“कुबेर का ख़जाना नहीं है मेरे पास जो हर वक़्त पैसे माँगते रहते हो।” माँ की इस डाँट से चुप हो गया वह, कह नहीं पाया कि वह क्यों पैसे माँग रहा है। उसे तो कॉपी-पेंसिल के लिए कुछ पैसे चाहिए थे। जानता है कि माँ के पास कुछ है नहीं, घर में राशन भी नहीं है, इसीलिए नाराज़ होकर कह रही हैं। माँ की फटकार को सुनना और चुप रहना इसके अलावा कोई चारा भी तो नहीं था। बालक धन्नू समझ ही नहीं पाया कि दस-बीस रुपयों में ख़जाना कैसे आ जाता है बीच में, यह ख़जाना कहाँ है और क्या इसमें पैसे ही पैसे हैं, कभी ख़त्म न होने वाले। अगर यह सच है तो - “माँ के लिए एक दिन यह ख़जाना हासिल करके रहूँगा मैं।” नन्हीं सोच को विस्तार मिलता ताकि माँ फिर कभी यह दोहरा नहीं पाए।
Full Novel
कुबेर - 1
कुबेर डॉ. हंसा दीप 1 “कुबेर का ख़जाना नहीं है मेरे पास जो हर वक़्त पैसे माँगते रहते हो।” की इस डाँट से चुप हो गया वह, कह नहीं पाया कि वह क्यों पैसे माँग रहा है। उसे तो कॉपी-पेंसिल के लिए कुछ पैसे चाहिए थे। जानता है कि माँ के पास कुछ है नहीं, घर में राशन भी नहीं है, इसीलिए नाराज़ होकर कह रही हैं। माँ की फटकार को सुनना और चुप रहना इसके अलावा कोई चारा भी तो नहीं था। बालक धन्नू समझ ही नहीं पाया कि दस-बीस रुपयों में ख़जाना कैसे आ जाता है बीच ...और पढ़े
कुबेर - 2
कुबेर डॉ. हंसा दीप 2 धन्नू के जवाबों से साफ़ ज़ाहिर था कि गाँव की सरकारी शाला में क्या रहा है। उसके पकड़मपाटी के खेल में किसी ने किसी को पकड़ लिया था। जाँच के आदेश भी दिए गए थे कि – “आख़िर क्यों स्कूल में खाना नहीं दिया जा रहा है जबकि ‘मिड-डे मील’ के नाम पर एक बड़ी राशि वहाँ जा रही है। जाते-जाते बीच में कितने जंक्शन स्टेशन हैं जहाँ पर यह राशि टौल टैक्स भरती जा रही है कि स्कूल तक पहुँचते-पहुँचते कुछ भी नहीं बचता।” “खाना भी नहीं, पढ़ाना भी नहीं तो आख़िर यह ...और पढ़े
कुबेर - 3
कुबेर डॉ. हंसा दीप 3 नींद की राह तकते अनींदे बच्चे को बहुत याद आती माँ की और सोचता माँ के बारे में, लेकिन साथ ही साथ वह पीठ पर पड़ी मार भी याद आती थी जिसकी चोट थके-हारे-भूखे बच्चे के ज़ेहन से जा नहीं पाती। बहुत गुस्सा था। इतना गुस्सा न जाने किस पर था, ख़ुद पर था, नेताजी पर था, बहन जी पर था या फिर माँ-बाबू पर था मगर था तो सही और बहुत गहरा था। घर से भागे किसी भी भूखे बच्चे के लिए रास्ते के ढाबे शरणगाह बनते हैं। ऐसे होटल में काम करना ...और पढ़े
कुबेर - 4
कुबेर डॉ. हंसा दीप 4 और सचमुच इस तरह दूसरों का काम भी धन्नू अपने ऊपर ले लेता ताकि भी किसी तकलीफ़ में न रहे। एक बार जब बीरू की उँगली कट गयी थी तब उसका सारा काम धन्नू ने ही सम्हाला था। तब से आज तक बीरू उसे भाई कहता था और उसने कभी अपने भाई को किसी शिकायत का मौका नहीं दिया था। धीरे-धीरे बीरू और छोटू भी धन्नू का ध्यान रखने लगे जिसके बोए नेह के बीज धीरे-धीरे अंकुरित हो रहे थे। यूँ अपनी सहृदयता से सबके मन में उसके लिए जगह बनने लगी थी। यदा-कदा ...और पढ़े
कुबेर - 5
कुबेर डॉ. हंसा दीप 5 वह वहीं बैठ गया पत्थरों के टीले पर। एकटक ताकता रहा शून्य में। स्तब्ध झपकना भी भूल गयी थीं। उसके जाने के चार महीने के अंतराल से माँ-बाबूजी दोनों चले गए थे। धन्नू इतना व्यथित हुआ कि आँखों से दो आँसू भी नहीं बहे लेकिन भीतर बहुत कुछ बहता रहा। दु:ख की चरम सीमा क्रोध को जन्म दे ही देती है, वही हुआ धन्नू के साथ। इतना दु:खी था कि अपनी पीड़ा को सम्हाल नहीं पाया। ख़ुद पर गुस्सा था, बहुत ज़्यादा। एक पत्थर हाथ में और दूसरा ज़मीन पर। उस पत्थर को कूटता ...और पढ़े
