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धुंवे की लकीर

धुंवे की लकीर

“माँ! मेरे से नहीं जल रही है इस चूल्हे में आग,” रमा के बार बार फूँक मारने पर भी जब चूल्हे में आग नहीं जली तो उसने परेशान होकर माँ को आवाज दी .....

“बेटा फूंकनी ले ले और फूंकनी से फूँक मारेगी तो आग जल जाएगी” रामवती ने चप्पल ढूंढते हुए ही अपनी बारह साल की बेटी को समझाया.....

शाम का खाना बनाने के लिए रामवती ने उपले तोड़ कर चूल्हे में लगा दिये और थोड़ा सा फूंस उनके बीच में रखकर पड़ोस से मांग कर लायी हुई अंगारी से फूंस में आग जलाने लगी जिससे चूल्हा जल जाए और वह खाना बना सके लेकिन तभी ....

रामवती को पेट में गड़बड़ महसूस हुई और वह अपनी बारह वर्षीय पुत्री रमा को चूल्हे में फूँक मार कर जलाने की जिम्मेवारी देकर जल्दी जल्दी चप्पल पहनकर शौच के लिए खेत की तरफ दौड़ पड़ी ....पेट में गड़बड़ तो दोपहर से ही थी लेकिन शौच के लिए खेत में कैसे जा सकती थी, इतना उजाला जो था, सब लोग भी तो रहते हैं दिन में, सबके सामने कपड़े हटाकर कैसे खेत में शौच के लिए बैठूँगी, बस यही सोच कर शाम तक रोके रखा, लेकिन अब तो रोकना मुश्किल हो रहा था, सूरज तो ढल गया था लेकिन अभी अंधेरा होने में देर थी।

रमवाती गलियों के कीचड़ में ईंटों पर पैर रखकर तेज तेज चली जा रही थी कि तभी कालु की निगाह उस पर पड़ी और वह सोचने लगा, “अरे आज ये भाभी कहाँ भागी जा रही है जरा चल कर देखूँ तो” और कालु भी चुपचाप पीछे पीछे चल दिया.....

गाँव के बीच में घर होने के कारण खेत थोड़ा दूर पड़ता था अतः पहुँचने में थोड़ा समय लगा ऊपर से रास्ता इतना खराब, पूरा कीचड़ और गड्ढों से भरा हुआ। खेत की एक थोड़ी ऊंची मेढ़ के पीछे जाकर रामवती शौच करने बैठ गयी।

कालु पीछा करते हुए वहाँ तक पहुंचा और अचानक उसकी नजर रामवती भाभी पर पड़ गयी। रामवाती को जब कालु ने खेत में शौच करते हुए अर्धनग्न देखा तो वह सोचने लगा, “भाई जो भाभी कभी घूँघट खोल कर अपना मुंह भी नहीं दिखाती आज तो हमें सब कुछ दिख गया, छिः छिः छिः, यह तो पाप हो गया।”

रामवाती कालु को देखती उससे पहले ही वह वहाँ से खिसक लिया, कहीं कोई उसको देख न ले, ऐसा सोच कर वापस अपने घर आकर हुक्का गुड़गुड़ाने लगा। रामवाती ने वहीं मिट्टी के ढेले से पोंछा और घर आ गयी, घर पर आकर बेटी रमा से पानी मांग कर ठीक ढंग से धोया और फिर राख़ से मलकर अपने हाथ धोये।

अब रामवाती को अच्छा लग रहा था, बिटिया ने चूल्हा तो जला दिया था लेकिन पूरे घर में धुआँ भर गया, जिसमे दोनों माँ बेटी को सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था।

पूरे गाँव में चूल्हे जल गए थे जिससे पूरा गाँव धुंवे से भर गया, गाँव के प्रधान का बेटा अनुज कॉलेज की छुट्टिओं में गाँव आया हुआ था, साथ में उसके साथ पढ़ने वाली रीना भी साथ आई थी। रीना को गाँव देखने की बड़ी चाहत थी लेकिन शाम को जब धुंवे से भरे गाँव में रीना को सांस लेना दूभर हो गया तो अनुज उसको लेकर गाँव से बाहर चला गया।

गाँव के बाहर एक पुलिया पर बैठ कर रीना सितारों की जगमगाहट देख रही थी कि उसको गाँव के ऊपर से आसमान की तरफ जाती धुंवे की मोटी लकीर दिखाई दी.....

