स्टार्टअप सक्सेस स्टोरीज़ - सोच बनी सच : ओयो रूम्स Madhu Sharma Katiha द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

स्टार्टअप सक्सेस स्टोरीज़ - सोच बनी सच : ओयो रूम्स

सोच बनी सच : ओयो रूम्स

-मधु शर्मा कटिहा

20 जून, 2018 का दिन.....जापानी बहुराष्ट्रीय होल्डिंग समूह, ‘सॉफ्टबैंक’ के संस्थापक और जापान के धनी व्यक्तियों में से एक, मसायोशी सोन ने स्ट्रैटजिक होल्डिंग कंपनी की वार्षिक बैठक में एक भारतीय कंपनी का पार्टनर बनने की इच्छा व्यक्त करते हुए कहा, “इस कंपनी के विषय में आप लोगों को बताने को मैं उत्सुक हूँ.....इसके संस्थापक की आयु मात्र 23 वर्ष है। उन्होने 19 वर्ष की अल्पायु में इस कंपनी की स्थापना की थी। गत चार वर्षों में यह तीव्र गति से आगे बढ़ी है।” मसायोशी सोन के ये शब्द भारत की सबसे बड़ी होटल शृंखला ‘ओयो रूम्स’ व इसके संस्थापक ‘रितेश अग्रवाल’ के लिए थे। मसायोशी सोन ने चीन में अपने व्यवसाय-विस्तार के लिए ओयो रूम्स से जुड़ने की पेशकश की है।

जिस कंपनी से दुनिया के सबसे बड़े निवेशकों में से एक जुड़ना चाहें, जिस कंपनी के संस्थापक का नाम विश्व-स्तर पर एक पहचान बन जाए, उस व्यक्ति की आयु मात्र 23 वर्ष हो और वह एक अति साधारण परिवार में जन्मा हो तो वह व्यक्तित्व प्रशंसा का पात्र होगा ही......और जब यह व्यक्ति भारत का हो तो प्रत्येक भारतीय के हृदय में सुखद अनुभूति होना स्वाभाविक है। ‘रितेश अग्रवाल’ वही शख्सियत हैं, जो इतनी कम उम्र में एक बड़े उद्योग का संचालन कर रहे हैं। ‘ओयो रूम्स’ का नाम आज एक सफल व्यवसाय के रूप में सर्वविदित है, जो सस्ती कीमतों पर रहने के मानकीकृत अनुभव प्रदान करती है। इसका आरंभ एक छोटे से स्टार्टअप से हुआ था। एंटरप्रेन्योरशिप का यह उत्तम उदाहरण है।

स्टार्टअप एंटरप्रेन्योरशिप

एंटरप्रेन्योरशिप अथवा उद्यमिता व्यवसाय का वह रूप है जहाँ एंटरप्रेन्योर या उद्यमी अपने किसी विचार पर योजना बना उसे एक व्यवसाय का रूप देता है। इससे न केवल उसे लाभ होता है, वरन अन्य लोगों का जीवन स्तर सकारात्मक रूप से प्रभावित होता है। इसके अतिरिक्त वह रोजगार के अवसर भी पैदा करता है। अधिकतर यह व्यवसाय का छोटा रूप होता है।

वास्तव में एंटरप्रेन्योरशिप स्टार्टअप या छोटा व्यवसाय शुरू करने की कला है इसे स्टार्टअप इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह एक नया उभरता व्यवसाय होता है। इसका उद्देश्य किसी उत्पाद या सेवा को व्यावसायिक मॉडल के रूप में विकसित कर बाज़ार की आवश्यकता को पूरा करना होता है। स्टार्टअप परंपरागत कुटीर या लघु उद्योग से इस आधार पर भिन्न हैं कि यह किसी ऐसे आइडिया को बिज़नस में बदलने का नाम है जिसकी सेवाएँ अथवा उत्पाद बाज़ार में नए हों। यह ऐसी समस्या को हल करने वाली कंपनी है, जहाँ समाधान बहुत स्पष्ट नहीं हैं। यदि सफल होकर वह सर्विसेस या प्रोडक्टस लोगों को जितनी सुविधाएं देकर जीवन आसान बनाएगा, उतनी तेज़ी से स्टार्टअप प्रगति करेगा।

