्रकाश की उपस्थिति में उसे अपने लिए भोजन बनाना था, इसलिए वह चुपचाप अपना काम करने लगा.
नया बादल गंदे पानी में आ कर मर गया था. अब वह साफसुथरा बादल नहीं गंदा पानी था.
यह देख कर नाले का पानी अपनी गंदगी के साथसाथ अपनी हालत पर रोने लगा.
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श्रेष्ठ कौन
पानी के साथ बर्फ का टुकड़े पत्तियों पर गिरा तो पेड़ चिल्ला पड़ा, ‘‘ अरे दुष्ट ! ये क्या करता है ?”
पानी को पेड़ का इस तरह बोलना अच्छी नहीं लगा, ‘‘ मैं तो तेरी गंदगी साफ कर रहा था मूर्ख. अपने को देख. तू कितना गंदा हो रहा है ?”
‘‘ अरे वाह,” पेड़ ने कहा, ‘‘ अपने मुंह मियां मिटठु बनना अच्छी बात नहीं है. तुम अपने आप को श्रेष्ठ कैसे बता सकते हो ?”
‘‘ मेरे बिना दुनिया जीवित नहीं रह सकती है. जल ही जीवन है. इस कारण मैं सब से श्रेष्ठ हूं.”
पेड़ कब चुप रहने वाला था, ‘‘ तब तो मैं तुम से ज्यादा उपयोगी हूं. मैं न होऊं तो तुम्हारा वाष्पीकरण न हो. वाष्पीकरण न हो तो तुम बादल बन कर बरसोगे कैसे ?” अभी पेड़ कुछ कहता कि हवा तेजी से चलने लगी.
पानी का हवा का यह व्यवहार अच्छी नहीं लगा, ‘‘ अरे बेवकूफ ! तू तो ठहर जा.”
‘‘ किसे बेवकूफ कहा, तू ने ?”
‘‘ तूझे .”
‘‘ बेवकूफ होगा तू,” हवा ने पानी को ललकारा, ‘‘ तू मेरे ही बल पर बादल बन कर आकाश में उड़ता है. यदि मैं न होऊ तो न तू बादल बन कर उड़ सके और न बरस सकें. तेरा साथी यह पेड़ मेरे बिना जिंदा नहीं रह सकता है.”
पेड़ को लगा कि हवा अपनेआप को श्रेष्ठ बताने पर तुली है, ‘‘ अरे जा. यदि मैं न होता तो तू कब की मर जाती. मैं ही हूं जो तूझे शुद्ध करती हूं. ताकि तेरे संगठन में आॅक्सीजन व कार्बन डाई आॅक्साइड सहित सभी गैसों को संतुलन बना रहे. अन्यथा तू कभी की प्रदूषित हो कर मर गई होती.”
हवा को लगा कि पेड़ को घमंड हो गया. वह अपनेआप को श्रेष्ठ बताने पर तुला हुआ है, ‘‘ अरे तू उलटा बोल रहा है.” हवा ने पेड़ को डांटा, ‘‘ यू क्यों नहीं कहता कि मैं ने होऊ तो तू अपने लिए कार्बन डाई आॅक्साइड कहां से प्राप्त करें ? फिर तेरी पत्तियां प्रकाश संश्लेषण द्वारा सूर्य के प्रकाश की सहायता से भोजन कैसे बना पाएगी. तब तू भूख से ही मर जाएगा.
‘‘ इसलिए मैं तूझ से श्रेष्ठ हूं.”
पानी को हवा की बात अच्छी नहीं लगी, ‘‘ अरे भाई, रूक.” उस ने हवा को रोका, ‘‘ बात मेरी और पेड़ की श्रेष्ठ होने की थी. तू बीच में कहां से आ गया .”
‘‘ अरे वाह ! कहीं कोई प्रतियोगिता हो और मैं भाग न लू. कहीं ऐसा हो सकता है,” हवा ने अकड़ कर कहा, ‘‘ वैसे भी मैं तुम दोनों से श्रेष्ठ हूं,” कहते हुए पेड़, पानी और हवा आपस में तकरार करने लगे.
जब उन में से कौन श्रेष्ठ है इस का फैसला नहीं हुआ तो उन्हों ने चंद्रमा से निवेदन किया कि वह न्यायाधीश बन कर फैसला सुनाए कि हम में से कौन श्रेष्ठ है ?
चंद्रमा को भला क्या एतराज हो सकता था. उस ने कहा, ‘‘दुनिया में किसी चीज की श्रेष्ठता उस की उपयोगिता के साथसाथ उस के उद्देश्य से तय होती है.”
‘‘ यह बात तो सही है,” पानी ने कहा, ‘‘ चुंकि मैं सब से ज्यादा उपयोगी हूं इसलिए मैं सब से श्रेष्ठ हूं.”
‘‘ नहींनहीं,” पेड़ ने विरोध किया, ‘‘ मेरे ही कारण पानी अपना चक्रण पूरा करता है. मैं न रहूं तो हवा अपने को शुद्ध नहीं रख पाए. इसलिए मैं ज्यादा उपयोगी हूं.”
हवा कब पीछे रहती. वह बोली, ‘‘ नहींनहीं महोदय, मेरे ही कारण पानी इधर से उधर आताजाता है. पेड़ भी मेरे ही कारण जीवित है. इसलिए मैं इन दोनों से श्रेष्ठ हूं.”
चंद्रमा उन की बातें सुन कर मुस्कराया, ‘‘ तुम तीनों ही उपयोगी हो. तुम्हारे बिना किसी का भी काम नहीं चल सकता है. मगर, तुम्हारा उद्देश्य निस्वार्थ सेवा करना नहीं है.”
सुन कर तीनों चकित रह गए.
‘‘ यह आप क्या कह रहे है?” हवा, पानी व पेड़ ने एकसाथ पूछा.
‘‘ यहीं कि तुम्हारा एकदूसरे से स्वार्थ जुड़ा हुआ है. हवा पेड़ के बिना नहीं रह सकती है. पेड़ हवा के बिना. इसी तरह पानी को हवा की सहायता चाहिए. वहीं हवा को पानी की जरूरत है. इसलिए आप तीनों एकदूसरे से स्वार्थवंश बंधे हुए हो.”
‘‘ तब कौन श्रेष्ठ है?”
‘‘ पृथ्वी.”
‘‘ वह कैसे भला.” हवा ने पूछा.
इस पर चंद्रमा ने कहा, ‘‘ भाई, पृथ्वी पानी को अपने में समाए रहती है. उसी की गरमी से हवा चलती है. पेड़ उसी के सहारे जिंदा है. मगर वह किसी से कुछ नहीं लेती है. सभी को देती ही देती है. इसलिए उस की उपयोगिता के साथसाथ उस का उद्देश्य आप सभी से बेहतर है.
‘‘ फिर लेने वाले से देने वाला श्रेष्ठ होता है. यह तुम सभी जानते हो.”
‘‘ हां, यह तो है, ” पानी ने कहा तो चंद्रमा बोला, ‘‘ इसी कारण हम सब से ज्यादा श्रेष्ठ पृथ्वी है.”
उन की बातें सुन कर सूर्य भी मुस्करा दिया.
‘‘ वास्तव में निस्वार्थ भाव से देने वाला ही सर्वश्रेष्ठ होता है.”
यह सुन कर तीनों का झगड़ा बंद हो गया.
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भूत का रहस्य
राहुल उन की बात ध्यान से सुन रहा था. उस के पापा अपने मित्र से कह रहे थे,‘‘ बड़ी अजीब डरावनी आवाज आ रही थी. जैसे कोई बच्ची को मार रहा हो. जिस की मार से वह रो रही है.”
‘‘ तुम्हें अंदर जा कर देखना था.” पापा का मित्र राजन कह रहे थे.
‘‘ मैं ने वहीं किया. मालगोदाम के अंदर गया. वहां कोई नहीं था. मगर तब भी बच्ची के रोने का क्रंदन सुनाई देता रहा. इस से मुझे अजीब से डर लग रहा था.”
‘‘ रात के 2 बजे ऐसा हादसा हो तो हर कोई डर सकता है,” राजन ने कहा.
