तुम्हारी मिन्नी
मधु शर्मा कटिहा
प्रिय आदि,
यह कैसे पूछ लूँ कि तुमने मुझे पहचाना या नहीं? इस नाम से तुम्हें बुलानेवाला कोई और हो सकता है क्या?
डॉ. रजत से मिला तुम्हारा ईमेल-एड्रैस। उनसे मेरी मुलाक़ात नहीं होती तो मैं पता नहीं कभी तुम तक पहुँच भी पाती या नहीं। न जाने कितना कुछ बता दिया उन्होने तुम्हारे विषय में। मेरे बारे में भी ज़रूर बताएँगे वे तुम्हें। डॉ. रजत कल टोरोंटो पहुँच जाएंगे । पर जब वे तुमसे मिलेंगे तब तक मेरा ये मेल तुम तक पहुँच गया होगा। ओह! तुम मेरा पत्र पढ़ोगे.....सोचकर ही रोमांचित हो रही हूँ मैं !
बहुत अच्छे हैं डॉ. रजत। मित्र जो ठहरे तुम्हारे! उनसे मेरी मुलाकात अस्पताल में ही हुई थी। परसों डॉक्टर्स की एक टीम के साथ उन मरीज़ों की ख़ास बातचीत रखी गई थी जो सिर में चोट के इलाज के लिए यहाँ भर्ती हुए थे। मैं भी कुछ दिनों पहले सीढ़ियों से गिर गई थी। बेहोशी की हालत में यहाँ लायी गई थी। खून का थक्का सिर के अंदर जम गया था, इस कारण ऑपरेशन भी हुआ था छोटा सा। ओह! तुम सोच रहे होगे कि मैं हमेशा की तरह अपनी बात को लंबा खींचने लगी.....तो बात करती हूँ डॉ. रजत और अपनी भेंट की।
मेरे जीवन का कितना महत्त्वपूर्ण दिन था परसों, 12 फ़रवरी का। विशेष दल के डॉक्टर्स और उन सबकी मरीज़ों से बातचीत। जब मेरी बात टोरोंटो से पंद्रह दिन के लिए यहाँ आए, डॉ. रजत के साथ हो रही थी तो वे मेरी चोट को लेकर चिंतित थे और जानना चाह रहे थे कि इससे मेरी याददाश्त पर कोई असर तो नहीं हुआ। उन्होने मुझसे मेरे जीवन के विषय में बात करनी शुरू कर दी। जब वे मेरे बचपन के विषय में कुछ पूछ रहे थे तो मैंने कह दिया कि मुझे तो ऐसा लगता है जैसे मेरा बचपन जाने कहाँ दूर चला गया है,पर फिर भी.....धुंधला सा......पीछा करता रहता है हमेशा! उन्हें लगा कि मुझे अपनी बचपन की बातें ठीक से याद नहीं। इसलिए उन्होने बचपन से जुड़ा कोई किस्सा सुनाने को कहा। और मैंने सुना दिया एक किस्सा.......बस रजत पहचान गए मुझे.....चौंक कर वे बोले, “मिताली जी....आपको लोग मिन्नी नाम से भी बुलाते हैं क्या ?” तुम समझ ही गए होंगे कि यह सुनकर मेरी क्या स्थिति हुई होगी? तुम्हारे सिवाय किसी ने आज तक मुझे मिन्नी कहकर नहीं बुलाया- न गाँव में और न ही यहाँ। आदि, तुमने मेरे बारे में कितना कुछ बता दिया है रजत को! वे तो कह रहे थे कि तुम लगभग रोज़ मेरी बातें करते हो उनके साथ....मेरी तस्वीरें भी दिखाईं हैं तुमने उन्हे......! बहुत खुश हूँ कि मैं तुम्हें अब तक याद हूँ.....किन शब्दों में शुक्रिया कहूँ तुम्हें ?
हाँ.....तुम सोच रहे होंगे कि मैंने कौन सा किस्सा सुनाया उनको.....तुम्हारे लिए वो किस्सा वैसा ही होगा, जैसे हमारे बचपन के घटे रोज़ के किस्से.....पर मेरे लिए एक यादगार है वह घटना.....मेरा पूरा जीवन ही जुड़ गया है अब उस घटना के साथ !
