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चुनौती

चुनौती

प्रीति के आखों में सुख और दुःख के अश्रु भरे हुए थे. वह सुख और दुःख दोनों भाव को दबाये हुए अपने काम में व्यस्त थी. आने वाले वाले सभी आगंतुक उसे वधाई देते थे तथा उसकी प्रशंसा में कुछ-न-कुछ बोल रहे थे और प्रीति सिर्फ मुस्कुरा देती थी. बचपन के दिनों की सहेली अंतरा ने आश्चर्य से पूछा, “प्रीति! तीन दिन पहले तुम मिली, तो चर्चा तक नही की, कि तुम मोबाईल की दुकान खोल रही हो और कल तुम्हारा आमंत्रण देखा। अभी भी तुम्हारी सरप्राइज देने वाली आदत नही छूटी है. जवाब में प्रीति ने सिर्फ वही पुरानी वाली मुस्कान बिखेर दी. वह क्या बताती इस सरप्राइज की पीड़ा. अंतरा ने पूछा, “ सौरभ नही दिख रहे है? सौरभ मतलब प्रीति का पति. प्रीति बोली, “यार सौरभ को तो तुम कॉलेज के जमाने से जानती हो. “हाँ, हाँ, उसका तो हमेशा ही लास्ट में आने की आदत है, कह कर अन्तरा हँसने लगी. मुस्कुरा कर प्रीति दूसरे आगंतुकों से मिलने लगी.

प्रीति जानती है, सौरभ नहीं आएगा. उसने सौरभ से विशेष आग्रह किया था. सौरभ हमारी तुम्हारी दूरी बहुत बढ़ गई है, लेकिन आखिर तुम मेरे पति हो. तुम सिर्फ आ जाओगे, तो मैं सबके सामने अपने को मजबूती देने लायक हो जाऊँगी. समाज में बोलने लायक हो जाऊँगी. सौरभ ने दो टूक जवाब दिया था, “मुझे नहीं जाना तुम्हारे साथ, कहीं भी, कभी भी. प्रीति अपलक सिर्फ उसे देखती रह गई थी. आसुँओं ने गालों को भिंगो दिए थे. प्रीति और सौरभ के बीच लगभग तीन सालों से एक लम्बी दूरी की मजबूत रेखा खिंच गई थी. एक ही घर में अलग अलग कमरों में सोते हुए आवश्यक हुआ तो किसी मुद्दे पर बात कर लेते थे. शुरू के दिनों में तो प्रीति ने किसी को इस दूरी की भनक तक नहीं लगने दी, पर एक दिन मां जी ने पूछ ही लिया, मां जी मतलब सौरभ की माँ और प्रीति की सासु माँ. मां जी ने पूछा था, बहू! “सौरभ और तुम्हारे बीच सब ठीक ठाक तो है? जवाब में प्रीति की आँखों से आंसुओं की धार निकल पड़ी. माथे को सहलाते हुए माँ ने अपनी बहू को सहलाते हुए कहा, “क्या कुछ हुआ तुम्हारे और सौरभ के बीच में? मेरा तो इकलौता बेटा है, और मैं तो उसे गर्भ से ही जानती हूँ. उसकी किस्मत अच्छ थ कि तुम्हारे जैसी पत्नी उसको मिली. आज वह जो भी है, उसकी वजह तुम हो, नहीं तो उसे कुत्ता भी नहीं पूछता. आज बैंक मैनेजर है तो तुम्हारी वजह से. प्रीति कुछ भी नही बोली और माँ के आँचल में सुबक पड़ी.