किसी भी बिज़नस को निखारने में धन, परिश्रम व समय का बहुत बड़ा हाथ होता है। फिर बात जब स्टार्टअप की हो तो सब नया होने के कारण इन बातों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। सफलता मिले तो वारे न्यारे, अन्यथा असफलता का मुँह भी देखना पड़ जाता है।

ओयो रूम्स

आज ओयो रूम्स का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। भारत का यह सबसे बड़ा होटल नेटवर्क है। इसका उद्देश्य कम कीमत पर सुख-सुविधायों से लैस होटल के कमरे उपलब्ध कराना है। इतने विस्तृत पैमाने पर फैले इस व्यापार का प्रांरम्भ हुए अधिक समय नहीं हुआ। रितेश अग्रवाल इसके संस्थापक व सीईओ हैं।

16 नवंबर, 1993 को उड़ीसा के कटक में जन्मे रितेश की 12वीं तक पढ़ाई-लिखाई ‘सैकरेड हार्ट स्कूल’ में हुई। इनके पिता इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉर्परेशन के साथ कार्य करते थे तथा माँ एक गृहिणी थीं। एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार में रहते हुए इन्हें विभिन्न अनुभव हुए। रितेश किसी भी कार्य को करने में अपने को छोटा नहीं समझते थे, क्योंकि अलग-अलग अनुभव इन्हें आकर्षित करते थे। इसलिए ही एक बार रितेश ने सिम कार्ड बेचने का कार्य भी किया था।

कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग व कोडिंग में रुचि होने के कारण ये सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनना चाहते थे, इसके लिए कोचिंग की शिक्षा लेने ये कोटा चले गए। 16 वर्ष की अवस्था में इनका चयन ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामैंटल रिसर्च, मुंबई’ में आयोजित एशियन साइन्स कैंप के लिए हो गया। यहाँ एशिया से चुनकर आए छात्र विभिन्न प्रकार की समस्याओं पर विचार कर उन्हें सुलझाने का प्रयास करते हैं। रितेश ने वहाँ से बहुत कुछ सीखा। मुंबई में ये खूब घूमा करते और ठहरने के लिए सस्ते होटल की तलाश करते।

रितेश अपने घूमने-फिरने के शौक के चलते कोटा में भी आईआईटी की तैयारी के साथ ही अवकाश के समय भ्रमण के लिए चले जाते थे।

कुछ समय बाद रितेश ‘इंडियन स्कूल ऑफ बिज़नस एंड फ़ाईनांस’ में प्रवेश लेकर दिल्ली आ गए, पर अपने भ्रमण के शौक को जारी रखा।

स्थान-स्थान पर होटलों को लेकर इन्हें भिन्न-भिन्न प्रकार के अनुभव हुए। सर्वप्रथम तो कहीं भी पहुँचकर होटल तलाशना एक सिरदर्द था फिर अधिक दाम देने पर भी पर अनुकूल होटल नहीं मिलते थे।

इन परिस्थितियों ने रितेश को सोचने पर विवश किया कि यात्रा के दौरान ठहरने की उचित व्यवस्था का होना बहुत महत्वपूर्ण है।

इस बात से ही इन्हें नए बिज़नस को शुरू करने की प्रेरणा मिली। तब उन्होने एक ‘वेब पोर्टल’ बनाने का निश्चय किया, जहाँ विभिन्न होटलों में ठहरने के लिए कमरों की जानकारी दी जा सके। वे चाह रहे थे कि कोई ऐसा प्लेटफॉर्म बनाया जाए जो पर्यटकों को कमरे और खाना उपलब्ध करा सके। इसके लिए उन्होंने कई प्रॉपर्टी के मालिकों और सर्विस प्रोवाइडर्स से मदद मांगी और 2012 में वेब पोर्टल की शुरुआत कर दी। इसका नाम ‘ओरावल स्टेस’ रखा गया। इस पर अपना पूरा समय देने के उद्देश्य से रितेश ने कॉलेज बीच में ही छोड़ दिया।

ओरावल को मूर्त रूप देने के लिए पैसों की आवश्यकता थी। ‘वेंचर नर्सरी’ नामक निवेश कंपनी को रितेश ने जब अपनी योजना से अवगत करवाया तो उन्हें इस स्टार्टअप में संभावनाएं दिखाई दीं और ओरावल को तीस लाख का लोन मिल गया।

