फिर से - 2 Ambalika Sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

  • अंगद - एक योद्धा। - 9

    अब अंगद के जीवन में एक नई यात्रा की शुरुआत हुई। यह आरंभ था न...

श्रेणी
शेयर करे

फिर से - 2

( 2 )

“वी आर अएक्चुअल्ली गोयिंग टू इंट्रोड्यूस अ न्यू सॉफ्टवेर इन यौर कॉलेज” नवीन ने सबको बताया|

उसकी आवाज़ से रिया की तंद्रा टूटी| अपने भावों को आँखों मे छुपा कर चुपके से सुनती रही| पर नवीन ने उसकी तरफ कोई ध्यान नही दिया| उस उधेड़ बुन मे पूरा एक घंटा कैसे निकल लगा पता ही नही चला| कुछ नहीं सुना के उसने क्या बताया| या किसी ने कुछ पूछा भी होगा अगर| रिया तो बस अपने अतीत मे डूब गयी थी|

“इट इस एनफ फॉर टुडे| कल आप प्रैक्टिकली सॉफ्टवेर को ऑपरेट करना सीखेंगे|”

“बाइ एवेरिवन”

सब ने अपने बैग्स उठाए और बाहर की ओर निकालने लगे| किसी के बैग की ठोकर से रिया का पेन नीचे गिर गया| वो पेन उठाने लगी| आख़िर मे बाहर निकल ही रही थी के अचानक उसके पैर ठिठक गये|

“रिया!”

जिस की आवाज़ मे खुद का नाम सुनने के लिए कान तरस गये थे यह वही आवाज़ थी, लेकिन वो नही मूडी| अपना बैग उठाया और बाहर चल दी| बस मे भी आज ध्यान कहीं ओर ही था|

“मैम्म! मैम्म!”

साथ मे बैठा लकड़ा उसे बुला रहा था|

“येस” ,रिया ने हड़बड़ते हुए कहा|

“आप का घर आ गया”

“ओ येस| थैंक यू बेटा”

रिया बस से उतरी और घर की ओर चली गयी| माँ बाहर ही इंतज़ार कर रही थी|

“आज देर क्यूँ हो गयी बेटा?” माँ ने हाथ से पर्स लेते हुए पूछा|

“हाँ माँ| मैं आपको बताना ही भूल गयी थी| अब एक महीने तक हमारी ट्रैनिंग है| हमारे डिपार्टमेंट के सभी टीचर्स की| तो अब में 4:30 की बस मे आऊँगी” रिया ने घर के अंदर जाते हुए कहा|

“तुम मुँह हाथ धो लो मैं चाए बनाती हूँ” कहती हुई माँ किचन मे चली गयी|”

रिया ने कपड़े बदले और फ्रेश होकर चाए पीने आ गयी| टेबल पर बैठे माँ रिया से बातें कर रही थी|

“रिया, रिया! बेटा ध्यान कहाँ है| मैं कब से बोली जा रही हूँ| “

“हाँ माँ" चाए का कप नीचे रखते हुए रिया ने कहा| कुछ नही बस आज बहुत थक गयी हूँ” रिया ने धीरे से कहा|

“तुम्हारी माँ हूँ मैं सब समझती हूँ| कोई बात तो है| लेकिन ज़बरदस्ती नही पूछूंगी| जब मन हो तब दिल की बात कह देना बेटा|” माँ ने सिर पे हाथ फेरते हुए कहा|

“हाँ माँ” रिया ने माँ के कंधे पर सिर रख दिया|

रात को खाना खाने के बाद रिया अपने कमरे मे सोने आ गयी| मन मे एक बेचैनी थी| जाने क्यूँ जिंदगी हमे दोबारा-दोबारा ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ी कर देती है जहाँ से ना आगे का रास्ता नज़र आता है ना लौटने की कोई डगर| रिया ने अलमारी खोली और नीचे के दराज़ मे रखी वही डायरी निकाली| डायरी के पन्ने खोले तो कितनी ही रंग बिरंगी यादें ताज़ा हो गयी| कुछ पन्ने स्कूल की बातों से भरे थे| पलते पलते कॉलेज टाइम्स लिखा हुआ पेज आया| कुछ देर पन्ने पर हाथ रख फिर उसे पलटा| एक तस्वीर लगी थी| तस्वीर पलटी तो लिखा था “लव यू नवीन”

फिर पढ़ते पढ़ते कॉलेज की यादों मे खो गयी| नवीन और उसकी मुलाक़ात कॉलेज बस मे हुई थी| उस रोज़ बारिश की वजह से बस खचाखच भारी थी| पाँव रखने की भी जगह नही थी| जैसे तैसे रिया और उसकी सहेली भी बस मे चढ़ गये थे| रिया जहाँ खड़ी थी वहाँ बगल मे कुछ लड़के भी खड़े थे| रास्तों के झटकों से सभी को एक दूसरे के धाक्के लग रहे थे| रिया के साथ वाला लड़का जानबूझ कर ज़्यादा उसकी ओर झुक रहा था| रिया को असेहेज महसूस होता देख पास वाली सीट से एक लड़के ने उठ कर उसे सीट दे दी थी| यही था नवीन| भोली सी मुस्कान,लंबा कद| रिया के मन को तो वो उसी वक़्त भा गया था|

