घर लौट चलो...
आज भी मुझे याद है कि जब मैं गर्मी की छुट्टियों में अपनी सहेली के यहां गई थी तब उसके यहां उसके पिता जी के एक दोस्त आए हुए थे जिन्हें वह चाचा कह कर बुलाती थी इसलिए मैं भी उन्हें चाचा कहती थीं । किसी के घर में कोई मेहमान आता है तो वह घर के बच्चों को बुलाकर उनके साथ खेलते हैं। उसी तरह चाचा जी ने मुझे और मेरी सहेली को बुलाया और उन्होंने हम लोगों के साथ "कौन बनेगा करोड़पति" खेला। सबसे पहले उन्होंने मुझे पूछा " वॉट इस योर नेम?" मैंने अपना नाम बताया। फिर उन्होंने इस दुनिया का सबसे घिसा पिटा सवाल पूछा "वॉट इस योर फादर नेम?" मैंने अपने पिता जी का नाम बताया। फिर मेरी माँ ने मुझसे कहा जो शायद सभी की मां कहे बिना नहीं रह सकती" बेटा, चाचा जी को कविता तो सुनाओ।" फिर मैंने सुनाया" मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है - - -" इतने में ही मां ने मुझसे कहा "बेटा, जॉनी जॉनी यस पापा - - -, वाली सुनाओ।" तब मैं सुनाती हूँ "जॉनी जॉनी यस पापा, इटिंग शुगर नो पापा - - -"। इसके बाद चाचाजी बताते हैं कि उनके खुद के बेटे का स्कूल इतना अच्छा है कि उसे खेलने का समय ही नहीं मिलता और वहाँ सभी को अंग्रेजी में बोलना अनिवार्य है और अगर कोई हिंदी में बोला तो उसे 10 रुपये जुर्माना भरना पड़ता है।
मुझे याद है कि कुछ महीने पहले मैं एक समारोह में गई थीं वहां पे वक्ता बोलने से पहले कहा "इ यम सॉरी। ई विल स्पीक इन हिन्दी।"
जो बात मैनें आपको बताई और जो बातें मैं आपको बताने जा रही हूँ इसका उद्देश्य किसी भी भाषा, व्यक्ति को ठेस पहुंचाना नहीं है। मुझे अंग्रेजी भाषा से कोई दिक्कत नहीं है। भाषाओं को सीखना एक अच्छी बात है पर हिंदी बोलना भी तो कोई गुनाह नहीं है। वक्ता हिन्दुस्तान में खड़ा होकर अगर हिन्दी बोल रहा है, तो मेरे मुताबिक यह कोई अपराध नहीं है। खुद की मातृभाषा में बोलने जा रहे हो तो "सॉरी" क्यों? आज हमारा समाज हर उस व्यक्ति को अनपढ़ - गवार समझ लेता है जिसे भारत में अंग्रेजी नहीं आती है। आप किसी भी शहर में चले जाईये, आप खुद के शहर में भी देख सकते हैं कि सड़कों पर बडे़ - बडे़ बोर्ड लगे रहते हैं, घरों में विज्ञापन आते रहते हैं - "इंग्लिश स्पीकइंग इंस्टीट्यूट" के। उस पर कई तरह की बातें लिखी हुई होती है, जैसे - "इंग्लिश अपनाए परसनेलटी बनाए", मैंने एक सबसे अच्छा पढ़ा था "यहां पे तो तोते भी अंग्रेजी बोलने लगते हैं"। कही ना कही ये इंस्टीट्यूट अपने बारे में नहीं बल्कि यह हमारे बारे में बताते हैं, हम और आप जैसे लोगों के बारे में बताते हैं।