कुबेर - 6
कुबेर डॉ. हंसा दीप 6 गुप्ता जी के ढाबे पर एक बेरंग चिट्ठी की तरह लौट आया वह। सेठजी बताया माँ-बाबू के बारे में तो वे भी उदास हुए। धन्नू का उतरा चेहरा उन्हें सब कुछ बता रहा था। क्या कहते वे, एक बच्चे ने अपने माता-पिता को खो दिया। ऐसा बच्चा जो इतनी मेहनत करता है, सबका ख़्याल रखता है। उसके सिर पर प्यार से हाथ रख कर बोले - “बेटा धन्नू, तुम यहीं रहो अब।” “कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है तुम्हें।” “तुम होते हो तो मुझे यहाँ की कोई चिन्ता नहीं होती।” “माँ की याद आए ...और पढ़े
कुबेर - 7
कुबेर डॉ. हंसा दीप 7 दिन निकलते रहे। किशोर था वह। उसे अपनी सही उम्र पता नहीं थी, न अपना जन्म दिन पता था। पता भी कैसे होता क्योंकि जहाँ वह पैदा हुआ था वहाँ जन्म सिर्फ एक बार नहीं होता, बार-बार जन्म होता था। कई बार एक दिन-दो दिन भूखे रहने के बाद खाना मिलता तो उस दिन लगता कि आज नया जन्म हुआ है। हर निवाले के साथ जान में जान आती। उसके गाँव के घर-घर में ऐसे कई बार जन्म होते थे, बच्चों के भी और बड़ों के भी। हाँ, स्कूल में दाखिले के समय अंदाज़ ...और पढ़े
कुबेर - 8
कुबेर डॉ. हंसा दीप 8 आज दीवाली की रात है और ढाबे पर कई तरह की मिठाइयाँ बनी हैं। रसमलाई, चमचम, काजू-कतली, खोपरापाक और मोतीचूर के लड्डू। ढाबा बंद करके सब बच्चे मालिक के घर जाएँगे पटाखों के लिए। सबको नये कपड़े पहनने थे। दिन भर की मिठाइयों की ख़ुशबू, इलायची की ख़ुशबू, केसर की ख़ुशबू पूरे माहौल में फैली हुई थी। जल्दी ही सबको भरपेट मिठाइयाँ खाने को मिलेंगी। जितनी मिठाई खाना है खाओ, जितने पटाखे जलाने हैं जलाओ। रौशनी भी बहुत की गयी है ढाबे पर। रंग-बिरंगे बल्बों की जलने-बूझने की निरंतर प्रक्रिया कुछ नया महसूस करवा ...और पढ़े
कुबेर - 9
कुबेर डॉ. हंसा दीप 9 स्कूल की यादें धन्नू के लिए एक दु:स्वप्न की तरह थीं लेकिन बुनियाद वहीं गयी थी। फीस के पैसों की उगाही बार-बार उसके ज़ेहन को पढ़ाई-लिखाई से दूर रहने को मज़बूर करती थी। स्कूल में दूसरे बच्चे जब उसकी ओर हिकारत से देखते तो उसका ख़ून खौल जाता था। सोचता कि अगर कैसे भी करके फीस भरने के पैसे मिल जाएँ तो सबके सामने उनकी मेज़ पर ले जाकर पटक दे। उसका गुस्सा उन नेताजी पर सबसे ज़्यादा था जो उसे इस स्थिति में छोड़ने के ज़िम्मेदार थे। इतनी उदारता दिखाने की कोई ज़रूरत ...और पढ़े
कुबेर - 10
कुबेर डॉ. हंसा दीप 10 दादा की इसी नसीहत के चलते जीवन-ज्योत का हर समझदार व्यक्ति ऐसे तत्वों की दादा को देना अपना पहला कर्तव्य समझता। यही कारण था कि जीवन-ज्योत किसी ऐसी समस्या के साए में आने लगता तो तुरंत उस समस्या का निदान हो जाता। ऐसा नहीं है कि अभी तक ऐसे तत्वों की पहुँच से दूर ही रहा था जीवन-ज्योत का परिसर। कई बार एकाध-दो ऐसे ग़लत व्यक्ति आ जाते थे मदद माँगने के लिए जो असहाय नहीं होते पर दिखावा करते। जीवन-ज्योत के बढ़ते प्रभाव पर अपनी भड़ास निकालते लेकिन वरिष्ठ सदस्यों की होशियारी और ...और पढ़े
कुबेर - 11
कुबेर डॉ. हंसा दीप 11 अभी तक इतने सालों बाद भी जो दिल के क़रीब था वह क़रीब ही कभी दूर हुआ ही नहीं था। वही महक रौशनी की तरह परावर्तित होकर बार-बार आती थी उसके समीप। उसके कानों में फुसफुसा कर चली जाती थी। कह जाती थी अनकही बातें और सुना जाती थी माँ के स्नेहिल आँचल की कहानी। उसी माँ का लाड़ला धन्नू अब कई बच्चों का भाई डीपी बन चुका था। रविवार की सभा में आने वाले कई लोग सर डीपी कहते। एक जाने-माने जौहरी, दादा के द्वारा तराशा गया डीपी एक ऐसा हीरा बन चुका ...और पढ़े
कुबेर - 12