उस दिन रात में घर में बहुत कोहराम मचा. सौरभ के घर आते ही माँ सौरभ पर बरस पड़ी थी. “सौरभ! बेहयाई की भी हद होता है. प्रीति को तुमने क्या समझ लिया है? इससे तुम्हारा कौन सा झगडा चल रहा है? सौरभ ने आज हद कर दी. सारी लाजी शर्म छोड़ कर माँ को बोल दिया, “माँ इस पचड़े में तुम मत पड़ो. मैं नौकरी में हूँ. घर का खर्चा चलाता हूँ, मेरा भी स्टेटस है. प्रीति मेरे लायक नही है. माँ बिफर पड़ी थी, “सौरभ तुम भूल रहे हो कि तुम्हारा स्टेट्स क्या है. आज जो भी हो बस प्रीति की बदौलत हो. तुम भूल सकते हो, पर मैं भूल नहीं सकती. याद रखना प्रीति मेरी बहू है, मेरे घर की लक्ष्मी है. मेरे जीते जी तुम प्रीति को अपमानित नहीं कर सकते हो. भुनभुनाते हुए सौरभ अपने कमरे में चला गया था. और सुबकते हुए प्रीति बच्चों के पास.

सौरभ और प्रीति की दूरी का कारण था, सौरभ की आत्महीनता. प्रीति का सौरभ के साथ प्रेम विवाह था. प्रीति यहीं चूक गई थी. भावना में बह के सौरभ के साथ शादी करना उसके जीवन की सबसे बड़ी भूल थी. लेकिन प्रेम तो प्रेम होता है. इसकी फसल नही होती है. मन के वीरान कोने में यह कब उग आता है, इसे अच्छे-अच्छे ज्ञानी भी नही समझ पाए है. सौरभ से पहली बार प्रीति उसी के मुहल्ले में शादी में मिली थी. उसकी सहेली मधुमिता उसी मुहल्ले में रहती थी और उसकी बड़ी बहन की शादी थी. सत्रह साल की प्रीति पढ़ाई में हमेशा क्लास में टॉप होती थी. स्पोर्ट्स में स्कूल और कालेज की चैम्पियन होती थी. कालेज के लड़के प्रीति से दोस्ती के लिए तरसते रहते थे, पर प्रीति गर्मी की धूप की तरह सबको जलाते हुए क्लास के बाद घर निकल जाती थी. सौरभ की पढाई में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. माँ-पापा का डर नहीं होता तो वह पढाई कब का छोड़ देता. प्रीति की सहेली ने सौरभ से मिलवाते हुए कहा था, “यह सौरभ है और दूसरे कालेज में पढ़ता है. पर सब्जेक्ट और क्लास हमलोग वाला ही है. प्रीति ने हाँ बोल कर सौरभ के प्रति कोई खास दिलचस्पी नही ली. सौरभ किसी-न-किसी बहाने प्रीति के आगे पीछे मंडराता रहा. सुबह प्रीति बिना किसी नोटिस के अपने घर चली गई. शुरुआत तो यहीं से हुई पर आगे चल कर संयोग कुछ ऐसा हुआ कि सौरभ प्रीति के करीब आने लगा. हुआ यूँ कि प्रीति अपनी बूढी दादी के साथ थी. चाचा और चाची बाहर रिश्तेदारी में सप्ताह दिन के लिए बाहर गये हुए थे. प्रीति के मम्मी-पापा तो अपनी नौकरी में बाहर ही रहते थे. अचानक प्रीति को बुखार हो आया. दादी घबरा गई. दादी ने फोन से मधुमिता को बताया और कहा, “प्रीति को किसी अच्छे डाक्टर से दिखवा दो”. मधुमिता आई, पर प्रीति चलने लायक नही थी. प्रथम तल्ले पर प्रीति रहती थी, नीचे उतर कर किसी रिक्शा और गाड़ी पर भी बैठने लायक भी प्रीति नहीं थी. मधुमिता रोने लगी. बूढी दादी भी रोने लगी. प्रीति ने ही मधुमिता से कहा, “सौरभ को बुला लो. मधुमिता ने सौरभ को फोन पर आने के लिए कहा. सौरभ के लिए प्रीति की बीमारी आनंदायक थी. सौरभ भागा-भागा आया. सौरभ प्रीति को अपनी गोद में उठाकर निचे तक आया और मधुमिता के साथ, डाक्टर तक पहुँचाया.