राहुल को उन की बात अजीब लग रही थी. पानी के विषालकाय जहाज में ऐसा हो सकता है. यह वह सोच नहीं पा रहा था. कहीं यह किसी शैतान की कोई चाल तो नहीं है. कहीं जहाज पर कोई भूत हो.
तभी पापा की निगाहें उस पर गईं. उन्हों ने उस रहस्यमय आवाज की बातें बंद कर दीं. फिर वे राहुल से बोले,‘‘ बेटा ! तुम अपने कैबिन में जाओ. मैं 2 मिनट में आता हूं.”
राहुल ने भी वहां रूकना ठीक नहीं समझा. वह जहाज के मध्य बने हुए लंबे गलियारे से होता हुआ अपने कैबिन की तरफ चल दिया. अभी वह कुछ दूर ही गया था कि सामने से आता हुआ विकास दिखाई दिया.
‘‘ क्यों राहुल ! क्या बात है. बड़े सुस्त नजर आ रहे हो,” विकास ने पास आते ही पूछा तो राहुल ने उसे सब बातें विस्तार से बता दीं. कहा, ‘‘ मेरे पापा मालगोदाम के इंजार्च है. उन के साथ ऐसा हादसा होना शोभा नहीं देता है. हो सकता हो कि कोई चोर यह शैतानी कर के मालगोदाम से माल साफ करना चाहता हो.”
‘‘ हो सकता है कि कोई रहस्यमय भूत हो.” विकास ने कहा,‘‘ मगर हम इस रहस्य से परदा अवष्य उठाएगे.” कहते हुए विकास ने अपनी योजना राहुल को समझा दीं.
योजना के मुताबिक दोनों तैयार थे. दोनों रात को 2 बजे उठ कर बैठ गए. फिर मालगोदाम के पास पहुंचे. जहां उस के पिता कैबिन में बैठे हुए थे. तभी ठीक 2 बज कर 10 मिनट पर मालगोदाम से किसी बच्ची की रोने की अजीब से आवाज सुनाई देने लगी . जिसे सुन कर राहुल के पापा पुनः चौंक उठे.
वे उठ कर मालगोदाम के पास आए. दरवाजा खोल कर अंदर गए. मौके का फायदा उठा कर राहुल और विकास भी मालगोदाम के अंदर पहुंच गए.
मगर, आज अजीब हादसा हुआ. पहले एक बच्ची के रोने की आवाज आ रही थी. राहुल और विकास ने देखा कि अब कई बच्चियों की रोने की आवाजें आने लगी थी. साथ ही जहाज हिचकोले खाने लगा. एक बारगी दोनों डर गए. उस के पापा भी घबरा कर पलटे. तभी वे राहुल से टकरा गए.
‘‘ अरे तुम !” उस के पापा चौंकते हुए बोले तो विकास ने बात संहाली, ‘‘ अंकल राहुल ने आप की बात सुन लीं थी. वह आप की मदद करना चाहता था इसलिए हम यहां आ गए.”
यह सुन कर राहुल के पापा को गुस्सा आ गया. मगर फिर न जाने क्या सोच कर बोले,‘‘ ठीक है. तुम मेरे पीछेपीछे रहना. मैं देखता हूं, यह कौन है.” कहते हुए राहुल के पापा मालगोदाम में छानबीन करने लगे. मगर उन्हें रोने वाली बच्ची कहीं नहीं मिलीं.
इसी दौरान राहुल और विकास ने अपना दिमाग लगाना शुरू कर दिया था. वे आवाज की दिशा में बढ़ते हुए एक खोखे के पास जा कर रूक गए,‘‘ राहुल हो न हो , यह आवाज इस खोखे में से आ रही है.”
‘‘ नहीं, यह आवाज इस खोखे में से आ रही है,” राहुल ने दूसरे खोखे की ओर इशारा कर के कहा.
‘‘ चलो, इन को खोल कर देखते है,” कहने के साथ विकास और राहुल ने खोखे को खोल दिया.
उन्हें यह देख कर आष्चर्य हुआ कि उन खोखे के अंदर इलेक्ट्रानिक गुड़िया पैक थी. जो हिलाने पर जोरदार करूण क्रंदन करती थी.
यह देख कर राहुल चिल्लाया, ‘‘ पापाजी ! यह रहा रहस्यमय भूत, जो रोज रात को रोता था.”
‘‘ कहां ?” कहने के साथ राहुल के पापा विकास और राहुल के पास आ कर बोले,‘‘ मगर ये गुड़िया रात में ही क्यों रोती थी.”
‘‘ इस का कारण यह है अंकल,” विकास ने बताया,‘‘ रात के समय जहाज हिलौरे यानी तूफानी लहर के कारण ज्यादा हिचकोले खाता है. जिस के कारण ये गुड़िया हिलनेडूलने लगती थी. जिस के कारण इन में यह करूण क्रंदन की आवाज निकलती थी.”
यह सुन कर सभी हंस पड़े. उन्हें रहस्यमय भूत के रहस्य का पता चल गया था.
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कुछ मीठा हो जाए
गोलू गधे को आज फिर मीठा खाने की इच्छा हुई. उस ने गब्बरू गधे को ढूंढा. वह अपने घर पर नहीं था. कुछ दिन पहले उसी ने गोलू को मीठी चीज ला कर दी थी. वह उसी बहुत अच्छी लगी थी. मगर, वह क्या चीज थी ? उस का नाम क्या था ? उसे मालुम नहीं था.
आज ज्यादा मिर्ची वाला खाना खाने से उस का मुंह जल रहा था. उसे अपने मुंह की जलन मिटाना थी. इसलिए वह पास के खेत पर गया. यही से गब्बरू गधा वह खाने की चीज लाया था. वहां जा कर उस ने इधरउधर देखा. खेत पर कोई नहीं था.
तभी उसे मंकी बंदर ने आवाज दी, ‘‘ अरे गोलू भाई ! किस को ढूंढ रहे हो ? इस पेड़ के ऊपर देखो.”
‘‘ ज्यादा मिर्ची वाला खाना खाने से मेरा मुंह जल रहा है. मुझे कुछ मीठा खाना है.” गोलू ने कहा तो मंकी बंदर कुछ फेंकते हुए बोला, ‘‘ लो पकड़ो ! इसे चूस कर खाओ. यह मीठा है .”
‘‘ मगर, इस का नाम क्या हे ?” गोलू ने पूछा तो मंकी बोला, ‘‘ इसे आम कहते हैं.”
‘‘ जी अच्छा,” कह कर गोलू ने आम चूसा. मगर, वह खट्टामीठा था. उसे आम अच्छी नहीं लगा.
‘‘ मुझे तो मीठी चीज खाना थी,” यह कहते हुए गोलू आगे बढ़ गया.
कुछ दूर जाने पर उसे हीरू हिरण मिला.
‘‘ मुझे कुछ मीठी चीज खाने को मिलेगी? मेरा मुंह जल रहा है,” गोलू ने उस का अभिवादन करने के बाद कहा तो हीरू ने उसे एक हरी चीज पकड़ा दी, ‘‘ इसे खाओ. यह मीठा लगेगा .”
गोलू ने वह चीज खाई, ‘‘ यह तो तुरातुरा और मीठा है. मगर, मुझे तो केवल मीठा खाना था,” यह कहते हुए गोलू आगे बढ़ गया. उस के दिमाग में गब्बरू की लाई हुई मीठी चीज खाने की इच्छा था. मगर, उसे उस चीज का नाम उसे याद नहीं आ रहा था.
वह आगे बढ़ा. उसे चीकू खरगोश मिला. वह लाललाल चीज छिलछिल कर उस के दाने निकाल कर खा रहा था. गोलू ने उस से अपनी मीठा खाने की इच्छा जाहिर की.
चीकू ने वह लाललाल चीज उसे पकड़ा दी, ‘‘ इसे खाओ. यह फल मीठा है. इसे अनार कहते है.”
गोलू ने अनार खाया, ‘‘ यह उस जैसा मीठा नहीं है,” कहते हुए गोलू आगे बढ़ गया.
रास्ते में उसे बौबौ बकरी मिली. उस ने बौबौ को अपनी इच्छा बताई, ‘‘ आज मेरा मुंह जल रहा है. मुझे मीठाखाने की इच्छा हो रही है.”
बौबौ ने एक पेड़ से पीलीपीली दो लंबी चीजें दी, ‘‘ इस फल को खा लो. यह मीठा है.”
गोलू ने वह फल खाया, ‘‘ अरे वाह ! इस का स्वाद बहुत बढ़िया है. मगर, उस चीज जैसा नहीं है. मुझे वही मीठी चीज खाना है,” कहते हुए गोलू आगे बढ़ गया.
अप्पू हाथी अपने खेत की रखवाली कर रहा था. उस के पास जा कर गोलू ने अपनी इच्छा जाहिर की, ‘‘ अप्पू भाई ! आज मुझे मीठा खाने की इच्छा हो रही है.”
यह सुन कर अप्पू बोला, ‘‘ तब तो तुम बहुत सही जगह आए हो. “
यह सुन कर गोलू खुश हो गया, ‘‘ यानी मेरी मीठा खाने की इच्छा पूर हो सकती है.”
‘‘ हांहां. क्यों नहीं,” अप्पू ने कहा, ‘‘ मीठी शक्कर जिस चीज से बनती है, वह चीज मेरे खेत में उग रही है.” कहते हुए अप्पू ने एक गन्ना तोड़ कर गोलू का दे दिया, ‘‘ इसे खाओ.”
गोलू ने कभी गन्ना नहीं खाया था. उस ने झट से गन्ने पर दांत गड़ा दिए. गन्ना मजबूत था. उस के दांत हिल गए.
‘‘ अरे भाई अप्पू ! तुम ने मुझे यह क्या दे दिया. मैं ने तुम से मीठा खाने के लिए मांगा था. तुम ने मुझे बास पकड़ा दिया. कभी बास भी मीठा होता है.” यह कहते हुए गोलू ने बुरासा मुंह बनाया.
यह देख कर अप्पू हंसा, ‘‘ अरे भाई गोलू ! नाराज क्यों होते हो. इसे ऐसे खाते हैं,” कहते हुए अप्पू ने पहले गन्ने के छिलके छिलें. फिर उस का थोड़ासा टुकड़ा तोड़ कर मुंह में डाला. उसे अच्छे से चबा कर चूसा. कचरे को मुंह से निकाल कर फेंक दिया.
‘‘ इसे इस तरह चूस कर खाया जाता है. तभी इस के अंदर का रस मुंह में जाता है.”
यह सुन कर गोलू बोला, ‘‘ मगर, मुझे तो लंबीलंबी लाललाल और पीछे से मोटी और आगे से पतली यानी मूली जैसी लाल व मीठी चीज खाना है. वह मुझे बहुत अच्छी लगती है.”
यह सुन कर अप्पू हंसा,‘‘ अरे भाई गोलू ! यूं क्यों नहीं कहते हो कि तुम्हें गाजर खाना है,” यह कहते हुए अप्पू ने अपने खेत में लगे दोचार पौधे खींच कर जमीन से बाहर निकालें. उस को पानी से धो कर गोलू को दे दिए.
‘‘ यह लो ! यह मीठी गाजर खाओ.”
बस ! फिर क्या था ? गोलू खुश हो गया. उसे उस की पसंद की मीठी चीज खाने का मिल गई थी. उस ने जी भर की मीठी गाजर खाई. उस का नाम याद किया और वापस लौट गया.
वह रास्ते भर गाजर, गाजर, गाजर, गाजर रटता जा रहा था. ताकि वह गाजर का गाजर नाम याद रख सकें. इस तरह उस की गाजर खाने की इच्छा पूरी हो गई.
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इंसेक्टा से मुलाकात
“ हाय मोनिका !”
“ हाय !” मोनिका चौंकी,” कौन !”
“ मैं इंसेक्टा.” उस ने मोनिका को अपनी पीठ पर बैठाया,” अब कस कर मेरा पेट पकड़ लो.” कहते हुए इंसेक्टा उड़ने लगा. फिर अपने साथ उड़ रहे आइसॉप्टरा से बोला, ‘‘आइसॉप्टरा ! तुम चलो. मैं थोड़ा ओर घुम कर आता हूं.”
“ बॉयबॉय,” कहते हुए आइसॉप्टरा तेजी से उड़ कर चला गया.
मोनिका ने इंसेक्टा को ध्यान से देखा. वह बहुत बड़े दीमक जैसा लग रहा था.
तभी इंसेक्टा तेजी से नीचे झूका. मोनिका गिरतेगिरते बचीं. उस ने इंसेक्टा का पेट कस कर पकड़ लिया.
सामने, तेजी से एक मक्खी आ रही थी. उसे देख कर इंसेक्टा ने अपना बचाव किया. वह एकाएक नीचे झूक गया. अन्यथा दोनों में टक्कर हो जाती.
“ अरे धीरे ! मैं गिर जाऊंगी.” मोनिका ने उस की कमर को ओर कस कर पकड़ ली.
“ तुम दीमक ही हो ना ,” मोनिका ने पूछा.
“ हां.” इंसेक्टा ने कहा.
उस ने इतना बड़ा दीमक पहली बार देखा था. वह जिस जगह बैठी थी, वह उस का उदर वाला भाग था. उस ने दीमक की पीठ पकड़ रखी थी. उस की गरदन आगे थी.
उसे देख कर मोनिका ने पूछा,” तुम्हारा शरीर तीन भागों मे बंटा हुआ है.”
“ हां.” इंसेक्टा ने बताया, ‘‘ये सिर पर दो आंखे है. साथ ही लगी हुई श्रृंगिकाएं है. यह हमारे देखने और अन्य काम के लिए उपयोगी होती है.”
तभी मोनिका ने तेजी से हिलते हुए पंखों को देख कर कहा,”ये दो जोड़ी पंख कितने जानदार है.”
“ हां मोनिका. इन्हीं की सहायता से हम उड़ते हैं.” इंसेक्टा ने बताया और फिर अपने तीन जोड़ी पैर ऊपर कर लिए. ताकि मोनिका उन पर अपने पैर टिका सके.
“ अब तुम कहां जा रहे हो ,” मोनिका ने पूछा तो इंसेक्टा ने कहा, ‘‘मैं वल्मीक में बैठाबैठा बोर हो रहा था इसलिए घुमने चला आया.”
मोनिका को कुछ समझ नहीं आया. इंसेक्टा क्या बोल रहा है.
“ ये वल्मीक क्या होता है ?” उस ने पूछा.
“ यह मेरे घर का नाम है.” इंसेक्टा ने बताया, ‘‘मेरा दोस्त आइसॉप्टरा से तुम मिली थी. वह जिस घर में रहता है, उस का नाम टरमिटेरिया है.”
“ क्या कहा- वल्मीक और टरमिटेरिया.”
“ हां,” इंसेक्टा ने मोनिका को बताया, ‘‘थोड़ा संहल कर बैठना. मैं तेजी से नीचे जाऊंगा.” कहते हुए इंसेक्टा ने सीधे नीचे की ओर गोता लगा दिया.
एक बार तो मोनिका डर गई. उस ने इंसेक्टा को जम कर पकड़ लिया. जब वह सीधा हुआ तो संहल कर बोली,” तुम बड़े खतरनाक हो.”
“ हमें अपने बचाव के लिए खतरों से खेलना पड़ता है.” कहते हुए इंसेक्टा अपनी कॉलोनी के पास उतर गया.
“ ओह ! यह तुम्हारा घर है.” गरमी में पसीने से लतपथ होते हुए मोनिका ने पूछा, ‘‘तुम्हें इस घर में गरमी नहीं लगती है. यह तुम ने खुले में बना रखा है. इस में पंखाकूलर तो नहीं होता होगा ?”
इस पर इंसेक्टा हंसा, ‘‘हम इनसान नहीं है जो पंखेंकूलर का इस्तेमाल करें. वैसे हमारी कालोनियां वातानुकूलित होती है.”
“ क्या !” अब चौंकने की बारी मोनिका की थी, ‘‘तुम्हारी कॉलोनी वातानुकूलित यानी एयरकण्डीशनर होती है.”
