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मास्टर साहब

गांव में हलचल मची है। मास्टर साहब सस्पेंड हो गये। गांव के लोग आक्रोशित हैं। भैस चराने वाला अलगू आक्रोशित है। हल जोतने वाला जानकी गुस्से में है। गांव का पढ़ा और अनपढ़ दोनों वर्ग गुस्से में है। अस्सी वर्षीय दशरथ चाचा कहते हैं, “ई अन्याय है, अन्याय। जो शिक्षक हमेशा समय पर आता-जाता हो, अपना शिक्षक धर्म निभाते हुए शिक्षा का मशाल हर जन-जन तक पहुंचता हो, उसे सस्पेंड करना कहाँ का न्याय है?”

पर विधायक का खास आदमी और लम्पटई का मास्टर किशना कहता है, “सबका अपना-अपना लक्ष्मण रेखा होता है, और लक्ष्मण रेखा को जो पार करता है, उसे भुगतना ही पड़ता है। मास्टर ने लक्ष्मण रेखा को पार किया तो भुगतना ही पड़ेगा? शिक्षक हैं, तो शिक्षा में ध्यान लगाइए। सारे गुण और अवगुण के मास्टर मत बन जाइये।“

मास्टर साहब ने सचमुच लक्ष्मण रेखा पार किया था। पढ़ाने लिखाने की नौकरी मिली थी, पर लग गए देश सुधार में। गांव और जवार के लड़के बिगड़े ये मास्टर साहब को बर्दास्त नहीं था। गांव के सिवान पर दारू बनाने की अवैध भट्ठी खुल गई थी। गांव के लिए ये चिंता की बात थी। गांव के लोग किसी भी बात के लिए मास्टर जी से सलाह लेते थे। मास्टर साहब ने सलाह दिया था कि ये भट्ठी बंद होनी चाहिए। इतना ही नहीं मास्टर साहब ने ऊपर तक लिखा पढ़ी की, भठ्ठी को बंद कराने के लिए। मास्टर साहब नहीं समझ पाए कि इसका परिणाम क्या होगा ? अवैध भठ्ठी विधायक के संरक्षण में चलता है, इतनी दूर तक मास्टर साहब सोच ही नहीं पाए थे।

आगे तक लिखा पढ़ी हुई, पर ये विधायक जी को ठीक नहीं लगा। विधायक जी के ही शह पर थाना पुलिस आँखे बंद किये हुए थी। सत्ता के बल से ज्यादा अपना बाहू बल पर विधायक जी को भरोसा था। सिविल कोर्ट के फैसले से ज्यादा कारगर लऊर कोर्ट का होता है। मार से तो भुत भी डरता है। मास्टर साहब ने ही दरख्वास लिखा था। मास्टर साहब ही जिला में आवेदन को आगे बढाया था। मुख्य मंत्री तक रजिस्ट्री करवाई थी, वरना इतना दिमाग और फुर्सत किसको था।

मास्टर राम कैलाश सिंह दो साल पहले गांव के इस विद्यालय में बदली हो कर आये थे। यहाँ से इनका गांव दूर था, सो इसी गांव में रहते थे। रामकृपाल चाचा ने अपने दालान का एक कोठारी इनको रहने के लिए दे दिया था। खाना उनके घर का ही खाते थे। शनिवार को अपने गांव चले जाते थे, और सोमवार को विद्यालय खुलने के समय से पहले चले आते थे। मास्टर साहब ने बहुत चाहा कि किसी पर अनावश्यक बोझ वे क्यों बने? अपना खाना स्वयं बनाएं। पर रामकृपाल चाचा ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया। गांव के सभी लोग चाहते थे कि मास्टर साहब उनके यहाँ ही खाना खाते।

