शंकर ओ रे शंकर। हां भाभी, क्या हुआ काहे हमारा नाम पुकारे जा रही हो ? अरे वक्त देख। तेरे भैया वहां खेत पर खाने की राह देख रहे होंगे और तू यहां खाट तोड़ रहा है। भाभी हम तो खेत पर जाने के लिए ही यहां बैठे थे आप खाना दो तो हम जाए ना। हां, पता है तू यहां क्या कर रहा था। चल ले और जल्दी जा। वो भूखे बैठे होंगे। ओहो... भाभी अब भी इतना प्यार। उनकी इतनी भी चिंता मत किया करो भाभी। चल भाग बहुत शरारती हो गया है। तेरा ब्याह होने के बाद देखूंगी कि वो तेरा कितना ख्याल रखती है। अरे भाभी कहां हमारे ब्याह की बात ले आई। हम नहीं करने वाली शादी। हम तो बस आपकी और भैया की सेवा करते रहेंगे पूरी जिंदगी। शादी कर ली तो उसके नखरे अलग से उठाने होंगे। तू तो मेरा बेटा है। तेरी तो शादी मैं ही कराउंगी। देखना चांद सी दुल्हन लेकर आउंगी अपने बेटे के लिए। दुल्हन तो बाद में लाना, पहले इस भूखे को कोई खाना खिलाएगा ? शंकर के भाई हरी ने दरवाजा खोलते हुए बरामदे में आते हुए कहा। अरे भैया आप आ गए, हम तो खेत पर ही आ रहे थे। ये देखो भाभी ने खाना भी बांध दिया था।

Full Novel

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वजूद - 1

प्रशांत शर्मा भाग 1 शंकर ओ रे शंकर। हां भाभी, क्या हुआ काहे हमारा नाम पुकारे जा रही हो अरे वक्त देख। तेरे भैया वहां खेत पर खाने की राह देख रहे होंगे और तू यहां खाट तोड़ रहा है। भाभी हम तो खेत पर जाने के लिए ही यहां बैठे थे आप खाना दो तो हम जाए ना। हां, पता है तू यहां क्या कर रहा था। चल ले और जल्दी जा। वो भूखे बैठे होंगे। ओहो... भाभी अब भी इतना प्यार। उनकी इतनी भी चिंता मत किया करो भाभी। चल भाग बहुत शरारती हो गया है। तेरा ...और पढ़े

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वजूद - 2

भाग 2 शंकर ने कुसुम की बात का जवाब देते हुए कहा- भाभी आप हमें अपना बेटा मानती हो तो फिर हमको इस सब झमेले में मत फंसाओ। हम तो अपनी भाभी मां और बड़े भैया की सेवा में बहुत खुश है। आप दोनों हो तो फिर हमें काहे की चिंता है। हरी ने कहा और अगर हम नहीं हुए तो ? शंकर गुस्सा होते हुए- ऐस कभी मत कहना भैया। वरना हम आपसे कभी बात नहीं करेंगे। आप कहां जाएंगे ? आप जहां जाएंगे हम भी आपके साथ आएंगे। हम आपको और भाभी को कभी भी नहीं छोड़ेगें। ...और पढ़े

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वजूद - 3

भाग 3 वहीं तो भैया आज घर पर हो तो थोड़ा आराम कर लो रोज तो खेत में काम करते हो। ये काम तो हम यूं ही चुटकियों में कर देंगे। लाइए हमें दीजिए हम चारा डाल देते हैं। शंकर ने हरी की बात को काटते हुए कहा। अब तू मानने वाला तो हैं नहीं चल तू ही कर ले। हरी फिर से खाट पर बैठते हुए बोला। शंकर ने फिर से गमछा अपनी कमर में बांधा और गाय को चारा डाल दिया। गाय को चारा डालने के बाद उसी गमछे से अपना पसीना पोंछते हुए बोला- अरे बाप ...और पढ़े