अगली रोज़ से नवीन उसके और उसकी सहेली के लिए दो सीटें बचा कर रखा करता| बस मुस्कुराहतों मे ही दोनो की बातें होती| उस रोज़ भी नवीन ने सीट रखी हुई थी| पर आज बात और थी| आज रिया की सहेली नही आई थी कॉलेज| नवीन बार- बार बस से बाहर झाँक रहा था| बेचैनी से घड़ी देख रहा था| जैसे ही रिया बस मे चढ़ी उसके चेहरे पर मुस्कान बिखर गयी|. रिया की आँखें नवीन को ढूँढ रही थी| हर सीट पे नज़रें फिरने के बाद आख़िर मे नवीन बैठा था और रोज़ की तरह आगे वाली सीट खाली थी| रिया सीट पर बैठ गयी| कुछ सोचा फिर मूड कर नवीन को आगे बैठने का इशारा किया| कुछ पल तो दोनो चुप थे| फिर अचानक साथ बोल पड़े, “हेलो”

“हेलो! हाउ आर यू? आइ एम नवीन”

“हेलो! आइ एम रिया”

फिर कुछ देर की चुप्पी के बाद रिया ने कहा, “बाइ द वे थैंक्स फॉर द सीट्स| में कितनी सेल्फिश हूँ ना| आप डेली हमारे लिए सीट रखते हो और मेने शुक्रिया भी अदा भी नही किया|”

“सिर्फ़ तुमहारे लिए”, नवीन ने धीमी सी आवाज़ मे कहा|

“वॉट? कुछ कहा अपने”, रिया ने पूछा|

“नही कुछ नही| इसमे थैंक यू की क्या बात है”

बस ऐसे ही कुछ बातें हुई उनके बीच| 15 मिनट बाद रिया का घर आ गया|

“बाइ”, रिया ने उठते हुए कहा|

“बाइ, टके केयैर रिया”, नवीन ने मुस्कुराते हुए कहा|

अगले एक हफ्ते रिया की सहेली टाइफाइड की वजह से कॉलेज नही आई| उस दिन रिया कॉलेज कैम्पस गार्डन मे बेंच पर बैठी थी| अपने सब्जेक्ट की कोई बुक पढ़ रही थी| इतने मे अचानक से कोई बगल मे आकर बैठ गया| रिया चौंक गयी|

“ऊफ्फ आपने तो मुझे डरा ही दिया”, रिया ने हंसते हुए नवीन से कहा|

“ऐसा क्या पढ़ रही हो के दुनिया की खबर ही नही?” नवीन ने किताब मे झँकते हुए पूछा|

“लिटरेचर” रिया ने जवाब दिया|

“अच्छा| मुझे तो कंप्यूटर्स पसंद है” नवीन ने कहा|

“अच्छा जी” रिया हंस दी|

“रिया चलो ना कॅंटीन, कुछ खा लेते है” नवीन ने कहा|

रिया मना करना चाहती थी क्यूंकी उसने खाना खा लिया था|| पर नवीन का मन रखने के लिए चली गयी|

“कितने लोग है यहाँ| मुझे ज़्यादा भीड़ पसंद नही| तभी मैं यहाँ ज़्यादा आती नहीं हूँ” , रिया ने नवीन से धीमी सी आवाज़ मे कहा|

“ओह्ह सॉरी! अगर तुम्हे पसंद नहीं तो बाहर चलते है” नवीन ने मुड़ते हुए कहा|

“नही, कोई बात नही” ,रिया ने नवीन का हाथ पकड़ रोकते हुए कहा|

रिया ने सकपका कर हाथ हटाया.| कुछ देर दोनो एक दूसरे को देखते रहे| रिया का इस तरह हाथ पकड़ कर नवीन को रोकने पर नवीन मुस्कुरा दिया..

“अब चले” रिया ने इशारा किया.|

“हाँ चलो चलो” नवीन ने कहा.|

दोनो ने लंच किया फिर अपनी क्लासिस मे चले गये| शाम को फिर बस मे साथ ही बैठे थे| ऐसे ही पूरा हफ़्ता बीत गया और दोनो को एक दूसरे को जानने का मौका मिल गया|

ऐसे ही महीना बीत गया| दीवाली की छुट्टियाँ पड़ने वाली थी और सभी स्टूडेंट्स अपने घर जा रहे थे| तो बस मे नवीन पीछे बैठा था| उसने रिया को एक बुक दी|

“ये आपकी बुक है रिया? नीचे गिरी थी” नवीन ने कहा|

रिया जानती थी ये बुक उसकी नही| पर फिर भी उसने रख ली क्यूंकी बाकियों की नज़रों मे वे अंजान थे|

“थैंक यू”

रिया जब बस से उतरने वाली थी तो नवीन देख रहा था के शायद वो मूड जाए| रिया मूडी और मुस्कुराइ| नवीन ने हाथ से बाइ कहा| बस फिर दो हफ्तों की छुट्टियाँ थी| एक दो दिन तो घर की सफाई मे ही बीत गये| रिया के पापा आर्मी मे थे तो कम ही घर आते थे| उनकी कमी लेकिन हमेशा रहती थी| दीवलाई की सुबह रिया नहा धो कर ताइयर हो रही थी| जो ब्रेस्लेट उसने पहनना था वो अलमारी मे रखा था| रिया ने अलमारी खोली तो सामने वही किताब थी| रिया तो इसके बारे मे भूल ही गयी थी| बैड पर बैठ कर रिया ने किताब खोली| कंप्यूटर लेंग्वेज की बुक थी|

“अब नवीन ने ये किताब मुझे क्यूँ दी?” रिया सोचती हुई पन्ने पलट रही थी|

अचानक उसकी नज़र पन्नो के बीच रखे छोटे से काग़ज़ के टुकड़े पर गयी| उसने टुकड़ा बाहर निकाला| नंबर लिखा था और उसके पीछे लिखा था, “वक़्त लगे तो कॉल मी ओके| इफ़ यू लाइक”

रिया मुस्कुरा दी|