आइना सच नहीं बोलता Neelima Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आइना सच नहीं बोलता

कथाकड़ी

“यह लाल रंग भला उसे क्यों इतना प्रिय है...”

इस सवाल का जवाब आसानी से कहां मिलने वाला है... फिर चाहे रामचंदर _कृष्ण चन्द्र की चांदनी चौक दुकान से ख़रीदा लहंगा हो या लक्मे की लिपस्टिक... रंग गहरा लाल ही चाहिये। ऐसे में भला शादी का जोड़ा कैसे किसी और रंग का हो सकता था... हां लाल रंग उसमें भरपूर जोश भर देता रहा ... अतिरिक्त ऊर्जा का प्रवाह... सलीक़े से कटे नाख़ूनों पर भी लाल रंग की टिप्स एंड टॉप की नेल पॉलिश अपनी मौजूदगी का अहसास दिला रही | काजल लगी आँखे रूबी रेड लिपस्टिक हमेशा से उसकी कमजोरी रही | शायद इसी लिए उसने जब अपनी वैवाहिक पोशाक चुनी तो लाल रंग को प्रमुखता दी |

आईना एक अजनबी सी सूरत लिए जैसे गुफ्तगू कर रहा था | लाल और सुनहरे रंग का लहंगा उस पर खूब जंच रहा था |लाल रंग हमेशा से उसका प्रिय रंग रहा | | माँ ने कभी काम नही कराया| लेकिन सिखाया सब कुछ था कि ना जाने कैसी ससुराल मिले ? माँ बाप लडकियों को हुनर दे सकते ,संस्कार दे सकते, धन दे सकते, किस्मत नही दे सकते | एक बार का देना उम्र भर नही चलता ,अपना घर अपने बूते पर चलाना होता हैं तब | लडकियां कितनी भी अपनी हो कितना भी दर्द महसूस करे |लेकिन जैसे ही उनकी हथेली की लकीरों पर किसी के नाम की मुहर लग जाती हैं एक अजनबीपन परायापन भीतर पसरना शुरू कर देता हैं |

हाँ !! नंदनी की बात हो रही हैं यहाँ , जिसकी शादी हैं बारात जनवासे तक पहुँच गयी हैं | ब्यूटिशियन व्यस्त हैं उसे और ज्यादा सुन्दर बनाने में | और उसका मन भी कशमकश में फंसा हैं विवाह के बाद क्या होगा ? एक अनिश्चितता की स्थिति |ख़ुशी और घबराहट का एक संगम उसके भीतर था |

नंदिनी बचपन से एक मेधावी छात्रा रही, सीखने की ललक उसमे कूट कूट कर भरी थी | शक्कर की तरह से वह सब तरह की सहेलियों में रचबस जाती थी | बचपन से उसे आकाश की नीलिमा से गहरा स्नेह रहा ... कई बार पीठ के बल लेट वह सपने बुनती, उतना ही ऊँचा उड़ने की चाह रखती जितनी ऊपर वह पक्षी उड रहे हैं | छोटे छोटे सपनो की बिसात को वह आसमान सरीखा कर दिन भर उनको बुनती और रात को अपनी मन की बाते एक कापी पर उतार कर अलमारी में बंद कर देती |
मेधावी होना उसका जुर्म ना था | जितना बड़ा जुर्म उसका एक जमींदार परिवार की बेटी होना था | उसके पिता अपने क्षेत्र के जाने माने किसान नेता थे | राजनीति में भी उनका दखल था | घर का वातावरण एक आम ग्रामीण परिवार की तरह परदे के अन्दर महफूज़ होकर सांसे लेता रहता था |पैसे की कोई कमी नही थी लेकिन सोच का दायरा संकुचित था | पिता को उसके पढने पर एतराज़ नही था | लेकिन उसके ऊँचे उड़ने के सपने पर एतराज़ होने लगा | नंदिनी पढ़ लिख कर अपने पैरो पर खड़ा होना चाहती थी | सबसे अलग रहने की उसकी चाह ने जब जोर दिखाना शुरू किया तो उसने स्नातक की पढाई के लिए पास के कस्बे के एक कॉलेज में दाखिला ले लिया | लखनऊ से लौट कर पिता ने जब उसको कॉलेज जाते देखा तो उसके माथे पर चिंता और गुस्से की लकीरों ने अपना साम्राज्य स्थापित करना शुरू कर दिया |
और एक दिन ऐसी ही किन्ही असंतुष्ट दिन में उसका पिता से सामना हुआ तो उन्होंने
उसको एक थकी सी दृष्टि से देखा और अपने घनिष्ठ मित्र के लिए उसको चाय लाने का आदेश दिया | चाय लेकर जब नंदिनी बैठक पर पहुंची तो वहां का माहौल बहुत गरम लेकिन कण्ट्रोल में लग रहा था | उसने चाय का एक प्याला ताऊ जी की तरफ बढाते हुए कहा "
नमस्ते ताऊ जी !"
" नमस्ते बेटा ! जीती रह |""
ए छोरी !! कितने साल की तेरी पढाई बाकी ?
पिता के साथ आये चौधरी साहब ने उसके हाथ से चाय का कप लेते हुए पूछा “ताऊ जी अभी तो एडमिशन लिया ही हैं | मैं तो शहर जाकर वकालत पढना चाहती हूँ अभी | ५-७ साल तो लग जायेंगे पढाई ख़तम होने में "“
ए बसेसर क्या तब तलक छोरी को घरे बिठा के रखेगा | पक्की उम्र में दुहाजू ही मिलेगा फिर ब्याह के लिय "मेरी मान अहलावत का छोरा अमरीका से पढ़ के परसों ही लौटा हैं उसे गोरी चिट्टी सोनी सी लड़की चाहिए जो दिमागदार भी हो "

