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माया एक प्रेम कहानी

‘माया’ एक प्रेम कहानी

प्रणय ने दरवाजा खोल कर साक्षात्कार के लिए जैसे ही अंदर प्रवेश किया, माया उसको देखती ही रह गयी, छः फुटा सांवला युवक प्रथम दृष्टि में ही माया को ऐसा भाया कि वह अपनी भावना के विमान पर सवार होकर उस युवक के संग कहीं दूर गगन में विचरने लगी....

माया के सहयोगी ने युवक को बैठ जाने के लिए कहा और माया के विचारों में खोये चेहरे के सामने चुटकी बजा कर माया की तंद्रा भंग की...

भारत भूमि नामक समाचार पत्र की मुख्य संपादक माया ने उस दिन सह सम्पादक पद के साक्षात्कार हेतु काफी युवक युवतियों को बुलाया हुआ था, प्रणय उस दिन का सबसे बाद वाला आवेदक था....

प्रणय ने दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्राचार में स्नातकोत्तर करने के बाद कई छोटे बड़े समाचार पत्रों एवं साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक पत्रिकायों में काम किया था....

प्रणय को अपने कार्य का पूर्ण ज्ञान होने के कारण वह सभी पूछे गए सवालों का सही सही जवाब दे रहा था कि तभी माया ने पूछा, “क्या आपकी शादी हो गयी?”

अचानक इस तरह एक महिला द्वारा पूछा गया यह प्रश्न प्रणय को बड़ा ही अटपटा लगा फिर भी उसने बस इतना ही कहा, “जी नहीं।”

प्रणय को भारत भूमि के सह संपादक के लिए चुन लिया गया और सभी औपचारिकतायेँ पूरी करके शीघ्रतिशीघ्र अपना कार्य भार संभालने के लिए निर्देश दे दिया।

पत्रकारिता में माया एक बड़ा नाम था, जिसने भारत भूमि समाचार पत्र को पंक्ति के अंतिम स्थान से लाकर प्रथम स्थान पर खड़ा कर दिया था, कई पत्रिकायों का भी विमोचन किया और अब समाचार चैनल भी शुरू करने का विचार कर रही थी। माया महत्वाकांक्षी तो थी ही साथ ही उसके अंतसमन में भावनाओं का ज्वार भाटा भी अपने पूरे वेग से उमड़ता घुमड़ता रहता, फिर भी अब तक अकेली ही थी।

इतनी छोटी आयु में इतना सब कुछ कर लेना और नाम कमाना माया की बहुत बड़ी उपलब्धि थी, इस उपलब्धि को पाने के लिए माया ने स्वयं को भुला दिया था, आज तक शादी भी नहीं की और न ही कभी मन में ऐसा विचार आया.... अगर कभी शादी का विचार आया भी तो शीर्ष पर पहुँचने की महत्वकांक्षा में दब कर ही रह गया और अभी तक कोई सुपात्र मिला भी नहीं था।

आज प्रणय को देख कर ना जाने क्यों उसकी भावनाएं पंखों पर सवार होकर इतना ऊंचा कैसे उड़ने लगी....

प्रणय जब भी सामने होता, माया की भावनाएं बेकाबू होकर उस बांध को तोड़ने का प्रयास करती जिसमे उसने वर्षों से इन्हे बांध रखा था....

“यहाँ किसी के साथ रहते हो या अकेले?” प्रणय से माया ने पूछ लिया, “अकेला एक पी जी में रहता हूँ, मेरा घर तो बिहार के अररिया में है, परिवार वहीं रहता है।” माया कों प्रणय ने बताया....

“क्यों ना आप मेरे साथ मेरे फ्लैट में साझा कर लें, मैं भी इतने बड़े फ्लैट में अकेली रहती हूँ, मेरा परिवार भी बिहार के भागल पुर में रहता है।” प्रणय से माया ने कहा।

“आप अकेली हैं, मैं अगर अकेला आकर आपके फ्लैट में साझा करके रहूँगा तो शायद लोग तरह तरह की बातें करने लगेंगे” प्रणय बोला। “अरे! आप भी इतने उच्च स्तर पर पहुँच कर इतनी छोटी सोच रखते हो।” माया बोली, “और हम पत्रकार हैं, हमारे बारे में चर्चा करने वालों की तो हम इतनी चर्चा छाप देंगे कि वह नगर से ही दूर चला जाएगा।”

माया की इस बात पर प्रणय हंसने लगा और बोला, “आप मुझे अपने फ्लैट में बुलाकर ही रहेंगी, ठीक है, मैं कल ही अपना समान लेकर आ जाऊंगा।”

अंदर ही अंदर माया बहुत खुश थी जैसे उसको संसार की सबसे बड़ी खुशी मिल गयी हो....