अगर कोई दूसरे गृह से भारत में आए तो वो यह देखेगा कि यहां के लोग एक ही काम को करने में लगे हुए हैं और वह है अंग्रेजी बोलना सीखना। मै आप लोगो से पूछना चाहती हूं कि जब आप भारत का राष्ट्रगीत सुनते हैं तो क्या आप खड़े होते हैं? ज़्यादातर लोगों का जवाब हां होगा।अब मै आपसे पूछती हू की क्या आपको आपने देश से प्यार है? इसका भी जवाब ज़्यादातर लोगों का हां ही होगा। फिर मैं आप लोगों से पूछती हू की अगर आपको आपने देश से इतना ही प्यार हैं तो यह बातये की आपने आखरी किताब अपनी मातृभाषा में कब पढ़ी थी? और इसका जवाब ज़्यादातर लोगों का ना ही होता है।
यह आज से ही नहीं अपितु ऐसा माहौल भारत में बहुत पहले ही पैदा हो चुका है। जब भारत ने विदेशों के साथ काम करना शुरू कर दिया था तब भारत में ऐसी नौकरीया आ गई थी कि अगर लोगो को पेट भरना है और नौकरी चाहिए तो उनको अंग्रेजी जानना अनिवार्य हो गया क्योंकि अगर व्यक्ति अंग्रेजी जानता है तभी उसे नौकरी मिलेगी जबकि आपकी आपनी भाषा - तमिल, तेलगु इत्यादि भाषाओं से नौकरी नहीं मिल सकती।
आज आम - आदमी जिसे हम मिडिल क्लास कहते हैं उन लोगो के सपने बहुत सीधे होते हैं - घर के बच्चे पढ़ - लिखकर अच्छी सी नौकरी कर ले, फिर विदेश में कारोबार संभाल ले, वहां से आकर शादी कर लें, फिर एक घर खरीद ले। मिडिल क्लास पैसों से मिडिल क्लास नहीं है वे सपनों से मिडिल क्लास होते हैं। आज यह सपने उनके पूरे भी हो रहे हैं। उनके सपने तब से पूरे हो रहे हैं जब से भारत ई. टी. मे बहुत तेज़ हुआ है और तब से नौकरी पाने के लिए अंग्रेजी आना जरूरी है। लोगों को कुछ वर्ष पहले ई. टी की कंपनी में जाने की होड़ थी।
आपको याद होगा कि कुछ साल पहले हवाई जहाज का किराया सस्ता हो गया था। मिडिल क्लास ने सोचा कि जहाज़ से अमीर लोग सफर करते हैं, धीरे - धीरे जब किराया और सस्ता हुआ तब मिडिल क्लास भी उसमें जाने लगे और इस तरह मिडिल क्लास वालो की जरूरते पूरी होने लगीं.। मिडिल क्लास के लोग अप्पर क्लास की तरह महेंगें कपड़े पहनने लगे, उनकी तरह बात - चीत करने लगे और अप्पर क्लास की तरह बनने की कोशिश में लग गए। सबसे पहले उन्होनें अपनी भाषा बदली।
अंग्रेजी ने जाती - विछेद की तरह हमारी सोसाइटी में काम करा है। जो अंग्रेजी बोल लेता है वह पढ़ा - लिखा व्यक्ति बन जाता है और जो अंग्रेजी नहीं बोल पाता वो अनपढ़। भारतीय लोग कई चीज़ों में अव्वल है जिसमें से पहली चीज़ है कि उन्हें अपनी बोली बोलने में शरम आती है। आज लोगो को लगता है कि हिंदी, घर में काम करने वाली बाई बोलती हैं, सब्ज़ी बेचने वाले और ऑटो वाले बोलते हैं, हिन्दी ऐसे लोगों की ही भाषा होती है। मतलब जो अंग्रेजी नहीं बोल पाता है उसकी तो कोई इज्ज़त ही नहीं होती, वह तो समाज़ में रह ही नहीं सकता। अगर देखा जाए, जो अंग्रेजी नहीं बोल पाता जैसे घर में काम करने वाली बाई, ऑटो वाला, धोबी अगर एक दिन काम पे नहीं आए तो हमे कितनी मुश्किल हो जाती हैं।