इस स्कूल के इतिहास में मास्टर राम कैलाश के पहले विद्यालय कभी भी समय पर नहीं खुला। आज से 25 साल पहले इसकी स्थापना हुई थी। मधुसुदन बाबा ने भूमि दान दिया था। राष्ट्रपति के नाम रजिस्ट्री कर के मधुसुदन बाबा बहुत खुश थे। तय था कि बाबा के पुरखों के नाम पर स्कूल का नाम रहेगा, पर ऐसा हुआ नहीं। कागज पतर का काम कहीं चूक हो गई। मधुसुदन बाबा को उस दिन बहुत झटका लगा था, पर उन्होंने अपने को समझा लिया था कि नेक काम और विद्या दान का काम उनकी ही बाप-दादों की भूमि पर हो रही है। मन में चरम संतोष था कि पुरखों की आत्मा प्रसन्न होगी। इस विद्यालय के प्रथम शिक्षक चन्द्रमा जी थे। चन्द्रमा जी शिक्षक तो थे ही, साथ ही साथ ओझाई और दवाई भी करते थे। दवाई तो कम ओझाई ज्यादा करते थे। ओझाई के चक्कर में कई बार तीन-तीन दिन तक विद्यालय ही नही खुलता था। बारह बजे आना और तीन बजे जाना उनकी सामान्य आदत थी। बच्चे 10 बजे विद्यालय पहुँच कर तरह-तरह का खेल खेलते थे, और अक्सर गुट बना कर आपस में गाली-गलौज भी करते थे। चन्द्रमा जी बारह बजे तक आये तो ठीक वरना सब अपने घर लौट आते थे। चंद्रमा जी का पढाई भी कुछ दूसरे तरह का ही होता था। वे बच्चों को पढ़ाते थे कि ब्यूटीफूल में हाफ एल होता है।

एक दिन भारती जी के नेतृत्व में गांव के लडकों ने चन्द्रमा जी को टोक दिया, “मास्टर साहब! आप कभी समय पर नहीं आते हैं। तीन-तीन दिन तक गायब रहते हैं। ऐसे में पढाई होगी?” मास्टर साहब भी शातिर थे, शालीनता से जवाब दिया, मै सरकारी आदमी हूँ। सरकार का जहाँ आदेश होता, है जाता हूँ। कभी जनगणना तो कभी पशु गणना करना पड़ता है। पेंड़ भी गिन कर बताना होता है। सरकारी आदेश पर नाचना पड़ता है। अब आप ही बताइए कि ऐसे में मैं कैसे समय पर आ सकता हूँ?

राम प्रकाश बहुत बोलकड़ है, बोला “गांव में निगरानी समिति भी तो सरकार ही बनवाई है। आप को भी पता है। निगरानी कमिटी आखिर क्यों बनी है, जब निगरानी ही नही करेगी। आप आम गिनिये या अमरूद, पढ़ाई तो होना चाहिए। बच्चे आखिर कैसे पढ़ेंगे? आप सरकारी आदमी हैं, आखिर किस लिए?

निगरानी समिति और मास्टर साहब में ऐसी ठनी कि मास्टर साहब गुस्से में आ गये। बोले “निगरानी विभाग के आपलोग हैं तो निगरानी करिये। इस विवाद के बाद विद्यालय छ: महीने तक बंद रहा। मास्टर साहब आये ही नही। विद्यालय का रेकॉर्ड और रजिस्टर मास्टर साहब के झोला में ही रहता था। उपस्थिति रजिस्टर में उनकी उपस्थिति भी दर्ज होते रही। एक दिन का भी वेतन नहीं कटा। हाँ, बदले में ऊपर से नीचे तक बने सिस्टम में फिट होना पड़ा, मतलब चढ़ावा चढ़ाना पड़ता था।

ऊपर तक लिखा-पढ़ी कर के ग्रामीण और नेता टाईप के लोग थक गये। मधुसुदन बाबा का जवानी का सपना बुढ़ारी में पूरा हुआ था और ओ सपना टूट रहा था। उन्होंने गांव भर को इकट्ठा किया और विद्यालय कैसे खुले, इस पर सबकी राय माँगी। गांव के नौजवान इस पक्ष में थे कि सडक को जाम कर दिया जाये, और बड़े-बड़े पदाधिकारी को बुला कर इस पर ध्यान आकृष्ट कराया जाये। कार्यालय में दौड़ने और लिखा-पढ़ी का कुछ असर ही नहीं दीखता है तो, इसी रूप में आवाज उठाया जाये। गांव के शिव जतन ठाकुर ने इसका विरोध किया, उन्होंने कहा “भाई मैं अपने ससुरार गया था। वहां के लोग भी सडक जाम कर बिजली लगाने की मांग कर रहे थे। नतीजा हुई कि दल-बल के साथ पुलिस आ गई। भाई ऐसा लाठी चार्ज तो मैं अपने जीवन में कभी देखा नही। लोग भागते भागते परेशान थे। झगरू का पैर पुलिस के लाठी से नहीं, भागने के क्रम में टूट गया। गरीब आदमी था, मजदूरी करता था। इतना ही नहीं, करीब दर्जन भर लोगों पर मुकदमा हुआ। मेरा साला का लड़का जो दिल्ली में प्राइवेट में नौकरी करता था, उसका भी नाम पड़ गया। वहाँ से आकर उसे भी बेल करवाना पड़ा। केस आज तक चल ही रहा है। वकील सब दौड़ाता है सो तो अलग पैसा भी पानी जैसा खर्च करवाता है। मेरे ससुरार के लोगों ने कसम खाई है कि कभी कोई सडक जाम नही करेगा। मैं सडक जाम की राय नही दूंगा। प्रेम बोला “जब आपके साला का लड़का वहां नही था त उसका नाम कैसे पड़ा? जतन ठाकुर बोले “अरे भाई! इहे जब समझ जाओगे तो एहिजे रहोगे? इ दुनिया है, दुनिया! दुनियां में भी अपना देश। कहने को तो कानून का राज है, पर देख ही रहे हो कानून का राज? "अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा”। अंत में मधुसुदन बाबा ने हाथ में पगड़ी ले कर सबको संबोधित किया। बोले, “ लड़ने-भिड़ने से कुछ नहीं होगा। छ: महीना से तो कुछ नहीं हुआ, सारा लिखा पढ़ी बेकार। अब हम सवेरे चन्द्रमा जी के घर जायेंगे। मेरे साथ आप लोग भी चार-पांच आदमी चलियेगा। बातचीत से सभी समस्या का समाधान होगा।

चन्द्रमा जी संस्कारी आदमी थे। बुजुर्गों का मान उन्होंने रखा। ये तो व्यवस्था ऐसी है कि उनको ये सब करना पड़ा। वे इसका सारा दांव-पेच जानते हैं और इस्तेमाल भी करते हैं । वे जानते हैं, सरकारी नौकरी वालों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है, बशर्ते कि अपना साहब ठीक रहे। सरकारी कलम में तो इतनी ताकत है कि दिन को रात और रात को दिन कर दे। चन्द्रमा जी मान गये। उसी दिन अपना ओझाई छोड़ कर बुजुर्गों के साथ आ कर विद्यालय का ताला खोल दिया। तय हुआ कि चन्द्रमा जी को जब आना हो आयें, जब जाना हो जाएँ, कोई कुछ नही बोलेगा। चन्द्रमा जी ने सबका मान रखा था, अब इनका भी मान रखना जरुरी था।

इसके बाद कई शिक्षक आये और गये, पर सबने नौकरी ही किया। बच्चा विद्यालय आया या नहीं आया, इसके पचड़े में कोई नही पड़ता। बच्चे पढ़ रहे है या गाली गलौज कर रहे हैं, इससे किसी को कोई मतलब नहीं रहा। पर मास्टर राम कैलाश जब से इस विद्यालय में आये विद्यालय का कायाकल्प हो गया। मास्टर राम कैलाश को वेतन की चिंता नहीं रहती थी, पर इसकी चिंता जरुर रहती थी कि विद्यालय से कौन-कौन बच्चे गायब हैं।

शुरू-शुरू में मास्टर राम कैलाश को बहुत मेहनत करना पड़ा था। एक-एक घर में जा कर बच्चों के माता-पिता से मिल कर उन्होंने लगभग गांव के सभी बच्चों को विद्यालय में आने के लिए प्रेरित कर दिया था। हद तो तब हो गई जब जुआ खेलने वाला पिंटू भी विद्यालय आने लगा। पहले भी वह आता था, पर पूरा दिन और नियमित विद्यालय नही आता था। दुसरे गांव में जुआ और शराब के अड्डे पर भाग जाता था। उसके घर वाले बहुत परेशान थे और उस पर मार का भी असर नही होता था। थेथर था थेथर, पर वह अब पूरा दिन विद्यालय में बिताता था। मास्टर राम कैलाश बच्चों से गीत भी गवाते थे और नाटक भी करवाते थे। खेल भी होता था। उनकी शिक्षा प्रणाली ऐसी जीवंत थी कि बच्चों को विद्यालय अपनी ओर खिचता था। अगर कभी कोई बच्चा नही आता था, तो मास्टर साहब मजबूत बच्चों को भेजकर और टंगवा कर मंगवाते थे। लड़कियों की संख्या भी काफी थी, जो पहले नही थी।