‘थील फ़ेलौशिप’ बीस वर्ष से कम आयु के लोगों को स्टार्टअप के लिए धनराशि देती है। रितेश को जब इसका पता लगा तो इसे प्राप्त करने के लिए उन्होने कड़ी मेहनत की। इसका सुखद परिणाम भी सामने आया और 10वां स्थान प्राप्त कर उन्हें लगभग 60 लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि मिली। इतना सब होने के बाद भी ओरावल को वह सफलता नहीं मिल रही थी, जिसकी अपेक्षा थी। इतना ही नहीं कंपनी को लाभ के स्थान पर हानि होने लगी। किन्तु ऐसे समय में भी रितेश ने हिम्मत नहीं हारी और इसकी असफलता के कारण खोजने का प्रयास करना आरंभ कर दिया।

कहते हैं न कि सफलता तुम्हारा परिचय दुनिया से करवाती है और असफलता दुनिया से तुम्हारा। इस असफलता ने रितेश को दुनिया से परिचित करवाया और वे समझ गए थे कि उनके वेब पोर्टल से लोगों तक वह सब नहीं पहुँच पा रहा, जिसकी उन्हें आवश्यकता है। इस विषय पर गहन अध्ययन कर उन्होने जाना कि सस्ते दामों पर कमरे उपलब्ध करवाना जितना महत्वपूर्ण है उतना ही सुख-सुविधाओं व साफ-सफाई वाले कमरे दिलवाना। इस प्रकार सब खामियों को दूर कर 2013 में नए सिरे से व्यवसाय आरंभ कर उसे नाम भी नया दे दिया गया-‘ओयो रूम्स’। ओयो यानि ऑन यौर ओन, अर्थात आप अपने पर- यह प्रत्येक ग्राहक का संबंध कमरे से जोड़ता हुआ नाम है जो एक अपनेपन की अनुभूति करवाता है।

सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ता ओयो रूम्स

इस बार ओयो से जुड़ने के लिए होटल मालिकों को ओयो रूम्स द्वारा निर्धारित मानकों पर खरा उतरना आवश्यक था। रितेश ने ओरावल स्टेस के समय देखा था कि कई होटल मालिक सुविधाओं को लेकर झूठ बोल देते हैं, अतः अपने पिछले अनुभव से लाभ उठाते हुए उन्होने अपने कुछ सहायक केवल इस कार्य के लिए रखे कि वे आवेदन करने वाले होटलों को जाकर देखें और उसके पश्चात ही उन्हें ओयो से जोड़ा जाए। यदि वहाँ किसी परिवर्तन की आवश्यकता हो तो वह सुधार कर ही ओयो से उसकी पार्टनरशिप की जाए।

इस बार रितेश का सपना साकार हुआ और ओयो से होटल और ग्राहक दोनों जुड़ने लगे। 2015 में ‘द न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स’ की ‘सीबी इनसाइट्स’ ने ओयो रूम्स को अपनी उस सूची में स्थान दिया, जिसमें पिछले एक साल की वे कंपनियां शामिल की गईं थीं, जो भविष्‍य में सफलता के झंडे गाड़ सकती हैं, हुआ भी ऐसा ही। ओयो रूम्स जल्द ही होटल्स की बड़ी चेन के रूप में पहचाना जाने लगा। इसकी सफलता को देख इसकी स्थापना के एक वर्ष बाद ही ‘लाइटस्पीड वेंचर्स पार्टनर्स’ व ‘डीएसजी कंज़्यूमर पार्टनर्स’ जैसी बड़ी कंपनियों ने इसमें 4 करोड़ का निवेश किया। 2016 में सॉफ्टबैंक नामक जापान की कंपनी ने सात अरब का निवेश किया। 2017 में ओयो का मूल्यांकन 5,800 करोड़ रुपये का था। अप्रैल 2018 में ओयो ने अपना पहला अंतराष्ट्रीय ओयो होम दुबई में शुरू किया। कुछ अन्य देशों में पाँव जमाने के बाद अब ओयो रूम्स चीन में अपना विस्तार करने जा रहा है।

ओयो रूम्स ने फ़ोन के लिए ऐप भी बनाई है, जिसके द्वारा साधारण व्यक्ति भी आसानी से अपने बजट के अनुसार ठहरने के लिए कमरे बुक करवा सकता है।

चुनौतियाँ

जब मंज़िल की ओर कदम बढ़ेगा और तो राह में रुकावटें आना स्वाभाविक है। यह राहगीर पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार निराश हुए बिना चुनौतियों का सामना करते हुए गंतव्य तक पहुंचे। ओयो रूम्स को सफलता के शिखर पर ले जाने के लिए भी अनेक चुनौतियों से जूझना पड़ा रितेश को।

ओरावल की असफलता पर आलोचना का सामना करना पड़ा। आर्थिक समस्याएँ भी समय-समय पर मार्ग अवरुद्ध करने का प्रयास करतीं। एक समाचार चैनल को दिये अपने इंटरव्यू में रितेश ने बताया कि यात्रियों की समस्याएँ जानने के लिए जब वे विभिन्न होटलों में रुकते थे, तब पैसे ठहरते ही नहीं थे उनके पास। एक बार तो नौबत यहाँ तक पहुँच गई थी कि होटल से जब वापिस अपने किराए के कमरे में पहुंचे तो मकान मालिक ने सामान निकालकर सीढ़ियों पर रख दिया था, क्योंकि कुछ महीनों से वे किराया अदा नहीं कर पा रहे थे। अपने घर फोन करते तो घर के लोग वापिस आने को कह देते और ये अपना काम बीच में छोड़ कर जाना नहीं चाहते थे। इसलिए चुपचाप कुछ दिन सीढ़ियों पर बिता दिये। पड़ोस के घर का वाई-फ़ाई प्रयोग कर निरंतर अपने काम में लगे रहे।
जिस समय ये अपने बिज़नस के शुरुआती दौर में थे, तब गुरुग्राम (उस समय गुड़गांव) में केवल एक होटल था इनके पास। उस होटल के सीईओ से लेकर हाउस कीपिंग का कार्य रितेश ही देखते थे। ओयो रूम्स की यूनिफॉर्म पहनकर ही लोगों को कमरे दिखाते थे। प्रायः इनके अच्छे व्यवहार के कारण टिप्स भी मिल जाया करती थी। एक बार एक बच्चे की देखभाल करने के कारण 100 रुपये मिले। कई बार लोग अपने घर में काम करने का न्योता भी दे दिया करते थे।

सपने देखने के बाद उन्हें साकार करने के लिए परिश्रम की राह पर चलना पड़ता है। रितेश भी प्रतिदिन 18 घंटे काम किया करते थे। सच है.....ख्वाबों के जुनून के साथ मेहनत भी की जाए तो मंज़िल मिलना तय है।

सफलता में चार चाँद लगाती कुछ उपलब्धियाँ

ओयो रूम्स का एक व्यवसाय के रूप में सफल होना भारत में स्टार्टअप्स के लिए प्रेरणा है। इसके संस्थापक और सीईओ ने जिस लग्न ने इसे वर्तमान रूप दिया, कुछ उपलब्धियाँ इसका प्रमाण हैं। रितेश 2013 में ‘टाटा फ़र्स्ट डॉट’ के टॉप 50 उद्यमियों में से एक थे। 2013 में ही बिज़नस इनसाइडर वैबसाइट पर ‘8 हॉटेस्ट टीनेज स्टार्ट-अप फाउंडर्स’ में इन्हें सम्मिलित किया गया। 2014 में ‘टाइ-लुमिस इंटरप्रिन्यूरियल एक्सिलेन्स अवार्ड’ मिला। 2016 में इनका नाम ‘कंज्‍यूमर टैक सैक्‍टर’ में फोर्ब्‍स 30 अंडर 30 में था। ‘मिनिस्टरी ऑफ स्किल डवलपमेंट एंड एंटरप्रेन्योरशिप’, भारत सरकार की ओर से 2017 में ओयो रूम्स को होस्पिटैलिटी वर्ग में ‘नेशनल एंटरप्रेन्योरशिप अवार्ड’ से सम्मानित किया गया।

इसके बाद इनको पीछे मुड़कर देखने की आवश्यकता नहीं हुई। आज ओयो रूम्स सस्ते दामों पर अच्छे कमरे दिलवाने वाली अंतर्राष्ट्रीय कंपनी बन चुकी है। भारत की सफलतम टॉप स्टार्टअप्स की सूची ओयो रूम्स के नाम के बिना अधूरी है।

