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खुल जा पहाड़

खुल जा पहाड़ :
 काठगोदाम पर खड़े होकर मन करता है कहूँ," खुल जा पहाड़" और पहाड़ खुलने लगता है।   उसके खुलते ही मन सरकने लगता है सर्पाकार सड़कों पर और दृष्टि दौड़ने लगती है घने जंगलों में। दोगांव पर चाय पी सकते हैं और मौसम हो तो मक्के भी खा सकते हैं। पहाड़ के देवताओं के बारे में अनेक कहानियां मन से गुजरने लगती हैं। पहाड़ पर चढ़ते जाइये और ठंड की कोमलता और कठोरता दोनों महसूस होने लगती है। हनुमानगढ़ी के पास पहुंच कर " खुल जा पहाड़" कहते ही नैनी झील दिखने लगती है।भीड़ में आप अकेले हैं। 
 मन में आता है गुनगुनी धूप हो। हवाओं के झोंके हों। सुबह हो और किसी से मिलने का मन करे। और धीरे-धीरे कदम उस ओर बढ़ने लगें। जहाँ आप जाना चाहते हैं , वहां का रास्ता टूटा हो और आप लम्बे रास्ते से वहां पहुंचते हों। लेकिन वहां कोई नहीं है, सन्नाटा है आपके लिए। आप बैठ जाते हैं वृक्ष के नीचे , भगवान बुद्ध की तरह। उधर से एक साँप निकलता है और आपको छूता हुआ निकल जाता है। आपको आभास होता है कि एक चमत्कारी शक्ति मन में भर गयी है। जो भी आपके संसर्ग में आता है उसका भला होने लगता है।
पास में प्यार का एक वृक्ष है जो सबको दिखायी नहीं देता है। यह ऐसा वृक्ष है जिसमें हर प्राणी चढ़ सकता है। युगों से यह वृक्ष है। कहते हैं ऐसे ही एक वृक्ष में कृष्ण भगवान लेटे थे और राधा के विषय में सोच रहे थे। तभी भील जरा ने तीर चला कर उनका इस लोक का जीवन समाप्त कर दिया था।
फिर मन कहता है" खुल जा पहाड़।" पहाड़ों की बहुत सी हड्डियां दिखायी देती हैं। कुछ हड्डियां ठीक-ठाक हैं, कुछ टूट रही हैं और कुछ टूट चुकी हैं।
कुछ नदियों में पानी है, कुछ सूखने की कगार पर हैं, कुछ सूख चुकी हैं। एक नदी ऐसी भी है जो दिन में बहती है और रात को सूख जाती है। कहा जाता है इसमें देवता नहाते हैं। रात में जब भूतों का आना-जाना होता है तो यह सूख जाती है।
ऊँचे हिमालय क्षेत्र में ब्रह्म कमल होता है। कहते हैं, यह फूल आधी रात बाद खिलता है और सुबह से पहले मुरझा जाता है और साल में एकबार खिलता है। इसे खिला देखना शुभ माना जाता है, मुराद पूरी करने वाला। इस फूल की पूजा की जाती है।इसकी सुगंध तेज होती है। कहा जाता है द्रौपदी ने इसकी तीव्र सुगंध पाते ही इसे प्राप्त करना चाहा। भीम इसको लाने जाते हैं। रास्ते में हनुमान जी बैठे मिल जाते हैं। वे अपनी पूँछ से उनका रास्ता रोक देते हैं। जब भीम पूँछ उठाने का प्रयत्न करते हैं तो उसे उठा नहीं पाते हैं। फिर वे हनुमानजी को प्रणाम कर, उनकी अनुमति लेकर, ब्रह्म कमल लेने जाते हैं।
नैनीताल से भवाली आते समय पहाड़ खुलते जाते हैं। हवा में एक दैवीय प्रवाह और प्रभाव महसूस होता है। पहाड़ों पर बने घर और भवाली के होटल मन को सजाने का काम करते हैं। वृक्ष उसमें अतिरिक्त, आवश्यक सौंदर्य भर देते हैं। ठंड में चाय अलग आनंद देती है। गाड़ के किनारे सर्पिल आवागमन जीवन के लिए आवश्यक लगता है। लम्बी सांस भर कर बांझ के पेड़ों से आती हवा को फेफड़ों में हर कोई भर लेना चाहता है। लेकिन जिन्हें उल्टियां होती हैं या जो नींद में होते हैं, वे इस प्राकृतिक सौंदर्य से वंचित रह जाते हैं। कैंची पर नीम करौली बाबा का मंदिर है। नीम करौली बाबा से अनेक अलौकिक चमत्कार जुड़े हैं, ऐसा कहा जाता है। कई लोग यह भी बताते हैं कि अनेक अवसरों पर उन्होंने उन्हें दर्शन भी दिये हैं। अमेरिकी एप्पल कंपनी और फेसबुक के संस्थापक भी यहाँ आये थे। बताया जाता है उसके बाद उन्हें मनचाही सफलता अपने काम में मिली थी।  