"अनुज अनुज ! देखो तुम्हारे गाँव से आसमान की तरफ धुंवे की कितनी मोटी लकीर बन गयी है।" रीना ने अनुज को आवाज लगाकर बताया तो अनुज बोला, "रीना तुम गाँव देखने आई थी ना अब तुम्ही देखो, मैं तो यह लकीर बचपन से देखता आया हूँ।"

गाँव के चूल्हों से धुंवा निकलना बंद हो गया था, अनुज रीना को लेकर वापस घर की तरफ चल पड़ा, जैसे ही वे दोनों पगडंडी पर पहुंचे कुछ औरतें अचानक खड़ी हो गईं....

वे सभी औरतें खेत में शौच करने आई थी, अंधेरा हो जाए, सभी लोग घरों में पहुँच जाएँ, खेत खाली हो जाए तो ज़्यादातर औरतें टोली बनाकर ही शौच के लिए आया करती थीं।

रीना ने पूछा, "अनुज! ये औरतें इस समय यहाँ पर क्या कर रहीं हैं?" पहले तो अनुज चुप रहा लेकिन रीना के फिर से पूछने पर बोला, "रीना, ये सब औरतें सुबह शाम खेत में शौच के लिए आती हैं।"

"लेकिन क्यों? क्या इनके घरों में शौचालय नहीं है?" रीना ने पूछा, "नहीं रीना! इस पूरे गाँव में हमारे घर के अलावा किसी भी घर में शौचालय नहीं है, यहाँ से सभी मर्द, औरत, बच्चे खुले में ही शौच के लिए जाते हैं।" अनुज ने बताया।

"अरे! ऐसा है?, यह तो बहुत बुरा है। आपके पापा तो इस गाँव के प्रधान हैं, उन्हे तो इस तरफ ध्यान देना चाहिए।" रीना ने अनुज को नसीहत दी।

घर पहुंचे तो माँ गैस पर खाना बना रही थी, बच्चों को देखा तो बोली, "बच्चों! चलो जल्दी हाथ मुंह धोकर आ जाओ मैं गरमा गरम खाना परोसती हूँ।"

रीना व अनुज ने हाथ मुंह धोया, अनुज तो मेज पर बैठ के खाने की प्रतीक्षा करने लगा लेकिन रीना रसोई में माँ का हाथ बंटाने के लिए चली गयी।

"बेटा! मैं कर लूँगी, तुम दोनों बैठो और आराम से खाने का आनंद लो।" माँ ने कहा.....

"नहीं माँ मैं तो आपके साथ खाऊँगी।" रीना बोली.....

तब तक अनुज के पापा भी आ गए.....

घर में घुसते ही आवाज लगाने लगे, "अरे भाई! खाना बन गया हो तो जल्दी परोस दो, बड़ी ज़ोर से भूख लगी है।"

माँ बोली, "हाँ हाँ, खाना तैयार है हाथ मुंह धोकर बैठो बस अभी परोसती हूँ।"

प्रधान जी चारपाई पर बैठ कर कहने लगे, "मैं हाथ मुंह धोकर ही आया हूँ बस तुम अब जल्दी से खाना ले आओ," फिर अनुज की तरफ देख कर बोले, "अनुज तू भी यहीं आ जा, आज चारपाई पर बैठ कर खाना खाओ, रोज तो वहाँ मैस में मेज कुर्सी पर ही खाते हो।"