याद है न वो दिन जब बीमार होने के कारण तुम स्कूल नहीं आ पाए थे। नदी के आस-पास घूमते हुए गाँव के और बच्चों की तरह ही उस दिन तुमने भी गीली मिट्टी से एक छोटी सी इमारत बनाई थी। मुझे बहुत अच्छा लगता था नदी किनारे की गीली मिट्टी से खेलना, उससे खिलौने और घर बनाना। पर तुम कभी भी मिट्टी से नहीं खेलते थे। लेकिन उस दिन तुमने मेरे लिए एक इमारत बनाई थी और सूखने पर उसे सफ़ेद रंग से रंग दिया था। फिर लाल रंग लेकर उस पर लिख दिया था-'मिन्नी का अस्पताल'। मेरे स्कूल से लौटने की तुम बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे। याद हैं न.....जब मैंने स्कूल से लौटकर वह इमारत देखी थी तो गुस्से से दनदनाती हुई कुछ बोले बिना ही पास से एक पत्थर उठाकर वह इमारत तोड़ दी थी और तुम देखकर भौंचक्के रह गए थे । तुम तब ज़ोर से चिल्लाए थे ,"क्यों तोड़ा तुमने मेरा अस्पताल....मैं और तुम यहाँ डॉक्टर बनकर इलाज करते न लोगों का....गंदी कहीं की!!"
"ये अस्पताल शहर के अस्पतालों जैसा है। मैंने अपनी किताब में फोटो देखे हैं। मैं तुम्हें कभी भी शहर नहीं जाने दूँगी....!! और तुम ही बनना डॉक्टर, मैं डॉक्टर नहीं बनूँगी.....मुझे डर लगेगा न ऑपरेशन करने में....!!" और मैं बैठे-बैठे ही अपने घुटनों में सिर छुपाकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी थी ।
"अरी, बुद्धू....हम अस्पताल गाँव में ही बनवाएंगे....और तुम डॉक्टर न सही नर्स बनकर मेरी मदद तो कर ही सकती हो न?” कहा था न तुमने। पर मैं कहाँ मानने वाली थी। अड़ी रही थी कि मैं तो टीचर ही बनूँगी।
और फिर....कुछ सालों बाद तुम गाँव तो क्या, देश ही छोडकर चले गए थे। मैं कहाँ रोक सकी तुम्हें? तुम्हारे पापा को टोरोंटो से किसी बड़ी कंपनी का ऑफर मिला था। कई दिनों तक रोती रही थी मैं....और फिर फैसला किया था कि मैं भी डॉक्टर बनकर रहूँगी। तुम ने तो पहले ही डॉक्टर बनने की ठान ही रखी थी। सोचा कि मैं भी डॉक्टर बन जाऊँगी तो कभी न कभी तुमसे मिल पाऊँगी शायद!......और आज.....शहर के एक अस्पताल में डॉ. मिताली का नाम लोग बहुत इज्ज़त से लेते हैं।
मैं अक्सर सोचा करती थी कि तुम्हें तो गाँव का एड्रैस पता है, फिर कभी कोई पत्र क्यों नहीं डाला तुमने? क्या टोरोंटो जाते ही सब भूल गए? कुछ दिन पहले मैंने तुम्हें फ़ेसबुक पर ढूँढने की कोशिश भी की थी, पर तुम वहाँ नहीं मिले। सोचती थी कि न जाने कहाँ गायब हो गए तुम ? पर मुझे क्या मालूम था कि तुम संघर्ष के किस दौर से गुज़र रहे थे!
रजत से पता लगा कि टोरोंटो पहुँचते ही तुम पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा था। एयरपोर्ट से घर जाते समय ही तुम्हारी टैक्सी का एक्सिडेंट हो गया था और तुम्हारे मम्मी-पापा......!!!! होनी को कोई टाल सका है भला? तुम्हारे पापा के दोस्त विलियम अंकल ले गए थे न तुम्हें ? सुना है उनका बिज़नस संभालने के साथ-साथ ही तुमने अपनी मेहनत से मेडिकल की प्रवेश परीक्षा इतने अच्छे अंकों से पास की कि तुम्हें स्कॉलरशिप भी मिल गई। और फिर डॉक्टर बनते ही अस्पताल में नौकरी भी लग गई थी तुम्हारी। फिर विलियम अंकल ने तुम्हारे सामने एक क्लीनिक खुलवाने का प्रस्ताव रखा था, पर शर्त भी तो....! उनके अहसान के बोझ तले जीते हुए अपनी खुशियों के बारे में सोचना छोड़ ही दिया था तुमने.....!