देर रात तक माया प्रणय के कमरे में बैठी रहती, फिर धीरे धीरे नज़दीकियाँ बढ़ने लगी।

दोनों के बीच नज़दीकियाँ बढ़ते बढ़ते वे इतनी पास आ गए कि कब माया के गर्भ में प्रणय का बीज अंकुरित हो गया ...

बच्चा गर्भ में ही था, प्रणय ने काफी कहा कि क्यों ना हम दोनों शादी कर लें, लेकिन माया शादी के लिए तैयार नहीं हुई, क्योंकि उसे लिव इन रिलेशनशिप में ही रहना ज्यादा पसंद था और वह बंधन में अभी बढ्न नहिंचाहती थी, उसकी मंजीत थू और ऊंची उड़ान भर कर ऊंचाइयों को छू लेना और शीर्ष पर खड़े रहना ....

काफी कोशिशें की मगर गर्भपात नहीं हो पाया और माया ने एक सुंदर लड़के को जन्म दिया, जिसे संसार में आना था उसको वे दोनों रोक न सके....

अभी बेटा एक साल का भी नहीं हुआ था कि माया समाचार पत्र के मालिक रितेश के साथ विदेश चली गयी। विदेश में उसका एक नया चैनल खोलने का काम चल रहा था, वहीं पर रितेश जी ने माया के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया....

रितेश एक बहुत बड़ा नाम, अथाह संपत्ति का मालिक, क्या कुछ नहीं है उसके पास, लेकिन प्रणय और मेरे बेटे सुषेण का क्या होगा, नहीं यह भावना में बहने का समय नहीं है माया, झट से हाँ कह दे, प्रणय अपने बेटे को स्वयं पाल लेगा और मैंने उससे शादी तो नहीं की फिर मुझ पर उसका क्या अधिकार, यह तो लिव इन रिलेशन शिप है जो कभी भी समाप्त की जा सकती है....

माया यह सब सोच ही रही थी कि रितेश ने उसकी तंद्रा चुटकी बजाकर भंग की तभी माया ने हाँ में सिर हिला दिया।

माया कभी वापस नहीं आई, प्रणय से कभी संपर्क भी नहीं किया। प्रणय खुद ही सुषेण को माँ व बाप बन कर पालता रहा.....

सुषेण बड़ा होने लगा, जब भी वह माँ के बारे में पूछता, प्रणय बस यही कहता, “क्या मैं तुम्हारी माँ नहीं हूँ?” इतना कहते कहते प्रणय की आँखों में पानी भर आता, लाख कोशिशों के बाद भी वह माया को भुला नहीं पाया था।

सुषेण अपने पापा से लिपट जाता और अपने ढेर सारे प्यार से उनकी मनःस्थिति को ठीक करने की कोशिश करता....

आसमान में उड़ने वालों को भी कुछ समय बाद जमीन पर आना ही पड़ता है, जितनी ऊंची उड़ान होती है उतनी ही गहराई जमीन पर अचानक गिरने से बन जाती है और वही गहराई मानव को रसातल में समाने पर मजबूर कर देती है।

माया ने भी बहुत ऊंची उड़ान भरी थी और यह भी भूल गयी थी कि उसका एक बच्चा व उससे प्यार करने वाला वहीं जमीन से जुड़े हैं जिस जमीन से वह हजारों किलोमीटर दूर हो गयी।

उड़ते उड़ते एक दिन उसके पंख थक गए और गिरी तो सीधी अस्पताल के बिस्तर पर, कैंसर से पीड़ित माया अकेली रह गयी, रितेश के पास भी उसके लिए समय नहीं था, आज उसको प्रणय की बहुत याद आ रही थी, सोच रही थी कि अब तो उसका बेटा भी बड़ा हो गया होगा।

प्रणय का मन बहुत बेचैन था, सुषेण ने पूछा, “पापा! क्या बात है? मुझे नहीं बताओगे? अब मैं आपके सभी सुख दुख साझा कर सकता हूँ।”

“बेटा मुझे भी पता नहीं, अचानक मेरा मन इतना बेचैन क्यों हो गया, मैं भी समझ नहीं पा रहा हूँ कि क्या अनहोनी होने वाली है।” प्रणय ने सुषेण से कहा....

माया के चले जाने के बाद प्रणय ने भारत भूमि समाचार पत्र छोड़ कर दूसरी जगह नौकरी कर ली थी अतः उसको माया के बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिलती थी और ना ही प्रणय को अब उसकी जानकारी लेने में कोई रुचि थी....

पत्रकारों से अक्सर मेल जोल होता रहता था परंतु वे भी प्रणय के सूख चुके घावों को कुरेद कर हरा नहीं करना चाहते थे और माया के बारे में कोई बात नहीं करते थे।

रमेश ने भी प्रणय के साथ ही भारत भूमि में पत्रकारिता आरंभ की थी, सह संपादक होने के कारण रमेश से प्रणय का काफी लगाव था। रमेश से काफी समय बाद मुलाक़ात हुई तो दोनों एक साथ कॉफी पीने चले गए, कॉफी पीते समय रमेश ने बस इतना ही बताया कि माया कैंसर की आखिरी स्टेज में है और यमुना बैंक हस्पताल में ज़िंदगी और मौत के बीच अकेले ही संघर्ष कर रही है, हालांकि रितेश ने उसका अच्छे से अच्छा इलाज करवाया लेकिन अब वह ज्यादा समय नही दे सकता अतः उसको इस हालत में छोड़ कर अपने कारोबार के चक्कर में बाहर चला गया।

इतना कहकर रमेश चुप हो गया, प्रणय ने पूछा, “वे दोनों तो एक दूसरे से असीमित प्यार करते थे, फिर वह माया को ऐसी हालत में छोड़ कर क्यों चला गया....”

“किसी से कहना नहीं, भाई मैंने तो यह भी सुना है कि वह माया और उसकी बीमारी से तंग आ गया था, इसी बीच उसने एक खूबसूरत लड़की को अपनी सहायक के रूप में रख लिया है और उसके साथ ही विदेश गया है, भाई मैंने तो यहाँ तक भी सुना है कि वे दोनों तो माया के मरने का इंतज़ार कर रहे हैं, माया के मरते ही दोनों शादी भी करने वाले हैं।”

प्रणय स्वयं को रोक ना सका कॉफी का बस एक घूंट ही पिया, बाकी सब छोड़ कर वह यमुना बैंक अस्पताल पहुँच गया। कैंसर ने माया का रंग-रूप, शक्ल सब बदल दिया था, जर्जर हालत में बिस्तर पर आंखे बंद करके मौत का इंतज़ार करती माया को जब प्रणय ने आवाज लगाई, “माया!” माया तुरंत पहचान गयी, आंखे खोली लेकिन आँखों से अश्रु धारा बह निकली, शायद यह माया के आत्मग्लानि के आँसू थे।

“माया, सब दुख अकेले ही सहती रही, मुझे एक बार बताया तो होता” प्रणय ने शिकायत भरे अंदाज में कहा....

“सारे सुख भी तो मैंने अकेले ही भोगे थे, तब मुझे ऐसी आशा कहाँ थी कि आगे दुख भी भोगने होंगे, फिर किस मुंह से बताती तुम्हें।”

प्रणय ने दिन रात माया की पूरी सेवा की लेकिन उसको बचा ना सका, नियति को जो मंजूर था वही हुआ, हाँ उससे पहले प्रणय ने सुषेण को उसकी माँ से मिलवा दिया और सुषेण को उसकी पूरी जीवन यात्रा के बारे में बताकर उसकी सारी गलत फहमी दूर कर दी।

माया सब को छोड़ कर चली गयी उस शीर्ष पर जहां उसको कोई छू भी नहीं सकता था, प्रणय और सुषेण दोनों आँख में आँसू भर कर माया के अंतिम संस्कार के लिए उसके पति रीतेश की प्रतीक्षा करते रहे, लेकिन रीतेश नहीं आये.....

तब प्रणय ने सुषेण को माँ बेटे के रिश्ते का महत्व समझाकर दायित्व पूरा करने के लिए अग्नि शिखा हाथ में थमा दी...

सुषेण ने अश्रु पूर्ण आँखों से हाथ में अग्निशिखा लिए माया की चिता का चक्कर लगाया, पंडितजी मंत्रोचार कर रहे थे तभी सुषेण ने माँ को मुखाग्नि देकर अंतिम विदाई दी फिर उसके पैरों पर अपना सिर रख कर बिलखने लगा, “माँ! मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, लेकिन हम मिले भी तो जीवन के ऐसे मोड पर जहां ना तो मैं कुछ कह सका और ना ही तुमसे कुछ सुन सका।”

प्रणय ने सुषेण के दोनों कंधे पकड़ कर वहाँ से उठाया और अपने गले लगा लिया....

चिता धू धू करके जलने लगी ....

माया पंच तत्व में विलीन हो गयी, आकाश तत्व आकाश में चला गया और पृथ्वी तत्व पृथ्वी पर रह गया, जल जल में, अग्नि अग्नि में और वायु वायु में समा गए...

प्रणय यही सोच रहा था, ‘क्या हम अपने जीवन में ऐसा नहीं कर सकते कि ऊंचाई पर उड़ते समय भी जमीन से जुड़े रहे, उस जमीन से जिसमे हम बीज बन कर अंकुरित होते हैं और बन जाते हैं वट वृक्ष जो देखता तो आसमान की तरफ है लेकिन अपनी जड़ें पूरी शक्ति से जमीन में धँसाये रहता हैं।’

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