औरतों की पंचायत
आज गांव में औरतों की पंचायत होने वाली है. पंचायत में मरद लोग भी आ सकते है, पर फैसला औरतों का ही चलेगा. मरद सुनेंगे, सलाह देंगे पर आदेश नहीं देंगे.
मनभरन काकी मानदर बजा बजा कर गांव भर को बता दिया है, रे बहिनीइइई, भाईइइईई, बुढ पुरनियाआआआ. सभी सुनेएएए. आज साँझ को 3 बजे से पुरबारी बगिया में जमा होना है. रे गांव के लोगअअअ, गांव का रीति रिवाज ख़राब हो रहा है. गांव में दू दू गो दारू का भठ्ठी खुल गया है. नौजवान सब दारू और गुटखा में बिगड़ गया है.
राम बरन पांडे ने झनकुआ से पूछा, “का हो रहा है रे झनकुआ ? इ डगरीनिया मान्दर पीट पीट कर का बोल रही है? अस्सी वर्षीय राम बरन पांडे को कम सुनाई पड़ता है. उनको समझाना और उनसे बतियाना 10 कोस पैदल जाना है. राम बरन पांडे गांव में किसी को भी गलिया सकते हैं. इनका गुस्सा कब और किस पर आ जायेगा, समझना मुश्किल है. वैसे गांव में इनका बहुत आदर है, और लोग इनकी गाली को बुरा नहीं मानते हैं. झनकुआ को आज 10 कोस चलने की सजा मिल गई.
झनकुआ बोला, “आज मेहरारू लोग का पंचाईत होगा. “आंय का बोला? इ बैसाख में चैत गवाएगा? झनकुआ थोड़ा तेज आवाज में बोला, “नहीं बाबा पंचायतअअअ?
झनकुआ की तेज आवाज सुनकर, टोला महल्ला के और लोग जुट गये. किसी तरह पांडे बाबा को समझाया गया जो मनभरन काकी मानदर बजा बजा कर कह रही थी.
पांडे बाबा का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया. घोर कलियुग, घोर कलियुग, पांडे बाबा चिल्लाने लगे, जैसा की किसी भी अविश्वसनीय बात पर चिलाते हैं.
पुरबारी बगीचा में सारी औरतें इकट्ठा हुईं. मरद मानुष भी तमाशा देखने के लिए पहुंचे हुए थे. आते जाते अवार-ज्वार के राहगीर भी रुक जाते थे. चारो तरफ औरतों के इस पंचायत की चर्चा थी. गांव के इतिहास में या अगल, बगल के किसी भी गांव के इस तरह की औरतों की पंचायत कभी नही हुई. पंचायत का विषय था, गांव में चल रहा अवैध भट्ठी. गुरुआइन चाची को सभा का अध्यक्ष औरतों ने बनाया. गुरुआइन चाची का सम्मान पुरे गांव-ज्वार में है. गुरुआइन चाची किसी भी बात को निष्पक्ष ढंग से कहती हैं. डर-भय से रहित दूध का दूध पानी का पानी करती हैं.
गुरुआइन चाची ने खड़ा हो कर भगजोगनी से कहा, “भगजोगनी! इस पंचायत के बारे में सबको बता दो कि इ पंचाईत काहे हो रहा है. का कारण है, इस सभा को बुलाने का.
भगजोगनी कतनो भीड़ हो लज्जाती नहीं है. टन-टन बोलती है. किसी से डरती नही है. गांव के स्कूल तक पढ़ी है, पर ज्ञान में इए बीए लोग भी भगजोगनी से बात करने में घबराते है. समझाती बहुत बढियां से है. जब बोलती है, सुनने वाले उकताते नहीं हैं.
भगजोगनी ने टनक आवाज में कहना शुरू किया, “दादी, काकी, बहिनी, भौजाई लोग आज इस गांव में मरद, मानुष का विवेक खतम हो गया है. गांव का रहन बिगड़ गया है. जिस गांव को पुरखों ने सजाया सवांरा उसको तहस नहस किया जा रहा है. जिस गांव में बड़ों के सामने छोटे सर उठाने की हिम्मत नही करते थे. खैनी गुटका सामने खाने की हिम्मत नही करते थे. आज उसी गांव में खुलेआम दारू बिक रहा है. लोग बिना लाज शरम के, सारा लाज लेहाज भुला के दारू गटक रहे हैं. गली में लड़की और औरतों का निकलना खतरा से खाली नही है. कब कौन दारू के नशा में देह पर ढीलमिला जाय कहना मुश्किल है. हाड़तोड़ मेहनत का पैसा दारू में बह रहा है. घर का जरूरत से पियक्कड़न को कोई मतलब नही है. सब त सब अगर किसी के घर की औरत मरद को दारू पिने से मना करती है, तब मरद से पिटाती भी है. बुरा काम रोकने के लिए कोई सामने नहीं आ रहा है. जो दारू नही पिता है, वह इन पियकड़न से डरता भी है, इस लिए नहीं पीने वाले भी कुछ बोलने से डरते हैं. जब मर्द लोग इस काम को रोकने में असमर्थ हो रहे हैं, तब औरत लोग को इकट्ठा हो कर सोचना पड़ रहा है. औरतों का भी दायित्व बनता है कि घर परिवार को ठीक रखे. बाल बच्चों को ठीक रखे.