कुबेर डॉ. हंसा दीप 12 समय के तो पंख होते हैं। घड़ी चलती है, बंद होती है पर समय चलना बंद नहीं होता। कई बार लगता है कि समय चल नहीं रहा, उड़ रहा है जैसे कि रुक गया तो अपनी दौड़ में पीछे रह जाएगा। समय के साथ चलते मैरी, नैन्सी और डीपी एक दूसरे के विकल्प थे, एक न मिला तो दूसरा, दूसरा नहीं दिखा तो तीसरा। जीवन-ज्योत को चलाने में कई हाथों की ज़रूरत होती थी। इस बात का सबसे अधिक डर होता था कि कहीं कोई ग़लत काम में संलग्न न हो जाए, बच्चे भी ...और पढ़े
कुबेर - 17
कुबेर डॉ. हंसा दीप 17 इस यात्रा में भी दादा और डीपी दोनों जॉन के घर ही रुके हुए जॉन ने डीपी की हालत देखी तो कुछ दिन रुकने का प्रस्ताव रखा – “डीपी देखो, कुछ दिन रुक जाओ फिर चले जाना।” डीपी के लिए यह सोचना भी संभव नहीं था। वह तो भारत जाकर जीवन-ज्योत में सबसे मिलना चाहता था, सबको देखना चाहता था, बताना चाहता था कि – “दादा कैसे अचानक हम सबको छोड़कर चले गए।” उसे चुप देखकर जॉन ने समझाने की कोशिश की तो वह बोला – “नहीं भाईजी, मैं जाना चाहता हूँ भारत।” “अगर ...और पढ़े
कुबेर - 18
कुबेर डॉ. हंसा दीप 18 अपराध के बीज तो इतने ताक़तवर होते हैं कि वे कहीं न कहीं से उर्वरक शक्ति ढूँढ ही लेते और बढ़ती उम्र के हर मोड़ पर उनका आकार भी बढ़ता जाता। तब समाज को एक ऐसा अपराधी मिलता जो पूरे कौशल के साथ अपने काम को अंजाम देता। नि:संदेह तब धन्नू उसी मोड़ पर खड़ा था जहाँ नियति उसे किसी न किसी रूप में ढालने का विचार कर चुकी थी। बुराइयाँ तो सामान्यत: हर क़दम पर बिछी होती हैं, कभी भी अपने शिकंजे में दबोच लेती हैं परन्तु धन्नू ने ढाबे का रास्ता पकड़ा ...और पढ़े
कुबेर - 14
कुबेर डॉ. हंसा दीप 14 दादा कुछ कहें और उनकी बात डीपी का मन न छू पाए यह संभव नहीं था। वही हुआ। घावों पर मरहम लगे। इस समय तक दादा की इस पीड़ा से अनजान था डीपी। जब यह सुना तो लगा कि दादा ने भी कितना कुछ सहा है। उनके कंधे से सिर टिकाया तो रुका हुआ सैलाब बाहर आने लगा। आँसुओं के रेले बहने लगे। दादा की बाँहों में सिर टिका कर बहुत रोया डीपी। दहाड़े मारकर रोया। दादा ने भी उसके विलाप में सहारा दिया। एक दूसरे की व्यथा को जानते-पहचानते दो अजनबी एक-से दर्द ...और पढ़े
कुबेर - 20
कुबेर डॉ. हंसा दीप 20 दादा के असामयिक निधन और उनकी अंतिम क्रिया यहीं होने की बातें उसके वीज़ा में भावनात्मक पक्ष के रूप में जुड़ रही थीं। जॉन की कंपनी द्वारा दिया गया काम का प्रस्ताव कई सरकारी स्तरों पर परखा जाना था। डीपी को इन सबकी चिन्ता नहीं थी उसके लिए तो भाईजी थे ही। वह तो बस वकील साहब के अगले दनदनाते प्रश्न के आने का इंतज़ार कर रहा था। पूरे इंटरव्यू में पहली बार स्मिथ मुस्कुराए और बोले - “थैंक्यू सो मच डीपी, वी आर डन टुडे।” हाथ मिलाकर उस कक्ष से बाहर निकल कर ...और पढ़े
कुबेर - 13
कुबेर डॉ. हंसा दीप 13 शुभ समय के सारे संकेतों के बावजूद अशुभ समय इतना अड़ियल हो जाता है उसे भी अपनी ज़िद पूरी करने का मौका मिल ही जाता है। बिन बुलाए मेहमान की तरह आता है और अपना कहर बरपा कर चला जाता है। कुछ ऐसी ही घड़ियाँ प्रतीक्षा कर रही थीं डीपी के जीवन में। इसे उसकी किस्मत कहो या संयोग मगर होनी तो हो कर रहती है। होनी को भला कौन टाल सकता है। उस अनहोनी के लिए कोई तैयार नहीं था जो एक हवा की तरह आई थी और तूफ़ान में बदल कर सब ...और पढ़े
कुबेर - 16
कुबेर डॉ. हंसा दीप 16 न्यूयॉर्क में लैंड होने के बाद दादा पूरी तरह विश्राम ही कर रहे थे। सुबह से उन्हें थोड़ा दर्द था सीने में। ऐसा दर्द जो आभास दे रहा था किसी ख़ास यात्रा की तैयारी का। लेकिन वे आश्वस्त थे। डीपी के रहते वहाँ जो जबान दी हुई है उसे पूरा कर पाएँगे। इस बात का भी सुकून था कि भारत के अपने जीवन-ज्योत को संभालने वाले बहुत लोग हैं। उन्होंने वहाँ की सुचारु प्रबंधन व्यवस्था के लिए समर्पित सदस्यों की समिति बना रखी है। उनकी अनुपस्थिति में नेतृत्व की कोई समस्या नहीं है। सब ...और पढ़े
कुबेर - 19
कुबेर डॉ. हंसा दीप 19 भाईजी के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चलते उसे लगा कि किसी काल्पनिक जगह आ गया हो। ऐसे शानदार ऑफिस की कोई छवि उसके दिमाग़ में बिल्कुल नहीं थी। इमारत की भव्यता काम और कारोबार की भव्यता के बारे में ख़ुद-ब-ख़ुद बोल रही थी। लिफ़्ट की अपनी एक आकर्षक शैली थी जिसमें शीशों की चमक के साथ सवार होने वालों के चेहरे, जूते और कपड़े भी दमक रहे थे। सत्रहवीं मंज़िल पर जिस ऑफिस में वे घुसे थे वहाँ एक नंबर प्लेट लगी थी कंपनी के नाम के साथ - “77 होम रियलिटी इंक” ...और पढ़े
कुबेर - 15
कुबेर डॉ. हंसा दीप 15 पैसे भी आते जीवन-ज्योत में तो थोक में आते। कई बार गिनती के लिए को बैठाया जाता। डोनेशन के रूप में कई लोग डाल जाते। अपनी इच्छाएँ पूरी होतीं तो दादा का शुक्रिया अदा करने का एक ही जरिया होता, दादा के लिए गुप्त दान कर देना। दादा कभी किसी से डोनेशन के लिए नहीं कहते, ना ही किसी डोनर के नाम का प्रचार प्रसार होता। अगर देना है तो गुप्त दान दे सकते हो वरना नहीं। क्योंकि यहाँ पैसे देकर कोई बड़ा नहीं बन सकता और जिसके पास पैसा नहीं वह छोटा नहीं ...और पढ़े
कुबेर - 21
कुबेर डॉ. हंसा दीप 21 यहाँ काम शुरू करने का समय आ चुका था। हिन्दी भाषा और अंग्रेज़ी भाषा पर उसका अच्छा अधिकार होना, उसके लिए लाभकारी सिद्ध हुआ। अपने ग्राहक से उसकी मातृभाषा में बात कर पाना एक सेल्समैन को अच्छा कारोबारी बनाता है। कागज़ी कार्यवाही की औपचारिकताओं के बाद अब क़ानूनी रूप से रियल इस्टेट एजेंट का काम वह शुरू कर सकता है। “अभी नहीं डीपी, एक मुख्य काम और बचा है अभी।” “क्या भाईजी” आश्चर्यचकित डीपी बोला। “मिठाई खाना है या पार्टी करना है, आप जो बोलें।” “वह सब तो करेंगे, जश्न मनाएँगे लेकिन बाद में। ...और पढ़े
कुबेर - 22
कुबेर डॉ. हंसा दीप 22 हर कारोबारी की सफलता का सूत्र वाक्य था यह। किसी और जगह होता तो रोक पाना मुश्किल हो जाता लेकिन ये स्थितियाँ अलग ही थीं। किसी को पसंद नहीं है तो नहीं है, कारण जो भी बताए जा रहे हों। आज नहीं तो कल कोई न कोई ग्राहक तो होगा जो इसे खरीदेगा तब यह मेहनत काम आ ही जाएगी। यह एक ऐसा अनुभव था जो स्थान परिवर्तन और काम परिवर्तन के बदलावों को इंगित करता था। इस प्रोफेशन में बेहद धैर्य की आवश्यकता थी। पचास मकान देखने के बाद कोई एक पसंद आ ...और पढ़े
कुबेर - 23
कुबेर डॉ. हंसा दीप 23 भारतीयों के इस बाज़ार को देखते भारत की बहुत याद आती। हालांकि इन सब व्यस्तताओं के बीच भी मैरी से बात बराबर हो रही थी। जीवन-ज्योत के बारे में हर छोटी-बड़ी जानकारी उसे मैरी से ही मिल पाती थी। बात तो चाचा से भी बराबर होती थी पर मैरी की बातों के टॉनिक से डीपी का मनोबल बना रहता। वह हर बात को पूरे विस्तार से बताती जैसे भाई सामने ही हों और वह बातें कर रही हो। बात ख़त्म कर फ़ोन रखने के बाद होम सिकनैस परेशान करने लगती। “क्या बात है डीपी, ...और पढ़े
कुबेर - 24
कुबेर डॉ. हंसा दीप 24 जब कभी डीपी गाँव की याद में खोता, शहरी सभ्यता के हर लटके-झटके को जाता। गाँव के माहौल का लुत्फ़ उठाने की कोशिश करता। जैसा वहाँ होता था, उठो और शुरू हो जाओ। वहाँ दिनचर्या दिन पर नहीं, काम पर निर्भर थी जो कभी होता, कभी नहीं होता। बाबू मजदूरी के लिए जाते किन्तु कई बार खाली हाथ लौटते। माँ भी जातीं, कभी पैसे मिलते, कभी नहीं मिलते। जब नहीं मिलते तो वे पानी पीकर सो जाते। धन्नू के लिए हमेशा थोड़ा राशन बचा कर रखते ताकि उसे कभी भूखा न सोना पड़े। एक ...और पढ़े
कुबेर - 25
कुबेर डॉ. हंसा दीप 25 भाईजी की बातों से जहाँ अनुभव छलकता था तो वहीं डीपी उनके अनुभव को के लिए प्रश्न पर प्रश्न दाग देता था। “जी हाँ भाईजी, मैं पूरी तरह सहमत हूँ आपके मंतव्य से। मगर ख़तरा कितने प्रतिशत हो तो आगे बढ़ना चाहिए। एक अंदाज़ आप बता सकें तो कुछ रास्ता दिखे कि इतनी राशि का बंदोबस्त मैं कर भी पाऊँगा या नहीं।” डीपी के सवाल का सीधा-सादा मतलब यही था कि अगर उसके पास इतना पैसा ही नहीं हुआ तो फिर समय की बरबादी क्यों की जाए। अपनी चादर के अंदर ही पैर रहें ...और पढ़े
कुबेर - 26
कुबेर डॉ. हंसा दीप 26 बेहद निराशा हुई। समझ गया वह। एक के बाद एक मालिक बदल गए थे। का अंतराल था, चीज़ें तो बदलनी ही थीं। लेकिन करता क्या, मन तो नहीं बदला था न वह तो वही देखना चाहता था जो सालों पहले छोड़ कर गया था। वे चले गए हैं, अब कहाँ रहते हैं किसी को मालूम नहीं था। वहाँ अब कोई ऐसा नहीं था जो उसे जानता हो। उनका परिवार कहाँ है, किसी को कुछ पता नहीं था। लगता है उन्हें यहाँ से गए काफी समय हो गया है। न छोटू-बीरू थे, न महाराज जी। ...और पढ़े
कुबेर - 27
कुबेर डॉ. हंसा दीप 27 अब इस मुक्त मन की मुक्त उड़ान में बहुत कुछ उड़ने लगा था। माँ कुबेर का ख़जाना खनन-खनन करता सामने आता। कल्पनाएँ उड़तीं न्यूयॉर्क शहर के स्वर्ग मैनहटन की गगनचुम्बी इमारतों के शीर्ष तक और बड़े से बोर्ड पर एक नाम उभरता लिखा हुआ, जगमगाती रौशनी से आँखों को चौंधियाता – कुबेर.....कुबेर....कुबेर, हर ओर कुबेर। एक दिन इन पर लिखा होगा कुबेर। एक व्यक्ति नहीं, संस्था नहीं, शहर या देश भी नहीं सिर्फ़ एक विचार। ऐसा विचार जिस पर काम होता रहे और दुनिया क़दमों में बिछती रहे। दुनिया के लिए कालीन तो तैयार ...और पढ़े
कुबेर - 28
कुबेर डॉ. हंसा दीप 28 कल की बात काल के गर्भ में थी मगर आने वाले कल को कौन सका है! आज में जीते हुए डीपी ने बीते कल को तो पीछे छोड़ दिया था परन्तु आने वाले कल की नियति को पहचान नहीं पाया। कोई नहीं सोच सकता था कि उपलब्धियों और सफलताओं के दौर की तेज़ गति को रोकने के लिए भी कुछ होने वाला है। रास्ते में एक बड़ा बैरियर आने वाला है। एक धमाका होने वाला था, ऐसा धमाका जो सर डीपी की बनी बनायी साख को काफ़ी नुकसान पहुँचाने की ताक़त रखता था। एक ...और पढ़े
कुबेर - 29
कुबेर डॉ. हंसा दीप 29 अपने अलावा और लोगों पर नज़र जाती तो कुछ चिन्ताएँ कम होतीं। वह अकेला है जो यह सब सहन कर रहा है, इस भावना से हिम्मत बनी रहती। कई ऐसे परिवार थे जिन्होंने अपने ख़ुद के एक घर के सपने को पूरा करने में अपने जीवन की सारी जमा पूँजी लगा दी थी और यह फ्लैट खरीदा था। कई परिवार ऐसे थे जिनके पास कुछ बचा ही नहीं था। एक ऐसा अन्याय हुआ था उनके साथ जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। वे अपने बाल-बच्चों के साथ सड़क पर आ गए थे। ...और पढ़े
कुबेर - 30
कुबेर डॉ. हंसा दीप 30 एक हादसे से निपट नहीं पाया था अभी कि एक दूसरे ने हमला बोला। का फ़ोन था, एक हृदयविदारक समाचार के साथ - “भाई, आसपास के इलाकों में भयंकर बाढ़ से कई लोग बेघर हो गए हैं। जीवन-ज्योत में आसरा लेने के लिए लोगों की भारी भीड़ जमा हो गयी है। सबसे ज़्यादा दु:ख वाली बात तो यह है कि ग्यारह नन्हें शिशुओं के साथ कई बच्चे हैं जिनके माता-पिता को खोज नहीं पा रहे हैं।” त्राहि-त्राहि की ये घड़ियाँ भयावह थीं। प्रकृति का प्रकोप कई लोगों को बेघर कर गया था। कई लोग ...और पढ़े
कुबेर - 31
कुबेर डॉ. हंसा दीप 31 सब शिशुओं का नामकरण किया गया। मैरी ने सबको एक प्यारा-सा नाम दिया जो से शुरू होता था। अपने भाई डीपी के असली नाम के अक्षर धनंजय के ध से, धरा, ध्वनि और धानी तीन बच्चियाँ और धीरज, धनु, धैर्य, धीरू, धवल, धन्य, धीरम और ध्येय। मैरी ने बताया कि इन बच्चों के पालक का नाम सर डीपी लिखवाया गया है क्योंकि सर डीपी की वजह से ही इनका पुनर्जन्म हुआ है। अब भारत में क़ानूनन वही इन बच्चों का पिता है। डॉक्टर चाचा का यही सुझाव था और मैरी भी यही चाहती थी। ...और पढ़े
कुबेर - 32
कुबेर डॉ. हंसा दीप 32 धीरम और ताई जब लैंड हुए तो धीरम की हालत बहुत ख़राब थी। बचने उम्मीद शायद नहीं थी। यही वजह थी कि जीवन-ज्योत में चाचा ने धीरम को न्यूयॉर्क भेजने का निर्णय लिया था। चार साल का बच्चा था वह लेकिन उसका वजन साल भर के बच्चे के बराबर भी नहीं था। हाथों में मशीनें लग-लगकर, सुइयाँ चुभो-चुभो कर कई छेद हो गए थे जिनमें ख़ून के धब्बे सूख-सूख कर लाल-कत्थई निशान छोड़ गए थे। इलाज की लंबी प्रक्रिया थी। छोटा बच्चा होने के फ़ायदे भी थे और नुकसान भी। फ़ायदा यह कि अगर ...और पढ़े
कुबेर - 33
कुबेर डॉ. हंसा दीप 33 धीमी गति से ही सही ये परेशानियों भरे दिन निकल रहे थे। धीरम के न जाने कितने लोगों की दुआएँ काम आयीं। तक़रीबन दो महीने के बाद एक अच्छी ख़बर मिली अस्पताल से कि – “धीरम अब घर जा सकता है।” यह सुनने के लिए कान तरस गए थे, ऐसा लगा जैसे इस किरण से उजाला हो ही जाएगा। यद्यपि यह उसके पूर्णत: स्वस्थ होने का संकेत नहीं था मगर हाँ, वह खतरे की स्थिति से बाहर था। उसका शरीर उस स्थिति से अभी और अधिक शक्तिहीन और पीला पड़ गया था जिस स्थिति ...और पढ़े
कुबेर - 34
कुबेर डॉ. हंसा दीप 34 एक बार बाबू कुछ ऐसी सोच में डूबे चल रहे थे कि पत्थर से भड़ाम गिरे थे। हाथ-पैर बुरी तरह छील गए थे। लोगों ने उन्हें उठाया था और थोड़ी देर बैठने के लिए कहा था। तब तो सिर्फ जहाँ से चमड़ी छिली थी वहीं दर्द था लेकिन एक दिन बाद उनका पूरा शरीर कुछ इस तरह दर्द कर रहा था मानो किसी ने हथौड़े से ठोक-पीट कर उसे जगह-जगह से चोटिल कर दिया हो। उस दिन देखा था उसने दर्द से कराहते बाबू को बच्चों की तरह रोते हुए। उनकी आँखों से धार-धार ...और पढ़े
कुबेर - 35
कुबेर डॉ. हंसा दीप 35 और अब डीपी के उन आँसुओं को मुक्ति मिली जो इतने दिनों से अंदर अंदर एक दूसरे से जूझ रहे थे। इस संकट से उबर कर बाहर आने की यह कहानी भी अपने आप में एक दास्ताँ थी। आँसुओं की व्यथा कहती रही, बताती रही, शब्द देती रही – “जब कुछ नहीं था न ताई तो किसी भी तरह का कोई भय सताता नहीं था मुझे। आज मेरा जीवन-ज्योत का परिवार है, मेरी ज़िम्मेदारियाँ हैं, ये ग्यारह बच्चे हैं मेरे जिन्हें मैरी ने उनके पिता के नाम के लिए अपने भाई का नाम दिया ...और पढ़े
कुबेर - 36
कुबेर डॉ. हंसा दीप 36 एक नया विचार था स्टॉक मार्केट की ओर ध्यान देने का। डीपी पढ़ने लगा, लगा। डे ट्रेड की वर्कशॉप में भाग लिया और प्रेक्टिस अकाउंट खोल कर, बाज़ार की चाल देखने लगा, परन्तु कुछ ख़ास सीख नहीं पाया। कुछ विविधता भरे कोर्स, कुछ विशेष सेक्टरों पर केंद्रित वर्कशाप से सीखने की कोशिश की परन्तु वांछित ज्ञान से वह बहुत दूर था। सिखाने वाले तो वही सिखाते हैं जो उन्हें आता है, यह तो सीखने वाले पर है कि वह उससे कितना लाभ उठा पाता है। वह छोटे-मोटे सौदे करता रहा। कोई लंबी छलांग नहीं ...और पढ़े
