Priya Paul books and stories free download online pdf in Hindi

प्रिया पॉल

प्रिया पॉल

मोनिका शर्मा

monikasharma1092@gmail.com



© COPYRIGHTS

This book is copyrighted content of the concerned author as well as Matrubharti.
Matrubharti has exclusive digital publishing rights of this book.
Any illegal copies in physical or digital format are strictly prohibited.
Matrubharti can challenge such illegal distribution / copies / usage in court.

अनुक्रमणिका

1ण्जन्म, शिक्षा व प्रारंभिक जीवन

2ण्करियर की शुरुआत

3ण्करियर मे। प्रमुख उपलब्धिया।

4ण्महिलाओ। के लिए स। देश

जन्म, शिक्षा व प्रारंभिक जीवन

प्रिया पॉल का जन्म ३० अप्रैल १९६७ को कोलकाता के एक विशेषाधिकार परिवार में हुआ था । उन्होंने शुरुआत में ही दिल से यही सोचा था कि उन्हें अंत में अपने पारिवारिक व्यवसाय, अपीजय सुर्रेन्द्र ग्रुप, से जुड़ेंगी । इसे भाग्य कहिए या संयोग बुलाये , प्रिया का जन्म उसी साल हुआ जिस साल उनके पिताजी ने पहले द पार्क होटल का शुभारम्भ कोलकाता में किया ।

भारत और विदेश में आतिथ्य उद्योग में एक प्रसिद्ध व्यक्ति, प्रिय पॉल एक पत्नी, एक माँ और इन सब के ऊपर एक साहसी, सरल, स्पष्ट और इमानदार उद्यमकर्ता हैं । उनको ” भारत की पहली बुटीक माहिला ” से भी संदर्भित किया जाता हैं । आज वह ६ ग्लैमर होटल चौन कि मालकिन है जो कि रस्त्रव्यापी बड़े शहर जैसे कि कोलकाता , नई दिल्ली , विशाखापटनम , बैंगलोर , चेन्नई और हैदराबाद में स्थित हैं ।

अर्धशास्त्र में अपनी स्नातक स्तर कि पढाई वेल्लेस्ले कॉलेज यूनाइटेड स्टेट्‌स से खत्म करने के बाद वह पार्क होटल , दिल्ली में वित्तीय प्रभाग सेवाओं की ओर गईं । मगर उनके पिताजी ने उनके लिए कुछ और ही योजनायें तैयार की हुई थी । उन्होंने उनको वित्तीय विभाग के बजाय विपणन विभाग में शामिल होने का सुझाव दिया । उन्होंने १९८८ में अपीजय सुरेन्द्र पार्क होटल्स में विपणन प्रभंदक के तौर पर द पार्क्‌स , नई दिल्ली में जुड़ीं । संभवतः उन्होंने अपनी बेटी में कुछ ऐसा देखा जिससे वह आश्वस्त हुए कि वह एक दिन विपणन में बहुत आगे निकलेंगी ।

करियर की शुरुआत

प्रिया द पार्क में अपने शुरुआती दिन का स्मरण करती हैं और बताती है कि उस समय वे व्यवसाय के लिखों और कड़े रवे को समझ रही थी । प्रारंभ में उन्हें उनके पिताजी सुरेन्द्र पॉल को सूचित करना पड़ता था । केवल २ साल के भीतर ही वे द पार्क, नई दिल्ली कि कार्यकारी महाप्रभंदक बन गईं ।

१९९० का साल एक ऐसा साल था जिसने पॉल परिवार और द अपीजय ग्रुप पर दुर्यभाग्य और परिक्षण का समय ले कर आया । कंपनी ने १९९० में अपने अध्यक्ष को खो दिया । युएलेफए के उग्रवादियों ने श्री सुरेन्द्र पॉल की गोली मार कर हत्या कर दी । इस सदमे का प्रभाव इतना ज्यादा था क्यूंकि उस परिवार ने अपना जवान बेटा, प्रिया पॉल ने भाई आनंद को १९८९ में एक गाड़ी दुर्घटना में खोया था । इस पूरी मृत्यु घटना ने न ही उनके दिल में खालीपन बना दिया था पर संघठन में एक प्रमुख अंतर को भी बनाया ।