भगजोगनी के बाद रामरत्ती आपन पचड़ा सुनाने लगी. रामरत्ती गांव की बेटी है. नैहर में ही बस गई है. माँ-बाप की अकेली संतान थी पिता बहुत पहले गुजर गये थे. माँ अकेले थी और मजदूरी कर के पेट पाल रही थी. ऊम्र ज्यादा होने और शरीर जर्जर होने के बाद जब किसी काम लायक नही रह गई तब रामरत्ती अपने पत्ति के साथ मायके चली आई माँ की सेवा करने. माँ के मृत्यु के बाद रामरत्ती यहीं बस गई. रामरत्ती का पत्ति रोज दारू पी के घर आता है. रामरती को लगभग लतियाता और गरियाता हैं. टोला-पड़ोस कुछ नहीं बोलता है. टुकुर टुकुर सब तमाशा देखता है. मेहरारू लोग भी मेहरारू के मदद में नहीं आती है. रामरत्ती बोल रही थी, काल्हे का बात है, मुंहझौसा पी के आया और खाना मांगने लगा. जब उसको भात, आचार और नमक-मिरचाई ले के गई तो झोंटा पकड़ के मारने और गरियाने लगा. बोलने लगा इ कौनो खाना है? दाल भात सब्जी क्यों नही बनाई?
रामरत्ती सब्जी दाल बनाती भी तो कैसे? रामरत्ती का पत्ति घर में एक पैसा देता नहीं है, उलटे घर का सामान भी बेच देता है. रामरत्ती का लगनौती दो भर का पायल ना जाने कौना को बेच दिया.घर में कभी कुछ खरीद कर लाता नही है. इहाँ भात भी पंडिताईन चाची की कृपा से बना है. बच्चों को रोते देख कर पंडिताईन चाची ने पूछा था, रामरत्ती! ई लड़का सब काहे रो रहा है? जब रामरत्ती ने बताया कि घर में एक दाना भी नहीं है, और सब भूखे रो रहा है सब, तब जाके पंडिताईन चाची ने अपने घर से चावल भेजवाया, तब जा के भात बना. रामरत्ती गांव में घूम-घूम कर काम करती है. एक एक पैसा जोडती है और उसका पत्ति मारपीट कर पैसा छिन लेता है और दारू पि जाता है. काम धंधा कुछ भी नही करता है.
इहे कहानी नन्हकुआ का है. उसकी पत्नी बता रही थी, “ बेटी के बियाह ठीक करने के लिए हमसे पैसा लिया. घर से नहा-धोआ के और गमकौआ तेल लगा के बबरी झार के आ साफ कपड़ा पहन कर घर से निकला. घर से निकल कर सीधे चमरू राय के भट्ठी में गया. दो पाट गला में उतरते ही अपना होश-हवास खो बैठा और आगे जाकर नाली में गिर गया. गांव के लोग उसे पकड़ कर घर ले आये. उसकी पत्नी बोल रही थी, “निकला था शादी ठीक करने आ पहुंच गया नाली में. एक-एक रुपया जोड़ा हुआ रुपया भी गवां दिया. उसको तो कोई फरक नही पड़ा पर हम लाज और दुःख से घर से तिन दिन बाहर नही निकले. का कहें उ दारू पि के नाली में घुलटाया और मेरे मुंह में कारिख लग गया.
पुरे गांव का इहे कहानी है. दारू पीने वालों से हर घर परेशान है. खास कर औरतों और बच्चों को ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है.
भीड़ में मास्टर साहब भी थे. उन्होंने भी हाथ उठा कर कुछ अपनी बात कहने की अनुमति मांगी. अध्यक्ष की अनुमति से उन्होंने कहना शुरू किया, का कहें सचमुच गांव का रहन ख़राब हो गया है अब तो लगता है कि इस गांव को छोड़ कर किसी जंगल झार में चल जाएँ. परसों का बात है, झमन का लड़का सिगरेट पीते हुए आ रहा था. हमको देख कर भी उसको लाज शर्म नहीं आया. तीसरा क्लास तक हम उसे पढाये है उसके बाद तो पढाइए छोड़ दिया. हमने उसको डांटा, “बेशर्म सिगरेट पीता है ! उ नालायक मुझ पर ही गुर्राने लगा और कहने लगा आपका पीते है? हम अपना पैसा फूंक रहे है तो आपका क्या? हमको बहुत खराब लगा. मैंने झमन को इस बात को बताया, झमन भी दारू के नशा में था, “बोला मास्टर साहेब उ त ठीके बोला, आप उसके फेरा में काहे हैं? मन दुखी हो गया. लगा की आज ही इ मास्टरी से इस्तीफा दे दूं? मैंने इस बात को पेशकार साहब को बताया तो बोले, मास्टर साहब दिनों-दिन समय खराब हो रहा है. किसी तरह से इज्जत बचा लेना ही समझदारी है. पेशकार साहब का बात में दम था, अपना इज्जत बचाना है, तो इस गांव में आपन मुंह सी के रखना है. मै आप लोग के साथ हूँ, और मेरे लायक जो भी काम होगा ख़ुशी से करूंगा.
औरतों ने प्रण किया कि इस गांव को बर्वाद नहीं होने देंगे. गांव की मर्यादा लखैरों के हाथ में नहीं जाने देंगे. पुरखों का सवांरा गांव को और सवांरेंगे. टी हुआ की जिस किसी के घर में कोई भी पी के आये उसे घर में घुसने न दिया जाये. अगर मरद गाली-गलौज करता है तो उसकी पिटाई झाड़ू से की जाये. हल्ला-गुल्ला सुनकर कोई तमाशा नहीं देखेगा, बल्कि औरते सहयोग के लिए जुटेंगी. एक दुशरे का मदद करेंगी. चमरू राय और पलटन प्रसाद को चेतावनी दे देना है कि अपना दू नम्बरी भट्ठी बंद कर दे. अगर भट्ठी चलाने वाले पंचायत को नहीं मानते हैं, तब औरत लोग समूह बना कर भट्ठी के दरवाजे पर बैठेंगी. देखेंगी कि कौन दारू पीता है. देखेंगी की कौन बाहुबली है जो नारी शक्ति के खिलाफ आता है और दारू पीता है. औरतों ने यह भी फैसला लिया भट्ठी का दारू नाली में बहवा दिया जायेगा.
रामटहल साह बहुत खुश हैं. बगल के गांव के हैं, चावल का लदनी करते हैं. चावल का लदनी मतलब चावल का व्यापार. गांव-गांव घूम-घूम कर चावल खरीदते है. और गदहा से रोड तक पहुँचवाते है. रोड से फिर ट्रक से चावल को बाजार भेजते हैं. साह जी का साख और अक्ल की दाद देनी पड़ेगी. उनका व्यापार सिर्फ साख पर चलता है. जिसको चावल बेचना होता है, वह साह जी से संपर्क करता है. साह जी उधार चावल उससे खरीद लेते हैं. जब चावल बाज़ार में बिक जाता है तब जा कर उधार में लिया गया चावल का भुगतान कर देते है. कभी कभी इस प्रक्रिया में महीनों लग जाता है. साह जी खुस हैं की पियाकी बंद हो जायेगा. अक्सर बदमाश लड़के उनका गदहा रोक लेते थे और पीने के लिए कुछ खर्च देने पर ही गदहा को जाने देते थे.
भगजोगनी कहती है. “सरकार कुछ नही करेगी! थाना पुलिस कुछ नही करेगी! जो भी करना होगा अपने करना होगा. राम किशुन का लड़का शहर में पढ़ता है. कई बार भट्ठी बंद करवाने के लिए पिटीशन कलक्टर और एसपी को भेजवाया गया पर कुछ नही हुआ. शासन प्रशासन सब बेकार. सभी उपाय के बाद जब भट्ठी बंद नही हुआ तब जा के औरतों ने इस तरह का पंचाईत का आयोजन किया. सभा मीटिंग पंचाईत जो भी नाम दिया जाये ख़त्म हो गया. औरतों में नई उर्जा का संचार स्वाभाविक था. इस उर्जा से ही अब सुधार की संभावना थी.
रामरत्ती जैसे ही घर के पास पहुंची, उसका पत्ति चिल्लाया, “हरामजादी प्रधानमंत्री बनती है, भाषण देती है, दारू बंद कराएगी? उसका पत्ति दारू पी के आया था, और चुनौती दे रहा था. देख दारू पी के आया हूँ, क्या कर लोगी ! रामरत्ती के साथ भगजोगनी भी थी. टनकार आवाज में भगजोगनी बोली, “बेशर्म एक तो दारू पी के आया है और उपर से भाषण दे रहा है? रामरत्ती! इसे घर में मत घुसने देना. रामरत्ती का पत्ति रामरत्ती का झोंटा पकड़ लिया, लेकिन रामरत्ती आज पहले वाली रामरत्ती नही थी आज की रामरत्ती शोषण के खिलाफ किसी पर भी हाथ उठा सकती थी, चाहे उसका पत्ति ही क्यों न हो. रामरत्ती ने अपना झोंटा छुड़ा कर और पैर से चपल निकाल कर अपने शराबी पत्ति को पीटने लगी, “मुंहझौसा पहलवान बना है? मेहरारू पर हाथ चलता है. दम है तो कुछ कमा के दिखा? रामरत्ती का पत्ति गिर गया. तब तक भीड़ जमा हो गया था. औरतों ने रामरत्ती को पानी से नहलवा के उसका नशा फाड़ दिया. जब नशा फटा और भीड़ को अपने दरवाजे पर रामरत्ती का पत्ति देखा तब शर्मिंदा हो गया. उसे याद था कि उसकी पत्नी ने उसे चप्पल से पिता है. पंडिताईन चाची बोले जा रही थी, “अब तो चेतो! घर में छोटे छोटे बच्चे हैं. उनका जरूरत पूरा करो. अच्छा से पढाओ-लिखाओ.
रामरत्ती का पत्ति पंडिताईन चाची के पैर पर गिर पड़ा, “चाची माफ करो आज तक आँख में माड़ा पड़ा था. अब मेरा माड़ा हट गया. साफ साफ दिखने लगा है कि भविष्य क्या है. चाची मैं आपके सामने कण पकड़ता हूँ कि आज के बाद दारू नहीं पियूँगा. आज मैं ठीक रहता तो मेरी पत्नी चप्पल से नही मारती.
गांव भर के सामने रामरत्ती का पत्ति कान पकड़ा था कि वह आज से दारू नहीं पिएगा, और सचमुच उसने दारू पीना छोड़ दिया, दारुबाजो का संगत भी छोड़ दिया.
अब औरतों के सामने से कोई भी दारुबाज गुजरने का हिम्मत नही करता था. गांव में पी कर हिलते डुलते झूमते लहराते कोई नजर नही आता था. चमरू राय और पलटन प्रसाद ने औरतों के औरतो के फरमान पर कहा, इ त हमार धंधा है. हम थोड़े किसी के घर में दारू देने जाते है. बरियारी थोड़े किसी को पिला देते हैं. लोग अपने मन से आते हैं. पैसा देते हैं और दारू पीते है.
भगजोगनी के सवाल पर कि आपका दुकान तो दुनम्बरी है. सरकारी कागज है भट्ठी का? इस पर दोनों का जवाब था, “दुनम्बरी है तो थाना पुलिस है न? कोर्ट कचहरी है न? आप लोग कानून से बंद कराईये. भगजोगनी कहीं नही डरती हैं बोली, “आप का थाना पुलिस और कोर्ट कचहरी हम लोग सब समझते है. अब दोनों भट्ठी पर मजलिस लगेगी और हम लोग दरवाजे पर बैठ कर गीत गायेंगे. झाल-ढोलक के साथ झूमर गायेंगे. हमारा उठना, बैठना और गीत गवनइ ख़राब लगता है, और लगता है कि आपके धंधा में हम लोग बाधा हैं तो आपके लिए भी थाना-पुलिस और कोर्ट-कचहरी है. आप भी कानून का मदद लीजिये.
जो काम बड़े बूढ़े नहीं करा सके, थाना पुलिस नही कर सकी, उसे गांव की औरतों ने कर दिखाया. पुरे गांव ज्वार में इसकी चर्चा है. पर भट्ठी चलाने वाले भी कमजोर नही थे. पुलिस को ह्प्त्ता देते थे. उनको भी पुलिस से बहुत आशा थी. दोनों जब थाने में पहुंचे तो दरोगा जी मुस्कुराते हुए मिले. दोनों ने जब अपनी भट्ठी बंद कराये जाने में बताये तब दरोगा जी बोले, “राय जी हमे सब पता है. अब जनता जाग गई है. दुसरे गांव की औरते भी अब अवैध भट्ठी बंद कराएगी. सरकारी भट्ठी भी बंद कराने का प्रयास करेंगी. अब आप लोग दूसरा काम देखिये.
तमाम सवालों के जवाब में दरोगा जी ने कहा, “राय जी जनता जैसी होती है, हम वैसा ही होते हैं. अब जनता चाहती है कि गलत काम नही हो तो यह बहुत अच्छी बात है. हम जनता के साथ हैं.
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