“ हां,” इंसेक्टा ने बताया, ‘‘हमारे घर मिट्टी के बने होते हैं. इस में बीचोबीच एक बड़ी सुरंग होती है. इस सुरंग से कई सुरंगे जुड़ी रहती है. कुछ सुरंगे नीचे जाती है. कुछ सुरंगे ऊपर की ओर जाती है.
“ सभी सुरंगे आरपार और विशेष प्रकार की बनी होती है. इन सुरंगों से गरम हवा ऊपर उठती है. इस की प्रतिक्रिया में ठण्डी हवा घनी हो जाती है. तब वह नीचे की ओर बहती है.
“ यानी गरम हवा तेजी से ऊपर उठती है तो ठण्डी हवा तेजी से नीचे जाती है. यह क्रिया लगातार चलती है. फिर गरम हवा ऊपर उठ कर बाहर निकल जाती है और ठण्डी हवा घनी हो कर नीचे की ओर चली जाती है. इस से हमारी कॉलोनी का तापमान सदा एकसा यानी वातानुकूलित बना रहता है.”
“ यानी गरमी में भी तुम्हारा घर ठण्डा बना रहता है.”
“ बिलकुल सही. भयंकर गरमी में भी हमारी कॉलोनी का तापमान सदा 30 डिग्री बना रहता है. जब कि वातावरण का तापमान बहुत ज्यादा होता है. इस तरह हमारी कॉलोनी के ऊपर के कमरे गर्म और नीचे के कमरे ठण्डे होते है.”
मोनिका के लिए यह नई बात थी,” यह तो बड़ी आश्चर्यजनक बात है.”
“ इस में आश्चर्य की क्या बात है. हमारी कॉलोनी में रानी, श्रमिक, सेविका और सैनिक सभी तरह की दीमक रहती है.”
“ ओह ! बिलकुल चींटियों की तरह.”
“ हां.” इंसेक्टा ने कहा,” हमारी कॉलोनी की रक्षा का भार दो तरह के सिपाही उठाते हैं. एक बड़े जबड़े वाले और दूसरा सूंड वाले.”
“ सूंड वाले सिपाही ,” मोनिका बोली, ‘‘मैं ने तो सुना था सूंड केवल हाथी के होती है.”
इंसेक्टा हंसा, ‘‘हां. वैसे ही सिपाही हमारे यहां होते हैं. ये अपनी सूंड से जहरीला द्रव्य छोड़ कर दुश्मन के छक्के छूड़ा देते हैं. जब कि बड़े जबड़े वाले सिपाही अपने मजबूत दांत से दुश्मन को काटकाट कर नष्ट कर डालते हैं.”
“ तुम्हारे दांत इतने मजबूत होते हैं ?”
“ क्यों ? विश्वास नहीं हो रहा है. तुम अपने दांत से लकड़ी नहीं काट सकती हो. मगर, हम अपने दांत से लकड़ी को कुतरकुतर कर भूसा बना देते हैं.”
“ हां, यह बात तो सही है.” मोनिका के लिए यह बात नई थी. उस ने कहा,” जब तुम इतना इंतजाम करती हो तो यह बताओ कि तुम्हारी कॉलोनी कितनी मजबूत होती होगी ?”
“ हमारी कॉलोनी की मजबूती का अंदाज इस बात से लगा सकते हैं कि हमारी कॉलोनी 2000 साल तक ऐसी ही बनी रह सकती है. ये इतनी मजबूती से बनाई जाती है.”
“ और इसे बनाने के लिए इतनी सारी दीमक कहां से आती होगी ?”
“ शायद तुम्हें हमार कार्यप्रणाली को नहीं जानती. यह बड़ी विचित्र होती है. एक रानी दीमक एक मिनट में 60 अंडे देती है. यानी एक दिन में वह 86000 अंडे दे देती है. जिस में 45 से 90 दिन के अंदर बच्चे निकल आते हैं.
“ अब सोच लो. एक दिन में 86000 तो 10 दिन में और 100 दिन में हम कितनी हो जाती है. फिर सभी इसी एक कॉलोनी में रहती है.”
“ यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था,” मोनिका जोर से बोली.
“ क्या हुआ !” तभी उसे किसी ने जोर से हिला कर जगा दिया,” क्या बड़बड़ा रही हो. इंसेक्टा ! इंसेक्टा !”
मोनिका आंख मल कर बैठ गई. वह सपना देख रही थी. शायद, उसे स्कूल में पढ़ी गई किताबों की बातें याद रह गई थी.
“ मां सपना था.” कहते हुए मोनिका ने अपना सपना मां को सुना दिया.
“ यह तो बहुत अच्छा सपना था,” कहते हुए मां वापस किचन में चली गई और मोनिका मुंह धो कर पढ़ने बैठ गई. उसे स्कूल का होमवर्क करना था.
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मेरी आत्मकथा- हौमेटो
सब्जियों के राजा ने कहा, ‘‘ चलो ! आज मैं अपनी आत्मकथा सुनाता हूं.” सभी सब्जियों ने हांमी भर दी, ‘‘ ठीक है. सुनाओ. आज हम आप की आत्मकथा सुनेंगे.” बैंगन ने कहा.
हौमेटा ने अपनी कथा सुनाना शुरू की.
‘‘ बहुत पुरानी बात हैं. उस वक्त मैं रोआनौक द्वीप पर रहता था. वही उगता था. वैसे मेरा वैज्ञानिक नाम बहुत कठिन है लाइको पोर्सिकोन एस्कुलेंटक. यह याद रखना बहुत कठिन है. मेरी समझ में नहीं आता है वैज्ञानिकों ने मेरा पहला नाम इतना कठिन क्यों रखा था.
“ इस नाम को बाद में सोलेनम लाइको पोर्सिकोन कर दिया गया. यह नाम मेरे पहले वाले नाम से बहुत ज्यादा कठिन नहीं है. मगर, मुझे क्या ? मुझे अपने काम से काम रखना है.
‘‘ कहते हैं कि मेरी उत्पत्ति दक्षिण अमेरिका के एंडीज नाम की जगह पर हुई थी. वहां मैं बहुतायात में पाया जाता था. मेरा हरालाल आकारप्रकार बहुत सुदंर था. इस कारण मुझे बहुत ज्यादा पसंद किया जाता था.
‘‘ मैंक्सिको के मय जाति के लोग मुझे फिन्टो मेंटल कहते थे. वे मेरी इसी विषेषता के कारण मेरी खेती किया करते थे. वे मुझे मेरे कठिन नाम से नहीं पुकारते थे. ये तो वैज्ञानिक लोगों के लिए था. आम लोग तो कुछ समय बाद मुझे मेटल या हौमेटो कहते थे. बाद में यह नाम और सरल होता गया. लोग मुझे धीरेधीरे हौमेटो कहने लगे. यह हौमेटो कब टौमेटो में बदल गया पता ही नहीं चला.”
‘‘ ओह ! तो तुम हौमेटो से टौमेटो बने हो ,” आलू ने पूछा.
‘‘ हां भाई. यह अटठारहवी शताब्दी की बात है. उस वक्त लोग मुझे सजावटी चीज समझते थे. मैं कमरे या दालान में सजाने के काम आता था. जैसे आज के लोग क्यारियों में फूल लगा कर अपना आंगन सजा कर रखते हैं. उसी तरह पुराने लोग मुझे क्यारियों में सजावटी पौधे के रूप में मुझे लगाते थे.
‘‘ जब मैं मेरा फल यानी हौमेटो कच्चा रहता है तब वह हरा रहता था. जब यह हौमेटो पक जाता है तब लाल हो जाता है. इसलिए सजावटी क्यारियों में कहीं लाल टौमेटो होते थे कहीं हरे. इस से क्यारियां बहुत खूबसुरत लगती थी. जैसे फूलों की तरह यह नया फूल लगा हो.
