वजूद - 20 prashant sharma ashk द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वजूद - 20

भाग 20

आप लोगों ने उसकी कोई मदद नहीं की ?

हम क्या मदद करते साहब। उस हादसे ने तो पूरे गांव के लोगों की कमर तोड़कर रख दी थी। यहां तो अभी खुद के ही लाले थे तो उसकी मदद कैसे करते थे। प्रधान गोविंदराम ने कहा।

फिर भी आपके ही गांव का बच्चा था वो आप सभी मिलकर उसका ध्यान रख सकते थे। आज पता नहीं कहां होगा, किस हाल में होगा ? इंस्पेक्टर ने चिंता जाहिर करते हुए कहा।

मैं समझ सकता हूं साहब। पर क्या करें जब अपनी ही गुजर बसर मुश्किल हो तो फिर एक और सदस्य बढ़ जाए तो सभी के लिए मुश्किलें और भी बढ़ जाती है। गोविंदराम ने अपनी सफाई देते हुए कहा।

खैर में शंकर के बारे में ही जानने के लिए आया था। अब चलता हूं।

इतना करने के बाद इंस्पेक्टर अविनाश वहां से चला जाता है। वो चारों और शंकर की तलाश कर रहा था। वो गांव निकलकर पुलिस चौकी की ओर जा ही रहा था कि उसकी नजर गांव के बाहर बने बड़े शंकर मंदिर पर पड़ गई। जाते हुए उसने सोचा कि एक बार यहां भी देख लेता हूं। प्रधान जी का भी कहना था कि शंकर मंदिरों और गौशाला में अपना जीवन काट रहा था। हो सकता है कि शंकर यहां मिल जाए। बस यही सोचकर इंस्पेक्टर अविनाश उस मंदिर की ओर चल देता है। वह मंदिर में दर्शन करता है और फिर एक बार पूरे मंदिर का चक्कर लगाता है कि कहीं शंकर होगा। उसका अंदाजा सही निकलता है और शंकर मंदिर के पिछले हिस्से में फर्श पर लेटा हुआ था। उसकी हालत देखकर अब उसे पहचान पाना भी मुश्किल था। वो बहुत कमजोर नजर आ रहा था। अविनाश तत्काल उसके पास जाता हे। वह उसे जाकर देखता है कि उसे बहुत तेज बुखार भी है। उसकी तबीयत बहुत ज्यादा खराब थी। बिखरे बाल, बड़ी हुई दाड़ी, फटे कपड़े, जूते ना होने के कारण पैरों में घाव और उनसे निकलता खून, उसके पास एक थैला पड़ा था, जिस पर कुछ खाने का सामान था। देखकर लग रहा था वह सामान भी एक या दो दिन पुराना है। मंदिर में आने वाला कोई व्यक्ति शंकर को भिखारी समझकर कुछ सामान रख गया होगा। शंकर ने कुछ खाया और कुछ रखा हुआ था। शंकर की इस हालत को देखकर इंस्पेक्टर अविनाश भावुक हो जाता है और उसे लेकर तुंरत हॉस्पिटल के लिए रवाना हो जाता है। शंकर की हालत बहुत खराब थी। डॉक्टर उसे तुरंत भर्ती कर लेते हैं। उसका इलाज शुरू हो जाता है। इंस्पेक्टर अविनाश रोज सुबह और शाम को हॉस्पिटल जाता था और शंकर की तबीयत के बारे डॉक्टर से पूछता रहता था। हालांकि पांच दिन हो गए थे फिर भी शंकर सामान्य नहीं हो पाया था। वो अब भी बोलने की स्थिति में नहीं था।

शंकर का इलाज कर रहे डॉक्टर ने अविनाश को बताया कि संभवतः 10 दिन से ज्यादा समय से शंकर ने खाना नहीं खाया है। लंबे समय से उसके पैरों में घाव है, जिनसे लगातार खून बहता रहा है। इसके अलावा काफी समय से भरपेट खाना नहीं मिल पाने के कारण उसे बहुत अधिक कमजोरी भी हो गई है। उसे रिकवर होने में कम से कम एक से दो महीने भी लग सकते हैं। इंस्पेक्टर अविनाश ने डॉक्टर से कहा कि वे बस उसे ठीक करें। फिर वहां से चला जाता है।

अपने कमरे पर आकर अविनाश सोचता है कि यह दुनिया कितनी मतलबी हो गई है। जब तक शंकर सभी के काम कर रहा था तो सभी उसकी देख-रेख किया करते थे। जब वह किसी का काम करने के लायक नहीं रहा तो सभी ने उसे दरकिनार कर दिया। उसे रहने का एक ठिकाना भी पूरे गांव में कहीं नहीं मिला। आज गांव में 100 से ज्यादा घर है पूरे गांव में एक व्यक्ति के लिए दो वक्त की रोटी नहीं मिल सकी। एक शंकर था जो गांव के हर व्यक्ति को अपना कहता था और उनके काम करने में कभी पीछे नहीं रहता था। ऐसे कई विचार आज अविनाश के मन में चल रहे थे। वैसे वो कर भी क्या सकता था। वो शंकर के जितना अधिक कर सकता था वो कर रहा था। शंकर को इलाज चलते हुए करीब 10 बीत गए थे। रोज की तरह आज भी अविनाश हॉस्पिटल गया था। हालांकि अब शंकर को होश तो आ गया था, परंतु वो अब भी किसी से बात नहीं कर रहा था। उसकी हालत में बहुत धीमी गति से सुधार हो रहा था। इंस्पेक्टर अविनाश ने एक बार फिर डॉक्टर ने उसकी तबीयत के बारे में पूछा।

डॉक्टर अब तो 10 दिन हो गए हैं शंकर का इलाज करते हुए अब उसकी हालत क्या कहती है।

देखिए इंस्पेक्टर अविनाश मैं आपको किसी धोखे में नहीं रखना चाहता। हम अपनी ओर पूरी कोशिश कर रहे हैं, पर मुझे लगता है कि इस इंसान में अब जीने की कोई ललक ही नहीं बची है। यह इंसान जीना ही नहीं चाहता है। दवा भी तब ही असर करती है जब इंसान में जीने की ख्वाहिश हो।

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