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आइना सच नहीं बोलता भाग ३१

आइना सच नहीं बोलता

अंतिम कड़ी

कड़ी ३१

लेखिका नीलिमा शर्मा निविया

सूत्रधार नीलिमा शर्मा निविया

अचानक से मुबारक हो सुनकर हैरान रह गयी नंदिनी , उस पर सामने माँ पिता जी भाई भाभी के साथ ननदों और ननदोई को देख नंदिनी हैरान रह गयी |

मेरी बिटिया तुमको आज तुम्हारी मेहनत का प्रतिफल मिला हैं , यह देखो पुरस्कार मिलने की सरकारी चिट्ठी

जब अमिता ने उसे चिट्ठी हाथ में दी तो उसकी आँखों से आँसू ऐसे बहने लगे जैसे सुमेरु पर्वत पर बरसात होने लगी हो | बुखार से तपता बदन भी ख़ुशी के आंसुओ से दर्द को भूल गया |हैरानी परेशानी से सबको देखती हुयी सबके गले लगती हुयी नंदिनी सहजता से विश्वास नही कर पा रही थी अपनी इस उपलब्धि पर | स्कूल में अचानक किसी परीक्षा में सर्वोच्च अंक प्राप्त कर लेने जैसी भावना उसके दिल में आई और पुलकित करगयी उसके भीतर का हर कोना |

पिता महावीर चौधरी दूर खड़े उसे निहार रहे थे | आँखों के कोरो पर अटके उनके आंसू अपने आप को छिपाने का भरसक प्रयास कर रहे थे कि उनकी बिटिया रानी उनके गले लग गयी आकर | नंदिनी ने पहली बार उनसे किसी उपलब्धि पर इस तरह गले लग कर आशीर्वाद पाया था और उसे बचपन में भाइयो को हर उपलब्धि पर पिता का १०० रूपये देना याद आगया

आज उसने झट से अपनी हथेली आगे करके कहा ..”.पापा आज तो मेरा नेग भी बनता है ना शायद ??”

फिर संकुचित होदो कदम पीछे हो गयी

पिता ने अपनी जेब से सब रूपये निकाल उसकी हथेली पर रखते हुए कहा तुमने तो मेरा नाम रोशन कर दिया बिटिया ,आज तो तू जो मांग , सब नेग बनता हैं तेरा

मैं यूँ भी तेरा गुनाहगार हूँ बिटिया ..ईश्वर अब तुझे हमेशा खुशियाँ दे और सर पर हाथ रख आशीर्वाद देते हुए अपनी नम आँखे दूसरी तरफ कर ली |

आमोद जी की आँखे भी नम थी | मिठाई खाने और बाते करने का दौर चल निकला | सब खुश थे |

सरपंच जी भी बैठक से वहां लॉबी में आ पहुंचे थे| सब तरफ ख़ुशी का माहौल था | गाँव के बाकी सब लोग भी बाहर आँगन में आ पहुंचे थे और वहाँ हो रहे थे नंदिनी की अथक मेहनत के चर्चे .....कि किस तरह उसने सबको एक सूत्र में बांध कर बिना आपा खोये एक सामूहिक संस्था बना ली थी | जहाँ सब स्त्रियाँ सम्मान पूर्वक जीविका कमा रही थी | सबके घर की आर्थिक सामाजिक हालत में सुधार हो गया था |जिस कसबे में लड़की का भी काम करना बुरा माना जाता था वहाँ आज बहुए भी और उनकी सास भी एक साथ काम पर आती जाती थी |

मिसाल बन चुकी थी नंदिनी |

शाम के छह बज चुके थे |अपने लिए पानी लेने के लिए रसोई की बढती नंदिनी ने लॉबी में अचानक लैंडलाइन की घंटी बजती सुनी | नंदिनी ने फ़ोन उठाया तो दूसरी तरफ चिराग ने एक दम से बधाई कहते हुए पार्टी की माँग कर दी | इसके पहले नंदिनी जवाब देती फ़ोन कट गया | दुबारा फ़ोन की घंटी बजते ही नंदिनी ने फटाफट फ़ोन उठाया और बोली जब कहो तब पार्टी दे दूंगी , क्यूकि इस पुरस्कार के हक़दार तो तुम भी हो

लेकिन दूसरी तरफ इस बार चिराग नही दीपक था

किस बात की पार्टी कहकर उसने सवाल किया तो नंदिनी ने अमिता को आवाज़ लगाते हुए माँ आपका फ़ोन कहकर

रिसीवर नीचे रख दिया ....................................

