(अागे कहानीमे हमने देखा की गुलशन की अम्मी गुलशन को जिन्नात के साथ देखकर गबरा जाती हैं..!
गुलशन का ईस तरह अपने होशो हवास खोना और जिन्नात के साथ संवनन मे मग्न होना उनके दिमाग को भन्ना कर रख देता है.. !
जिन्नात को अपनी बेगम के साथ बिताये जाने वाले कमसिन लम्हो को कोई देख रहा है वो समजते देर नही लगती..!
गुलशन के शरीर का सहारा लेकर वो गुलशन की मा को आगाह करता है..!
फिरभी गुलशन की अम्मी अपने शोहर को सारी बात बताने की ठान लेती हैं तो जिन्नात उसकी बेटी के जरीये ही उसके शोहर को मोत के घाट उतार देता हैं..!
अब आगे..!)
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फज्र का वक्त था!
सारी रात गुलशन की अम्मीने बैठ कर गुजारी थी!
अब नाटक को अंजाम देने का वक्त था!
ईस वक्त उसके देवर जेठ का परिवार नमाज के लिये उठ जाया करता था!
सोच समजकर वो चिल्लाई..!
"
गुलशन...! हाय.. रे गुलशन देख तेरे अब्बू को क्या हो गया..? वो कूछ बोल क्यू नही रहे..? "
अम्मी की चिल्लाहट सूनकर गुलशन भाग कर बाहर आई..!
अपने पिता को निश्चेत पडा देखकर उसके चहेरे का रंग उड गया..
"अब्बू.. मेरे अब्बू.. ! ये आपको क्या होगया..!?"
केहकर वो जोरोसे चीखकर रोने लगी!
गुलशन जिस तरह से रो रही थी उसकी अम्मी को समज मे आ गया की रात की धटनाए उसके दिमाग से बाहर थी!
उसे कुछ भी याद नही था!
दोनो की रोने चिल्लाने की आवाजे सूनकर बगल वाले मकान से देवर-देवरानी जेठ-जेठानी बोखलाये हुये आ गये !
दोनो भाइओने हाथ की नस देखी..!
और धडकन चेक की..!
फिर दोनो ने आंखो के ईशारे से सारा माजरा समज लिया! ओर अपनी बीवीआँ को गुलशन और उसकी माँ को सम्हालने मे लगा दिया..!
सबकुछ अपनी सोच के अनूसार होता देख गुलशन की मा को भीतरी उचाट थोडा कम हो गया था!
अपने शोहर के मरने का सदमा था!
और सबसे बडा सदमा तो उसके सामने ही मौजूद था!
जिसके बारे मे वो भूलकर भी कीसी को बताना नही चाहती थी!
उसके शोहर की मृत्यु का मस्जिदो मे एलान करवाया गया..! जनाजे का वक्त मूकर्रर कर दीया गया..!
बहोत अच्छे और मिलनसार स्वभाव होने के कारन जिन लोगो ने उनकी मृत्यु के बारे मे सूना लोग आते गये!
क्योकि उनका अच्छी भली सेहत मे आकस्मिक गुजर जाना नजदीकी लोगो के लिये असह्य आघात जैसा था..!
लोग तरह तरह की बाते कर रहे थे!
सारे परिवार मे मातम का माहोल था!
गुलशन अपने बाप की हत्या करके अब बिलख बिलख कर रो रही थी!
और वो लम्हा भी आ गया जब एक बेमोत मरे ईन्सान का जनाजा उठा लिया गया!
ऱूख्सत होते शोहर को गुलशन की माँने आखरी बार देखा!
जब सारे लोग चले गये तब गुलशन ने अपनी माँ का हाथ थामा!
हाथो मे कडा पन महेसूस होते ही उन्होने घबरा कर गुलशन को देखा..!
कुछ वक्त पहेले जो गुलशन रो रोकर अपना आपा खो रही थी वही गुलशन ईस वक्त बडी बेहयाई सी मूस्कुरा रही थी!
ईसके चहेरे के पीछे एक दरिंदा छूपा था!
जो गुलशन पर हावी होकर सबकुछ करवा रहा था..!
और भी न जाने कितने वैशी रूप ईसके देखने बाकि थे!
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लेकिन प्रेम कहानी तो ईस हादसे से पहेले शूरू हो चूकिथी!
जिसका जराभी अंदेशे से गुलशन की माँ अलिप्त थी!
वैशाखी हवाओ का तपता हवामान शरीर को जला रहा था!
गरमी का मोसम उसके लिए हमेशां त्रासदायक था!
शहेरो के मुकाबले गांव का विकास मंद है फिरभी गांव बडे बडे कस्बो मे बदल रहे थे!
गुलशन को उसने पहेली बार कोलेज मे देखा था!
गुलशन के रुपका निखार उस पर हावी था!
जन्नत की कोई हूर धरती पर रास्ता भूल गई हो एसे देहवैभव ने खलिल को मंत्रमूग्ध कर दिया था!
मन ही मन उसने सोच लिया था कि
मेरी जिंदगी मे गर कोई साथी होगा तो वो गुलशन ही होगी!
एक बार कालेज से वापस लोटते वक्त उसने अपना बूलेट सडक पर चल रही गुलशन के करिब रोका
कोलेज मे निरूपद्रवी ईमेज की वजह से कोईभी उससे गभराता नही था!
चलो आप को छोड देंगे..!
आपसे दो बात केहनी है बाकी खलिल के बुलेट पर पीछे बैठने की किसी की औकात नही..!
"ऐसा हैं क्या..? "
गुलशन भी अपने बडबोले निखालस नेचर से लडको मे चर्चा का विषय बनी हुई थी!
कुछ भी बोलने मे उसे शर्म नही आती थी!
न जाने कितने मजनुओ को उसने करारा जवाब दिया था!
पर खलिल की बात ही कुछ और थी!
उसकी भाववाही नीली आँखे किसी को भी मंत्रमुग्ध कर देने का सामर्थ्य रखती थी!
अगर मै आपकी मेहरबानी का ईनकार करू तो.. ?
गुलशन ने खलिल को शरारती नजरो से देखा था!
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(क्रमश:)
कहानी के बारेमे आपकी रायसे हमे अवगत जरूर कराये..
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