२३ साल की बहुत ही कम उम्र में, और सिर्फ २ साल के अनुभव के साथ, प्रिया पॉल को अपने कारोबार में एक बडे अंतर को भरने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा था । इस चुनौती को उन्होंने बड़े ही अभिमान , आदर और सम्मान के साथ लिया । २२० कमरों के होटल का प्रबंध से उन्हें अब द पार्क की तीन होटलो कि चौन को संभालना था ।

अपने शुरुआती दिनों में जब वे व्यव्साय से जुड़ीं थी तब उनके पिताजी ने उनसे कहा था कि कुछ भी हमेशा के लिए नहीं रहता ना ही मंदी और ना ही उछाल । उस समय द पार्क, नई दिल्ली में अधिभोग १० प्रतिशत था । उनके होटल को प्रमुख नवीकरण की जरूरत थी । यह वह जगह थी जहाँ श्री सुरेन्द्र पॉल का अपनी बेटी की तरफ का निर्णय प्रदत्त हुआ । प्रिय पॉल जो भी आतिथ्य उद्योग में ला रही थी वह एक क्रांति से कम नही था । वह अकेले ही भारत में बुटीक होटल्स की परिकल्पना को लाई ।

करियर में प्रमुख उपलब्धियां

दुनिया भर में यात्रा करने के उनके इस जुनून ने उन्हें परिष्कृत और समकालीन विलासिता बुटीक होटल्स का प्रारंभ करने का विचार दिया । उन्होंने शीघ्र ही आतिथ्य उद्योग में अंतर को जाना । वह कहती हैं कि ” हम यह सुनिश्चित करते है कि होटल्स जिसे हमने परिकल्पित किया है वह बस एक दूसरी जगह ना बन जाएँ जहाँ यात्री खाली सोने ना आयें बल्कि वह उस शहर में जहाँ वह है पर एक ऐसा सक्रिय समूह बने जहाँ कंपनी कि बैठक भी होती हों । हम एक ऐसा वातावरण बनाना चाहते हैं जहाँ हमारे मेहमान ऐसा स्पर्श करे कि वे लोग एक स्थानीय हब में संलग्न हो गये हैं । उनकी दिमाग के यह सभी कारको ने उन्हें प्रोत्साहित किया की वह होटल उद्योग में और वृत्त त्तवों को जोड़ें । उन्होंने अपने होटल्स में और परिवर्तन करने के लिए उसमे मेहमानों के लिए और मनोरंजक और दिलचस्प चीजे जैसे की बार्स, लाउन्ज और इन—वोग रेस्टोरेंट्‌स जो कि अपने मेन्यु में और भी प्रयोगात्मक थेद्य वे फैशन स्पर्धाएं और अच्छे संगीत समारोह भी आयोजित करते थे ।

उनकी यह पहल सन्‌ १९९० में उन्हें उनके होटलों कि चौन को मंदी से सुलझाने में काफी काम आईं । उन्हें यह एहसास हुआ कि वे लोग जो हमारे देश का दौरा करते हैं उनके पास पैसा तो बहुत है पर बहुत ही कम उपयुक्त और उचित जगह हैं ठहरने के लिए । नयी तरीके से परिवर्तित और फिर से अविष्कृत पार्क होटल्स अपनी समकालीन डिजाईन और अपने पांच सितारे सेवाओं के साथ वे सभी सेवांए उन्हें दे रहा था जो उन्हें चाहये थी । आज होटल कि सभी छरू चौन एक विलासिता का प्रतीक, कलँगी और समकालीन डिजाईन कि तरह खड़ा है और उसी समय में वह तेज और मजे के लिए खड़े हैं ।