‘‘ इन्हें तोड़ कर कुछ व्यक्ति अपनी बैठक में मुझे सजा लिया करते थे. जैसे फूलों को गमलों में सजाया जाता है. वैसे मुझे प्लेट में सजा कर रख दिया जाता था. कालांतर में में इधरउधर घुमता रहा. लोग मुझे सजावटी चीज समझते थे. उस समय तक मैं अखादय यानी नहीं खाने वाली चीज था.
‘‘ मेरा उपयोग खाने में इसलिए नहीं होता था, क्यों कि लोग मुझे जहरीली चीज समझते थे. उन का मत था कि इसे कोई खा लेगा तो उस की मृत्यु हो जाएगी. मगर, यह धारणा भी जल्दी टूट गई. इस धारण के पीछे एक व्यक्ति की जिद थी. वह व्यक्ति एक रंगसाज था.
‘‘ हुआ यू कि अमेरिकी जहाज पर एक व्यक्ति काम करता था. वह जहाज को रंगरोगन व सजाने का काम करता था. यह सन 1812 के लगभग की बात है. वह मेरी खूबसूरती पर मोहित हो गया. यह चीज इतनी खूबसुरत है तो खाने में कैसा होगी ? इसलिए वह मेरा स्वाद जानना चाहता था. वह मुझे तोड़ कर खाने लगा.
‘‘ उस के दोस्त भी जानते थे कि मैं एक जहरीली चीज हूं. जिसे कोई भी खाएगा वह मर जाएगा. इसलिए उस के दोस्तों ने उसे ऐसा करने से मना किया. उसे बहुत समझाया कि इसे खाने से तू मर जाएगा. मगर, वह माना नहीं. उस ने मुझे खा लिया. उसे मेरा स्वाद बहुत बढ़िया लगा.
‘‘ जब उस के दोस्तों ने देखा कि मुझे खाने से वह व्यक्ति मरा नहीं. तब उन्हें यकीन हो गया कि मैं जहरीला नहीं हूं. तब उन्हों ने भी मुझे नमकमिर्ची लगा कर खाया. उन्हें मेरा स्वाद बहुत अच्छा लगा.
‘‘ यह बात उस समय अचंभित करने वाली और अनोखी थी. कोई व्यक्ति जहरीला पदार्थ खा ले और मरे नहीं. यह सभी के लिए चंकित कर देने वाली होती है. फिर वही कोई व्यक्ति कहे कि यह तो बड़ी स्वादिष्ठ चीज है. बस इसी कारण यह अनोखी घटना उस वक्त वहां के अखबार में प्रकाशित हुई थी. बात इतनी फैली कि लोगों ने मुझे खाना शुरू कर दिया. यह सब से पहली शुरूआत थी जब मैं सजावटी वस्तु से खाने वाली वस्तु में तब्दील हो गया.
‘‘ कुछ एशियाई लोग मुझे हौमेटो नहीं बोल पाते थे. उन्हों ने टोमेटो कहना शुरू किया. फिर धीरेधीरे मुझे टमाटो बोलना शुरू कर दिया. कालांतर में मेरा हिन्दी नाम टमाटर पड़ गया. जो आज भी प्रचलित है.
यह बात कितना प्रमाणित है कि हिन्दी नाम टोमेटो से टमाटर कैसे पड़ा ? यह मुझे पता नहीं. मगर, एशियाई देशों में मुझे टमाटर नाम से ही जाना जाता है. अंग्रेजी में मुझे आज भी टौमेटो ही कहते हैं.”
‘‘ और मैं बटाटो,” आलू ने कहा.
‘‘ सही कहते हो भाई,” टमाटर ने कहना जारी रखा, ‘‘ एक ओर मजेदार बात है. यह बात उस समय की है जब सन् 1812 में जेम्स नामक व्यक्ति ने सोस बनाने की विधि खोज निकाली थी. वह विभिन्न चीजों को मिला कर चटनी बनाया करता था. उस समय मशरूम आदि चीजों से स्वादिष्ट चटनी बनाई जाती थी. मछली और विभिन्न चीजों की मांसाहारी चटनी उस वक्त ज्यादा प्रचलित थी.
‘‘ इस व्यक्ति ने मशरूम से बनने वाली चटनी में मेरा प्रयोग करना शुरू किया. मेरे प्रयोग से चटनी का स्वाद ओर अच्छा हो गया. तब से मैं चटनी के लिए उपयोग में आने लगा.
‘‘ सन् 1930 तक मेरा प्रयोग मशरूम के साथ होता रहा. जब पहली बार मेरा प्रयोग मशरूम की जगह किया गया. इस से चटनी का स्वाद ओर बढ़ गया. तब यह पहला अवसर था जब मैं चटनी के रूप में स्वतंत्र रूप से उपयेाग में आने लगा. उस वक्त मुझे स्वतंत्र खाद्यसामग्री घोषित कर दिया गया.
‘‘ उस के बाद मेरे दिन चल निकले. मैं हर सब्जी में स्वाद बढ़ाने के लिए डाला जाने लगा. यह देख कर हैज कंपनी ने 1872 में पहली बार मेरा कैचअप के रूप में प्रायोगिक इस्तेमाल किया. मेरा स्वाद लोगों को इतना भाया कि मैं ने अपना स्वतंत्र रूप ले लिया. आजकल मैं विभिन्न स्वादों और रूपों में मिलने लगा हूं. पहले मेरे अंदर रस ज्यादा रहता था. आजकल मैं बिना रस का भी रहता हूं.
‘‘ यह मेरी छोटीसी आत्मकथा थी. सुन कर तुम्हें अच्छी लगी होगी.” टमाटर के यह कहते ही सभी सब्जियों ने ताली बजा दी.
‘‘ वाकई तुम्हारी आत्मकथा अच्छी थी. “ बहुत देर से चुप बैठी आल ने कहा, ‘‘ अगली बार हम किसी ओर की आत्मकथा सुनना चाहेंगे.” कहते हुए आलू चुप हो गया.
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मोनिस्टा से मुलाकात
बीना जोर से चिल्लाई,‘‘ मम्मी! मक्खियां परेशान कर रही है. इन का इंतजाम करों. ये मुझे सोने नहीं दे रही है.” बीना मक्खियों को हाथ से भगाते हुए चिल्ला रही थी.
‘‘ अभी आई,” उस की मां ने कहा और कुछ ही देर बाद हाथ में एक स्प्रे ले कर आ गई. उसे कमरे में छिटकते हुए कहा,‘‘ अब, आराम से सो जाओं. तुम्हें मक्खियां तंग नहीं करेगी.”
बीना को मालुम ही नहीं पड़ा. कब उसे नींद आ गई. नींद आते ही उस ने देखा कि एक सुंदरसी लड़की उसे आवाज दे रही थी, ‘‘ बीना ! ओ...बीना! उठों.”
उस ने आंखें खोल कर देखा. सामने एक सुंदरसी मक्खी पर बैठी हुई एक परीसी लड़की उसे बुला रही थी,‘‘ इधर आओं बीना ! हम सैर पर चलते हैं.”
बीना परीसी लड़की की बात टाल नहीं सकीं. वह भी उस की तरह एक सुंदरसी मक्खी की पीठ पर बैठ गई. पीठ पर बैठते ही मक्खी उसे ले कर उड़ने लगी. उसे जिज्ञासा हुई कि आखिर यह सुंदरसी मक्खी है कौन- कहां से आई है ? क्या नाम है ?
उस ने मक्खी से पूछा, ‘‘ तुम कौन हो ?”
‘‘ ये मोनिस्टा है,” साथ में उड़ रही परीसी लड़की ने बताया,‘‘ मेरा नाम प्रिया है.” कहते हुए उस ने मोनिस्टा की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘ यह तुम से मिलना चाहती थी. इसलिए इसे तुम्हारे पास लाई हूं. तुम इस से बात करों तब तक मैं आती हूं.” कहने के साथ प्रिया वहां से चली गई.
बीना को रोज गंदी लगने वाली मक्खी आज बहुत सुंदर लग रही थी. उस ने देखा कि उस के शरीर में बहुतसी विचित्र चीजें थी. जो उस ने कभी देखी नहीं थी. वह जिसे चीज को पकड़े हुए थी. वह क्या चीज थी. उसे पता नहीं था.
इसलिए बीना ने पूछा, ‘‘ मोनिस्टा! यह क्या है ?”