पानी की जग उठाकर नंदिनी अपने कमरे में आगयी | दीपक की आवाज़ सुनकर मन फिर से अतीत की गलियों में घुमने लगा था | आज दीपक साथ होता तो क्या वोह यह मुकाम पा सकती थी वो ? क्या दीपक उसकी इस उपलब्धि पर खुश होता ? मन खुद ही सवाल करता खुद ही जवाब देता और फिर उनको जवाबो को सवालों समेत नकार भी देता था |

आँखों के कोरो से आंसू बहने लगे थे और उसका मन जोरो से रोने का हो आया लेकिन दिमाग हवा से भी तेज चाल से सोच रहा था |

उसकी इंग्लिश बोलने की कोशिश पर दीपक ने उसका कितना मजाक उड़ाया था | उसके सोमा बोउदी के साथ हॉबी क्लास जाने का कितना विरोध किया था , उसके कपडे पहनने के ढंग का ,उसके खाना बनाने के तरीके का और फिर घर सजाने तक दीपक उसका हमेशा उपहास ही उड़ाया करता था |

साथ वाले कमरे से सबकी धीमी आवाज़ उसके कानो में आ रही थी | माँ नीतू मीतू सब दीपक से बात कर रहे थे |

एक बारगी उसका मन कड़वा हुआ कि जाकर माँ के हाथो से फोन ले ले और दीपक को खूब खरी खोटी सुना दे | लेकिन इस तरह गिले शिकवे करना कभी उसकी आदतों में शुमार नही था |

दीपक ने सिर्फ रात के अंधेरो में उसके शरीर से मोहब्बत की थी लेकिन उसकी रूह ,सेवा और नम्रता और प्रेम को कभी महसूस नही किया था .....

दीपक का प्यार उसके लिय कभी था ही नही ,तो वो ही क्यों दीपक को सोच रही हैं ,अब उसे दीपक को सिर्फ एक ही रूप में याद रखना चाहिए.... वो हैं अमिता के बेटे के रूप में स्वीकार करना ,लेकिन उसके पति रूप को भूल सिर्फ अपने अस्तित्व को याद रखना चाहिए | नीतू मीतू भी दीपक से बात करते हुए बहुत खुश सुनाई आ रही थी

नंदिनी सोचने लगी कि उसकी जिन्दगी में ख़ुशी लाने वाली सभी महिलाये आज भी दीपक से अगर जुड़े रहना चाहती है उसको एतराज नही करना चाहिए ,ना ही मन में मलाल लाना चाहिए , उसे दिवित को एक स्वस्थ वातावरण में बड़ा करना हैं जहाँ उसकी जिन्दगी में सभी रिश्ते हो | सभी संस्कार हो, अकेले रहकर बच्चे को जानवर भी पाल लेते हैं लेकिन उसे जानवर नही बनना और ना ही दिवित के मन को नकारात्मक बनाना हैं | लेकिन अब अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिय उसे कोई समझौता भी नही करना हैं

मन में एक निश्चय करके उसने माँ के कमरे में कदम रखा | फ़ोन पर बात करते करते अमिता अचानक चुप हो गयी | नंदिनी ने माँ के हाथ से फ़ोन लेकर दीपक से कहा शुक्रिया दीपक जी !! आज आप अमेरिका ना गये होते तो मैं शायद इस पुरूस्कार को ना प्राप्त करती | एक आम भारतीय स्त्री की भांति पति के अन्याय सहते हुए जिन्दगी जीती रहती | आपने मातापिता के दबाव में मुझसे विवाह करके जो गुनाह किया था लेकिन सिल्विया के साथ धोखा ना करके वो गुनाह पुन्य में बदल दिया| मुझे मेरे ही स्वरुप से परिचित कराने के लिए मैं आपकी शुक्रगुजार हूँ “|

और फ़ोन माँ को लौटा दिया|

अमिता ने नंदिनी में आज गज़ब का आत्मविश्वास देखा | काश यह विश्वास उसकी बेटियाँ और वो भी उस समय में अपने आप में ला पाती जब उनको समाज और पति की नजरो में अवमानना सहनी पड़ती थी | उन्हें गर्व हो आया आज एक स्त्री होने परऔर एक स्त्री का साथ देने पर |

नही ! बेटा संभव ही नही हैं मेरा अमेरिका आना | मैं विदेशी संस्कृति में खुद को खुश नही रख पाऊंगी मैं यहाँ अपनी तीनो बेटियों नंदिनी नीतू,मीतू और दिवित के साथ प्रसन्न हूँ कहकर अमिता ने फ़ोन रख दिया

माँ का अपने प्रति असीम स्नेह देख नंदिनी भाव विभोर हो उठी आप जब चाहे अमेरिका चली जाए अपने बेटे बहू पोते के पास | मैं एक माँ और बेटे को अलग रखने का गुनाह नही कर सकती| माँ आप के दो घर हैं जब चाहे अमेरिका जाए जब चाहे यहाँ घर पर रहे

