वजूद - 15 prashant sharma ashk द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वजूद - 15

भाग 15

शंकर जिद मत करो, तुम्हारे भैया के आने के बाद ही मिलेगा।

शंकर रूठकर वहां से चला जाता है और बाहर खाट पर जाकर बैठ जाता है।

कुसुम रसोई से उसे देखकर मुस्कुरा रही थी। फिर उठती है और एक प्लेट में सभी पकवान थोड़े-थोड़े लेकर आती है और शंकर के पास बैठ जाती है। फिर शंकर से पूछती है- बहुत भूख लगी है मेरे बेटे को ?

भाभी इन पकवानों की खूशबू ही इतनी अच्छी है कि किसी को भी भूख लग जाएगी। थोड़ा सा दो ना।

नहीं का मतलब नहीं होता है शंकर। कुसुम ने कहा।

ओह ये भैया भी पता नहीं कहां रह गए हैं, और पता नहीं कब तक आएंगे।

तभी कुसुम उसकी ओर वो थाली बढ़ा देती है और कहती है पर अपने भैया को मत बोलना कि तुमने खा लिया था।

शंकर हंसते हुए प्लेट पकड़ता है और कहता है बिल्कुल नहीं भाभी। मेरी सबसे अच्छी भाभी। और फिर खाना शुरू कर देता है। कुसुम उसके सिर पर हाथ फिराती है और कहती है कि मेरे होते हुए मेरा बेटा कभी भूखा नहीं रह सकता।

थोड़ी देर बाद हरी भी शहर से वापस आ जाता है और फिर तीनों एक साथ खाना खाते हैं।

अपने ख्यालों में गुम शंकर को कब नींद आ जाती है उसे पता ही नहीं चलता है।

अगले दिन सुबह वहीं सिपाही शंकर को नींद से जगाता है। कुछ देर के लिए शंकर बाहर निकल जाता है। जब वो वापस आता है तो सिपाही उसे चाय और नाश्ता देता है फिर उसे नए कपड़े भी दे देता है। चौकी के पास ही शंकर नहा-धोकर तैयार हो जाता है। कुछ ही देर बाद वो इंस्पेक्टर भी चौकी पर पहुंच जाता है। शंकर का हुलिया अब पूरी तरह से बदल गया था। शंकर को देखकर इंस्पेक्टर खुश होता है फिर वो शंकर से पूछता है कि उसने चाय नाश्ता कर लिया है ? शंकर उसे हां में जवाब देता है और नए कपड़ों के लिए उसका आभार व्यक्त करता है। इंस्पेक्टर उसे कहता है कि वो अपना रोज का थोड़ा सा काम निपटा ले उसके बाद उन साहब के पास चलेंगे। शंकर वहीं बैठ जाता है। करीब एक घंटे में इंस्पेक्टर अपना काम निपटाता है और शंकर को लेकर उन साहब से मिलने के लिए कलेक्टर ऑफिस पहुंच जाता है। शंकर इंस्पेक्टर को सीधे उन साहब के पास ले जाता है।

कलेक्टर ऑफिस का बाबू इंस्पेटर को बताता है कि पहचान संबंधी दस्तावेज देखने के बाद वे शंकर को बाढ़ राहत सहायता राशि दो लाख रूपए तत्काल प्रदान कर सकते हैं। इंस्पेक्टर उसे बताता है कि उसके पास कोई कागज नहीं है तो फिर उसे यह राशि कैसे प्राप्त होगी ? बाबू इंस्पेक्टर से कहता है कि यदि इसके गांव के 10 या पांच लोग भी लिखकर अगर दे दें कि यही शंकर है और वे इसे जानते हैं तो भी इसे राशि मिल जाएगी। इसके बाद इंस्पेक्टर और शंकर फिर पुलिस चौकी पर आ जाते हैं। शंकर को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वहां इंस्पेक्टर और उन साहब के बीच क्या बात हुई है। शंकर अब इंस्पेक्टर से पूछता है- वो साहब मुझे रूपए कब दे देंगे साहब ?

इंस्पेक्टर शंकर को देखता है और फिर कहता है कि उसमें अभी कुछ वक्त लगेगा। तुम एक काम करो अपने गांव के कुछ लोगों को लेकर मेरे पास आ जाओ।

पर साहब गांव में तो अभी कोई भी नहीं है, गांव तो उजाड़ पड़ा है। उस गांव का सिर्फ एक मैं ही हूं। बाकि लोग तो पता नहीं अब कहां होंगे ?

इस बात पर इंस्पेक्टर ने शंकर से कहा कि तो फिर अब मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पाएंगा शंकर, मुझे माफ करना।

अरे साहब, आप क्यों माफी मांग रहे हैं, हमारी ही किस्मत खराब है। वैसे आप अब भी मुझे वो एफआईआर नहीं दे सकते हैं ?

शंकर तुम्हें ऐसे एफआईआर नहीं मिल सकती, मेरे बस में होता तो मैं तुम्हारे कुछ कर सकता था, पर अब मैं कुछ भी नहीं कर सकता हूं। इंस्पेक्टर ने शंकर को फिर समझाते हुए कहा। तुमने कोई अपराध किया होता, जैसे चोरी की होती तो तुम्हें एफआईआर मिल जाती।

शंकर फिर से उदास होकर वहां से चला जाता है। उसे उम्मीद थी कि इंस्पेक्टर उसकी मदद कर उसे वो सहायता राशि दिला देगा, उसके बाद वो अपना घर तैयार कर लेगा और आगे का जीवन शुरू कर देगा। पर उसकी यह उम्मीद पूरी नहीं हो सकी थी।

हर बार उदास होने के बाद वो अपने घर की जगह पर आकर बैठ जाता था और अपने भैया और भाभी को याद किया करता था। इस बार भी उसने ऐसा किया और अपने घर की जगह पर आकर बैठ गया था। पर इस बार उसके दिमाग में भैया-भाभी की बातों की जगह इंस्पेक्टर और कलेक्टर ऑफिस के उस बाबू की बातें घूम रही थी। हालांकि उसकी आंखों में आंसू भी थे, अपनी बेबसी और मजबूरी पर। वो अचानक खड़ा होता है और अपने आंसूओं को पोंछता हुआ फिर उसी रास्ते पर चल पड़ता है जिस रास्ते से वह आया था। यानि कि पुलिस चौकी की ओर।

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