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वजूद - 4

भाग 4 अगले दिन सुबह शंकर जल्दी उठकर गाय को चारा डालने से लेकर घर के बरामदे की सफाई काम करता है। हरी खेत पर चला जाता है और कुसुम घर के अन्य कामों में व्यस्त हो जाती है। दिन में खाना बन जाता है और शंकर समय पर खाना लेकर खेत पर आ जाता है। हरी और शंकर दोनों साथ में खाना खाते हैं। शंकर खेत में हरी की कुछ मदद करता है और करीब 4 बजे घर के लिए निकल जाता है। घर जाते हुए वो सब्जी और घर को थोड़ा सामान खरीदता है और फिर घर ...और पढ़े

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वजूद - 5

भाग 5 काकी वो शहर है अपना गांव नहीं। वहां बहुत काम होता है वक्त नहीं मिला होगा कमल इसलिए नहीं आ सका होगा। ऐसे ही बात करते हुए सुखिया काकी का घर आ जाता है शंकर थैला घर के अंदर रखता है और काकी के पैर छूकर फिर अपने घर के लिए रवाना हो जाता है। आ गया क्यों बुलाया था प्रधान जी ने ? कुसुम ने शंकर से प्रश्न किया। वो पंचायत कार्यालय की छत टूट गई है। उसकी मरम्मत करना है। बारिश आने वाली है तो कार्यालय में पानी भर जाएगा। शंकर ने जवाब दिया। ठीक ...और पढ़े

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वजूद - 6

भाग 6 शाम को खाना खाते हुए हरी ने शंकर से कहा- शंकर अगले रविवार को तुम सुखराम काका साथ शहर चले जाना। उनका काम है वो करके अगले दिन वापस आ जाना। शंकर ने हां कहा। फिर हरी ने कहा कि मैं चला जाता पर मैं दूसरे शहर जा रहा हूं बीज और खाद लेने के लिए। अब शंकर चौंक गया। मतलब भैया आप भी यहां नहीं होंगे और मैं भी, तो फिर भाभी...। ना हम भाभी को अकेले छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। आप सुखराम काका को बोल देना किसी को और को ले जाएं। नहीं शंकर अब ...और पढ़े

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वजूद - 7

भाग 7 अरे भागवान बारिश यहां हो रही है जरूरी तो नहीं कि शहर में भी हो रही हो। तुम चिंता मत करो आराम से सो जाओ कल शाम तक तो वो घर आ जाएगा। हां आपका क्या ? आप क्यों चिंता करोगे मेरा बेटा है वो। दिनभर भाभी, भाभी करके आगे पीछे घूमता रहता है। हां बेटे की इतनी चिंता। चलो अब आराम से सो जाओ। शाम तक आ जाएगा तुम्हारा बेटा। फिर दोनों सो जाते हैं। उनके सोने के कुछ ही देर बाद अचानक बारिशा शुरू हो जाती है। बारिशा लगातार तेज होती जाती है। निचले स्तर ...और पढ़े

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वजूद - 8

भाग 8 कड़ी मशक्कत के बाद गांव के बचे हुए लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया था और खाने-पीने और रहने की व्यवस्था प्रशासन द्वारा की गई थी। बचे हुए लोगों की आंखे अब भी बहते पानी में और गांव की तबाही के बाद बचे हुए मलबे में अपनों को तलाश रही थी। हालांकि उम्मीद किसी को नहीं थी फिर तलाश जारी थी। कई आंखों में उस तबाही की दहशत साफ देखी जा सकती थी और कई आंखे अपनों के खोने के गम से अब तक नम थी। गांव तो फिर बस सकता था परंतु जिनके घर अपनों ...और पढ़े

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वजूद - 9

भाग 9 तभी उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा। उसने पलटकर देखा तो सेना का एक जवान था। ना पाने की स्थिति में शंकर की आंखों से सिर्फ आंसू बह रहे थे उसने हाथों से इशारा कर अपने घर के बारे में उससे पूछा। सेना के जवान ने उसे कहा कि यह इलाका नदी के सबसे पास था। यहां जो कुछ भी था वो पानी में बह चुका है। हम दो दिन से यहां है यहां बहुत तलाशी लेने के बाद भी हमें यहां कुछ नहीं मिला है। उस जवान की बात सुनने के बाद शंकर लगभग बेहोश ...और पढ़े

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वजूद - 10

भाग 10 वक्त की एक करवट ने क्या से क्या कर दिया था। शंकर ना खुद को संभाल पा था और ना ही अपने भैया और भाभी की याद को अपने दिल से निकाल पा रहा था। वो खुद को कोस रहा था कि आखिर वो शहर गया ही क्यों ? वो शहर ना जाता तो वो अपने भैया और भाभी को बचा सकता था। वो होते तो घर फिर से बनाया जा सकता था, पर अब उसके पास अफसोस करने के सिवाय कुछ नहीं था। उस पत्थर पर बैठे शंकर के मन में कई ख्याल थे। दिन ढला, ...और पढ़े

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वजूद - 11

भाग 11 पर.... गोविंद राम कुछ कह रहे थे उससे पहले ही उसे व्यक्ति ने प्रधान को रोकते हुए पर नहीं प्रधान जी दस्तावेज। बिना दस्तावेज के मैं राशि नहीं दे सकता। पर इसके पास कोई दस्तावेज नहीं है। प्रधान ने एक बार फिर कहा। पहचान का दस्तावेज तो देना होगा प्रधान जी। मेरी भी नौकरी का सवाल है। कोई छोटी रकम तो है नहीं किसी गलत व्यक्ति को दे दी और जांच बैठ गई तो मैं इतनी बड़ी रकम कहां से भरूंगा ? पर किसी के पास कोई दस्तावेज हो ही ना तो। प्रधान ने फिर कहा। प्रधान ...और पढ़े

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वजूद - 12

भाग 12 मैं शंकर हूं। वो पास के गांव में बाढ़ आई थी, मेरा पूरा घर बह गया। हां, ठीक है यहां क्यों सो रहे हो। जाओ कहीं ओर जाओ। शंकर वहां से उठा और चला गया। उसने सोचा एक बार फिर साहब से जाकर मिलता हूं और उन्हें समझाता हूं कि उसके पास कोई दस्तावेज नहीं है। वो उसे रूपए दे दे। कम से कम उसके पास रहने और खाने का कुछ ठिकाना हो जाएगा। यह सोचकर शंकर फिर अपने गांव की ओर चल दिया। गांव पहुंचने के बाद वो सीधा कलेक्टर ऑफिस के लिए रवाना होता है। ...और पढ़े

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वजूद - 13

भाग 13 हां भाई क्या हुआ ? उस सिपाही ने शंकर से पूछा। साहब... वो... वो... साहब....। शंकर अब डरा हुआ था, क्योंकि वो पहली बार पुलिस के सामने आया था। पुलिस चौकी तक आना ही उसके लिए एक नया अनुभव था। परंतु उसकी मजबूरी उसके कदमों को यहां तक ले आई थी। शंकर को डरा सहता देखकर सिपाही ने उसे कंधे पर हाथ रखा, फिर कहा- घबराओ नहीं बताओ क्या बात है ? किसी के साथ झगड़ा हुआ है ? सिपाही ने यह सवाल इसलिए किया था क्योंकि शंकर के कपड़े बहुत गंदे थे। उन पर मिट्टी लगी ...और पढ़े

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वजूद - 14

भाग 14 इंस्पेक्टर ने शंकर से कहा कि पहले तुम यह खा लो। फिर तुम्हारी एफआईआर की बात करेंगे। ने तुरंत ही नाश्ता कर लिया। जिस गति से वो खा रहा था उसे देखकर लग रहा था कि वो बहुत भूखा है। नाश्ता करने के बाद वो दो गिलास पानी भी पी गया। फिर इंस्पेक्टर के पास पहुंचा और कहा आपका बहुत बहुत धन्यवाद साहब। हम तीन दिन से भूखे थे, आपने हमको खाना खिलाकर हम पर उपकार किया है। हम आपका यह उपकार जिंदगी भर नहीं भूलेंगे। अब एक उपकार और कर दो हमको वो एफआईआर दे दो। ...और पढ़े

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वजूद - 15

भाग 15 शंकर जिद मत करो, तुम्हारे भैया के आने के बाद ही मिलेगा। शंकर रूठकर वहां से चला है और बाहर खाट पर जाकर बैठ जाता है। कुसुम रसोई से उसे देखकर मुस्कुरा रही थी। फिर उठती है और एक प्लेट में सभी पकवान थोड़े-थोड़े लेकर आती है और शंकर के पास बैठ जाती है। फिर शंकर से पूछती है- बहुत भूख लगी है मेरे बेटे को ? भाभी इन पकवानों की खूशबू ही इतनी अच्छी है कि किसी को भी भूख लग जाएगी। थोड़ा सा दो ना। नहीं का मतलब नहीं होता है शंकर। कुसुम ने कहा। ...और पढ़े

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वजूद - 16

भाग 16 रात होने को थी तो उसने रात पुलिस चौकी के पास ही काटी। सुबह होने पर वो दुकान पर गया जहां से पुलिस चौकी का सिपाही उसके लिए रात के समय खाना और सुबह के समय नाश्ता लेकर आया था। वो दुकान के बाहर खड़ा हो गया। जब उसने देखा कि एक बार दुकानदार ने उसे देख लिया है तो उसने वहां बड़े से थाल में रखे समोसे उठाए और भागने लगा। दुकानदार ने उसे पकड़ लिया और दो-चार हाथ जमा दिए। फिर वो उसे पकड़कर सीधे पुलिस चौकी ले आया। उस समय इंस्पेक्टर वहीं मौजूद था। ...और पढ़े

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वजूद - 17

भाग 17 शंकर के लिए ? प्रधान गोविंदराम ने चौंक कर पूछा। हां शंकर के लिए। आप सभी गांव लोग उसे बरसों से जानते हैं। गांव के कोई पांच या सात लोग एक कागज पर लिखकर दे दें कि आप लोग शंकर को कई वर्षों से जानते हैं तो उसे भी सहायत राशि मिल जाएगी। उसके पास उसका एक ठिकाना हो जाएगा और उसकी जिंदगी फिर से पटरी पर लौट आएगी। इंस्पेक्टर की बात को सुनकर गोविंदराम इस बार कुछ गंभीर होकर बोले- साहब आप तो सरकारी कामकाज से अच्छे से वाकिफ है। हम ठहरे गांव के लोग कोई ...और पढ़े

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वजूद - 18

भाग 18 उधर शंकर रोज चौकी पहुंचता था और सफाई कर गांव का चक्कर लगाने आ जाता था। यहां लोग उसे काम देते वो काम करता कोई उसे पैसा देता और कोई कुछ खाने-पीने का देकर उसे रवाना कर देता। शंकर इसे भी गांव के लोगों का प्यार सही समझ रहा था। हालांकि वह यह नहीं समझ पा रहा था कि गांव वाले अब उसके लिए बदल गए हैं, उनकी सोच में परिवर्तन आ गया है। यह बात वो इंस्पेक्टर समझ रहा था इसलिए वो शंकर को लेकर परेशान भी था। आखिर उसने एक दिन कलेक्टर से मिलने का ...और पढ़े

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वजूद - 19

भाग 19 एक इंस्पेक्टर अविनाश ही था जो उसकी चिंता किया करता था परंतु उसका तबादला होने जाने के से शंकर की देखरेख करने वाला कोई नहीं था। अब शंकर की दाड़ी बढ़ गई थी, कपड़े भी फट गए थे। पैरों के जूते भी पूरी तरह से टूट चुके थे। टूटे जुते होने के कारण उसके पैरों में कई जख्म हो गए थे। अब हालात यह हो गई थी कि शंकर को काम करने में भी दिक्कत आती थी और वह लोगों के घरों पर भीख मांगने को मजबूर हो गया था। सुखराम काका हो, प्रधान गोविंदराम हो, मेहर ...और पढ़े

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वजूद - 20

भाग 20 आप लोगों ने उसकी कोई मदद नहीं की ? हम क्या मदद करते साहब। उस हादसे ने पूरे गांव के लोगों की कमर तोड़कर रख दी थी। यहां तो अभी खुद के ही लाले थे तो उसकी मदद कैसे करते थे। प्रधान गोविंदराम ने कहा। फिर भी आपके ही गांव का बच्चा था वो आप सभी मिलकर उसका ध्यान रख सकते थे। आज पता नहीं कहां होगा, किस हाल में होगा ? इंस्पेक्टर ने चिंता जाहिर करते हुए कहा। मैं समझ सकता हूं साहब। पर क्या करें जब अपनी ही गुजर बसर मुश्किल हो तो फिर एक ...और पढ़े