सौरभ के इस सहयोग से प्रीति अभिभूत हो गई. प्रीति से सौरभ की दूरी मिट गई थी. अक्सर प्रीति से किसी विषय पर फोन से सौरभ जानकारी प्राप्त कर लेता था. धीरे-धीरे दूरी कम होती गई, और कब दोनों इतना करीब आ गए कि दो जिस्म एक जान हो गए. सौरभ ने ही प्रीति से एक दिन कहा, “प्रीति हम लोगों को अब शादी कर लेनी चाहिए. प्रीति ने कहा, सो तो ठीक है पर अभी हम दोनों बेरोजगार हैं. कुछ करने के लिए पहले सोचो.

कई प्रतियोगी परीक्षाएं दोनों ने दी. प्रीति का रिजल्ट आ जाता पर सौरभ का नहीं. प्रीति की जिद्द थी कि दोनों एक ही साथ रहेंगे, एक ही जगह सर्विस करेंगे. पर ऐसा नहीं हो सका. बैंक में भर्ती का जब रिजल्ट आया तब दोनों का रिजल्ट आया, पर मुश्किल की बात थी कि प्रीति का रैंक पीओ का था, और सौरभ का क्लर्क का. सौरभ को प्रीति ने बहुत समझाया था, चलो ज्वाइन कर लेते है. तुम आगे फिर परीक्षा दे कर पीओ का निकाल लेना. लेकिन सौरभ के मन में कुछ था. सौरभ तैयार नही हुआ. सौरभ को लग रहा था. प्रीति ऊँचे ओहदे पर बैठ कर सौरभ को भूल जाएगी. प्रीति ने सौरभ को समझाया, प्यार में समर्पण होता है, समर्पण करना सीखो. हम दोनों जब परिणय सूत्र में बंध जायेंगे तो मैं तुम्हारी ही पत्नी रहूंगी. लाख समझाने के बाद भी जब सौरभ नहीं समझा, तब प्रीति बोली, “सौरभ मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती हूँ. पता नहीं, आगे क्या होगा? ऐसा करो तुम सर्विस ज्वाइन कर लो, मैं बाद में देखूंगी.

जिस दिन सौरभ को बैंक ज्वाइन करना था, उस दिन प्रीति सुबह ही जग गई. स्नान कर के दादी को बोली “दादी आज मैं काली मंदिर जा रही हूँ. दादी को आश्चर्य भी हुआ, पर दादी खुश थी कि लड़की समझदार हो रही है. प्रीति ने माँ काली से अपने और सौरभ के प्यार को कभी भी ख़त्म न होने का आशीर्वाद माँगा.

छ: माह बीतते ही सौरभ प्रीति से जल्द शादी कर लेने के लिए जिद्द करने लगा. प्रीति बोली, “तुम अपने घर बात करो मैं अपने घर. सौरभ को डर था कि घर के लोग नहीं माने, तब क्या होगा? प्रीति को विश्वास था कि घर के लोग मान जायेंगे.

प्रीति ने जब माँ को सौरभ के बारे में बताया, और बताया कि मैं उससे शादी करना चाहती हूँ तब माँ ने समझाया था, “क्लर्क से शादी कर खुश रह पाओगी? प्रीति ने कहा था, “माँ सुख दुःख मन के अंदर रहता है. अपना प्यार जब मिल जाये, तो दुर्गम रास्ते भी सुखद लगने लगते है. अंतत: माँ को प्रीति ने मना ही लिया.

शादी के बाद प्रीति ने राज्य लोक सेवा आयोग का भी रिजल्ट निकाला, पर सौरभ ने मना कर दिया. सौरभ को लगता था कि प्रीति मुझसे ऊँचे ओहदे पर चली जाएगी तो लोग मुझ पर हँसेंगे. हीन् भावना से भरपूर सौरभ ने कभी भी प्रीति को आगे नहीं बढ़ने दिया. लेकिन फिर भी प्रीति खुश थी, और जीवन की गाड़ी सुखद रास्ते पर बढ़ती जा रही थी.