‘‘ यह मेरा एंटिना है.” मोनिस्टा ने जवाब दिया, ‘‘ यह मुझे भोजन का पता बताता है. इस के द्वारा ही मैं भोजन की गंध प्राप्त करती हूं.”
‘‘ अच्छा.”
‘‘ हां.” मोनिस्टा बोली, ‘‘ इस के द्वारा मुझे उड़ने में मदद मिलती है. यह उड़ते वक्त मेरे शरीर को संतुलित बनाए रखता है.”
‘‘ यह तो बड़ी मजेदार चीज है. क्या, यह हमारे टीवी की तरह सिंग्नल देने का काम करता है ? इसे तुम ने लगा रखा है या यह हमेशा से तुम्हारे शरीर में लगा हुआ है.” बीना ने जानना चाहा.
‘‘ शुरूआती दिनों में यह हमारे शरीर में नहीं होता था. इस की जगह एक जोड़ी पंख होते थे. इस तरह मेरे शरीर में पहले दो जोड़ी पंख थे. एक जोड़ी पंख समाप्त हो गए और उस की जगह यह एंटिना उग आया. जिस तरह आप लोगों की पूंछ समाप्त हुई वैसे ही हमारे एक जोड़ी पंख समाप्त हो गए.”
बीना को मोनिस्टा से बातें करना अच्छा लग रहा था. उस ने मोनिस्टा की बड़ीबड़ी आंखे देख कर कहा, ‘‘ तुम्हारी आंखें सब से बड़ी और खूबसूरत है. पूरे चेहरे पर आंख ही आंख नजर आ रही है. इस के बारे में कुछ बताओ.”
‘‘ मेरी आंख मेरी सब से बड़ी विषेषता है,” मोनिस्टा ने कहा,‘‘ जानती हो मेरी दोनों आंखें एक सैकण्ड में 200 दृश्य देख लेती है.”
‘‘ क्या ?” बीना चौंकी, ‘‘ मगर हमारी आंखें तो इतने सारे दृश्य नहीं देख पाती है .”
‘‘ इस का भी कारण है,” मोनिस्टा ने बताया, ‘‘ हमारी आंखों में 4000 लेंस होते हैं. जब कि तुम्हारी आंखों में एकएक लेंस होता है.”
‘‘ अरे ! तब तुम इतने सारे लेंस से देखती कैसे हो ?”
‘‘ हमारा हर लेंस अलगअलग दृश्य पर फोकस होता है. फिर सब से मिल कर एक दृश्य बनता है. इसीलिए हमारी आंखें शरीर में सब से बड़ी और अनोखी होती है. इसी कारण यह एक सैकण्ड में 200 तक दृश्य देख लेती है.” मोनिस्टा ने बताया.
‘‘ और यह आंख जैसी तीन चीज क्या है ?” बीना ने माथे पर अंकित तीन बिंदुओं की ओर इशारा कर के पूछा.
‘‘ यह मेरी तीन छोटीछोटी आंखें है,” मोनिस्टा ने कहा, ‘‘ इसे आसिलाई कहते हैं.”
‘‘ वाकई तुम तो बहुत मजेदार हो,” बीना ने कहा. तभी उस की निगाह पैर पर गई, ‘‘ तुम्हारे 6 पैर और हमारे 2 पैर.”
‘‘ हां.” मोनिस्टा ने जवाब दिया,‘‘ हमारे शरीर में 3 पैर छाती के एक ओर और 3 पैर छाती के दूसरी ओर रहते हैं. मगर यह पैर ही नहीं, मुंह का भी काम करते हैं.”
‘‘ क्या !” बीना चौंकी.
‘‘ हां. हम स्वाद मुंह से नहीं इन पैरों में लगी स्वाद कलिकाओं से चख कर जानती हैं कि उस भोजन का स्वाद कैसा है. जब कि भोजन की गंध हमे एंटिना से प्राप्त होती है.”
‘‘ यह तो बड़ी विचित्र बात है.” बीना ने कहा.
‘‘ सब से बड़ी विचित्र बात तो तुम्हें पता ही नहीं है.” मोनिस्टा बोली,‘‘ हमारी सब से बड़ी विचित्र बात यह है कि हम मक्खियों का एक जोड़ा चार पीढ़ियों में सवा सौ करोड़ मक्खियां उत्पन्न कर देता है. यदि सभी मक्खियां जीवित रहे तो छह महिनें में पूरे संसार में छह फुट ऊंचा ढेर लग जाए.”
‘‘ अरे बाप रे.” बीना चौकते हुए बोली,‘‘ तो क्या सभी मक्खियां जीवित नहीं रहती है.”
‘‘ हां. तभी तो हम कम पड़ती रहती है.” मोनिस्टा ने बताया.
तभी बीना ने देखा कि सामने से एक बड़ासा भंवरा आ रहा था. वह मक्खी से टकराता तो उस का कचूमर निकल जाता. मगर मोनिस्टा ने शरीर को तीव्र गति से मोड़ कर अपने को नीचे कर लिया. भंवरा उस से टकराता हुआ बचा.
यह देख कर बीना बड़ी खुश हुई. मोनिस्टा ने अपनेआप को बड़े से भंवरे से बचा लिया था,‘‘ तुम्हारे शरीर में तो बहुत लचक है.”
‘‘ क्यों कि हमारा शरीर प्रोटीन व काइटिन जैसे लचकदार तत्व से बना होता है. और जानती हो कि मेरे शरीर के तीन भाग होते हैं- सिर, छाती और पेट.”
मोनिस्टा अभी यह कह पाई थी कि उसे प्रिया आती हुई दिखाई दीं. वह बड़ी तीव्र गति से पास आ रही थी.
‘‘ मोनिस्टा ! हमें जल्दी घर जाना है,” पास आते ही प्रिया ने मोनिस्टा से कहा,‘‘ बीना को उतारों और घर चलो.”
बीना उस से कुछ और पूछती, उस के पहले ही मोनिस्टा उस से ‘‘बायबाय बीना !” कहते हुए तेजी से उड़ती हुई चली गईं.
तभी झटका लगा और बीना की आंख खुल गई. वह बिस्तर से नीचे गिर पड़ी थी. इसलिए आंख मलते हुए उठ बैठी. मगर, आंख खुलते ही उसे लगा कि वह तो सपना देख रही थी. मगर सपने में उस ने अच्छी जानकारी एकत्र कर ली थीं. इस बात की उसे खुशी थी.
इस के बाद से उस ने मक्खियों को ‘गंदा’ कहना छोड़ दिया.
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कांवकांव का भूत
दो भाई थे. एक चींचीं और मीमी. इन में मीमी बहुत छोटा था. वह अभी उड़ना नहीं सीखा था. इसलिए जब भी चिड़िया मां कही जाती तो चींचीं को घोंसले में छोड़ जाती थी.
चींचीं बहुत होशियार था. वह अपने छोटे भाई मीमी का बहुत ख्याल रखता था. उसे किस्सेकहानियां सुनाता. इस तरह मां की अनुपस्थिति में दोनों अपना समय बीताते. मगर, चींचीं में एक आदत बहुत खराब थी. वह काले रंग से बहुत चिढ़ता था इसलिए वह पड़ोस में रहने वाले कालू कौआ उसे अच्छा नहीं लगता था. वह उस कालू कौए का चिढ़ाया करता था।
मां ने कई बार चींचीं को समझाया, ‘‘ किसी को बुरा नहीं बोलना चाहिए.”
मगर, चींचीं मां की यहीं बात नहीं मानता था. वह मां से कहता, ‘‘ मां ! यह कालाकलूटा कौआ मुझे पसंद नहीं है. यह कौआ दिखने में कितना भद्दा लगता है. फिर यह हमारे किस काम का है जो मैं उस से वास्ता रखूं.”
मां उसे समझाती, ‘‘ बेटा ! रंगरूप से कुछ नहीं होता है. जीवों में गुण देखना चाहिए. जिस में गुण होते है वहीं पूजा जाता है.”
