Badi soch ka bada jaadu books and stories free download online pdf in Hindi

बड़ी सोच का बड़ा जादू

परिचय

बचपन से ही मुझे पुस्तक पढ़ना बहुत अच्छा लगता था। आज जब मैं कक्षा 11 में हूं मैंने खुद की पुस्तक लिखीं हैं। मुझे प्रेरित करने वाली मेरी माँ "श्रीमती ममता मेहरोत्रा" है। अगर बचपन में मुझे किताब पढ़ने की आदत मेरी माँ ने नहीं डलवाई होती तो शायद आज मैं आपके सामने नहीं होती। मुझे मेरे पिता जी "श्री अमित मेहरोत्रा" ने मेरा हौसला बढ़ाया है। वो चट्टान बन कर खड़े रहे और मेरी सहायता करते रहें और आज उनके कारण ही मैं मजबूत बन पाई हूं। मेरी बड़ी बहन "कुमारी कृति मेहरोत्रा" का भी बहुत बड़ा योगदान है।

--- श्रुति मेहरोत्रा

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बड़ी सोच का बड़ा जादू

आगरा शहर में एक बहुत बड़ा सेठ रहता था, उसका नाम श्रीनिवास था। उसका व्यापार न केवल भारत में बल्कि विदेशों तक फैला हुआ था।

श्रीनिवास का व्यवहार नौकरों और उससे कमजोर लोगों के प्रति बहुत ही बुरा था। वो उनकी इज्जत नहीं करता था। उसका एक सेवक थ जो श्रीनिवास के साथ हमेशा रहता था। उसका नाम प्रवीन था। वो श्रीनिवास के साथ पूरा दिन रहता था। वह और नौकरों से श्रीनिवास के लिए खास हो गया था। श्रीनिवास उससे इतना अच्छे से नहीं पेशाता था, इसके बावजूद भी प्रवीन अपने सेठ, अर्थात श्रीनिवास को अपना ईश्वर मानता था।

एक दिन जब श्रीनिवास गाड़ी से दफ्तर जाने को निकला तो उसे रास्ते में याद आया कि आज प्रवीन का जन्मदिन है। श्रीनिवास ने कहा " प्रवीन, यह पास वाली दुकान पर गाड़ी रोक लेना, मुझे कुछ काम है।" प्रवीन ने कहा " ठीक है सेठ जी।"

प्रवीन ने दुकान पर गाड़ी रोक दी और श्रीनिवास दुकान के अंदर चला गया और प्रवीन दुकान के बाहर खड़े हो कर श्रीनिवास का इंतजार करने लगा।

श्रीनिवास ने दुकान के मालिक से कहा " सोहन, मुझे कुछ कमीज़े दिखाओ। " सोहन कमीज़े दिखाने लगा। सोहन ने सबसे पहले 1500 रुपये की कमीज़ दिखाई तो श्रीनिवास ने कहा " सोहन, थोड़ी सस्ती कमीज़े दिखाओ।" सोहन ने 1000 रुपये की दिखाई तब श्रीनिवास ने कहा " थोड़ी और सस्ती।" सोहन ने 500 रुपये की दिखाई। श्रीनिवास ने कहा " सबसे सस्ती दिखाओ।" तब सोहन ने उसे 250 रुपये की कमीज़ दिखाई। श्रीनिवास ने पूछा " क्या यह कमीज़ इस दुकान की सबसे सस्ती कमीज़ है? " सोहन ने कहा " हां, यह इस दुकान की सबसे सस्ती कमीज़ है। पर आज मुझे एक बात नहीं समझ में आ रहा है कि आप हमारी दुकान से महेंगें से महंगा कपड़े खरीदते हैं पर आज आप इस दुकान का सबसे सस्ता कपड़ा ले कर जा रहे हैं। " श्रीनिवास ने उत्तर दिया " आज मेरे खास नौकर का जन्मदिन है। उसके लिए मेरी तरफ से यह उपहार है। " सोहन ने कहा " हां, नौकरों को ऐसा ही देना चाहिए। " श्रीनिवास वहां से 250 रुपये की कमीज़ लेकर दुकान से निकला और प्रवीन को दिया और कहा " प्रवीन, यह तुम्हारे लिए। जन्मदिन की शुभकामनाएं।" प्रवीन उपहार देखकर बहुत खुश हुआ और कहा " धन्यवाद, सेठ जी। " श्रीनिवास ने कहा " गाड़ी का दरवाजा तो खोलो, कि मुझे ही खोलना पड़ेगा?" प्रवीन ने दरवाजा खोला और श्रीनिवास गाड़ी में बैठा। फिर दोनों घर चले गए।

2 महीने बाद....

प्रवीन अकेले उसी दुकान पे गया जहां से श्रीनिवास ने उसके लिए कमीज़ ली थीं। दुकान में जाते ही सोहन से कहा " प्रणाम, सोहन जी। मुझे कुछ कमीज़े दिखाइए। " सोहन उसे कमीज़े दिखाने लगा। उसने सबसे पहले 250 रुपये की कमीज़ दिखाई तब प्रवीन ने कहा " थोड़ी महंगी वाली दिखाइए।" सोहन ने 500 रुपये वाली दिखाई इस पर प्रवीन ने कहा " और महंगी दिखाइए।" फिर सोहन ने 1000 रुपये की दिखाई तो सोहन ने कहा " थोड़ी और महंगी है? " फिर 1500 रुपये की दिखाई। प्रवीन को 1500 रुपये वाली कमीज़ अच्छी लगी और उसने सोहन से पूछा " इसका रंग तो नहीं उतरेगा? " सोहन ने कहा " नहीं, प्रवीन, हमारे यहाँ सब अच्छी कमीज़े रहती हैं और तुम्हारे सेठ भी तो यहाँ से ही ले कर जाते हैं। प्रवीन मुझे एक बात बताओ कि तुम तो पैसे की कमी के कारण सस्ती से सस्ती कमीज़े लेकर जाते हो लेकिन आज तुमने इस दुकान की सबसे महंगी कमीज़ लेकर जा रहे हो।" प्रवीन ने हंसते हुए उत्तर दिया " कि आज मेरे सेठ जी का जन्मदिन है और मैं उन्हें यह उपहार में दूंगा। " सोहन ने कहा " हां, तुम्हारे सेठ जी को यह कमीज़ बहुत पसंद आएगी। वह खुश हो जाएंगे। "

सोहन कि दुकान पे काम करने वाला यह देख रहा था। उस लड़के ने सोहन से पूछा " मालिक मुझे यह बात समझ में नहीं आ रही है कि सेठ के पास इतना पैसा होने के बाद भी उन्होंने नौकर के लिए इस दुकान कि सबसे सस्ती कमीज़ ले गए और दूसरी तरफ नौकर जिसके पास पैसे नहीं हैं उसने अपने सेठ के लिए इस दुकान कि सबसे महंगी कमीज़ ली। ऐसा क्यों?" तब सोहन ने उस लड़के को समझाया और उससे कहा " सच कहते हैं लोग कि इंसान पैसों से नहीं बल्कि दिल से अमीर होता है। यहां सही मामले में सेठ नहीं नौकर अमीर हैं। "

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