बेटी जब पाँच साल की हुई, तब बेटा का जन्म हुआ. सौरभ और प्रीति दोनों ही बेहद खुश थे. इसी बीच, सौरभ भी बैंक में क्लर्क से मैनेजर में प्रोनत्ति पा गया. सौरभ का तबादला दूसरे राज्य में हो गया. प्रीति चिंता में पड़ गई. यहाँ का सब कुछ छोड़ कर दुसरी जगह जाना आसान न था. माँ जी तो एकदम तैयार नहीं हुई बोली, “देखो बहू मेरा क्या है, मैं तो अकेले रह लूंगी पर तुम बच्चों को ले कर सौरभ के साथ चली जाओ.

अंतत: प्रीति माँ जी को छोड़ कर जाने के लिए राजी नहीं हुई. तय हुआ कि सौरभ दो दिन की जब छुट्टी होगी घर आ जायेगा.

सौरभ लगभग महीने दिन बाद जब घर आया तब प्रीति ने महसूस किया कि सौरभ के मन की नदी सूखती जा रही है, रेत उभरते जा रहे हैं. दो दिनों की छुट्टी में बच्चों और प्रीति से लगभग दूर ही रहा, ज्यादातर वह मोबाईल फ़ोन से ही चिपका रहा, प्रीति ने जब बहुत कुरेदा, तो उसने बताया, “डियर बैंक की मेरी सहयोगी है. साथ काम करती है और थोड़ा सा रोमांस तो चलते ही रहता है. सौरभ के रोमांस से प्रीति को आपत्ति नहीं थी, पर घर परिवार से अलग व्यवहार पसंद नहीं था. अगली बार सौरभ सिगरेट और शराब की आदत के साथ लौटा. प्रीति ने उसे समझाया, देखो घर में बच्चे और माँ जी को पता चलेगा तो क्या सोचेंगे? ऐसे भी यह गलत बात है. तुमको खुद अहसास नहीं हो रहा है कि तुम गलत दिशा में जा रहे हो? सौरभ लारवाही से बोला, “डियर, जिंदगी सिमित है कुछ मौज मस्ती भी करने दो यार. प्रीति बोली मै भी इस बार तुम्हारे साथ चलूंगी.

इस बार प्रीति भी सौरभ के साथ आई. बच्चे माँ जी के पास रह गए. लेकिन यहाँ आ कर प्रीति को अफसोस हुआ. रोज पार्टी, रोज पार्टी. प्रीति सो जाती, तब सौरभ आता. एक दिन प्रीति को भी सौरभ पार्टी में ले गया. दोस्तों ने प्रीति का स्वागत किया. लड़कियां भी पार्टी में थी. लेकिन सब उन्मुक्त मिजाज थी. सौरभ और उसके दोस्तों के आग्रह पर भी वो बियर तक पीने के लिए तैयार नहीं थी. रात को जब पार्टी खत्म हो गई तब सौरभ और प्रीति के साथ उसकी महिला मित्र भी घर आ गई. लड़की नशा में थी सौरभ भी नशा में था. दोनों एक ही बेड पर सो गये सौरभ ने जबरदस्ती प्रीति को भी उसी बेड पर खीच लिया. सौरभ बिंदास अंदाज में बोला, “चार दिनों की जिंदगी में मस्ती कर लो यार. प्रीति रात भर सुबकती रही, जबकि सौरभ और वो लड़की एक दुशरे को चुमते रहे, रंगरेलिया मानते रहे.