अनुज भी उठा और बराबर वाली चारपाई पर जाकर बैठ गया। रीना ने दोनों को खाना परोसा, खाना बड़ा स्वादिष्ट था, भरपेट खाने के बाद दोनों बापू बेटा आपस में बातें करने लगे।

माँ और रीना ने भी खाना खाया उसके बाद रीना भी अनुज के पास जाकर बैठ गयी और उनकी बातों में शामिल हो गयी। रीना ने कहा, "अंकल आप तो इस गाँव के प्रधान हैं फिर भी यहाँ पर अभी तक भी लोग खेत में शौच के लिए जाते हैं और लकड़ी व उपलों के चूल्हे पर खाना बनाते हैं।"

"बिटिया यह गाँव है और इस गाँव पर वर्षों से हमारा राज है और यह राज तब तक ही रहेगा जब तक ये लोग दबे कुचले ही रहेंगे, समस्याओं से घिरे रहेंगे, अगर आज इनको सुविधाएं दे दी गयी तो कल से हमें ही वोट देना बंद कर देंगे, प्रजा को प्रजा ही रखना चाहिए।" प्रधान जी ने समझाया....

"लेकिन अंकल इससे तो महामारी फैलने का खतरा भी बना रहता है और धुंवे से इस गाँव में दमा सांस टी बी जैसी बीमारियाँ बढ़ जाएंगी।" रीना ने बताया.....

लेकिन प्रधान जी इस बात को मानने को ही तैयार नहीं थे बल्कि समझाने लगे, "बेटा शाम को गाँव में धुंवा रहने से मच्छर मर जाते हैं और गाँव वाले डेंगू, चिकनगुनिया जैसी बीमारियों से बचे रहते हैं, और खेत में शौच जाने से खेत में खाद की कमी नहीं होती फसल अच्छी होती है।"

"लेकिन अंकल यह तो इन लोगों के साथ अन्याय है, इन लोगों को भी सम्मान पूर्वक जीवन जीने का अधिकार है, आप प्रधान हैं आपका कर्तव्य है इनका जीवन स्तर सुधारने का, लेकिन लगता है आप यह नहीं करना चाहते लेकिन मैं अब इस गाँव में तब तक रुकूँगी जब तक यहाँ से उठने वाली धुंवे की लकीर समाप्त ना कर दूँ। मैं यहीं पर रुक कर सभी घरों में शौचालय बनवाउंगी और यहाँ की औरतों को खुले में शौच करने से आजादी दिलवाउंगी।"

प्रधान जी क्रोधित होते हुए बोले , "लेकिन बिटिया यहाँ इस गाँव में तुम रहोगी कहाँ, कोई भी मेरी इजाजत के बिना तुम्हें यहाँ नहीं रहने देगा।"

तभी अनुज बोला, "मेरे साथ रहेगी।" अनुज रीना को प्यार करता था और उसको हर तरह का सहयोग करना चाहता था इसके लिए चाहे उसको अपने पिता का ही विरोध क्यों न करना पड़े।

प्रधान जी बोले, "घर तो मेरा है तू कहाँ रखेगा इसको?"

"ठीक है पापा, मैं आपके घर में नहीं रखूँगा, कहीं भी रख लूँगा," और रीना को लेकर अपने गाँव के एक दलित चाचा के यहाँ चला गया, माँ ने बच्चों के साथ जाने की धमकी दी तो प्रधान जी ने उसको सुहाग की कसम देकर जबर्दस्ती रोक लिया।

प्रधान जी ने रात में ही अपने लठैत भेज कर रीना पर हमला करवा दिया जिससे वह बुरी तरह डर जाए और गाँव छोड़ कर भाग जाए।

लठैतों से रीना को बचाते हुए अनुज बुरी तरह घायल हो गया और उसको बेहोशी की हालत में ही रीना शहर के अस्पताल लेकर आ गयी। अनुज के सिर, हाथ, पैर और पसलियों की हड्डियाँ टूट चुकी थी, गुम चोटें लगी थीं उसका बचना नामुमकिन ही था। वैसे तो रीना अनुज को अपना एक अच्छा मित्र ही मानती थी परंतु इस घटना के बाद रीना का नौज से प्यार हो गया और वह किसी भी कीमत पर उसे बचाना चाहती थी।