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वजूद - 21

भाग 21 इंस्पेक्टर अविनाश डॉक्टर की बातों को सुन भर रहा था। वह डॉक्टर की बातों को सुनकर उदास गया था। वैसे अगर आप बुरा ना माने तो एक बात पूछ सकता हूं ? डॉक्टर ने सवालिया नजरों से अविनाश की ओर देखा। जी हां, पूछिए डॉक्टर साहब। अविनाश ने जवाब दिया। यह व्यक्ति कौन है और आपका इससे क्या रिश्ता है ? डॉक्टर ने फिर पूछा। थ्रश्ता तो बस एक इंसान का दूसरे इंसान से जो होता है वहीं है। और रही बात यह कौन है तो इसका नाम शंकर है। यह पास के एक गांव में अपने ...और पढ़े

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वजूद - 22

भाग 22 थोड़ी ही देर में कुसुम एक पोटली लेकर आई और शंकर की पीठ को सेंकने लगी। ज्यादा तो नहीं है ना शंकर ? कुसुम ने पूछा। नहीं भाभी ठीक है आराम मिल रहा है। शंकर ने जवाब दिया। हां इसलिए तो सेंक रही हूं। वैसे तुम्हें बुखार भी है। कुसुम ने चिंता जाहिर करते हुए कहा। हां भाभी दर्द के कारण कुछ बुखार आ गया है। शंकर ने फिर जवाब दिया। ये कुछ नहीं है शंकर, यह बहुत तेज बुखार है। अब तुम एक काम करो आंखें बंद करके लेट जाओ, मैं ठंडे पानी की पट्टी तुम्हारे ...और पढ़े

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वजूद - 23

भाग 23 तकरीबन 1 महीने में वो पूरी तरह से ठीक हो सकता था ऐसा डॉक्टर का कहना था। ने उसे हॉस्पिटल में ही रहने दिया ताकि उसका पूरा और अच्छी तरह से इलाज हो सके। एक दिन रास्ते में प्रधान गोविंद राम और इंस्पेक्टर अविनाश रास्ते मिले। इंस्पेक्टर साहब नमस्ते। गोविंदराम ने कहा। नमस्कार प्रधान जी। कैसे हैं ? बस हम तो ठीक है। आप बताइए शंकर का कुछ पता चला ? जी, हां मिल गया है करीब एक महीना हो गया है। गांव के बाहर जो मंदिर है वहीं था। बहुत बीमार था। फिलहाल हॉस्पिटल में उसका ...और पढ़े

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वजूद - 24

भाग 24 गांव वालों की बातें सुनने के बाद वह काफी उदास हो गया था। एकबार फिर उसे अपने और भाभी याद आ गए थे। वो बैठा सोच ही रहा था कि तभी इंस्पेक्टर अविनाश वहां आ जाता है। वह काफी खुश नजर आ रहा था। वो सीधे शंकर के पास आया और बोला शंकर कैसा है ? ठीक लगा रहा है। ये देख मैं तेरे लिए नए कपड़े लेकर आया हूं। जब हम हॉस्पिटल से घर चलेंगे तो तू यही कपड़े पहनना। वैसे तेरे लिए एक अच्छी खबर भी लाया हूं। मेरा प्रमोशन मेरा मतलब मेरी तरक्की हो ...और पढ़े

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वजूद - 25

भाग 25 बात क्या है डॉक्टर ? मैं आता हूं पर आप कुछ तो बताइए ? इंस्पेक्टर वो... वो... बिना बताए कहीं चला गया है। आप बस जल्दी से आ जाइए। डॉक्टर ने इंस्पेक्टर अविनाश को सिर्फ इतना ही बताया और फोन कट कर दिया। हैलो... हैलो डॉक्टर... हैलो...। इंस्पेटर अविनाश बार-बार डॉक्टर को पुकार रहा था परंतु फोन कट हो चुका था। इंस्पेक्टर अविनाश तुरंत ही चौकी से बाहर निकला, अपनी बाइक उठाई और हॉस्पिटल की और दौड़ा दी। कुछ ही देर में इंस्पेक्टर अविनाश हॉस्पिटल पहुंच गया था। वो सीधे डॉक्टर के केबिन में चला गया। कहां ...और पढ़े