अमिता नंदिनी को एकटक देख रही थी | नीतू मीतू भी भाई से मिलना चाहती थी लेकिन कह नही पा रही थी | नंदिनी ने माँ की तरफ देखते कहा ....माँ इस बार दीपक को तलाक के कागज सौप देना |कब से मैंने हस्ताक्षर करके रखे हुए हैं औरअमिता को नीतू मीतू के पास अकेला छोड़ बाहर निकल आई जहाँ से रमाचाची और सुनीता के साथ साथ साक्षी के ठहाके गूँज रहे थे |

साक्षी नंदिनी के समीप आकर धीमे से बोली दीपक का फ़ोन है न तुझे याद नही आ रही क्या जीजाजी की

नंदिनी ने मुस्कुराते हुए भाभी का हाथ थामा और बोली आप से बेहतर कौन जानता हैं मेरे मन के अधेरे कोनो को .. ..मैंने उन अँधेरी रातो में भी चलना सीख लिया था जब जुगनू की रोशनी थी मेरे साथ .अब तो रास्ते भर भोर का तारा मेरे साथ हैं और जल्द ही नया सवेरा होगा मेरी जिन्दगी में आप सबके साथ और स्नेह के कारण

पुरस्कार लेने जाने की तिथि नजदीक आ रही थी | नीतू के बेटे की परीक्षा और मीतू के गर्भ धारण से मुश्किल हो गयी थी थी और साक्षी की भी डिलीवरी नज़दीक थी इसलिये अमिता ने नंदिनी के साथ दिल्ली जाना ठीक समझा } चिराग भी अपने काम में व्यस्त था | पिता जी के साथ भाई भी सीधा दिल्ली पहुँच रहा था |आमोद जी के साथ कार में अमिता और नंदिनी दिल्ली की तरफ चल पड़ी |

हलके नीले रंग की साड़ी में नंदिनी अपने आप को तरोताजा महसूस कर रही थी |आज मौसम बदला बदला सा लग रहा था ,बदलते मौसम की तेज गर्म हवा भी उसको बुरी नही लग रही थी |खिड़की खोलकर उसने खुली हवा को महसूस किया जो आज एक अलग सी खुशबु लिए थी शायद अपने वजूद की | कार की गति के साथ सड़क के दोनों तरफ खड़े पेड़ , दुकाने मकान सब नए नए से लग रहे थे जबकि अनगिनत बार नंदिनी दिल्ली का सफ़र तय कर चुकी थी |

दिवित भी खिड़की से बाहर देखता हुआ बहुत खुश था | पहली बार कसबे से दूर उसकी लम्बी कार यात्रा थी | आज उसको खिलोने से ज्यादा सडको पर भागती कारे सम्मोहित कर रही थी | अमिता भी अरसे बाद खुली हवा में साँस ले रही थी \ समर प्रताप जी के निधन के बाद से उसने सिर्फ एक ही बार दिल्ली की यात्रा की थी जब नंदिनी ने जागर महोत्सव में स्टाल लगाया था | लेकिन आज की यात्रा का आत्मविश्वास और ख़ुशी ही अलग थी |

आज नंदिनी उस सभागार में किसी की पुत्री नही, किसी की बहू नही,किसी की पत्नी नही किसी की माँ नही .आज नंदिनी एक स्वतंत्र शख्सियत होगी का भाव ही नंदिनी को भाव विभोर कर रहा था |

होटल के कमरे में पहुँचते ही सरकारी कर्मचारी ने उनको जरुरी कागजात सौपे और शाम को छह बजे सभागार पहुँचने का निर्देश दिया क्योकि ठीक ७ बजे पुरस्कार वितरण समारोह शुरू होने वाला था |

नंदिनी खामोश लेकिन चमकती आँखों से सब कुछ दिवास्वप्न सा महसूस कर रही थी | उसने कभी सोचा भी नही था कि वो कभी इस मुकाम तक आन पहुंचेगी .

सोचते सोचते उसकी आँख कब लग गयी उस मालूम ना हुआ और नींद में उसने सपने में खुद को हाँ बचपन की नंदिनी को तितलियों के पीछे दौड़ते हुए देखा, किताबो में डूबी नंदिनी , पेंटिंग करती नंदिनी, गाने सुनती नंदिनी , नए नए कपडे खरीदती नंदिनी , पहाड़ की चोटी पर खड़ी नंदिनी को देखा |अचानक उसको महसूस हुआ कि कोई पहाड़ के उस पार से उसको आवाज़ दे रहा हैं ...इसके पहले की वह आवाज़ की तरफ देखती उसकी नींद खुल गयी .......

दिवित का हाथ थामे अमिता उसके सामने खड़ी थी | दिवित जी एक दम राजा बाबू की तरह तैयार खड़े थे

मम्मी !उठो ना !!!सुंदर सुन्दर कपडे पहनो ना ,..हम सब घूमने भी चलेंगे और इतने साआआआआआ रे गिफ्ट लेने भी ““ .. दोनों हाथो को फैलाते हुए दिवित ने माँ से मनुहार की | नंदिनी ने उसे सीने से लगा लिया

हाँ आज दिवित को इतीईईईईईए सारी गिफ्ट लेके देंगे

हाथ मुँह धोकर नंदिनी कमरे में वापिस लौटी और अपनी सूटकेस से उसने हलके हरे रंग की साडी निकाली | हरी साडी जिस पर उसने मनपसंद कश्मीरी टाँके से कढाई करवाई थी आज के दिन ही पहनने के लिए ..... तभी अमिता ने उसके सामने एक बैग रख दिया

क्या हैं माँ इसमें

नंदिनी आँखे तो बंद करो और जब मैं कहूँ तब खोलना

माँ का मुस्कुराता चेहरा देख नंदिनी को भी प्यार आ गया

छोटी सी बच्ची की तरह उसने नकली सी जिद करके कहा

नही माँ!!!! बताओ ना क्या हैं इसमें .....

नही !!!तुम आँखे बंद करो और फिर खोलना मेरे कहने पर

नंदिनी एक अच्छे बच्चे की तरह आँखे बंदकर खड़ी हो गयी अमिता ने बैग से एक साडी निकाल कर नंदिनी के कंधे पर रख दी और उसको आईने की तरफ घुमाते हुए कहा ....

अब खोलो तो आँखे

आईने में देखते ही नंदिनी ने देखा उसके कंधे पर लाल साडी थी .वो लाल रंग जो कभी उसे बहुत पसंद था इतना कि दीवानगी की हद तक | दीपक के जाने के बाद से उसने रंगों का त्याग ही कर दिया था आज सात बरस बाद रंगों ने फिर से दस्तक दी उसकी देहरी पर .उसने अमिता की तरफ गर्दन घुमाई ..........माँ की आँखे बहुत कुछ कह रही थी

नंदिनी को उसकी रंगबिरंगी दुनिया में उसी जिंदा दिली से जीने का आग्रह कर रहीं थीं। माँ उसको आज लाल रंग की साडी पहनने के लिये और खुशियों लपेटे जिन्दगी में लौट आने का आवाहन कर रही थी |

साड़ी पहन कर पल्ला संवारते नंदिनी ने खुद को आईने में देखा। आत्मविश्वास से लबरेज जीवन से संतुष्ट सफल नंदिनी जो आज सैंकड़ों महिलाओं के जीवन को दिशा दे सकने में समर्थ है।

रमा चाची सुनीता साक्षी के अक्स आईने में उभर आये जिन्होंने अपने जीवन को अपने दम पर सार्थक कर लिया। एक दिन इसी आइने में खुद को देख उसने नयी जिन्दगी के सपने बुने थे और फिर एक बार इसी आईने के सामने हताश हो गई थी वह। एक दिन इसी ने उसका उपहास उडाया था और आज यही आइना देखो कैसे भौंचक सा उसे देख रहा है। आज लालरंग की लिपस्टिक बिंदी चूड़ियाँ एक अलग ही अर्थ लिए हुए थी |लाल लिपस्टिक लगा कर लट संवारते मुस्कुराते हुए नंदिनी ने कहा आइने तुम सच नहीं बोलते। देखो मैने तुम्हें झूठा साबित कर दिया मैंने दिखा दिया कि जो तुम दिखाते हो वह सब सही नहींहोता होता वह है जो इंसान चाहता है।

आइना शर्मिंदा था गोया उसे असली जिन्दगी के झूठे सपने दिखाकर कि विवाह के बाद लाल जैसा चटक रंग हमेशा खुशियाँ ही लाता हैं आज वही आइना उसे कह रहा था आईने के सामने देखे सपनो को पूरा करने के लिए जीवटता की जरुरत होती है कोरी कल्पनाओं की नही ............... .

हाल में नंदिनी का नाम गूँज रहा था | पूरा हाल तालियों से गूँज रहा था |

दिवित की अँगुली थामे लाल साडी के पल्ले को सहेजते हुए आत्म विश्वास से लबरेज़ नंदिनी स्टेज की तरफ चल पड़ी ,....... सपने के साकार रूप को सहेजने के लिए

लेखिका नीलिमा शर्मा निविया

सूत्रधार नीलिमा शर्मा निविया

(9411547430)

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नमस्कार मित्रो आज इस कथाकड़ी की अंतिम कड़ी आप सबने पढ़ी | अगली कड़ी में आपको हम अपनी सह्लेखिकाओ से मिलवायेंगे और जानेगे उनकी आइना सच नही बोलता से जुडी यात्रा

आप सबके फीडबैक का इंतज़ार रहेगा ........................... neavy41@gmail.com

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