पापा कि गुड़िया Divana Raj bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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पापा कि गुड़िया

पापा कि गुड़िया

भाग -3

दिवाना राज भारती ।

मेहमान के जाते हि पापा और निराश हो गये और बोले,

पापा - राज ये गाँव है, यहाँ शादी में पैसा खर्च करना हि पड़ता है, इसतरह स्टांप पेपर पे कुछ शर्ते लिखकर, कुछ लोगों के हस्ताक्षर ले के शादी नहीं होगी, कोई नही मानेगा तेरी बात, आजकल सब अपना फायदा देखता हैं।

मैं :- पापा मुझे समझ नही आता है कि लोगों का सोच ऐसा क्यों हो गया हैं, अगर घर मे बेटा पैदा होता हैं तो लोग कहते है बढाई हो आपकी लाटरी लग गयी, अब तो दहेज आयेगा ही, और उसी दिन से बेटे वाले खुद को राजा समझने लगते है, अगर बेटी पैदा होती हैं तो हल्की खुशी के बाद, निराशा शुरू हो जाती हैं उसी दिन से, कि बेटी कि शादी कैसे होगी कहां होगी, और अपनी कमाई मे से दहेज के लिए पैसे जोड़ने शुरू कर देते हैं। जिसके घर बेटी है उसके मन मे हमेशा एक डर लगा होता है, अगर बेटी घर से बाहर कदम रखे, तो वापस घर आयेगी भी या नहीं क्योंकि आवारा लड़के घर के बाहर मर्दानगी का प्रदर्शन करते फिरते है। अगर बेटी घर लेट से आये तो सब पूछते है, संस्कारी न होने का डाट भी लगाते है, और बेटा बाहर क्या कर रहा है किसी को पता भी नहीं होता, उसे अपनी मर्जी से घर आने जाने का परमिट मिला होता है। बचपन मे तो कभी कोई अपने बेटे को संस्कार नही देता, फिर उससे उपेक्षा क्यों किया जाता है कि वह बड़ा हो कर अपनी माँ-बाप कि सेवा करे, या फिर लड़की की आदर करें, उन्हें सम्मान दे, हर लड़के को बचपन मे ही क्यों नहीं बताया जाता है कि अकेली लड़की मौका नहीं जिम्मेदारी है। अगर कोई लड़की किसी लड़के से बात करती है तो लोग कहते है लड़की बदचलन है। लेकिन लड़के जब लड़कियाँ से बात करते है तो कोई क्यों नहीं कहता कि लड़का बदचलन है, तब तो लडकों के लिए ये सम्मान कि बात हो जाती है। लोग कहते है कि लड़के के उपर खर्च किया है इसलिए दहेज चाहिए ये रिवाज है, मुझे नही पता कि ये शुरू कहां से हुआ और क्यों हुआ। मै कहता हूँ कि लड़के में खर्च होता और क्या लड़की में खर्च नही होता, लड़की मे तो लड़के से ज्यादा खर्च होता है। सुना है बेटी घर कि लक्ष्मी होती है, उसके आते ही घर मे मधुर वातावरण हो जाता है, बचपन की उसकी किलकारियाँ, उसकी बातें, उसकी नादानी, उसके हाथ का परोसा खाना, खाने के बाद जो दिल को सुकून मिलती है, वो क्या जाने जिसके घर बेटी नहीं हैं। भगवान् मौका भी देता है उन बेटे वाले को जिनके घर बेटी नहीं है, अपने घर बहू नहीं बेटी लाने का, लेकिन पैसे दहेज कि आर में वो बहू खोजते है जो अपने संग सम्पत्ति ले के आये, संस्कार के बारे मे तो कोई सोचता हि नही, अगर सम्पत्ति लोगे तो सुकून कहां मिलेगा। सोचने कि बात हैं अगर नहीं होगी घर मे बेटियाँ तो कहां से खाओगे रोटियाँ। पापा हमें दिल छोटा नही करना चाहिए। हम तो किस्मत वाले है कि हमारी घर बेटी है। हमारा दिल भी बहुत बड़ा है तभी तो लड़की कि परवरिश करते है, और जरूरत पड़ने पर उसकी खुशी के लिए दहेज भी देते है। छोटे तो वो लड़के या वो बेटे वाले है जो अपने बेटे पे किये खर्च और शादी के लिए भी पैसे मांगते हैं।

