वजूद - 26 prashant sharma ashk द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वजूद - 26

भाग 26

जी सही कह रहे हैं आप। वैस आप बताए अब गांव के क्या हालात है ? अब तो सब सामान्य हो गया होगा ?

जी, हां अब तक काफी हद तक सामान्य है। पर उस तबाही का डर अब भी लोगों के दिलों में हैं। इस कारण ही मैंने इस बार गांव वालों को नदी से दूर रहने की ही सलाह दी थी। नदी से दूर जितने गांव थे उन्हें नुकसान कम हुआ था।

हां, नदी किनारे के घरों का तो कुछ पता ही नहीं चला। अविनाश ने कहा।

हां, साहब आप सही कर रहे हैं। प्रधान गोविंदराम ने अविनाश की बात पर सहमति जताई।

शंकर का घर भी तो नदी के पास ही था ना प्रधान जी ? अविनाश ने सवाल किया।

जी, हां साहब। एकदम नदी के किनारे ही था। जिस समय हरी मकान बना रहा था मैंने उसे कहा भी था कि थोड़ी दूर कर ले। पर कुसुम की जिद थी कि नदी के किनारे ही मकान बनाना है। प्रधान ने कहा।

हां अब देखों ना हरी रहा, ना मकान, ना जिद करने वाली कुसुम। अविनाश ने कहा।

वैसे अब शंकर के क्या हाल है। अब तो ठीक हो गया होगा वो। आजकल कहां है वो, कई दिनों से दिखा नही ? इस बार प्रधान ने अविनाश से प्रश्न किया।

पता नहीं प्रधान जी। उस दिन आप गांव के सभी लोग उससे मिलने के लिए पहुंचते थे, उसके बाद से उसका कोई अता-पता नहीं है। अविनाश ने कुछ निराश होते हुए कहा।

क्या अता-पता नहीं है, मतलब। कहां गया वो ? प्रधान ने फिर सवाल किया।

पता नहीं मैंने बहुत तलाश की उसकी पर उसका कोई ठिकाना नहीं मिला। पता नहीं कहां होगा, किस हाल में होगा ? अविनाश ने फिर अपनी बात कही।

पर ऐसा क्या हुआ कि अचानक चला गया ? प्रधान ने फिर कहा।

क्या पता प्रधान जी, अब वो मिले तो कुछ बात पता चले। वैसे अगर आपको शंकर के बारे में कोई खबर मिले तो मुझे जरूर बताइएगा। अविनाश ने प्रधान से कहा।

जी, बिल्कुल। कोई भी खबर हुई तो मैं आप तक पहुंचा दूंगा। प्रधान ने अविनाश की बात पर सहमति व्यक्त की।

अविनाश वहां से लौट आता है। उसके मान में अब भी एक ही विचार था कि बस कैसे भी, कहीं से भी उसे शंकर की कोई खबर मिल जाए। पर शायद उसे अभी कुछ और इंतजार करना था। हालांकि अब अविनाश ने भी शंकर की तलाश कम कर दी थी पर फिर भी उसे शंकर का इंतजार था। अब अविनाश अपने काम में व्यस्त हो गया था। जब भी उसके पास कोई काम नहीं होता या रात के समय उसे शंकर याद आ ही जाता था।

दूसरी ओर गांव के लोग भी शंकर को लगभग भुला ही चुके थे। हालांकि ऐसा नहीं है कि गांव के लोगों को शंकर याद नहीं आता था आता था परंतु जब कोई उनका काम अटक जाता था, तब उनके मुंह से अक्सर निकल जाता था कि शंकर होता तो फटाफट ये काम कर देता। सुखराम काका, प्रधान गोविंदराम जैसे गांव के कई लोग अब अपने मतलब के लिए शंकर को याद करते थे।

छह महीने और बीत गए थे और अब भी शंकर की कोई खबर नहीं थी। गांव के लोगों ने तो शंकर की कोई खबर नहीं ली थी। अविनाश जरूर समय-समय पर शंकर की खोजबीन में लगा रहा था। उसे उम्मीद थी कि एक ना एक दिन शंकर की कोई खबर जरूर आएगी। उसकी यह उम्मीद कब पूरी होगी उसे यह नहीं पता था। अस्पताल से निकलने के बाद शंकर अपने गांव ना जाकर इधर-उधर भटक रहा था। उसकी हालत किसी भिखारी सी हो गई थी। वो सड़कों पर पड़ा रहता था। कोई तरस खाकर उसे कुछ दे देता था तो वो उसी से अपना पेट भर लिया करता था। कभी किसी गांव में तो कभी किसी शहर में बस शंकर भटक रहा था। अपने इस दौर में भी वो अपने भाई हरी और भाभी कुसुम को नहीं भूला था। अक्सर उनकी याद में वो रोता रहता था। उसे गांव तो याद आता था पर गांव में जो उसका घर था उसे वो याद आता था। उसे एक भी बार गांव के किसी अन्य व्यक्ति की याद नहीं आई थी। जब भी वो किसी तालाब या नदी के पास से गुजरता था तो उसे वो तबाही का मंजर याद आ जाता था। उसके शरीर में अब इतनी ताकत नहीं बची थी कि वो कोई काम करके अपना गुजर-बसर कर सके। भटकने के दौरान जब भी उसे वर्दी में कोई पुलिस वाला नजर आता था तो उसे अविनाश की भी याद आ जाती थी। भूख मिटाने के लिए वह कभी भीख मांगता था तो कभी सिर्फ पानी से ही अपना पेट भर लिया करता था। कभी-कभी दुकान से रोटी या खाने का कुछ सामान चुराकर भाग जाया करता था। हालांकि कई बार वह पकड़ा भी जाता था और उसे बहुत मार भी पड़ती थी। इस कारण उसके शरीर पर कई चोटों के निशान भी हो गए थे।

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