प्रिया पॉल का भारतीय आथित्य उद्योग में योगदान कई बार स्वीकारा गया हैं । इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक भूमिकाएं बदली हैं जैसे कि पार्क होटल कि अध्यक्ष, विश्व यात्रा एवं पर्यटन परिषद भारत कि संस्थापक सदस्य, न्यासियों दक्षिण एशिया महिला कोष के बोर्ड के सदस्य, राष्ट्रीय पर्यटन सलाहकार परिषद कि सदस्य और महान वेग के साथ निदेशकों के सलाहकार बोर्ड के सदस्य । उनका नवीनतम सम्मान उनको जनवरी २०१२ में पदम्‌ श्री का मिला था । उनको ” इंडिया टुडे व्यव्साय में महिला का पुरस्कार ” से नवाजा गया और २००९—२०१० के लिए उन्हें पीएचडी चौम्बर्स कि तरफ से ” मशहुर माहिला उद्यमी पुरस्कार ” से भी नवाजा गया । वे २०१० में एफएचआरएआई हाल अॉफ फेम में भी प्रवेश कि थीं ।

वह २० वीं सदी कि उत्कृष्ट और उत्तम माहिला हैं जिनके पास अनेक उपलब्धियां हैं । प्रिया पॉल, अपनी इतनी साड़ी उपलब्धियों के बावजूद भी अपने मंजिल के आधे रास्ते पर भी नहीं पहुंची हैं । उनको अभी कई चट्टानों को पार करना है और कई स्थलों को बनाना हैं ।

महिलाओं के लिए संदेश

प्रिया पॉल कई रंगों कि मिश्रण हैं । ये व्यस्त ब्यापारिक माहिला अपने २४ घंटे के दिन को खींच कर लगातार एक के बाद एक बैठक और पत्रकार सम्मेलन से उसे ३६ घंटे का दिन बना देतीं हैं । लेकीन फिर भी वे हर समय शांत लगती हैं और अपने आत्मविश्वास, कड़ी मेहनत और अनुभव को निचोड़ कर बाहर निकल देती हैं । वह ध्यान (मैडिटेशन) को एक ऐसा औजार बताती हैं जो कि उन्हें अव्यव्य्स्था से अलग रखता हैं और उन्हें शांत रखता हैं ।

वे योगा और धयान लगाना (मैडिटेशन) अपने शिक्षक तृप्ता भनोट से सीखतीं थी उस दिन तक जब तक उन्हें यह एहसास हुआ कि अध्यात्मतरू बहुत ही तीव्र है कोई चीज जो कि अल्पज्ञात से हासिल नहीं हो सकती, वह हमारे अन्दर से ही आती हैं । वे अपने आप को कला और साहित्य से परिलक्षित करती हैं । श्राबनी बासु कि ” द लाइफ अॉफ नूर इनायत खान ” और ” इं म्कइवान ” प्रिया पॉल की व्यक्तिगत पसंदीदा किताबें हैं । वे गैर—गल्प और असली कहानियाँ, जो कि संसार के ज्यादा करीब हैं, को पड़ना पसंद करती हैं । उन्हें खाना पकाना पसंद हैं और वह खुद भी पूरी खाने की शौकीन हैं । तो अगर वे कोई डिजाइनिंग या कला का संग्रह या फिर कोई बैठक और संसार में कहीं घूम ना रही हों तो वो रसोई घर में जा कर कुछ ना कुछ नयी विधि को बनाने का प्रयास कर रही होंगी ।

तथापि, कला उनका नया व्यसन था । भारतीय कला उनके लिए एक विशेष पसंद कि चीज थीद्य उनका घर कई विभिन्न भारतीय कलाओं से सजा हैं और उनके बैठक कक्ष में एक चेतिन्नाद का खम्बा हैं । उन्होंने अपने होटलों में भी वही द्रवंशिलता लायी है । वे बताती हैं कि ” यह सब उनके होटलों में एक मानवीय स्पर्श लती हैं, वह ना ज्यादा बंजर और ना ही ज्यादा व्यावसायिक हैं ” ।

२००४ में प्रिया सेतु वैद्यनाथन के साथ वैवाहिक जीवन में बन्ध गईं जो कि चेन्नई आधारित एक चमडा व्यवसायी थे । वे चेन्नई में ही मिले जब प्रिया द पार्क, चेन्नई में काम करती थी । आज वे अपने बेटे सूर्या वीर के साथ खुश और धन्य हैं । यह उनके चेन्नई और दिल्ली के बीच बारंबार यात्रा करने का एक बड़ी वजह थी । वह अपने परिवार के साथ समय बिताना पसंद करती हैं और सप्ताहांत में छुट्टी लेने की कोशिश भी करतीं हैं ।

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED