एक कहानी ऐसी भी Shruti Mehrotra द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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एक कहानी ऐसी भी

आज नंदनी से मिले पूरे पाँच वर्ष हो चुके थे। वो कहाँ थी, कैसी थी, कुछ पता नहीं था। बस उसकी यादें मेरे पास थी। हम लोग यहीं के पास वाले लखनऊ कैफे में मिले थे। वो रोज ही दफ्तर से आने के बाद यहां जरूर आती थी और मैं भी शायद उसी से मिलने वहां जाती थी।

हमारी मित्रता कुछ ज्यादा ही गहरी थी, और शायद इसका कारण भी यह था कि वो मेरी बातों को समझती थी।

आज भी याद है उसका मासूम सा चेहरा, न कोई मेकअप, न कुछ पर उसके चेहरे पर एक तेज़ था, एक अलग सी चमक थी। उसकी मुस्कुराहट से मेरे भी माथे की लकीरें गायब हो जाया करतीं थीं।

दफ्तर से जब मैं घर के लिए निकल ही रही थी, तभी सामने से मुझे नंदनी आती दिखी। वो हमेशा की तरह मुझे देखकर मुस्कुराते हुए बोली, "हैलो वंदना! कैसी हो?" मैने उससे कहा "कहाँ थी इतने दिन तक? तुम्हारा रोज़ इंतजार करती थी मैं और तुम्हारा फोन बंद आ रहा था। कुछ बता तो देती!"

"अरे! अरे! सौरी वंदना। क्या करूँ, अचानक मुझे दफ्तर के काम से अर्जेन्ट बाहर जाना पड़ गया था, वहाँ जरूरी काम पड़ गया था इसलिए तुम्हें बता नहीं पाई। और जल्द-जल्दी में मैं अपना फोन भी घर पर ही भूल गई थी।"

मैनें कहा जल्दी चलो कैफे, कोफ़ी हम लोगों की राह देख रही होगी। मैने नंदनी से कहा कि "पता चला है कि आजकल आप बहुत व्यस्त हैं, एक पेंटिंग बनाने में। जरा उसके बारे में बताइए? "

" हां, हां, हां नहीं, नहीं मैं व्यस्त नहीं हूँ, बस अचानक मन करा कुछ नया बनाने का।" मैने नंदनी से कहा "मुझे भी पेंटिंग देखनी है, जल्दी दिखाओ।" "नहीं, बिलकुल नहीं! तुम्हारे जन्मदिन पर मैं तुम्हें वो दूंगी" नंदनी ने कहा। " अच्छा सरप्राइज। चलो ठीक है। पांच दिन मेरे जन्मदिन आने के बचे हैं। चलो, आज घर जल्दी जाना है। कल मिलती हूं। " " ओके वंदना! कल मिलते हैं। "

नंदनी का प्यार से बोलना ही तो मुझे हमेशा से ही अच्छा लगता है।

पांच दिन बाद

" इतनी रात को किसने दरवाजा खटखटाया? कौन है? "

" वंदना, मैं हूँ नंदनी। "

" इस समय, नंदनी! "

मैने जल्दी से दरवाजा खोला।

" जन्मदिन की बहुत - बहुत शुभकामनाएं, वंदना। तुम हमेशा खुश रहो! कैसा लगा मेरा रात का सरप्राइज?" मैने उससे कहा "धन्यवाद। तुम हमेशा कुछ न कुछ अनोखा करती हो। पर उससे पहले मेरी पेंटिंग? वो कहाँ है? जल्दी दो? "

"सौरी, वो तो मैं जल्दी - जल्दी में भूल ही गई। चलो, बाद में मैं तुमको दे दूंगी।"

"मुझे देखना था। यह गलत बात है।"

" वंदना, बाद में देख लेना। अभी जल्दी से केक काटो। तुम्हारा मन पसंदीदा चाकलेट केक लाई हूँ। "

" नंदनी यू आर ग्रेट। "

" हां, हां खिला रही हूँ। " मैंने केक काटा।"

"जन्मदिन की शुभकामनाएं, वंदना।"

"धन्यवाद, नंदनी।"

"वंदना, वंदना! बेटा केक काटो।" मै कब ख्यालों में खो गई पता ही नहीं चला और नम आंखों से केक की तरफ देख रही थी और सोच रही थी कि काश, आज नंदनी मेरे साथ होती। कहां चली गई मेरी सबसे अच्छी सहेली। मैने मां से कहा कि "मां मुझे एक काम याद आ गया है इसीलिए मैं बाहर जा रही हूं " यह कहकर मै बाहर चली गईं और सीधे गाड़ी लेकर कैफे की तरफ भागी।

"हेलो मैम, आज आप इतने सालों बाद!"

"हा मनोज। एक कोफ़ी ले आना।"

"यह लीजिए आपकी कोफ़ी।"

"मनोज यह बताओ, मेरे साथ जो मेरी एक सहेली, नंदनी, आया करती थी वो कभी मेरे जाने के बाद से यहां आई है? "

" नहीं, मैम। जब से आप नहीं आईं हैं तब से उनको आए हुए भी काफी समय हो चुका है। हा , पर वो किसी के साथ एक बार एक पेंटिंग लेकर आईं थीं । उन्होंने बोला था कि वह पेंटिंग मैं आपको दे दूं। पर आप तो यहाँ आईं ही नहीं। "

मैनें मनोज से पूछा कि वो पेंटिंग कहा है? मनोज ने सामने इशारा किया और कहा" वहां जो सामने पेंटिंग लगी है न, वहीं हैं, आप दोनों की कोफ़ी के प्यालों के साथ जिस पर लखनऊ कैफे लिखा है। हम लोगों को यह पेंटिंग काफी अच्छी लगी और आप आ भी नहीं रही थी तो यह मुझे कैफे के लिए बिलकुल पर्फेक्ट लगी इसलिए मैंने इस पेंटिंग को यहां लगा दिया। मैम क्या आपने एक चीज़ नोटिस करी कि यहां के सारे प्यालों पर लखनऊ कैफे के नीचे एन.वी लिखा है इसका मतलब नंदनी और वंदना हैं। आप लोग हमारे बंधें हुए कस्टमर है और ऊपर से पेंटिंग का भी डिजाइन पर्फेक्ट था। "

मैं फूट-फूट कर रोने लगी और चिल्लाने लगीं " नंदनी तुम कहाँ चली गई हो? वापस आ जाओ। मेरी मदद कर दो आकर। बहुत दिनों से मैं परेशान हूँ। तुम मुझे बिना बताए, बिना कुछ कहे चलीं गई। " मनोज ने कहा " मै आपकी मदद करूंगा। " थोड़ी देर बाद मनोज बोला " आखरी बार जब नंदनी मैम आईं थीं तो उन्होंनें मेरे दोस्त, सुरेश को एक नंबर दिया था। मैं अभी वो नंबर ले कर आता हूँ। "

" यह लीजिए नंबर। "

मनोज ने उस नंबर पर फोन किया। " हेलो ! मेरी नंदनी जी से बात हो रही है? मै लखनऊ कैफे से मनोज बोल रहा हूँ। आपसे आपकी सहेली, वंदना बात करना चाहतीं हैं। "

मैनें मनोज से फोन लिया और फोन पर बात की।

" हेलो! हेलो! नंदनी! "

" जी"

" क्या मेरी नंदनी से बात हो रही है?"

"आप कौन बोल रही है?"

"मैं वंदना बोल रही हूँ। नंदनी तुम्हारी आवाज़ कुछ बदली हुई लग रही है! "

" जी। मैं नंदनी नहीं अमाया बोल रही हूँ। "

वंदना - पर यह तो नंदनी का नंबर हैं। मुझे उससे बात करनी है।

अमाया - मैं नंदनी की सहेली, अमाया बोल रही हूँ। अभी नंदनी कहीं बाहर गई है। आप नंदनी को कैसे जानतीं हैं?

वंदना - अरे! मैं नंदनी की बहुत खास सहेली, वंदना बोल रही हूँ। नंदनी कैसी है? कहां है? जल्दी बताइए?

अमाया - ओह! तो तुम हो वंदना। बहुत समय से मैं आपकी तालाश में हूँ। आज ईश्वर ने मेरी अराधना पूरी कर ही दी।

अच्छा हुआ वंदना कि आज तुमने मुझे खुद फोन कर लिया। नंदनी ने मुझे तुम्हारे बारे में बहुत बताया है। बहुत अच्छी दोस्ती हैं तुम दोनों की।

वंदना - हा, सही कह रही हो पर नंदनी है कैसी? वह अचानक से मुझे बिना बताए कहां चली गई है?

अमाया - उसका तुम्हें बिना बताए जाने का एक ही कारण था। छः साल पहले नंदनी की मां कि मृत्यु हो गई थी। बचपन से उनके साथ रहने और उनसे ज्यादा लगाव होने के कारण नंदनी यह सब सहन नहीं कर पाई। वो बुरी तरह से उदास और परेशान हो गयी है। वो अपना पूरा होश खो चुकी है। वो तुमसे मिलकर, तुमको कुछ भी बता कर तुम्हें परेशान करना नहीं चाहती थी। घर से कोई सहारा न मिलने के कारण वो एकदम अकेली हो गयी है। अक्सर तुम्हारे बारे में बताती है ।

एक दिन उसने मुझे एक पेंटिंग दिखाई थी। मैंने वो पेंटिंग लखनऊ कैफे में दे दी थी ताकि तुम्हें वो लोग वह पेंटिंग दे दें। साथ में मैं वहां अपना नंबर दे आई थी। मुझे भरोसा ही नहीं पूरा विश्वास था कि एक दिन तुम वहां जरूर आओगी और नंदनी का पता लगाओगी।

और देखो वंदना, आज भगवान ने मेरी दुआ सुन ली और तुम मुझे मिल ही गई। अब एक तुम ही हो, जो नंदनी की हंसती खिलखिलाती जिंदगी को वापस उसे लौटा सकती हो।

तुम जल्दी से आ जाओ। नंदनी को तुम्हारी जरूरत है। ईश्वर ऐसी ही दोस्त और दोस्ती सभी को दें।

वंदना - हा! मैं आ रही हूँ। मैं नंदनी की जिन्दगी में फिर से रंग भर दूंगी।

अमाया - हा! तुम उसी पुराने वाले घर में आ जाओ। आज नंदनी तुम्हें देखकर बहुत खुश होगी। तुम जल्दी से आ जाओ।

मैं आ रही हूँ कहकर मैने फोन रख दिया। आज मुझे मेरे जन्मदिन का उपहार मिल चुका था। हा, मेरी नंदनी! मेरी प्यारी सहेली मुझे मिल चुकी थी। "मैं आ रही हूँ, नंदनी! मैं आ रही हूँ। मैं नंदनी से वादा करती हूँ कि उस पेंटिंग को मैं सच कर दूंगी। हम लोग फिर से एक साथ लखनऊ कैफे में हंसते हुए और कोफ़ी पीतें दिखेंगें।"

आज बाहर हो रही बारिश की हर एक बूंद में नंदनी की तलाश थी। बस इतनी सी थी मेरी आज की कहानी।

***