“नंदिनी के लिय कहे तो मैं ही बात कर लूँ "
दरवाज़े के पीछे से चुन्नी सम्हालते हुए नंदिनी ने दोनों दोस्तों की बाते सुनी
और ठस्स से हंस पडी भाभी को देखते ही
भाभी ने जब कारण पूछा तो बताते हुए भी उसकी हंसी नही थम रही थी |

“इत्ती सी उम्र में कोई शादी करता हैं क्या ? अभी तो उसके पढने के दिन हैं |”

भाभी के चेहरे पर भी कुछ सोचे उभर आई | जानती थी वो घर भर का माहौल .,अपने समाज के तौर तरीके जहाँ लडकियों का प्रतिशत बहुत कम हैं |इसपर अमीर घर के बुजुर्ग अपने बेटो के लिए सुन्दर पैसे वाली लडकियों के घर रिश्ते बार बार भेजने लगते हैं ताकि इस तरह की कोहिनूर नुमा लडकियां किसी और के माथे पर न सज जाएँ
क्यों यह लडकियां जन्म लेते ही घर की पूँजी बन जाती हैं ?जब से भ्रूण परीक्षण की मशीनें बाजार में आई हैं और डॉक्टर अपने पैसे बनाने के लिय आजकल इस परीक्षण को बच्चे की स्वास्थ्य जांच के लिय आवश्यक करार कर जय माता की या बम बम भोले कहकर उनको अनौपचारिक तौर पर आने वाली संतान का लिंग बता देते और बेटे की चाह रखने वाला परिवार जरा भी देर किये बिना शनि स्वरुप धरण कर उसका गर्भपात करा देता | इसलिए ही शायद लडकियों की संख्या कितनी कम रह गयी हैं | उस दिन नर्स दीदी भी कह रही थी उसने एक दिन में ७ गर्भपात किये और सभी लडकियां थी | स्त्रीयां स्वयं भी पुत्र की आस रखती हैं |उनको लगता हैं पुरुष का वंश उनके बेटे ही चलाते हैं इसलिय वह लड़की सुनते ही एक जीव ह्त्या के लिय तैयार हो जाती हैं |शायद अपने टूटे सपनो की किरचें उनको मजबूर करती हैं या पुरुष के झूठेदम्भ का टोकरा सर पर उठाये घूमना स्त्री की नियति बन चुकी हैं |
लडकियों का विवाह एक सामाजिक प्रतिष्ठा का विषय होता हैं | लड़के को तिलक में कितना नेग चढाया जायेगा | इसकी तैयारी उसके जन्म के साथ ही शुरू हो जाती हैं |भाभी की सोचे बहुत कुछ सोच रही थी

नंदिनी के सपनों को अब नजर लग चुकी थी| अहलावत जी के बेटे के अलावा भी जगह जगह “रिश्ता देखा जाए” की सन्देशपत्री भेजी जा चुकी थी | अच्छा लड़का मिलना भी तो आजकल कितना मुश्किल हो गया हैं | लड़का कमाने में भी अच्छा हो सूरत सीरत भी अच्छी हो संस्कारी खानदानी अमीर भी हो,बड़ा सा परिवार हो, जमीन जायदाद प्रचुर मात्रा में हो |
पराया धन होती हैं बेटियाँ | माँ का मन तो चाहता था बेटी के सपनो को उड़ान भरने दे| लेकिन पति से डरती थी और बेटे वो भी बाप के नक़्शे कदम पर चलते हुए दबंगई दिखाते थे | माँ का विरोध खामोश लफ्जों से घुट कर रह गया | उसको भी इसी तरह १५ साल की उम्र में विवाह वेदी पर बैठा दिया गया था बालिका वधू बना कर | आज उसकी बेटी की बारी आई हैं उसे समाज दिन दुनिया का डर दिखाया जा रहा हैं | साडी के पल्ले से आँखे पोंछती माँ उसके दहेज़ की लिस्ट बनाती रहती मन ही मन में |
छोटा भाई बहन से बहुत स्नेह रखता था | अक्सर उनका छोटी छोटी बातो पर झगड़ा होता रहता |आपस में मार पीट गाली गलौज भी होती रहती थी लेकिन क्या मजाल कोई भी बड़ों तक शिकायत पहुँचा दे| वो भी हैरानी से देख रहा था बहन के विवाह के लिय सबका परेशान होना लेकिन खामोश था
दीपक के घर रिश्ता लेकर पहुंचे नाई ने जब सकारात्मक भाव की आशा जताई तो पिता ने माँ को धमका कर बेटी को अच्छे से ओढ़ पहन कर रहना सिखाने की ताकीद की | अब शुरू हुई उसकी ट्रेनिंग | कैसे खाना पकाना हैं खिलाना हैं कैसे पल्लू सर पर रखकर अदब से पैर घुटने तक तीन बार दबाकर छूने हैं | कितनी नजर उठानी हैं | कितना हौले से हंसना हैं कितनी धीमी आवाज़ में बात करनी हैं | लेकिन उसका मन रमता तब शिवानी की किताबो में | या गुनाहों का देवता की सुधा उसे कही भीतर दरकती सिसकती महसूस होती | खाना मिले ना मिले अखबार पत्रिकाएँ जरुर रोजाना चाहिए उसको |

आखिर वो दिन आ ही गया जब दीपक उसे देखने के लिय आने वाला था | भाभी के साथ उसे उस दिन में पार्लर भेजा गया | भाभी भी उसे समझाती रही कि कही भी कोई ऐसा शब्द ना बोल देना कि ना सुनना पड जाए | अगर ऐसा हुआ तो पिता का गुस्सा माँ पर तो कहर बनकर बरसेगा ही बाकी सब भी उसके लपेटे में रहेगे | यह आदत होती हैं पुरुषो की | जब उनके मुताबिक कोई काम नही होता तो वह अपने गुस्से को कहीं का कहीं निकालते हैं और उस वक़्त अगली पिछली सब बाते निकाल कर सबसे पहले पत्नी फिर बच्चों को कोसते हैं |
नीली जीन्स सफ़ेद कमीज पहने गोरे से लड़के के साथ लम्बे सांवले लड़के को मारुति जेन से उतरते हुए उसने देखा तो नही समझ पायी कि आखिर कौन सा लड़का हैं जो उसके लिए आया हैं | मन में उमंगें उठने लगीं क्या एक लड़का सिर्फ उसका होने के लिय आ रहा हैं या फिर पिता की तरह एक पत्नी को लिवाने आ रहा हैं जो उसका घर बाहर परिवार सम्हाले बिना कोई हील हुज्जत किये || चेहरे से बहुत स्मार्ट लग रहा नीली जीन्स वाला पर इतना अच्छा वाला नही होगा उसके लिय तो वो लंबा वाला लड़का होगा |

चाय की ट्रे थामे दुप्पटे को अच्छे से लपेटे कातर दृष्टि से उसने भाभी की तरफ देखा | तभी रसोई के दरवाज़े पर थाप सुनकर उसने पलट कर देखा तो दीपक की दीदी थी | उसको नर्वस देख उन्होंने चाय की ट्रे उठायी और बोली आओ आप मेरे साथ बैठक में चलो सब इंतज़ार कर रहे हैं | इतने अच्छे दोस्ताना व्यवहार की उम्मीद नही थी उसे और यंत्रवत वो साथ चल पढ़ी | सामने सब लोगो को सर झुकाए नमस्ते कह कर उसने दीदी की तरफ देखा तो दीदी ने उसे दोनों लडको के एक दम सामने सोफे पर बैठा दिया |"
यह है मेरा भाई | ध्यान से देख लो दोनों एक दुसरे को |"
उसने आँखे उठा कर देखा तो जीन्स वाला लड़का मुस्कुरा दिया
ओह ! तो यही हैं दीपक | अपने नाम के अनुरूप उजला सा "
सारे सपने ना जाने कहाँ उड़ गये | अब बस युवावस्था की उमंगें तरंगे अपना वजूद तलाशने लगी | उसके बाद बड़े बुजुर्गो में क्या बाते हुए कितना दहेज़ तय हुआ कब शादी होगी उसे कुछ नही मालूम हुआ | बैठक से उठकर वह अपने कमरे में बिस्तर पर औंधे मुंह लेटे हुए बार बार उस चेहरे के नाक नक्शे याद करने की कोशिश करती जिसे अभी सेकंड के सौवें हिस्से में उसने देखा था | खिड़की के कांच पर पर्दा डाल कर उसने झिर्री से बाहर झांका तो दोस्त के साथ कोने में गुफ्तगू करता हुआ दीपक नजर आया | दूर से उसके चेहरे और डील डौल का देखती नंदिनी मन ही मन पुलकित हो उठी | ““
यह पुरुष मेरा हैं !! सच्ची !! खुद को चूंटी काट उसने यकीं दिलाया "
आईने के सामने खड़ी नंदिनी को अपनी ही बातें याद कर शर्म आने लगी थी और चेहरा लाल हो उठा | कितनी रौनक है न आज उसके चेहरे पर | बाहर बारात द्वार तलक आन पहुंची थी आज मेरे यार की शादी पर नाचते बाराती भीतर आने को तैयार नही थे | स्वागत द्वार पर घर के बुजुर्ग और लड़के हाथ में फूलो की मालाये लिए खड़े थे | माँ और भाभी पूजा की थाली सजाये दूल्हे की नाक पकड़ने को तैयार थी कि किसी भी तरह दुल्हे की नाक् पकड़ ली तो उम्र भर काबू में रहेगा |
खिड़की से बारात देख उसका मन मयूर भी नाच उठा | भूल गयी थी एक पल को उसकी भी शादी हैं और मन बारात में घुस कर ढोल की ताप पर थिरकने को बगावती सा होने लगा | पर दुल्हन भी कभी नाचती हैं क्या ?रस्मे रिवाजे पूरी होते होते समय लगेगा वह खिड़की के सामने से हटकर पलंग पर जा बैठी और रिश्तेदारों की छोटी छोटी बच्चियां उसके कलीरें चूडियाँ साडी सब छू कर देखने लगी और प्यारी प्यारी बाते करने लगीं|
अचानक शामियाने से शोर की आवाज़े आने लगी| भाभी भाग कर अन्दर आई और मेडिकल बॉक्स उठाकर ले गयी | उसने जब पूछा

“ क्या हुआ”

“दूल्हे के जीजे को गोली लग गयी खुद ही हवाई फायर कर रहा था बाहर गेट पर | कोई नुक्सान नही हुआ लेकिन अब बिगड़ गये जनाब कि यहाँ रिश्ता नही करना बरात वापिस जायेगी क्युंकि इंतजाम अच्छे नही हैं |”

कहते हुए भाभी तेजी से बाहर निकली?
बारात क्या वापिस चली जायेगी ? सोचते सोचते नंदिनी की आँखों से आंसू बहने लगे उसे तो प्रेम हो गया था उस इंसान से जिसने उसको एक पल को नजर भर देखा था | और एक अदद तस्वीर जो अमृता प्रीतम के “ सागर और सीपियो के ५६ वे पन्ने में छुपाकर रखी थी | खिड़की से सटी नंदिनी आवाज़े सुन ने की कोशिश कर रही थी लेकिन ..............