वहीं पर बैठा एक व्यक्ति कह रहा है," मेरे संपर्क में जो-जो आया है, उसका भला जरूर हुआ है। साथियों से लेकर परिचितों तक। " वह एक महिला की भी बात कर रहा है जो बिछुड़ गयी थी,लेकिन बहुतों को उन्होंने जोड़ा भी।  दैवीय शक्तियां ऐसे ही काम करती हैं। 
पहाड़ अनिर्वचनीय रूप से मोहते, खुलते जाते हैं। एक विशाल गुफा दिखती है। मान्यता है यह गुफा  स्वर्ग का प्रवेशद्वार थी। अनेक अद्भुत, अलौकिक कहानियां, किस्से इससे जुड़े हैं। बच्चे वहां पर खेल रहे हैं। लोग कहते हैं, यदाकदा यहां से कोई जीव अचानक गायब हो जाता है। फिर उसका कोई पता नहीं चलता है। लोगों का कहना यह भी है कि अश्वत्थामा कभी-कभी यहां आता है। बारह साल में एक साधु यहां दिखता है जिसके हाथ में अमृत से भरा कमण्डल होता है। लेकिन अमृत पीने के लिए कोई अभी तक उसके पास नहीं गया है। वह अमृत की एक-दो बूंद गुफा में डाल देता है। और बैठकर पृथ्वी की पूजा करता है।
एक लड़का कहता है कि जब सामने के पेड़ पर कफन लटका दिखता है तो किसी न किसी की मृत्यु पास के क्षेत्र में अवश्य होती है। कभी शंख ध्वनि गुफा से सुनायी देती है। रात में लगता है कि कोई सभा गुफा पर चल रही है। हर निर्णय को वे आकाश की ओर फेंक, खुशी जाहिर करते हैं।
लोगों ने गुफा से शेर निकलते हुए भी देखा है। वह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता है। बकरियां और अन्य जानवर उसके आसपास दिखायी देती हैं।भूख लगने पर वह गुफा द्वार पर पड़े पत्थर को चाटता है और उसकी भूख मिट जाती है। महिनों तक फिर वह हिमालय की यात्रा करता है। लोग नन्दा की सवारी के रूप में उसका आदर करते हैं। नन्दा अपने दिव्य रूप में यहां विद्यमान मानी जाती है। लोगों की असीम आस्था उनमें रहती है। इन पहाड़ों को खोलने और बंद करने का काम मानो उन्हीं का है।
 ऐसा विश्वास है कि नन्दा साल में एकबार अल्मोड़ा, नैनीताल और गढ़वाल आती है। हिन्दी, कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषाओं में लोगों  से अपना सम्पर्क बनाती हैं। लोगों  की मन्नतें स्वीकार करती हैं।आशीर्वाद देती हैं। लोगों की मन्नतें सामान्य होती हैं।अजन्मी खुशी के लिए। एक लड़की नन्दा के मंदिर में चिट्ठी पढ़ रही है। 
" माँ, मुझे अच्छा पति मिले। मेरे माता-पिता के कष्ट दूर कर देना। हमारे गांव-शहरों में अच्छाई बिखेर देना। मेरे देश को भारत बना देना जो अपनी भाषा बोले।मेरे देश के लोगों की उड़ान ऊँची हो।फसल अच्छी हो, पानी स्वच्छ हो। सच्चाई बनी रहे। काफल, बेड़ू, बुरुस के गाने बजते रहें। घुघूती, द्वो चड़खुल बोलते रहें। माँ, अपने मायके को कुशल रखना।  मैं तेरे नाम के हर महीने उपवास रखूंगी। 

***महेश रौतेला

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