‘‘ मगर मां, इस काले कौए में क्या गुण है ? जरा मुझे भी बताना. यह हमारे किस काम आ सकता है ?” चींचीं कहता , ‘‘ इसलिए मुझे जब भी यह मिलेगा, मैं उसे कालाकलूटा कह कर चिढ़ाऊंगा.”
इसी कारण वह कालू कौए को कालूकलौटा कह कर चिढ़ाया करता था.
‘‘ अरे कालूकलोटे ! क्या कर रहे हो ? आज कुछ काम नहीं है. जो यहांवहां डोल रहे हो ?” यह कह कर चींचीं कालू कौए को छेड़ा करता था.
मगर, कालू कौआ कुछ नहीं बोलता. उसे चुप देख कर चींचीं उसे ओर ज्यादा छेड़ कर कहता, ‘‘ रंग के साथ जुबान भी नहीं है. बोलते क्यों नहीं कलमुंहे ?”
तब कालू मन मसोस कर रह जाता. उसे गुस्सा भी बहुत आता. मगर, वह चींचीं के मुंह नहीं लगना चाहता था. वह छोटा बच्चा था. उस की मां उस की अच्छी पड़ोसन थी. जब वह बीमार हुआ था, तब उसी ने कालू कौए की देखभाल की थी. इसलिए वह चींचीं को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता था.
कालू कौआ चाहता तो चींचीं को डरा सकता था. चींचीं में कितना दम था. वह उसे एक पंजा मार कर घायल कर सकता था. मगर, उस ने कभी ऐसा नहीं किया. वह उसे नादान समझ कर माफ कर देता.
एक दिन की बात है. चिड़िया मां कही गई थी. वह देर तक घर नहीं आई. अंधेरा होने लगा था. उसी समय वहां सांपू सांप आ गया. उस ने चींचीं और उस के छोटे भाई को पेड़ पर देख लिया था. उस के आपसपास कोई नहीं था. इसलिए वह उन्हें खाना चाहता था. इसलिए चुपचाप पेड़ पर चढ़ने लगा.
कालू कौआ पेड़ पर बैठा था. वह काला था इसलिए पेड़ पर किसी को दिखाई नहीं दे रहा था. उस ने पेड़ पर किसी के रेंगने की आवाज सुनी. उस ने गौर से कान आवाज की ओर लगाए. पेड़ पर सांपू सांप रेंग कर चढ़ रहा था. उस का इरादा ठीक नहीं था. वह धीरेधीरे चींचीं और मीमी की ओर बढ़ रहा है.
चींचीं ने सांपू सांप को देख लिया था. वह चींचीं कर के चिल्लाने लगा. पेड़ पर उसे कोई दिखाई नहीं दे रहा था. जो सांपू सांप को घोंसले की ओर बढ़ने से रोक सकता.
यह देख कर चींचीं जोर से चिल्लाने लगा. फिर धीरे से घोंसला छोड़ कर उड़ गया. तब घोंसले के आसपास मंडराने लगा. सांपू सांप धीरेधीरे आगे बढ़ रहा था. मीमी का बचना मुश्किल था. चींचीं यह देख कर जोर से चिल्ला पड़ा, ‘‘ बचाओ ! बचाओ ! सांपू से बचाओ !”
कालू कौआ यह सुन कर उड़ा. सांपू सांप की ओर बढ़ा. उस ने सोचा कि मुझे मीमी को बचाना पडेगा. चींचीं की माँ ने मेरी बहुत सहायता की थी. मगर, कैसे बचाए ? यह उसे समझ में नहीं आ रहा था. सांपू सांप बहुत बड़ा और खतरनाक था. उसे देख कर कालू डर लगने लगा.
उस ने सोचा, डरने से काम नहीं चलेगा.‘ मुझे हिम्मत से काम लेना पडेगा. मगर, मैं क्या करें कि मीमी बच जाए. सांपू सांप भी मेरा नुकसान नहीं कर सकें,’ .कालू ने इसी दिशा में सोचना जारी रखा. तभी उसे एक तरकीब याद आ गई.
वह तेजी से उड़ा. उड़ कर सांपू सांप के पास गया. उस की पूंछ पकड़ ली. जम कर डाल पर पैर गड़ा कर खड़ा हो गया.
सांपू ने आगे बढ़ने के लिए जोर लगाया. मगर, यह क्या उस की पूंछ कहीं अटक गई थी. उस ने दोबरार जोर लगाया. इधर कालू ने जोर से पूंछ खींची. इस से पूछ पर दांत गड़ गए. सांपू सांप की चींख निकल गई.
‘‘ अरे ! कौन दुष्ट है ?” वह फन फैला कर पलटा.
कालू कौआ होशियार था. वह पूछं छोंड़ कर उड़ने लगा. फिर उड़ते हुए कांवकांव चिल्लाने लगा.
‘ अरे यह तो कालू कौआ है,” सांपू सांप पलटा. इस से क्या डराना ? फिर वह सीधी हो कर घोंसले की ओर बढ़ने लगा.
कालू ने दोबारा हमला किया. इस बार उस ने जम कर पूछं पर दांत गढ़ाए थे. साथ ही वह जोर से कांवकांव चिल्ला रहा था. इस से पेड़ के आसपास बैठे 4 कौए आ उड़ कर वहां आ गए. उन्हों ने जब कालू कौए को सांप से लड़ते देखा तो वे भी सांपू सांप के ऊपर हमला करने लगे. क्यों कि सांपू सांप ने उन कौओ के अंडे भी कई बार खा लिए थे. इसलिए सभी कौए उस से परेशान थे.
सब कौए एक साथ कांवकांव कर के सांपू सांप पर टूट पड़े. सांपू सांप इस हमले के लिए तैयार नहीं था. वह कौओ से बचने के लिए एक ओर पलटता तो कौए दूसरी ओर से हमला कर देते. वह दूसरी ओर पलटता तो कौए पहली ओर से हमला कर देते. इस से सांपू सांप के शरीर में कई जगह चोंट के निशान हो गए थे.
सांपू सांप कौओं के हमले से परेशान हो गया था. उसे लगने लगा कि वह ज्यादा देर तक कौओं के सामने टिक नहीं पाएंगा. कई कौएं लगातार उस के शरीर पर चोट मारमार रहे थे. उसे लगने लगा कि वह थोड़ी देर भी वह यहां रह तो सभी कौए मिल कर उसे अधमरा कर देंगे. इसलिए उस ने भागने में अपनी भलाई समझी.
ठीक उसी वक्त चींचीं की मां वहां आ गई थी. वह घबराई हुई थी. कही मीमी को सांपू सांप ने खा लिया हो ? यह सोचत हुए वह चींचीं के पास पहुंची.
‘‘ चींचीं बेटा ! तुम ठीक तो हो ?” उस ने पूछा. फिर घोंसले में देख कर बोली, ‘‘ मीमी को कुछ तो नहीं हुआ ?”
‘‘ हां मां, मीमी ठीक है.” डरा हुआ चींचीं कांपती हुई आवाज में बोला, ‘‘ माँ ! वह तो कांवकांव का भूत आ गया. उस ने सांप को मारमार कर भगा दिया. वरना, मीमी को सांपू सांप खा लेता .”
चींचीं की यह बात सुन कर मां हंसी, ‘‘ क्या कहा ? यहां कांवकांव का भूत आया था ?”
‘‘ हां मां, इस अंधेरे में कांवकांव की आवाजे आ रही थी. सांपू सांप ने उस से डर कर भगा दिया.”
‘‘ क्या ? तुम ने वह भूत देखा है .”
‘‘ नहीं मां, यहां अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. बस केवल कांवकांव के भूत की आवाजें सुनाई दे रही थी,” चींचीं के यह कहते ही मां ने कहा, ‘‘ जानते हो वह कांवकांव का भूत कौन था ?”
‘‘ नहीं मां ? बताओ ना वह कौन था ?”
‘‘ वह कालू अंकल थे जिन्हों ने तुम्हें और तुम्हारे भाई की जान बचाई थी.”
“ क्या !” यह सुन कर चींचीं बहुत शरमिंदा हुआ .वह जिस कालू कौए को कालूकलौटा कह कर चिढ़ाता था, उसी कालू कौए ने उस की जान बचाई थी. यह दिमाग में आते ही चींचीं चहक कर बोला, ‘‘ कालू अंकल ! मुझे माफ कर दीजिएगा. मैं आप को चिढ़ाता था मगर, आप ने मेरी जान बचाई. शुक्रिया अंकल.” वह चिल्लाया.
फिर वह रूक कर बोला ,‘‘ अंकल ! मुझे माफ कर दीजिए.”
यह सुन कर कालू कौआ बहुत पसंद हुआ. उस का प्यारा चींचीं को अपनी गलती का अहसास हो गया था. इसलिए कालू कौआ बोला, ‘‘ कोई बात नही बेटा ! तुम्हें अपनी गलती का अहसास हो गया. मेरे लिए यही बहुत है.”
यह सुन कर चींचीं खुश हो गया. आज उस ने एक सबक सीख लिया था. दुनिया में जीव रंगरूप की वजह से नहीं गुण की वजह से भी पूजा जाता है.
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अजीब अंत्याक्षरी
कमल और प्रियंका अपनी मम्मी के साथ मामा के गांव जा रहे थे. रेल में समय बीताने के लिए प्रियंका ने कहा,‘‘ चलो ! हम अंत्याक्षरी खेलते हैं .”
इस पर कमल बोला,‘‘ नहीं यार ! अंत्याक्षरी क्या खेलना ? इस में मजा नहीं आता है .”
अभी कमल की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि प्रियंका ने कहा,‘‘ नहींनहीं भैया ! हम अजीब तरह की अंत्याक्षरी खेलते हैं,” और अपनी आंख खुशी से मटका दीं.
मम्मी चुप बैठी थी,‘‘ कैसी अंत्याक्षरी ?” उन्हों ने जानना चाहा.
तब प्रियंका बोली,‘‘ मैं एक गाना गाऊंगी और आप लोगों को उस गाने से संबंधित बीमारी बताना पड़ेगी .”
‘‘ क्या !” कमल चौंक पड़ा.
‘‘ जैसे मैं गाना गाती हूं,” कहते हुए प्रियंका ने गाने की एक लाइन गुनगुना दी, ‘‘लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है.”
इस पर कमल ने जवाब दिया,‘‘ बरसात.”
‘‘ नहीं बाबा. यह उत्तर सही नहीं है,” प्रियंका ने कहा,‘‘ यह तो इस का अर्थ है. मैं ने कहा था कि किसी बीमारी का नाम बताना है .”
उसे कुछ समझ में नहीं आया, ‘‘ तू ही बता दें .”
‘‘ बीमारी है दस्त.”
‘‘ ओह ! लगी आज सावन कि फिर झड़ी है. वाकई सही बात कही है,” कमल को एक गाने की लाइन याद आ गई थी. वह गुनगुनाने लगा,‘‘ तुझे याद न मेरी आई, किसी से अब क्या कहना.”
प्रियंका को इस का उत्तर याद था. उस ने झट से कहा, ‘‘ याददाष्त कमजोर होना.”
‘‘ सही है,” मम्मी ने कहा. उन्हें भी इस अजीब अंत्याक्षरी में मजा आने लगा था. उन्हों ने दिमाग पर जोर डाला. फिर एक लाइन गुनगुना दी,‘‘ तुझ में रब दिखता है यारा. मैं क्या करूं.”
कमल को उत्तर देने की जल्दी थी. वह बोला,‘‘ प्यार होना.”
‘‘ किस से ?” मम्मी ने पूछा तो कमल ने जवाब दिया,‘‘ कुदरत से.”
इस पर प्रियंका बोली,‘‘ यह बीमारी नहीं है .”
तब तक मम्मी को जवाब याद आ गया था. मगर, वे कुछ नहीं बोली. जब किसी ने कोई जवाब नहीं दिया तब मम्मी ने बताया,‘‘ बीमारी - मोतियाबिंद.”
‘‘ या फिर कम दिखना,” प्रियंका ने कहा,‘‘ यह ठीक है.”
‘‘ अब मैं गाऊंगी,” कहते हुए प्रियंका ने अगले गाने का मुखड़ा दोहरा दिया, ‘‘हाय रे हाय ! नींद नहीं आए.”
इस पर कमल ने जवाब दिया,‘‘ अनिंद्रा.”
‘‘ सही,” मम्मी ने कहा, ‘‘ बीड़ी जलाई ले, जिगर से पिया. जिगर में बड़ी आग है. इस का उत्तर बताइए .”
‘‘ तड़फ.” कमल ने कहा.
‘‘ नहीं .” मम्मी बोली.
‘‘ अब, आप बताइए,” प्रियंका थोड़ी देर बाद बोली तो मम्मी ने जवाब दिया, ‘‘एसीडिटी या फिर सीने में जलन.”
‘‘ वाह मम्मी ! मजा आ गया.”
‘‘ अब मैं सुनाता हूं,” कमल ने प्रियंका को रोकते हुए कहा,‘‘ सुहानी रात ढल चुकी है. न जाने तुम कब आओगे .”
यह सुन कर कुछ देर तक सन्नाटा पसरा रहा. किसी ने कोई जवाब नहीं दिया. सब सोचने लगे. फिर अचानक प्रियंका ने जवाब दिया,‘‘ कब्ज.”
‘‘ वाह ! क्या जवाब है,” पास ही बैठी एक लड़की ने कहा,‘‘ अब मैं सुना सकती हूं.” उस ने सभी से अनुमति मांगी.
‘‘ क्यों नहीं ,” प्रियंका बोली,‘‘ आप का स्वागत है.”
तब उस लड़की ने एक गाना गाया,‘‘ जिया धड़कधड़क जाए.”
‘‘ उच्च रक्तचाप .” कमल ने जवाब दिया और फिर एक मुखड़ा सुना दिया,‘‘ तड़फतड़फ के इस दिल से आह निकलती है.
‘‘ इस का उत्तर बताइए.”
यह सुन कर डिब्बे में कुछ देरी खामोशी रही. फिर मम्मी ने जवाब दिया,‘‘ हार्ट हटैक.”
‘‘ सही है मम्मी,” प्रियंका ने कहा ,‘‘ अब मेरी बारी है.”
‘‘ सुनाओ.”
‘‘ जिया जले, जान जले, रात भर धुआं चले.”
‘‘ बुखार,‘‘ कमल ने कहा,‘‘ अब तुम बताओ ?” कहते हुए उस ने एक गाने की लाइन सुना दी, ‘‘ मेरा मन डोलें, मेरा तन डोले.”
‘‘ इस का उत्तर आसान है. चक्कर आना.” पास वाली लड़की बोली तो मम्मी ने कहा, ‘‘ बताना भी नहीं आता, छूपाना भी नहीं आता. इस का उत्तर बताइए.”
सभी यह सुन कर खामोश रह गए. ऐसी कौनसी बीमारी है. जिसे बताना भी नहीं आता और छूपना भी नहीं आता है. मगर, उन्हें इस का उत्तर नहीं मिला. किसी ने कुछ जवाब दिया. किसी ने कुछ जवाब दिया. मगर, किसी का सही उत्तर नहीं था.
अंत में मम्मी ने कहा,‘‘ बवासीर.”
इसे सुन कर सभी खुश हो गए.
पास में ही एक बुजुर्ग महिला बैठी थी. उसे भी मजा आ रहा था. वह बोली,‘‘ अब एक लाइन मैं सुना दूं ?”
‘‘ क्यों नहीं मांजी, “ मम्मी ने उन से कहा तो वे बोली, ‘‘ टिप-टिप बरसा पानी, पानी ने आग लगाई.
‘‘ अब इस का उत्तर बताइए.”
सभी उत्तर सोचने लगे. तभी मम्मी ने जवाब दिया,‘‘ यूरिन इंफेक्षन.”
‘‘सही है,” प्रियंका ने कहा तभी कमल चिल्ला पड़ा, ‘‘ मम्मी नीमच आ गया.”
सभी का ध्यान बंट गया. उन्हे स्टेशन पर उतरना था. इसलिए सभी सामान संहालने लगे और मजेदार अंत्याक्षरी पर विराम लग गया.
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