कुबेर - 37
कुबेर डॉ. हंसा दीप 37 डीपी के लिए यह माहौल परिचित था। न्यूयॉर्क में काम करते हुए उसने एक सीखी थी कि जो भी करना है उसकी पहले पूरी तैयारी करो, पक्की योजना बनाओ, ऐसी कार्य योजना जो कागज़ पर दिमाग़ की चतुराई को अंकित कर दे, उसके नफ़े-नुकसान पर चिंतन-मनन करे और जब आप उस कार्य योजना को ठोक-बजा कर विशेषज्ञ बन जाओ तो अमल शुरू करो। इस बात को भाईजी ने सीधे और सरल शब्दों में समझाया था और कहा था कि – “आपको हाईवे पर गाड़ी चलानी है तो आपके पास न सिर्फ ड्राइविंग लाइसेंस हो, ...और पढ़े
कुबेर - 38
कुबेर डॉ. हंसा दीप 38 डीपी के मार्ग दर्शन के चलते नई कंपनी आकार ले रही थी। हालांकि, ‘अपटिक’ कमीशन के आधार पर उनके निवेश सम्हालने वाला था पर डीपी के दिमाग़ में भविष्य के लिए लंबी योजनाएँ थीं। अलग-अलग विभाग हों, हर कार्यकारी व्यक्ति के पास अपनी रुचि के बाज़ार की स्टडी हो, रोज़ के भाव-ताव पर नज़र रखी जाए, बाज़ार का ट्रेंड पता लगे तो भावी संभावनाओं की सूचियाँ बनें। थोड़ी पूँजी के रहते नये निवेश अधिक नहीं थे बल्कि योजनाएँ अधिक थीं। सीमित स्रोत विस्तृत योजनाओं को नियंत्रित करने के लिए सीमा रेखाएँ अंकित कर देते ...और पढ़े
कुबेर - 39
कुबेर डॉ. हंसा दीप 39 सुखमनी ताई ने डीपी के कांडो फ्लैट को अपनी आत्मीयता और स्नेह के सागर भर दिया था। घर की हर ईंट मुस्कुराने लगी थी। हर चीज़ अपनी जगह पर होती। जीवन-ज्योत के किचन से निकल कर न्यूयॉर्क जैसे महानगर के जीवन को बगैर किसी बाध्यता के जी रही थीं वे। जीवन का यह बदलाव उनके स्वभाव को नहीं बदल पाया। एक मोटा अनुमान लगाया जाए तो अधिक से अधिक दस साल बड़ी होंगी वे डीपी से लेकिन उनके स्वभाव की गहराई उनसे मिलने वाले को पूरी तरह दिखाई देती। धीरम की किलकारियाँ गूँजतीं और ...और पढ़े
कुबेर - 40
कुबेर डॉ. हंसा दीप 40 भाईजी जॉन ने एक सुझाव दिया डीपी को, छोटा-सा अवकाश लेने का। विचार बुरा था क्योंकि पिछला बीता हुआ समय ऐसा था जो दिमाग़ की नसों को ख़ूब खींच कर, दम निकाल कर बीता था। बीते दिन बहुत तनावों से भरे दिन थे। वे दिन बीत तो गए थे पर अपनी छाप हमेशा के लिए छोड़ गए थे। भाईजी का कहना था – “थोड़ा-सा बदलाव मानसपटल के लिए बेहतर होगा।” एक आराम के लिए एक विराम लेने का विचार अच्छा था। अब, जब सब कुछ वापस सामान्य हो गया था तो डीपी को थोड़ा ...और पढ़े
कुबेर - 41
कुबेर डॉ. हंसा दीप 41 आने वाले अच्छे समय का एक इशारा अनजानी ख़ुशी दे गया डीपी को जिसमें उन शिशुओं की याद आयी जो पिछले दिनों उसकी दुनिया में आए थे। जब ये सारे ग्यारह शिशु एक साथ बड़े होंगे तो कितने हाथ होंगे उसके साथ, उसके बड़े परिवार में। सबको यहाँ बुला लेगा और ख़ूब पढ़ा-लिखा कर एक आबाद नयी पीढ़ी तैयार करेगा। अब किसी को संघर्ष नहीं करना होगा, अब तो जमे हुए काम को कौन कितना आगे बढ़ा सकता है यह उसकी क़ाबिलियत पर निर्भर होगा। मन की उड़ान लास वेगस में भी जीवन-ज्योत का ...और पढ़े
कुबेर - 42
कुबेर डॉ. हंसा दीप 42 आज आख़िरी दिन था वेगस में। जिस लिंक की तलाश थी उसके कोई आसार से कहीं तक दिखाई नहीं दे रहे थे इसीलिए आगे की चर्चा का तो कोई सवाल ही नहीं था। सम्पर्क सूत्र पाना या नए सम्पर्क बनाना इतना आसान नहीं होता। हालांकि कल सुबह निकलना था परन्तु मन हो रहा था कि अभी से एयरपोर्ट चले जाएँ। कई बार ये लोग जल्दी वाली फ्लाइट में जगह हो तो एडजस्ट कर लेते हैं – “अगर ऐसा हो जाए तो भाईजी, आज ही घर निकल जाते हैं।” डीपी को अपने इस बेतुके इंतज़ार ...और पढ़े
कुबेर - 43
कुबेर डॉ. हंसा दीप 43 देश को छोड़ने वाले प्रवासियों की आत्मा भारत के अपने गाँव-शहर में अपनी बिछुड़ी को खोजती रहती है और शरीर यहाँ अपने लिए नयी ज़मीन तलाश कर रहा होता है। ऐसा कटु सत्य था यह जो विदेश में बसे हर नागरिक को अपनी कटी जड़ों के लिए संघर्षरत ही पाता था। भाईजी जॉन और डीपी सुन रहे थे। कभी राजा और कभी रंक, कभी गुलाब और कभी काँटों के वे पल भाईजी और डीपी से ज़्यादा अच्छी तरह कोई नहीं समझ सकता था। तभी सोमेश आ गया। सत्यवती जी ने उसे फ़ोन पर जॉन ...और पढ़े
कुबेर - 44
कुबेर डॉ. हंसा दीप 44 एक अच्छी आराम और विराम से भरी यात्रा में एक परिवार से जुड़ कर लौटना काफ़ी सकारात्मक था। वेगस और कसिनो में निवेश के बारे में भाईजी जॉन और डीपी दोनों अपने तई अध्ययन करने लगे, सारी बारीकियाँ समझने लगे। कसिनो की छोटी-छोटी चीज़ें समझने के लिए अटलांटिक सिटी के कसिनो के भी चक्कर लगाए क्योंकि यह वेगस की अपेक्षाकृत बहुत नज़दीक था। यहाँ पर भी कसिनो का व्यापार था। ऊपर बने होटलों का ऐश्वर्य और मनोरंजन बढ़ाने के बारे में नयी तकनीकें क्या हो सकती हैं उनके लिए टूरिस्ट प्रधान जगहों पर अपनी ...और पढ़े
कुबेर - 45
कुबेर डॉ. हंसा दीप 45 एकवचन बहुवचन में बदल गया। ‘वह’ ‘वे’ में बदल गये। एक नाम जो बचपन दिलो दिमाग़ में कौंधा हुआ था। वही नाम अब हर कहीं मिस्टर कुबेर के नाम से पहचाना जाने लगा। हर कहीं उसी नाम के झंडे गड़े दिखाई देने लगे। उस झंडे तले बहुत कुछ था, दृश्य भी अदृश्य भी। अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा जीवन–ज्योत और अपने गाँव जाता है। गाँव का नाम “कुबेर” रख दिया, नाम ही नहीं सब कुछ कुबेर का। कुबेर स्कूल भवन, कुबेर अस्पताल भवन, कुबेर पंचायत भवन सब पर उसी का ठप्पा था। वहाँ ...और पढ़े
कुबेर - 46
कुबेर डॉ. हंसा दीप 46 दिन भर की मीटिंगों में, सेमिनारों में अपने जैसे कई सूट-बूट से लेस ऐसे दिखाई देते जो उनकी तरह ही दिन के हर पहर में तेज़ी से अपने काम निपटाते। एक अपने ही गाँव के वे लोग थे जो चालीस-पचास की उम्र तक आते-आते अस्सी के दिखने लगते। पत्थरों से भरी ज़मीन पर जुताई करते-करते वे सारे कंधे झुक जाते। एक ये लोग हैं, सूट-बूट से लदे अस्सी साल के बूढ़े जो चालीस-पचास जैसे आकर्षक औऱ ऊर्जावान दिखते। ढीले पड़ते शरीर को कसे हुए सूट पहनकर अस्सी साल का आदमी भी अंदर से ताक़त ...और पढ़े
कुबेर - 47
कुबेर डॉ. हंसा दीप 47 इन सबको देखकर, इनके साथ रहकर कई बार पास्कल साहब सोचते हैं कि वे किस्मत का रोना ही रोते रहे, एक रोते रहने वाले बच्चे की तरह। कभी यह नहीं सोचा कि इस रोती सोच के आगे भी बहुत कुछ है। कुबेर सर को देखकर लगता है कि किस्मत के भरोसे जीवन को छोड़ा नहीं जा सकता। किस्मत तो बनानी पड़ती है, मौकों को हथियाना पड़ता है, मौकों को खींच कर लाना पड़ता है। लोहे के चने चबाने की हिम्मत हो तो ही देश-विदेश में व्यापार फैला सकते हो। वे बुज़दिल थे। ‘रिस्क फेक्टर’ ...और पढ़े
कुबेर - 48 - अंतिम भाग
कुबेर डॉ. हंसा दीप 48 बच्चे क्या कहते, जानते थे उनका लक्ष्य, उनका काम। अपने नये मिशन को पूरा वे वहीं रहने लगे। यद्यपि इन बच्चों के लिए की गयीं ये व्यवस्थाएँ पर्याप्त नहीं थीं वे उनके जीवन को इतना आसान बनाना चाहते थे कि किसी भी स्पेशल चाइल्ड को किसी पर निर्भर न रहना पड़े। ऐसा क्या करें कि इन बच्चों की तकलीफ़ें कम हों। अपने इन्हीं विचारों में खोए हुए थे कि पास्कल साहब ने कहा – “सर, धीरम के प्रेज़ेंटेशन का समय हो रहा है हमें चलना होगा।” वे फिर भी अपने विचारों में खोए थे। ...और पढ़े