प्रधान जी और माँ भी अस्पताल पहुँच गए और रीना को इसका ज़िम्मेवार ठहरकर भला बुरा कहने लगे। रीना ने शहर के सबसे अच्छे अस्पताल में अनुज का इलाज़ करवाया, अच्छे से अच्छे विशेषज्ञ डॉक्टर बुलवाए, भगवान को भी मनाया और रीना के प्यार ने अनुज को बचा लिया।

प्रधान जी जब अनुज को अस्पताल से घर ले जाने आए तो अनुज ने जाने से मना कर दिया और कहा, "आपने मुझे जन्म दिया, मुझे पाल पोस कर बड़ा किया लेकिन आपने अपने ही गुंडों से मुझे मरवा भी दिया था अगर रीना उस समय समझदारी नहीं दिखाती तो आपका अनुज तो मर चुका था, फिर अब आप मुझ पर कौन सा अधिकार जताने आए हैं? अब मैं रीना के साथ ही रहूँगा, इसी गाँव में जिसमे आप लोगों को उसके अधिकार से वंचित रखते हैं अब हम दोनों मिल कर गाँव के सभी लोगों को सम्मान पूर्वक जीवन जीने में सहायता करेंगे।"

प्रधान जी का एक ही पुत्र अनुज जिसको वे खो चुके थे लेकिन फिर भी पाने की पूरी कोशिश कर रहे थे।

प्रधान जी भी थे तो मनुष्य ही, भावनाएं उनकी भी थीं, और उसी भावना में बहकर अपनी पगड़ी उतारकर रीना के पिता के हाथों में दे दी और कहा, "लालाजी अब अगर आप चाहे तो यह पगड़ी मेरे सिर पर रखकर मेरी इज्जत और जान दोनों बचा सकते हैं, मैं अपने अनुज के लिए आपकी बेटी रीना का हाथ मांगता हूँ और मैं वादा करता हूँ कि बच्चों की इच्छानुसार गाँव के प्रत्येक नागरिक को सम्मान पूर्वक जीने का अधिकार मिलेगा, सरकार की योजनानुसार उनको गैस भी दिलवाऊंगा और सभी के यहाँ शौचालय भी बनवाऊंगा, सभी गलियाँ और नालियाँ पक्की करवा दूंगा और मैं यह भी वादा करता हूँ कि अगले वर्ष चुनाव में मेरी बहू रीना को मैं प्रधान का चुनाव भी लड़वाऊंगा जिसमे यह अवश्य ही जीतेगी।"

लालाजी ने पगड़ी प्रधान जी के सिर पर रखी और साथ में शगुन देकर रिश्ता पक्का कर दिया।

गाँव को धुंवे की लकीर से, खेत में शौच जाने से और कीचड़ वाली गलियों से तो मुक्ति मिली ही, साथ में अनुज व रीना ने स्टार्टअप, मुद्रा लोन, कौशल विकास और बहुत सारी गरीब कल्याणकारी योजनाओं का लाभ गाँव वालों को दिलवा कर गाँव से युवाओं का पलायन रोक दिया, बेघरों को पक्के घर बनवा कर दिये, गरीबों को मुफ्त चिकत्सा बीमा योजना का लाभ दिलवाया, सभी गरीबों का जनधन खाता खुलवाया, पेंशन योजना का भागीदार बनवाया, किसानों का फसल बीमा करवाया, इस तरह अपने गाँव को एक आदर्श गाँव बना दिया। धुंवे की मोटी लकीर अब गाँव के ऊपर नहीं दिखती और ना ही पगडंडी पर शौच के लिए बैठी औरतें दिखती हैं।

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