मास्टर राम कैलाश की बातें क्रन्तिकारी होती थीं। उनका कहना था कि एक साजिश के तहत शिक्षा को चौपट किया जा रहा है। निजी विद्यालयों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। मंत्री और अधिकारी अपने बच्चों को निजी विद्यालय में भेजते हैं। सरकारी विद्यालय में गरीब-गुरबों के बच्चे आते हैं। ये बच्चे अधिक से अधिक मैट्रिक तक जा पाते हैं, उससे आगे जिनकी किस्मत अच्छी होती है पहुँचते हैं। बच्चे देश के भविष्य हैं। उन्हें एक तरह की शिक्षा मिलनी चाहिए। शिक्षा और चिकित्सा सबके लिए बराबर होनी चाहिए। सरकार ये नियम बना दे कि सरकारी विद्यालय के बच्चों को सरकारी नौकरी में प्राथमिकता होगी। इससे भी इन विद्यालयों की स्थिति सुधरेगी। आज की पढाई पैसा का खेल हो गया है। पैसा है तो बच्चा डाक्टर-इंजीनियर बन जायेगा वरना सडक पर मारा-मारा फिरेगा। दो जून रोटी के लिए सारा कर्म- कुकर्म करेगा।

विधायक को एक अदना-सा मास्टर परेशानी में डाल दे, उसकी भट्ठी बंद करवा दे, यह बर्दास्त से बाहर था। उन्होंने मास्टर का हाँथ पांव तोड़ने के लिए अपने गुर्गों को बुलाया। उनके परम प्रिय मित्र पहलवान ने विधायक के मुर्खता पर हंसा, बोला “मास्टर सरकारी आदमी है, उसपर लाठी डंडा क्यों चलवाइएगा? वोट भी बिगड़ेगा और बदनामी भी होगी। उस पर कोई आरोप लगवाइए और फिर सस्पेंड करवाइए। फिर बाद में उधर कालापानी में बदली करवा दीजिये। विधायक हंस कर बोला “ यार पहलवान मान गये तुम्हारी बुद्धि को। तुम जब तक रहेगा, मेरी सफलता कोई नहीं रोक सकता है। मास्टर जैसा रोड़ा को हटाने के लिए तुम ठीक ही उपाय बता दिए हो। विधायक नें शिक्षा विभाग के वरीय पदाधिकारी को फोन कर बोल दिया कि मास्टर का सस्पेंसन एक सप्ताह के अंदर नहीं हुआ तो आप अपना बोरिया बिस्तर बांध लीजियेगा।

विधायक की बात थी, सो साहब सकते में आ गए। आखिर सस्पेंड करने के लिए भी तो कोई कारण चाहिए। पर अधिकारी महोदय जानते थे कि विधायक का क्या पावर होता है। लोकतंत्र तो बढ़िया बात है, पर लोक की नासमझी तंत्र को खराब कर देता है। अधिकारी महोदय मास्टर राम कैलाश को बुलवा कर बात करके मामला को समझना चाहते थे। अगर सुलह की गुंजाईस हो तो किसी के माध्यम से मामला को शांत करवा देना चाहते थे। जिस शिक्षक का रिकार्ड में कोई दाग नहीं हो, उसे बेवजह सस्पेंड करना उचित नही था।

अधिकारी महोदय के सामने मास्टर राम कैलाश ने सभी बातों को बताया। अधिकारी गंभीर हो गये। मास्टर ने सही काम किया है। लेकिन विधायक के पास लोकतंत्र में तमाम ताकतें समाहित हो गई हैं, नहीं तो बेवजह कोई किसी को सस्पेंड करने की बात क्यों करता? अधिकारी महोदय ने मास्टर राम कैलाश से कहा, “मास्टर साहब, अधिकारी वर्ग पानी की तरह होता है। जैसा वर्तन वैसा ही आकार हो जाता है। मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है, पर विधायक अगर चाहता है कि आपको सस्पेंड किया जाए तो, किसी न किसी कारण से आपको सस्पेंड किया जायेगा।

अधिकारी की बातें गांव में भी चर्चा का विषय बनी। लोगों नें कहा, “ऐसा विधायक का मजाल?” मधुसुदन बाबा बोले, “मेरी बिल्ली मुझी से म्याऊ? वोट के समय सुबह से शाम तक घुरियाये रहता था। सुबह-सुबह बाबा का आशीर्वाद मांगता था, पैर छूता था। भरी सभा में बोला था कि जब भी जरूरत हो आजमा लीजियेगा। जान भी देनी पड़ी तो भी मैं पीछे नहीं हटूंगा। पूरे गांव के लोगों ने उसकी बात मान कर वोट दिया था और विधायक चुनाव जीत गया था। पर यह क्या? चुनाव जीते ही उसका तेवर बदल गया। संविधान की शपथ लेने वाला जनता का लुटेरा बन गया। विधायक फंड से होने वाले कामों में कमीशन लेने लगा। कोई भी बड़ा टेंडर हो, उसमें विधायक अपने छल, बल और कल से शामिल रहता था। जिसे चाहता था, उसे ठीकेदारी का काम दिला देता था। विकास के हर कार्य में उसकी आमदनी का हिस्सा था।