शाम को सौरभ को प्रीति ने बहुत समझाया, “तुम जिस रास्ते पर जा रहे हो वह पतन की ओर जाता है. सौरभ मानने के लिए तैयार नहीं था. सौरभ प्रीति को संकुचित विचार का बता रहा था. सौरभ का कहना था, कि प्रेम विवाह करने वाले आधुनिक विचार के होते है, दस साल हो गये शादी के और अब तुम आधुनिक नहीं बनी बल्कि तुम्हारी सोच और संकुचित हो गयी. तुमको तो खुद मेरे साथ मौज-मस्ती में साथ होना चाहिए. सौरभ को लगता था कि प्रीति उसके स्टेटस को गिरा रही है. उसे प्रीति चुभने लगी थी. एक दिन तो गुस्से में सौरभ ने प्रीति को बहुत भला बुरा कहा. सौरभ ने यहाँ तक कह दिया, “तुम हराम का खाती हो, मैं जिस दिन तुम से मुंह मोड़ लूँ तुम्हारे तन पर वस्त्र भी न रहेगा. तुम किस लायक हो? प्रीति जो हमेशा पति को देवता मानती थी आज गुस्से में थी, प्रीति बोली, “सौरभ भूलो मत! तुम्हारे अहम् में मैंने तुमसे ज्यादा पढाई नहीं की. जबकि मैं हमेशा तुमसे ज्यादा नम्बर लाती थी. तुम्हारी खुशी के लिए मैंने नौकरी नहीं की. जिस बैंक में तुम क्लर्क थे मैं मैनेजर होती. राज्य लोक सेवा आयोग के प्रतियोगिता में मैं टॉप थी कही प्रशासनिक पदाधिकारी होती, मगर तुम्हारी हीन् भावनाओं के चलते उसको भी छोड़ दी, और आज तुम मुझे आधुनिकता की पाठ पढ़ा रहे हो? तुम मुझे राक्षसी बना रहे हो? याद रखना “जब पुरुषों के गुण औरतों में आ जाते है तो वह राक्षसी हो जाती है. सौरभ ने ताना देते हुए कहा, “उस समय की प्रीति दूसरी प्रीति थी, आज की जाहिल और गँवार और पुराने विचारों वाली प्रीति नहीं थी. अगर कमा के नहीं दूं तो एक एक पैसा के लिए दूशरे का मुँहताज होना पड़ेगा. प्रीति ने महसूस किया सौरभ के अन्दर का राक्षस विकराल होते जा रहा है. उसका त्याग और घर परिवार चलाने की भूमिका का उसके दिल में कोई स्थान नहीं है. विवाह और अग्नि के साथ सात फेरे रस्म अदायगी भर थे. प्रीति ने सौरभ को दो टूक जवाब दिया, “सौरभ मैं तुम्हारी चुनौती स्वीकार करती हूँ. आज से तुम्हारा एक रुपया मुझे नहीं चाहिए. बच्चों को तुमने पैदा किया है, लगे तो उनलोगों के लिए करना, वरना वो भी मै कर लुंगी. तुमको यही न लग रहा है कि उम्र के इस पडाव पर मेरी नौकरी नहीं लगेगी? लेकिन नौकरी के अलावा भी तो बहुत कुछ है, समाज में इज्जत से दो रोटी खाने के लिए.

स्वाभिमानी प्रीति ने एक कोचिंग ज्वाइन कर ली. माँ जी को प्रीति ने सौरभ की पतन शीलता के बारे में नहीं बताया. माँ जी को बस इतना बताया कि घर में वो बोर हो रही थी इस लिए कोचिंग ज्वाइन कर लिया. लेकिन कोचिंग से ज्यादा पैसा हासिल नहीं हो रहा था. प्रीति ने सौरभ की चुनौती स्वीकार की थी, इस लिए सौरभ से ज्यादा महिना कमाना चाहती थी. एक दिन प्रीति के मन में आया कि क्यों न बिजनेस की और बढ़ा जाये, लेकिन रुपयों की जरुरत थी. एक दिन प्रीति ने अपने गहनों के उपर लोन ले कर एक दुकान खोल ही ली.

अरे प्रीति तुम कहाँ खो गई, अन्तरा की आवाज थी. देख कौन कौन आया है. प्रीति ने देखा, बचपन की सहेलियां थी.

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