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वजूद - 26

भाग 26 जी सही कह रहे हैं आप। वैस आप बताए अब गांव के क्या हालात है ? अब सब सामान्य हो गया होगा ? जी, हां अब तक काफी हद तक सामान्य है। पर उस तबाही का डर अब भी लोगों के दिलों में हैं। इस कारण ही मैंने इस बार गांव वालों को नदी से दूर रहने की ही सलाह दी थी। नदी से दूर जितने गांव थे उन्हें नुकसान कम हुआ था। हां, नदी किनारे के घरों का तो कुछ पता ही नहीं चला। अविनाश ने कहा। हां, साहब आप सही कर रहे हैं। प्रधान गोविंदराम ...और पढ़े

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वजूद - 27

भाग 27 एक बार अविनाश को किसी केस के कारण पास के एक शहर में जाना पड़ा था। उसके उसका एक अधिकारी भी था। इस कारण उन दोनों के बीच काम को लेकर ही बात चल रही थी। वे दोनों एक जीप में सवार होकर कहीं जा रहे थे, तभी अविनाश की नजर बाहर बाजार की ओर गई। वहां उसे ऐसा लगा जैसे उसने शंकर को देखा है, क्योंकि वो उन्हीं कपड़ों में था जो अविनाश उसके लिए लाया था। जरूरी काम और अधिकारी के साथ होने के कारण अविनाश जीप को रूकवाकर उतर नहीं सका। हालांकि वो बार-बार ...और पढ़े

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वजूद - 28

भाग 28 अविनाश आनन-फानन में अपने अधिकारी से कहता है कि उसे एक जरूरी काम आ गया है, इसलिए अगली ट््रेन से आ जाएगा। इतना कहने के बाद वो तुंरत ही स्टेशन से बाहर निकलता है और दुकानदार द्वारा बताई जगह पर पहुंचता है। अविनाश दुकान पर पहुंचते ही दुकानदार से पूछता है कहां है वो आदमी ? दुकानदार उसे एक बेंच की ओर इशारा करते हुए कहता है कि वो बैठा है साहब। पर वहां कोई नहीं था। दुकानदार ने फिर कहा अरे अभी तो यही बैठा था अचानक कहां चला गया ? अविनाश ने कहा अरे जल्दी ...और पढ़े

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वजूद - 29

भाग 29 जब उसकी नींद खुली तो शाम हो चुकी थी। हालांकि शंकर उठकर मंदिर तक जाने की स्थिति नहीं था। फिर उसने बड़ी हिम्मत की और खुद को लगभग घसीटते हुए मंदिर के अंदर लेकर गया। वहां उसने देखा कि शायद कुछ खाने को मिल जाए पर मंदिर में और भगवान की प्रतिमा के सामने कुछ नहीं था। कुछ फूल थे वो सूख चुके थे। वो निराश होकर फिर खुद घसीटते हुए उसी जगह आ गया था। उसके पास एक पानी की बोतल थी उसमें कुछ पानी था वो एक सांस में उसे गटक गया था। पर उस ...और पढ़े

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वजूद - 30 - अंतिम भाग

भाग 30 शंकर के मृत शरीर के पास पहुंंचने के बाद अविनाश ने शंकर के सिर पर हाथ रखा, आंखों में आंसू आ चुके थे। उसका दिल भर चुका था। उसका दिल तो चाह रहा था वो फूट-फूटकर रोए पर वो ऐसा कर नहीं सकता था। उसने अपनी आंखों से पौछे और फिर उठकर खड़ा हो गया। अब उसने कहा- क्या कोई इसे पहचानता है ? अविनाश खास तौर पर प्रधान गोविंदराम को देखते हुए कहा। क्या हम पास से देख सकते हैं ? इस बार प्रधान ने अविनाश से प्रश्न किया। जी बिल्कुल, आइए। अविनाश ने जवाब दिया। ...और पढ़े

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