गांव के लोग सुबह-सुबह विधायक के यहां पहुंचे। गांव और जवार के लगभग 50 लोग थे। इतने सारे हुजूम को देखकर विधायक थोड़ा घबराया और आने का कारण पूछा। सुनील को नेतागिरी का चस्का था। सुनील बे-लाग लपेट का बोला, हम लोग कहने आए हैं कि वोट मांगने हम लोग के गांव और पंचायत में मत आईएगा। सुनील डगरू सिंह का बेटा है। नेतागिरी का चस्का लगा है। वैसे विधायक उसको बहुत मानते हैं। वह विधायक से डरता नहीं है। विधायक बोले, इ सब का बोलता है? वोट मांगने हम ना आएंगे तो कौन आएगा? इतना गरम काहे हो? पहले बात तो बताओ। सुनील ने बताया कि आपकी वजह से मास्टर साहब का सस्पेंशन हो रहा है। अभी कारण बताओ नोटिस भेजा है सब, पर हम लोग को मालूम है कि इस चिट्ठी के बाद मास्टर कुछ भी कारण बताएं पर उनको सस्पेंड किया जाएगा। विधायक बड़े ही शालीनता से बोला कि भाई, इसमें मैं क्या कर सकता हूं। इ सब शिक्षा विभाग का मामला है। मास्टर पर निगरानी करने के लिए विभाग है, पदाधिकारी हैं। इसमें मैं क्या कर सकता हूँ? सुनील बोला, आप कुछ नहीं कर पाएंगे और करिएगा भी नहीं। पर हम लोग करेंगे और आप को वोट नहीं देंगे। देखते हैं कि विधायक का चुनाव कैसे जीतते हैं? गोपाल बोला कि आप के विरोध में और आप की काली करतूतों को बताने के लिए समूचे पंचायत के नौजवानों का जत्था निकलेगा। विधायक के माथे पर चिंता की लकीरें उभर गई। माहौल गर्म था। विधायक ने नौजवानों को मीठी झिड़की देते हुए बोला, “ तुम लोग का दिमाग घूम गया है। तुम लोग संस्कार भूल गए हो। तुम लोग मधुसूदन बाबा के रहते आएं-बांए किए जा रहे हो। बाबा की तरफ मुखातिब होकर विधायक बोला, “ बाबा हम आपके साथ हैं। मैं शिक्षा पदाधिकारी को बोलूंगा कि जनता की भावनाओं को ध्यान में रखकर मास्टर साहब पर कोई कार्रवाई न हो। आप लोग आश्वस्त रहिए कि मेरे रहते आप लोगों की भावना को कोई तोड़ नहीं सकता है। एक सप्ताह का समय दीजिए। चाय पिलाकर विधायक ने सब को विदा किया। मधुसूदन बाबा के पैर धोती और पांच सौ रुपया देकर आशीर्वाद लेना नहीं भूला। मास्टर साहब का सस्पेंशन रुक गया। पर नौजवानों ने विधायक के खिलाफ वोट मांगा। मधुसूदन बाबा ने गांव जवार को बताया कि सांप पालने का अंजाम बुरा हो सकता है। इसलिए सांप को ना पाला जाए। मतलब चुनाव में पढ़ा-लिखा ईमानदार को चुना जाए।

गांव के विद्यालय के प्रांगण में आज शाम को गवनई का प्रोग्राम रखा गया है। गांव और जवार में घूम-घूम कर खबर कर दी गई है। गवनई का कारण है कि मास्टर साहब का सस्पेंशन तो पहले ही खत्म हो गया था, पर अब विधायक हार गया है और मास्टर साहब हेडमास्टर हो गए है। भीड़ जुट गई है और झाल- ढोलक बजने लगे हैं। व्यास यानी रामप्रकाश जोर से बोला भारत माता की जैएएएए! भीड़ बोली- जैएएएए।

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