मेरे घर मे जो काम करने वाली बाई आती है, एक दिन मैं उनसे बात कर रही थी तो मुझे पता चला कि जो लोग आज ऑटो चलाते हैं या मजदूरी करते हैं वो लोग भी अपने बच्चों को अच्छे विद्यालय में पढ़ाना चाहते हैं जिससे उनके बच्चों को भविष्य में वो काम ना करना पड़े जो आज वो लोग कर रहे हैं। उनसे वार्तालाप की तो मुझे यह पता चला कि आज विद्यालयों में कितना गन्दा रैकेट चल रहा है। बच्चों का स्कूल में दाखिला कराने जाओ तो अध्यापक बच्चों का नहीं अपितु बच्चों के माता - पिता का इंटरव्यू लेते हैं। अगर माता - पिता ज़्यादा पढ़े-लिखे नहीं है, अंग्रेज़ी नहीं जानते हैं तो उनका उपहास उड़ाकर, बेज़त कर के विद्यालय से निकाल देते हैं और बच्चों का दाखिला भी नहीं करते हैं। बच्चे पढे़गें तो बच्चे का इंटरव्यू लो, माता - पिता का क्यों ले रहे हो? इसके अतिरिक्त माता - पिता को अपनी संतुष्टि के लिए अध्यपको से प्रश्न करना चाहिए, उन्हें यह देखना चाहिए कि जिन्हें वो पैसे दे रहे हैं और जिनके हाथ में वो अपने बच्चों का भविष्य सौप रहे हैं, क्या वो अध्यापक उनके बच्चे के लिए उत्तम है?
आज के युग में हम दो तरीके की भाषा बोलते हैं, एक हमारे पेट की भाषा यानी अंग्रेज़ी, जिसमें हमें नौकरी, इज्ज़त मिलती है और दूसरी हमारे दिल की भाषा - हिन्दी, तेलगु, गुजराती इत्यादि। दिल की भाषा वो जिसमें हम अपनी मां की गोद में सिर रख के रात्रि में लोरी सुनते हैं, सपने देखते हैं, वही हमारी असली भाषा है। जब हम अपनी भाषा छोड़ते हैं तब हम अपनी पहचान, आज़ादी छोड़ते हैं। वह आज़ादी जिसको पाने के लिए हज़ारों लोग शहीद हुए हैं।
पाब्लो नेरुदा , मुराकमी , यह सबके नाम आपने ज़रूर सुने होंगे। यह देशभर में मशहूर है क्योंकि इनमें से कोई अंग्रेजी में नहीं लिखता। ये सब अपनी - अपनी भाषा में लिखते हैं। भारत में 22 भाषाएं है पर भारत में कोई भी ऐसा लेखक नहीं है जिसको दुनिया भर में सब जानते हो क्योंकि हमें अपनी भाषा, संस्कृति, सभ्यता की हिफाज़त करनी नहीं आती।
अगर मेरी बाते आप पे थोड़ी सी भी असर कर रही है तो मेरी आपसे विनती है कि अपनी भाषा को पहचानिए और उसकी इज्ज़त करिए।
अगर आप कुछ करना चाहते हैं तो छोटा कदम उठा कर तो देखिए क्योकि छोटी-छोटी ईट से इमारत तैयार हो जाती है। आप छोटा कदम उठा कर तो देखिए। जैसे -
सोशल मीडिया पर हफ्ते में सिर्फ एक दिन जो भी आपकी भाषा है उसमें कुछ डालिए।
साल में अगर 10 किताबें पढ़ते हैं तो कोशिश करिए कि कम से कम 1 या 2 किताब अपनी भाषा में पढ़े।
कभी आप फ़ॉर्म भरते हैं तो उसमें अपना नाम अपनी भाषा में लिखे।
आप एक किताब अपनी जिंदगी में ज़रूर लिखाए लेकिन अपनी भाषा में।
कोशिश कर के तो देखिए क्योकि कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती है। क्रांति दिल्ली में चिल्लाने से कभी नहीं आएगी। क्रांति अपने आप चुप - चाप आएगी और इसे हम और आप जैसे ही लोग ला पाएंगे। एक बात याद रखियेगा कि कोई बड़ा इसलिए नहीं होता कि वह अंग्रेज़ी बोल लेता है और कोई छोटा इसलिए नहीं होता कि वह अंग्रेज़ी नहीं बोल पाता है।
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