पापा :- हाँ, सही बोल रहे हो तुम, अब चिंता नही करना है जो होगा देखा जायेगा,

इस तरह उस दिन कि महफिल वही खत्म हो गयी। अगले दिन फिर मै वापस शहर आ गया। कुछ दिन बाद पापा फिर बोले किसी लड़के के बारे में, देखेंने आने लेकिन मैं नहीं जा पाया अपनी परिक्षा के वजह से, फिर पापा से पता चला कि बात पक्की हो गयी, अब बस शादी की तिथि तय करना बाकी हैं। फिर शादी कि तिथि मेरी परिक्षा के बाद रखीं गयी। पापा से ही पता चला था कि लड़का इंजीनियर है, और उच्च पद पे काम कर रहा है किसी कंपनी मे देखने में भी अच्छा है।

धीरे-धीरे वक्त गुजरने लगा, घर मे तैयारी जोड़ों शोरो से चल रही थी। आखिर वो दिन भी आ गया जिस दिन बरात आने वाली थीं। लेकिन शुबह मे ही जो हुआ उसकी कल्पना कोई नहीं किया था, सारा घर आंगन शोक में दूब गया, क्योंकी गुड़िया ने विषैली दवा पी ली थीं,। जब तक लोगों को पता चलता उसकी जान जा चुकी थीं। सबका रो रो के बुरा हाल था, लेकिन हमे पता नही चल पाया था अब तक की गुड़िया ने अपनी जान ली क्यों।

जब सारा मामला शांत हो गया, मैं किसी काम से अपनी किताब पलट रहा था तभी उसमे लिखा कुछ दिखा, आज फिर गुड़िया कापी कि जगह किताब में ही लिख दीं थीं। मैं वो पेज फाड़ पापा को दे आया।

उसमें जो लिखा था वो कुछ इसप्रकार था।

पापा मुझे माफ कर दिजिये कि मै ये कदम उठायी, मै ये शादी नही करना चाहती थीं, अगर आपको बताती तो शादी टूट जाती और आपकी बदनामी होती इसलिए मै ये कदम उठायी। लोग कहते है बेटी बोझ होती है, लेकिन आपने ये कभी नही माना, हमेशा आपने मुझे प्यार दिया लड़कों के संग चलना सिखाया, आपने हमेशा माना कि लड़की लड़कों से कम नही है। अगर आज मेरी शादी हो जाती तो लोग सच मानने लगती कि बेटी बाप पे बोझ होती है, आपके जैसा हिम्मत वाला इंसान आज तक नहीं देखा, आपने हमेशा मेरे लिए दुनिया से लड़ते रहे कि मेरी बेटी भी वो करेगी जो लड़के करते है। आपने मुझे हमेशा खुशी दी है। आज मेरी शादी के लिए आपने अपनी सारी जमा पूँजी बेच दीया तनिक ये सोचे कि मेरी शादी बाद आपका क्या होगा। मै उस घर मे कैसे खुश रह पाती जिस घर मे रिश्ते से ज्यादा पैसा पूजनीय हो। मुझे पता है लोग उस पिता का दर्द क्या समझेंगे जिसकी जमीन भी गयी और बेटी भी। मैं नहीं रहूँगी तो क्या हुआ कम से कम आपके पास रहने कि लिए घर तो रहेगी जिसको आपने अपनी खून पसीने से बनाया है और मैने अपने हाथों से सजाया है। बेटी तो फिर आयेगी जब भैया कि शादी होगी क्योंकी मुझे उम्मीद है, आप अपनी बेटी की खातिर, आप बिना दहेज भैया कि शादी करेंगे और अपने घर एक बहू नही एक गुड़िया बेटी लायेंगे। फिर एक पिता ही सही ये तो कहेगा कि बेटी बोझ नहीं है खुशियों का खजाना है।

और जिस तरह देखा देखीं दहेज की शुरुआत हुई वैसे ही शायद बन्द भी जाये।

आपकी गुड़िया बेटी।

ये पढ़ कर हमारी आँखो मे आँसू आ गये। जाते-जाते गुड़िया मुझे इतना बात तो बता ही गयी थीं कि, बेटी न तो परायी और न पराया धन होती है, ये तो अनमोल रत्न होती है क्योंकि धन तो खर्च हो जाते है लेकिन अनमोल रत्न घर मे रह जाते हैं। आखिर क्या होती है बेटी, आती है घर मे तो खुशी ले कर आती है और गयी तो भी किसी के खुशी की खातिर।

बस इतनी सी थी ये कहानी।

आपको ये कहानी कैसी लगी, आप अपना विचार अवश्य दे। अगर आप मुझसे कुछ कहना चाहते है तो मुझे मेल अवश्य करे।

divanaraj@gmail.com.

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