ओयो रूम्स की सफलता के गुरुमंत्र

हिम्मत न हारना

नया उद्योग आरंभ करने पर अनेक अड़चनें आती हैं, किन्तु यह आप पर है कि आपकी उस पर क्या प्रतिक्रिया होती है, यह मानना है ओयो संस्थापक रितेश अग्रवाल का। उनका कहना है कि इस दौर से वे भी अछूते नहीं रहे। शुरू में निवेशकर्ताओं व ग्राहकों को अपने ब्रैंड पर विश्वास दिलवाना टेढ़ी खीर था। इतनी कम आयु के एंटरप्रेन्योर पर कोई जल्दी भरोसा नहीं कर रहा था और वे लगभग अकेले थे। यदि उस समय वे हिम्मत हार जाते तो आज ओयो रूम्स का अस्तित्व न होता। आशावादी होकर निराशा को स्वयं से दूर रखकर ही सफलता संभव है।

आलोचनाओं से सबक

जब अपने विचार लोगों के सामने रख सलाह-मशवरा किया जाए या असफलता से सामना हो तो अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ मिलना स्वाभाविक है। ऐसे में नकारात्मक प्रतिक्रियाओं से सीख लेते हुए सुधार करना चाहिए, यद्यपि इस प्रकार की आलोचनाएँ पीड़ादायक भी होती हैं। प्रत्येक सलाह को माना जाए यह आवश्यक नहीं, पर सुनना सबको चाहिये।

उत्तम कर्मचारियों का चयन

यदि नतीजे सर्वोत्तम चाहिए तो उस स्तर तक पहुँचाने के लिए कर्मचारी भी उत्तम होने चाहिए। निश्चय ही अनुभवी व योग्य कर्मचरियों को अधिक वेतन देना होगा, किन्तु कंपनी की प्रगति के लिए यह कदम सही साबित होगा। रितेश ने भी ‘लिंक्ड-इन’ वैबसाइट की मदद से ऐसे ही कर्मचारियों का चयन किया। उन सबको अपनी पुरानी स्थापित कंपनियों को छोड़कर आने को राज़ी करना भी एक कठिन कार्य था। उनको यहाँ काम करने को तैयार करना तभी संभव था जब पैसा व वातावरण उनके अनूकूल हो। रितेश ने ऐसा ही किया। ओयो रूम्स की सफलता का श्रेय निश्चय की इस कदम को भी जाता है।

विश्वसनीय छवि का विकास

विश्वास एक बड़ी चीज़ है, फिर बात जहाँ व्यवसाय की हो वहाँ तो बहुत कुछ विश्वास पर निर्भर होता है। ओयो रूम्स की ओर से अपने निवेशकों, ग्राहकों, कर्मचारियों व अन्य संबन्धित व्यक्ति व संस्थाओं को जो वादे किए गए उनको पूरा भी किया गया। अतः सफलता के पीछे एक भरोसेमंद तस्वीर बनाकर लोगों का विश्वास प्राप्त करना बड़ा कारण रहा।

उदारता व विनम्रता

एक मार्गदर्शक को रास्ता दिखाते हुए विनम्र रहना चाहिए। कोई आदेश पालन न कर रहा हो अथवा अपनी मनमानी करे तो विनम्रता के साथ उसे गलती बताई जाए। क्रोध व्यवसाय का विनाशक है। ओयो रूम्स को कामयाबी तक ले जाते हुए रितेश ने कभी विनम्रता का साथ नहीं छोड़ा।

शो मस्ट गो ऑन

व्यवसाय किसी एक व्यक्ति पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। चाहे कैसी भी परिस्थितियाँ हों, कार्यक्रम जारी रहे। व्यक्तिगत मुद्दे, राजनीति या या कोई अन्य समसामयिक घटना का व्यवसाय पर असर नहीं पड़ना चाहिए।

एक ही मकसद-संगठन की सफलता

ओयो रूम्स को सफल बनाने के लिए इस बात का ध्यान रखा गया कि संगठन के सभी कर्मचारियों को यह बताया जाए कि उनका एक ही मकसद है-संगठन की सफलता। एक ऐसा वातावरण तैयार किया गया कि सभी अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए ऑर्गनाइज़ेशन की बेहतरी के लिए कार्य करें।

प्रतिदिन सुधार

एक अच्छे संगठन के लिए यह आवश्यक है कि हर दिन अपने को सुधारा जाए। यह सुधार विचारों, तकनीक या कार्यप्रणाली में हो सकता है। इस प्रकार प्रतिदिन विकास होगा। यह विकास प्रगति के रूप में सामने आए या नहीं, कुछ न कुछ सीख तो देगा ही। रितेश के अनुसार ओरावल स्टेस के बारे में लोगों से बात कर उसमें सुधार लाने की नीति का ही यह परिणाम था कि वे उसकी असफलता के कारणों को जान पाये। उन्हें ज्ञात हुआ कि ओरावल स्टेस लोगों की मांगों की पूर्ति करने में सक्षम नहीं बन पाया और नए सुधारों के साथ इसे ओयो रूम्स के रूप में सामने लाया गया।

कोई रिस्क न लेना ही सबसे बड़ा रिस्क

जब तक कोई जोखिम न उठाया जाए तब तक परिणाम के आने की संभावना शून्य होगी। परिणाम सुखद होंगे तो उसी मार्ग पर आगे बढ़ते रहना होगा और यदि नतीजे अनुकूल न हों तो परिवर्तन व संशोधन का रास्ता अपनाया जाए। किन्तु यदि कोई कदम उठाया ही नहीं गया तो किसी प्रकार के परिणाम प्राप्त ही नहीं हो पाएंगे। यदि रितेश अग्रवाल अपनी सोच को मूर्त रूप देने के लिए निवेश कर जोखिम न उठाते तो आज ओयोरूम्स का अस्तित्व न होता। इसलिए रितेश के शब्दों में कोई रिस्क न लेना ही सबसे बड़ा रिस्क है।

ओयो रूम्स की आज एक अलग पहचान है। इसका नाम भारत ही नहीं विश्व की सफलतम उच्च स्टार्टअप कंपनियों में शुमार हो गया है। जनवरी 2013 में केवल 1 होटल से शुरुआत कर, जून में 3 तक पहुँचना फिर जुलाई 2014 में 13 की संख्या को पार करते हुए आज होटलों की संख्या 8500 से ऊपर पहुँच जाना एक सपने के सच होने जैसा ही है। ओयो के साथ आज भारत के लगभग 230 शहरों के होटल जुड़ गए हैं। दिल्ली, गुड़गांव, जयपुर, बंगलूरु, हैदराबाद, चैनई, मुंबई, शिर्डी, गोवा, शिलोंग, नैनीताल, पोर्ट ब्लेयर, अमृतसर, कोलकाता, कुर्ग, अहमदाबाद व लेह-लद्दाख आदि में लाल रंग के बोर्ड पर सफ़ेद रंग से ‘ओयो रूम्स’ लिखे होटल दृष्टिगोचर हो जाते हैं। मलेशिया, नेपाल और इन्डोनेशिया में अपनी जड़ें फैलाने के बाद ओयो रूम्स चीन में भी अपना सिक्का जमाने जा रहा है। मसायोशी सोन के साथ मिलकर शुरू हुई इस परियोजना के तहत शेनज़ेन में कार्य शुरू हो चुका है। इसके बाद चीन के 25 अन्य शहरों को भी शामिल किया जाएगा। इससे लगभग एक हज़ार कर्मचारी जुड़ेंगे, जिनमें कुछ पुराने होंगे तो कुछ नए। इस प्रकार ओयो रूम्स वहाँ रोजगार के अवसर भी प्रदान करेगा।

ओयो रूम्स की सफलता के पीछे रितेश के साथ कई अन्य व्यक्तियों का हाथ भी है। 'श्रेय गुप्ता' भी इनमें से एक हैं। रितेश अपनी पूरी टीम को भी इस सफलता के लिए उत्तरदायी मानते हैं। मार्क ज़ुकरबर्ग औए एलोन मस्क जैसे एंटरप्रन्योर से वे सपने देखना सीखे और ओयो रूम्स का जन्म हुआ।

संघर्ष और चुनौतियों का सामना करते हुए ही आज ओयो रूम्स बुलंदियों को छू रहा है। ओयो रूम्स न केवल परिवारों व व्यावसायिक कार्यों हेतु अपितु अविवाहित जोड़ों के लिए भी उपलब्ध हैं। महिलाओं के लिए ‘ओयो वी’ नाम से व्यवस्था है। अब जुलाई, 2018 में विवाह, सगाई, जन्मदिन आदि उत्सवों के लिए इवेंट मैनेजमेंट का कार्य आरंभ करने की घोषणा भी ओयो रूम्स ने की है, जहाँ बड़े हॉल से लेकर खाना-पीना व संगीत आदि की व्यवस्था होगी।

ओयो रूम्स की सफलता को देखकर आदरणीय एपीजे अब्दुल कलाम के शब्द बरबस ही स्मरण हो आते हैं- “इससे पहले कि सपने सच हों, आपको सपने देखने होंगे।”