तुम्हें बिलकुल पसंद नहीं थी न वो नकचढ़ी ‘ऐना’। अंकल की इकलौती, बिगड़ैल, दिन-रात घर से दूर दोस्तों के बीच रहने वाली ऐना। अपना बिज़नस उसके नाम कर अंकल ने ज़बरदस्ती उसे तुम्हारे पल्ले बाँध दिया था! एक दिन भी तो सुख से नहीं बीता था तुम्हारा.....वो भी कहाँ बंधना चाहती होगी किसी बंधन में! तभी तो एक दिन आत्महत्या का ढोंग कर तुम पर मार-पीट और हत्या की कोशिश करने का आरोप लगा अंकल से हमेशा के लिए रिश्ता तुड़वा दिया तुम्हारा। मैं यह सब इसलिए लिख रही हूँ क्योंकि तुम्हारी दयालुता के विषय में कोई और जानता हो या नहीं.....मैं तो भली-भांति परिचित हूँ उससे।
याद है न वो बारिश का दिन.....हम दोनों स्कूल से लौट रहे थे। रास्ते में कुछ शरारती लड़के एक पिल्ले को रस्सी से बाँधकर खूब तंग कर रहे थे। तुमसे वह दृश्य देखा नहीं जा रहा था और तुम भिड़ गए थे उनसे। पिल्ले को छुड़ाने के लिए अपनी पिटाई की भी परवाह नहीं की थी तुमने। तब न जाने क्या हो जाता अगर मैं भागकर पास से गुज़र रहे रहीम चाचा को बुलाकर न लाती.....! वो पिल्ला, हमारा मोंटी.....हम दोनों के साथ कितना खेलता था न....!
ऐसे देवता स्वरूप व्यक्ति पर मारने-पीटने और हत्या की कोशिश जैसे आरोप! परसों रजत का गला भर आया था यह बताते हुए कि तुम्हें 15 दिन जेल में भी काटने पड़े थे.....! उफ़्फ़.....डॉ. रजत तुम्हारी मदद नहीं करते तो अस्पताल की नौकरी से भी हाथ धोना पड़ता तुम्हें.....! तकलीफ़ होती है सोचकर कि क्या-क्या नहीं सहा तुमने !
सुनो आदि.....एक बात बताऊँ ? शायद सुनकर तुम्हें अच्छा लगे। मैंने कुछ दिनों पहले माँ से आग्रह किया था कि वे गाँव में पुरानी हवेली को तुड़वा कर अस्पताल बनवा लें। बाबूजी तो तीन साल पहले इस दुनिया से जा चुके हैं। ज़ेवर और कुछ पैसा तो है ही माँ के पास। आज माँ ने फ़ोन पर बताया कि सरकार से अस्पताल बनवाने की अनुमति मिल गई है उन्हें।
अब यहाँ आकर तुम ही बनवाओ न ‘मिन्नी अस्पताल’.....वैसा ही जैसा तुमने बचपन में मिट्टी से बनाया था। देखो बन गई हूँ मैं भी डॉक्टर। दोनों मिलकर करेंगे न अब अपने गाँववालों का इलाज। क्या करोगे अब टोरोंटो में? अपनी मिट्टी तुम्हें बुला रही है।
अच्छा अब लिखना बंद करती हूँ। दुनिया के लिए आदित्यसिंह दोस्तों के आदित्य और मेरे लिए आदि.....जी तो चाहता है कि आज उस बाग से गुलाब के फूल तोड़कर लाऊँ, जहाँ हम तितलियों के पीछे भागा करते थे। उन गुलाबों का सुंदर सा गुलदस्ता बनाकर तुम्हें दे दूँ.....पर यह तो अभी संभव नहीं, इसलिए मेल में गुलाब के फूल वाले ईमोजी लगा दिए.....आज वैलेंटाइन डे है न? अब कुछ और कहना बाकी है क्या?
तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा में,
मिताली....नहीं.....मिन्नी....नहीं,नहीं.....तुम्हारी मिन्नी !!
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